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#नागरिकता कानून
news-trust-india · 7 months
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CAA Law : सीएए कानून के खिलाफ मुस्लिम लीग ने SC में दायर की याचिका
CAA Law :  देश में नागरिकता संशोधन कानून (Citizenship Amendment Act) लागू हो चूका है। एक तरफ बीजेपी इसे ऐतिहासिक फैसला बता रही है। वहीं विपक्षी पार्टी इसका विरोध कर रही है और देश के अलग अलग हिस्सों में इसका विरोध किया जा रहा है। इसी बीच इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग की ओर से सुप्रीम कोर्ट में सीएए कानून के खिलाफ याचिका दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि नागरिकता कानून के तहत कुछ धर्मों के लोगों…
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indlivebulletin · 21 hours
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राहुल गांधी की नागरिकता विवाद पर एक्शन! हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से मांगा जवाब
नई दिल्ली: कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल की नागरिकता विवाद पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने नागरिकता कानून-1955 के तहत दायर शिकायत पर केंद्र सरकार से कार्रवाई का ब्योरा मांगा है. गांधी हैं मामले की अगली सुनवाई 30 सितंबर को होगी. यह आदेश न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने कर्नाटक भाजपा कार्यकर्ता एस के खिलाफ पारित किया। विग्नेश शिशिर की याचिका पर…
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पाकिस्तान, बांग्लादेश से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी धर्म के शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता प्रदान की जाएगी।
Amit Shah: केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री (Amit Shah) आज गुजरात के कर्णावती दौरे पर हैं।  इस दौरान उन्होंने के बताया कि भारत में आए शरणार्थियों को नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के तहत गुजरात के अहमदाबाद शहर में भारत की नागरिकता प्रदान की जाएगी। ये शरणार्थी, जो पड़ोसी देशों से धार्मिक प्रताड़ना के कारण भारत आए हैं और दशकों से अन्याय का सामना कर रहे हैं, अब मोदी सरकार के तहत नागरिकता प्राप्त करेंगे। " यह उल���लेखनीय है कि CAA के तहत नागरिकता प्रदान करने का यह पहला उदाहरण है।
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subkuz00 · 2 months
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Finish Citizenship: फिनिश नागरिकता अधिनियम मे संशोधन को मंजूरी, October से हो जायेगा लागू, सिटीजेन की शर्ते हुई सख्त
फ़िनलैंड की संसद ने वोटिंग के दौरान व्यापक अंतर से नागरिकता अधिनियम में संशोधन को मंजूरी दे दी है।नया फिनिश नागरिगता कानून October महीने से लागु हो जायेगा, नए कानून के तहत फ़िनलैंड की नागरिकता हांसिल करना और मुश्किल हो जाएगी, subkuz.com ने इसकी गहराई से जांच की है। ये हैं इस कानून के कुछ मुख्य अंस।देश में रहना 5 साल से बढाकर 8 साल अनिवार्य किया गया है।1. अक्टूबर के बाद से अब फिनिश नागरिकता के लिए आवेदन करने वाले किसी भी व्यक्ति को फ़िनलैंड में 8 साल रहने की शर्तों को पूरा करना होगा,  मौजूदा कानून में ये अवधि पांच साल की थी जिसे 3 साल और बढ़ाया गया है। अब किसी भी व्यक्ति को जो फ़िनलैंड की नागरिकता लेने के इच्छुक हैं उन्हें फ़िनलैंड में 8 साल रहना होगा उसके बाद ही वो नागरिकता के लिए अप्लाई कर सकेंगे।  
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dainiksamachar · 6 months
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भारत में CAA लागू होते ही पाक से सब कुछ छोड़ भाग रहे हिंदू, सामने आया सबूत, जिन्‍ना का देश होगा खाली?
इस्लामाबाद: भारत में नागरिकता संसोधन अधिनियम (सीएए) लागू होने से पाकिस्तान यूं ही नहीं तिलमिलाया हुआ था। सीएए लागू होने के बाद से पाकिस्तान में बड़ी संख्या में सताए गए हिंदू अब पलायन का मन बना रहे हैं। ऐसा होगा तो पहले ही अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के लिए बदनाम जिन्ना का देश हिंदुओं से पूरी तरह खाली हो जाएगा। पाकिस्तान से ऐसी रिपोर्ट आ रही हैं कि वहां पर हिंदू समुदाय के लोग अपना सब कुछ छोड़कर भारत के लिए रवाना हो रहे हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि जल्द ही पाकिस्तान से हिंदुओं का पूरी तरह से पलायन हो जाएगा।पाकिस्तान से पलायन कर भाग रहे हिंदूपाकिस्तान से हिंदुओं के पलायन का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें एक परिवार अपना सामान समेटकर जाते हुए दिखाया गया है। इस वीडियो में एक शख्स की आवाज ये कहते सुनी जा सकती है कि हम अपनी जन्मभूमि छोड़कर हमेशा-हमेशा के लिए इंडिया रवाना हो रहे हैं। हिंदू परिवार के पलायन का ये कथित वीडियो खुद को पाकिस्तानी पत्रकार बताने वाले दिलीप कुमार खत्री ने अपने एक्स हैंडल से अपलोड किया है। वीडियो के साथ कैप्शन में सूत्रों के हवाले से लिखा गया है कि जल्द ही पाकिस्तान से हिंदुओं का पलायन हो जाएगा। पोस्ट में लिखा गया कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की आबादी 22 प्रतिशत से घटकर 5 प्रतिशत के करीब रह गई है, क्योंकि कट्टरपंथियों के उत्पीड़न के चलते हिंदू पाकिस्तान से भाग रहे हैं। भारत में सीएए के आने को हिंदू अपने लिए बड़ी सुरक्षा के तौर पर देख रहे हैं। उनका (हिंदुओं का) जाना पाकिस्तान के भविष्य के लिए गहरी चिंता जाहिर करता है। भारत सरकार ने लागू किया है सीएएभारत सरकार बीती 11 मार्च में नागरिकता संसोधन अधिनियम को लागू कर दिया था। सीएए के नियम के अुसार, भारत सरकार 31 दिसम्बर, 2014 से पहले भारत आए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के प्रताड़ित इन गैर-मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता देगी। इन गैर-मुस्लिमों में हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई शामिल हैं। पाकिस्तान ने इसे भारत में मुसलमानों के साथ भेदभाव करने वाला कानून बताया था। हालांकि, भारत ने ऐसी किसी आशंका को खारिज कर दिया था। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सीएए लागू करने को जायज ठहराया था। उन्होंने कहा था कि आजादी के बाद कांग्रेस और हमारे संविधान निर्माताओं का वादा था कि बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में धार्मिक आधार पर सताए गए लोगों को भारत आने पर नागरिकता प्रदान की जाएगी, लेकिन वोट बैंक की राजनीति के कारण ये नहीं हो पाया था। http://dlvr.it/T4xTf6
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rightnewshindi · 6 months
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CAA मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को दी बड़ी राहत, फिलहाल नहीं लगाई रोक; जानें पूरा मामला
CAA मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को दी बड़ी राहत, फिलहाल नहीं लगाई रोक; जानें पूरा मामला
Supreme Court On CAA: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को बड़ी राहत दी है। अदालत ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के पालन पर फिलहाल रोक लगाने से इनकार कर दिया है। सीधे शब्दों में समझा जाए तो फिलहाल CAA पर रोक नहीं लगाई जाएगी। अदालत ने उन याचिकाओं पर सुनवाई की, जिसमें केंद्र को नागरिकता संशोधन नियम, 2024 के कार्यान्वयन पर रोक लगाने का निर्देश देने की मांग की गई है। केंद्र को जारी किया नोटिस सुप्रीम…
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pocketnews18 · 6 months
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असदुद्दीन ओवैसी नागरिकता कानून पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 11 मार्च को नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के कार्यान्वयन के लिए नियमों को अधिसूचित किया। नई दिल्ली:ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के कार्यान्वयन पर रोक लगाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।अपनी याचिका में, ओवैसी ने केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की कि वह…
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prarabdh-news · 7 months
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imranjalna · 7 months
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देश में लागू हुआ CAA, आसान भाषा में समझें क्या-क्या बदलेगा?CAA implemented in the country, understand in simple language what all will change?
मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) का नोटिफिकेशन जारी कर दिया है. इसी के साथ देश में अब CAA लागू हो गया है. साल 2020 में देशभर में CAA के खिलाफ प्रदर्शन हुए थे. इन प्रदर्शनों में कई ऐसे लोग भी थे जिन्हें कानून की कम या गलत जानकारी थी. इसलिए आइए समझते हैं कि CAA लागू होने से क्या बदलेगा. आगामी लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) का नोटिफिकेशन जारी कर दिया है.…
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ravikumar · 7 months
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देश में आज से लागू हुआ CAA, मोदी सरकार ने जारी किया नोटिफिकेशन
देश में आज से लागू हुआ CAA, मोदी सरकार ने जारी किया नोटिफिकेशन आगामी लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले मोदी सरकार ने देश में आरक्षण संशोधन कानून (सीएए) का नोटिफिकेशन जारी किया है। बता दें, संसद से CAA (नागरिकता संशोधन कानून) पारित हुए करीब 5 साल हो गए हैं। लेकिन अब केंद्र सरकार ने देश में CAA लागू करने के लिए बड़ा फैसला और कदम उठाया है. अब देश में CAA यानी नागरिकता संशोधन कानून आज से ही…
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hinduactivists · 7 months
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भारत सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लागू किया। तीन पड़ोसी देशों से भारत आने वाले गैर मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता मिलेगी।
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@hinduactivists_
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airnews-arngbad · 8 months
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Regional Marathi Text Bulletin, Chhatrapati Sambhajinagar
Date: 11 February 2024
Time: 7.10 AM to 7.20 AM
Language Marathi
आकाशवाणी छत्रपती संभाजीनगर
प्रादेशिक बातम्या
दिनांक: ११ फेब्रुवारी २०२४ सकाळी ७.१० मि.
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संसदेचं कामकाज अनिश्चित काळासाठी तहकूब;सामुहिक शक्ती आणि सामुहिक संकल्पातून भावी पिढीसाठी कार्य करत राहण्याचा मानस पंतप्रधानांकडून व्यक्त 
लोकसभा निवडणुकीपूर्वी देशात नागरिकत्व सुधारणा कायदा लागू होणार-केंद्रीय गृहमंत्र्यांचं सूतोवाच
मराठा आरक्षण आंदोलनकर्ते मनोज जरांगे पाटील यांचं तिसऱ्या टप्प्यातलं आमरण उपोषण सुरू
समृद्धी महामार्गावर काल सलग दुसऱ्या दिवशी अपघात होऊन तिघांचा मृत्यू
      आणि 
१९ वर्षांखालील एकदिवसीय क्रिकेट विश्वचषक स्पर्धेत आज भारत आणि ऑस्ट्रेलियात अंतिम सामना
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संसदेच्या दोन्ही सदनांचं कामकाज काल अनिश्चित काळासाठी तहकूब झालं. याबरोबरच सतराव्या लोकसभेचा कार्यकाळही काल पूर्ण झाला. यानिमित्तानं काल पंतप्रधान नरेंद्र मोदी यांनी सदनाला संबोधित केलं. सामुहिक शक्ती आणि सामुहिक संकल्पातून भावी पिढीसाठी साठी कार्य करत राहण्याचा मानस त्यांनी व्यक्त केला. ते म्हणाले..
लोकतंत्र और भारत की यात्रा अनंत है। दुनिया जिस प्रकार से भारत की महात्म्य को स्वीकार कर रही है, भारत के सामर्थ्य को स्वीकार करने लगी है, और उसको, इस यात्रा को हमें और सख्ती के साथ आगे बढाना है। चुनाव बहोत दूर नही है। यह लोकतंत्र का सहज, आवश्यक पहलू है। और मुझे विश्वास है, की हमारे चुनाव ही देश की शान बढाने वाली है। लोकतंत्र की हमारी जो परंपरा है, पुरे विश्व को अचंबित करनेवाल अवश्य रहेंगे।
दरम्यान, १७ व्या लोकसभेत आतापर्यंतचं सर्वाधिक ९७ टक्के कामकाज झाल्याचं, अध्यक्ष ओम बिर्ला यांनी सांगितलं. सतराव्या लोकसभेच्या कार्यकाळात घेतलेल्या अनेक निर्णयांचा अध्यक्ष बिर्ला यांनी आढावा घेतला. सतराव्या लोकसभेचं कामकाज अनिश्चित काळासाठी तहकूब झाल्याची घोषणा लोकसभाध्यक्ष ओम बिर्ला यांनी यावेळी केली. 
राज्यसभेचं कामकाजही काल अनिश्चितकाळासाठी तहकूब झालं. सभापती जगदीप धनखड यांनी राज्यसभेच्या अधिवेशन काळातल्या कामकाजाचा आढावा घेतला. त्यापूर्वी राज्यसभेत अर्थव्यवस्थेवरच्या श्वेतपत्रिकेवर चर्चा पूर्ण झाली.
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उपराष्ट्रपती जगदीप धनखड आज गोंदिया इथं एक दिवसीय दौऱ्यावर येत आहेत. गोंदिया शासकीय वैद्यकीय महाविद्यालय आणि रुग्णालयाची पायाभरणी, तसंच गोंदिया शिक्षण संस्थेचे संस्थापक मनोहरभाई पटेल यांच्या ११८ व्या जयंतीनिमित्त आयोजित कार्यक्रमाला ते उपस्थित राहणार आहेत.
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आगामी लोकसभा निवडणुकांपूर्वी CAA अर्थात नागरिकत्व सुधारणा कायदा लागू होईल, अशी घोषणा केंद्रीय गृहमंत्री अमित शहा यांनी आज केली. नवी दिल्लीत एका खासगी वृत्त वाहिनीच्या कार्यक्रमात ते बोलत होते. संसदेनं डिसेंबर २०१९ मध्ये या कायद्याला मंजुरी दिली आहे. हा कायदा नागरिकत्व देणारा असून नागरिकत्व काढून घेणारा नाही, त्यामुळे याबाबत अपप्रचाराला बळी पडू नये, असं आवाहन त्यांनी केलं...
“सीएए किसी की भी नागरिकता लेने का कानून नहीं है, छीनने का कानून नहीं है। इस देश की माइनॉरिटी को और विशेषकर मुस्लिम भाइयों को भड़काया जा रहा है। देश में किसी की भी नागरिकता सीए छिन ही नहीं सकता क्योंकि कानून में प्रोविझन ही नहीं है। सीए जो सर्नार्थी आये है पाकिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक प्रताड़ना के कारण। उनको नागरिकता देने का कानून है।“
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ईपीएफओ अर्थात कर्मचारी भविष्य निर्वाह निधी संघटनेनं भविष्य निर्वाह निधीसाठी सव्वा ८ टक्के व्याजदर निश्चित केला आहे, केंद्रीय श्रम आणि रोजगार मंत्री भूपेंद्र यादव यांनी ही माहिती दिली. गेल्या आर्थिक वर्षात पी एफ वर ८ पूर्णांक १५ शतांश टक्के दरानं व्याज मिळत होतं.
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राज्यातल्या गुन्हेगारी घटनांची राज्यपालांनी गंभीर दखल घेत, राज्यात राष्ट्रपती राजवट लावण्याची शिफारस केंद्र सरकारला करावी, अशी मागणी काँग्रेस पक्षाने केली आहे. प्रदेश काँग्रेस कमिटीचे अध्यक्ष नाना पटोले यांच्या नेतृत्वाखालील शिष्टमंडळाने काल मुंबईत राज्यपाल रमेश बैस यांची भेट घेऊन, त्यांना याबाबतचं निवेदन दिलं, माजी मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण, जितेंद्र आव्हाड, यांच्यासह अनेक मान्यवर यावेळी उपस्थित होते.
दरम्यान, माजी मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे यांनीही राज्य सरकार बरखास्त करत राष्ट्रपती राजवट लागू करावी आणि ताबडतोब विधानसभा निवडणूक घ्यावी, अशी मागणी केली आहे. ते काल मुंबईत पत्रकारांशी बोलत होते. शिवसेना आमदार अपात्रता प्रकरणी सर्वोच्च न्यायालयानं लवकरात लवकर निकाल द्यावा, असं आवाहनही त्यांनी केलं.
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अंमली पदार्थ नियंत्रण विभागाचे माजी विभागीय संचालक समीर वानखेडे यांच्या विरुद्ध सक्तवसूली संचालनालय- ईडीने मनी लॉन्ड्रीग - काळा पैसा वैध करण्यासंदर्भात गुन्हा दाखल केला आहे. लवकरच त्यांना समन्स जारी होण्याची शक्यताही ईडीच्या अधिकाऱ्यांनी व्यक्त केली आहे. कॉर्डिलिया क्रूझ प्रकरणात वानखेडे यांच्याविरुद्ध हा गुन्हा दाखल करण्यात आला आहे.
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केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालयाने नाशिक इथं संस्कृत विद्यापीठ सुरू करण्याचा निर्णय घेतला आहे. नाशिकचे खासदार हेमंत गोडसे यांनी काल नाशिक इथं ही माहिती दिली. यासाठी केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालयाने जिल्हा प्रशासनासोबत पत्रव्यवहार करून, जागेची मागणी केली आहे. भूखंड उपलब्ध झाल्यावर इतर पायाभूत सुविधांसाठी केंद्र शासनाकडून पहिल्या टप्प्यात तीनशे कोटी रुपयांची गुंतवणूक केली जाणार असल्याचं गोडसे यांनी सांगितलं.
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मराठा आरक्षण आंदोलनकर्ते मनोज जरांगे पाटील यांनी जालना जिल्ह्यातल्या आंतरवाली सराटी इथं कालपासून तिसऱ्या टप्प्यातल्या आमरण उपोषण सुरू केलं. सरकारनं मराठा आरक्षणासाठी काढलेल्या अध्यादेशाची प्रत्यक्ष अंमलबजावणी आणि कायद्यात रुपांतर करायला हवं. मात्र, याबाबतची कोणतीही प्रक्रिया सरकारने अद्याप सुरू केलेली नाही, असं जरांगे यांनी म्हटलं आहे. सरकारने दोन दिवसात अधिवेशन बोलावून अध्यादेशात उल्लेख केल्याप्रमाणे सगेसोयऱ्यांबाबतचा कायदा संमत करावा, कुणबी नोंदी सापडलेल्या सर्वांसह त्यांच्या नातेवाईकांनाही शपथ पत्राच्या आधारे प्रमाणपत्र द्यावं, अशी मागणी जरांगे यांनी केली. सरकारच्या शिष्टमंडळासोबत चर्चा करण्यासाठी आमची दारं कायम खुली असल्याचं, जरांगे यांनी स्पष्ट केलं.
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मुंबई नागपूर समृध्दी महामार्गावर काल रात्री एक कार अज्ञात वाहनावर धडकून झालेल्या अपघातात तीन जण जागीच ठार झाले. छत्रपती संभाजीनगर जिल्ह्यात अब्दिमंडीनजिक हा अपघात झाला. छत्रपती संभाजीनगरचे रहिवासी असलेले हे प्रवासी नाशिक इथं जात असतांना, त्यांची चारचाकी एका वाहनाच्या मागच्या बाजुला धडकून हा अपघात झाल्याचं, याबाबतच्या वृत्तात म्हटलं आहे.
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दक्षिण आफ्रिकेत सुरु असलेल्या १९ वर्षांखालील एकदिवसीय क्रिकेट विश्वचषक स्पर्धेचा अंतिम सामना आज  भारत आणि ऑस्ट्रेलिया यांच्यात होणार आहे. भारतीय प्रमाणवेळेनुसार आज दुपारी दीड वाजता हा सामना सुरु होईल. भारताने दक्षिण आफ्रिेकेला तर ऑस्ट्रेलियाने पाकिस्तानला हरवून अंतिम फेरी गाठली आहे. भारताने यापूर्वी पाच वेळा हा चषक जिंकला आहे.
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नांदेड इथं विकसित भारत संकल्प यात्रेच्या दुसऱ्या टप्प्याला नागरिकांचा चांगला प्रतिसाद मिळत आहे. काल शहरातील अशोकनगर भागात नागरिकांना विविध शासकीय योजनांची माहिती देण्यात आली. तसंच नागरिकांची आरोग्य तपासणी करत आयुष्यमान भारत कार्ड काढून देण्यात आलं. दरम्यान, मेरी कहानी मेरी जुबानी अंतर्गत विविध योजनांचे लाभ मिळालेल्या लाभार्थांनी आपले अनुभव या शब्दांत कथन केले.
बाईट - आरती गोवंडे आणि दिलीप हिवरे, जि.नांदेड
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परभणी जिल्ह्यात मोदी आवास घरकुल योजनेने उल्लेखनीय कामगिरी केली असून, जिल्ह्यात एकूण १३ हजार चारशे ६३ एवढ्या घरकुलांना मंजुरी देण्यात आली आहे. जिल्ह्याला दिलेल्या उद्दीष्टापैकी ९९ पूर्णाक ०१ टक्के उद्दीष्ट पूर्ण केलं आहे. दरम्यान, शासनाच्या नवीन निर्णयानुसार विमुक्त जाती आणि भटक्या जमाती प्रवर्गातील लाभार्थ्यांना घरकुल योजनेचा लाभ देण्यात येणार असल्याची माहिती, जिल्हा परिषदेच्या जिल्हा ग्रामीण विकास यंत्रणेच्या प्रकल्प संचालक रश्मी खांडेकर यांनी दिली आहे.
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लातूर इथं आयोजित तीन दिवसीय जिल्हा कृषी महोत्सवाचा काल समारोप झाला. शेतीतल्या नव्या तंत्रज्ञाना विषयी परिसंवाद, चर्चासत्रं आणि प्रगतशील शेतकऱ्यांचे अनुभव कथन यामधून शेतकऱ्यांना मार्गदर्शन करण्यात आले.
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छत्रपती संभाजीनगर इथं काल जागर स्पर्धा महोत्सवाअंतर्गत नाट्यछटा स्पर्धांची शालेय गटातील विद्यार्थींची निवड चाचणी घेण्यात आली. विद्यार्थ्यांनी एकपात्री प्रयोग, स्वगत, नाट्य प्रवेश सादर केले. सान्वी देशपांडे, उम्मे रोमान शेख, रोहित जगताप, मिष्टी रगडे यांचा परीक्षकांकडून गौरव करण्यात आला.
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लातूर इथं अखिल भारतीय नाट्य संमेलनाच्या वतीनं १०० वं नाट्य संमेलन आणि राज्य शासनाच्या महासंस्कृती महोत्सवाचं येत्या १२ ते १५ फेब्रुवारी दरम्यान आयोजन करण्यात आलं आहे.
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lawspark · 1 year
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भारतीय संविधान के 25 भाग
परिचय 
मूल रूप से, भारतीय संविधान में 395 अनुच्छेद, 22 भाग और 8 अनुसूचियां (शेड्यूल) थीं। बाद में 3 भागों को एक संशोधन के माध्यम से जोडा गया था जो की, 9A नगर पालिकाओं, 9B सहकारी समितियों और 14A न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) थे, जिससे इन सब को मिलाकर कुछ 25 भाग हो गए थे। वर्तमान में, भारतीय संविधान 448 अनुच्छेदों, 25 भागों और 12 अनुसूचियों से बना है। अनुसूचियों में अतिरिक्त विवरण होते हैं जो किसी विशेष अनुच्छेद या भाग में अनुपस्थित होते हैं। यह याद रखना चाहिए कि जब भी भारतीय संविधान में कोई नया अनुच्छेद या कोई भाग पेश किया जाता है, तो उसे अंग्रेज़ी के वर्णों (अल्फाबेट्स) के अनुसार किया जाता है (उदाहरण के लिए अनुच्छेद 21 A) ताकि संविधान की व्यवस्था प्रभावित न हो। वर्तमान लेख में भारतीय संविधान के 25 भागों का विस्तृत विश्लेषण प्रदान किया गया है। 
भारतीय संविधान के 25 भाग
भाग I: संघ (यूनियन) और उसका राज्यक्षेत्र (टेरिटरी) (अनुच्छेद 1 से 4)
संविधान भारत को राज्यों के संघ के रूप में संदर्भित करता है, जिसका अर्थ है कि इसकी एकता अटूट है। भारतीय संघ का कोई भी अंग अलग नहीं हो सकता। देश कई भागों में विभाजित है जिन्हें राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों (यूनियन टेरिटरी) के रूप में जाना जाता है और संविधान न केवल केंद्र सरकार की संरचना बल्कि राज्य सरकार की संरचना को भी निर्धारित करता है। भारत, सरकार की संसदीय प्रणाली (पार्लियामेंट्री सिस्टम) द्वारा शासित एक संप्रभु (सोवेरेन), धर्मनिरपेक्ष (सेक्युलर), लोकतांत्रिक गणराज्य है। राष्ट्रपति संघ के संवैधानिक कार्यकारी (एग्जीक्यूटिव) नेता हैं। राज्यपाल (गवर्नर), राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में, राज्यों में कार्यकारी शाखा के प्रभारी होते है। राज्य सरकारें काफी हद तक संघीय सरकार के समान हैं। 2021 तक देश को 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों (यू.टी.) में बांटा गया है। राष्ट्रपति केंद्र शासित प्रदेशों की देखरेख के लिए एक प्रशासक की नियुक्ति करते है। प्रत्येक भारतीय राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की अपनी जनसांख्यिकी (डेमोग्राफिक्स), इतिहास, संस्कृति, पोशाक, त्योहार, भाषा आदि होते हैं। भारतीय संविधान के भाग I में निम्नलिखित अनुच्छेद हैं:  - अनुच्छेद 1: संघ का नाम और राज्यक्षेत्र। - अनुच्छेद 2:नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना। - अनुच्छेद 3: नए राज्यों का गठन और मौजूदा राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन। - अनुच्छेद 4: अनुच्छेद 2 और 3 के तहत पहली और चौथी अनुसूचियों में संशोधन और प��रक (सप्लीमेंटल), आकस्मिक (इंसीडेंटल) और परिणामी मामलों के लिए बनाए गए कानून��� 
भाग II: नागरिकता (अनुच्छेद 5 से 11)
भारतीय संविधान के भाग II के तहत नागरिकता अनुच्छेद 5 से 11 तक शामिल किया गया है। अनुच्छेद 5 से 8 में वर्णन किया गया है कि संविधान के प्रारंभ के समय भारतीय नागरिकता के लिए कौन पात्र था, जबकि अनुच्छेद 9 से 11 मे वर्णन किया गया है कि नागरिकता कैसे प्राप्त होती है और कैसे वापस ले ली जाती है।
भारत में अधिवासित (डोमिसाइल) व्यक्ति 
निवास का विचार पूरे विश्व में एक जैसा नहीं है, जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा सत्य बनाम तेजा सिंह (1975) मे उल्लेख किया गया है। हालांकि, अधिवास स्थापित करने के लिए दो बातें सिद्ध होनी चाहिए: - एक विशिष्ट प्रकार का निवास, - एक निश्चित प्रकार का इरादा। फैक्टम और एनिमस दोनों शामिल होने चाहिए। एक लंबा प्रवास निश्चित रूप से एक अधिवास स्थापित नहीं करता है, जबकि एक छोटा प्रवास आवश्यक रूप से इसे अस्वीकार नहीं कर सकता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 5 में कहा गया है कि संविधान को अपनाने के समय, कोई भी व्यक्ति  यदि भारतीय क्षेत्र में निवास कर रहा था और निम्नलिखित तीन मानदंडों में से एक को पूरा करता है, तो वह भारत का नागरिक होगा: - जिनका जन्म भारत के राज्यक्षेत्र में हुआ था, या - जिनके माता-पिता भारत के राज्यक्षेत्र में पैदा हुए थे, या - जो संविधान को अपनाने से ठीक पहले कम से कम पांच साल के लिए भारत के क्षेत्र में सामान्य रूप से निवासी रहे थे। सर्वोच्च न्यायालय ने डी.पी. जोशी बनाम मध्य भारत राज्य (1955) के मामले में घोषित किया था कि नागरिकता और अधिवास दो अलग-अलग धारणाएं हैं। नागरिकता किसी व्यक्ति की राजनीतिक स्थिति को संदर्भित करती है, जबकि अधिवास उनके नागरिक अधिकारों को संदर्भित करता है। भारतीय संविधान एकल नागरिकता यानी भारतीय नागरिकता की स्थापना करता है। एक राज्य के पास नागरिकता नहीं हो सकती है, हालांकि उसके पास एक अधिवास हो सकता है।
पाकिस्तान से भारत और भारत से पाकिस्तान प्रव्रजन (माइग्रेट) करने वाले व्यक्ति 
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 6 और 7 कुछ ऐसे व्यक्तियों की नागरिकता के अधिकारों से संबंधित हैं, जो पाकिस्तान से भारत आए हैं और कुछ प्रवासियों की नागरिकता के अधिकार जिन्होंने भारत से पाकिस्तान में प्रव्रजन किया है।  सर्वोच्च न्यायालय ने शन्नो देवी बनाम मंगल सेन (1961) में निष्कर्ष निकाला था कि अनुच्छेद 6 और 7 में “प्रव्रजन” वाक्यांश का अर्थ स्थायी (परमानेंट) रूप से रहने के उद्देश्य से एक राष्ट्र की यात्रा करना है। हालांकि, कुलथिल मम्मू बनाम केरल राज्य (1996) के मामले में, इस दृष्टिकोण को खारिज कर दिया गया था। इस मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने बहुमत से फैसला सुनाया कि अनुच्छेद 6 या 7 में प्रव्रजन शब्द का इस्तेमाल एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के व्यापक अर्थ में किया जाता है, चाहे वह स्थायी या अस्थायी (टेंपररिली) रूप से हो, लेकिन यह कदम स्वैच्छिक होना चाहिए और किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए नहीं होना चाहिए या थोड़े समय के लिए या सीमित समय के लिए नहीं होना चाहिए।
विदेशों में रहने वाले भारतीय मूल के व्यक्ति  
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 8 में प्रावधान है कि विदेशों में रहने वाले नागरिकों (जिनके माता-पिता या दादा-दादी में से कोई भी भारत सरकार अधिनियम, 1935 में परिभाषित भारत में पैदा हुए थे) को भारतीय नागरिकता प्रदान की जाती है जैसे कि वे भारत के राजनयिक (डिप्लोमेटिक) या कौंसलीय (कांस्यूलर) प्रतिनिधियों द्वारा उस देश में पंजीकृत (रजिस्टर्ड) किए गए हों जहां वह रह रहें हैं। 
नागरिकता अधिनियम के तहत नागरिकता का अधिग्रहण (एक्विजिशन) और समाप्ति
नागरिकता नागरिकता अधिनियम से निकटता से जुड़ी हुई है, जिसे भारतीय संविधान के उपरोक्त अनुच्छेदो के अलावा, 1955 में भारतीय संसद द्वारा अनुमोदित (अप्रूव) किया गया था। 1955 का नागरिकता अधिनियम, संविधान की स्थापना के बाद भारत की नागरिकता को नियंत्रित करता है। यह कानून का एक हिस्सा है जो भारतीय नागरिकता के अधिग्रहण और समाप्ति को भी नियंत्रित करता है। इस मामले से संबंधित कानून नागरिकता अधिनियम 1955 है जिसे नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 1986, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 1992, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2003, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2005, और नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के द्वारा संशोधित किया गया है। भारत के राष्ट्रपति को भारत का प्रथम नागरिक कहा जाता है।
भाग III: मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 12 से 35)
भारतीय संविधान का भाग III (अनुच्छेद 12 से 35) कई मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है और उनके उल्लंघन की स्थिति में उपाय प्रदान करता है। एक लोकतांत्रिक संविधान में इन अधिकारों को शामिल करने के पीछे प्राथमिक तर्क यह है कि व्यक्तियों को कभी-कभी दूसरों द्वारा सामूहिक कार्रवाई के खिलाफ सुरक्षा की आवश्यकता होती है जो उनकी स्थिति और मांगों को पूरी तरह से नहीं समझ सकते हैं। भारतीय संविधान के तहत मौलिक अधिकार काफी हद तक यू.एस. के बिल ऑफ राइट्स के प्रावधानों से प्रभावित हुए हैं। अनुच्छेद 14 से 35 में गारंटीकृत मौलिक अधिकारों को छह समूहों में वर्गीकृत किया गया है, अर्थात्, - समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से18)। - स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19से 22)। - शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23–24)। - धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25से 28)। - सांस्कृतिक और शैक्षिक संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29–30)। - संवैधानिक उपचार का अधिकार (अनुच्छेद 32से 35)। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 12 ‘राज्य’ की परिभाषा प्रदान करता है जिसमें संसद और राज्य की विधानसभाएं, भारत सरकार और राज्य सरकारें, और भारत के क्षेत्र के भीतर या भारत सरकार के नियंत्रण में सभी स्थानीय और अन्य प्राधिकरण (अथॉरिटीज) शामिल हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 13 ऐसे कानूनों को प्रदान करता है जो मौलिक अधिकारों के साथ असंगत या अपमानजनक हैं, जिससे न्यायिक समीक्षा (ज्यूडिशियल रिव्यू) के सिद्धांत को स्पष्ट रूप से शामिल किया गया है। अनुच्छेद 13 (1) और (2) मौजूदा और भविष्य के कानूनों को इस हद तक अप्रवर्तनीय (इनएंफोर्सेबल) बनाते हैं क्योंकि वे भारतीय संविधान के भाग III द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकारों के साथ विवादित होते हैं। जबकि खंड (क्लॉज) (1) पूर्व-संवैधानिक कानूनों से संबंधित है, खंड (2) संवैधानिक के बाद के कानूनों को शामिल करता है। 
समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18)
समानता के अधिकार को अनुच्छेद 14 से 18 में संबोधित किया गया है। अनुच्छेद 14 सामान्य रूप से कानून के तहत समानता के अधिकार और समान संरक्षण (प्रोटेक्शन) को संबोधित करता है, लेकिन अनुच्छेद 15 , 16 , 17 और 18 विशिष्ट क्षेत्रों में समानता की गारंटी देते हैं। जैसा कि संविधान की उद्देशिका (प्रीएंबल) में कल्पना की गई है की समानता का अधिकार भारत जैसे लोकतांत्रिक, सामाजिक (सोशलिस्ट) और धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र राष्ट्र के लिए सबसे महत्वपूर्ण अधिकार है। समाज के अलग-अलग सदस्यों को इस बुनियादी गारंटी को प्रदान किए बिना, लोकतंत्र ठीक से काम करने में विफल हो जाएगा।  अनुच्छेद 14 भारती�� संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत व्यक्तियों को समानता के अधिकार की गारंटी दी गई है। यह अनुच्छेद भारत के क्षेत्र में सभी व्यक्तियों को अधिकार प्रदान करता है। अनुच्छेद 19 के तहत अनुच्छेद का लाभ नागरिकों तक सीमित नहीं है। ‘व्यक्ति’ शब्द में न केवल प्राकृतिक व्यक्ति बल्कि कानूनी या न्यायिक व्यक्ति भी शामिल हैं। नतीजतन, अनुच्छेद 14 सभी फर्मों, पंजीकृत संगठनों, वैधानिक निगमों (स्टेट्यूटरी कॉर्पोरेशन) और अन्य कानूनी संस्थाओं को समानता के अधिकार की गारंटी देता है। अनुच्छेद 15 से 18 भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15 धर्म, नस्ल (रेस), जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव के निषेध (प्रोहिबीशन) से संबंधित है। अनुच्छेद 15 के तहत किसी अधिनियम की वैधता मौलिक अधिकारों पर संचालन (ऑपरेशन) और प्रभाव के तरीके से निर्धारित होती है, न कि अधिनियम के उद्देश्य या लक्ष्य से। अधिनियम गैरकानूनी है यदि इसके संचालन का प्रभाव नागरिकों के खिलाफ अनुच्छेद में निर्दिष्ट किसी भी आधार पर भेदभाव करना है।  अनुच्छेद 16 राज्य प्रायोजित (स्टेट स्पॉन्सर्ड) रोजगार में अवसर की समानता की गारंटी देता है। यह अधिकार केवल भारत के नागरिकों को प्रदान किया जाता है। कार्यस्थल में सभी के साथ समान व्यवहार करना भी असंभव है। समान लोगों के लिए समान व्यवहार करना ही समानता की एकमात्र परिभाषा है। अनुच्छेद 16 कर्मचारियों के उचित वर्गीकरण (क्लासिफिकेशन) और इस तरह के वर्गीकरण के आधार पर असमान व्यवहार को नहीं रोकता है। इससे पहले कि कोई कार्रवाई अनुच्छेद 16 का उल्लंघन करने के लिए निर्धारित हो, एक समान स्थिति में एक सरकारी अधिकारी और दूसरे के बीच भेदभाव का स्पष्ट प्रदर्शन होना चाहिए, वास्तव में कानून में द्वेष या तथ्य में द्वेष की धारणा या प्रदर्शन को छोड़कर जिसे समझदारी से समझाया नहीं जा सकता है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 1976 के क्षेत्रीय प्रबंधक बनाम पवन कुमार के मामले में भी यही राय दी थी।  अनुच्छेद 17 हमारे देश की अस्पृश्यता (अनटचैबिलिटी) की विशिष्ट समस्या से संबंधित है। इस अनुच्छेद के दो भाग हैं। पहले भाग में यह घोषणा की गई है कि ‘अस्पृश्यता’ अवैध है और इसे हर रूप में निषेध किया जाता है। अनुच्छेद 17 ‘अस्पृश्यता’ प्रथा के आधार पर किसी भी अधिकार या अक्षमता की कानूनी मान्यता से इनकार करता है। दूसरा भाग, जिसमें एक सकारात्मक तत्व है, यह निर्धारित करता है कि जो कोई भी ‘अस्पृश्यता’ के परिणामस्वरूप किसी भी प्रकार की निर्योग्यता (डिसेबिलिटी) को लागू करता है, उसे दंडित किया जाएगा और सजा कानून द्वारा तय की जाएगी।  भारतीय संविधान के अनुच्छेद 18(1) के तहत सभी उपाधियों (टाइटल्स) को समाप्त कर दिया गया है। यह सरकार के लिए किसी को भी, चाहे वह नागरिक हो या न भी हो, उसे कोई भी उपाधि देना गैर कानूनी बनाता है। यह प्रतिबंध सैन्य या शैक्षणिक भेदों पर लागू नहीं होता है। परिणामस्वरूप, कोई विश्वविद्यालय किसी योग्य व्यक्ति को उपाधि या सम्मान प्रदान कर सकता है। खंड (2) किसी भारतीय नागरिक के लिए किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार करना अवैध बनाता है। खंड (3) किसी ऐसे व्यक्ति, जो भारत के नागरिक नहीं है, लेकिन सरकार में लाभ या विश्वास का पद रखते है, पर राष्ट्रपति की अनुमति के बिना किसी विदेशी राज्य से उपाधि लेने से प्रतिबंध लगाता है। खंड (4) में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति, नागरिक या जो नागरिक नहीं है, जो लाभ या विश्वास पद धारण करता है, वह राष्ट्रपति की सहमति के बिना किसी भी विदेशी राज्य से या उसके अधीन किसी भी प्रकार की कोई भी भेंट, उपलब्धि या पद नहीं ले सकता है। खंड (3) और (4) को यह गारंटी देने के लिए डाला गया था कि एक व्यक्ति जो नागरिक नहीं हैं, वह राज्य के प्रति वफादार रहता है और उन पर रखे गए विश्वास का उल्लंघन नहीं करता है। सर्वोच्च न्यायालय ने बालाजी राघवन बनाम यूओआई (1995) के मामले में नागरिक पद की वैधता की पुष्टि की थी लेकिन लेकिन उन्हें देने में विवेक का प्रयोग नहीं करने के लिए सरकार को फटकार लगाई थी। यह निर्णय लिया गया था कि राष्ट्रीय पुरस्कारों को उपाधियों के रूप में उपयोग करने का इरादा नहीं होना चाहिए और ऐसा करने वाले व्यक्तियों को अपने खिताब को खो देना चाहिए।
स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22)
अनुच्छेद 19 का खंड 1 कुछ मूल्यवान स्वतंत्रताओं की गारंटी देता है जो एक व्यक्ति की गरिमा (डिग्निटी) और एक लोकतांत्रिक समाज के कामकाज के लिए आवश्यक हैं। इन अधिकारों का प्रयोग उसी अनुच्छेद के खंड (2) से (6) तक सीमित है। केवल नागरिक ही हैं जो अनुच्छेद 19(1) के तहत अधिकारों का दावा कर सकते हैं। अनुच्छेद 19 कुछ ऐसी स्वतंत्रताओं की गारंटी देता है जो पूर्ण नहीं हैं, जैसा कि अमेरिकी संविधान के मामले में है। मौलिक स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने की राज्य की क्षमता को ‘पुलिस प्राधिकरण’ की धारणा से नहीं छोड़ा गया है, और डिजाइन पर ‘उचित प्रक्रिया (ड्यू प्रोसेस)’ के अस्पष्ट शब्द के उपयोग से बचा गया है। अधिकार यहां दिए गए हैं: - वाक् और अभिव्यक्ति (स्पीच एंड एक्सप्रेशन) की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19(1)(a)) - शांतिपूर्ण और बिना हथियारों के इकट्ठा होने का अधिकार (अनुच्छेद 19(1)(b))। - संगम (एसोसिएशन) या संघ या सहकारी समितियां बनाने का अधिकार (अनुच्छेद 19(1)(c))। - भारत के पूरे क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से घूमने का अधिकार (अनुच्छेद 19(1)(d))। - भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भी भाग में निवास करने और बस जाने का अधिकार (अनुच्छेद 19(1)(e))। - किसी भी पेशे का अभ्यास करने या किसी व्यवसाय, व्यापार या कारोबार को करने का अधिकार (अनुच्छेद 19(1)(g))। अनुच्छेद 20 एक आरोपी व्यक्ति, चाहे वह नागरिक हो या नागरिक नहीं हो, को तीन अलग-अलग अधिकारों की गारंटी देता है,  जो की तीन खंडों में है। खंड (1) कार्योत्तर विधि (एक्सपोस्ट फैक्टो लॉ) के खिलाफ अधिकारों की रक्षा करता है, खंड (2) किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक बार से अधिक बार दोषी ठहराने (डबल जियोपर्डी) से रोकता है, और क्लॉज (3) किसी अपराध के लिए आरोपी को स्वयं अपने विरुद्ध साक्षी होने पर प्रतिबंध लगाता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी दी गई है। यह भारत के नागरिकों के साथ साथ उन लोगो के लिए भी उपलब्ध है जो नागरिक नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने फ्रांसिस कोराली बनाम केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली (1981) के मामले में घोषित किया था कि अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार को पशु अस्तित्व तक सीमित नहीं किया जा सकता है। यह सिर्फ भौतिक (फिजिकल) अस्तित्व की तुलना में बहुत अधिक है। खड़क सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1963) के मामले में, यह निर्धारित किया गया था कि अनुच्छेद 21 में “व्यक्तिगत स्वतंत्रता” वाक्यांश उन सभी अधिकारों को संदर्भित करता है जो किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बनाते हैं, न कि वह जो केवल अनुच्छेद 19(1) में सूचीबद्ध किया गए हैं।  अनुच्छेद 22 गिरफ्तारी और निरोध (डिटेंशन) के खिलाफ़ अधिकार से संबंधित है। यह सुरक्षा सभी नागरिकों और गैर-नागरिकों के लिए समान रूप से उपलब्ध है, हालांकि, किसी अन्य देश से तत्समय शत्रु और निवारक निरोध (प्रीवेंटिव डिटेंशन) में रहने वालों को खंड (1) और (2) द्वारा संरक्षित नहीं किया जाएगा। अनुच्छेद 22 के प्रावधानों को दो समूहों में विभाजित किया जा सकता है। खंड 1 से 3 सामान्य गिरफ्तारी से संबंधित है, जबकि खंड 4 से 7 केवल निवारक निरोध से संबंधित है।
शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 और 24)
अनुच्छेद 23 और 24 शोषण से मुक्त होने का अधिकार प्रदान करते हैं। सामंतवादी सामाजिक ढांचे (फ्यूडलिस्टिक सोशियल फ्रेमवर्क) ने समाज को दो भागों में विभाजित किया है, एक विशेषाधिकार (प्रिविलेज) प्राप्त और धनी के लिए, और दूसरा उत्पीड़ित श्रमिक वर्ग के लिए जिनके पास बहुत कम या कोई संपत्ति नहीं है। पहले वाले वर्ग के द्वारा, बाद वाले वर्ग के शोषण के इस अनुपात से देखा जाए तो, पहले वाले वर्ग ने दुसरे वर्ग के साथ ऐसा व्यवहार किया है जैसे की वे जानवर हो या बिक्री योग्य वस्तुएं हों। अनुच्छेद 23, मानव का दुर्व्यापार (ह्यूमन ट्रैफिकिंग), बेगार (बेग्गरी) और इसी तरह के अन्य प्रकार के जबरन श्रम को प्रतिबंधित करता है। जबकि, अनुच्छेद 24, 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खानों (माइंस), कारखानों या अन्य खतरनाक कामों में रोजगार पर रोक लगाता है। 
धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28)
भारतीय संविधान में एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की भी कल्पना की गई है। एस.आर. बोम्मई बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1994) के मामले में धर्मनिरपेक्षता को भारतीय संविधान की एक मूलभूत विशेषता माना गया था। नतीजतन, अनुच्छेद 25 से 28 सभी लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करते हैं, चाहे वे अल्पसंख्यक (माइनॉरिटी) या बहुसंख्यक  समूह के सदस्य हों अनुच्छेद 25 धार्मिक गतिविधियों (परंपराओं) के साथ-साथ धार्मिक विश्वासों (सिद्धांतों) से संबंधित है। इसके अलावा, ये अधिकार नागरिकों और गैर-नागरिकों सहित सभी लोगों पर लागू होते हैं। हालांकि, ये अधिकार सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता (मॉरेलिटी), स्वास्थ्य और अन्य मौलिक अधिकारों के अधीन हैं।  व्यक्तिगत अधिकार अनुच्छेद 25 द्वारा संरक्षित हैं, जबकि धार्मिक समूह या विभाजन (डिवीजन) अनुच्छेद 26 के तहत संरक्षित हैं। दूसरे शब्दों में, अनुच्छेद 26 सभी लोगों के लिए धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करता है। अनुच्छेद 27 के अनुसार किसी विशिष्ट धर्म या किसी समूह के प्रचार (प्रमोशन) या संरक्षण के लिए किसी को भी कर (टैक्स) देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा। दूसरे शब्दों में, सरकार को किसी एक धर्म को बढ़ावा देने या बनाए रखने के लिए करों के माध्यम से अर्जित सार्वजनिक धन का उपयोग नहीं करना चाहिए। अनुच्छेद 28 में कहा गया है कि पूरी तरह से सार्वजनिक धन से समर्थित किसी भी शैक्षणिक संस्थान में कोई भी धार्मिक शिक्षण नहीं दिया जाना चाहिए। यह नियम, हालांकि, राज्य द्वारा नियंत्रित किसी भी शैक्षणिक संस्थान पर लागू नहीं होगा, लेकिन किसी भी विन्यास (एंडोमेंट) या न्यास  (ट्रस्ट) के तहत गठित किया गया है, जिसमें एक विद्यालय को धार्मिक शिक्षण प्रदान करने की आवश्यकता होती है।
सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार (अनुच्छेद 29-30)
अनुच्छेद 29 और 30 अल्पसंख्यकों को उनकी अपनी भाषा, लिपि (स्क्रिप्ट) और संस्कृति को संरक्षित करने की अनुमति देकर उनकी रक्षा करने के लिए हैं, जबकि शैक्षणिक संस्थानों में पूरी तरह से धर्म, मूलवंश (एथिनिसिटी), जाति, भाषा या इन कारकों के किसी भी संयोजन के आधार पर भेदभाव को रोकते हैं। उपरोक्त अनुच्छेदों के विभिन्न प्रावधानों को नीचे सूचीबद्ध किया गया है: - भाषा, लिपि या संस्कृति के संरक्षण का अल्पसंख्यकों का अधिकार (अनुच्छेद 29(1))। - अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शिक्षण संस्थान स्थापित करने और संचालित करने का अधिकार। (अनुच्छेद 30(1))। - अल्पसंख्यक संस्थानों की संपत्ति के अधिग्रहण (एक्विजिशन) के मामले में मुआवजे का अधिकार। (अनुच्छेद 30(1A))। - शिक्षण संस्थानों को सहायता प्रदान करने के मामलों में भेदभाव के खिलाफ अधिकार। (अनुच्छेद 30(2))। - शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश के मामलों में भेदभाव के खिलाफ नागरिकों का अधिकार। (अनुच्छेद 29(2))।
संवैधानिक उपचार का अधिकार (अनुच्छेद 32 से 35)
एक अधिकार जिसके साथ कोई उपचार नहीं है, वह केवल एक औपचारिकता (फॉर्मेलिटी) ही है। यह वह उपाय है जो अधिकार को जीवन देता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 में संवैधानिक उपचार का अधिकार शामिल है, जिसे मसौदा समिति (ड्राफ्टिंग कमिटी) के अध्यक्ष डॉ बी.आर. अंबेडकर द्वारा ‘संविधान की आत्मा’ कहा जाता है।  अनुच्छेद 33 संसद को किस विस्तार तक उस कानून को बनाने की अनुमति देता है, जिसके लिए सशस्त्र बलों (आर्म्ड फोर्सेज) और कुछ अन्य बलों के सदस्यों के लिए ऐसे अधिकारों के लागू होने में, उनके मूल अधिकारों को कम या परिवर्तित किया जा सकता है। संविधान का अनुच्छेद 34 संसद को किसी भी ऐसे व्यक्ति के लिए, जो संघ या किसी राज्य में सेवारत है साथ-साथ किसी भी अन्य व्यक्ति के लिए भी जो किसी भी क्षेत्र जहां सेना विधि प्रभावी थी, में व्यवस्था के रखरखाव या बहाली के संबंध में कोई भी कार्य करने के लिए क्षतिपूर्ति (कंपेंसेट) करने के लिए अधिकृत करता है। अनुच्छेद 35 संसद को अनुच्छेद 16 (3), 32 (3), Read the full article
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roh230 · 1 year
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dainiksamachar · 1 year
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यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध नहीं, लेकिन BJP का तरीका गलत... UCC पर बसपा सुप्रीमो मायावती का बयान
अभय सिंह, लखनऊ: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) यानी समान नागरिकता संहिता कानून को लेकर दिए गए बयान के बाद से इस मुद्दे को लेकर सियासी जंग छिड़ गई है। इसको लेकर विपक्षी दलों के साथ साथ मुस्लिम धर्म गुरुओं और संगठनों ने बीजेपी सरकार के खिलाफ ��ोर्चा खोल रखा है। अब इस मामले पर बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री () ने यूसीसी का विरोध ना करके एक तरह से अपना समर्थन दे दिया है। मायावती ने को लेकर कहा कि हमारी पार्टी बसपा यूसीसी लागू करने के खिलाफ नहीं है, लेकिन जिस तरह से बीजेपी सरकार देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की कोशिश कर रही है, हम उसका समर्थन नहीं करते हैं। यूसीसी को लेकर मायावती ने कहा कि यूसीसी लागू होने से देश मजबूत होगा और भारतीय एकजुट होंगे। इससे लोगों में भाईचारे की भावना भी विकसित होगी। यूसीसी को जबरदस्ती लागू करना ठीक नहीं है। इस मुद्दे का राजनीतिकरण करने से देश में भेदभाव पैदा होगा। मायावती का कहना है कि भारत देश में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी व बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं। जिनके अपने अपने रहन-सहन, तौर तरीके और रस्म रिवाज़े है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इसके साथ ही मायावती का कहना है कि अगर सभी धर्मों के मानने वाले लोगों पर हर मामले में एक समान कानून लागू होता है तो उससे देश कमजोर नहीं, बल्कि मजबूत ही होगा। जिसे ध्यान में रखते हुए भारतीय संविधान की धारा 44 में समान सिविल संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड यूसीसी को बनाने पर वर्णित है। बसपा सुप्रीमो ने कहा कि उसका जिक्र किया गया है। मायावती ने कहा कि यूसीसी को जबरन थोपने का प्रावधान बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर के संविधान में निहित नहीं है। इसके लिए जागरूकता या आम सहमति को श्रेष्ठ माना गया है। उन्होंने कहा कि इस पर अमल ना करके इसकी आड़ में संकीर्ण स्वार्थ की राजनीति करना देश हित में सही नहीं है, जो इस समय की जा रही है। मायावती ने कहा कि इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए बीजेपी को देश मे यूसीसी लागू करने के लिए कोई कदम उठाना चाहिए था। http://dlvr.it/SrYCJX
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rightnewshindi · 6 months
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नागरिकता संशोधन कानून पर अमेरिकी सांसद ने उठाएं सवाल, कहा, रमजान में लागू कर दिया कानून
नागरिकता संशोधन कानून पर अमेरिकी सांसद ने उठाएं सवाल, कहा, रमजान में लागू कर दिया कानून
United States News: अमेरिका की ओर से पिछले दिनों भारत में नागरिकता संशोधन कानून लागू किए जाने पर सवाल उठाए गए थे। इसे लेकर भारत ने सख्त आपत्ति जताई और अमेरिका को आईना दिखाते हुए कहा था कि हमें उन लोगों के लेक्चर की जरूरत नहीं है, जिन्हें विभाजन के इतिहास की जानकारी नहीं है। इसके बाद भी अमेरिका में इस पर सवाल उठ रहे हैं। अब अमेरिका के एक सांसद बेन कार्डिन ने इस पर सवाल उठा दिया है, जो भारत के लिए…
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