Tumgik
thethakorji · 2 years
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शास्त्रों के अनुसार पूजा अर्चना में वर्जित कार्य -
(०१) गणेश जी को तुलसी पत्र और मंजरी न चढ़ाएं।
(०२) देवी पर दूर्वा न चढ़ाएं।
(०३) शिवलिंग पर केतकी का फूल न चढ़ाएं।
(०४) विष्णु जी को तिलक में अक्षत न चढ़ाएं।
(०५) दो शंख एक समान पूजा घर में न रखें।
(०६) मंदिर में तीन गणेश की मूर्ति न रखें।
(०७) तुलसी पत्र चबाकर न खाएं।
(०८) द्वार पर जूते चप्पल उल्टे न रखें।
(०९) मन्दिर में दर्शन करके वापस लौटते समय घंटा न बजाएं।
(१०) एक हाथ से आरती नहीं लेनी चाहिए।
(११) ब्राह्मण को बिना आसन बैठाना नहीं चाहिए।
(१२) स्त्री द्वारा दंडवत प्रणाम वर्जित है।
(१३) बिना दक्षिणा ज्योतिषी/पुरोहित से प्रश्न नहीं पूछना चाहिए।
(१४) घर में पूजा करने हेतु अंगूठे से बड़ा शिवलिंग न रखें।
(१५) तुलसी के पेड़ में शिवलिंग किसी भी स्थान पर न रखें।
(१६) गर्भवती महिला को शिवलिंग स्पर्श नहीं करना चाहिए।
(१७) स्त्री द्वारा मंदिर में नारियल फोड़ना वर्जित है।
(१८) रजस्वला स्त्री का मंदिर में प्रवेश वर्जित है।
(१९) परिवार में सूतक हो तो पूजा वर्जित है और प्रतिमा का स्पर्श न करें।
(२०) शिव जी की पूरी परिक्रमा नहीं किया जाता।
(२१) शिव लिंग से बहते जल को लांघना नहीं चाहिए।
(२२) एक हाथ से प्रणाम नहीं करना चाहिए।
(२३) दूसरे के दीपक में अपना दीपक जलाना नहीं चाहिए।
(२४) पंचामृत अथवा चरणामृत लेते समय दायें हाथ के नीचे एक नैपकीन रखें ताकि एक बूंद भी नीचे न गिरे और पंचामृत अथवा चरणामृत पीकर हाथों को शिर या शिखा पर न पोछें बल्कि आंखों पर लगायें, शिखा पर गायत्री का निवास होता है उसे अपवित्र न करें।
(२५) देवताओं को लोहबान की अगरबत्ती का धूप न करें।
(२६) स्त्री द्वारा हनुमानजी एवं शनिदेव की मूर्ति को स्पर्श करना वर्जित है अतः दूर से दर्शन करें।
(२७) कुंवारी कन्याओं से पैर पड़वाना पाप है।
(२८) मंदिर परिसर में स्वच्छता बनाए रखने में सहयोग दें।
(२९) मंदिर में भीड़ होने पर लाइन पर लगे रहने पर भगवन्नामोच्चारण करते रहें एवं अपने क्रम से ही अग्रसर होते रहें।
(३0) शराबी का भैरव के अलावा अन्य मंदिर में प्रवेश वर्जित है।
(३१) मंदिर में प्रवेश के समय पहले दाहिना पैर और निकास के समय बाया पांव रखना चाहिए।
(३२) मन्दिर की घंटी को इतनी जोर से न बजायें कि उससे कर्कश ध्वनि उत्पन्न हो।
(३४) अगर हो सके तो मंदिर जाने के लिए एक जोड़ी वस्त्र अलग ही रखें।
(३५) मंदिर अगर ज्यादा दूर नहीं है तो बिना जूते चप्पल के ही पैदल जाना चाहिए।
(३६) मंदिर में भगवान के दर्शन खुले नेत्रों से करें और मंदिर से खड़े खड़े वापिस नहीं हों, दो मिनट बैठकर भगवान के रूप माधुर्य का दर्शन लाभ लें।
(३७) आरती लेने अथवा दीपक का स्पर्श करने के बाद हस्त प्रक्षालन अवश्य करें।
यह सभी शास्त्रोक्त बातें हमें हमारे ऋषि मुनियों से परंपरागत रूप से प्राप्त हुई है अतः इसका पालन करते रहें।
🚩 जय सनातन धर्म .. 🙏🏻. विशाल भार्गव
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thethakorji · 6 years
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જય ગૌ માતા
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thethakorji · 6 years
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thethakorji · 6 years
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thethakorji · 6 years
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thethakorji · 6 years
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thethakorji · 6 years
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thethakorji · 7 years
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तुलसी वर्ल्ड की बेस्ट
*तुलसी मुख्य रूप से पांच प्रकार के पायी जाती है ! श्याम, राम , श्वेत, वन , और नींबू तुलसी ! *इन पांच प्रकार की तुलसी विधि द्वारा अर्क निकाल कर तुलसी का निर्माण किया गया है, *यह संसार की एक बेहतरीन एंटी-ऑक्सीडेंट , एंटी- बैक्टीरियल, एंटी- वायरल , एंटी- फ्लू, एंटी- बायोटिक , एंटी-इफ्लेमेन्ट्री व एंटी - डिजीज है. १. 🌿तुलसी की एक बून्द एक ग्लास पानी में या दो बून्द एक लीटर पानी में डाल कर उस जल को पीना चाहिए। इसमें पेयजल विषाणु और रोगाणुओ से मुक्त होकर स्वास्तवर्धक पेय हो जाता है. २. 🌿तुलसी २०० से अधिक रोगो में लाभदायक है. जैसे के फ्लू , स्वाइन फ्लू, डेंगू , जुखाम , खासी , प्लेग, मलेरिया , जोड़ो का दर्द, मोटापा, ब्लड प्रेशर , शुगर, एलर्जी , पेट के कीड़ो , हेपेटाइटिस , जलन, मूत्र सम्बन्धी रोग, गठिया , दम, मरोड़, बवासीर , अतिसार, आँख का दर्द , दाद खाज खुजली, सर दर्द, पायरिया नकसीर, फेफड़ो सूजन, अल्सर , वीर्य की कमी, हार्ट ब्लोकेज आदि. ३. 🌿तुलसी एक बेहतरीन विष नाशक तथा शरीर के विष (toxins ) को बहार निकलती है. ४. 🌿तुलसी स्मरण शक्ति को बढ़ाता है.! ५. 🌿तुलसी शरीर के लाल रक्त सेल्स (Haemoglobin) को बढ़ने में अत्यंत सहायक है. ६. 🌿तुलसी भोजन के बाद एक बूँद सेवन करने से पेट सम्बन्धी बीमारिया ठीक होती हैं। ७. 🌿तुलसी के ४-५ बुँदे पीने से महिलाओ को गर्भावस्था में बार बार होने वाली उलटी के शिकायत ठीक हो जाती है. ८. आग के जलने व किसी जहरीले कीड़े के कांटने से 🌿तुलसी को लगाने से विशेष रहत मिलती है । ९. दमा व खासी में 🌿तुलसी के दो बुँदे थोड़े से अदरक के रास तथा शहद के साथ मिलकर सुबह - दोपहर - श्याम सेवन करे. १०. यदि मुँह में से किसी प्रकार की दुर्गन्ध आती हो तो 🌿तुलसी के एक बुँदे मुँह में दाल ले दुर्गन्ध तुरंत दूर हो जाएगी. ११. दांत का दर्द, दांत में कीड़ा लगना , मसूड़ों में खून आना 🌿तुलसी के ४ -५ बुँदे पानी में डालकर कुल्ला करना चाहिए. १२. कान का दर्द, कण का बहना, श्री तुलसी हल्का गरम करके एक -एक बूंद कान में टपकाए। नाक में पिनूस रोग हॉट जाता है, इसके अतिरिक्त फोड़े - फुंसिया भी निकल आती है, दोनों रोगो में बहोत तकलीफ होती है! 🌿तुलसी को हल्का सा गरम करके एक - एक बूंद नाक में टपकाए. १३ .गले में दर्द, गले व मुँह ���ें छाले , आवाज़ बैठ जाना 🌿तुलसी के ४ -५ बुँदे गरम पानी में डालकर कुल्ला करना चाहिए! १४ सर दर्द, बाल क्हाड्णा, बाल सफ़ेद होना व सिकरी 🌿तुलसी की ८ -१० मि.ली। हेयर आयल के साथ मिलाकर सर, माथे तथा कनपटियो पर लगाये . १५. 🌿तुलसी के ८-१० बुँदे मिलकर शरीर ��ें मलकर रात्रि में सोये , मछर नहीं काटेंगे. १६. कूलर के पानी में 🌿तुलसी के ८-१० बुँदे डालने से सारा घर विषाणु और रोगाणु से मुक्त हो जाता है, तथा मक्खी - मच्छर भी घर से भाग जाते है . १७ .जुएं व लिखे 🌿तुलसी और नीमू का रास सामान मात्रा में मिलाकर सर के बालो में अच्छे तरह से लगाये! ३-४ घंटे तक लगा रहने दे। और फिर धोये अथवा रात्रि को लगाकर सुबह सर धोए।। जुएं व लिखे मर जाएगी. १८. त्वचा की समस्या में निम्बू रास के साथ 🌿तुलसी के ४-५ बुँदे डालकर प्रयोग करे. १९. 🌿तुलसी में सुन्दर और निरोग बनाने की शक्ति है। यह त्वचा का कायाकल्प कर देती है. यह शरीर के खून को साफ करके शरीर को चमकीला बनती है . २० 🌿तुलसी की दो बुँदे किसी भी अच्छी क्रीम में मिलाकर चेहरे पर सुबह व रात को सोते समय लगाने पर त्वचा सुन्दर व कोमल हो जाती है तथा चेहरे से प्रत्येक प्रकार के काले धन्ने , छयीअन , कील मुँहासे व झुरिया नष्ट हो जाती है. २१. सफ़ेद दाग ; १० मि.लि. तेल व नारियल के तेल में २० बुँदे 🌿तुलसी डालकर सुबह व रात सोने से पहले अच्छी तरह से मले. २२.🌿तुलसी के नियमित उपयोग से कोलेस्ट्रोल का स्तर कम होने लगता है, रक्त के थक्के जमने कम हो जाते है, व हार्ट hi अटैक और कोलेस्ट्रोल रोकथाम हो जाती है. २३. 🌿तुलसी को किसी भी अच्छी क्रीम में मिलाकर लगाने से प्रसव के बाद पेट पर बनने वाले लाइने ( स्ट्रेच मार्क्स ) दूर हो जाते है।
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thethakorji · 7 years
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शिवलिंग और शालिग्राम का रहस्य जानिए
हिन्दू धर्म के तीन प्रमुख देवता हैं- ब्रह्मा, विष्णु और महेश। साधारण मानव ने तीनों को प्रकृति तत्वों में खोजने का प्रयास किया है। तीनों के ही मनुष्य ने साकार रूप गढ़ने के लिए सर्वप्रथम भगवान ब्रह्मा को शंख, शिव को शिवलिंग और भगवान विष्णु कोशालिग्राम रूप में सर्वोत्तम माना है। उल्लेखनीय है कि शंख सूर्य व चंद्र के समान देवस्वरूप है जिसके मध्य में वरुण, पृष्ठ में ब्रह्मा तथा अग्र में गंगा और सरस्वती नदियों का वास है। लेकिन शिवलिंग और शालिग्राम को भगवान का विग्रह रूप माना जाता है और पुराणों के अनुसार भगवान के इस विग्रह रूप की ही पूजा की जानी चाहिए। शिवलिंग जहां भगवान शंकर का प्रतीक है तो शालिग्राम भगवान विष्णु का। शिवलिंग के तो भारत में लाखों मंदिर हैं, लेकिन शालग्रामजी का एक ही मंदिर है। आओ जानते हैं कि आखिकार क्या है शिवलिंग और शालिग्रामजी की उत्पत्ति और पूजा का रहस्य। *शालिग्राम का मंदिर:--* शालिग्राम का प्रसिद्ध मंदिर मुक्तिनाथ में स्थित है यह वैष्‍णव संप्रदाय के प्रमुख मंदिरों में से एक है। यह तीर्थस्‍थान शालिग्राम भगवान के लिए प्रसिद्ध है। मुक्तिनाथ की यात्रा काफी मुश्किल है। माना जाता है कि यहां से लोगों को हर तरह के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। मुक्तिनाथ नेपाल में स्थित है। काठमांडु से मुक्तिनाथ की यात्रा के लिए पोखरा जाना होता है। वहां से यात्रा शुरू होती है। पोखरा के लिए सड़क या हवाई मार्ग से जा सकते हैं। वहां से पुन: जोमसोम जाना होता है। यहां से मुक्तिनाथ जाने के लिए आप हेलिकॉप्‍टर या फ्लाइट ले सकते हैं। यात्री बस के माध्‍यम से भी यात्रा कर सकते हैं। सड़क मार्ग से जाने पर पोखरा पहुंचने के लिए कुल 200 कि.मी. की दूरी तय करनी होती है। *शालिग्राम को जानिए:--* शिवलिंग की तरह शालिग्राम भी बहुत दुर्लभ है। अधिकतर शालिग्राम नेपाल के मुक्तिनाथ, काली गण्डकी नदी के तट पर पाया जाता है। काले और भूरे शालिग्राम के अलावा सफेद, नीले और ज्योतियुक्त शालिग्राम का पाया जाना तो और भी दुर्लभ है। पूर्ण शालिग्राम में भगवाण विष्णु के चक्र की आकृति अंकित होती है। *शालिग्राम के प्रकार:--* विष्णु के अवतारों के अनुसार शालिग्राम पाया जाता है। यदि गोल शालिग्राम है तो वह विष्णु का रूप गोपाल है। यदि शालिग्राम मछली के आकार का है तो यह श्री विष्णु के मत्स्य अवतार का प्रतीक है। यदि शालिग्राम कछुए के आकार का है तो यह भगवान के कच्छप और कूर्म अवतार का प्रतीक है। इसके अलावा शालिग्राम पर उभरने वाले चक्र और रेखाएं भी विष्णु के अन्य अवतारों और श्रीकृष्ण के कुल के लोगों को इंगित करती हैं। इस तरह लगभग 33 प्रकार के शालिग्राम होते हैं जिनमें से 24 प्रकार को विष्णु के 24 अवतारों से संबंधित माना गया है। माना जाता है कि ये सभी 24 शालिग्राम वर्ष की 24 एकादशी व्रत से संबंधित हैं। *शालिग्राम की पूजा:--* *घर में सिर्फ एक ही शालिग्राम की पूजा करना चाहिए।* *विष्णु की मूर्ति से कहीं ज्यादा उत्तम है शालिग्राम की पूजा करना।* *शालिग्राम पर चंदन लगाकर उसके ऊपर तुलसी का एक पत्ता रखा जाता है।* *प्रतिदिन शालिग्राम को पंचामृत से स्नान कराया जाता है।* *जिस घर में शालिग्राम का पूजन होता है उस घर में लक्ष्मी का सदैव वास रहता है।* *शालिग्राम पूजन करने से अगले-पिछले सभी जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।* *शालिग्राम सात्विकता के प्रतीक हैं। उनके पूजन में आचार-विचार की शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है।* *शिवलिंग:--* शिवलिंग को भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है तो जलाधारी को माता पार्वती का प्रतीक। निराकार रूप में भगवान शिव को शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है। *ॐ नम: शिवाय । यह भगवान का पंचाक्षरी मंत्र है।* इसका जप करते हुए शिवलिंग का पूजन या अभिषेक किया जाता है। इसके अलावा महामृत्युंजय मंत्र और शिवस्त्रोत का पाठ किया जाता है। शिवलिंग की पूजा का विधान बहुत ही विस्तृत है इसे किसी पुजारी के माध्यम से ही सम्पन्न किया जाता है। *शिवलिंग पूजा के नियम:--* *शिवलिंग को पंचांमृत से स्नानादि कराकर उन पर भस्म से तीन आड़ी लकीरों वाला तिलक लगाएं।* *शिवलिंग पर हल्दी नहीं चढ़ाना चाहिए, लेकिन जलाधारी पर हल्दी चढ़ाई जा सकती है।* *शिवलिंग पर दूध, जल, काले तिल चढ़ाने के बाद बेलपत्र चढ़ाएं।* *केवड़ा तथा चम्पा के फूल न चढाएं। गुलाब और गेंदा किसी पुजारी से पूछकर ही चढ़ाएं।* *कनेर, धतूरे, आक, चमेली, जूही के फूल चढ़ा सकते हैं।* *शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ प्रसाद ग्रहण नहीं किया जाता, सामने रखा गया प्रसाद अवश्य ले सकते हैं।* *शिवलिंग नहीं शिवमंदिर की आधी परिक्रमा ही की जाती है।* *शिवलिंग के पूजन से पहले पार्वती का पूजन करना जरूरी है।* *शिवलिंग का अर्थ:--* शिवलिंग को नाद और बिंदु का प्रतीक माना जाता है। पुराणों में इसे ज्योर्तिबिंद कहा गया है। पुराणों में शिवलिंग को कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया है जैसे:-- प्रकाश स्तंभ लिंग, अग्नि स्तंभ लिंग, ऊर्जा स्तंभ लिंग, ब्रह्मांडीय स्तंभ लिंग आदि। शिव का अर्थ 'परम कल्याणकारी शुभ' और 'लिंग' का अर्थ है- 'सृजन ज्योति'। वेदों और वेदान्त में लिंग शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए आता है। यह सूक्ष्म शरीर 17 तत्वों से बना होता है:-- 1- मन, 2- बुद्धि, 3- पांच ज्ञानेन्द्रियां, 4- पांच कर्मेन्द्रियां और पांच वायु। भ्रकुटी के बीच स्थित हमारी आत्मा या कहें कि हम स्वयं भी इसी तरह है। बिंदु रूप। *ब्राह्मांड का प्रतीक:--* शिवलिंग का आकार-प्रकार ब्रह्मांड में घूम रही हमारी आकाशगंगा की तरह है। यह शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड में घूम रहे पिंडों का प्रतीक है।  वेदानुसार ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है। अरुणाचल है प्रमुख शिवलिंगी स्थान:-- भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर हुए विवाद को सुलझाने के लिए एक दिव्य लिंग (ज्योति) प्रकट किया था। इस लिंग का आदि और अंत ढूंढते हुए ब्रह्मा और विष्णु को शिव के परब्रह्म स्वरूप का ज्ञान हुआ। इसी समय से शिव के परब्रह्म मानते हुए उनके प्रतीक रूप में लिंग की पूजा आरंभ हुई। यह घटना अरुणाचल में घटित हुई थी। *आकाशीय पिंड:--* ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार विक्रम संवत के कुछ सहस्राब्‍दी पूर्व संपूर्ण धरती पर उल्कापात का अधिक प्रकोप हुआ। आदिमानव को यह रुद्र (शिव) का आविर्भाव दिखा। जहां-जहां ये पिंड गिरे, वहां-वहां इन पवित्र पिंडों की सुरक्षा के लिए मंदिर बना दिए गए। इस तरह धरती पर हजारों शिव मंदिरों का निर्माण हो गया। उनमें से प्रमुख थे 108 ज्योतिर्लिंग।
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thethakorji · 7 years
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POOJA ke niyam
पूजा तो सब करते हैं परन्तु यदि इन नियमों को ध्यान में रखा जाये तो उसी पूजा पाठ का हम अत्यधिक फल प्राप्त कर सकते हैं.वे नियम कुछ इस प्रकार हैं????? 1 सूर्य, गणेश,दुर्गा,शिव एवं विष्णु ये पांच देव कहलाते हैं. इनकी पूजा सभी कार्यों में गृहस्थ आश्रम में नित्य होनी चाहिए. इससे धन,लक्ष्मी और सुख प्राप्त होता है। 2 गणेश जी और भैरवजी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए। 3 दुर्गा जी को दूर्वा नहीं चढ़ानी चाहिए। 4 सूर्य देव को शंख के जल से अर्घ्य नहीं देना चाहिए। 5 तुलसी का पत्ता बिना स्नान किये नहीं तोडना चाहिए. जो लोग बिना स्नान किये तोड़ते हैं,उनके तुलसी पत्रों को भगवान स्वीकार नहीं करते हैं। 6 रविवार,एकादशी,द्वादशी ,संक्रान्ति तथा संध्या काल में तुलसी नहीं तोड़नी चाहिए। 7 दूर्वा( एक प्रकार की घास) रविवार को नहीं तोड़नी चाहिए। 8 केतकी का फूल शंकर जी को नहीं चढ़ाना चाहिए। ९ कमल का फूल पाँच रात्रि तक उसमें जल छिड़क कर चढ़ा सकते हैं। 10 बिल्व पत्र दस रात्रि तक जल छिड़क कर चढ़ा सकते हैं। .11 तुलसी की पत्ती को ग्यारह रात्रि तक जल छिड़क कर चढ़ा सकते हैं। 12 हाथों में रख कर हाथों से फूल नहीं चढ़ाना चाहिए। 13 तांबे के पात्र में चंदन नहीं रखना चाहिए। 14 दीपक से दीपक नहीं जलाना चाहिए जो दीपक से दीपक जलते हैं वो रोगी होते हैं। 15 पतला चंदन देवताओं को नहीं चढ़ाना चाहिए। 16 प्रतिदिन की पूजा में मनोकामना की सफलता के लिए दक्षिणा अवश्य चढ़ानी चाहिए. दक्षिणा में अपने दोष,दुर्गुणों को छोड़ने का संकल्प लें, अवश्य सफलता मिलेगी और मनोकामना पूर्ण होगी। 17 चर्मपात्र या प्लास्टिक पात्र में गंगाजल नहीं रखना चाहिए। 18 स्त्रियों और शूद्रों को शंख नहीं बजाना चाहिए यदि वे बजाते हैं तो लक्ष्मी वहां से चली जाती है। 19 देवी देवताओं का पूजन दिन में पांच बार करना चाहिए. सुबह 5 से 6 बजे तक ब्रह्म बेला में प्रथम पूजन और आरती होनी चाहिए।प्रात:9 से 10 बजे तक दिवितीय पूजन और आरती होनी चाहिए,मध्याह्र में तीसरा पूजन और आरती,फिर शयन करा देना चाहिए शाम को चार से पांच बजे तक चौथा पूजन और आरती होना चाहिए,रात्रि में 8 से 9 बजे तक पाँचवाँ पूजन और आरती,फिर शयन करा देना चाहिए। 20 आरती करने वालों को प्रथम चरणों की चार बार,नाभि की दो बार और मुख की एक या तीन बार और समस्त अंगों की सात बार आरती करनी चाहिए। 21 पूजा हमेशा पूर्व या उतर की ओर मुँह करके करनी चाहिए, हो सके तो सुबह 6 से 8 बजे के बीच में करें। 22 पूजा जमीन पर ऊनी आसन पर बैठकर ही करनी चाहिए, पूजागृह में सुबह एवं शाम को दीपक,एक घी का और एक तेल का रखें। 23 पूजा अर्चना होने के बाद उसी जगह पर खड़े होकर 3 परिक्रमाएँ करें। 24 पूजाघर में मूर्तियाँ 1 ,3 , 5 , 7 , 9 ,11 इंच तक की होनी चाहिए, इससे बड़ी नहीं तथा खड़े हुए गणेश जी,सरस्वतीजी ,लक्ष्मीजी, की मूर्तियाँ घर में नहीं होनी चाहिए। 25 गणेश या देवी की प्रतिमा तीन तीन, शिवलिंग दो,शालिग्राम दो,सूर्य प्रतिमा दो,गोमती चक्र दो की संख्या में कदापि न रखें.अपने मंदिर में सिर्फ प्रतिष्ठित मूर्ति ही रखें उपहार,काँच, लकड़ी एवं फायबर की मूर्तियां न रखें एवं खण्डित, जलीकटी फोटो और टूटा काँच तुरंत हटा दें, यह अमंगलकारक है एवं इनसे विपतियों का आगमन होता है। 26 मंदिर के ऊपर भगवान के वस्त्र, पुस्तकें एवं आभूषण आदि भी न रखें मंदिर में पर्दा अति आवश्यक है अपने पूज्य माता --पिता तथा पित्रों का फोटो मंदिर में कदापि न रखें,उन्हें घर के नैऋत्य कोण में स्थापित करें। 27 विष्णु की चार, गणेश की तीन,सूर्य की सात, दुर्गा की एक एवं शिव की आधी परिक्रमा कर सकते हैं। 28 प्रत्येक व्यक्ति को अपने घर में कलश स्थापित करना चाहिए कलश जल से पूर्ण, श्रीफल से युक्त विधिपूर्वक स्थापित करें यदि आपके घर में श्रीफल कलश उग जाता है तो वहाँ सुख एवं समृद्धि के साथ स्वयं लक्ष्मी जी नारायण के साथ निवास करती हैं तुलसी का पूजन भी आवश्यक है। 29 मकड़ी के जाले एवं दीमक से घर को सर्वदा बचावें अन्यथा घर में भयंकर हानि हो सकती है। 30 घर में झाड़ू कभी खड़ा कर के न रखें झाड़ू लांघना, पाँवसे कुचलना भी दरिद्रता को निमंत्रण देना है दो झाड़ू को भी एक ही स्थान में न रखें इससे शत्रु बढ़ते हैं। 31 घर में किसी परिस्थिति में जूठे बर्तन न रखें. क्योंकि शास्त्र कहते ���ैं कि रात में लक्ष्मीजी घर का निरीक्षण करती हैं यदि जूठे बर्तन रखने ही हो तो किसी बड़े बर्तन में उन बर्तनों को रख कर उनमें पानी भर दें और ऊपर से ढक दें तो दोष निवारण हो जायेगा। 32 कपूर का एक छोटा सा टुकड़ा घर में नित्य अवश्य जलाना चाहिए,जिससे वातावरण अधिकाधिक शुद्ध हो: वातावरण में धनात्मक ऊर्जा बढ़े। 33 घर में नित्य घी का दीपक जलावें और सुखी रहें। 34 घर में नित्य गोमूत्र युक्त जल से पोंछा लगाने से घर में वास्तुदोष समाप्त होते हैं तथा दुरात्माएँ हावी नहीं होती हैं। 35 सेंधा नमक घर में रखने से सुख श्री(लक्ष्मी) की वृद्धि होती है । 36 रोज पीपल वृक्ष के स्पर्श से शरीर में रोग प्रतिरोधकता में वृद्धि होती है। 37 साबुत धनिया,हल्दी की पांच गांठें,11 कमलगट्टे तथा साबुत नमक एक थैली में रख कर तिजोरी में रखने से बरकत होती है श्री (लक्ष्मी) व समृद्धि बढ़ती है। 38 दक्षिणावर्त शंख जिस घर में होता है,उसमे साक्षात लक्ष्मी एवं शांति का वास होता है वहाँ मंगल ही मंगल होते हैं पूजा स्थान पर दो शंख नहीं होने चाहिएँ। 39 घर में यदा कदा केसर के छींटे देते रहने से वहां धनात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है पतला घोल बनाकर आम्र पत्र अथवा पान के पते की सहायता से केसर के छींटे लगाने चाहिएँ। 40 एक मोती शंख,पाँच गोमती चक्र, तीन हकीक पत्थर,एक ताम्र सिक्का व थोड़ी सी नागकेसर एक थैली में भरकर घर में रखें श्री (लक्ष्मी) की वृद्धि होगी। 41 आचमन करके जूठे हाथ सिर के पृष्ठ भाग में कदापि न पोंछें,इस भाग में अत्यंत महत्वपूर्ण कोशिकाएँ होती हैं। 42 घर में पूजा पाठ व मांगलिक पर्व में सिर पर टोपी व पगड़ी पहननी चाहिए,रुमाल विशेष कर सफेद रुमाल शुभ नहीं माना जाता है। हरि ॐ
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thethakorji · 7 years
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Kuldevta ya kuldevi
कौन है ? कुलदेवता/कुलदेवी           कुलदेवत/कुलदेवी पूजा क्यो करनी चाहिये ? हिन्दू पारिवारिक आराध्य व्यवस्था में कुल देवता/कुलदेवी का स्थान सदैव से रहा है ! प्रत्येक हिन्दू परिवार किसी न किसी ऋषि के वंशज हैं जिन से उन के गोत्र का पता चलता है ! बाद में कर्मानुसार इन का विभाजन वर्णों में हो गया विभिन्न कर्म करने के लिए जो बाद में उन की विशिष्टता बन गया और जाति कहा जाने लगा । हर जाति वर्ग ,किसी न किसी ऋषि की संतान है , और उन मूल ऋषि से उत्पन्न संतान के लिए वे ऋषि या ऋषि पत्नी कुलदेव / कुलदेवी के रूप में पूज्य हैं । पूर्व के हमारे कुलों अर्थात पूर्वजों के खानदान के वरिष्ठों ने अपने लिए उपयुक्त कुल देवता अथवा कुलदेवी का चुनाव कर उन्हें पूजित करना शुरू किया था ! जिससे कि एक आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति कुलों की रक्षा करती रहे ! जिस से उन की नकारात्मक शक्तियों/ऊर्जाओं और वायव्य बाधाओं से रक्षा होती रहे तथा वे निर्विघ्न अपने कर्म पथ पर अग्रसर रह उन्नति करते रहें | समय क्रम में परिवारों के एक दुसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने ,धर्म परिवर्तन करने आक्रान्ताओं के भय से विस्थापित होने ! जानकार व्यक्ति के अ��मय मृत होने संस्कारों के क्षय होने ,विजातीयता पनपने ,इन के पीछे के कारण को न समझ पाने आदि के कारण बहुत से परिवार अपने कुल देवता /देवी को भूल गए अथवा उन्हें मालूम ही नहीं रहा की उन के कुल देवता /देवी कौन हैं या किस प्रकार उन की पूजा की जाती है ! इन में पीढ़ियों से नगरों में रहने वाले परिवार अधिक हैं ,कुछ स्वयंभू आधुनिक मानने वाले और हर बात में वैज्ञानिकता खोजने वालों ने भी अपने ज्ञान के गर्व में अथवा अपनी वर्त्तमान अच्छी स्थिति के गर्व में इन्हें छोड़ दिया या इन पर ध्यान नहीं दिया | कुल देवता /देवी की पूजा छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक तो कोई ख़ास अंतर नहीं समझ में आता किन्तु उस के बाद जब सुरक्षा चक्र हटता है ! तो परिवार में दुर्घटनाओं नकारात्मक ऊर्जा ,वायव्य बाधाओं का बे��ोक-टोक प्रवेश शुरू हो जाता है ! उन्नति रुकने लगती है पीढ़िया अपेक्षित उन्नति नहीं कर पाती ,संस्कारों का क्षय ,नैतिक पतन कलह, उपद्रव ,अशांति शुरू हो जाती हैं ! व्यक्ति कारण खोजने का प्रयास करता है, कारण जल्दी नहीं पता चलता क्यों कि व्यक्ति की ग्रह स्थितियों से इन का बहुत मतलब नहीं होता है ! अतः ज्योतिष आदि से इन्हें पकड़ना मुश्किल होता है , भाग्य कुछ कहता है ,और व्यक्ति के साथ कुछ और घटता है| कुल देवता या देवी हमारे वह सुरक्षा आवरण हैं ! जो किसी भी बाहरी बाधा नकारात्मक ऊर्जा के परिवार में अथवा व्यक्ति पर प्रवेश से पहले सर्व-प्रथम उस से संघर्ष करते हैं और उसे रोकते हैं ! यह पारिवारिक संस्कारों और नैतिक आचरण के प्रति भी समय समय पर सचेत करते रहते हैं ! यही किसी भी ईष्ट को दी जाने वाली पूजा को ईष्ट तक पहुचाते हैं ! यदि इन्हें पूजा नहीं मिल रही होती है ,तो यह नाराज भी हो सकते हैं ,और निर्लिप्त भी हो सकते हैं ! ऐसे में आप किसी भी ईष्ट की आराधना करे वह उस ईष्ट तक नहीं पहुँचता ! क्यो कि सेतु कार्य करना बंद कर देता है ! बाहरी बाधाये ,अभिचार आदि नकारात्मक ऊर्जा बिना बाधा व्यक्ति तक पहुचने लगती है ! कभी-कभी व्यक्ति या परिवारों द्वारा दी जा रही ईष्ट की पूजा कोई अन्य बाहरी वायव्य शक्ति लेने लगती है ! अर्थात पूजा न ईष्ट तक जाती है ,न उस का लाभ मिलता है| ऐसा कुलदेवता की निर्लिप्तता अथवा उन के कम शशक्त होने से होता है । कुलदेवता या देवी सम्बंधित व्यक्ति के पारिवारिक संस्कारों के प्रति संवेदनशील होते हैं , और पूजा पद्धति ,उलट-फेर ,विधर्मीय क्रियाओं अथवा पूजाओं से रुष्ट हो सकते हैं ! सामान्यतया इन की पूजा वर्ष में एक बार अथवा दो बार निश्चित समय पर होती है ,यह परिवार के अनुसार भिन्न समय होता है ,और भिन्न विशिष्ट पद्धति होती है ! शादी-विवाह-संतानोत्पत्ति आदि होने पर इन्हें विशिष्ट पूजाएँ भी दी जाती हैं ! यदि यह सब बंद हो जाए तो या तो यह नाराज होते हैं ! या कोई मतलब न रख मूकदर्शक हो जाते हैं ,और परिवार बिना किसी सुरक्षा आवरण के पारलौकिक शक्तियों के लिए खुल जाता है ! परिवार में विभिन्न तरह की परेशानियां शुरू हो जाती हैं ! अतः प्रत्येक व्यक्ति और परिवार को अपने कुल देवता या देवी को जानना चाहिए तथा यथायोग्य उन्हें पूजा प्रदान करनी चाहिए ! जिससे परिवार की सुरक्षा उन्नति होती रहे ।        हरे कृष्णा🙏
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thethakorji · 7 years
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तांबे की अंगूठी पहनने से मिलते हैं ये 8 लाभ
*🌹ज्योतिष में नौ ग्रह बताए गए हैं और सभी ग्रहों की अलग अलग धातु है ग्रहों का राजा सूर्य है और सूर्य की धातु है सोना और तांबा हिन्दू धर्म में सोना चांदी और तांबा ये तीनों धातुएं पवित्र मानी गई हैं इसीलिए पूजा पाठ में इन धातुओं का उपयोग सबसे ज्यादा होता है इसके अलावा इनकी अंगूठी भी काफी लोग पहनते हैं यहां जानिए तांबे की अंगूठी पहनने से कौन-कौन से लाभ मिलते हैं 🌹* *🌹1. तांबे की अंगूठी सूर्य की उंगली यानी रिंग फिंगर में पहननी चाहिए इससे कुंडली में सूर्य के दोषों का असर कम हो सकता है* *🌹2. सूर्य के साथ ही तांबे की अंगूठी से मंगल के अशुभ असर भी कम हो सकते हैं* *🌹3. तांबे की अंगूठी के प्रभाव से सूर्य का बल बढ़ता है जिससे हमें सूर्य देव की कृपा से घर परिवार और समाज में मान सम्मान मिलता है* *🌹4. तांबे की अंगूठी लगातार हमारे शरीर के संपर्क में रहती है जिससे तांबे के औषधीय गुण शरीर को मिलते हैं इससे खून साफ होता है* *🌹5. जिस प्रकार तांबे के बर्तन में रखा पानी स्वास्थ्य को लाभ पहुंचात है ठीक उसी प्रकार तांबे की अंगूठी से भी फायदा मिलता है* *🌹6. तांबे की अंगूठी के असर से पेट से जुड़ी बीमारियों में भी राहत मिल सकती है* *🌹7. तांबा लगातार त्वचा के संपर्क में रहता है जिससे त्वचा की चमक बढ़ती है* *🌹8. आयुर्वेद के अनुसार तांबे के बर्तनों का उपयोग करने से हमारी रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है यही लाभ तांबे की अंगूठी पहनने से भी मिलता है
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thethakorji · 7 years
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सुरक्षा उपाय
घर - परिवार , जीवन में सुख शान्ति के उपाय 1. यदि कोई पति अपनी पत्नी से प्रेम नहीं करता है तो वह स्त्री लाल रंग की कपड़े की थैली में पीली सरसों के साथ दो अभिमंत्रित गोमती चक्र जिसमें एक में उस स्त्री और दूसरे में उसके पति का नाम लिखा हो इनको थैली में बंद करके अपने पास कहीं छुपा कर रख दें .....पति अपनी पत्नी से प्रेम करने लगेगा। 2. विवाह के बाद केवल पति-पत्नी ही नहीं पूरे परिवार का जीवन बदल जाता है। सामान्यत: लाख कोशिशों के बाद भी पति-पत्नी के बीच कभी-कभी थोड़ा बहुत तनाव उत्पन्न हो जाता है। यही छोटी-छोटी तकरार लड़ाई-झगड़ों में परिवर्तित हो जाए तो ये भी सामान्य सी बात ही है। ऐसे में वैवाहिक जीवन सुखी नहीं रह पाता है। इस प्रकार की परिस्थितियों से बचने के लिए श्रीराम और सीता के फोटो की पूजा करनी चाहिए। आजकल परिवार में पिता पुत्र के बीच में भी बहुत विरोध हो जाते है इससे परिवार में शांति भंग होने के साथ साथ और भी बहुत सी समस्याएँ उत्पन्न हो जाती है कई बार तो परिवार में विघटन की स्थिति भी आ जाती है इससे बचने के लिए कुछ बहुत ही अचूक उपाय बताए जा रहे है । 3. यदि पिता की और से नाराजगी है तो पुत्र रविवार को सवा किलो गुड़ बहते हुए पानी में प्रवाहित करे …उसे ऐसा लगातार तीन रविवार को करना है । पिता की नाराज़गी जल्दी दूर हो जाएगी । 4. पुत्र को नियमित रूप से गुड़,लाल फूल मिलाकर जल सूर्य देव को अर्पित करना चाहिए। पिता का स्नेह पुन: पुत्र पर बन जायेगा । 5. रविवार को पुत्र यदि अपने पिता को कोई भी लाल रंग का उपहार दे तो अति शीघ्र पिता का पुत्र से विरोध ख़त्म हो जायेगा । 6.यदि पुत्र की पिता से न बन रही हो तो अमावस्या,या ग्रहण के दिन पुत्र पिता के जूतों से पुराने मोज़े निकाल कर उनमें बिलकुल नए मोज़े रख दे, ऐसा करने से दोनों के बीच चल रहा गतिरोध अवश्य ही दूर हो जाएगा। 7. यदि पुत्र रुष्ट है तो पिता प्रत्येक शनिवार को सुबह पीपल में मीठा जल एवं शाम को सरसों के तेल का दीपक जलायें या सरसों के तेल की धार अर्पित करें तो बहुत ही जल्दी पिता पुत्र के मध्य अवरोध ख़त्म हो जायेगा । 8. शनिवार को पिता यदि अपने पुत्र को कोई भी नीले रंग का उपहार दे तो अति शीघ्र पुत्र का पिता से मतभेद समाप्त हो जाता है । 9. बहन भाइयों के बीच में झगड़ा या मनमुटाव हो तो मंगलवार को सवा किलो गुड जमीन में दबाएँ ....सम्बन्ध अच्छे हो जायेंगे । 10.यदि किसी महिला का ससुर उससे नाराज रहता हो तो वह महिला प्रतिदिन जल में गुड़ मिलाकर सूर्यदेव को अध्र्य दे तो उसकी यह समस्या दूर हो जाती है। 11. किसी महिला का उसकी सास के साथ झगड़ा होता रहता हो तो वह स्त्री पूर्णिमा की रात में खीर बनाकर चंद्रमा की किरणों में रखे और फिर वह खीर अपनी सास को खिला दे। सास-बहू में बनने लगेगी। यह कुछ ऐसे छोटे छोटे और सहज उपाय है जिनको अपनाकर हर व्यक्ति अपने परिवार में प्रेम और सौहार्दय के वातावरण का निर्माण कर सकता है । इति....
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thethakorji · 7 years
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गायत्री मंत्र क्यों और कब ज़रूरी है
☀सुबह उठते वक़्त 8 बार ❕✋✌👆❕अष्ट कर्मों को जीतने के लिए !! 🍚🍜 भोजन के समय 1 बार❕👆❕ अमृत समान भोजन प्राप्त होने के लिए  !!                          🚶 बाहर जाते समय 3 बार ❕✌👆❕समृद्धि सफलता और सिद्धि के लिए    !!   👏 मन्दिर में 12 बार ❕👐✌❕ प्रभु के गुणों को याद करने के लिए !!       😢छींक आए तब गायत्री मंत्र  उच्चारण ☝1 बार  अमंगल दूर करने के लिए !!                                          सोते समय 🌙 7 बार  ❕✋✌ ❕सात प्रकार के भय दूर करने के लिए !!                                  कृपया सभी बन्धुओं को प्रेषित करें 👏👏  !!! ॐ , ओउम् तीन अक्षरों से बना है। अ उ म् । "अ" का अर्थ है उत्पन्न होना, "उ" का तात्पर्य है उठना, उड़ना अर्थात् विकास, "म" का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् "ब्रह्मलीन" हो जाना। ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है। ॐ का उच्चारण शारीरिक लाभ प्रदान करता है। जानीए ॐ कैसे है स्वास्थ्यवर्द्धक और अपनाएं आरोग्य के लिए ॐ के उच्चारण का मार्ग... 1. ॐ और थायराॅयडः- ॐ का उच्‍चारण करने से गले में कंपन पैदा होती है जो थायरायड ग्रंथि पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। 2. ॐ और घबराहटः- अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ॐ के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं। 3. ॐ और तनावः- यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है। 4. ॐ और खून का प्रवाहः- यह हृदय और ख़ून के प्रवाह को संतुलित रखता है। 5. ॐ और पाचनः- ॐ के उच्चारण से पाचन शक्ति तेज़ होती है। 6. ॐ लाए स्फूर्तिः- इससे शरीर में फिर से युवावस्था वाली स्फूर्ति का संचार होता है। 7. ॐ और थकान:- थकान से बचाने के लिए इससे उत्तम उपाय कुछ और नहीं। 8. ॐ और नींदः- नींद न आने की समस्या इससे कुछ ही समय में दूर हो जाती है। रात को सोते समय नींद आने तक मन में इसको करने से निश्चिंत नींद आएगी। 9. ॐ और फेफड़े:- कुछ विशेष प्राणायाम के साथ इसे करने से फेफड़ों में मज़बूती आती है। अक्षय.....!! 10. ॐ और रीढ़ की हड्डी:- ॐ के पहले शब्‍द का उच्‍चारण करने से कंपन पैदा होती है। इन कंपन से रीढ़ की हड्डी प्रभावित होती है और इसकी क्षमता बढ़ जाती है। 11. ॐ दूर करे तनावः- ॐ का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनाव-रहित हो जाता है। आशा है आप अब कुछ समय जरुर ॐ का उच्चारण  करेंगे। साथ ही साथ इसे उन लोगों तक भी जरूर पहुंचायेगे जिनकी आपको फिक्र है 🙏सभी बड़ो को प्रणाम ,साथियो को राम राम जय सीताराम
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thethakorji · 7 years
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कौन सा रुद्राक्ष बदल देगा आपकी जिन्दगी
रुद्राक्ष के प्रकार- आपको बता दें कि रुद्राक्ष एकमुखी से लेकर चौदहमुखी तक होते हैं| पुराणों में प्रत्येक रुद्राक्ष का अलग-अलग महत्व और उपयोगिता उल्लेख किया गया है- एकमुखी रुद्राक्ष- एकमुखी रुद्राक्ष साक्षात रुद्र स्वरूप है। इसे परब्रह्म माना जाता है। सत्य, चैतन्यस्वरूप परब्रह्म का प्रतीक है। साक्षात शिव स्वरूप ही है। इसे धारण करने से जीवन में किसी भी वस्तु का अभाव नहीं रहता। लक्ष्मी उसके घर में चिरस्थायी बनी रहती है। चित्त में प्रसन्नता, अनायास धनप्राप्ति, रोगमुक्ति तथा व्यक्तित्व में निखार और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। द्विमुखी रुद्राक्ष- शास्त्रों में दोमुखी रुद्राक्ष को अर्द्धनारीश्वर का प्रतीक माना जाता है। शिवभक्तों को यह रुद्राक्ष धारण करना अनुकूल है। यह तामसी वृत्तियों के परिहार के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। इसे धारण करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है। चित्त में एकाग्रता तथा जीवन में आध्यात्मिक उन्नति और पारिवारिक सौहार्द में वृद्धि होती है। व्यापार में सफलता प्राप्त होती है। स्त्रियों के लिए इसे सबसे उपयुक्त माना गया है| तीनमुखी रुद्राक्ष- यह रुद्राक्ष ‍अग्निस्वरूप माना गया है। सत्व, रज और तम- इन तीनों यानी त्रिगुणात्मक शक्तियों का स्वरूप यह भूत, भविष्य और वर्तमान का ज्ञान देने वाला है। इसे धारण करने वाले मनुष्य की विध्वंसात्मक प्रवृत्तियों का दमन होता है और रचनात्मक प्रवृत्तियों का उदय होता है। किसी भी प्रकार की बीमारी, कमजोरी नहीं रहती। व्यक्ति क्रियाशील रहता है। यदि किसी की नौकरी नहीं लग रही हो, बेकार हो तो इसके धारण करने से निश्चय ही कार्यसिद्धी होती है। चतुर्मुखी रुद्राक्ष- चतुर्मुखी रुद्राक्ष ब्रह्म का प्रतिनिधि है। यह शिक्षा में सफलता देता है। जिसकी बुद्धि मंद हो, वाक् शक्ति कमजोर हो तथा स्मरण शक्ति मंद हो उसके लिए यह रुद्राक्ष कल्पतरु के समान है। इसके धारण करने से शिक्षा आदि में असाधारण सफलता मिलती है। पंचमुखी रुद्राक्ष- पंचमुखी रुद्राक्ष भगवान शंकर का प्रतिनिधि माना गया है। यह कालाग्नि के नाम से जाना जाता है। शत्रुनाश के लिए पूर्णतया फलदायी है। इसके धारण करने पर साँप-बिच्छू आदि जहरीले जानवरों का डर नहीं रहता। मानसिक शांति और प्रफुल्लता के लिए भी इसका उपयोग किया होता है। षष्ठमुखी रुदाक्ष- यह षडानन कार्तिकेय का स्वरूप है। इसे धारण करने से खोई हुई शक्तियाँ जागृत होती हैं। स्मरण शक्ति प्रबल तथा बुद्धि तीव्र होती है। कार्यों में पूर्ण तथा व्यापार में आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त होती है। सप्तमुखी रुद्राक्ष- सप्तमुखी रुद्राक्ष को सप्तमातृका तथा ऋषियों का प्रतिनिधि माना गया है। यह अत्यंत उपयोगी तथा लाभप्रद रुद्राक्ष है। धन-संपत्ति, कीर्ति और विजय प्रदान करने वाला होता है साथ ही कार्य, व्यापार आदि में बढ़ोतरी कराने वाला है। अष्टमुखी रुद्राक्ष- अष्टमुखी रुद्राक्ष को अष्टदेवियों का प्रतिनिधि माना गया है। यह ज्ञानप्राप्ति, चित्त में एकाग्रता में उपयोगी तथा मुकदमे में विजय प्रदान करने वाला है। धारक की दुर्घटनाओं तथा प्रबल शत्रुओं से रक्षा करता है। इस रुद्राक्ष को विनायक का स्वरूप भी माना जाता है। यह व्यापार में सफलता और उन्नतिकारक है। नवममुखी रुद्राक्ष- नवमुखी रुद्राक्ष को नवशक्ति का प्रतिनिधि माना गया है| इसके अलावा इसे नवदुर्गा, नवनाथ, नवग्रह का भी प्रतीक भी माना जाता है। यह धारक को नई-नई शक्तियाँ प्रदान करने वाला तथा सुख-शांति में सहायक होकर व्यापार में वृद्धि कराने वाला होता है। इसे भैरव के नाम से भी जाना जाता है।इसके धारक की अकालमृत्यु नहीं होती तथा आकस्मिक दुर्घटना का भी भय नहीं रहता। दशममुखी रुद्राक्ष- दशमुखी रुद्राक्ष दस दिशाएँ, दस दिक्पाल का प्रतीक है। इस रुद्राक्ष को धारण करने वाले को लोक सम्मान, कीर्ति, विभूति और धन की प्राप्ति होती है। धारक की सभी लौकिक-पारलौकिक कामनाएँ पूर्ण होती हैं। एकादशमुखी रुद्राक्ष- यह रुद्राक्ष रूद्र का प्रतीक माना जाता है| इस रुद्राक्ष को धारण करने से किसी चीज का अभाव नहीं रहता तथा सभी संकट और कष्ट दूर हो जाते हैं। यह रुद्राक्ष भी स्त्रियों के लिए काफी फायदेमं रहता है| इसके बारे में यह मान्यता है कि जिस स्त्री को पुत्र रत्न की प्राप्ति न हो रही हो तो इस रुद्राक्ष के धारण करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है| द्वादशमुखी रुद्राक्ष- यह द्वादश आदित्य का स्वरूप माना जाता है। सूर्य स्वरूप होने से धारक को शक्तिशाली तथा तेजस्वी बनाता है। ब्रह्मचर्य रक्षा, चेहरे का तेज और ओज बना रहता है। सभी प्रकार की शारीरिक एवं मानसिक पीड़ा मिट जाती है तथा ऐश्वर्ययुक्त सुखी जीवन की प्राप्ति होती है। त्रयोदशमुखी रुद्राक्ष - यह रुद्राक्ष साक्षात विश्वेश्वर भगवान का स्वरूप है यह। सभी प्रकार के अर्थ एवं सिद्धियों की पूर्ति करता है। यश- कीर्ति की प्राप्ति में सहायक, मान- प्रतिष्ठा बढ़ाने परम उपयोगी तथा कामदेव का भी प्रतीक होने से शारीरिक सुंदरता बनाए रख पूर्ण पुरुष बनाता है। लक्ष्मी प्राप्ति में अत्यंत उपयोगी सिद्ध होता है। चतुर्दशमुखी रुद्राक्ष- इस रुद्राक्ष के बारे में यह मान्यता है कि यह साक्षात त्रिपुरारी का स्वरूप है। चतुर्दशमुखी रुद्राक्ष स्वास्थ्य लाभ, रोगमुक्ति और शारीरिक तथा मानसिक-व्यापारिक उन्नति में सहायक होता है। इसमें हनुमानजी की शक्ति निहित है। धारण करने पर आध्यात्मिक तथा भौतिक सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। अन्य रुद्राक्ष- ======================= गणेश रुद्राक्ष- एक मुखी से लेकर चतुर्दशमुखी रुद्राक्ष के बाद भी कुछ अन्य रुद्राक्ष होते हैं जैसे गणेश रुद्राक्ष| गणेश रुद्राक्ष की पहचान है उस पर प्राकृतिक रूप से रुद्राक्ष पर एक उभरी हुई सुंडाकृति बनी रहती है। यह अत्यंत दुर्लभ तथा शक्तिशाली रुद्राक्ष है। यह गणेशजी की शक्ति तथा सायुज्यता का द्योतक है। धारण करने वाले को यह बुद्धि, रिद्धी- सिद्धी प्रदान कर व्यापार में आश्चर्यजनक प्रगति कराता है। विद्यार्थियों के चित्त में एकाग्रता बढ़ाकर सफलता प्रदान करने में सक्षम होता है। यहाँ रुद्राक्ष आपकी विघ्न-बाधाओं से रक्षा करता है| गौरीशंकर रुद्राक्ष- यह शिव और शक्ति का मिश्रित स्वरूप माना जाता है। उभयात्मक शिव और शक्ति की संयुक्त कृपा प्राप्त होती है। यह आर्थिक दृष्टि से विशेष सफलता दिलाता है। पारिवारिक सामंजस्य, आकर्षण, मंगलकामनाओं की सिद्धी में सहायक है। शेषनाग रुद्राक्ष- जिस रुद्राक्ष की पूँछ पर उभरी हुई फनाकृति हो और वह प्राकृतिक रूप से बनी रहती है, उसे शेषनाग रुद्राक्ष कहते हैं। यह अत्यंत ही दुर्लभ रुद्राक्ष है। यह धारक की निरंतर प्रगति कराता है। धन-धान्य, शारीरिक और मानसिक उन्नति में सहायक सिद्ध होता है। सभी मानव जो भोग व मोक्ष, दोनों की कामना करते हैं उन्हें रुद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए। रुद्राक्ष की उत्पत्ति शिवजी के आंसुओं से हुई है। इसलिए रुद्राक्ष धारण करने से धारक का ध्यान आध्यात्मिकता की ओर बढ़ता है तथा धारक को स्वास्थ्य लाभ होता है। गौरी शंकर रुद्राक्ष: गौरी- शंकर रुद्राक्ष भगवान शिवजी के अर्धनारीश्वर स्वरूप तथा शिव व शक्ति का मिश्रित रूप है। इसे धारण करने से शिवजी व पार्वती जी सदैव प्रसन्न रहते हैं तथा जीवन में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं होती है। गौरी-शंकर रुद्राक्ष को घर में धन की तिजोरी या पूजा स्थल में रखने से सभी प्रकार के सुख व संपन्नता प्राप्त होती है। यदि विवाह में देरी हो जाये या वैवाहिक जीवन में पति-पत्नी में मतभेद हो तो गौरी-शंकर रुद्राक्ष धारण करें। गणेश रुद्राक्ष गणेश रुद्राक्ष को धारण करने से धारक का भाग्योदय होता है तथा जीवन में कभी धन की कमी नहीं होती है क्योंकि गणेश रुद्राक्ष ऋद्धि-सिद्धि का ही स्वरूप है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने रोजगार/व्यवसाय से संबंधित रुद्राक्ष धारण करना चाहिए जिससे अधिक लाभ प्राप्त किया जा सके। 1. वकील, जज व न्यायालयों में काम करने वाले लोगों को 1, 4 व 13 मुखी रुद्राक्ष धारण करने चाहिए। 2. वित्तीय क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति (बैंक- कर्मचारी, चार्टर्ड एकाउन्टेंट) को 8, 11, 12, 13 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। 3. प्रशासनिक अधिकारी व पुलिस कर्मचारी को 9 व 13 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। 4. चिकित्सा जगत से जुड़ें लोगों (डाॅक्टर, वैद्य, सर्जन) को 3, 4, 9, 10, 11, 12, 14 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। 5. इंजीनियर को 8, 10, 11, 14 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। 6. वायुसेना से जुड़े कर्मचारियों व पायलट को 10 व 11 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। 7. शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोगों व अध्यापकों को 6 और 14 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। 8. ठेकेदारी से संबंधित लोगों को 11, 13 व 14 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। 9. जमीन-जायदाद के क्रय-विक्रय से जुड़े लोगों को 1, 10, 14 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। 10. व्यवसायी व जनरल मर्चेंट को 10, 13 व 14 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। 11. उद्योगपति को 12 और 14 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। 12. होटल- व्यवसाय से संबंधित कर्मचारियों को 1, 13 व 14 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। 13. राजनेताओं व राजनीति तथा समाज-सेवा से संबंधित लोगों को 13 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। 14. बच्चों व विद्यार्थियों को गणेश रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
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thethakorji · 7 years
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तिलक चार प्रकार के होते हैं-
1- कुमकुम 2- केशर 3- चंदन 4- भस्म इनमें से कुमकुम = हल्दी चुना मिलकर बना होता है जो हमारे आज्ञा चक्र की शुद्धि करते हुए उसे केल्शियम देते हुए ज्ञान चक्र को प्रज्व्व्लित करता है , केशर == जिसका मस्तिष्क ठंडा/ शीतल होता है उसको केसर का तिलक प्रज्ज्वलित करता है , चंदन ==दिमाग को शीतलता प्रदान करते हुए मानसिक शान्ति भी देता है , भस्मी == वैराग्य की अग्रसर करते हुए मस्तष्क के रोम कूपों के विषाणुओं को भी नष्ट करता है।
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thethakorji · 7 years
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कृष्णा जिनका नाम है
कृष्ण को पूर्णावतार कहा गया है। कृष्ण के जीवन में वह सबकुछ है जिसकी मानव को आवश्यकता होती है। कृष्ण गुरु हैं, तो शिष्य भी। आदर्श पति हैं तो प्रेमी भी। आदर्श मित्र हैं, तो शत्रु भी। वे आदर्श पुत्र हैं, तो पिता भी। युद्ध में कुशल हैं तो बुद्ध भी। कृष्ण के जीवन में हर वह रंग है, जो धरती पर पाए जाते हैं इसीलिए तो उन्हें पूर्णावतार कहा गया है। मूढ़ हैं वे लोग, जो उन्हें छोड़कर अन्य को भजते हैं… ‘भज गोविन्दं मुढ़मते। आठ का अंक : """"""”""""""""""""""" कृष्ण के जीवन में आठ अंक का अजब संयोग है। उनका जन्म आठवें मनु के काल में अष्टमी के दिन वसुदेव के आठवें पुत्र के रूप में जन्म हुआ था। उनकी आठ सखियां, आठ पत्नियां, आठमित्र और आठ शत्रु थे। इस तरह उनके जीवन में आठ अंक का बहुत संयोग है। *कृष्ण के नाम : """"""""""""""""""""""" नंदलाल, गोपाल, बांके बिहारी, कन्हैया, केशव, श्याम, रणछोड़दास, द्वारिकाधीश और वासुदेव। बाकी बाद में भक्तों ने रखे जैसे ‍मुरलीधर, माधव, गिरधारी, घनश्याम, माखनचोर, मुरारी, मनोहर, हरि, रासबिहारी आदि। *कृष्ण के माता-पिता : """"”""""""""""""""""""""""""""""" कृष्ण की माता का नाम देवकी और पिता का नाम वसुदेव था। उनको जिन्होंने पाला था उनका नाम यशोदा और धर्मपिता का नाम नंद था। बलराम की माता रोहिणी ने भी उन्हें माता के समान दुलार दिया। रोहिणी वसुदेव की प‍त्नी थीं। *कृष्ण के गुरु : """"""""""""""""""""""" गुरु संदीपनि ने कृष्ण को वेद शास्त्रों सहित 14 विद्या और 64 कलाओं का ज्ञान दिया था। गुरु घोरंगिरस ने सांगोपांग ब्रह्म ‍ज्ञान की शिक्षा दी थी। माना यह भी जाता है कि श्रीकृष्ण अपने चचेरे भाई और जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ के प्रवचन सुना करते थे। कृष्ण के भाई : """""""""""""""""""""" कृष्ण के भाइयों में नेमिनाथ, बलराम और गद थे। शौरपुरी (मथुरा) के यादववंशी राजा अंधकवृष्णी के ज्येष्ठ पुत्र समुद्रविजय के पुत्र थे नेमिनाथ। अंधकवृष्णी के सबसे छोटे पुत्र वसुदेव से उत्पन्न हुए भगवान श्रीकृष्ण। इस प्रकार नेमिनाथ और श्रीकृष्ण दोनों चचेरे भाई थे। इसके बाद बलराम और गद भी कृष्ण के भाई थे। *कृष्ण की बहनें : """""""""""""""""""""""""" कृष्ण की 3 बहनें थी : 1. एकानंगा (यह यशोदा की पुत्री थीं)। 2. सुभद्रा : वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी से बलराम और सुभद्र का जन्म हुआ। वसुदेव देवकी के साथ जिस समय कारागृह में बंदी थे, उस समय ये नंद के यहां रहती थीं। सुभद्रा का विवाह कृष्ण ने अपनी बुआ कुंती के पुत्र अर्जुन से किया था। जबकि बलराम दुर्योधन से करना चाहते थे। 3. द्रौपदी : पांडवों की पत्नी द्रौपदी हालांकि कृष्ण की बहन नहीं थी, लेकिन श्रीकृष्‍ण इसे अपनी मानस ‍भगिनी मानते थे। 4.देवकी के गर्भ से सती ने महामाया के रूप में इनके घर जन्म लिया, जो कंस के पटकने पर हाथ से छूट गई थी। कहते हैं, विन्ध्याचल में इसी देवी का निवास है। यह भी कृष्ण की बहन थीं। कृष्ण की पत्नियां : """""""""""""""""""""""""""" रुक्मिणी, जाम्बवंती, सत्यभामा, मित्रवंदा, सत्या, लक्ष्मणा, भद्रा और कालिंदी। * कृष्ण के पुत्र : """"""""""""""""""""""""" रुक्मणी से प्रद्युम्न, चारुदेष्ण, जम्बवंती से साम्ब, मित्रवंदा से वृक, सत्या से वीर, सत्यभामा से भानु, लक्ष्मणा से…, भद्रा से… और कालिंदी से…। *कृष्ण की पुत्रियां : """""""""""""""''"""'''''''''''''""""" रुक्मणी से कृष्ण की एक पुत्री थीं जिसका नाम चारू था। *कृष्ण के पौत्र : """""""""""""""""""""""" प्रद्युम्न से अनिरुद्ध। अनिरुद्ध का विवाह वाणासुर की पुत्री उषा के साथ हुआ था। *कृष्ण की 8 सखियां : """"""""""""""""""""""""""""""""" राधा, ललिता आदि सहित कृष्ण की 8 सखियां थीं। सखियों के नाम निम्न हैं- ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार इनके नाम इस तरह हैं- चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा भद्रा। कुछ जगह ये नाम इस प्रकार हैं- चित्रा, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चम्पकलता, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रग्डदेवी और सुदेवी। इसके अलावा भौमासुर से मुक्त कराई गई सभी महिलाएं कृष्ण की सखियां थीं। कुछ जगह पर- ललिता, विशाखा, चम्पकलता, चित्रादेवी, तुङ्गविद्या, इन्दुलेखा, रंगदेवी और कृत्रिमा (मनेली)। इनमें से कुछ नामों में अंतर है। कृष्ण के 8 मित्र : """"""""""""""""""""""""" श्रीदामा, सुदामा, सुबल, स्तोक कृष्ण, अर्जुन, वृषबन्धु, मन:सौख्य, सुभग, बली और प्राणभानु। इनमें से आठ उनके साथ मित्र थे। ये नाम आदिपुराण में मिलते हैं। हालांकि इसके अलावा भी कृष्ण के हजारों मित्र थे जिसनें दुर्योधन का नाम भी लिया जाता है। *कृष्ण के शत्रु : """""""""""""""""""""""""" कंस, जरासंध, शिशुपाल, कालयवन, पौंड्रक। कंस तो मामा था। कंस का श्वसुर जरासंध था। शिशुपाल कृष्ण की बुआ का लड़का था। कालयवन यवन जाति का मलेच्छ जा था जो जरासंध का मित्र था। पौंड्रक काशी नरेश था जो खुद को विष्णु का अवतार मानता था। * कृष्ण के शिष्य : """""""""""""""""""""""""" *कृष्ण ने किया जिनका वध : ताड़का, पूतना, चाणूड़, शकटासुर, कालिया, धेनुक, प्रलंब, अरिष्टासुर, बकासुर, तृणावर्त अघासुर, मुष्टिक, यमलार्जुन, द्विविद, केशी, व्योमासुर, कंस, प्रौंड्रक और नरकासुर आदि। *कृष्ण चिन्ह : """"""""""""""""""""" सुदर्शन चक्र, मोर मुकुट, बंसी, पितांभर वस्त्र, पांचजन्य शंख, गाय, कमल का फूल और माखन मिश्री। *कृष्ण लोक : """""""""""""""""""""" वैकुंठ, गोलोक, विष्णु लोक। *कृष्ण ग्रंथ : महाभारत और गीता *कृष्ण का कुल : """""""""""""""""""""""" यदुकुल। कृष्ण के समय उनके कुल के कुल 18 कुल थे। अर्थात उनके कुल की कुल 18 शाखाएं थीं। यह अंधक-वृष्णियों का कुल था। वृष्णि होने के कारण ये वैष्णव कहलाए। अन्धक, वृष्णि, कुकर, दाशार्ह भोजक आदि यादवों की समस्त शाखाएं मथुरा में कुकरपुरी (घाटी ककोरन) नामक स्थान में यमुना के तट पर मथुरा के उग्रसेन महाराज के संरक्षण में निवास करती थीं। शाप के चलते सिर्फ यदु‍ओं का नाश होने के बाद अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण के पौत्र वज्रनाभ को द्वारिका से मथुरा लाकर उन्हें मथुरा जनपद का शासक बनाया गया। इसी समय परीक्षित भी हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठाए गए। वज्र के नाम पर बाद में यह संपूर्ण क्षेत्र ब्रज कहलाने लगा। जरासंध के वंशज सृतजय ने वज्रनाभ वंशज शतसेन से 2781 वि.पू. में मथुरा का राज्य छीन लिया था। बाद में मागधों के राजाओं की गद्दी प्रद्योत, शिशुनाग वंशधरों पर होती हुई नंद ओर मौर्यवंश पर आई। मथुराकेमथुर नंदगाव, वृंदावन, गोवर्धन, बरसाना, मधुवन और द्वारिका। *कृष्ण पर्व : """"""""""""""""""" श्री कृष्ण ने ही होली और अन्नकूट महोत्सव की शुरुआत की थी। जन्माष्टमी के दिन उनका जन्मदिन मनाया जाता है। मथुरा मंडल के ये 41 स्थान कृष्ण से जुड़े हैं:- """"""""""""""""""""""""" *मधुवन, तालवन, कुमुदवन, शांतनु कुण्ड, सतोहा, बहुलावन, राधा-कृष्ण कुण्ड, गोवर्धन, काम्यक वन, संच्दर सरोवर, जतीपुरा, डीग का लक्ष्मण मंदिर, साक्षी गोपाल मंदिर, जल महल, कमोद वन, चरन पहाड़ी कुण्ड, काम्यवन, बरसाना, नंदगांव, जावट, कोकिलावन, कोसी, शेरगढ, चीर घाट, नौहझील, श्री भद्रवन, भांडीरवन, बेलवन, राया वन, गोपाल कुण्ड, कबीर कुण्ड, भोयी कुण्ड, ग्राम पडरारी के वनखंडी में शिव मंदिर, दाऊजी, महावन, ब्रह्मांड घाट, चिंताहरण महादेव, गोकुल, संकेत तीर्थ, लोहवन और वृन्दावन। इसके बाद द्वारिका, तिरुपति बालाजी, श्रीनाथद्वारा और खाटू श्याम प्रमुख कृष्ण स्थान है। भक्तिकाल के कृष्ण भक्त: """"""""""""""""""""""""""""""""""""""" सूरदास, ध्रुवदास, रसखान, व्यासजी, स्वामी हरिदास, मीराबाई, गदाधर भट्ट, हितहरिवंश, गोविन्दस्वामी, छीतस्वामी, चतुर्भुजदास, कुंभनदास, परमानंद, कृष्णदास, श्रीभट्ट, सूरदास मदनमोहन, नंददास, चैतन्य महाप्रभु आदि।         कृष्णा जिनका नाम है गोकुल जिनका धाम है ऐसे श्री कृष्ण को मेरा बारम्बार प्रणाम है *जय श्रीराधे कृष्णा*
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