That Unexpected Call
तो हुआ यूं कि सर्दियों की रात थी, ऑफिस की छुट्टी 11:30 बजे हो जाती थी और 12:15 पर हम सब की कैब निकल जाया करती थी। गाड़ी में हम सब मिलकर 7 लोग होते थे, ड्राइवर, एक सिक्योरिटी गार्ड, और बाकी मेरे ऑफिस से, ज्यादातर उनमें से मेरे प्रोजेक्ट से ही होते थे। मैं विप्रो टेक्नोलॉजीज में कार्यरत था जहां पर जीएसटी इंडिया का प्रोजेक्ट था। हम लोग ऑफिस से निकल चुके थे जैसे ही कैब परी चौक से आगे निकली तभी उसका कॉल आया, मैं हैरान था और अजीब सी खुशी भी थी मेरे चेहरे पर । होता यूं था कि फ्लैट पर पहुंच कर मैं फ्रेश होता था और अक्सर 1:10 बजे के आसपास मैं उसे कॉल लगाता था और हम लोग सुबह के 5 या 6 बजे तक बात करते थे, कभी उसे नींद आ जाती या मुझे आ जाया करती तो हम दोनों सो जाते थे। उस खुशी को मैं कैसे बयां कर पाता, मेरी एक आदत है अब इसे अवगुड़ समझो या जो भी मैं अपने मन में कोई बात नहीं रखता हूं। मैंने वह सब उसे बता दिया कि, "आज अचानक कैसे, तुम अब तक जाग रही थी सोयी नहीं हो अभी ?" उसने हंसकर जवाब दिया, "आंख खुल गई थी सोच रही थी आज मैं ही कॉल कर लेती हूं।" हम दोनों बात कर रहे थे, रास्ते पर कोहरे की धुंध छाई हुई थी और कैब के शीशों पर भाप सी भी जम गई थी। मैंने बारी बारी से दोनों शीशों पर उसका नाम लिखा फिर एक शीशे से मिटा दिया। अब जो एक पर लिखा हुआ था उसे देखकर मैं बार बार मुस्कुरा रहा था।अब मुझे क्या पता था कि ड्राइवर मेरी इन हरकतों को शीशे में से देख रहा था। खैर उसने कुछ नहीं बोला, बोलता भी क्या। वैसे भी मैं उससे बात करने में खोया हुआ था। फिर मैंने उतरने से पहले सब शीशे जैसे थे वैसे हाथ से साफ कर दिए। उस रात हम लोगों ने 3:00 बजे के बाद तक बात की फिर उसे नींद आने लगी और वह सो गई। मैं जब भी उन पलों को याद करता हूं अपनी अलग दुनिया बसा लेता हूं और फिर वही पागलों की तरह खो जाता हूं। ऐसा लगता है अभी कल ही तो हम बात कर रहे थे। एक अरसा बीत गया है उससे बात नहीं हुई ।
खुशियां नहीं मिल रही या यूं कहूं मेरे पास खुश रहने की वजह नहीं है क्योंकि मेरी खुशी तुमसे है।
काश! तुम ये सब जान पाती।
1 note
·
View note