दिव्य धर्म यज्ञ दिवस के उपलक्ष्य में 26 से 28 नवंबर तक संत रामपाल जी के सतलोक आश्रमों में होने वाले भंडारे में आप सभी सहपरिवार सादर आमंत्रित है। भंडारे में आकर प्रसाद ग्रहण करें व गरीबदास जी महाराज जी की अमृतवाणी का लाभ उठाएं।
💫विक्रमी संवत 1570 (सन 1513) में परमेश्वर कबीर जी ने काशी (उ•प्र•) में 18 लाख साधु संतों को भंडारा करवाया था जो 3 दिन तक कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष को प्रारंभ हुआ था मंगसर (माघशीर्ष) की कृष्ण पक्ष एकम(प्रथमा) को सम्पन्न हुआ था। वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में तीन दिवसीय शुद्ध देसी घी से निर्मित निःशुल्क विशाल भंडारे का आयोजन 10 सतलोक आश्रमों में किया जा रहा है।
देखिये विशेष कार्यक्रम का सीधा प्रसारण
28 नवंबर 2023, सुबह 09:00 बजे साधना tv और popular tv पर।
💫संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में 10 सतलोक आश्रमों में नि:शुल्क विशाल धर्म भंडारे का आयोजन किया जा रहा है। इस दिन 510 वर्ष पूर्व कबीर जी ने 18 लाख साधु संतों को ऐसे ही एक दिव्य धर्म भंडारे से तृप्त किया था।
इस महासमागम में संत गरीबदास जी महाराज जी की अमरवाणी का अखंड पाठ, रक्त दान शिविर, दहेज मुक्त विवाह जैसे अद्भुत समाज सेवी कार्य भी किये जायेंगे।
देखिये विशेष कार्यक्रम का सीधा प्रसारण
28 नवंबर 2023, सुबह 09:00 बजे साधना tv और popular tv पर।
💫आज से 510 वर्ष पूर्व कपड़ा बुनकर आजीविका चलाने वाले समर्थ कबीर परमेश्वर ने तीन दिन तक 18 लाख साधु संतों को मोहन भंडारे से तृप्त किया था।
इसी उपलक्ष्य में संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में 10 आश्रमों में विशाल धर्म भंडारे का आयोजन किया जायेगा, जिसमें आप सभी परिवार सहित सादर आमंत्रित हैं।
देखिये विशेष कार्यक्रम का सीधा प्रसारण
28 नवंबर 2023, सुबह 09:00 बजे साधना tv और popular tv पर।
💫 आज से 510 वर्ष पूर्व काशी नगर में पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी ने अपने अन्य केशो बंजारा रूप में 18 लाख साधु संतों को तीन दिनों तक खुला भंडारा कराया था। इसी उपलक्ष्य में नि:शुल्क विशाल भंडारा व कई धार्मिक आयोजन किये जायेंगे। संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में होने वाले इस महासमागम में पूरा विश्व सादर आमंत्रित है।
देखिये विशेष कार्यक्रम का सीधा प्रसारण
28 नवंबर 2023, सुबह 09:00 बजे साधना tv और popular tv पर।
💫उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम, फिरता दाणे दाणे नूं।
सर्व कला सतगुरु साहेब की, हरि आये हरियाणे नूं।।
जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में कबीर परमेश्वर की लीला के 510 वें दिव्य धर्म यज्ञ दिवस के उपलक्ष्य में 10 सतलोक आश्रमों में विशाल सत्संग, अखंड पाठ, शुद्ध देसी घी से निर्मित विशाल भंडारा, रक्तदान शिविर, नशामुक्त कार्यक्रम, दहेजमुक्त विवाह जैसे अद्भुत समाज सेवी कार्यक्रम सम्पन्न होंगे।
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28 नवंबर 2023, सुबह 09:00 बजे साधना tv और popular tv पर।
💫कबीर परमेश्वर की अद्भुत लीला
510 वां दिव्य धर्म यज्ञ दिवस संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में 10 सतलोक आश्रमों में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। आप सभी इस शुद्ध देसी घी से निर्मित भंडारे में सह परिवार सादर आमंत्रित हैं। आश्रम में रहने एवं भोजन भंडारे की व्यवस्था पूर्णतया निःशुल्क रहेगी।
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28 नवंबर 2023, सुबह 09:00 बजे साधना tv और popular tv पर।
💫 संत रामपाल जी महाराज के 10 सतलोक आश्रमों में दिव्य धर्म यज्ञ दिवस मनाया जा रहा है। जिसमे संत गरीबदास जी की अमरवाणी का तीन दिवसीय अखंड पाठ व अखंड ज्योति यज्ञ किया जाएगा व नि:शुल्क देसी घी युक्त विशाल भंडारे का आयोजन भी किया जा रहा है। इस अनमोल महासमागम में संपूर्ण विश्व आमंत्रित है।
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28 नवंबर 2023, सुबह 09:00 बजे साधना tv और popular tv पर।
💫 पूर्ण परमात्मा के निमित्त किए भंडारे में रचनहार परमात्मा किसी न किसी रूप विराजमान रहते हैं। ऐसे भंडारे में प्रसाद ग्रहण करने वालों के भी बहुत से पापों को परमात्मा नष्ट कर देता है।
ऐसे ही महाभंडारे का आयोजन संत रामपाल जी महाराज के 10 सतलोक आश्रमों में होगा।
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28 नवंबर 2023, सुबह 09:00 बजे साधना tv और popular tv पर।
💫 510 वें दिव्य धर्म यज्ञ दिवस के उपलक्ष्य में देश विदेश के 10 सतलोक आश्रमों में विशाल सत्संग, संत गरीबदास जी महाराज की अमरवाणी का अखंड पाठ, शुद्ध देसी घी से निर्मित विशाल भंडारा, रक्तदान शिविर, नशामुक्त कार्यक्रम, दहेजमुक्त विवाह जैसे अद्भुत समाज सेवी कार्यक्रम जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में सम्पन्न हो रहे हैं।
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28 नवंबर 2023, सुबह 09:00 बजे साधना tv और popular tv पर।
💫 दिव्य धर्म यज्ञ दिवस के उपलक्ष्य में 26 से 28 नवंबर तक संत रामपाल जी के सतलोक आश्रमों में होने वाले भंडारे में आप सभी सहपरिवार सादर आमंत्रित है। भंडारे में आकर प्रसाद ग्रहण करें व गरीबदास जी महाराज जी की अमृतवाणी का लाभ उठाएं।
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💫510 वां दिव्य धर्म यज्ञ दिवस, संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में 10 सतलोक आश्रमों में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। निःशुल्क भंडारे के साथ ही बाहर से आने वाले साधनों के लिये पार्किंग की बहुत भी शानदार व्यवस्था है जो निःशुल्क रहेगी।
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💫विक्रमी संवत 1570 (सन 1513) में परमेश्वर कबीर जी ने काशी (उ•प्र•) में 18 लाख साधु संतों को भंडारा करवाया था जो 3 दिन तक कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष को प्रारंभ हुआ था मंगसर (माघशीर्ष) की कृष्ण पक्ष एकम(प्रथमा) को सम्पन्न हुआ था। वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में तीन दिवसीय शुद्ध देसी घी से निर्मित निःशुल्क विशाल भंडारे का आयोजन 10 सतलोक आश्रमों में किया जा रहा है।
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💫संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में 10 सतलोक आश्रमों में नि:शुल्क विशाल धर्म भंडारे का आयोजन किया जा रहा है। इस दिन 510 वर्ष पूर्व कबीर जी ने 18 लाख साधु संतों को ऐसे ही एक दिव्य धर्म भंडारे से तृप्त किया था।
इस महासमागम में संत गरीबदास जी महाराज जी की अमरवाणी का अखंड पाठ, रक्त दान शिविर, दहेज मुक्त विवाह जैसे अद्भुत समाज सेवी कार्य भी किये जायेंगे।
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💫 आज से 510 वर्ष पूर्व काशी नगर में पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी ने अपने अन्य केशो बंजारा रूप में 18 लाख साधु संतों को तीन दिनों तक खुला भंडारा कराया था। इसी उपलक्ष्य में नि:शुल्क विशाल भंडारा व कई धार्मिक आयोजन किये जायेंगे। संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में होने वाले इस महासमागम में पूरा विश्व सादर आमंत्रित है।
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28 नवंबर 2023, सुबह 09:00 बजे साधना tv और popular tv पर।
💫उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम, फिरता दाणे दाणे नूं।
सर्व कला सतगुरु साहेब की, हरि आये हरियाणे नूं।।
जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में कबीर परमेश्वर की लीला के 510 वें दिव्य धर्म यज्ञ दिवस के उपलक्ष्य में 10 सतलोक आश्रमों में विशाल सत्संग, अखंड पाठ, शुद्ध देसी घी से निर्मित विशाल भंडारा, रक्तदान शिविर, नशामुक्त कार्यक्रम, दहेजमुक्त विवाह जैसे अद्भुत समाज सेवी कार्यक्रम सम्पन्न होंगे।
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💫कबीर परमेश्वर की अद्भुत लीला
510 वां दिव्य धर्म यज्ञ दिवस संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में 10 सतलोक आश्रमों में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। आप सभी इस शुद्ध देसी घी से निर्मित भंडारे में सह परिवार सादर आमंत्रित हैं। आश्रम में रहने एवं भोजन भंडारे की व्यवस्था पूर्णतया निःशुल्क रहेगी।
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💫 संत रामपाल जी महाराज के 10 सतलोक आश्रमों में दिव्य धर्म यज्ञ दिवस मनाया जा रहा है। जिसमे संत गरीबदास जी की अमरवाणी का तीन दिवसीय अखंड पाठ व अखंड ज्योति यज्ञ किया जाएगा व नि:शुल्क देसी घी युक्त विशाल भंडारे का आयोजन भी किया जा रहा है। इस अनमोल महासमागम में संपूर्ण विश्व आमंत्रित है।
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💫 पूर्ण परमात्मा के निमित्त किए भंडारे में रचनहार परमात्मा किसी न किसी रूप विराजमान रहते हैं। ऐसे भंडारे में प्रसाद ग्रहण करने वालों के भी बहुत से पापों को परमात्मा नष्ट कर देता है।
ऐसे ही महाभंडारे का आयोजन संत रामपाल जी महाराज के 10 सतलोक आश्रमों में होगा।
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💫 दिव्य धर्म यज्ञ दिवस के उपलक्ष्य में 26 से 28 नवंबर तक संत रामपाल जी के सतलोक आश्रमों में होने वाले भंडारे में आप सभी सहपरिवार सादर आमंत्रित है। भंडारे में आकर प्रसाद ग्रहण करें व गरीबदास जी महाराज जी की अमृतवाणी का लाभ उठाएं।
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💫510 वां दिव्य धर्म यज्ञ दिवस, संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में 10 सतलोक आश्रमों में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। निःशुल्क भंडारे के साथ ही बाहर से आने वाले साधनों के लिये पार्किंग की बहुत भी शानदार व्यवस्था है जो निःशुल्क रहेगी।
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इस महासमागम में संत गरीबदास जी महाराज जी की अमरवाणी का अखंड पाठ, रक्त दान शिविर, दहेज मुक्त विवाह जैसे अद्भुत समाज सेवी कार्य भी किये जायेंगे।
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💫आज से 510 वर्ष पूर्व कपड़ा बुनकर आजीविका चलाने वाले समर्थ कबीर परमेश्वर ने तीन दिन तक 18 लाख साधु संतों को मोहन भंडारे से तृप्त किया था।
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💫उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम, फिरता दाणे दाणे नूं।
सर्व कला सतगुरु साहेब की, हरि आये हरियाणे नूं।।
जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में कबीर परमेश्वर की लीला के 510 वें दिव्य धर्म यज्ञ दिवस के उपलक्ष्य में 10 सतलोक आश्रमों में विशाल सत्संग, अखंड पाठ, शुद्ध देसी घी से निर्मित विशाल भंडारा, रक्तदान शिविर, नशामुक्त कार्यक्रम, दहेजमुक्त विवाह जैसे अद्भुत समाज सेवी कार्यक्रम सम्पन्न होंगे।
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💫कबीर परमेश्वर की अद्भुत लीला
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💫 संत रामपाल जी महाराज के 10 सतलोक आश्रमों में दिव्य धर्म यज्ञ दिवस मनाया जा रहा है। जिसमे संत गरीबदास जी की अमरवाणी का तीन दिवसीय अखंड पाठ व अखंड ज्योति यज्ञ किया जाएगा व नि:शुल्क देसी घी युक्त विशाल भंडारे का आयोजन भी किया जा रहा है। इस अनमोल महासमागम में संपूर्ण विश्व आमंत्रित है।
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28 नवंबर 2023, सुबह 09:00 बजे साधना tv और popular tv पर।
💫 पूर्ण परमात्मा के निमित्त किए भंडारे में रचनहार परमात्मा किसी न किसी रूप विराजमान रहते हैं। ऐसे भंडारे में प्रसाद ग्रहण करने वालों के भी बहुत से पापों को परमात्मा नष्ट कर देता है।
ऐसे ही महाभंडारे का आयोजन संत रामपाल जी महाराज के 10 सतलोक आश्रमों में होगा।
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💫 510 वें दिव्य धर्म यज्ञ दिवस के उपलक्ष्य में देश विदेश के 10 सतलोक आश्रमों में विशाल सत्संग, संत गरीबदास जी महाराज की अमरवाणी का अखंड पाठ, शुद्ध देसी घी से निर्मित विशाल भंडारा, रक्तदान शिविर, नशामुक्त कार्यक्रम, दहेजमुक्त विवाह जैसे अद्भुत समाज सेवी कार्यक्रम जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में सम्पन्न हो रहे हैं।
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💫 दिव्य धर्म यज्ञ दिवस के उपलक्ष्य में 26 से 28 नवंबर तक संत रामपाल जी के सतलोक आश्रमों में होने वाले भंडारे में आप सभी सहपरिवार सादर आमंत्रित है। भंडारे में आकर प्रसाद ग्रहण करें व गरीबदास जी महाराज जी की अमृतवाणी का लाभ उठाएं।
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💫510 वां दिव्य धर्म यज्ञ दिवस, संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में 10 सतलोक आश्रमों में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। निःशुल्क भंडारे के साथ ही बाहर से आने वाले साधनों के लिये पार्किंग की बहुत भी शानदार व्यवस्था है जो निःशुल्क रहेगी।
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💫संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में 10 सतलोक आश्रमों में नि:शुल्क विशाल धर्म भंडारे का आयोजन किया जा रहा है। इस दिन 510 वर्ष पूर्व कबीर जी ने 18 लाख साधु संतों को ऐसे ही एक दिव्य धर्म भंडारे से तृप्त किया था।
इस महासमागम में संत गरीबदास जी महाराज जी की अमरवाणी का अखंड पाठ, रक्त दान शिविर, दहेज मुक्त विवाह जैसे अद्भुत समाज सेवी कार्य भी किये जायेंगे।
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इसी उपलक्ष्य में संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में 10 आश्रमों में विशाल धर्म भंडारे का आयोजन किया जायेगा, जिसमें आप सभी परिवार सहित सादर आमंत्रित हैं।
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जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में कबीर परमेश्वर की लीला के 510 वें दिव्य धर्म यज्ञ दिवस के उपलक्ष्य में 10 सतलोक आश्रमों में विशाल सत्संग, अखंड पाठ, शुद्ध देसी घी से निर्मित विशाल भंडारा, रक्तदान शिविर, नशामुक्त कार्यक्रम, दहेजमुक्त विवाह जैसे अद्भुत समाज सेवी कार्यक्रम सम्पन्न होंगे।
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💫कबीर परमेश्वर की अद्भुत लीला
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💫 संत रामपाल जी महाराज के 10 सतलोक आश्रमों में दिव्य धर्म यज्ञ दिवस मनाया जा रहा है। जिसमे संत गरीबदास जी की अमरवाणी का तीन दिवसीय अखंड पाठ व अखंड ज्योति यज्ञ किया जाएगा व नि:शुल्क देसी घी युक्त विशाल भंडारे का आयोजन भी किया जा रहा है। इस अनमोल महासमागम में संपूर्ण विश्व आमंत्रित है।
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💫 पूर्ण परमात्मा के निमित्त किए भंडारे में रचनहार परमात्मा किसी न किसी रूप विराजमान रहते हैं। ऐसे भंडारे में प्रसाद ग्रहण करने वालों के भी बहुत से पापों को परमात्मा नष्ट कर देता है।
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💫 दिव्य धर्म यज्ञ दिवस के उपलक्ष्य में 26 से 28 नवंबर तक संत रामपाल जी के सतलोक आश्रमों में होने वाले भंडारे में आप सभी सहपरिवार सादर आमंत्रित है। भंडारे में आकर प्रसाद ग्रहण करें व गरीबदास जी महाराज जी की अमृतवाणी का लाभ उठाएं।
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💫विक्रमी संवत 1570 (सन 1513) में परमेश्वर कबीर जी ने काशी (उ•प्र•) में 18 लाख साधु संतों को भंडारा करवाया था जो 3 दिन तक कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष को प्रारंभ हुआ था मंगसर (माघशीर्ष) की कृष्ण पक्ष एकम(प्रथमा) को सम्पन्न हुआ था। वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में तीन दिवसीय शुद्ध देसी घी से निर्मित निःशुल्क विशाल भंडारे का आयोजन 10 सतलोक आश्रमों में किया जा रहा है।
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28 नवंबर 2023, सुबह 09:00 बजे साधना tv और popular tv पर।
💫संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में 10 सतलोक आश्रमों में नि:शुल्क विशाल धर्म भंडारे का आयोजन किया जा रहा है। इस दिन 510 वर्ष पूर्व कबीर जी ने 18 लाख साधु संतों को ऐसे ही एक दिव्य धर्म भंडारे से तृप्त किया था।
इस महासमागम में संत गरीबदास जी महाराज जी की अमरवाणी का अखंड पाठ, रक्त दान शिविर, दहेज मुक्त विवाह जैसे अद्भुत समाज सेवी कार्य भी किये जायेंगे।
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💫आज से 510 वर्ष पूर्व कपड़ा बुनकर आजीविका चलाने वाले समर्थ कबीर परमेश्वर ने तीन दिन तक 18 लाख साधु संतों को मोहन भंडारे से तृप्त किया था।
इसी उपलक्ष्य में संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में 10 आश्रमों में विशाल धर्म भंडारे का आयोजन किया जायेगा, जिसमें आप सभी परिवार सहित सादर आमंत्रित हैं।
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💫 आज से 510 वर्ष पूर्व काशी नगर में पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी ने अपने अन्य केशो बंजारा रूप में 18 लाख साधु संतों को तीन दिनों तक खुला भंडारा कराया था। इसी उपलक्ष्य में नि:शुल्क विशाल भंडारा व कई धार्मिक आयोजन किये जायेंगे। संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में होने वाले इस महासमागम में पूरा विश्व सादर आमंत्रित है।
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💫उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम, फिरता दाणे दाणे नूं।
सर्व कला सतगुरु साहेब की, हरि आये हरियाणे नूं।।
जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में कबीर परमेश्वर की लीला के 510 वें दिव्य धर्म यज्ञ दिवस के उपलक्ष्य में 10 सतलोक आश्रमों में विशाल सत्संग, अखंड पाठ, शुद्ध देसी घी से निर्मित विशाल भंडारा, रक्तदान शिविर, नशामुक्त कार्यक्रम, दहेजमुक्त विवाह जैसे अद्भुत समाज सेवी कार्यक्रम सम्पन्न होंगे।
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💫कबीर परमेश्वर की अद्भुत लीला
510 वां दिव्य धर्म यज्ञ दिवस संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में 10 सतलोक आश्रमों में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। आप सभी इस शुद्ध देसी घी से निर्मित भंडारे में सह परिवार सादर आमंत्रित हैं। आश्रम में रहने एवं भोजन भंडारे की व्यवस्था पूर्णतया निःशुल्क रहेगी।
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💫 संत रामपाल जी महाराज के 10 सतलोक आश्रमों में दिव्य धर्म यज्ञ दिवस मनाया जा रहा है। जिसमे संत गरीबदास जी की अमरवाणी का तीन दिवसीय अखंड पाठ व अखंड ज्योति यज्ञ किया जाएगा व नि:शुल्क देसी घी युक्त विशाल भंडारे का आयोजन भी किया जा रहा है। इस अनमोल महासमागम में संपूर्ण विश्व आमंत्रित है।
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💫 पूर्ण परमात्मा के निमित्त किए भंडारे में रचनहार परमात्मा किसी न किसी रूप विराजमान रहते हैं। ऐसे भंडारे में प्रसाद ग्रहण करने वालों के भी बहुत से पापों को परमात्मा नष्ट कर देता है।
ऐसे ही महाभंडारे का आयोजन संत रामपाल जी महाराज के 10 सतलोक आश्रमों में होगा।
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💫 510 वें दिव्य धर्म यज्ञ दिवस के उपलक्ष्य में देश विदेश के 10 सतलोक आश्रमों में विशाल सत्संग, संत गरीबदास जी महाराज की अमरवाणी का अखंड पाठ, शुद्ध देसी घी से निर्मित विशाल भंडारा, रक्तदान शिविर, नशामुक्त कार्यक्रम, दहेजमुक्त विवाह जैसे अद्भुत समाज सेवी कार्यक्रम जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में सम्पन्न हो रहे हैं।
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💫 दिव्य धर्म यज्ञ दिवस के उपलक्ष्य में 26 से 28 नवंबर तक संत रामपाल जी के सतलोक आश्रमों में होने वाले भंडारे में आप सभी सहपरिवार सादर आमंत्रित है। भंडारे में आकर प्रसाद ग्रहण करें व गरीबदास जी महाराज जी की अमृतवाणी का लाभ उठाएं।
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28 नवंबर 2023, सुबह 09:00 बजे साधना tv और popular tv पर।
💫510 वां दिव्य धर्म यज्ञ दिवस, संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में 10 सतलोक आश्रमों में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। निःशुल्क भंडारे के साथ ही बाहर से आने वाले साधनों के लिये पार्किंग की बहुत भी शानदार व्यवस्था है जो निःशुल्क रहेगी।
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[21/11, 07:04] नवीन भगत: 🔸️काशी का अद्भुत विशाल भंडारा🔸️
600 वर्ष पूर्व परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी द्वारा इस लोक में ऐसे कई चमत्कार किए गए हैं जो मात्र ईश्वर द्वारा किए जा सकते हैं। किसी मायावी अथवा साधारण व्यक्ति द्वारा यह संभव नहीं हैं जैसे भैंसे से वेद मंत्र बुलवाना, सिकंदर लोदी के जलन का रोग ठीक करना, मुर्दे को जीवित करना, यह शक्ति मात्र ईश्वर के पास होती है तथा इसके अतिरिक्त काशी में बहुत विशाल भंडारे का आयोजन करना।
शेखतकी ने काशी के सारे हिन्दू, मुसलमान, पीर पैगम्बर, मुल्ला काजी और पंडितो को इकट्ठा करके कबीर परमेश्वर के खिलाफ षडयंत्र रचा। सोचा कबीर निर्धन व्यक्ति है। इसके नाम से पत्र भेज दो की कबीर जी काशी में बहुत बड़े सेठ हैं। वह काशी शहर में तीन दिन का धर्म भोजन-भण्डारा करेंगे। सर्व साधु संत आमंत्रित हैं। पूरे हिंदुस्तान में झूठी चिट्ठियां भेजकर खूब प्रचार करवा दिया की प्रतिदिन प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर (कीमती कम्बल) और एक सोने की मोहर दक्षिणा में देगें। एक महीने पहले ही प्रचार शुरू कर दिया और देखते ही देखते पूरे हिंदुस्तान से 18 लाख भक्त तथा संत व अन्य व्यक्ति लंगर खाने काशी में चौपड़ के बाजार में आकर इकट्ठे हो गए। जब संत रविदास जी को यह खबर लगी तो कबीर जी से पूरा हाल बयां किया। परमात्मा कबीर जी तो जानीजान थे। फिर भी अभिनय कर रहे थे। रविदास जी से कहा कि रविदास जी झोपड़ी के भीतर आ जाओ और कुंडी लगा लो हम सुबह होते ही यहां से निकल लेंगें इस बार तो हमारे ऊपर बड़ा जुल्म कर दिया है इन लोगों ने।
एक तरफ तो परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी अपनी झोपड़ी में बैठे थे और दूसरी तरफ परमेश्वर कबीर जी अपनी राजधानी सतलोक में पहुँचे। वहां से केशव नाम के बंजारे का रूप धारण करके कबीर परमात्मा 9 लाख बैलों के ऊपर बोरे (थैले) रखकर उनमें पका-पकाया भोजन (खीर, पूड़ी, हलुवा, लड्डू, जलेबी, कचौरी, पकोडी, समोसे, रोटी दाल, चावल, सब्जी आदि) भरकर सतलोक से काशी नगर की ओर चल पड़े। सतलोक की हंस आत्माएं ही 9 लाख बैल बनकर आए थे। केशव रूप में कबीर परमात्मा एक तंबू में डेरा देकर बैठ गए और भंडारा शुरू हुआ। बेईमान संत तो दिन में चार-चार बार भोजन करके चारों बार दोहर तथा मोहर ले रहे थे। कुछ सूखा सीधा (चावल, खाण्ड, घी, दाल, आटा) भी ले रहे थे।
इस भंडारे की खास बात यह थी कि परमेश्वर के भोग लगे पवित्र भंडारे प्रसाद को खाने से कोटि-कोटि पापनाश हो जाते हैं जिसका प्रमाण गीता अध्याय-3 श्लोक-13 में है।
धर्म यज्ञ बहुत श्रेष्ठ होती हैं भोजन भंडारा करवाना धर्म यज्ञ में आता है भंडारे से वर्षा होती है वर्षा से धन-धान्य की उपज होती है जिससे सभी जीवों का पेट भरता और पुण्य मिलता है।
ऐसे पुण्य के कार्य वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज जी द्वारा किए जा रहे हैं उनके सानिध्य में 10 जगहों पर तीन दिवसीय विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है इस भंडारे में शुद्ध देशी घी के पकवान जैसे रोटी, पूरी, सब्जी, लड्डू, जलेबी, हलवा, बूंदी आदि–आदि बनाए जाते हैं। जो पूर्ण परमेश्वर को भोग लगाने के पश्चात भंडारा करवाया जाता है। इस समागम में लाखों की संख्या में देश विदेश से आए श्रद्धालुों का तांता लगा रहा रहता है। परमेश्वर की अमर वाणी का अखंड पाठ, निःशुल्क नामदीक्षा चौबीसों घंटे चलती रहेगी। जिसमें आप सभी सादर आमंत्रित हैं।
#MiracleOfGodKabir_In_1513
#दिव्य_धर्म_यज्ञ_दिवस
26-27-28 नवंबर 2023
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[21/11, 07:04] नवीन भगत: 🦋परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी का काशी का दिव्य भंडारा🦋
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी, जिन्हें आम समाज एक कवि, संत मानता है, कलयुग में भारत के काशी शहर के लहरतारा तालाब में ज्येष्ठ मास शुक्ल पूर्णमासी विक्रम संवत 1455 (सन् 1398) सुबह ब्रह्म मुहूर्त में कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए थे, वे 120 वर्ष तक रहे और अंत समय मगहर से सशरीर सतलोक गमन किया।
“गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मांड में, बन्दी छोड़ कहाय।
सो तौ एक कबीर हैं, जननी जन्या न माय।।”
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी, अज्ञान में सोए मानव समाज को ज���ाने के लिए और पूर्ण मोक्ष प्रदान करने के लिए, हर युग में लीला करने आते हैं और अपनी महिमा का ज्ञान स्वयं ही कराते हैं। परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी की बढ़ती महिमा को देखकर उस समय के धर्मगुरु उनसे ईर्ष्या करने लगते हैं।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी के आशीर्वाद मात्र से दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी का जलन का रोग ठीक हो गया था और सिकंदर लोधी कबीर परमेश्वर के शिष्य बन गए थे जिससे मुस्लिम पीर शेखतकी आग बबूला हो गया।
“झूठा प्रचार किया किसी मूरख ने, कबीर करे भंडारा। दो रोटी का साधन ना था, वहां भेख जुड़ा अति भारा।।
बण आया केशो बणजारा, ये होता हिमाती है।”
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी को बदनाम करने के उद्देश्य से पाखण्डी पंडितों, काजी, मौलवियों ने शेखतकी के नेतृत्व में षड्यंत्र करके कबीर परमात्मा के नाम से झूठी चिट्ठी बंटवा दी कि कबीर जी विशाल भंडारा कर रहे हैं, साथ में सोने का सिक्का तथा रियासती कम्बल भी बांटेंगे।
कबीर गोसांई, रसोई दीन्हीं, आपै केशो बनि करि आये।
परानंदनी जा कै द्वारै, बहु बिधि भेष छिकाये।।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी ने दो रूप में अभिनय किया था, एक रूप में तो गरीब जुलाहे के रूप में अपनी कुटिया में बैठे रहे व दूसरे रूप में अपने सतलोक से 9 लाख बैलों पर थैले रखकर पका-पकाया सामान तथा सूखा सामान तथा दोहर-मोहर भरकर ले आए। तीन दिन तक लगभग 18 लाख व्यक्तियों को सदाव्रत भंडारे से नवाज़ा, तथा 8 पहर (24 घंटे) तक सत्संग कर सतज्ञान समझाया, जिसे सुनकर कई लाख साधु, संतो ने नाम दीक्षा ली व अपना कल्याण करवाया।
सकल संप्रदा त्रिपती, तीन दिन जौंनार।
गरीबदास षट दर्शनं, सीधे गंज अपार।।
नौलख बोडी भरी विश्म्भर, दिया कबीर भण्डारा।
धरती उपर तम्बू ताने, चौपड़ के बैजारा।।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी ने काशी में तीन दिन का विशाल भंडारा किया (जग जौनार)। नौ लाख बैलों पर बोरे रखकर सतलोक से भण्डारे की सामग्री आयी।
केशव और कबीर जित, मिलत भये तहां एक।
दास गरीब कबीर हरी, धरते नाना भेख।।
बनजारे और बैल सब, लाए थे भर माल।
गरीबदास सत्यलोक कूं, चले गये ततकाल।।
भण्डारे के बाद केशव जी कबीर साहेब में समा गये। सर्व सेवादार बंजारे और बैल सतलोक चले गये। परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी अनेकों लीलाएं करते हैं।
जब भंडारे को देखकर परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी की जय-जयकार होने लगी तो शेख तकी ने उसे महौछा कहा।
संत गरीबदास जी ने उस भण्डारे के विषय में जिसकी जैसी विचारधारा थी, वह बताई-
गरीब, कोई कहे जग जौनार करी है, कोई कहे महौछा। बड़े बड़ाई कर्या करें, गाली काढ़ै औछा।।
भावार्थ है कि जो भले पुरूष थे, वे तो बड़ाई कर रहे थे कि जग जौनार करी है। जो विरोधी थे, ईर्ष्यावश कह रहे थे कि क्या खाक भण्डारा किया है, यह तो महौछा-सा किया है। जब शेखतकी ने ये वचन कहे तो गूंगा तथा बहरा हो गया, शेष जीवन पशु की तरह जीया। अन्य के लिए उदाहरण बना कि अपनी ताकत का दुरूपयोग करना अपराध होता है, उसका भयंकर फल भोगना पड़ता है।
केशव आन भया बनजारा षट्दल किन्ही हाँस है।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी स्वयं आकर (आन) केशव बनजारा बने। षट्दल कहते हैं गिरी-पुरी, नागा-नाथ, वैष्णों, सन्यासी, शैव आदि छः पंथों के व्यक्तियों को जिन्होंने हँसी-मजाक करके चिट्ठी डाली थी।
परमात्मा ने यह सिद्ध किया है कि भक्त सच्चे दिल से मेरे पर विश्वास करके चलता है तो मैं उसकी ऐसे सहायता करता हूँ।
जब परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी कुटिया से बाहर हाथी पर बैठने के लिए आए तो आकाश से फूल बरसने लगे और कबीर परमात्मा के सिर के ऊपर अपने आप मनोहर मुकुट आकर सुशोभित हो गया और केशो बंजारा के टेन्ट में आकर विराजमान हो गए। जहाँ अठारह लाख व्यक्ति ठहरे थे। भंडारे वाले स्थान पर सभी परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी की जय बोल रहे थे और कह रहे थे जय हो कबीर सेठ की, जैसा लिखा था वैसा ही भंडारा कराया है। ऐसी व्यवस्था कहीं देखी ना सुनी। ऐसा कार्य सिर्फ पूर्ण परमेश्वर ही कर सकते हैं। भोजन खाने का स्थान लंबा-चौड़ा था।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी को देखने के लिए सब साधु-संत आकर चारों ओर बैठ गए । परमात्मा कबीर जी ने अपने केशव रूप के साथ (आठ पहर) चौबीस घंटे लगातार आध्यात्मिक गोष्ठी की, तत्वज्ञान सुनाया। लगभग दस लाख उन भ्रमित साधुओं के शिष्यों ने कबीर जी से दीक्षा ली और जीवन सफल किया।
‘‘एक अन्य करिश्मा जो उस भण्डारे में हुआ’’ वह जीमनवार (लंगर) तीन दिन तक चला था। दिन में प्रत्येक व्यक्ति कम से कम दो बार भोजन खाता था। कुछ तो तीन-चार बार भी खाते थे क्योंकि प्रत्येक भोजन के पश्चात् दक्षिणा में एक मोहर (10 ग्राम सोना) और एक दोहर (कीमती सूती शाॅल) दिया जा रहा था। इस लालच में बार-बार भोजन खाते थे। तीन दिन तक 18 लाख व्यक्ति शौच तथा पेशाब करके काशी के चारों ओर ढे़र लगा देते। काशी को सड़ा देते। काशी निवासियों तथा उन 18 लाख अतिथियों तथा एक लाख सेवादार जो सतलोक से आए थे। उस गंद का ढ़ेर लग जाता, श्वांस लेना दूभर हो जाता, परंतु ऐसा महसूस ही नहीं हुआ। सब दिन में दो-तीन बार भोजन खा रहे थे, परंतु शौच एक बार भी नहीं जा रहे थे, न पेशाब कर रहे थे।
सतलोक से आए सेवकों को समस्या बताई तो उन्होंने कहा कि यह भोजन ऐसी जड़ी-बूटियां डालकर बनाया है जिनसे यह शरीर में ही समा जाएगा। हम तो प्रतिदिन यही भोजन अपने लंगर में बनाते हैं, यही खाते हैं। हम कभी शौच नहीं जाते तथा न पेशाब करते हैं। आप निश्चिंत रहो।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में ऐसे अनेक धार्मिक भंडारों का आयोजन किया जाता रहा है। आगामी 26-28 नवंबर को "दिव्य धर्म भंडारे" का आयोजन किया जा रहा है। 10 आश्रमों में तीन दिवसीय भण्डारे के साथ आदरणीय गरीबदास जी महाराज की वाणी का अखंड पाठ, सत्संग, दहेजमुक्त विवाह, रक्तदान, देहदान शिविर का भी आयोजन होगा। इसके अतिरिक्त उनके सभी आश्रमों में वर्षभर (365 दिन) सदाव्रत भंडारा भी चलता है।
धर्म यज्ञ बहुत श्रेष्ठ होती है। भोजन भंडारा करवाना धर्म यज्ञ में आता है। भंडारे से वर्षा होती है। पर्यावरण-वातावरण में भी बड़े बदलाव लाता है, वर्षा से धन-धान्य की उपज होती है जिससे सभी जीवों का पेट भरता है और पुण्य मिलता है।धर्म भंडारा करोड़ों पापों और रोगों को नष्ट करने में सक्षम है।
सर्वप्रथम पूर्ण परमात्मा को हलवा, बूंदी, जलेबी, रोटी, पूरी, सब्जी आदि-आदि पकवान का भोग लगाकर, जिससे भोजन पवित्र प्रसाद बन जाता है, भंडारा करवाया जाता है।
परमेश्वर के भोग लगे पवित्र भंडारे प्रसाद को खाने से कोटि-कोटि पाप नाश हो जाते हैं (गीता अ-3, श्लोक-13) क्योंकि सत्पुरुष पूर्ण परमात्मा को भोग लगाकर संगत में वितरित किया जाता है।
पूर्ण संत को दिए दान, धर्म भंडारे से करोडों पाप व दुःख नाश होते हैं। बहुत पुण्य मिलता है तथा पितरों की भी मुक्ति हो जाती है।
भंडारा सभी देशवासियों के लिए पूर्णतया निःशुल्क है और सभी के लिए सार्वजनिक खुला भंडारा है। आप भी इस भंडारे में अवश्य आइए और अपना कल्याण करवाइए।
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परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी बहुत सी लीलाएं करके चले गए। कबीर साहेब की लीलाओं का जिक्र कबीर सागर में भी मिलता है। परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी के 64 लाख शिष्य थे।
शेखतकी सब मुसलमानों का मुख्य पीर (गुरू) था जो परमात्मा कबीर जी से पहले से ईर्ष्या रखता था। सर्व ब्राह्मणों तथा मुल्ला-काजियों व शेखतकी ने षड़यंत्र के तहत एक योजना बनाई कि कबीर निर्धन व्यक्ति है। इसके नाम से एक झूठा पत्र भेज दो कि कबीर जी काशी में बहुत बड़े सेठ हैं। उनका पूरा पता है कबीर पुत्र नूरअली अंसारी, जुलाहों वाली कॉलोनी, काशी शहर। कबीर जी तीन दिन का धर्म भोजन-भण्डारा करेंगे। सर्व साधु संत आमंत्रित हैं। और परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी के नाम पर झूठी चिठ्ठी मानव समाज में भेज दी।
और इसी के चलते प्रतिदिन प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर (जो उस समय का सबसे कीमती कम्बल के स्थान पर माना जाता था), एक मोहर (10 ग्राम स्वर्ण से बनी गोलाकार की मोहर) दक्षिणा में देगें। प्रतिदिन जो जितनी बार भी भोजन करेगा, कबीर जी उसको उतनी बार ही दोहर तथा मोहर दान करेगे। भोजन में लड्डू, जलेबी, हलवा, खीर, दही बड़े, माल पूडे़, रसगुल्ले आदि-2 सब मिष्ठान खाने को मिलेंगे। सुखा सीधा (आटा, चावल, दाल आदि सूखे जो बिना पकाए हुए, घी-बूरा) भी दिया जाएगा।
परमात्मा कबीर साहेब जी अपना दूसरा रूप बनाकर सतलोक पहुँचे वहा से पका पकाया भोजन नौ लाख बेलो पर रखकर काशी उस पावन धरती पर उतरे जहाँ विशाल भंडारा शुरू किया जा रहा था कबीर साहेब जी अपना दूसरा रूप बनाकर केशो नाम रखकर एक टेन्ट में विराजमान हो गए और भंडारा शुरू कर दिया एक दिन के 18 लाख व्यक्तियों को वह मोहन भोजन करवाया (जिसमे भोजन में लड्डू, जलेबी, हलवा, खीर, दही बड़े, माल पूडे़, रसगुल्ले आदि-2)और प्रतिदिन प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर (जो उस समय का सबसे कीमती कम्बल के स्थान पर माना जाता था), एक मोहर (10 ग्राम स्वर्ण से बनी गोलाकार की मोहर) दक्षिणा में दी जा रही थी।
ऐसे भण्डारे करने से पाँचों यज्ञ पूरी होती है। जिसे
प्राकृतिक संतुलन बना रहता है। और समय-समय पर बारिश होती है पृथ्वी पर हाहाकार समाप्त होती है। प्रत्येक व्यक्ति सुखी जीवन जीता है।
धर्म यज्ञ बहुत श्रेष्ठ होती है। भोजन भंडारा करवाना धर्म यज्ञ में आता है। भंडारे से वर्षा होती है। वर्षा से धन-धान्य की उपज होती है जिससे सभी जीवों का पेट भरता है और पुण्य मिलता है।
सर्वप्रथम पूर्ण परमात्मा को भोग लगाकर भोजन भंडारा करवाया जाना जिससे भोजन पवित्र प्रसाद बन जाता है।
परमेश्वर के भोग लगे पवित्र भंडारे प्रसाद को खाने से कोटि-कोटि पाप नाश हो जाते है।प्रमाण:- (गीता अ-3, श्लोक-13)।
आज वर्तमान समय में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज ऐसे विशाल भंडारे का आयोजन कर रहे हैं जिसमें सभी धार्मिक अनुष्ठान पांचों यज्ञ का भी प्रावधान किया जाएगा।
अमूमन देखा गया है कि अन्य संतो के भंडारों में पूडी, सब्जी खिला कर आने वाले श्रद्धालुओं को फारिग किया जाता है वहीं संत रामपाल जी महाराज जो विशाल भंडारे आयोजित करते है उसमें देशी घी से निर्मित लड्डू जलेबी व अन्य पकवान खिलाये जाते है जिसके लिए कोई पर्ची नहीं काटी जाती साथ ही जाते समय प्रसाद घर के लिए दिया जाता है यह कोई आम बात नहीं क्योंकि उनके प्रत्येक भंडारे में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में होती है और यह सिर्फ एक जगह ही नहीं की जगहों पर एकसाथ आयोजित होता है ।
आगामी 26-28 नवम्बर को जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज जी के सानिध्य में विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है। यह समागम 10 जगहों पर आयोजित किया है जिसमें पूरे विश्व को सादर निमंत्रण है।
यह सिर्फ पूर्ण संत ही कर सकता है।
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510वें “दिव्य धर्म यज्ञ दिवस” पर जानिए परमेश्वर कबीर जी को 18 लाख साधु संतों को क्यों कराना पड़ा भण्डारा?”
विक्रम संवत 1570 (सन् 1513) में परमेश्वर कबीर जी ने काशी (उत्तरप्रदेश, भारत) में 3 दिन का विशाल भंडारा दिया था जिसमें 18 लाख साधु संत आये थे। दरअसल हुआ यह कि शेखतकी जो बादशाह सिकंदर लोदी का धर्मगुरु था वह कबीर परमेश्वर की बढ़ती ख्याति के कारण उनसे ईर्ष्या करने लगा था। काशी के ब्राह्मण तो पहले से ही उनसे खार खाए बैठे थे। कबीर परमेश्वर के सतज्ञान के कारण ब्राह्मणों की हिन्दुओं पर और काजी मौलवियों की मुसलमानों पर पकड़ कमजोर पड़ रही थी। कर्मकांडों से होने वाली उनकी आय लगभग खत्म होने के कगार पर थी। सभी ब्राह्मणों और मुल्ला-काजियों ने शेखतकी के साथ मिलकर षड़यंत्र के तहत एक योजना बनाई कि कबीर परमेश्वर को फँसाया जाए जिससे वे काशी छोड़कर भाग जाएं। उन्होंने ये युक्ति बनाई कि कबीर एक निर्धन व्यक्ति है, इसके नाम से पत्र पूरे भारतवर्ष के साधु संतों को भेजा जाए कि कबीर जुलाहा काशी में तीन दिन का धर्म भोजन-भण्डारा करेंगे। सारे साधु संत आमंत्रित हैं। साथ में अपने सर्व शिष्यों को अवश्य लाएँ। तीनों दिन प्रत्येक भोजन के पश्चात् प्रत्येक साधु-संत, ब्राह्मण, काजी-मुल्ला, पीर-पैगम्बर, औलिया को एक दोहर, एक मोहर तथा जो कोई सूखा-सीधा (आटा, मिठाई, घी, दाल, चावल) भी लेना चाहे तो वह भी दिया जाएगा। निश्चित दिन से पहले वाली रात्रि को ��ी साधु-संत भक्त एकत्रित होने लगे। लगभग 18 लाख साधु-संत काशी शहर में एकत्रित हो गए।
सिमटि भेष इकट्टा हुवा, काजी पंडित मांहि।
गरीबदास चिठ्ठा फिर्या, जंबूदीप सब ठांहि।।
मसलति करी मिलाप से, जीवन जन्म कछु नांहि।
गरीबदास मेला सही, भेष समेटे तांहि।।
सेतबंध रामेश्वरं, द्वारका गढ़ गिरनार।
गरीबदास मुलतान मग, आये भेष अपार।।
हरिद्वार बदरी विनोद, गंगा और किदार।
गरीबदास पूरब सजे, ना कछु किया बिचार।।
अठारह लाख दफतर चढे़, अस्तल बंध मुकाम।
गरीबदास अनाथ जीव, और केते उस धाम।।
🌿 कबीर परमेश्वर केशव बंजारे के रूप में सतलोक से भोजन लाए
झूटे निमंत्रण से अठारह लाख तो साधु-संत व उनके शिष्य काशी में आए थे। इसके अतिरिक्त अनेकों अनाथ (बिना बुलाए) व्यक्ति भोजन खाने व दक्षिणा लेने आए थे। जब कबीर परमेश्वर ने दो रूप में अभिनय किया। एक रूप में तो अपनी कुटिया में बैठे रहे। दूसरे रूप में अपने सतलोक से 9 लाख बैलों पर थैले रखकर पका-पकाया सामान तथा सूखा सामान तथा दोहर-मोहर भरकर केशव बंजारे के रूप में साथ ले आए। (बोरे जो वर्तमान में गधों पर रखते हैं। उस समय बनजारे अर्थात् व्यापारी बैलों पर रखकर माल एक मण्डी से दूसरी मण्डी में ट्रान्सपोर्ट करते थे।)
काशी के बाजार में टैंट लगाकर सारा सामान टैंटों में रख दिया और कुछ सेवादार भी सतलोक से साथ आए थे जो सर्व व्यवस्था संभाल रहे थे। भण्डारा शुरू कर दिया, तीन दिन तक चिट्ठी में लिखे अनुसार सर्व दक्षिणा दी गई। उस समय भोजन-भण्डारे में दिल्ली का राजा सिकन्दर लोदी भी आया था तथा उसका निजी पीर शेखतकी भी आया था। शेखतकी उपरोक्त षड़यंत्र का मुख्य सदस्य था। उसने सिकंदर लोदी को भी पत्र भिजवाया। वह चाहता था कि किसी तरह सिकंदर लोदी के दिल से कबीर जी उतरें और मेरी पूर्ण महिमा बने। उस शेख का अनुमान था कि अबकी बार कबीर काशी से भाग जाएगा और भण्डारे में पहुँचे साधु कबीर को गालियाँ दे रहे होंगे। राजा भी कबीर परमेश्वर जी का प्रसंशक नहीं रहेगा। परंतु जब भण्डारे के स्थान पर पहुँचे तो देखा, लंगर चल रहा है, सर्व दक्षिणा दी जा रही है। सब साधु तथा अन्य व्यक्ति भोजन खाकर दक्षिणा लेकर कबीर सेठ की जय-जयकार कर रहे हैं।
केशो आया है बनजारा,काशील्याया मालअपारा।।टेक।।
नौलख बोडी भरी विश्म्भर, दिया कबीर भण्डारा।
धरती उपर तम्बू ताने, चैपड़ के बैजारा।।1।।
कौन देश तैं बालद आई, ना कहीं बंध्या निवारा।
अपरम्पार पार गति तेरी, कित उतरी जल धारा।।2।।
शाहुकार नहीं कोई जाकै, काशी नगर मंझारा।
दास गरीब कल्प से उतरे, आप अलख करतारा।।3।।
🍀सारी लीला कबीर परमेश्वर ने की.....
बादशाह सिकंदर लोदी ने पता किया कि भण्डारा करने वाला कहाँ है? बताया गया कि उस सामने वाले बड़े टैंट (तम्बू) में है। राजा तथा शेखतकी उस तम्बू में गए और पहले अपना परिचय दिया, फिर उसका परिचय पूछा। तम्बू में बैठे सेठ ने परिचय बताया कि मेरा नाम केशव है, मैं बनजारा हूँ। कबीर जी मेरे मित्र हैं। उनका मेरे पास संदेश गया था कि एक छोटा-सा भण्डारा करना है, कुछ सामान लेकर आना। मेरा भी निमंत्रण भेजा था। राजा सिकंदर लोदी ने पूछा कि कबीर जी क्यों नहीं आए? केशव रूपधारी परमेश्वर ने कहा मैं जो बैठा हूँ उनका नौकर, वे मालिक हैं, इच्छा होगी, तब चले आएंगे। उनकी कृपा तथा आदेश से सब ठीक चल रहा है। आप जी भी भोजन करें। राजा ने कहा पहले उस शुभान अल्लाह के दर्शन करूँगा, बाद में भोजन करूँगा। यह कहकर हाथी पर बैठकर राजा सिकंदर कबीर जी की कुटिया पर पहुँचे। साथ में कई अंगरक्षक भी थे।
कबीर परमेश्वर जी को संत रविदास जी ने सुबह ही बता दिया था कि हे कबीर जी! आज तो विरोधियों ने बनारस छोड़कर भगाने का कार्य कर दिया। आपके नाम से पत्र भेज रखे हैं और ऐसा-ऐसा लिखा है। लगभग 18 लाख व्यक्ति साधु-संत लंगर खाने पहुँच चुके हैं। कबीर परमेश्वर जी ने कहा कि मित्र आजा बैठ जा! दरवाजा बंद करके सांगल लगा ले। आज-आज का दिन बिताकर रात्रि में अपने परिवार को लेकर भाग जाऊँगा। कहीं अन्य शहर-गाँव में निर्वाह कर लूंगा। जब उनको कुछ खाने को मिलेगा ही नहीं तो झल्लाकर गाली-गलौच करके चले जाएंगे। हम सांकल खोलेंगे ही नहीं, यदि किवाड़ तोड़ेंगे तो हाथ जोड़ लूंगा कि मेरा सामर्थ्य आप जी को भण्डारा कराने का नहीं है। गलती से पत्र डाले गए, मारो भावें छोड़ो। दोनों संत माला लेकर भक्ति करने लगे। मुँह बोले माता-पिता तथा मृतक जीवित किए हुए लड़का तथा लड़की सुबह सैर को गए थे। इतने में दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोदी ने दरवाजा खटखटाया और अपना परिचय देकर बताया कि आपका दास सिकंदर आया है, आपके दर्शन करना चाहता है। परमेश्वर कबीर जी ने कहा राजन! आज दरवाजा नहीं खोलूंगा। मेरे नाम से झूठी चिट्ठियाँ भेज रखी हैं, लाखों संत-भक्त पहुँच चुके हैं। रात्रि होते ही मैं अपने परिवार को लेकर कहीं दूर चला जाऊँगा। सिकंदर लोदी ने कहा परवरदिगार! आप मुझे नहीं बहका सकते, मैं आपको निकट से जान चुका हूँ। आप एक बार दरवाजा खोलो, मैं आपके दर्शन करके ही जलपान करूँगा।
काशी में सब तरफ परमात्मा की जय जयकार हो रही थी!
परमेश्वर की आज्ञा से रविदास जी ने दरवाजा खोला तो सिकंदर लोदी मुकट पहने-पहने ही चरणों में लोट गया और बताया कि आप अपने आपको छिपाकर बैठे हो, आपने कितना सुंदर भण्डारा लगा रखा है। आपका मित्र केशव आपके संदेश को पाकर सर्व सामान लेकर आया है। आपके नाम का अखण्ड भण्डारा चल रहा है। सर्व अतिथि आपके दर्शनाभिलाषी हैं। कह रहे हैं कि देखें तो कौन है कबीर सेठ जिसने ऐसे खुले हाथ से लंगर कराया है। मेरी भी प्रार्थना है कि आप एक बार भण्डारे में घूमकर सबको दर्शन देकर कृतार्थ करें।
तब परमेश्वर कबीर जी उठे और कुटिया से बाहर आए तो आकाश से कबीर जी पर फूलों की वर्षा होने लगी तथा आकाश से आकर सिर पर सुन्दर मुकुट अपने आप पहना गया। तब हाथी पर बैठकर कबीर जी तथा रविदास जी व राजा चले तो सिकंदर लोदी परमेश्वर कबीर जी पर चंवर करने लगे और पीलवान से कहा कि हाथी को भण्डारे के साथ से लेकर चल। जो भी देखे और पूछे काशी वालों से कि कबीर सेठ कौन-सा है, उत्तर मिले कि जिसके सिर पर मोरपंख वाला मुकुट है, वह है कबीर सेठ जिस पर सिकंदर लोदी दिल्ली के बादशाह चंवर कर रहे हैं। सब एक स्वर म��ं जय बोल रहे थे। जय हो कबीर सेठ की, जैसा लिखा था, वैसा ही भण्डारा कराया है। ऐसी व्यवस्था कहीं देखी न सुनी। भोजन खाने का स्थान बहुत लम्बा-चौड़ा था। उसमें घूमकर फिर वहाँ पर आए जहाँ पर केशव टैंट में बैठा था। हाथी से उतरकर कबीर जी तम्बू में पहुँचे तो अपने आप एक सुंदर पलंग आ गया, उसके ऊपर एक गद्दा बिछ गया, ऊपर गलीचे बिछ गए जिनकी झालरों में हीरे, पन्ने, लाल लगे थे। टैंट को ऊपर कर दिया गया जो दो तरफ से बंद था।
🌱 कबीर परमेश्वर जी ने आठ पहर तत्त्वज्ञान सुनाया - दस लाख ने ली नामदीक्षा
खाना खाने के पश्चात् सब दर्शनार्थ वहाँ आने लगे, तब परमेश्वर कबीर जी ने उन परमात्मा के लिए घर त्यागकर आश्रमों में रहने वालों तथा अन्य गृहस्थी व्यक्ति व ब्राह्मणों को आपस में (केशव तथा कबीर जी ने) आध्यात्मिक प्रश्न-उत्तर करके सत्यज्ञान समझाया। 8 पहर (24 घण्टे) तक सत्संग करके उनका अज्ञान दूर किया। कई लाख साधुओं ने दीक्षा ली और अपना कल्याण कराया। विरोधियों ने तो परमेश्वर का बुरा करना चाहा था, परंतु परमात्मा को इकट्ठे करे-कराए भक्त मिल गए अपना ज्ञान सुनाने के लिए। उन भक्तों को सतलोक से आया हुआ उत्तम भोजन कराया जिसके खाने से अच्छे विचार उत्पन्न हुए। उन्होंने परमेश्वर का तत्त्वज्ञान समझा, दीक्षा ली तथा कबीर जी ने उनको वर्षों का खर्चा भी दक्षिणा रूप में दे दिया।
शाह सिकंदर कूँ सुनी, धंन कबीर बलि जाँव।
गरीबदास मेले चलो, मम हिरदे धरि पांव।।
केशव और कबीर का, तंबू मांहि मिलाप।
गरीबदास आठ पहर लग, गोष्ठी निज गरगाप।।
🌲 कबीर परमेश्वर जी ने दी सतलोक से आए बैलों तथा सेवादारों को स्वधाम जाने की आज्ञा
सब भण्डारा पूरा करके सर्व सामान समेटकर बैलों पर रखकर जो सेवादार आए थे, वे चल पड़े। तब सिकंदर लोदी, शेखतकी, कबीर जी, केशव जी तथा राजा के कई अंगरक्षक भी खड़े थे। अंगरक्षक ने आवाज लगाई कि बैल धरती से छः इन्च ऊपर चल रहे हैं। पृथ्वी पर पैर नहीं रख रहे। यह लीला देखकर सब हैरान थे। फिर कुछ देर बाद देखा तो आसपास तथा दूर तक न बैल दिखाई दिए और न बनजारे सेवक। सिकंदर लोदी ने पूछा हे कबीर जी! बनजारे और बैल कहाँ गए? परमेश्वर कबीर जी ने उत्तर दिया कि जिस परमात्मा के लोक से आए थे, उसी में चले गए। उसी समय केशव वाला स्वरूप देखते-देखते कबीर जी के शरीर में समा गया। सिकंदर राजा ने कहा हे अल्लाहु अकबर! मैं तो पहले ही कह रहा था कि यह सब आप कर रहे हो, अपने आपको छिपाए हुए हो।
केशव चले स्व धाम को, नौलख बोडी लीन।
गरीबदास बंधन किया, बाजत हैं सुर बीन।।
केशव और कबीर जित, मिलत भये तहां एक।
दासगरीब कबीर हरी, धरते नाना भेख।।
बनजारे और बैल सब, लाए थे भर माल।
गरीबदास सत्यलोक कूं, चले गये ततकाल।।
आवत जाते ना लखै, कौन धाम प्रकाश।
गरीबदास शाह बूझि है, कहां गये हरिदास।।
हरि में हरिके दास हैं, दासनकै हरि पास।
गरीबदास पद अगमगति, शाहतकी उदास।।
चलौ सिकंदर पातशाह, क्यों बिरथा बखत गमाय।
गरीबदास उस पीरकै, तन मन लागी भाय।।
जेता शहर कबीर का, हमरै बौहत अनेक।
गरीबदास शाहतकीकै, लगी जुबांनं मेख।।
गुंग भये बोलैं नहीं, नहीं जुबाब जुबान।
गरीबदास मार्या पर्या, बिन शर करौं कमान।।
शेखतकी तो जल-भुन रहा था। कहने लगा कि ऐसे भण्डारे तो हम अनेकों कर दें। यह तो महौछा-सा किया है। हम तो जग जौनार कर देते। महौछा कहते हैं वह धर्म अनुष्ठान जो किसी पुरोहित द्वारा पित्तर दोष मिटाने के लिए थोपा गया हो। उसमें घटिया कपड़ा, घटिया घी (डालडा) लगाता है, कंजूसी करता है यानि मन मारकर कर मजबूरी में किया जाता है। जग जौनार कहते हैं जिसके घर कई वर्षों उपरांत संतान उत्पन्न होती है तो दिल खोलकर खर्च करता है, भण्डारा करता है तो खुले हाथों से। संत गरीबदास जी ने उस भण्डारे के विषय में जिसकी जैसी विचारधारा थी, वह बताई:-
गरीब, कोई कहे जग जौनार करी है, कोई कहे महोच्छा।
बड़े बड़ाई करत हैं, गारी काढ़े ओच्छा।।
भावार्थ है कि जो भले पुरूष थे, वे तो बड़ाई कर रहे थे कि जग जौनार करी है। जो विरोधी थे, ईर्ष्यावश कह रहे थे कि क्या खाक भण्डारा किया है, यह तो महौछा-सा किया है। जब शेखतकी ने ये वचन कहे तो वह गूंगा तथा बहरा हो गया, शेष जीवन पशु की तरह जीया। अन्य के लिए उदाहरण बना कि अपनी ताकत का दुरुपयोग करना अपराध होता है, उसका भयंकर फल भोगना पड़ता है।
परमेश्वर कबीर जी स्वयं आकर (आन) केशव बनजारा बने। षट्दल कहते हैं गिरी-पुरी, नागा-नाथ, वैष्णों, सन्यासी, शैव आदि छः पंथों के व्यक्तियों को जिन्होंने हँसी-मजाक करके चिट्ठी डाली थी। परमात्मा ने यह सिद्ध किया है कि भक्त सच्चे दिल से मेरे पर विश्वास करके चलता है तो मैं उसकी ऐसे सहायता करता हूँ।
🌳 एक अन्य करिश्मा जो काशी भण्डारे में हुआ
वह जीमनवार (लंगर) तीन दिन तक चला था। दिन में प्रत्येक व्यक्ति कम से कम दो बार भोजन खाता था। कुछ तो तीन-चार बार भी खाते थे क्योंकि प्रत्येक भोजन के पश्चात् दक्षिणा में एक मौहर (10 ग्राम सोना) और एक दौहर (कीमती सूती शाॅल) दिया जा रहा था। इस लालच में बार-बार भोजन खाते थे। तीन दिन तक 18 लाख व्यक्ति शौच तथा पेशाब करके काशी के चारों ओर ढे़र लगा देते। काशी को सड़ा देते। काशी निवासियों तथा उन 18 लाख अतिथियों सहित एक लाख सेवादार सतलोक से आए थे। वहां गंद का ढ़ेर लग जाता, श्वांस लेना दूभर हो जाता, परंतु ऐसा महसूस ही नहीं हुआ। सब दिन में दो-तीन बार भोजन खा रहे थे, परंतु शौच एक बार भी नहीं जा रहे थे, न पेशाब कर रहे थे। इतना स्वादिष्ट भोजन था कि पेट भर-भरकर खा रहे थे। पहले से दुगना भोजन खा रहे थे। उन सबको मध्य के दिन टैंशन (चिंता) हुई कि न तो पेट भारी है, भूख भी ठीक लग रही है, कहीं रोगी न हो जाएँ। सतलोक से आए सेवकों को समस्या बताई तो उन्होंने कहा कि यह भोजन ऐसी जड़ी-बूटियां डालकर बनाया है जिनसे यह शरीर में ही समा जाएगा। हम तो प्रतिदिन यही भोजन अपने लंगर में बनाते हैं, यही खाते हैं। हम कभी शौच नहीं जाते तथा न पेशाब करते हैं। आप निश्चिंत रहो।
फिर भी विचार कर रहे थे कि खाना खाया है, कुछ तो मल निकलना चाहिए। उनको शौच (लैट्रिन) जाने का दबाव हुआ। सब शहर से बाहर चल पड़े। टट्टी के लिए एकान्त स्थान खोजकर बैठे तो गुदा से वायु निकली। पेट हल्का हो गया तथा वायु से सुगंध निकली जैसे केवड़े का पानी छिड़का हो। यह सब देखकर सबको सेवादारों की बात पर विश्वास हुआ। तब उनका भय समाप्त हुआ, परंतु फिर भी सबकी आँखों पर अज्ञान की पट्टी बँधी थी। कबीर परमेश्वर जी की वास्तविकता को नहीं स्वीकारा। पुराणों में भी प्रकरण आता है कि अयोध्या के राजा ऋषभ देव जी राज त्यागकर जंगलों में साधना करते थे। उनका भोजन स्वर्ग से आता था। उनके मल (पाखाने) से सुगंध निकलती थी। आसपास के क्षेत्र के व्यक्ति इसको देखकर आश्चर्यचकित होते थे। इसी तरह सतलोक का भोजन आहार करने से केवल सुगंध निकलती है, मल नहीं। स्वर्ग तो सतलोक की नकल है जो नकली है।
🍁 "दिव्य धर्म यज्ञ दिवस" के उपलक्ष्य में विशाल समागम
कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष चौदस चतुर्दशी को विक्रमी सम्वत��� 1570 में कबीर परमेश्वर जी स्वयं अन्य रूप में केशव बनजारा बनकर नौ लाख बैलों पर पका पकाया भोजन (प्रसाद) तथा कच्ची सामग्री लाद कर सतलोक से काशी नगर में लाए थे। तीन दिन दिव्य धर्म यज्ञ का आयोजन किया था। उसी "दिव्य धर्म यज्ञ दिवस" के उपलक्ष्य में कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष चौदस से मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष एकम (प्रथमा/प्रतिपदा) तदनुसार 26-27-28 नवंबर 2023 को जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में 10 सतलोक आश्रमों में 3 दिवसीय समागम आयोजित किया जा रहा है। जिसमें संत गरीबदास जी की अमर वाणी के अखंड पाठ व अखंड भंडारे का आयोजन किया जाएगा।
इस विशाल भंडारे में परमार्थ के कई कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे। जिसमें हजारों सामूहिक वैवाहिक जोड़ों का पूर्ण रूप से दहेज मुक्त आदर्श विवाह गुरुवाणी के पाठ रमैनी के माध्यम से मात्र 17 मिनट में संपन्न होगा। साथ-साथ रक्तदान शिविर और देहदान पंजीकरण शिविर का भी आयोजन किया जाएगा, जिसमें हजारों युनिट रक्तदान और देहदान किया जाएगा। भारत ही नहीं अपितु विदेशों से परमात्मा प्राप्ति के मुमुक्षु और लाखों की संख्या में संत रामपाल जी महाराज के अनुयायी अपने निकटतम सतलोक आश्रमों में पहुंचकर दिव्य धर्म यज्ञ के पुण्य का लाभ उठाएँगे।
इस विशेष “दिव्य धर्म यज्ञ दिवस” के अवसर पर 28 नवंबर को सतलोक आश्रम धनाना धाम, जिला सोनीपत, हरियाणा से सीधा प्रसारण साधना और पॉपुलर TV पर सुबह 09:15 (AM) से किया जाएगा। जिसका सीधा प्रसारण Sant Rampal Ji Maharaj YouTube Channel और Spiritual Leader Saint Rampal Ji Facebook Page में भी देखा जा सकेगा।
🍃 स्वर्ण युग में दिव्यधर्म यज्ञ का लाभ उठाएँ
स्वर्ण युग प्रारम्भ हो चुका है। लाखों पुण्य आत्माएं तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज को पहचान कर सत्य भक्ति कर रहे हैं। सांसारिक सुखों और आध्यात्मिकता का भरपूर आनंद उठा रहे हैं। आप भी परिवार मित्रों सहित 26-27-28 नवंबर 2023 को जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में सभी 10 सतलोक आश्रमों में होने वाले 3 दिवसीय समागम में सादर आमंत्रित हैं। आप सभी नाम दीक्षा लेकर अपने जीवन को कृतार्थ करें।
🏝 आयोजन स्थल का पता है :-
1.सतलोक आश्रम धनाना धाम, सोनीपत (हरियाणा)
2.सतलोक आश्रम कुरुक्षेत्र (हरियाणा)
3.सतलोक आश्रम भिवानी (हरियाणा)
4.सतलोक आश्रम खमाणो (पंजाब)
5.सतलोक आश्रम धुरी (पंजाब)
6.सतलोक आश्रम बैतूल (मध्यप्रदेश)
7.सतलोक आश्रम शामली (उत्तरप्रदेश)
8.सतलोक आश्रम सोजत (राजस्थान)
9.सतलोक आश्रम मुंडका (दिल्ली)
10.सतलोक आश्रम धनुषा, नेपाल
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें :- +91 8222880541
संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम दीक्षा लेने के लिए नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करें ⬇
510वें “दिव्य धर्म यज्ञ दिवस” पर जानिए परमेश्वर कबीर जी को 18 लाख साधु संतों को क्यों कराना पड़ा भण्डारा?”
विक्रम संवत 1570 (सन् 1513) में परमेश्वर कबीर जी ने काशी (उत्तरप्रदेश, भारत) में 3 दिन का विशाल भंडारा दिया था जिसमें 18 लाख साधु संत आये थे। दरअसल हुआ यह कि शेखतकी जो बादशाह सिकंदर लोदी का धर्मगुरु था वह कबीर परमेश्वर की बढ़ती ख्याति के कारण उनसे ईर्ष्या करने लगा था। काशी के ब्राह्मण तो पहले से ही उनसे खार खाए बैठे थे। कबीर परमेश्वर के सतज्ञान के कारण ब्राह्मणों की हिन्दुओं पर और काजी मौलवियों की मुसलमानों पर पकड़ कमजोर पड़ रही थी। कर्मकांडों से होने वाली उनकी आय लगभग खत्म होने के कगार पर थी। सभी ब्राह्मणों और मुल्ला-काजियों ने शेखतकी के साथ मिलकर षड़यंत्र के तहत एक योजना बनाई कि कबीर परमेश्वर को फँसाया जाए जिससे वे काशी छोड़कर भाग जाएं। उन्होंने ये युक्ति बनाई कि कबीर एक निर्धन व्यक्ति है, इसके नाम से पत्र पूरे भारतवर्ष के साधु संतों को भेजा जाए कि कबीर जुलाहा काशी में तीन दिन का धर्म भोजन-भण्डारा करेंगे। सारे साधु संत आमंत्रित हैं। साथ में अपने सर्व शिष्यों को अवश्य लाएँ। तीनों दिन प्रत्येक भोजन के पश्चात् प्रत्येक साधु-संत, ब्राह्मण, काजी-मुल्ला, पीर-पैगम्बर, औलिया को एक दोहर, एक मोहर तथा जो कोई सूखा-सीधा (आटा, मिठाई, घी, दाल, चावल) भी लेना चाहे तो वह भी दिया जाएगा। निश्चित दिन से पहले वाली रात्रि को ही साधु-संत भक्त एकत्रित होने लगे। लगभग 18 लाख साधु-संत काशी शहर में एकत्रित हो गए।
सिमटि भेष इकट्टा हुवा, काजी पंडित मांहि।
गरीबदास चिठ्ठा फिर्या, जंबूदीप सब ठांहि।।
मसलति करी मिलाप से, जीवन जन्म कछु नांहि।
गरीबदास मेला सही, भेष समेटे तांहि।।
सेतबंध रामेश्वरं, द्वारका गढ़ गिरनार।
गरीबदास मुलतान मग, आये भेष अपार।।
हरिद्वार बदरी विनोद, गंगा और किदार।
गरीबदास पूरब सजे, ना कछु किया बिचार।।
अठारह लाख दफतर चढे़, अस्तल बंध मुकाम।
गरीबदास अनाथ जीव, और केते उस धाम।।
🌿 कबीर परमेश्वर केशव बंजारे के रूप में सतलोक से भोजन लाए
झूटे निमंत्रण से अठारह लाख तो साधु-संत व उनके शिष्य काशी में आए थे। इसके अतिरिक्त अनेकों अनाथ (बिना बुलाए) व्यक्ति भोजन खाने व दक्षिणा लेने आए थे। जब कबीर परमेश्वर ने दो रूप में अभिनय किया। एक रूप में तो अपनी कुटिया में बैठे रहे। दूसरे रूप में अपने सतलोक से 9 लाख बैलों पर थैले रखकर पका-पकाया सामान तथा सूखा सामान तथा दोहर-मोहर भरकर केशव बंजारे के रूप में साथ ले आए। (बोरे जो वर्तमान में गधों पर रखते हैं। उस समय बनजारे अर्थात् व्यापारी बैलों पर रखकर माल एक मण्डी से दूसरी मण्डी में ट्रान्सपोर्ट करते थे।)
काशी के बाजार में टैंट लगाकर सारा सामान टैंटों में रख दिया और कुछ सेवादार भी सतलोक से साथ आए थे जो सर्व व्यवस्था संभाल रहे थे। भण्डारा शुरू कर दिया, तीन दिन तक चिट्ठी में लिखे अनुसार सर्व दक्षिणा दी गई। उस समय भोजन-भण्डारे में दिल्ली का राजा सिकन्दर लोदी भी आया था तथा उसका निजी पीर शेखतकी भी आया था। शेखतकी उपरोक्त षड़यंत्र का मुख्य सदस्य था। उसने सिकंदर लोदी को भी पत्र भिजवाया। वह चाहता था कि किसी तरह सिकंदर लोदी के दिल से कबीर जी उतरें और मेरी पूर्ण महिमा बने। उस शेख का अनुमान था कि अबकी बार कबीर काशी से भाग जाएगा और भण्डारे में पहुँचे साधु कबीर को गालियाँ दे रहे होंगे। राजा भी कबीर परमेश्वर जी का प्रसंशक नहीं रहेगा। परंतु जब भण्डारे के स्थान पर पहुँचे तो देखा, लंगर चल रहा है, सर्व दक्षिणा दी जा रही है। सब साधु तथा अन्य व्यक्ति भोजन खाकर दक्षिणा लेकर कबीर सेठ की जय-जयकार कर रहे हैं।
केशो आया है बनजारा,काशील्याया मालअपारा।।टेक।।
नौलख बोडी भरी विश्म्भर, दिया कबीर भण्डारा।
धरती उपर तम्बू ताने, चैपड़ के बैजारा।।1।।
कौन देश तैं बालद आई, ना कहीं बंध्या निवारा।
अपरम्पार पार गति तेरी, कित उतरी जल धारा।।2।।
शाहुकार नहीं कोई जाकै, काशी नगर मंझारा।
दास गरीब कल्प से उतरे, आप अलख करतारा।।3।।
🍀सारी लीला कबीर परमेश्वर ने की.....
बादशाह सिकंदर लोदी ने पता किया कि भण्डारा करने वाला कहाँ है? बताया गया कि उस सामने वाले बड़े टैंट (तम्बू) में है। राजा तथा शेखतकी उस तम्बू में गए और पहले अपना परिचय दिया, फिर उसका परिचय पूछा। तम्बू में बैठे सेठ ने परिचय बताया कि मेरा नाम केशव है, मैं बनजारा हूँ। कबीर जी मेरे मित्र हैं। उनका मेरे पास संदेश गया था कि एक छोटा-सा भण्डारा करना है, कुछ सामान लेकर आना। मेरा भी निमंत्रण भेजा था। राजा सिकंदर लोदी ने पूछा कि कबीर जी क्यों नहीं आए? केशव रूपधारी परमेश्वर ने कहा मैं जो बैठा हूँ उनका नौकर, वे मालिक हैं, इच्छा होगी, तब चले आएंगे। उनकी कृपा तथा आदेश से सब ठीक चल रहा है। आप जी भी भोजन करें। राजा ने कहा पहले उस शुभान अल्लाह के दर्शन करूँगा, बाद में भोजन करूँगा। यह कहकर हाथी पर बैठकर राजा सिकंदर कबीर जी की कुटिया पर पहुँचे। साथ में कई अंगरक्षक भी थे।
कबीर परमेश्वर जी को संत रविदास जी ने सुबह ही बता दिया था कि हे कबीर जी! आज तो विरोधियों ने बनारस छोड़कर भगाने का कार्य कर दिया। आपके नाम से पत्र भेज रखे हैं और ऐसा-ऐसा लिखा है। लगभग 18 लाख व्यक्ति साधु-संत लंगर खाने पहुँच चुके हैं। कबीर परमेश्वर जी ने कहा कि मित्र आजा बैठ जा! दरवाजा बंद करके सांगल लगा ले। आज-आज का दिन बिताकर रात्रि में अपने परिवार को लेकर भाग जाऊँगा। कहीं अन्य शहर-गाँव में निर्वाह कर लूंगा। जब उनको कुछ खाने को मिलेगा ही नहीं तो झल्लाकर गाली-गलौच करके चले जाएंगे। हम सांकल खोलेंगे ही नहीं, यदि किवाड़ तोड़ेंगे तो हाथ जोड़ लूंगा कि मेरा सामर्थ्य आप जी को भण्डारा कराने का नहीं है। गलती से पत्र डाले गए, मारो भावें छोड़ो। दोनों संत माला लेकर भक्ति करने लगे। मुँह बोले माता-पिता तथा मृतक जीवित किए हुए लड़का तथा लड़की सुबह सैर को गए थे। इतने में दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोदी ने दरवाजा खटखटाया और अपना परिचय देकर बताया कि आपका दास सिकंदर आया है, आपके दर्शन करना चाहता है। परमेश्वर कबीर जी ने कहा राजन! आज दरवाजा नहीं खोलूंगा। मेरे नाम से झूठी चिट्ठियाँ भेज रखी हैं, लाखों संत-भक्त पहुँच चुके हैं। रात्रि होते ही मैं अपने परिवार को लेकर कहीं दूर चला जाऊँगा। सिकंदर लोदी ने कहा परवरदिगार! आप मुझे नहीं बहका सकते, मैं आपको निकट से जान चुका हूँ। आप एक बार दरवाजा खोलो, मैं आपके दर्शन करके ही जलपान करूँगा।
काशी में सब तरफ परमात्मा की जय जयकार हो रही थी!
परमेश्वर की आज्ञा से रविदास जी ने दरवाजा खोला तो सिकंदर लोदी मुकट पहने-पहने ही चरणों में लोट गया और बताया कि आप अपने आपको छिपाकर बैठे हो, आपने कितना सुंदर भण्डारा लगा रखा है। आपका मित्र केशव आपके संदेश को पाकर सर्व सामान लेकर आया है। आपके नाम का अखण्ड भण्डारा चल रहा है। सर्व अतिथि आपके दर्शनाभिलाषी हैं। कह रहे हैं कि देखें तो कौन है कबीर सेठ जिसने ऐसे खुले हाथ से लंगर कराया है। मेरी भी प्रार्थना है कि आप एक बार भण्डारे में घूमकर सबको दर्शन देकर कृतार्थ करें।
तब परमेश्वर कबीर जी उठे और कुटिया से बाहर आए तो आकाश से कबीर जी पर फूलों की वर्षा होने लगी तथा आकाश से आकर सिर पर सुन्दर मुकुट अपने आप पहना गया। तब हाथी पर बैठकर कबीर जी तथा रविदास जी व राजा चले तो सिकंदर लोदी परमेश्वर कबीर जी पर चंवर करने लगे और पीलवान से कहा कि हाथी को भण्डारे के साथ से लेकर चल। जो भी देखे और पूछे काशी वालों से कि कबीर सेठ कौन-सा है, उत्तर मिले कि जिसके सिर पर मोरपंख वाला मुकुट है, वह है कबीर सेठ जिस पर सिकंदर लोदी दिल्ली के बादशाह चंवर कर रहे हैं। सब एक स्वर में जय बोल रहे थे। जय हो कबीर सेठ की, जैसा लिखा था, वैसा ही भण्डारा कराया है। ऐसी व्यवस्था कहीं देखी न सुनी। भोजन खाने का स्थान बहुत लम्बा-चौड़ा था। उसमें घूमकर फिर वहाँ पर आए जहाँ पर केशव टैंट में बैठा था। हाथी से उतरकर कबीर जी तम्बू में पहुँचे तो अपने आप एक सुंदर पलंग आ गया, उसके ऊपर एक गद्दा बिछ गया, ऊपर गलीचे बिछ गए जिनकी झालरों में हीरे, पन्ने, लाल लगे थे। टैंट को ऊपर कर दिया गया जो दो तरफ से बंद था।
🌱 कबीर परमेश्वर जी ने आठ पहर तत्त्वज्ञान सुनाया - दस लाख ने ली नामदीक्षा
खाना खाने के पश्चात् सब दर्शनार्थ वहाँ आने लगे, तब परमेश्वर कबीर जी ने उन परमात्मा के लिए घर त्यागकर आश्रमों में रहने वालों तथा अन्य गृहस्थी व्यक्ति व ब्राह्मणों को आपस में (केशव तथा कबीर जी ने) आध्यात्मिक प्रश्न-उत्तर करके सत्यज्ञान समझाया। 8 पहर (24 घण्टे) तक सत्संग करके उनका अज्ञान दूर किया। कई लाख साधुओं ने दीक्षा ली और अपना कल्याण कराया। विरोधियों ने तो परमेश्वर का बुरा करना चाहा था, परंतु परमात्मा को इकट्ठे करे-कराए भक्त मिल गए अपना ज्ञान सुनाने के लिए। उन भक्तों को सतलोक से आया हुआ उत्तम भोजन कराया जिसके खाने से अच्छे विचार उत्पन्न हुए। उन्होंने परमेश्वर का तत्त्वज्ञान समझा, दीक्षा ली तथा कबीर जी ने उनको वर्षों का खर्चा भी दक्षिणा रूप में दे दिया।
शाह सिकंदर कूँ सुनी, धंन कबीर बलि जाँव।
गरीबदास मेले चलो, मम हिरदे धरि पांव।।
केशव और कबीर का, तंबू मांहि मिलाप।
गरीबदास आठ पहर लग, गोष्ठी निज गरगाप।।
🌲 कबीर परमेश्वर जी ने दी सतलोक से आए बैलों तथा सेवादारों को स्वधाम जाने की आज्ञा
सब भण्डारा पूरा करके सर्व सामान समेटकर बैलों पर रखकर जो सेवादार आए थे, वे चल पड़े। तब सिकंदर लोदी, शेखतकी, कबीर जी, केशव जी तथा राजा के कई अंगरक्षक भी खड़े थे। अंगरक्षक ने आवाज लगाई कि बैल धरती से छः इन्च ऊपर चल रहे हैं। पृथ्वी पर पैर नहीं रख रहे। यह लीला देखकर सब हैरान थे। फिर कुछ देर बाद देखा तो आसपास तथा दूर तक न बैल दिखाई दिए और न बनजारे सेवक। सिकंदर लोदी ने पूछा हे कबीर जी! बनजारे और बैल कहाँ गए? परमेश्वर कबीर जी ने उत्तर दिया कि जिस परमात्मा के लोक से आए थे, उसी में चले गए। उसी समय केशव वाला स्वरूप देखते-देखते कबीर जी के शरीर में समा गया। सिकंदर राजा ने कहा हे अल्लाहु अकबर! मैं तो प���ले ही कह रहा था कि यह सब आप कर रहे हो, अपने आपको छिपाए हुए हो।
केशव चले स्व धाम को, नौलख बोडी लीन।
गरीबदास बंधन किया, बाजत हैं सुर बीन।।
केशव और कबीर जित, मिलत भये तहां एक।
दासगरीब कबीर हरी, धरते नाना भेख।।
बनजारे और बैल सब, लाए थे भर माल।
गरीबदास सत्यलोक कूं, चले गये ततकाल।।
आवत जाते ना लखै, कौन धाम प्रकाश।
गरीबदास शाह बूझि है, कहां गये हरिदास।।
हरि में हरिके दास हैं, दासनकै हरि पास।
गरीबदास पद अगमगति, शाहतकी उदास।।
चलौ सिकंदर पातशाह, क्यों बिरथा बखत गमाय।
गरीबदास उस पीरकै, तन मन लागी भाय।।
जेता शहर कबीर का, हमरै बौहत अनेक।
गरीबदास शाहतकीकै, लगी जुबांनं मेख।।
गुंग भये बोलैं नहीं, नहीं जुबाब जुबान।
गरीबदास मार्या पर्या, बिन शर करौं कमान।।
शेखतकी तो जल-भुन रहा था। कहने लगा कि ऐसे भण्डारे तो हम अनेकों कर दें। यह तो महौछा-सा किया है। हम तो जग जौनार कर देते। महौछा कहते हैं वह धर्म अनुष्ठान जो किसी पुरोहित द्वारा पित्तर दोष मिटाने के लिए थोपा गया हो। उसमें घटिया कपड़ा, घटिया घी (डालडा) लगाता है, कंजूसी करता है यानि मन मारकर कर मजबूरी में किया जाता है। जग जौनार कहते हैं जिसके घर कई वर्षों उपरांत संतान उत्पन्न होती है तो दिल खोलकर खर्च करता है, भण्डारा करता है तो खुले हाथों से। संत गरीबदास जी ने उस भण्डारे के विषय में जिसकी जैसी विचारधारा थी, वह बताई:-
गरीब, कोई कहे जग जौनार करी है, कोई कहे महोच्छा।
बड़े बड़ाई करत हैं, गारी काढ़े ओच्छा।।
भावार्थ है कि जो भले पुरूष थे, वे तो बड़ाई कर रहे थे कि जग जौनार करी है। जो विरोधी थे, ईर्ष्यावश कह रहे थे कि क्या खाक भण्डारा किया है, यह तो महौछा-सा किया है। जब शेखतकी ने ये वचन कहे तो वह गूंगा तथा बहरा हो गया, शेष जीवन पशु की तरह जीया। अन्य के लिए उदाहरण बना कि अपनी ताकत का दुरुपयोग करना अपराध होता है, उसका भयंकर फल भोगना पड़ता है।
परमेश्वर कबीर जी स्वयं आकर (आन) केशव बनजारा बने। षट्दल कहते हैं गिरी-पुरी, नागा-नाथ, वैष्णों, सन्यासी, शैव आदि छः पंथों के व्यक्तियों को जिन्होंने हँसी-मजाक करके चिट्ठी डाली थी। परमात्मा ने यह सिद्ध किया है कि भक्त सच्चे दिल से मेरे पर विश्वास करके चलता है तो मैं उसकी ऐसे सहायता करता हूँ।
🌳 एक अन्य करिश्मा जो काशी भण्डारे में हुआ
वह जीमनवार (लंगर) तीन दिन तक चला था। दिन में प्रत्येक व्यक्ति कम से कम दो बार भोजन खाता था। कुछ तो तीन-चार बार भी खाते थे क्योंकि प्रत्येक भोजन के पश्चात् दक्षिणा में एक मौहर (10 ग्राम सोना) और एक दौहर (कीमती सूती शाॅल) दिया जा रहा था। इस लालच में बार-बार भोजन खाते थे। तीन दिन तक 18 लाख व्यक्ति शौच तथा पेशाब करके काशी के चारों ओर ढे़र लगा देते। काशी को सड़ा देते। काशी निवासियों तथा उन 18 लाख अतिथियों सहित एक लाख सेवादार सतलोक से आए थे। वहां गंद का ढ़ेर लग जाता, श्वांस लेना दूभर हो जाता, परंतु ऐसा महसूस ही नहीं हुआ। सब दिन में दो-तीन बार भोजन खा रहे थे, परंतु शौच एक बार भी नहीं जा रहे थे, न पेशाब कर रहे थे। इतना स्वादिष्ट भोजन था कि पेट भर-भरकर खा रहे थे। पहले से दुगना भोजन खा रहे थे। उन सबको मध्य के दिन टैंशन (चिंता) हुई कि न तो पेट भारी है, भूख भी ठीक लग रही है, कहीं रोगी न हो जाएँ। सतलोक से आए सेवकों को समस्या बताई तो उन्होंने कहा कि यह भोजन ऐसी जड़ी-बूटियां डालकर बनाया है जिनसे यह शरीर में ही समा जाएगा। हम तो प्रतिदिन यही भोजन अपने लंगर में बनाते हैं, यही खाते हैं। हम कभी शौच नहीं जाते तथा न पेशाब करते हैं। आप निश्चिंत रहो।
फिर भी विचार कर रहे थे कि खाना खाया है, कुछ तो मल निकलना चाहिए। उनको शौच (लैट्रिन) जाने का दबाव हुआ। सब शहर से बाहर चल पड़े। टट्टी के लिए एकान्त स्थान खोजकर बैठे तो गुदा से वायु निकली। पेट हल्का हो गया तथा वायु से सुगंध निकली जैसे केवड़े का पानी छिड़का हो। यह सब देखकर सबको सेवादारों की बात पर विश्वास हुआ। तब उनका भय समाप्त हुआ, परंतु फिर भी सबकी आँखों पर अज्ञान की पट्टी बँधी थी। कबीर परमेश्वर जी की वास्तविकता को नहीं स्वीकारा। पुराणों में भी प्रकरण आता है कि अयोध्या के राजा ऋषभ देव जी राज त्यागकर जंगलों में साधना करते थे। उनका भोजन स्वर्ग से आता था। उनके मल (पाखाने) से सुगंध निकलती थी। आसपास के क्षेत्र के व्यक्ति इसको देखकर आश्चर्यचकित होते थे। इसी तरह सतलोक का भोजन आहार करने से केवल सुगंध निकलती है, मल नहीं। स्वर्ग तो सतलोक की नकल है जो नकली है।
🍁 "दिव्य धर्म यज्ञ दिवस" के उपलक्ष्य में विशाल समागम
कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष चौदस चतुर्दशी को विक्रमी सम्वत् 1570 में कबीर परमेश्वर जी स्वयं अन्य रूप में केशव बनजारा बनकर नौ लाख बैलों पर पका पका��ा भोजन (प्रसाद) तथा कच्ची सामग्री लाद कर सतलोक से काशी नगर में लाए थे। तीन दिन दिव्य धर्म यज्ञ का आयोजन किया था। उसी "दिव्य धर्म यज्ञ दिवस" के उपलक्ष्य में कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष चौदस से मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष एकम (प्रथमा/प्रतिपदा) तदनुसार 26-27-28 नवंबर 2023 को जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में 10 सतलोक आश्रमों में 3 दिवसीय समागम आयोजित किया जा रहा है। जिसमें संत गरीबदास जी की अमर वाणी के अखंड पाठ व अखंड भंडारे का आयोजन किया जाएगा।
इस विशाल भंडारे में परमार्थ के कई कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे। जिसमें हजारों सामूहिक वैवाहिक जोड़ों का पूर्ण रूप से दहेज मुक्त आदर्श विवाह गुरुवाणी के पाठ रमैनी के माध्यम से मात्र 17 मिनट में संपन्न होगा। साथ-साथ रक्तदान शिविर और देहदान पंजीकरण शिविर का भी आयोजन किया जाएगा, जिसमें हजारों युनिट रक्तदान और देहदान किया जाएगा। भारत ही नहीं अपितु विदेशों से परमात्मा प्राप्ति के मुमुक्षु और लाखों की संख्या में संत रामपाल जी महाराज के अनुयायी अपने निकटतम सतलोक आश्रमों में पहुंचकर दिव्य धर्म यज्ञ के पुण्य का लाभ उठाएँगे।
इस विशेष “दिव्य धर्म यज्ञ दिवस” के अवसर पर 28 नवंबर को सतलोक आश्रम धनाना धाम, जिला सोनीपत, हरियाणा से सीधा प्रसारण साधना और पॉपुलर TV पर सुबह 09:15 (AM) से किया जाएगा। जिसका सीधा प्रसारण Sant Rampal Ji Maharaj YouTube Channel और Spiritual Leader Saint Rampal Ji Facebook Page में भी देखा जा सकेगा।
🍃 स्वर्ण युग में दिव्यधर्म यज्ञ का लाभ उठाएँ
स्वर्ण युग प्रारम्भ हो चुका है। लाखों पुण्य आत्माएं तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज को पहचान कर सत्य भक्ति कर रहे हैं। सांसारिक सुखों और आध्यात्मिकता का भरपूर आनंद उठा रहे हैं। आप भी परिवार मित्रों सहित 26-27-28 नवंबर 2023 को जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में सभी 10 सतलोक आश्रमों में होने वाले 3 दिवसीय समागम में सादर आमंत्रित हैं। आप सभी नाम दीक्षा लेकर अपने जीवन को कृतार्थ करें।
🏝 आयोजन स्थल का पता है :-
1.सतलोक आश्रम धनाना धाम, सोनीपत (हरियाणा)
2.सतलोक आश्रम कुरुक्षेत्र (हरियाणा)
3.सतलोक आश्रम भिवानी (हरियाणा)
4.सतलोक आश्रम खमाणो (पंजाब)
5.सतलोक आश्रम धुरी (पंजाब)
6.सतलोक आश्रम बैतूल (मध्यप्रदेश)
7.सतलोक आश्रम शामली (उत्तरप्रदेश)
8.सतलोक आश्रम सोजत (राजस्थान)
9.सतलोक आश्रम मुंडका (दिल्ली)
10.सतलोक आश्रम धनुषा, नेपाल
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें :- +91 8222880541
संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम दीक्षा लेने के लिए नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करें ⬇
510वें “दिव्य धर्म यज्ञ दिवस” पर जानिए परमेश्वर कबीर जी को 18 लाख साधु संतों को क्यों कराना पड़ा भण्डारा?”
विक्रम संवत 1570 (सन् 1513) में परमेश्वर कबीर जी ने काशी (उत्तरप्रदेश, भारत) में 3 दिन का विशाल भंडारा दिया था जिसमें 18 लाख साधु संत आये थे। दरअसल हुआ यह कि शेखतकी जो बादशाह सिकंदर लोदी का धर्मगुरु था वह कबीर परमेश्वर की बढ़ती ख्याति के कारण उनसे ईर्ष्या करने लगा था। काशी के ब्राह्मण तो पहले से ही उनसे खार खाए बैठे थे। कबीर परमेश्वर के सतज्ञान के कारण ब्राह्मणों की हिन्दुओं पर और काजी मौलवियों की मुसलमानों पर पकड़ कमजोर पड़ रही थी। कर्मकांडों से होने वाली उनकी आय लगभग खत्म होने के कगार पर थी। सभी ब्राह्मणों और मुल्ला-काजियों ने शेखतकी के साथ मिलकर षड़यंत्र के तहत एक योजना बनाई कि कबीर परमेश्वर को फँसाया जाए जिससे वे काशी छोड़कर भाग जाएं। उन्होंने ये युक्ति बनाई कि कबीर एक निर्धन व्यक्ति है, इसके नाम से पत्र पूरे भारतवर्ष के साधु संतों को भेजा जाए कि कबीर जुलाहा काशी में तीन दिन का धर्म भोजन-भण्डारा करेंगे। सारे साधु संत आमंत्रित हैं। साथ में अपने सर्व शिष्यों को अवश्य लाएँ। तीनों दिन प्रत्येक भोजन के पश्चात् प्रत्येक साधु-संत, ब्राह्मण, काजी-मुल्ला, पीर-पैगम्बर, औलिया को एक दोहर, एक मोहर तथा जो कोई सूखा-सीधा (आटा, मिठाई, घी, दाल, चावल) भी लेना चाहे तो वह भी दिया जाएगा। निश्चित दिन से पहले वाली रात्रि को ही साधु-संत भक्त एकत्रित होने लगे। लगभग 18 लाख साधु-संत काशी शहर में एकत्रित हो गए।
सिमटि भेष इकट्टा हुवा, काजी पंडित मांहि।
गरीबदास चिठ्ठा फिर्या, जंबूदीप सब ठांहि।।
मसलति करी मिलाप से, जीवन जन्म कछु नांहि।
गरीबदास मेला सही, भेष समेटे तांहि।।
सेतबंध रामेश्वरं, द्वारका गढ़ गिरनार।
गरीबदास मुलतान मग, आये भेष अपार।।
हरिद्वार बदरी विनोद, गंगा और किदार।
गरीबदास पूरब सजे, ना कछु किया बिचार।।
अठारह लाख दफतर चढे़, अस्तल बंध मुकाम।
गरीबदास अनाथ जीव, और केते उस धाम।।
🌿 कबीर परमेश्वर केशव बंजारे के रूप में सतलोक से भोजन लाए
झूटे निमंत्रण से अठारह लाख तो साधु-संत व उनके शिष्य काशी में आए थे। इसके अतिरिक्त अनेकों अनाथ (बिना बुलाए) व्यक्ति भोजन खाने व दक्षिणा लेने आए थे। जब कबीर परमेश्वर ने दो रूप में अभिनय किया। एक रूप में तो अपनी कुटिया में बैठे रहे। दूसरे रूप में अपने सतलोक से 9 लाख बैलों पर थैले रखकर पका-पकाया सामान तथा सूखा सामान तथा दोहर-मोहर भरकर केशव बंजारे के रूप में साथ ले आए। (बोरे जो वर्तमान में गधों पर रखते हैं। उस समय बनजारे अर्थात् व्यापारी बैलों पर रखकर माल एक मण्डी से दूसरी मण्डी में ट्रान्सपोर्ट करते थे।)
काशी के बाजार में टैंट लगाकर सारा सामान टैंटों में रख दिया और कुछ सेवादार भी सतलोक से साथ आए थे जो सर्व व्यवस्था संभाल रहे थे। भण्डारा शुरू कर दिया, तीन दिन तक चिट्ठी में लिखे अनुसार सर्व दक्षिणा दी गई। उस समय भोजन-भण्डारे में दिल्ली का राजा सिकन्दर लोदी भी आया था तथा उसका निजी पीर शेखतकी भी आया था। शेखतकी उपरोक्त षड़यंत्र का मुख्य सदस्य था। उसने सिकंदर लोदी को भी पत्र भिजवाया। वह चाहता था कि किसी तरह सिकंदर लोदी के दिल से कबीर जी उतरें और मेरी पूर्ण महिमा बने। उस शेख का अनुमान था कि अबकी बार कबीर काशी से भाग जाएगा और भण्डारे में पहुँचे साधु कबीर को गालियाँ दे रहे होंगे। राजा भी कबीर परमेश्वर जी का प्रसंशक नहीं रहेगा। परंतु जब भण्डारे के स्थान पर पहुँचे तो देखा, लंगर चल रहा है, सर्व दक्षिणा दी जा रही है। सब साधु तथा अन्य व्यक्ति भोजन खाकर दक्षिणा लेकर कबीर सेठ की जय-जयकार कर रहे हैं।
केशो आया है बनजारा,काशील्याया मालअपारा।।टेक।।
नौलख बोडी भरी विश्म्भर, दिया कबीर भण्डारा।
धरती उपर तम्बू ताने, चैपड़ के बैजारा।।1।।
कौन देश तैं बालद आई, ना कहीं बंध्या निवारा।
अपरम्पार पार गति तेरी, कित उतरी जल धारा।।2।।
शाहुकार नहीं कोई जाकै, काशी नगर मंझारा।
दास गरीब कल्प से उतरे, आप अलख करतारा।।3।।
🍀सारी लीला कबीर परमेश्वर ने की.....
बादशाह सिकंदर लोदी ने पता किया कि भण्डारा करने वाला कहाँ है? बताया गया कि उस सामने वाले बड़े टैंट (तम्बू) में है। राजा तथा शेखतकी उस तम्बू में गए और पहले अपना परिचय दिया, फिर उसका परिचय पूछा। तम्बू में बैठे सेठ ने परिचय बताया कि मेरा नाम केशव है, मैं बनजारा हूँ। कबीर जी मेरे मित्र हैं। उनका मेरे पास संदेश गया था कि एक छोटा-सा भण्डारा करना है, कुछ सामान लेकर आना। मेरा भी निमंत्रण भेजा था। राजा सिकंदर लोदी ने पूछा कि कबीर जी क्यों नहीं आए? केशव रूपधारी परमेश्वर ने कहा मैं जो बैठा हूँ उनका नौकर, वे मालिक हैं, इच्छा होगी, तब चले आएंगे। उनकी कृपा तथा आदेश से सब ठीक चल रहा है। आप जी भी भोजन करें। राजा ने कहा पहले उस शुभान अल्लाह के दर्शन करूँगा, बाद में भोजन करूँगा। यह कहकर हाथी पर बैठकर राजा सिकंदर कबीर जी की कुटिया पर पहुँचे। साथ में कई अंगरक्षक भी थे।
कबीर परमेश्वर जी को संत रविदास जी ने सुबह ही बता दिया था कि हे कबीर जी! आज तो विरोधियों ने बनारस छोड़कर भगाने का कार्य कर दिया। आपके नाम से पत्र भेज रखे हैं और ऐसा-ऐसा लिखा है। लगभग 18 लाख व्यक्ति साधु-संत लंगर खाने पहुँच चुके हैं। कबीर परमेश्वर जी ने कहा कि मित्र आजा बैठ जा! दरवाजा बंद करके सांगल लगा ले। आज-आज का दिन बिताकर रात्रि में अपने परिवार को लेकर भाग जाऊँगा। कहीं अन्य शहर-गाँव में निर्वाह कर लूंगा। जब उनको कुछ खाने को मिलेगा ही नहीं तो झल्लाकर गाली-गलौच करके चले जाएंगे। हम सांकल खोलेंगे ही नहीं, यदि किवाड़ तोड़ेंगे तो हाथ जोड़ लूंगा कि मेरा सामर्थ्य आप जी को भण्डारा कराने का नहीं है। गलती से पत्र डाले गए, मारो भावें छोड़ो। दोनों संत माला लेकर भक्ति करने लगे। मुँह बोले माता-पिता तथा मृतक जीवित किए हुए लड़का तथा लड़की सुबह सैर को गए थे। इतने में दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोदी ने दरवाजा खटखटाया और अपना परिचय देकर बताया कि आपका दास सिकंदर आया है, आपके दर्शन करना चाहता है। परमेश्वर कबीर जी ने कहा राजन! आज दरवाजा नहीं खोलूंगा। मेरे नाम से झूठी चिट्ठियाँ भेज रखी हैं, लाखों संत-भक्त पहुँच चुके हैं। रात्रि होते ही मैं अपने परिवार को लेकर कहीं दूर चला जाऊँगा। सिकंदर लोदी ने कहा परवरदिगार! आप मुझे नहीं बहका सकते, मैं आपको निकट से जान चुका हूँ। आप एक बार दरवाजा खोलो, मैं आपके दर्शन करके ही जलपान करूँगा।
काशी में सब तरफ परमात्मा की जय जयकार हो रही थी!
परमेश्वर की आज्ञा से रविदास जी ने दरवाजा खोला तो सिकंदर लोदी मुकट पहने-पहने ही चरणों में लोट गया और बताया कि आप अपने आपको छिपाकर बैठे हो, आपने कितना सुंदर भण्डारा लगा रखा है। आपका मित्र केशव आपके संदेश को पाकर सर्व सामान लेकर आया है। आपके नाम का अखण्ड भण्डारा चल रहा है। सर्व अतिथि आपके दर्शनाभिलाषी हैं। कह रहे हैं कि देखें तो कौन है कबीर सेठ जिसने ऐसे खुले हाथ से लंगर कराया है। मेरी भी प्रार्थना है कि आप एक बार भण्डारे में घूमकर सबको दर्शन देकर कृतार्थ करें।
तब परमेश्वर कबीर जी उठे और कुटिया से बाहर आए तो आकाश से कबीर जी पर फूलों की वर्षा होने लगी तथा आकाश से आकर सिर पर सुन्दर मुकुट अपने आप पहना गया। तब हाथी पर बैठकर कबीर जी तथा रविदास जी व राजा चले तो सिकंदर लोदी परमेश्वर कबीर जी पर चंवर करने लगे और पीलवान से कहा कि हाथी को भण्डारे के साथ से लेकर चल। जो भी देखे और पूछे काशी वालों से कि कबीर सेठ कौन-सा है, उत्तर मिले कि जिसके सिर पर मोरपंख वाला मुकुट है, वह है कबीर सेठ जिस पर सिकंदर लोदी दिल्ली के बादशाह चंवर कर रहे हैं। सब एक स्वर में जय बोल रहे थे। जय हो कबीर सेठ की, जैसा लिखा था, वैसा ही भण्डारा कराया है। ऐसी व्यवस्था कहीं देखी न सुनी। भोजन खाने का स्थान बहुत लम्बा-चौड़ा था। उसमें घूमकर फिर वहाँ पर आए जहाँ पर केशव टैंट में बैठा था। हाथी से उतरकर कबीर जी तम्बू में पहुँचे तो अपने आप एक सुंदर पलंग आ गया, उसके ऊपर एक गद्दा बिछ गया, ऊपर गलीचे बिछ गए जिनकी झालरों में हीरे, पन्ने, लाल लगे थे। टैंट को ऊपर कर दिया गया जो दो तरफ से बंद था।
🌱 कबीर परमेश्वर जी ने आठ पहर तत्त्वज्ञान सुनाया - दस लाख ने ली नामदीक्षा
खाना खाने के पश्चात् सब दर्शनार्थ वहाँ आने लगे, तब परमेश्वर कबीर जी ने उन परमात्मा के लिए घर त्यागकर आश्रमों में रहने वालों तथा अन्य गृहस्थी व्यक्ति व ब्राह्मणों को आपस में (केशव तथा कबीर जी ने) आध्यात्मिक प्रश्न-उत्तर करके सत्यज्ञान समझाया। 8 पहर (24 घण्टे) तक सत्संग करके उनका अज्ञान दूर किया। कई लाख साधुओं ने दीक्षा ली और अपना कल्याण कराया। विरोधियों ने तो परमेश्वर का बुरा करना चाहा था, परंतु परमात्मा को इकट्ठे करे-कराए भक्त मिल गए अपना ज्ञान सुनाने के लिए। उन भक्तों को सतलोक से आया हुआ उत्तम भोजन कराया जिसके खाने से अच्छे विचार उत्पन्न हुए। उन्होंने परमेश्वर का तत्त्वज्ञान समझा, दीक्षा ली तथा कबीर जी ने उनको वर्षों का खर्चा भी दक्षिणा रूप में दे दिया।
शाह सिकंदर कूँ सुनी, धंन कबीर बलि जाँव।
गरीबदास मेले चलो, मम हिरदे धरि पांव।।
केशव और कबीर का, तंबू मांहि मिलाप।
गरीबदास आठ पहर लग, गोष्ठी निज गरगाप।।
🌲 कबीर परमेश्वर जी ने दी सतलोक से आए बैलों तथा सेवादारों को स्वधाम जाने की आज्ञा
सब भण्डारा पूरा करके सर्व सामान समेटकर बैलों पर रखकर जो सेवादार आए थे, वे चल पड़े। तब सिकंदर लोदी, शेखतकी, कबीर जी, केशव जी तथा राजा के कई अंगरक्षक भी खड़े थे। अंगरक्षक ने आवाज लगाई कि बैल धरती से छः इन्च ऊपर चल रहे हैं। पृथ्वी पर पैर नहीं रख रहे। यह लीला देखकर सब हैरान थे। फिर कुछ देर बाद देखा तो आसपास तथा दूर तक न बैल दिखाई दिए और न बनजारे सेवक। सिकंदर लोदी ने पूछा हे कबीर जी! बनजारे और बैल कहाँ गए? परमेश्वर कबीर जी ने उत्तर दिया कि जिस परमात्मा के लोक से आए थे, उसी में चले गए। उसी समय केशव वाला स्वरूप देखते-देखते कबीर जी के शरीर में समा गया। सिकंदर राजा ने कहा हे अल्लाहु अकबर! मैं तो पहले ही कह रहा था कि यह सब आप कर रहे हो, अपने आपको छिपाए हुए हो।
केशव चले स्व धाम को, नौलख बोडी लीन।
गरीबदास बंधन किया, बाजत हैं सुर बीन।।
केशव और कबीर जित, मिलत भये तहां एक।
दासगरीब कबीर हरी, धरते नाना भेख।।
बनजारे और बैल सब, लाए थे भर माल।
गरीबदास सत्यलोक कूं, चले गये ततकाल।।
आवत जाते ना लखै, कौन धाम प्रकाश।
गरीबदास शाह बूझि है, कहां गये हरिदास।।
हरि में हरिके दास हैं, दासनकै हरि पास।
गरीबदास पद अगमगति, शाहतकी उदास।।
चलौ सिकंदर पातशाह, क्यों बिरथा बखत गमाय।
गरीबदास उस पीरकै, तन मन लागी भाय।।
जेता शहर कबीर का, हमरै बौहत अनेक।
गरीबदास शाहतकीकै, लगी जुबांनं मेख।।
गुंग भये बोलैं नहीं, नहीं जुबाब जुबान।
गरीबदास मार्या पर्या, बिन शर करौं कमान।।
शेखतकी तो जल-भुन रहा था। कहने लगा कि ऐसे भण्डारे तो हम अनेकों कर दें। यह तो महौछा-सा किया है। हम तो जग जौनार कर देते। महौछा कहते हैं वह धर्म अनुष्ठान जो किसी पुरोहित द्वारा पित्तर दोष मिटाने के लिए थोपा गया हो। उसमें घटिया कपड़ा, घटिया घी (डालडा) लगाता है, कंजूसी करता है यानि मन मारकर कर मजबूरी में किया जाता है। जग जौनार कहते हैं जिसके घर कई वर्षों उपरांत संतान उत्पन्न होती है तो दिल खोलकर खर्च करता है, भण्डारा करता है तो खुले हाथों से। संत गरीबदास जी ने उस भण्डारे के विषय में जिसकी जैसी विचारधारा थी, वह बताई:-
गरीब, कोई कहे जग जौनार करी है, कोई कहे महोच्छा।
बड़े बड़ाई करत हैं, गारी काढ़े ओच्छा।।
भावार्थ है कि जो भले पुरूष थे, वे तो बड़ाई कर रहे थे कि जग जौनार करी है। जो विरोधी थे, ईर्ष्यावश कह रहे थे कि क्या खाक भण्डारा किया है, यह तो महौछा-सा किया है। जब शेखतकी ने ये वचन कहे तो वह गूंगा तथा बहरा हो गया, शेष जीवन पशु की तरह जीया। अन्य के लिए उदाहरण बना कि अपनी ताकत का दुरुपयोग करना अपराध होता है, उसका भयंकर फल भोगना पड़ता है।
परमेश्वर कबीर जी स्वयं आकर (आन) केशव बनजारा बने। षट्दल कहते हैं गिरी-पुरी, नागा-नाथ, वैष्णों, सन्यासी, शैव आदि छः पंथों के व्यक्तियों को जिन्होंने हँसी-मजा��� करके चिट्ठी डाली थी। परमात्मा ने यह सिद्ध किया है कि भक्त सच्चे दिल से मेरे पर विश्वास करके चलता है तो मैं उसकी ऐसे सहायता करता हूँ।
🌳 एक अन्य करिश्मा जो काशी भण्डारे में हुआ
वह जीमनवार (लंगर) तीन दिन तक चला था। दिन में प्रत्येक व्यक्ति कम से कम दो बार भोजन खाता था। कुछ तो तीन-चार बार भी खाते थे क्योंकि प्रत्येक भोजन के पश्चात् दक्षिणा में एक मौहर (10 ग्राम सोना) और एक दौहर (कीमती सूती शाॅल) दिया जा रहा था। इस लालच में बार-बार भोजन खाते थे। तीन दिन तक 18 लाख व्यक्ति शौच तथा पेशाब करके काशी के चारों ओर ढे़र लगा देते। काशी को सड़ा देते। काशी निवासियों तथा उन 18 लाख अतिथियों सहित एक लाख सेवादार सतलोक से आए थे। वहां गंद का ढ़ेर लग जाता, श्वांस लेना दूभर हो जाता, परंतु ऐसा महसूस ही नहीं हुआ। सब दिन में दो-तीन बार भोजन खा रहे थे, परंतु शौच एक बार भी नहीं जा रहे थे, न पेशाब कर रहे थे। इतना स्वादिष्ट भोजन था कि पेट भर-भरकर खा रहे थे। पहले से दुगना भोजन खा रहे थे। उन सबको मध्य के दिन टैंशन (चिंता) हुई कि न तो पेट भारी है, भूख भी ठीक लग रही है, कहीं रोगी न हो जाएँ। सतलोक से आए सेवकों को समस्या बताई तो उन्होंने कहा कि यह भोजन ऐसी जड़ी-बूटियां डालकर बनाया है जिनसे यह शरीर में ही समा जाएगा। हम तो प्रतिदिन यही भोजन अपने लंगर में बनाते हैं, यही खाते हैं। हम कभी शौच नहीं जाते तथा न पेशाब करते हैं। आप निश्चिंत रहो।
फिर भी विचार कर रहे थे कि खाना खाया है, कुछ तो मल निकलना चाहिए। उनको शौच (लैट्रिन) जाने का दबाव हुआ। सब शहर से बाहर चल पड़े। टट्टी के लिए एकान्त स्थान खोजकर बैठे तो गुदा से वायु निकली। पेट हल्का हो गया तथा वायु से सुगंध निकली जैसे केवड़े का पानी छिड़का हो। यह सब देखकर सबको सेवादारों की बात पर विश्वास हुआ। तब उनका भय समाप्त हुआ, परंतु फिर भी सबकी आँखों पर अज्ञान की पट्टी बँधी थी। कबीर परमेश्वर जी की वास्तविकता को नहीं स्वीकारा। पुराणों में भी प्रकरण आता है कि अयोध्या के राजा ऋषभ देव जी राज त्यागकर जंगलों में साधना करते थे। उनका भोजन स्वर्ग से आता था। उनके मल (पाखाने) से सुगंध निकलती थी। आसपास के क्षेत्र के व्यक्ति इसको देखकर आश्चर्यचकित होते थे। इसी तरह सतलोक का भोजन आहार करने से केवल सुगंध निकलती है, मल नहीं। स्वर्ग तो सतलोक की नकल है जो नकली है।
🍁 "दिव्य धर्म यज्ञ दिवस" के उपलक्ष्य में विशाल समागम
कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष चौदस चतुर्दशी को विक्रमी सम्वत् 1570 में कबीर परमेश्वर जी स्वयं अन्य रूप में केशव बनजारा बनकर नौ लाख बैलों पर पका पकाया भोजन (प्रसाद) तथा कच्च�� सामग्री लाद कर सतलोक से काशी नगर में लाए थे। तीन दिन दिव्य धर्म यज्ञ का आयोजन किया था। उसी "दिव्य धर्म यज्ञ दिवस" के उपलक्ष्य में कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष चौदस से मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष एकम (प्रथमा/प्रतिपदा) तदनुसार 26-27-28 नवंबर 2023 को जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में 10 सतलोक आश्रमों में 3 दिवसीय समागम आयोजित किया जा रहा है। जिसमें संत गरीबदास जी की अमर वाणी के अखंड पाठ व अखंड भंडारे का आयोजन किया जाएगा।
इस विशाल भंडारे में परमार्थ के कई कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे। जिसमें हजारों सामूहिक वैवाहिक जोड़ों का पूर्ण रूप से दहेज मुक्त आदर्श विवाह गुरुवाणी के पाठ रमैनी के माध्यम से मात्र 17 मिनट में संपन्न होगा। साथ-साथ रक्तदान शिविर और देहदान पंजीकरण शिविर का भी आयोजन किया जाएगा, जिसमें हजारों युनिट रक्तदान और देहदान किया जाएगा। भारत ही नहीं अपितु विदेशों से परमात्मा प्राप्ति के मुमुक्षु और लाखों की संख्या में संत रामपाल जी महाराज के अनुयायी अपने निकटतम सतलोक आश्रमों में पहुंचकर दिव्य धर्म यज्ञ के पुण्य का लाभ उठाएँगे।
इस विशेष “दिव्य धर्म यज्ञ दिवस” के अवसर पर 28 नवंबर को सतलोक आश्रम धनाना धाम, जिला सोनीपत, हरियाणा से सीधा प्रसारण साधना और पॉपुलर TV पर सुबह 09:15 (AM) से किया जाएगा। जिसका सीधा प्रसारण Sant Rampal Ji Maharaj YouTube Channel और Spiritual Leader Saint Rampal Ji Facebook Page में भी देखा जा सकेगा।
🍃 स्वर्ण युग में दिव्यधर्म यज्ञ का लाभ उठाएँ
स्वर्ण युग प्रारम्भ हो चुका है। लाखों पुण्य आत्माएं तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज को पहचान कर सत्य भक्ति कर रहे हैं। सांसारिक सुखों और आध्यात्मिकता का भरपूर आनंद उठा रहे हैं। आप भी परिवार मित्रों सहित 26-27-28 नवंबर 2023 को जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में सभी 10 सतलोक आश्रमों में होने वाले 3 दिवसीय समागम में सादर आमंत्रित हैं। आप सभी नाम दीक्षा लेकर अपने जीवन को कृतार्थ करें।
🏝 आयोजन स्थल का पता है :-
1.सतलोक आश्रम धनाना धाम, सोनीपत (हरियाणा)
2.सतलोक आश्रम कुरुक्षेत्र (हरियाणा)
3.सतलोक आश्रम भिवानी (हरियाणा)
4.सतलोक आश्रम खमाणो (पंजाब)
5.सतलोक आश्रम धुरी (पंजाब)
6.सतलोक आश्रम बैतूल (मध्यप्रदेश)
7.सतलोक आश्रम शामली (उत्तरप्रदेश)
8.सतलोक आश्रम सोजत (राजस्थान)
9.सतलोक आश्रम मुंडका (दिल्ली)
10.सतलोक आश्रम धनुषा, नेपाल
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें :- +91 8222880541
संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम दीक्षा लेने के लिए नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करें ⬇
करवा चौथ व्रत रखने से नहीं, पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब की सतभक्ति करने से जीवन रक्षा भी होती है और आयु भी बढ़ती हैं। सामवेद संख्या नं 822 अध्याय 3 खंड नं ५ श्लोक ८ में प्रमाण है कि पूर्ण परमात्मा सतभक्ति करने वाले साधक की यदि मृत्यु निकट है तो उसकी आयु में वृद्धि करके उसकी उम्र बढ़ा देता है।