After all, why did Mayawati say that politicization of religion will affect the country and public interest?
Political News UP: If there is any thing that is sold the most in the country today, it is religion.Actually, religion is a personal matter and there is no restriction on which person assimilates any religion in which form and follows that path. But in a country like India, religion remains the most salable thing today. Even if people are not religious by action, they may not have knowledge of religion, they may not even know the definition of religion, but who cares about propagating religion?
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घोड़ी पर बैठकर मार क्यों खाते हो एक बार हाथी पर बैठकर सरकार बना लो मारना तो दूर कोई हाथ भी नहीं लगा पाएगा
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जयंती विशेष: बसपा संस्थापक कांशीराम जिन्होंने उठाई थी दलितों के हक में आवाज, ठुकरा दिया था राष्ट्रपति पद
चैतन्य भारत न्यूज
पिछड़े, दलितों और आदिवासियों को राजनीति में एक बड़ा स्थान दिलाने वाले कांशीराम की आज जयंती है। कांशीराम का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के रूपनगर में एक दलित परिवार में हुआ था। उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़कर दलितों के उत्थान का फैसला किया। कांशीराम ने 9 अक्टूबर, 2006 में दुनिया को अलविदा कहा था। बता दें डॉ. भीमराव आंबेडकर के बाद कांशीराम को ही दलितों के सबसे बड़े नेता माना जाता है।
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कांशीराम बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक हैं। उन्हें 'बहुजन नायक' और 'साहेब' के नाम से भी जाना जाता है। कांशीराम ने भारतीय समाज के दबे-कुचले वर्ग को आगे बढ़ाने के लिए बामसेफ, डीएसफोर, बुद्धिस्ट रिसर्च सेंटर और फिर बसपा की स्थापना की। कांशीराम ने इन सभी वर्गों की आवाज जनता तक पहुंचाने के लिए ऑप्रेस्ड इंडियन, बहुजन नायक, बहुजन टाइम्स जैसे अखबारों और पत्रिकाओं का संपादन और प्रकाशन भी किया था। इस बात के लिए लंबे समय तक कांशीराम की आलोचना भी होती रही और यह कहा जा रहा था कि वे आंबेडकरवाद को नुकसान पहुंचा रहे हैं। हालांकि, कांशीराम अपने समय की समस्याओं को आंबेडकर के विचार और संदेश से जोड़ते हुए नई बुलंदियों तक ले गए।
बता दें कांशीराम राष्ट्रपति तक के पद का ऑफर ठुकरा चुके हैं। यह उस समय की बात है, जब देश में एनडीए की सरकार थी। तब अटल बिहारी वाजपेयी ने कांशीराम से राष्ट्रपति पद संभालने की बात कही थी। लेकिन कांशीराम ने वाजपेयी के इस ऑफर को ठुकरा दिया था। उनकी जीवनी 'कांशीराम : द लीडर ऑफ द दलित्स' में इस बात का जिक्र करते हुए लिखा है कि, उस समय उत्तर प्रदेश में भाजपा और बसपा की मिलीजुली सरकार चल रही थी। अटल बिहारी वाजपेयी राजनीतिक समीकरण को देखते हुए चाहते थे कि कांशीराम राष्ट्रपति का पद संभालें। लेकिन कांशीराम ने इस ऑफर को ठुकराने के पीछे की वजह बताते हुए कहा कि, 'वे राष्ट्रपति नहीं बल्कि प्रधानमंत्री बनना चाहते थे, क्योंकि वह यह बात अच्छे से जानते थे कि प्रधानमंत्री पद की एक अलग गरिमा और ताकत है।' इसलिए उन्होंने देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति को ठुकरा दिया था।
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बसपा का बड़ा निर्णय, अब अकेले लड़ेगी यूपी का विधानसभा चुनाव
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बसपा में बड़ा बदलाव, अब अकेले लड़ेगी यूपी का विधानसभा चुनाव
चैतन्य भारत न्यूज
नई दिल्ली. बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने आगामी उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के मद्देनजर बड़ा फैसला लिया है। शनिवार को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में मायावती की अगुवाई में हुई बैठक में फैसला लिया गया है कि बसपा आगामी विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेगी। यही नहीं बल्कि मायावती ने निर्देश दिया है कि पार्टी को बूथ स्तर पर तैयार किया जाए। बसपा ने इस साल होने वाले बिहार और पश्चिम बंगाल में भी चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
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जानकारी के मुताबिक, पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र के साथ मुनकाद अली, आरएस कुशवाहा, मलूक नागर इस बैठक में शामिल थे।पार्टी के कई विधायक मानते हैं कि अगर संगठन में बदलाव न किया गया और पार्टी के कोर वोटरों का दायरा बढ़ाने के लिए मजबूत रणनीति के तहत काम नहीं किया गया तो 2022 की राह पार्टी के लिए आसान नहीं होगी। गुरुद्वारा रकाबगंज स्थित पार्टी ऑफिस में ये बैठक हुई। बता दें बसपा ने लोकसभा चुनाव में 10 सीटें हासिल की थी।
लगातार हो रहे संगठन में बदलाव
बता दें पिछले कुछ समय से बसपा सुप्रीमो मायावती लगातार संगठन में बड़े बदलाव कर रही हैं। इसमें जाति और समुदायों को ध्यान में रखकर नेताओं का चयन शामिल रहा। इसी क्रम में मायावती ने लोकसभा में कई बार पार्टी के नेतृत्व में परिवर्तन किया। हाल ही में मायावती ने ट्वीट कर कहा कि, 'उत्तरप्रदेश के अध्यक्ष व लोकसभा में पार्टी के नेता के एक ही समुदाय का होने से यह परिवर्तन किया गया है। लोकसभा में बसपा का नेता रितेश पांडे को बनाया गया है, जबकि मुनकाद अली प्रदेश अध्यक्ष बने रहेंगे।'
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दलितों के हक में आवाज उठाने वाले बसपा संस्थापक कांशीराम, जिन्होंने ठुकरा दिया था राष्ट्रपति पद
चैतन्य भारत न्यूज
पिछड़े, दलितों और आदिवासियों को राजनीति में एक बड़ा स्थान दिलाने वाले कांशीराम की बुधवार को 13वीं पुण्यतिथि है। कांशीराम का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के रूपनगर में एक दलित परिवार में हुआ था। उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़कर दलितों के उत्थान का फैसला किया। कांशीराम ने 9 अक्टूबर, 2006 में दुनिया को अलविदा कहा था। बता दें डॉ. भीमराव आंबेडकर के बाद कांशीराम को ही दलितों के सबसे बड़े नेता माना जाता है।
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कांशीराम बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक हैं। उन्हें 'बहुजन नायक' और 'साहेब' के नाम से भी जाना जाता है। कांशीराम ने भारतीय समाज के दबे-कुचले वर्ग को आगे बढ़ाने के लिए बामसेफ, डीएसफोर, बुद्धिस्ट रिसर्च सेंटर और फिर बसपा की स्थापना की। कांशीराम ने इन सभी वर्गों की आवाज जनता तक पहुंचाने के लिए ऑप्रेस्ड इंडियन, बहुजन नायक, बहुजन टाइम्स जैसे अखबारों और पत्रिकाओं का संपादन और प्रकाशन भी किया था। इस बात के लिए लंबे समय तक कांशीराम की आलोचना भी होती रही और यह कहा जा रहा था कि वे आंबेडकरवाद को नुकसान पहुंचा रहे हैं। हालांकि, कांशीराम अपने समय की समस्याओं को आंबेडकर के विचार और संदेश से जोड़ते हुए नई बुलंदियों तक ले गए।
बता दें कांशीराम राष्ट्रपति तक के पद का ऑफर ठुकरा चुके हैं। यह उस समय की बात है, जब देश में एनडीए की सरकार थी। तब अटल बिहारी वाजपेयी ने कांशीराम से राष्ट्रपति पद संभालने की बात कही थी। लेकिन कांशीराम ने वाजपेयी के इस ऑफर को ठुकरा दिया था। उनकी जीवनी 'कांशीराम : द लीडर ऑफ द दलित्स' में इस बात का जिक्र करते हुए लिखा है कि, उस समय उत्तर प्रदेश में भाजपा और बसपा की मिलीजुली सरकार चल रही थी। अटल बिहारी वाजपेयी राजनीतिक समीकरण को देखते हुए चाहते थे कि कांशीराम राष्ट्रपति का पद संभालें। लेकिन कांशीराम ने इस ऑफर को ठुकराने के पीछे की वजह बताते हुए कहा कि, 'वे राष्ट्रपति नहीं बल्कि प्रधानमंत्री बनना चाहते थे, क्योंकि वह यह बात अच्छे से जानते थे कि प्रधानमंत्री पद की एक अलग गरिमा और ताकत है।' इसलिए उन्होंने देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति को ठुकरा दिया था।
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