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Why #BoycottChapak Trends?
आजकल #BoycottChapak ट्रेंडिंग हो रहा है और कुछ समझदार लोग तर्क दे रहे हैं कि लक्ष्मी के ऊपर एसिड फेंकने वाले व्यक्ति का सच में नाम नदीम खान है जबकि फिल्म में उसका नाम राजेश दिखाया गया है। तो ऐसे लोगों को जानकारी बढ़ाने के लिए बता दूं कि फिल्म में लक्ष्मी को भी मालती दिखाया गया है। फिल्म सच्ची घटनाओं पर आधारित है परंतु कोई बायोपिक नहीं है तो थोड़ा बहुत फिल्मी मसाला तड़का तो होगा ही और फिर एक चरित्र का नाम बदलकर यदि फिल्मकार ने किसी धर्म विशेष के मानने वाले लोगों को सांप्रदायिक घृणा से बचाने का प्रयास किया है इसमें गलत क्या है?
पहली बात, पूर्व में भी इस देश ने कई किताबों, फिल्मों और पेंटिंग्स को बहिष्कृत करने के आंदोलनों का हश्र बखूबी देखा है। हाल फिलहाल में इन्हीं अभिनेत्री की फिल्म 'पद्मावती' (बाद में 'पद्मावत') को बहिष्कृत करने को एक आंदोलन करने का प्रयास किया गया जो बाद में महज उपद्रव और सार्वजनिक तोड़फोड़ में तब्दील होकर फुर्र गया। पूर्व के अनुभवों से हमें यह जरूर सीख लेनी चाहिए कि अधिकांशतः जिन भी किताबों, फिल्मों या पेंटिंग्स को बहिष्कृत करने का उपक्रम रचा जाता है, वह अकारण अपनी विषय वस्तु की क्षमता से अधिक लोकप्रिय हो जाती है और निर्माताओं को अपेक्षा से अधिक आर्थिक लाभ देती है। ऐसे में क्या यह संभव नहीं है कि निर्माताओं और जो भी लाभ लेने वाले लोग हैं उनके द्वारा स्वयं ही जानबूझकर ऐसी विवादास्पद स्थिति बनाई जाती है , जिससे कि तिल का ताड़ बन जाए और जो सामग्री लोक संवाद में मौजूद ही नहीं थी अचानक से चर्चा का केंद्र बिंदु हो जाए।
दूसरी बात, फ़िल्मों में काम करने वाले, क्रिकेटर, टीवी पर काम करने वाले, गाना गाने वाले, नाचने वाले, बजाने वाले आदि ये सब आपके मनोरंजनकर्ता है। आपका मनोरंजन करने के एवज में आप इन्हें पैसे भी देते हैं। जिस क्षेत्र में आपका मनोरंजन करते हैं उसके अतिरिक्त किसी भी विषय पर उनकी क्या राय है उनके व्यक्तिगत जीवन में इनकी कैसी शैली है उससे हमें बहुत ज्यादा मतलब नहीं रखना चाहिए, ठीक उसी प्रकार जैसे कि एक डॉक्टर घर बनाने के संबंध में क्या विचार रखता है यह मेरे लिए महत्वहीन है। मेरे लिए डॉक्टर का चिकित्सा क्षेत्र का अनुभव और उसके विषय में उसकी क्या राय है बस यही महत्वपूर्ण है।
हर क्षेत्र में ज्ञानी व्यक्ति लोकप्रिय होगा। यह निश्चित है। परंतु क्षेत्र विशेष में लोकप्रिय व्यक्ति को हर विषय का बहुत अधिक ज्ञान होगा इसकी संभावना नगण्य है।
~ अभिषेक शुक्ल
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"सब्सिडी मुक्त हो JNU समेत सभी केंद्रीय विश्वविद्यालय व संस्थान"
जेएनयू समेत समस्त केंद्रीय विश्वविद्यालय एवं संस्थानों के छात्र छात्राओं को फीस, हॉस्टल, कैंटीन आदि में दी जाने वाली सब्सिडी को बंद कर देना चाहिए।
'निरक्षरता एक अभिशाप है' , किसी भी देश की दशा उस देश की साक्षरता पर निर्भर करती है। इस तथ्य में कोई विवाद नहीं है कि आज के समय में शिक्षा रोटी, कपड़ा और मकान की तरह ही एक बुनियादी जरूरत है। इसीलिए हमारे देश में साक्षरता बढ़ाने के लिए आजादी के बाद से ही समय-समय पर नीतिगत बदलाव किए जाते रहे है। संविधान (७६वां) संशोधन अधिनियम, २००२ द्वारा भारत के संविधान में अनुच्छेद २१-क अंतः स्थापित करके तथा शिक्षा का अधिकार अधिनियम २००९ द्वारा ०६ से १४ वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा मुहैया कराने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास किए ���ा रहे हैं। समाज हित में भी व्यक्ति की साक्षरता बहुत मायने रखती परंतु किसी भी समाज में अथवा देश में साक्षरता का मानक उच्च शिक्षा नहीं हो सकती है। साक्षरता जहां व्यक्ति की आधारभूत आवश्यकता है वही उच्च शिक्षा जीवन में विलासिता अर्जित करने का साधन है। करदाताओं के धन से मुफ्त की सब्सिडी लेकर उच्च शिक्षा प्राप्त करके इन संस्थानों से निकलने वाले छात्र-छात्राएं देश व समाज हित मे अपनी कितनी सुविधाएं मुफ्त में प्रदान करते हैं यह किसी से छुपा नहीं है।
प्रायः गरीबों को उच्च शिक्षा की उपलब्धता के संबंध में कुतर्क दिए जाते हैं कि ऐसा करने से सिर्फ पैसे वालों को ही उच्च शिक्षा मुहैया हो पाएगी। आज के समय में जबकि इतने आर्थिक साधन उपलब्ध है यह बात बेमानी लगती है। सरकार उच्च शिक्षा में शिक्षा लोन की व्यवस्था को और सुलभ बनाकर इस समस्या का आसानी से समाधान कर सकती है। उच्च शिक्षा में फीस, हॉस्टल, कैंटीन आदि मे दी जाने वाली सब्सिडी पर खर्च होने वाली धनराशि का इस्तेमाल इन शिक्षण संस्थानों/विश्वविद्यालयों के ढांचागत एवं गुणवत्ता के विकास और अनुसंधान इत्यादि पर खर्च किया जा सकता है। जिससे हमारे देश में भी विश्वस्तरीय उच्च शिक्षण संस्थानों की संख्या में वृद्धि हो सके।
~अभिषेक शुक्ल
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"जीवन में संतुष्ट होना सफल होने से ज्यादा महत्वपूर्ण है।"
-अभिषेक शुक्ल
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