श्राद्ध की शास्त्र अनुकूल विधि संत रामपाल जी महाराज के सभी सतलोक आश्रमों में हर दूसरे तीसरे महीने समागम में की जाती ही। वहां तो श्राद्ध हर दूसरे तीसरे महीने निकालते हैं। आप जी तो साल में एक ही बार निकालते हो।
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मार्कण्डेय पुराण (गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित पृष्ठ 237) में श्राद्ध के विषय मे एक कथा का वर्णन मिलता है जिसमें रूची नामक एक ऋषि को अपने चार पूर्वज जो शास्त्र विरुद्ध साधना करके पितर बने हुए थे तथा कष्ट भोग रहे थे, दिखाई दिए। पितरों ने कहा कि बेटा रूची हमारे श्राद्ध निकाल, हम दुःखी हो रहे हैं। रूची ऋषि ने जवाब दिया की पित्रामहों वेद में कर्म काण्ड मार्ग (श्राद्ध, पिण्ड भरवाना आदि) को मूर्खों की साधना कहा है, अर्थात यह क्रिया व्यर्थ व शास्त्र विरुद्ध है।
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श्राद्ध क्रिया कर्म मनमाना आचरण है यह शास्त्रों में अविद्या कहा गया है बल्कि गीता अध्याय 16 श्लोज 23 और 24 में कहा है कि जो शास्त्र विधि को त्याग कर मनमाना आचरण करते हैं उनकी ना तो गति होती है न ही उन्हें किसी प्रकार का आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है इसलिए शास्त्र ही प्रमाण है।
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संत रामपाल जी महाराज ने न केवल आध्यात्मिकता की बात की है, बल्कि समाज सुधार के लिए भी कई कदम उठाए है। उन्होंने दहेज प्रथा, भ्रष्टाचार और नशा के खिलाफ अभियान चलाए। उनके अनुयायियों ने समाज में जागरूकता फैलाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए।
संत रामपाल जी महाराज के गुरु स्वामी रामदेवानंद जी महाराज ने सन् 1993 में उन्हें सत्संग करने की तथा 1994 में नाम दान करने की आज्ञा प्रदान की। जिसके बाद संत रामपाल जी महाराज ने भक्त समाज तक तत्वज्ञान पहुँचाने के लिए जे.ई. की पोस्ट से त्यागपत्र दे दिया और सन् 1994 से 1998 तक घर-घर, गाँव-गाँव, नगर-नगर में जाकर सत्संग किया और जिससे अज्ञानी संतो का विरोध भी बढ़ता गया और यह संघर्ष संत रामपाल जी का निरंतर जारी है।
कबीर साहेब अविनाशी हैं। सशरीर प्रकट होते हैं, सशरीर चले जाते हैं - प्रमाण ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 93 मंत्र 2, मण्डल 10 सूक्त 4 मंत्र 3
गरीब, पानी से पैदा नहीं, श्वासा नहीं शरीर |
अन्न आहार करता नहीं, ताका नाम कबीर ||
627 वें कबीर साहेब प्रकट दिवस के उपलक्ष्य पर 20-22 जून 2024 को सभी सतलोक आश्रमों में विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है जिसमें पूरा विश्व आमंत्रित हैं।
पूर्ण परमात्मा अपने द्वारा रची सृष्टि का ज्ञान तथा सर्व आत्माओं की उत्पत्ति का ज्ञान अपने निजी दास को स्वयं ही सही बताता है कि पूर्ण परमात्मा ने अपने मध्य अर्थात् अपने शरीर से अपनी शब्द शक्ति के द्वारा ब्रह्म की उत्पत्ति की तथा सर्व ब्रह्माण्डों को ऊपर सतलोक, अलख लोक, अगम लोक, अनामी लोक आदि तथा नीचे परब्रह्म के सात संख ब्रह्माण्ड तथा ब्रह्म के 21 ब्रह्माण्डों को अपनी धारण करने वाली आकर्षण शक्ति से ठहराया हुआ है।
वह परमात्मा कबीर साहेब जी ही हैं।
- संत रामपाल जी महाराज
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🏵️ ईश्वर टी.वी. पर सुबह 6:00 से 7:00 तक
🏵️ श्रद्धा MH ONE टी. वी. पर दोपहर 2:00 से 3:00 तक
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कबीर साहेब जी ही त्रेतायुग में लंका के राजा रावण के छोटे भाई विभीषण जी को मुनीन्द्र रुप में मिले थे विभीषण जी ने उनसे तत्वज्ञान ग्रहण कर उपदेश प्राप्त किया और मुक्ति के अधिकारी हुए।
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द्वापरयुग में एक राजा चन्द्रविजय था। उसकी पत्नी इन्द्रमति धार्मिक प्रवृत्ति की थी।
द्वापर युग में परमेश्वर कबीर करूणामय नाम से आये थे।करूणामय साहेब ने रानी से कहा कि जो साधना तेरे गुरुदेव ने दी है तेरे को जन्म-मृत्यु के कष्ट से नहीं बचा सकती। आज से तीसरे दिन तेरी मृत्यु हो जाएगी। न तेरा गुरु, न नकली साधना बचा सकेगी। अगर तू मेरे से उपदेश लेगी, पिछली पूजाएँ त्यागेगी, तब तेरी जान बचेगी। सर्प बनकर काल ने रानी को डस लिया। करूणामय (कबीर) साहेब वहाँ प्रकट हुए। दिखाने के लिए मंत्र बोला और (वे तो बिना मंत्र भी जीवित कर सकते हैं) इन्द्रमती को जीवित कर दिया।
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संत गरीबदास जी बताते हैं कि कबीर साहेब ही काशी में केशव बनजारे के रूप में आकर तीन दिन का भंडारा कराया था और सम्मन की सेवा से खुश होकर उसके पुत्र सेऊ की कटि गर्दन को भी जोड़कर जीवित किया था। कबीर साहेब ही हमें काल के कर्मबंधनों से छुड़वाते हैं जिससे बन्दीछोड़ कहलाते हैं।
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परमेश्वर कबीर जी ने बताया कि मैं अमरपुरी नगरी के राजा भोपाल के महल के मध्य में बनी ड्योडी में पहुँचा। उस समय मैंने अपने शरीर का सोलह सूर्यों जितना प्रकाश बनाया। राजा को पता चला तो उठकर महल में आया। मेरे चरण पकड़कर पूछा कि क्या आप ब्रह्मा, विष्णु, शिव में से एक हो या परब्रह्म हो? मैंने कहा कि मैं इनसेे भी ऊपर के स्थान सतलोक से आया हूँ। राजा को विश्वास नहीं हुआ तो मैं अंतर्ध्यान हो गया। राजा पाँच दिन तक विलाप करता रहा। तब पाँचवें दिन मैं फिर उसी प्रकाशमय शरीर में प्रकट हुआ और राजा-रानी ने ज्ञान समझा, दीक्षा ली तथा अपना कल्याण करवाया।
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स्वामी रामानंद जी विष्णु जी की काल्पनिक मूर्ति बनाकर मानसिक पूजा करते थे। एक समय ठाकुर की मूर्ति पर माला डालनी भूल गए। तब कबीर परमात्मा जो कि 5 वर्ष के बाल�� की लीला कर रहे थे बोले कि माला की गांठ खोल कर गले में डाल दो स्वामी जी, पूजा खंडित नहीं होगी। तब रामानंद जी जो पर्दे के भीतर मन में पूजा कर रहे थे, कबीर परमात्मा को सबके सामने गले लगा लिया।
मन की पूजा तुम लखी मुकुट माल परवेश।
गरीबदास गति कौ लखै, कौन वरण क्या भेष।।
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दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोदी को जलन का असाध्य रोग था जो कहीं ठीक नहीं हो रहा था। सिकंदर राजा का जलन का रोग भी कबीर साहेब के केवल दर्शन मात्र से ही ठीक हो गया था।
कबीर दर्शन दीन्हा जबै, तपन भई सब दूर।
शाह कहा तुम साँच हो, औ अल्लाहका नूर।।
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जगन्नाथ पुरी में एक रामसहाय पाण्डा खिचड़ी का प्रसाद उतार रहा था। गर्म खिचड़ी उसके पैर पर गिर गई। उस समय कबीर जी अपने करमण्डल से हिम (बर्फ) की तरह ठंडा जल रामसहाय पाण्डा के पैर पर डाला। उसके तुरंत बाद उसका पैर ठीक हो गया। उस समय कबीर जी ना होते तो रामसहाय पाण्डा का पैर जल जाता।
पग ऊपरि जल डालकर, हो गये खड़े कबीर।
गरीबदास पंडा जरया, तहां परया योह नीर।।
जगन्नाथ जगदीश का, जरत बुझाया पंड।
गरीबदास हर हर करत, मिट्या कलप सब दंड।।
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