🍃संत रामपाल जी महाराज के आशीर्वाद से 20-22 जून 2024 को 11 सतलोक आश्रमों में विशाल भंडारा सफल हुआ। इस भंडारे में लाखों श्रद्धालुओं ने निःशुल्क भंडारा पाया। साथ में पवित्र वेदों, गीता, कुरान, पुराणों से जाना की वास्तव में परमात्मा कबीर साहेब जी ही हैं।
🍃संत रामपाल जी महाराज के आशीर्वाद से 20-22 जून 2024 को 11 सतलोक आश्रमों में विशाल भंडारा सफल हुआ। इस भंडारे में लाखों श्रद्धालुओं ने निःशुल्क भंडारा पाया। साथ में पवित्र वेदों, गीता, कुरान, पुराणों से जाना की वास्तव में परमात्मा कबीर साहेब जी ही हैं।
🍃संत रामपाल जी महाराज के आशीर्वाद से 20-22 जून 2024 को 11 सतलोक आश्रमों में विशाल भंडारा सफल हुआ। इस भंडारे में लाखों श्रद्धालुओं ने निःशुल्क भंडारा पाया। साथ में पवित्र वेदों, गीता, कुरान, पुराणों से जाना की वास्तव में परमात्मा कबीर साहेब जी ही हैं।
_*★★💁♀️जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में 627वें कबीर प्रकट दिवस के अवसर पर सतलोक आश्रम बैतूल में हुआ सैंकड़ों दहेज रहित विवाह। ★★*_
627 वें कबीर साहेब प्रकट दिवस के उपलक्ष्य पर 20-22 जून 2024 को सभी सतलोक आश्रमों में संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है जिसमें आप सभी आमंत्रित हैं।
627 वें कबीर साहेब प्रकट दिवस के उपलक्ष्य पर 20-22 जून 2024 को सभी सतलोक आश्रमों में संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है जिसमें आप सभी आमंत्रित हैं।
627 वें कबीर साहेब प्रकट दिवस के उपलक्ष्य पर 20-22 जून 2024 को सभी सतलोक आश्रमों में संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है जिसमें आप सभी आमंत्रित हैं।
कबीर परमेश्वर जी वि.सं.1505 (सन् 1448) में द्वारिका गए। समुद्र के किनारे जहां गोमती नदी समुद्र में मिलती है। उसके पास बालू रेत के टीले पर बैठकर आने वाले श्रद्धालुओं को तत्वज्ञान सुनाकर उपदेश देते थे। उस स्थान पर गोलाकार चबूतरा (कोठा) बना रखा है।
कबीर परमेश्वर जी वि.सं.1505 (सन् 1448) में द्वारिका गए। समुद्र के किनारे जहां गोमती नदी समुद्र में मिलती है। उसके पास बालू रेत के टीले पर बैठकर आने वाले श्रद्धालुओं को तत्वज्ञान सुनाकर उपदेश देते थे। उस स्थान पर गोलाकार चबूतरा (कोठा) बना रखा है।
गुजरात के भरुच शहर के पास अंकलेश्वर गांव के पास जीवा-दत्ता नामक दो भक्तों द्वारा पूर्ण संत की खोज में लगाई गई सूखी वट वृक्ष की टहनी को कबीर परमेश्वर ने अपने चरणामृत से हरी भरी कर दी थी। जो आज भी भरुच शहर के पास प्रमाण के तौर पर मौजूद हैं, जिसे कबीर वट वृक्ष के नाम से जाना जाता है।
शेखतकी ने कहा कि कबीर का तोप से गोले मारकर काम तमाम कर दो। ऐसा ही किया गया तोप यंत्र से गोले चलाए गए परंतु परमेश्वर कबीर साहेब जी के पास एक भी नहीं गया। कोई तो वहीं गंगा जल में जाकर गिर जाय। कई दूसरे किनारे पर जाकर गंगा किनारे शांत हो जाएं। कोई कुछ दूर तालाब में जाकर गिरे। परन्तु परमेश्वर के निकट एक भी न जाय। इस प्रकार शेखतकी 4 पहर (12 घंटे) तक यह जुल्म करता रहा। तब परमेश्वर कबीर साहेब जी अंतर्ध्यान होकर रविदास जी की कुटिया पर गए और दोनों परमात्मा की चर्चा करने लगे।
एक बार शेखतकी ने कबीर परमेश्वर पर जंत्र-मंत्र (तांत्रिक विद्या) करके मूठ छोड़ी। उस मूठ का कबीर परमेश्वर पर कोई असर नहीं हुआ, क्योंकि वह पूर्ण परमात्मा हैं। थोड़ी दूर पर एक कुत्ते को लगी जिससे कुत्ता मर गया। तब कबीर परमेश्वर ने उस कुत्ते का कान पकड़ा और कहा कि चल उठ। ऐसा कहते ही कुत्ता उठकर दौड़ गया और उस मूठ से कहा कि, जिसने तुझे छोड़ा था, वापस उसके पास जा । इतना कहते ही वह मूठ वापस जाकर शेखतकी को लगी।