Don't wanna be here? Send us removal request.
Text

लक्ष्मी जी का शाबर मंत्र
“ ऊँ विष्णु-प्रिया लक्ष्मी, शिव-प्रिया सती से प्रकट हुई। कामाक्षा भगवती आदि-शक्ति, युगल मूर्ति महिमा अपार, दोनों की प्रीति अमर, जाने संसार। दुहाई कामाक्षा की। आय बढ़ा व्यय घटा। दया कर माई। ॐ नमः विष्णु-प्रियाय। ॐ नमः शिव-प्रियाय। ॐ नमः कामाक्षाय। ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा।”
विधिः- धूप-दीप-नैवेद्य से पूजा कर रूद्राक्ष की माला पर पश्चिमाभिमुख हो कर सवा लक्ष ( १,२५,०००) जप करें। लक्ष्मी आगमन एवं चमत्कार प्रत्यक्ष दिखाई देगा। रुके कार्य होंगे। लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी।
0 notes
Text
सीताराम
जय वीर हनुमान
श्री हनुमत्तत्व “ उल्लंघ्य सिंधो: सलिलं सलीलं य: शोक वन्हिं जनकात्मजाया: | आदाय तेनैव ददाह लंकां नमामि तं प्रांजलिराञ्जन्नेयम् ||” हमारे सनातन धर्म में अनेक उपास्य देवता है। स्मार्त्तोपासना में पंचदेवोपासना प्रसिद्द है। ही,किन्तु इन सभी उपास्य देवों में यदि किसी को ब्रह्मचारी मूर्तिमान् स्वरुप कहा जा सकता है। तो वे है। हमारे श्री हनुमान जी ही | अत: सम्यक् ब्रह्मचर्य-परिपालन, शत्रु-निग्रह, कामविजय, कार्यसिद्धि आदि दृष्टि से रुद्रावतार श्री हनुमान जी अत्यधिक प्रसिद्ध है। उपासना पद्धति की जानकारी के लिए तो रामायणस्थ हनुमच्चरित्र का अवलोकन परमावश्यक है। क्योंकि दास्य-भक्ति के लिए हनुमान जी ही प्रमुख उदाहरण है। जैसा पद्यावली के इस 63 वें श्लोक में कहा गया है। श्रीविष्णोः श्रवणे परीक्षिदभवद् वैयासकि: कीर्तने प्रल्हाद: स्मरणे तदंघ्रिभजने लक्ष्मी: पृथु: पूजने | अक्रूरस्त्वभिवन्दने कपिपतिर्दास्येऽथ सख्येऽर्जुन: सर्वस्वात्मनिवेदने बलिरभूत् कृष्णाप्तिरेषां परम् ||” स्वयं वानर होने पर भी दास्य-भक्ति के प्रताप से भगवान श्रीरामचंद्र के प्रिय दास होते हुए भी आप देवता बन गए | यह सिद्धि कोई दूसरा कपिपति नहीं प्राप्त कर सका| श्री हनुमानजी का आजन्म नैष्ठिक ब्रह्मचर्य-पालन का आदर्श सर्वथा अद्वितीय है। इतिहास में इसका ऐसा अन्य श्रेष्ठ उदाहरण कहीं नहीं मिलता | अदर्शन, अस्पर्शन, असंकल्प आदि सामान्य ब्रह्मचर्य के आठ अंग निर्दिष्ट है। किन्तु इसके मूल में एतदर्थ योग-वेदान्तादि स्वाध्याय द्वारा दिव्य ज्ञान , वैराग्य एवं अभ्यास भी आवश्यक होते है। तथा जन्मान्तरीय स्थिति भी देखी जाती है। इन सभी दृष्टियों से साधनसंपन्न रुद्रावतार श्रीहनुमान जी ने आजन्म ब्रह्मचर्य के परिपालन द्वारा अपने को अपरिमित शक्तिशाली बनाकर श्रीरामायण-काथा को भी अमर बना दिया | इसमें लेशमात्र भी अतिशयोक्ति नहीं है। तथापि श्रीहनुमानजी की उपासना “उग्र” कही गयी है। अत: साधक को तत्संबंधी आभिचारिक (मारण,मोहन आदि) उपासनाएं नहीं करनी चाहिए | अस्तु, हम उन्हें सादर नमस्कार करते हुए, इस निबंध का उपसंहार करते है। “मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् | वातात्मजं वानरयूथमुख्यं, श्री रामदूतं शिरसा नमामि ||” (कल्याण- श्री हनुमान अंक)
https://shriramjyotishsadan.in/Services_Details.aspx?SId=138
https://shriramjyotishsadan.in/Services_Details.aspx?SId=137
https://shriramjyotishsadan.in/Services_Details.aspx?SId=135
शुभप्रभात:-----
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

0 notes
Text
सीताराम
जय वीर हनुमान
काल भैरव बड़े दयालु-कृपालु
काल भैरव का नाम सुनते ही एक अजीब-सी भय मिश्रित अनुभूति होती है। एक हाथ में ब्रह्माजी का कटा हुआ सिर और अन्य तीनों हाथों में खप्पर, त्रिशूल और डमरू लिए भगवान शिव के इस रुद्र रूप से लोगों को डर भी लगता है। लेकिन ये बड़े ही दयालु-कृपालु और जन का कल्याण करने वाले हैं। भैरव शब्द का अर्थ ही होता है। भरण-पोषण करने वाला, जो भरण शब्द से बना है। काल भैरव की चर्चा रुद्रयामल तंत्र और जैन आगमों में भी विस्तारपूर्वक की गई है। शास्त्रों के अनुसार कलियुग में काल भैरव की उपासना शीघ्र फल देने वाली होती है। उनके दर्शन मात्र से शनि और राहु जैसे क्रूर ग्रहों का भी कुप्रभाव समाप्त हो जाता है। काल भैरव की सात्त्विक, राजसिक और तामसी तीनों विधियों में उपासना की जाती है।
इनकी पूजा में उड़द और उड़द से बनी वस्तुएं जैसे इमरती, दही बड़े आदि शामिल होते हैं। चमेली के फूल इन्हें विशेष प्रिय हैं। पहले भैरव को बकरे की बलि देने की प्रथा थी, जिस कारण मांस चढ़ाने की प्रथा चली आ रही थी, लेकिन अब परिवर्तन आ चुका है। अब बलि की प्रथा बंद हो गई है। आजकल धन की चाह में स्वर्णाकर्षण भैरव की भी साधना की जा रही है। स्वर्णाकर्षण भैरव काल भैरव का सात्त्विक रूप है। जिनकी पूजा धन प्राप्ति के लिए की जाती है। यह हमेशा पाताल में रहते है। जैसे सोना धरती के गर्भ में होता है। इनका प्रसाद दूध और मेवा है। भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं। इस कारण इनकी साधना का समय मध्य रात्रि यानी रात के 12 से 3 बजे के बीच का है। इनकी उपस्थिति का अनुभव गंध के माध्यम से होता है। शायद यही वजह है। कि कुत्ता इनकी सवारी है। कुत्ते की गंध लेने की क्षमता जगजाहिर है। देवी महाकाली, काल भैरव और शनि देव ऐसे देवता है। जिनकी उपासना के लिए बहुत कड़े परिश्रम, त्याग और ध्यान की आवश्यकता होती है। तीनों ही देव बहुत कड़क, क्रोधी और कड़ा दंड देने वाले माने जाते है। धर्म की रक्षा के लिए देवगणों की अपनी-अपनी विशेषताएं है। किसी भी अपराधी अथवा पापी को दंड देने के लिए कुछ कड़े नियमों का पालन जरूरी होता ही है। लेकिन ये तीनों देवगण अपने उपासकों, साधकों की मनाकामनाएं भी पूरी करते हैं। कार्यसिद्धि और कर्मसिद्धि का आशीर्वाद अपने साधकों को सदा देते रहते हैं। भगवान भैरव की उपासना बहुत जल्दी फल देती है। इस कारण आजकल उनकी उपासना काफी लोकप्रिय हो रही है। इसका एक प्रमुख कारण यह भी है। कि भैरव की उपासना क्रूर ग्रहों के प्रभाव को समाप्त करती है। शनि की पूजा बढ़ी है। अगर आप शनि या राहु के प्रभाव में है। तो शनि मंदिरों में शनि की पूजा में हिदायत दी जाती है। कि शनिवार और रविवार को काल भैरव के मंदिर में जाकर उनका दर्शन करें। मान्यता है। कि 40 दिनों तक लगातार काल भैरव का दर्शन करने से मनोकामना पूरी होती है। इसे चालीसा कहते हैं। चन्द्रमास के 28 दिनों और 12 राशियां जोड़कर ये 40 बने हैं।
जय काल भैरव की
शुभप्रभात:-----
🌸🌸🌸🌹🌹🌹
https://www.shriramjyotishsadan.in/Services_Details.aspx?SId=154

0 notes
Text
मुख्यपृष्ठ || श्री राम ज्योतिष सदन में आपका स्वागत है ||
0 notes
Text
सीताराम
जय वीर हनुमान
*ll शुभ दीपावलीll*
*आपको ओर आपके परिवार को "प्रकाश व प्रसन्नता के पर्व दीपावली पर बहुत बहुत मंगलकामनाएं*।
प्रभु श्रीराम की कृपा से इस प्रकाश पर्व पर आप को *आठों सिद्धियां* , *नौवों निधियां* और *चारों पुरुषार्थ* की प्राप्ति हो । साथ ही *सुख , समृद्धि , आरोग्य , यश , कीर्ति* और *खुशी* की भी अनवरत प्राप्ति हो ।
*धन, वैभव, यश, ऐश्वर्य* के साथ दीपावली पर माँ महालक्ष्मी आपकी *सुख सम्पन्नता स्वास्थ्य व हर्षोल्लास में वृद्धि करें,* इन्हीं शुभेच्छाओं के साथ।
*ll शुभ दीपावलीll*💫🌟✨💐
*श्रीराम ज्योतिष सदन
पंडित आशु बहुगुणा
मुजफ्फरनगर*
https://shriramjyotishsadan.in/Services_Details.aspx?SId=173
🌹🌹🌹🌺🌺💐💐🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌺🌺🌺🌸🌸🌸🌸🌸🌺🌺🌺🌹🌹🌹🌹

0 notes
Text
Sitaram
Jai Veer Hanuman
The festival of Dussehra is celebrated on the tenth day of Shukla Paksha of Ashwin month. Dussehra festival marks the victory of Dharma over Adharma. The festival of Dussehra i.e. Vijayadashami is celebrated to mark the victory of good over evil. On the tenth day, Lord Rama killed Ravana and brought back Mother Sita, in whose happiness the festival of Dussehra is celebrated.
Today, the festival of Vijayadashami and Dussehra is being celebrated with great enthusiasm across the country. It symbolizes the victory of truth over falsehood. Jaya Vijaya and Aparajita Devi are worshiped on this day. And reciting Aparajita Stotra is also considered very auspicious.
Shastra Puja is performed in the morning on this day. These weapons are a symbol of the power of Maa Durga. Whose purpose is to protect truth and dharma. Today, on the occasion of Vijayadashami, Ravana is burnt in the evening. and celebrate happiness. Dussehra fairs are organized across the country. Children, elders, elderly, women all wear new clothes on this day. And celebrate this festival. There is also a tradition of worshiping the Shami tree on the occasion of Dussehra. And seeing the Neelkanth bird on this day is also considered very auspicious. Where the idols of Maa Durga are kept. There, the program of Durga Visarjan will also be organized there.
victory of religion over unrighteousness
victory of truth over falsehood
victory of good over evil
victory of virtue over sin
victory of virtue over tyranny
Mercy over anger, victory of forgiveness
and victory of knowledge over ignorance
Happy Dussehra
https://shriramjyotishsadan.in/Services_Details.aspx?SId=178

0 notes