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राम मंदिर और राजनीति के विषय वस्तु पर हम सभी भारतीयों को बड़ी ही गहराई से, धैर्य से, सोच समझकर आगे बढ़ना होगा क्योंकि धर्म की राजनीति सदैव ही घातक होती है लेकिन जब तक हम सभी भारतीयों को राजनीति का धर्म का ज्ञान नहीं होगा तब तक हम इन सभी संवेदनशील मुद्दों को समझ नहीं पाएंगे। वास्तव में देखा जाए तो भारत में धर्म की राजनीति भी नहीं हो रही है और नहीं राजनीति का अपना कोई धर्म बच गया है। सत्ता पक्ष और विपक्ष अभी दोनों वास्तविक लोकतांत्रिक मूल्यों से कोसों दूर है,कोई जाति के नाम पर,कोई धर्म के नाम पर, कोई जन्म स्थान के नाम पर, कोई नस्लवाद के नाम पर और कोई परिवारवाद के नाम पर राजनीति को लेकर आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। आज देश को आजाद हुए 77 वर्ष हो चुके हैं यानी हम लोकतांत्रिक उम्र देखें तो सन्यास आश्रम की तरफ हम लोग बढ़ रहे हैं। यानी हमारे लोकतंत्र में अब तक पूर्ण रूप से हीपरिपक्वता दिखाई देनी चाहिए थी, लेकिन दुर्भाग्य बस अब तक नहीं दिखाई दे रहा है। हम सत्ता के लालच में उन सारे मर्यादा को ताख पर रख दिए हैं, जिनको सजोने के लिए आजादी आंदोलन तथा आजादी के ठीक पहले सामाजिक पुनर्जागरण काल में भारत के अद्वितीय महापुरुषों ने भागीरथी प्रयास किया था और भारत को एक ऐसा मंच दिया था जहां से हम भारत सहित पूरी दुनिया को विश्वबंधुत्व, एकता और अखंडता, सह-अस्तित्व, पंचशील सिद्धांत, सत्य और हिंसा तथा आदर्श मानवतावाद का परिचय दिया है। जय हिन्द-जय भारत।
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