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#समुद्र मंथन
prinsliworld · 2 years
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Samudra Manthan : समुद्र मंथन और उसके 14 रत्न... विष से अमृत तक की यात्रा
Samudra Manthan : समुद्र मंथन और उसके 14 रत्न… विष से अमृत तक की यात्रा
Samudra Manthan ke 14 Ratnas List जब कोई भी व्यक्ति किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए कोई भी कार्य शुरू करता है, तब शुरुआत में कई प्रकार की समस्याएँ आती हैं. अगर व्यक्ति इन परेशानियों से ही घबराकर अपना रास्ता या कार्य छोड़ देता है, तो वह आगे नहीं बढ़ सकता. लेकिन जब व्यक्ति के आत्मविश्वास और दृढ़ता के सामने समस्याएँ अपने घुटने तक देती हैं और परिस्थितियां कुछ अच्छी होने लगती हैं, तब कई तरह के मोह, लालच,…
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sk123sposts · 10 months
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sapan-ray · 10 months
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ganeshpawar · 10 months
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rajindersposts · 10 months
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sakshiiiisingh · 2 years
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#समुन्द्र मनथन के दौरान कौन से 14 रत्न प्राप्त हुए ?#Samundramanthan#shivji#laxmiji#maani#vish#क्या आपको पता है पौराणिक काल में समुन्द्र मनथन के दौरान कौन से 14 रत्न प्राप्त हुए ?#। समुद्र मंथन में सबसे पहले हलाहल विष निकला#इसे भगवान शिव ने ग्रहण किया था।#२ दूसरा रत्न कामधेनु गाये थी। इस रत्न को ऋषि ने अपने पास रखा#३ तीसरा रत्न उच्चैश्रवा घोड़ा रत्न था#इस रत्न को राजा बलि ने अपने पास रखा था।#४ चौथा रत्न ऐरावत हाथी था जिसे भगवान इंद्र ने अपने पास रखा#५ पांचवा रत्न कौस्तुभ मणि जिसे भगवान विष्णु ने हृदय पर धारण किया#६ छठा रत्न कल्पवृक्ष इस रत्न को देवताओं ने स्वर्ग में लगाया था#७ सातवा अप्सरा रंभा निकली था। यह रत्न देवता के पास रहा था#८ आठवा देवी लक्ष्मी थी। इस रत्न को देवता#ऋषि और दानव सभी अपने पास रखना चाहते थे। किंतु लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु के पास रहना स्वीकार कि#९ नौवा वारुणी देवी निकली वारुणी का अर्थ मदिरा होता है। इसको दानवों ने ग्रहण किया था।#१० दसवा रत्न चंद्रमा था। इसे भगवान शंकर ने मस्तक पर धारण किया था।#११ ग्यारवे पर निकले पारिजात वृक्ष इसे सभी देवताओं ने ग्रहण किया#क्योंकि इसे स्पर्श करते ही थकान दूर हो जाती था।#१२ बरवे में शंख निकला भगवान विष्णु ने इसे अपने पास रखा।#१३ अंत में 13वें रत्न के रूप में भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए। उनके हाथ में 14वें रत्न के रूप में अमृत#The channel on a Bhakti karma of spirituality and Peace. Dedicate yourself to spread god love.#Quest - Bhakti हिंदी being the motivational top Bhakti Music Channel. Quest - Bhakti हिंदी is dedicated to bring an experience of Divine s#Ishta Devata-Bhakti#Guru-Bhakti#all gods#satsang and many more
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scribblesbyavi · 1 year
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समुद्र मंथन का था समय जो आ पड़ा
द्वंद दोनों लोक में विशामृत पे था चिड़ा
अमृत से भी मैं बाँट के
प्याला विष का तूने खुद पिया
नमो नमो जी शंकरा भोलेनाथ शंकरा
हे त्रिलोकनाथ शम्भू हे शिवाय शंकरा
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poeticalyx · 6 months
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Samudra-manthan ke hodh me,
Nikla wo ban ke amrit,
Danav aur devta,
Sab use paane ke liye the prerit,
Use sabhi ne lagaya shish,
Aur mai ban kar nikli jehrila vish,
Koi naa karna chaha vish ko grahan,
Par nilkanth ne kiya sahan,
Mujhe sabne usse thukraya,
Aur me chal padi uski bankar nila saya.
समुद्र-मंथन के होड़ में,
निकला वह बन के अमृत,
दानव और देवता,
सब उसे पाने के लिए थे प्रेरित।
उसे सबने लगाया शीर्ष,
और मैं बन कर निकली जहरीला विष।
कोई ना करना चाहा विष को ग्रहण,
पर नीलकंठ ने किया सहन।
मुझे सबने उससे ठुकराया,
और मैं चल पड़ी उसकी बांकर नीला साया।
Midst the tug war of sea churning,
He arised being the holy fluid of immortality,
Evil and God,
Everyone-
To have him played the game witty,
Each of them bowed to him due respect,
As slowly I, from sea, rised being the toxin of suspect,
To drink the toxin-
Each took steps back of month,
But delicately and droughtly drank by Nilkanth,
They kept me apart from him-my holy fluid,
Now I lovingly labrynth into him as his blue shadow of void.
—poetiCalyx
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rohidasdeore · 10 months
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सत_भक्ति_सन्देश
समुद्र मंथन में निकले पांचवे वेद को काल ने क्यों नष्ट कर दिया ❓
👉👉देखिए आज हमारे चैनल पर शाम 7:30 बजे।
MondayMotivation
Kabir_is_complete_God
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kaminimohan · 1 year
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Free tree speak काव्यस्यात्मा 1401.
साकार भी निराकार भी 
देवों के देव आदिदेव महादेव 
-© कामिनी मोहन पाण्डेय 
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शिव कल्याणकारी, आनंददायक, त्रिपुरारी, सभी के हृदय में वास करने वाले सत्य स्वरूप, सनातन  साकार और निराकार है। एक कथा के अनुसार देवता और दानव द्वारा समुद्र मंथन के समय निकले हलाहल को जब शिव ने सृष्टि को बचाने के लिए ग्रहण किया तो हलचल सी मच गई। अपने कंठ में विष को धारण करने के कारण ही वह नीलकंठ कहलाए। विष के प्रभाव से उनके देह में अतिरिक्त ताप उत्पन्न हुआ। 
उच्च ताप के प्रभाव को कम करने के लिए इंद्रदेव ने लगातार जोरदार वर्षा की। यह वर्षा ऋतु सावन महीने में उसी नियत समय से आज भी होती है। आज भी परम पावन महादेव शिव के हलाहल विष के ताप को कम करने की धारणा को महसूस करते हुए भक्त सावन के पवित्र माह में शिव को शीतलता प्रदान करने के लिए उनके निराकार स्वरूप को जल अर्पित कर शीतलता प्रदान कर पुण्य के भागी बनते हैं। सावन महीने का महत्व इसीलिए अत्यधिक बढ़ जाता है। बांस के बने शिव की उपस्थिति को धारण किए कांवड़ की परंपरा में एक में घट में ब्रह्म-जल दूसरे में विष्णु-जल लेकर भक्त जब आगे बढ़ते हैं, तो त्रिदेव का सुखद संयोग सबके समक्ष उपस्थित हो जाता है। 
हलाहल विष के प्रभाव को कम करने के लिए ही शीतल चंद्रमा को उन्होंने अपने मस्तक पर धारण किया है। हमें यह समझना होगा कि शिव हमारे शरीरों की तरह शरीर धारण करने वाले हैं भी और नहीं भी। वे सभी जीवों के देह में सूक्ष्म रुप से, आत्म स्वरूप में वास करते हैं। वे ही पूरी सृष्टि का प्रतिनिधित्व करते हैं। सब जगह सब तत्व उनमें ही समाहित दिखाई देते हैं। इसीलिए शिव देवों के देव महादेव हैं। 
जीवन यात्रा सत्य स्वरूप तक पहुँचने की यात्रा है। जो हमें प्रेम, अनुशासन, सृष्टि को चलायमान रखने के लिए लोभ, मोह, क्रोध को छोड़कर वैराग्य धारण करते हुए ईश्वरी शक्ति से जुड़ने की प्रेरणा देता है। यह आत्मविश्वास को उत्पन्न करने में करोड़ों लोगों की मदद करने वाला है। कांवड़ यात्रा आत्मा से परमात्मा के योग करने की यात्रा है। यह यात्रा तभी पूर्ण होती है, जब हम शिव तत्व को अपने भीतर महसूस करते हुए उसकी प्रतिध्वनि को शिव के साथ ही ताल से ताल मिला कर महसूस करते हैं। 
कांवड़ यात्री शिवालयों में जाकर जलाभिषेक करते हैं। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने वाले व्यक्ति को मोक्ष की परम आनंद की प्राप्ति होती है। जीवन के कष्ट दूर होते हैं।मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। घर में धन धान्य की कभी कोई कमी नहीं रहती है। 
महर्षि व्यास ने शिव को सबसे महान कहाँ है। उन्हें देवों के देव महादेव कहाँ है। क्योंकि जब कोई निस्वार्थ भाव से महादेव को याद करता है तो देवों के देव महादेव बिना देर किए वरदान देने को तत्पर हो जाते हैं। वे भक्ति से प्रसन्न होते हैं, कौन देवता है, कौन है असुर, वे भेदभाव नहीं करते हैं। सरलता और भोला भालापन उनका स्वरूप है, जो भी भोले भक्त हैं, वह भोले को ख़ूब भाते हैं। शिव, महादेव ही परमपिता परमात्मा कहलाते हैं।
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parasparivaarorg · 10 days
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पारस: हिंदू धर्म में शंख का क्यों है इतना महत्व ?
पारस: हिंदू धर्म में शंख का महत्व
पारस परिवार के संस्थापक, आदरणीय “महंत श्री पारस भाई जी” एक सच्चे मार्गदर्शक, एक महान ज्योतिषी, एक आध्यात्मिक लीडर, एक असाधारण प्रेरक वक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो देश और समाज के कल्याण के लिए खुद को समर्पित करते हैं। उनका एक ही लक्ष्य है लोगों के सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करना। लोगों को अँधेरे से निकालकर उनके जीवन में रोशनी फैलाना।
“पारस परिवार” हर किसी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रतिबद्ध है। पारस परिवार से जो भी जुड़ जाता है वो इस परिवार का एक अहम हिस्सा बन जाता है और यह संगठन और भी मजबूत बन जाता है। जिस तरह एक परिवार में एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखा जाता है। ठीक उसी तरह पारस परिवार भी एक परिवार की तरह एक दूसरे का सम्मान करता है और जरूरतमंद लोगों के जीवन में बदलाव लाने के साथ यह परिवार एकजुट की भावना रखता है ।
‘महंत श्री पारस भाई जी’ एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे, जहाँ जाति-धर्म के नाम पर झगड़े न हों और जहाँ आपस में लोग मिलजुलकर रहें। साथ ही लोगों में द्वेष न रहे और प्रेम की भावना का विकास हो। पारस परिवार निस्वार्थ रूप से जन कल्याण की विचारधारा से प्रभावित है।
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इसी विचारधारा को लेकर वह भक्तों के आंतरिक और बाहरी विकास के लिए कई आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित करते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र (Spiritual Sector) की बात करें तो महंत श्री पारस भाई जी “दुख निवारण महाचण्डी पाठ”, “प्रार्थना सभा” और “पवित्र जल वितरण” जैसे दिव्य कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
जिससे वे भक्तों के दुखों का निवारण, उनकी आंतरिक शांति और उनकी सुख-समृद्धि के लिए समर्पित हैं। इसी तरह सामाजिक क्षेत्र की बात करें तो पारस परिवार सामाजिक जागरूकता और समाज कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने के लिए लंगर, धर्मरथ और गौ सेवा जैसे महान कार्यों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा हरियाणा और मध्य प्रदेश में “डेरा नसीब दा” जैसे महान कार्य का निर्माण भी है, जहाँ जाकर सोया हुआ नसीब भी जाग जाता है।
महंत श्री पारस भाई जी शंख के महत्व के बारे में बताते हैं कि जिस घर में शंख होता है, वहां हमेशा देवी लक्ष्मी का वास होता है। शंख की पवित्रता और शुद्धता को आप इस बात से भी समझ सकते हैं कि इसे सभी देवताओं ने स्वयं अपने हाथों में धारण किया है।
सनातन धर्म या हिंदू धर्म में शंख का विशेष महत्व है। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि हिंदू धर्म में शंख को अत्यंत पवित्र और पूजनीय माना गया है। क्योंकि सनातन परंपरा में जब भी कोई शुभ कार्य, पूजा पाठ, हवन आदि होता है तो शंख अवश्य बजाया जाता है। चलिये आज इस आर्टिकल में हम आपको शंख के महत्व और इसके लाभ के बारे में बताते हैं।
भगवान विष्णु को शंख अत्यंत प्रिय है
मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन से निकले 14 कीमती रत्नों से शंख की उत्पत्ति हुई थी। शंख समुद्र मंथन में से निकले 14 रत्नों में से एक है। भगवान विष्णु को शंख अत्यंत प्रिय है इसलिए भगवान श्री नारायण की पूजा में शंखनाद जरूर होता है। उत्तर पूर्व दिशा में शंख रखने से घर में खुशहाली आती है। भगवान विष्णु हमेशा अपने दाहिने हाथ में शंख पकड़े हुए दिखाई देते हैं। शंख हिंदू धर्म और धार्मिक परंपरा का एक अभिन्न अंग है। जब शंख बजाया जाता है तो ऐसा कहा जाता है कि इससे वातावरण की सारी नकारात्मकता दूर होती है और शंख की ध्वनि से वातावरण बुरे प्रभावों से मुक्त हो जाता है।
शंख सुख-समृद्धि और शुभता का कारक
पूजा पाठ या किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत में शंख का उपयोग किया जाता है। शंख की ध्वनि जीवन में आशा का संचार करके बाधाओं को दूर करती है। पूजा करते समय शंख में रखा जल छिड़क कर स्थान की शुद्धि की जाती है। सनातन धर्म में किसी भी पूजा-पाठ के पहले और आखिरी में शंखनाद जरूर किया जाता है। पूजा-पाठ के साथ हर मांगलिक कार्यों के दौरान भी शंख बजाया जाता है। शंख को सुख-समृद्धि और शुभता का कारक माना गया है। शंख बजाए बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।
शंख के लाभ
शंख बजाने से हमारी सेहत भी अच्छी बनी रहती है।
हमारे फेफड़े मजबूत होते हैं और सांस लेने की समस्या दूर होती है।
नकारात्मक शक्तियों का नाश ��ोता है।
घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और वातावरण शुद्ध होता है।
वास्तु शास्त्र में शंख का विशेष महत्व है।
शंख को घर में रखने से यश, उन्नति, कीर्ति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
इससे आरोग्य वृद्धि, पुत्र प्राप्ति, पितृ दोष शांति, विवाह आदि की रुकावट भी दूर होती है।
शंखनाद से अद्भुत शौर्य और शक्ति का अनुभव होता है इसलिए योद्धाओं द्रारा इसका प्रयोग किया जाता था।
शंख वादन से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
महत्व
पूजा-पाठ में शंख का विशेष महत्व माना जाता है। शंख का प्रयोग वास्तु दोषों को दूर करने के लिए भी किया जाता है। इसके साथ ही शंख बजाने का संबंध स्वास्थ्य से भी है। शंख की पूजा के बारे में महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि तीर्थों में जाकर दर्शन करने से जो शुभ फल प्राप्त होता है, वह शंख को घर में रखने और दर्शन करने मात्र से ही पूरा हो जाता है। धार्मिक कार्यों में शंख बजाना बहुत ही अच्छा माना जाता है।
माना जाता है कि देवताओं को शंख की आवाज बहुत पसंद होती है इसलिए शंख की आवाज से प्रसन्न होकर भगवान भक्तों की हर इच्छा को पूरी करते हैं। वास्तु के अनुसार शंख बजाने से आसपास की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। यही कारण है कि हिंदू धर्म में पूजा में न केवल शंख का इस्तेमाल किया जाता है, बल्कि शंख की भी पूजा की जाती है।
महंत पारस भाई जी ने बताया कि अथर्ववेद में शंख को पापों का नाश करने वाला, लंबी आयु का दाता और शत्रुओं पर विजय दिलाने वाला बताया गया है।
महंत श्री पारस भाई जी बताते हैं कि शंख से घर में पॉजिटिव वाइब्स आती है। शंख से निकलने वाली ध्वनि से बीमारियों के कीटाणु खत्म होते हैं, जिससे आप स्वस्थ रहते हैं।
ध्वनि का प्रतीक माना जाता है शंख
शंख नाद ध्वनि का प्रतीक माना जाता है। शंख की ध्वनि आत्म नाद यानि आत्मा की आवाज की शिक्षा देती है। अध्यात्म में शंख ध्वनि, ओम ध्वनि के समान ही मानी गई है। शंख एकता, व्यवस्था और अधिकार का प्रतिनिधित्व करता है। शंख बजाने से घर की सभी बुराईयां नष्ट होती हैं और घर का वातावरण अच्छा रहता है। शंख जीव को आत्मा से जुड़ने का ज्ञान देता है।
पूजा में क्यों जरूरी माना जाता है शंख?
पूजा घर में दक्षिणावर्ती शंख रखना और बजाना अत्यंत शुभ माना जाता है। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि प्राचीन काल से ही हमारे ऋषि-मुनि, पूजा या यज्ञ में शंख का इस्तेमाल करते आ रहे हैं। शंख बजाने के बाद ही कोई भी पूजा सफल मानी जाती है। शंख बजाने से ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है।
सुबह-शाम शंख बजाने से आपका परिवार बुरी नजर से बचा रहता है। शंख से निकलने वाली ध्वनि सभी समस्याओं और दोषों को दूर करती है। ऐसा माना जाता है कि जिस घर में शंख होता है, वहां पर माता लक्ष्मी की कृपा बरसती है।
शंख का पूजन कैसे करें
घर में नया शंख लाने के बाद उसे सबसे पहले किसी साफ बर्तन में रखकर अच्छी तरह से जल से साफ कर लें। इसके बाद शंख का गाय के कच्चे दूध और गंगाजल से अभिषेक करें। अब शंख को पोंछकर चंदन, पुष्प, धूप और दीप से पूजन करें। इसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का स्मरण करें और हाथ जोड़कर निवेदन करें कि वो हमारे घर में आयें और इस शंख में आकर वास करें।
महान ज्योतिष महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि हर दिन इसी तरह शंख की सच्चे भाव से पूजा करने के बाद ही इसे बजायें। क्योंकि ऐसा करने पर आपको अवश्य ही शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
दूर होती हैं कई बीमारियां
कहते हैं रोजाना शंख बजाने से हमारी मांसपेशियां मजबूत होती हैं। जिस कारण पेट, छाती और गर्दन से जुड़ी बीमारियां दूर होती हैं। साथ ही शंखनाद से श्वास लेने की क्षमता में वृद्धि होती है। शंख बजाने से सांस की समस्याएं भी खत्म होती हैं। सांस की प्रक्रिया सही तरीके से चलती है और फेफड़े स्वस्थ रहते हैं। इसके अलावा इससे थायराइड या बोलने संबंधित बीमारियों में राहत मिलती है।
जब हम शंख बजाते हैं तो तब हमारी मांसपेशियों में खिंचाव आता है जिसकी वजह से झुर्रियों की समस्या भी दूर होती है। शंख में कैल्शियम होता है। यदि आपको त्वचा से संबंधित कोई रोग है तो रात को शंख में पानी भरकर रख दें और फिर सुबह उस पानी से त्वचा पर मालिश करें। ऐसा करने पर त्वचा से संबंधित रोग दूर हो जाते हैं। शंख बजाने से हृदय रोग भी दूर होते हैं।
शंख बजाने से तनाव तो दूर होता ही है, साथ ही मन शांत रहता है। माना जाता है कि यदि आप प्रतिदिन शंख बजाते हैं तो दिल का दौरा पड़ने की संभावना काफी कम हो जाती है।
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hindunidhi · 1 month
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जानिए ऋषि अगस्त्य के बारे में 25 खास बातें? अगस्त्य संहिता PDF Book
ऋषि अगस्त्य, हिंदू धर्म के एक महान ऋषि और मुनि थे। वे सप्तऋषियों में से एक माने जाते हैं और उन्हें दक्षिण भारत का आध्यात्मिक गुरु भी कहा जाता है। आइए ऋषि अगस्त्य के बारे में कुछ रोचक तथ्यों के बारे में जानते हैं:
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ऋषि अगस्त्य के बारे में 25 रोचक तथ्य
सप्तऋषियों में से एक: ऋषि अगस्त्य सप्तऋषियों में से एक थे, जो हिंदू धर्म में सात महान ऋषियों का समूह है।
दक्षिण भारत के आध्यात्मिक गुरु: उन्हें दक्षिण भारत का आध्यात्मिक गुरु माना जाता है और उनके योगदान को दक्षिण भारत के सांस्कृतिक विकास में महत्वपूर्ण माना जाता है।
भरत ऋषि के पुत्र: ऋषि अगस्त्य, भृगु ऋषि के वंशज थे और भरत ऋषि के पुत्र थे।
लोक कल्याण के लिए समर्पित: वे लोक कल्याण के लिए समर्पित थे और उन्होंने कई ग्रंथों की रचना की, जिनमें आयुर्वेद और ज्योतिष पर महत्वपूर्ण ग्रंथ शामिल हैं।
आयुर्वेद के जनक: ऋषि अगस्त्य को आयुर्वेद के जनक भी माना जाता है। उन्होंने आयुर्वेद के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया और कई औषधियों की खोज की।
ज्योतिष के ज्ञाता: वे ज्योतिष के ज्ञाता थे और उन्होंने ज्योतिष के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
अगस्त्य मुनि का संकल्प: उन्होंने हिमालय से दक्षिण भारत तक जाकर दक्षिण भारत को सभ्य बनाने का संकल्प लिया था।
वैदिक ज्ञान का प्रसार: उन्होंने दक्षिण भारत में वैदिक ज्ञान का प्रसार किया और कई आश्रमों की स्थापना की।
दक्षिण भारत में संस्कृति का विकास: उनके योगदान से दक्षिण भारत में संस्कृति का विकास हुआ और कई कला और साहित्य के केंद्र स्थापित हुए।
अगस्त्य संहिता: उन्होंने अगस्त्य संहिता नामक एक महत्वपूर्ण ग्रंथ की रचना की, जिसमें आयुर्वेद, ज्योतिष और धर्म के विषयों पर विस्तृत जानकारी दी गई है।
अगस्त्य मुनि का तप: उन्होंने कठोर तपस्या की और कई सिद्धियां प्राप्त कीं।
अगस्त्य मुनि के आश्रम: उनके कई आश्रम दक्षिण भारत में स्थित हैं, जहां आज भी लोग उनके दर्शन के लिए जाते हैं।
अगस्त्य मुनि की मूर्तियां: उनके कई मंदिर और मूर्तियां दक्षिण भारत में स्थित हैं।
अगस्त्य मुनि के उपदेश: उनके उपदेश आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं।
अगस्त्य मुनि की कहानियां: उनके बारे में कई रोचक कहानियां प्रचलित हैं।
अगस्त्य मुनि और लवणासुर: लवणासुर नामक राक्षस को मारने का श्रेय भी ऋषि अगस्त्य को दिया जाता है।
अगस्त्य मुनि और इंद्र: इंद्र देवता से विवाद होने पर ऋषि अगस्त्य ने इंद्र को शाप दिया था।
अगस्त्य मुनि और समुद्र मंथन: समुद्र मंथन के समय ऋषि अगस्त्य ने अमृत पान किया था।
अगस्त्य मुनि और पर्वत: ऋषि अगस्त्य ने एक पर्वत को उठाकर दक्षिण भारत ले गए थे।
अगस्त्य मुनि और नदी: ऋषि अगस्त्य ने एक नदी को प्रकट किया था।
अगस्त्य मुनि और वृक्ष: ऋषि अगस्त्य ने एक वृक्ष को लगाया था, जो आज भी मौजूद है।
अगस्त्य मुनि और पशु-पक्षी: ऋषि अगस्त्य को पशु-पक्षियों से भी बहुत लगाव था।
अगस्त्य मुनि और मनुष्य: ऋषि अगस्त्य मनुष्यों के कल्याण के लिए हमेशा तत्पर रहते थे।
अगस्त्य मुनि और देवता: देवता भी ऋषि अगस्त्य का बहुत सम्मान करते थे।
अगस्त्य मुनि की अमरता: ऋषि अगस्त्य को अमर माना जाता है।
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श्रावण मास में शिव जलाभिषेक का कारण
श्रावण मास में शिव जलाभिषेक का कारण
इतिहास महत्व और करने योग्य उपाय
पौराणिक कथाओं और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब समुद्र मंथन से हलाहल धरती पर प्रकट हुआ था और समस्त मानव और अन्य जीव जंतुओं के प्राणों पर संकट घिर आया था तब देवों के देव, महादेव ने सम्पूर्ण सृष्टि को जीवनदान दिया था। उन्होंने हलाहल विष को अपने कंठ में धारण किया था। कहा जाता है की यह घटना सावन के महीने में घटित हुई थी। महादेव के विष पान से उनका शरीर गर्म हो गया था और उन्हें परेशानी हो रही थी। अपने प्रभु को परेशानी में देख समस्त देवताओं ने महादेव पर जल अर्पित किया था और इंद्र देव ने ज़ोरों की वर्षा की थी। तब से यह चलन बन गया और हर वर्ष सावन के महीने में भगवान शिव के शरीर में विष की गर्मी से उत्पन्न हुई ज्वाला को शांत करने के लिए भक्तगण अपने भोलेनाथ पर जलाभिषेक करते हैं।
सावन का पावन महीना अर्थात् शिव की भक्ति व मनचाहा वरदान पाने का सर्वोत्तम समय है। कैलाशपति शिव जी को कंठ में विष होने के कारण शीतलता अत्यन्त प्रिय है, जिससे उन्हें राहत मिलती है। हरियाली और शीतलता होने के कारण भोलेनाथ को सावन का माह अत्यधिक प्रिय है। अब सावन है तो बारिश होना स्वाभाविक है। वर्षा का जल शुद्ध और ताज़ा होता है, इसलिए वर्षा जल से अभिषेक करने का फल भी अधिक है। हम बताने जा रहे हैं दिनों के अनुसार किसका अभिषेक करने से आपकी इच्छा शीघ्र और सरलता से पूरी हो जाएगी।
रविवार- शत्रुओं पर विजय
सूर्य देव को समर्पित रविवार के दिन सूर्योदय के समय पूर्व दिशा की ओर वर्षा जल से अर्घ्य दें और श्रीआदित्यहृदयस्तोत्र का पाठ करें। इस उपाय से आपको आपके शत्रुओं पर विजय प्राप्त होगी और आपके घर में सकारात्मकता का संचार होगा।
सोमवार- हर मनोकामना पूर्ण
चंद्र देव को समर्पित दिन सोमवार को शिवलिंग पर द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति पढ़ते हुए अभिषेक करने से सच्चे मन से की गई हर प्रार्थना भोलेनाथ पूर्ण करते हैं और मन व परिवार में सुख-शांति का संचार होता है।
मंगलवार- रोग व कष्टों का नाश
मंगलवार को शिवलिंग या हनुमान जी पर शुद्ध तन व पवित्र मन से “ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय नम:” बोलते हुए अभिषेक करने से व्यक्ति के समस्त कष्टों का नाश होता है तथा उसके असाध्य रोग भी समाप्त हो जाते हैं।
बुधवार- सद् बुद्धि एवं शादी-विवाह हेतु
बुद्धि में वृद्धि हेतु या शादी-विवाह में आ रही अड़चन को दूर करने के लिए बुधवार को प्रथम पूज्य गणेश जी का “ॐ गं गणपतये नम:” मंत्र केसाथ अभिषेक करने से शीघ्र लाभ मिलता है। परीक्षा की तैयारी करनी हो या विवाह हेतु अच्छे रिश्ते की कामना हो, गणपति की कृपा से सब निर्विघ्न हो जाता है।
गुरुवार- सुख-समृद्धि की प्राप्ति
बृहस्पति देव को समर्पित दिन गुरुवार या एकादशी को वर्षा जल से श्री विष्णु जी का अभिषेक करना चाहिए और श्रीविष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिये। जिससे श्री हरि प्रसन्न होकर व्यक्ति को सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं।
शुक्रवार- धन-धान्य की वर्षा
सावन में शुक्रवार के दिन माता लक्ष्मी का भाव पूर्वक लक्ष्मी मंत्र के साथ अभिषेक करने उनकी कृपा से आपके पास शीघ्र ही धन लक्ष्मी का शुभागमन होता है। अभिषेक करने वाले भक्त के ऊपर माँ लक्ष्मी की कृपा से धन की वर्षा होती है।
शनिवार- वाद-विवाद में सफलता
कर्मफल दाता शनिदेव को समर्पित शनिवार के दिन प्रात: पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाने व महादेव का अभिषेक और शाम को शनिदेव का तेल और वर्षा जल से अभिषेक करने से क़ानूनी मामलों, वाद-विवाद व नौकरी में सफलता मिलती है। रुके हुए काम बनने शुरू हो जाते हैं। पीपल पर जल चढ़ाते समय “ॐ नमो भगवते शनैश्चराय” मंत्र का ग्यारह बार जप करना चाहिए।
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jeevanjali · 3 months
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Rahu Aur Ketu: जानें कैसे बने थे राहु और केतु? समुद्र मंथन से जुड़ी है कथाRahu Aur Ketu: राहु और केतु के बनने की कहानी समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है। ये दोनों ही एक ही शरीर के दो हिस्से हैं। अमृत पीने के कारण ये सदैव के लिए अमर हो गए। तो आइए जानते हैं इस लेख में कि ये दोनों ग्रह कैसे बने।
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hinduactivists · 8 months
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समुद्र मंथन से अमृत निकला था तब देवताओं और राक्षसों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। उस अमृत को भगवान विश्वकर्मा राक्षसों से बचाकर ले जा रहे थे तभी कुछ अमृत की बूदें धरती पर गिरीं थीं। आज उन स्थानों को हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन, त्र्यम्बकं के नाम से प्रसिद्ध है।
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uttamsahusblog · 8 months
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Sadhna TV Satsang 12-02-2024 || Episode: 2856 || Sant Rampal Ji Maharaj ...
समुद्र 🌊मंथन में निकले पांचवे 📚 वेद को काल👺 ने क्यों नष्ट कर दिया?
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