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সন্ত রামপাল জী মহারাজের শিষ্যরা নেশাকে ছুঁয়েও দেখে না, যা মহারাজের শিক্ষার প্রভাব। কারণ সন্ত রামপাল জী বলেন: গরীব, ভাং তম্বাখূ পীব হীঁ, সুরা পান সে হেত।
গোশ্ত মট্টী খায় কর, জঙ্গলী বনেঁ প্রেত।।
संत रामपाल जी महाराज के शिष्य नशे को हाथ तक नहीं लगाते, जो उनकी शिक्षाओं का प्रभाव है। क्योंकि संत रामपाल जी बताते हैं:
गरीब, भांग तम्बाखू पीव हीं, सुरा पान से हेत।
गोश्त मट्टी खाय कर, जंगली बनें प्रेत।।
সন্ত রামপাল জী মহারাজের প্রচেষ্টায় ��েশা থেকে মুক্তির ফলে বহু পরিবারে নারীরা সশক্ত হয়েছেন, কারণ তাদের উপর হওয়া নির্যাতন সমাপ্ত হয়েছে।
संत रामपाल जी महाराज के प्रयास से नशे से मुक्ति के कारण कई परिवारों में महिलाएं सशक्त हुई हैं, क्योंकि उन पर होने वाला अत्याचार समाप्त हुआ है।
সন্ত রামপাল জী মহারাজ নেশাকে শুধু ব্যক্তিগত সমস্যা নয়, বরং এক গভীর সামাজিক অপকর্ম হিসেবে দেখেন, কারণ এটি শরীরের ক্ষতি করে এবং ভক্তিতেও বাধা সৃষ্টি করে।
संत रामपाल जी महाराज नशे को एक व्यक्तिगत समस्या नहीं, बल्कि एक गंभीर सामाजिक बुराई के रूप में देखते हैं, क्योंकि यह शरीर को नुकसान पहुँचाता है और भक्ति में भी बाधक है।

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#अनोखी_प्रदर्शनी
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আধ্যাত্মিক প্রদর্শনী এমন একটি স্থান, যেখানে আপনি আপনার পবিত্র ধর্মগ্রন্থ এবং ঈশ্বরপ্রাপ্ত সন্তদের বানীর মাধ্যমে পরমাত্মা সম্পর্কিত প্রকৃত জ্ঞান লাভ করার সুযোগ পান। এর দৃশ্য আপনি সত্যলোক আশ্রমে প্রত্যক্ষ করতে পারেন।
आध्यात्मिक प्रदर्शनी, वह स्थान है जहाँ आपको अपने पवित्र धर्मग्रंथों, परमात्मा प्राप्त संतों की वाणियों से परमात्मा के वास्तविक ज्ञान को जानने का अवसर प्राप्त होता है। जिसका नजारा सतलोक आश्रमों में देखने को मिलता है।

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#दहेज_दानव_से_मुक्ति
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#Marriages_In_17Minutes
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সতলোক আশ্রম ইন্দোর (মধ্যপ্রদেশ)-এ সন্ত রামপাল জি মহারাজের দিকনির্দেশনায় ৩৯টি যুগল পণমুক্ত, সরল পদ্ধতিতে বিবাহ বন্ধনে আবদ্ধ হয়েছেন, যেখানে কোনও লোক দেখানো বা অপ্রয়োজনীয় খরচা হয়নি।
सतलोक आश्रम इंदौर (मध्यप्रदेश) में संत रामपाल जी महाराज के मार्गदर्शन में 39 जोड़ों ने दहेज रहित, सादगीपूर्ण विवाह किया, जिसमें कोई दिखावा या फिजूलखर्ची नहीं हुई।
সতলোক আশ্রম শামলি (উত্তরপ্রদেশ)-এ সন্ত রামপাল জির সান্নিধ্যে ২৭টি যুগল পণ মুক্ত বিবাহ করে সমাজে এক নতুন দৃষ্টান্ত স্থাপন করেছেন।
सतलोक आश्रम शामली (उत्तरप्रदेश) में संत रामपाल जी महाराज के सान्निध्य में 27 जोड़ों ने दहेज रहित विवाह कर समाज में एक नई और प्रेरणादायक मिसाल कायम की।

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সতলোক আশ্রম সোজত (রাজস্থান)-এ শাস্ত্রমতে মাত্র ১৭ মিনিটে ৪৭টি যুগলের পণমুক্ত বিবাহ সম্পন্ন হয়। সেখানে একটি টাকাও লেনদেন হয়নি। এটি সম্ভব হয়েছে সন্ত রামপাল জির অনন্য আধ্যাত্মিক ও সামাজিক শিক্ষার ফলে।
सतलोक आश्रम सोजत (राजस्थान) में ��ास्त्र विधि अनुसार मात्र 17 मिनट में 47 जोड़ों का दहेज रहित विवाह सम्पन्न हुआ, जिसमें एक पैसे का भी लेन-देन नहीं हुआ। यह संत रामपाल जी की अद्वितीय आध्यात्मिक व सामाजिक शिक्षाओं का परिणाम है।

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#KabirPrakatDiwas
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इस्लाम धर्म के प्रवर्तक माने जाने वाले हज़रत मुहम्मद को कबीर परमात्मा मिले थे। इस विषय में संत गरीबदास जी ने कहा है:
होते नबी मुहम्मद पीरा। जाकूँ मुर्शिद मिले कबीरा।।
ইসলাম ধর্মের প্রবর্তক হিসেবে বিবেচিত হযরত মুহাম্মদকে কবীর পরমাত্মা দেখা দিয়েছিলেন। এই বিষয়ে সন্ত গরীবদাস জী বলেছেন:
হোতে নবী মুহম্মদ পীরা। জাকুঁ মুর্শিদ মিলে কবীরা।।
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मीराबाई को भी कबीर साहेब सतगुरु रूप में मिले थे। जिसकी गवाही स्वयं संत गरीबदास जी ने दी है:
गरीब, मीरां बाई पद मिली, सतगुरु पीर कबीर।
देह छतां ल्यौ लीन है, पाया नहीं शरीर।।
गरीब, राग रूप सब तन भया, सुरति सुतार शरीर।
गरीबदास पत्थर फटे, मीरा को जब सतगुरु मिले कबीर।।
মীরাবাইকেও কবীর সাহেব সতগুরু রূপে দেখা দিয়েছিল। যার সাক্ষ্য দিয়েছেন নিজেই সন্ত গরীবদাস জী:
গরীব, মীরাঁ বাই পদ মিলে, সতগুরু পীর কবীর।
দেহ ছতাঁ ল্যৌ লীন হে, পা��়া নহি শরীর।।
গরীব, রাগ রূপ সব তন ভয়া, সুরতি সুতার শরীর।
গরীবদাস পাত্থর ফটে, মীরা কো জব সতগুরু মিলে কবীর।।

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#परमात्मा_की_पहचान
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ঋগ্বেদ মণ্ডল ৯, সূক্ত ৮২:১ এবং সূক্ত ৯৫:১-৫ অনুযায়ী
পরমেশ্বর সাকার, মানব সদৃশ, তিনি রাজার মতো দর্শনীয় ও সত্যলোক-এ তেজোময় দেহে বিরাজমান। তাঁর নাম কবীরদেব (কবীর)।
ऋग्वेद मण्डल 9, सूक्त 82:1 और सूक्त 95:1-5के अनुसार —
परमात्मा साकार हैं, मानव सदृश हैं, राजा के समान दर्शनीय हैं और सतलोक में तेजोमय शरीर में विद्यमान हैं। उनका नाम कविर्देव (कबीर)है।

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#परमात्मा_की_पहचान
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অগম নিগম বোধ, পৃষ্ঠা ৪৪
শব্দঃ
বাহ বাহ কবীর গুরু পূরা হ্যায়। (টেক)
পূরে গুরু কি মৈঁ বলি যায়ুঁ,জিসকা সকল জহুরা হৈ।
অধর দুলীচে পরে গুরুবন কে, জহাঁ শিব -ব্রহ্মা ভী সেবক হৈঁ।
শ্বেত ধ্বজা লহরাতী হৈ, অনহদ নাদ বজতা হৈ।
পূর্ণ কবীর সভী ঘটোঁ মেঁ বিদ্যমান হৈঁ, হরদম হাজির-নাজির হৈঁ।
নানক কহতে হৈঁ:জো কবীর নাম জপতা হৈ,বহ বড়া ভাগ্যশালী হৈ।
अगम निगम बोध, पृष्ठ 44, श्री नानक जी का शब्दः
वाह-वाह कबीर गुरू पूरा है। (टेक)
पूरे गुरू की मैं बलि जाऊँ, जिसका सकल जहूरा है।
अधर दुलीचे परे गुरुवन के, जहां शिव-ब्रह्मा भी सेवक हैं।
श्वेत ध्वजा लहराती है, अनहद नाद बजता है।
पूर्ण कबीर सभी घटों में विद्यमान हैं, हरदम हाज़िर-नाज़िर हैं।
नानक कहते हैं: "जो कबीर नाम जपता है, वह बड़ा भाग्यशाली है।"

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#बोधदिवससत्संगमेंसादरनिमंत्रण
#SantRampalJiBodhDiwas
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নস্ট্রেদমসের মতে, মহান শায়রণ অর্থাৎ ঐ মহাপুরুষ যিনি কলিযুগের মধ্যেই সত্যযুগ আনবেন। তিনি হলেন সন্ত রামপাল জি মহারাজ, যার বোধ দিবস পালিত হচ্ছে ১৭-ই ফেব্রুয়ারি। এই বোধ দিবস উপলক্ষে ও কবীর পরমেশ্বর জীর নির্বাণ দিবস উপলক্ষে, 15-17 ফেব্রুয়ারি 11-টি সতলোক আশ্রমে খাঁটি দেশি ঘি দিয়ে তৈরি একটি বিশাল ভাণ্ডারা চলছে। এছাড়া নিঃশুল্ক নাম দীক্ষাও দেওয়া হচ্ছে। এই উপলক্ষে সারা বিশ্ব আমন্ত্রিত।
नास्त्रेदमस के अनुसार ग्रेट शायरन यानी वह महान पुरुष जो कलयुग में सतयुग लाएगा वह संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं जिनका 17 फरवरी को बोध दिवस मनाया जा रहा है। बोध दिवस के उपलक्ष्य में व कबीर परमेश्वर जी के निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य में 15-17 फरवरी को 11 सतलोक आश्रमों में विशाल शुद्ध देसी घी द्वारा निर्मित विशाल भंडारा चल रहा है। साथ ही निःशुल्क नाम दीक्षा भी दी जा रही है। इस अवसर पर पूरा विश्व आमंत्रित है।

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#बोधदिवससत्संगमेंसादरनिमंत्रण
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কলিযুগের মধ্যে সত্যযুগ নিয়ে আসা মহাপুরুষ সন্ত রামপাল জী মহারাজের বোধ দিবস উপলক্ষে 15-17 ফেব্রুয়ারি 11-টি সতলোক আশ্রমে একটি বিশাল ভান্ডারার আয়োজন করা হচ্ছে যেখানে সারা বিশ্বকে আমন্ত্রণ জানানো হচ্ছে ।
कलयुग में सतयुग लाने वाले महापुरुष संत रामपाल जी महाराज जी के बोध दिवस पर 15-17 फरवरी को 11 सतलोक आश्रमों में विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है जिसमें पूरा विश्व आमंत्रित है।

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#बोधदिवससत्संगमेंसादरनिमंत्रण
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মানুষের জীবনের সবচেয়ে গুরুত্বপূর্ণ দিন হল যেদিন কেউ সতগুরুকে পায়। তার আগের জীবন অর্থহীন হয়। 17-ই ফেব্রুয়ারী 1988-তে, সন্ত রামপাল জী মহারাজ জী নাম দীক্ষা গ্রহণ করেন এবং কয়েক বছর পর, তাঁর শ্রদ্ধেয় গুরুদেবের কাছ থেকে নাম দীক্ষা দেওয়ার আদেশ পাওয়ার পর, তিনি কোটি কোটি মানুষকে পথ দেখান। এই দিনটি বোধ দিবস হিসেবে পালিত হয়। সন্ত রামপাল জী মহারাজের বোধ দিবস এবং কবীর পরমেশ্বর জীর নির্বাণ দিবস উপলক্ষে, 15-17 ফেব্রুয়ারি 11-টি সতলোক আশ্রমে একটি বিশাল ভান্ডারার আয়োজন করা হচ্ছে, যাতে সমগ্র বিশ্ব আমন্ত্রিত।
मनुष्य जीवन में महत्वपूर्ण दिन वह है जब सतगुरु मिल जाते हैं। उससे पहले का जीवन निरर्थक होता है। 17 फरवरी 1988 के दिन संत रामपाल जी महाराज जी ने नाम दीक्षा ली और कुछ वर्ष बाद अपने पूज्य गुरुदेव से नाम दीक्षा देने का आदेश पाकर करोड़ों लोगों का मार्गदर्शन किया। इसी दिन को बोध दिवस के रूप में मनाया जाता है। संत रामपाल जी महाराज जी के बोध दिवस के उपलक्ष्य में व कबीर परमेश्वर जी के निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य में 15-17 फरवरी को 11 सतलोक आश्रमों में विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है जिसमें पूरा विश्व आमंत्रित है।

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#बोधदिवससत्संगमेंसादरनिमंत्रण
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17-ই ফেব্রুয়ারি সন্ত রামপাল জি মহারাজের বোধ দিবস। এই দিন থেকেই ��িশ্ব কল্যাণে অবতীর্ণ এই পূর্ণ সন্ত দিনরাত এক করে সারা বিশ্বের ভবিষ্যবক্তারা যা বলে আসছেন তা কয়েক বছরের মধ্যেই তিনি সম্পন্ন করে দেখিয়েছেন। সন্ত রামপাল জী মহারাজের বোধ দিবস এবং কবীর পরমেশ্বর জীর নির্বাণ দিবস উপলক্ষে, 15-17-ই ফেব্রুয়ারি 11-টি সতলোক আশ্রমে একটি বিশাল ভান্ডারার আয়োজন করা হচ্ছে, যাতে সমগ্র বিশ্বকে আমন্ত্রণ জানানো হচ্ছে।
17 फरवरी को संत रामपाल जी महाराज का बोध दिवस है। इसी दिन से विश्व कल्याण के लिए अवतरित इस पूर्ण संत ने दिन रात एक कर दिया और कुछ ही वर्षों में वह कर दिखाया जो दुनिया भर के भविष्यवक्ता कहते आये हैं। संत रामपाल जी महाराज जी के बोध दिवस के उपलक्ष्य में व कबीर परमेश्वर जी के निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य में 15-17 फरवरी को 11 सतलोक आश्रमों में विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है जिसमें पूरा विश्व आमंत्रित है।

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আদরণীয় ধর্মদাসজি বলেছিলেন যে, যখন পরমেশ্বর কবীরজি মগহর থেকে সহশরীর সত্যলোক গমন করলেন, তখন হিন্দু ও মুসলমান উভয় সম্প্রদায়ই নিজেদের ধর্মীয় রীতিতে কবীর সাহেবের দেহের শেষকৃত্য করতে প্রস্তুত ছিল। কিন্তু তারা সেখানে কবীর সাহেবের শরীর খুঁজে পেল না, অর্থাৎ কবীর সাহেব অবিনাশী পরমেশ্বর।
আজ মোহে দর্শন দিযো জী কবীর।
হিন্দু কে তুমি দেব কহায়ে, মুসলমান কে পীর।
দোনো দীন কা ঝগড়া ছিড় গয়া, টোহে না পায়ে শরীর।।
आदरणीय धर्मदास जी ने बताया कि जब परमेश्वर कबीर जी मगहर से सशरीर सतलोक गये तब हिन्दू मुसलमान आपस में कबीर साहेब के शरीर का ��पनी धार्मिक रीति से अंतिम संस्कार करने के लिए लड़ने को तैयार थे लेकिन उन्हें वहां कबीर साहिब जी का शरीर नहीं मिला अर्थात कबीर साहिब अविनाशी परमेश्वर हैं।
आज मोहे दर्शन दियो जी कबीर।
हिन्दू के तुम देव कहाये, मुसलमान के पीर।
दोनों दीन का झगड़ा छिड़ गया, टोहे ना पाये शरीर।।

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#निमंत्रण_संसारको_सम्मानकेसाथ
परमेश्वर कबीर जी के निर्वाण दिवस को दिनांक 6 से 8 फरवरी 2025 को संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में 11 सतलोक आश्रमों में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। सभी आश्रमों में निःशुल्क भंडारे के साथ ही च���्पल-जूतों के सुव्यवस्थितकरण हेतु जूता घर एवं वाहानों की पार्किंग की व्यवस्था बहुत ही शानदार तथा निःशुल्क है।
आप सभी इस अवसर पर शुद्ध देसी घी से निर्मित भंडारे में सह परिवार सादर आमंत्रित हैं।
পরমেশ্বর কবীর জির নির্বাণ দিবস উপলক্ষে ৬ থেকে ৮ ফেব্রুয়ারি ২০২৫, সন্ত রামপাল জি মহারাজের সান্নিধ্যে ১১টি সতলোক আশ্রমে মহা উৎসাহের সাথে উদযাপন করা হচ্ছে। সমস্ত আশ্রমে বিনামূল্যে ভাণ্ডারার পাশাপাশি জুতো ঘর ও যানবাহনের পার্কিং এর সুব্যবস্থা করা হয়েছে, যা সম্পূর্ণ বিনামূল্যে ও অত্যন্ত সুন্দরভাবে পরিচালিত হবে।
আপনাদের সবাইকে পরিবারসহ বিশুদ্ধ দেশি ঘি দ্বারা প্রস্তুত ভাণ্ডারাতে সাদর আমন্ত্রণ জানানো হচ্ছে।
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तीर्थों से नहीं होता लाभ
सूक्ष्मवेद में कहा गया है:
कबीर, तीर्थ कर-कर जग मुआ, ऊडै़ पानी न्हाय।
सत्यनाम जपा नहीं, काल घसीटें जाय।।
परमेश्वर कबीर जी बताते हैं कि भ्रमित ज्ञान के आधार से संसार के व्यक्ति तीर्थों पर जाते हैं। आजीवन यह साधना करते हैं। जब मृत्यु हो जाती है तो उनको राहत उस साधना से नहीं मिलती। काल के दूत उनको बलपूर्वक (घसीटकर) खींचकर ले जाते हैं, दंडित करते हैं।
अधिक जानकारी के लिए देखिए Sant Rampal Ji Maharaj YouTube Channel
तत्वज्ञानहीन गुरूओं की मानें कि तीर्थ पर जाने से पुण्य लगता है। फिर पुण्य तो एक लगा और पाप लगे करोड़ों-अरबों-खरबों। क्योंकि तीर्थों में आने जाने में पैरों के नीचे अनेकों जीव मारे जाते हैं जिसका पाप भी लगता है। इस संदर्भ में सूक्ष्मवेद में कहा गया है:
कबीर, तीर्थ कर-कर जग मुआ, ऊडै़ पानी न्हाय।
सत्यनाम जपा नहीं, काल घसीटें जाय।।
अधिक जानकारी के लिए देखिए Sant Rampal Ji Maharaj YouTube Channel
तीर्��ों से लाभ संभव नहीं है। क्योंकि गीता अध्याय 16 श्लोक 23 कहा गया है कि जो व्यक्ति शास्त्र विधि को त्यागकर मनमाना आचरण करते हैं उन्हें न सुख मिलता है, न उनकी गति होती। अर्थात तीर्थ यात्रा शास्त्र में वर्णित न होने से व्यर्थ साधना है।
अधिक जानकारी के लिए Sant Rampal Ji Maharaj App पर पढ़िए "हिन्दू साहेबान नहीं समझे गीता, वेद, पुराण" ई-बुक
तीर्थ vs चित्तशुद्धि तीर्थ
श्रीमद्देवी भागवत (देवी पुराण) के छठे स्कन्ध, अध्याय 10 पृष्ठ 417 पर लिखा है कि "यह निश्चय है कि तीर्थ देह सम्बन्धी मैल को साफ कर देते हैं, किन्तु मन के मैल को धोने की शक्ति तीर्थों में नहीं है। चित्तशुद्धि तीर्थ गंगा आदि तीर्थों से भी अधिक पवित्र होता है। यदि भाग्यवश चित्तशुद्धि तीर्थ अर्थात् तत्वदर्शी संतों का सत्संग रूपी तीर्थ प्राप्त हो जाए तो मानसिक मैल के धुल जाने में कोई संदेह नहीं।"
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सर्वश्रेष्ठ तीर्थ, तत्वदर्शी संत का सत्संग
तीर्थ जैसे अमरनाथ, केदारनाथ, वैष्णो देवी आदि तो यादगारें हैं कि यहाँ पर ऐसी घटना घटी थी ताकि उनका प्रमाण बना रहे। जबकि श्रीमद्देवी भागवत (देवी पुराण) के छठे स्कन्ध, अध्याय 10 पृष्ठ 417 पर चित्तशुद्ध तीर्थ यानि तत्वदर्शी संत के सत्संग रूपी तीर्थ को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।
तीर्थों की विस्तृत जानकारी जानने के लिए देखिए Sant Rampal Ji Maharaj YouTube Channel
तीर्थ, वे पवित्र स्थान हैं जहाँ पर किसी महापुरूष का जन्म या निर्वाण हुआ था या किसी साधक ने साधना की थी या किसी ऋषि या देवी-देव की कथा से जुड़ी यादगारें हैं तीर्थ। जिससे लाभ नहीं होता। लेकिन सद्ग्रंथों में किस तीर्थ को श्रेष्ठ बताया गया है?
जानने के लिए पढें "हिन्दू साहेबान नहीं समझे गीता, वेद, पुराण"

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