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#पहले महीने में गर्भपात के लक्षण
khulkarjiyo · 5 months
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First time sex pregnancy chances hindi (सुरक्षा और उपाय)
पहली बार sex का अनुभव किसी भी व्यक्ति के लिए एक महत्वपूर्ण मोमेंट है लेकिन पहली बार ही गर्भधारण हो सकता है या नहीं इसकी जानकारी स्पष्ट नहीं है, हालांकि इस बारे में संभावनाएं बहुत कम होती है लेकिन ध्यान रहे यौन संबंध कभी भी पूरी तरह से सुरक्षित नहीं होते तो कुछ चांसेस प्रेगनेंसी के रहते हैं। First time sex pregnancy chances in hindi पहली बार सेक्स करने पर गर्भधारण के कितने चांसेस होते हैं यह इस…
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caseearn · 3 years
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पीरियड के कितने दिन बाद संबंध बनाना चाहिए लड़की प्रेगनेंट कब होती है ? प्रेग्नेंट होने का सही समय
पीरियड के कितने दिन बाद संबंध बनाना चाहिए लड़की प्रेगनेंट कब होती है ? प्रेग्नेंट होने का सही समय
शारीरिक संबंध बनने के बाद हर ladki की जिंदगी बदल जाती है और वह एक औरत बन जाती है ।सिर्फ शारीरिक संबंध यानी physical relationship ही नहीं बल्कि periods भी एक लड़की की life में बहुत ही importance रखते हैं। आज का article इसी के बारे में है। आज के article में हम बात करेंगे periods के कितने दिन��ं के बाद संबंध बनाना सही रहता है। Periods खत्म होने के कितने dino के बाद संबंध बनाना safe रहता है। तो चलिए…
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#bacchedani ka muaawja kab tak khula rahata hai period ke bad#period ke kitne din bad sex karna chahie#गर्भपात के बाद माहवारी कब आती है#गर्भावस्था में कितने महीने तक संबंध बनाना चाहिए#धारण कब होता है.#पीरियड के कितने दिन पहले प्रेग्नेंट नहीं होते हैं ?#पीरियड के कितने दिन बाद गर्भ ठहरता है#पीरियड के कितने दिन बाद बच्चा ठहरता है ?#पीरियड के कितने दिन बाद संबंध बनाना चाहिए#पीरियड के दौरान शारीरिक संबंध बनाने से क्या होता है#प्रेग्नेंट होने के कितने दिन बाद लक्षण दिखाई देते हैं ?#बच्चा कैसे ठहरता है ?#बच्चेदानी का मुंह कब तक खुला रहता है पीरियड के बाद#मासिक धर्म के कितने दिन बाद गर्भ ठहरता है#माहवारी के कितने दिन बाद गर्भ ठहरता है ?#लड़की प्रेगनेंट कब होती है ?
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sminstituteblog · 3 years
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क्या आप गर्भ और गर्भकालीन विकारों के बारे में जानते है?
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क्या आप गर्भ और गर्भकालीन विकारों के बारे में जानते है?  गर्भ धारण के पश्चात स्त्री में कौन-कौन से लक्षण प्रकट होते हैं | इस संबंध में निम्नाकिंत बातें उसके निर्णय के लिए जानना आवश्यक है |गर्भ स्थिर हो जाने पर तुरंत नारी में एक स्फुरण की अनुभूति होती है | इसे पूर्व प्रसव स्त्रियां सहज ही अनुभव कर लेती हैं |
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ऋषितुरोध- गर्भ स्थापित हो जाने पर मासिक स्नाव बंद हो जाता है | कभी-कभी  इसका अपवाद भी देखा जाता है | जी मिचलाना -गर्भधारण के कुछ महीनों तक की जी मिचलाने का लक्षण भी रहता है | बाद में यह नहीं होता |पेडू पर भारवृद्धि स्वभावत:  बच्चे के आकार ग्रहण करने और उसके बढ़ने पर पेट के निम्नांश (पेडू) में भार मालूम होता है |
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पेट का आकार बढ़ना - बच्चे की वृद्धि  के साथ पेट का आयतन और आकार भी बढ़ जाता है |स्तनों का काला पड़ना - स्तनों की घंटी (निप्पल) क्रमश: स्याह काली पड़ जाती है |स्तनों की वृद्धि - शिशु के जन्म के पूर्व ही माता के स्तन बढ़ने लगते हैं प्रसव के समय तक यह पूर्णरूपेण भर जाते है |
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गर्भस्थ शिशु की हरकत -5-6 माह के गर्भकाल के उपरांत भूर्ण में प्राण आ जाने पर वह पेट में हरकत प्रारंभ कर देता है |गर्भस्थिति काल - गर्भधारण के बाद शिशु के जन्म लेने की पूर्ण और स्वाभाविक अवधि 280 दिन होती है | इससे पहले या बाद में प्रसव होने को 'अकाल प्रसव' कहा जाता है |
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गर्भकालीन व्याधियां -गर्भकाल नारीजीवन का अत्यंत ही महत्वपूर्ण समय है | यदि यह समय निरापद बीत जाए और स्वाभाविक प्रसव हो जाए तो निश्चय ही स्वस्थ शिशु पैदा होगा और माता का स्वास्थ्य भी स्थिर रहेगा | अन्यथा योगी शिशु और प्रसूति कालीन व्याधियां पैदा हो जाएगी |
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प्रसूता की उचित जीवनचर्या - गर���भकाल मैं नारी को बहुत ही सावधान रहना चाहिए | खान-पान, रहन-सहन, धर्मचरण, इंद्रियां निग्रह आदि नियमों का पालन करने पर नि:संदेह स्वस्थ संतान का जन्म होता है | प्रमादवश गर्भकालीन नियमों का पालन न करने पर ग्राभीण को अनेक बीमारियां जकड़ लेती हैं | और उसका जीवन संकटमय हो जाता है | प्राय: निम्नांकित बीमारियां गर्भकाल में प्रकट हो सकती हैं- मिचली या कै, शूल या वेदना, रक्त स्नाव पाशर्ववेदना, अतिसार, कब्ज़ या कोष्टबद्धता, जननेंद्रिया की खुजली, मूत्रकृच्छता अथवा मूत्रवेग का अभाव, अवास्तविक प्रसव वेदना (False Labour Pain) गर्भसनाव या गर्भपात आदि | इसी प्रकार के और भी कितने ही कष्टकर उपसर्ग गर्भकाल में उपस्थित हो जाते हैं | उनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं |
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मिचली या कै, (Nausea and Vomiting)यह एक सामान्य उपसर्ग है और प्राय: गर्भ के प्रारंभिक 4-5 महीनों तक ही रहता है | उसके बाद यह स्वत: शांत हो जाता है |  उपचार - सवेरे उठकर एक गिलास ठंडा जल पीना, कुछ समय का प्रात: भ्रमण, सिट्ज़  बाथ, पेडू पर पानी की पट्टी और आवश्यक होने पर गर्म- ठंडा कंप्रेस इस अवस्था में नींबू का सेवन अवश्य करना चाहिए | यदि भूख न मालूम हो तो केवल ठंडा जल ग्रहण करना चाहिए|
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रक्त स्नाव (Bleeding)कभी-कभी शरीर के विभिन्न अंगों में से रक्त स्राव होने लगता है | यह अवस्था भावी शिशु और माता दोनों के लिए ही घातक है | अस्तु इसकी चिकित्सा शीघ्र होनी चाहिए | उपचार -यह  व्यवस्था प्राय: कब्ज़ या पेट में  विजातीय द्रव्यों के जम जाने पर होती है | अत: एनिमा या जल पट्टी अथवा मिट्टी के प्रयोग द्वारा पेशाब कर लेना चाहिए और भोजन के भूख की प्रतीक्षा करनी चाहिए | थोड़ी भूख होने पर नींबू का पानी का छाछ देना चाहिए |
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जननेंद्रिय की खुजली-यह अवस्था प्राय: गंदगी के कारण उत्पन्न होती है | योनिप्रदेश में गंदगी के कारण कीटाणुओं  की उत्पत्ति हो जाती  है | और भयंकर खुजली प्रारंभ हो जाती है | उपचार- योनिद्वार की सफाई करने  के स्वल्प उष्णजल से करने बाद वह मिटटी  की पुल्टिश  रखनी चाहिए |  मिटटी में विष तथा विजातीय द्रव्यों को सोखने की अद्वितीय श्रमता होती है |
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गर्भकालीन अतिसार (Diarrhoea) खान-पान की गड़बड़ी अथवा यांत्रिक खराबी के कारण कभी-कभी पतले दस्त होने लगते हैं | कभी-कभी आत्ययिक अवस्था  में गर्भपात तक हो जाता हैं | यघपि प्राकृतिक चिकित्सा यह मानते हैं कि पेट में विजातीय द्रव्यों के जमा हो जाने पर प्राकृति अपने ढंग से स्वयं उसे बाहर निकालती है किंतु इससे कमजोरी उत्पन्न हो जाती है, इसलिए इसकी रोकथाम भी आवश्यक है | उपचार - हिम बाथ, सिट्ज़   बाथ ठंडे जल से स्नान आदि प्राकृतिक जलचिकित्सा से इस रोग से छुटकारा मिल सकता है | साथ ही खान-पान भी अनुकूल होना आवश्यक है |
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अवास्तविक प्रसव वेदना (Fals Labour Pain)-कभी-कभी प्रसव के ठीक समय से पूर्व ही गर्भाशय में दर्द उत्पन्न हो जाता है | यह दर्द स्थायी ना होकर कुछ देर के लिए ही होता है फिर शांत हो जाता है | उपचार - ठंडा जल-पान  और पेट पर ठंडी जल पट्टी का प्रयोग |
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गर्भसनाव (Abortion)-गर्भ स्थिर हो जाने के बाद कभी कभी कुछ कारणों से गर्भ गिर जाता  है | इसके कई स्वरूप होते हैं | यदि 4 मास के पहले गर्भ  गिर जाए तो उसे' गर्भ स्नाव' और 6 महीने भीतर हो तो 'गर्भपात' तथा यादी 7 से 9 महीने के भीतर गर्भ गिरे तो उसे आकाल- प्रसव कहते हैं 
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लक्षण तथा पूर्वाभास - गर्भपात के पूर्व सिहरावन, आलस्य कमजोरी, कमर में दर्द तथा जननेंद्रिय में भार का बोध होता है | गर्भस्राव से पूर्व अत्याधिक मात्रा में रक्तस्राव भी होता है गर्भपात होने के प्राय: निम्ननाकिंत कारण होते हैं- मानसिक उत्तेजना, इंद्रियां सेवन, अत्याधिक भोजन तथा अखाघ प्रदार्थो का खाना, उपदंश और अत्याधिक मात्रा में श्वेतप्रदर का स्नाव ऐसी अवस्था उत्पन्न होने पर- पूर्ण विश्राम और पेट पर ठंडी जल पट्टी का प्रयोग बार बार करने से गर्भ रुक सकता है | अन्य सावधानियों का पालन भी आवश्यक है, ताकि रोगिणी का पेट ठीक और साफ रहे और अत्यधिक थकान तथा उत्तेजना उत्पन्न ना हो | 
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प्रसव (Child Birth)-जननी के गर्भ शिशु के उत्पादन होने की प्रक्रिया को प्रसव की संज्ञा दी जाती है | यदि सुचारू रूप से माता का कष्ट बढ़ाएं बिना स्वस्थ शिशु का जन्म हो जाता है तो इसे उत्तव प्रसव कहते हैं | इसके विपरीत यदि इस प्रक्रिया में किसी प्रकार का व्याघात उपस्थित होता है तो वही कष्ट का प्रसव होता है | उत्तम प्रसव के लिए गर्भकाल में पूरी सावधानी बरतनी आवश्यक है | यह सावधानिया निम्नलिखित हैं- १. सहवास का पूर्णत परित्याग |  २.  स्वास्थ्यकर स्थान पर निवास |  ३.  हल्का श्रम |  ४. सवारी आदि का त्याग |  ५. ढीले-ढाले वस्त्रों के धारण कारण, तंग जूते ना पहनना और सिर के बालों को ढीला - ढाला रखना यानि कसकर जुड़ा ना बांधना |  ६.  आंतो और पेट को सदैव साफ़ रखना |  ७. हल्का, सुपाच्य तथा पुष्टिकर और सातिवक भोजन करना |  ८. मन में पवित्र और उत्तम विचार रखना और शांत रहना |  ९. नित्य घर्षणयुक्त सिज़ बाथ |  १०. सुखकारक प्रसव हेतु गीली मिटटी की पुल्टिश का प्रयोग |  उपरोक्त नियमों का पालन करने पर यह बात सुनिचिश्त है कि माता स्वस्थ् और सुंदर संतान को जन्म देकर सभी स्वयं भी स्वस्थ रहेगी | 
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प्रसव वेदना (Labour Pain)-शिशु को जन्म देते समय माता को अनिवार्यत: कुछ-न-कुछ कष्ट होता ही है | स्वस्थ स्त्रियां इस दर्द को आसानी से झेल लेती हैं और कोई कष्ट कर उत्सर्ग पैदा नहीं होता | इसके विपरीत अनियमित और आचरण वाली माताएं इसमें घोर यंत्रणा पाती हैं और प्राय: शिशु तथा माता दोनों का ही जीवन संकटपूर्ण और रोगी हो जाता है | 
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प्रसव के बाद-प्रसवोपरांत 'सौरी ग्रहण' का समय भी माता और शिशु के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण है प्राय: इस काल में माताएं वायु और प्रकाशाहीन कमरे में-चारपाई पर ही पड़ी रहती हैं | उनका भोजन आदि भी गरिष्ट होता है | इस प्रकार के कब्जियत या अन्य रोगों की शिकार हो जाती हैं इस समय आवश्यक है कि उन्हें साफ-सुथरे, हवादार कमरे में साफ-स्वच्छ बिछावन पर रखा जाए | नाल किसी चतुर एवं योग्य नर्स से ही कटवाया जाए, अन्यथा कभी-कभी वह स्थान विषाक्त हो जाता है और अनेक कष्ट पैदा हो जाते हैं | इस समय चलना-फिरना या अधिक अंग संचालन हानिकारक है | प्रसव के बाद प्रसूता को नींद आ जाती है | ऐसी अवस्था में उसे पूर्ण विश्राम करने देना चाहिए | नींद खुलने पर 50०-70फा० हा० ऊष्मा के जल से सिज़ बाथ काफी देर तक देना चाहिए | ऐसा कई दिनों तक करना चाहिए | प्रसव के बाद तलपेट पर पट्टी बांध दी जाती है | इससे पेट और जनन संस्थान के सभी अवयव अपने स्थान पर आ जाते हैं | 
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कुछ प्रसवोत्तर बीमारियां-यतो ऊपर बताए गए नियमों का पालन करने पर प्रसव के बाद कोई कष्ट उत्पन्न ही नहीं होता, किंतु प्रमादवश उनके विरुद्ध आचरण करने पर अनेक कष्ट कर उपसर्ग उपस्थित हो जाते हैं | उनमें से कुछ इस प्रकार हैं, जिनका उपचार पानी और मिट्टी की सहायता से तथा नियमित आहार-विहार द्वारा भली-भांति हो सकता है | इन व्याधियों में निम्नाकिंत बीमारियां मुख्य हैं- १. फूल देर से गिरना |  २. अत्यधिक रक्तस्नाव | ३. प्रसव के बाद ज्वर |  ४. दुग्ध स्नावाभाव |  ५. पेशाब बंद हो जाना |  ६. प्रसवोत्तर कोष्टबद्धता |  ७. दूध का ज्वर |  ८. अत्यधिक दुग्धस्नाव |  ९. स्तन प्रदा और १०. प्रसवोत्तर वेदना |  उपरोक्त व्याधियों की चिकित्सा यथा स्थान पहले बताए गए जल चिकित्सोपचार से कर लेनी चाहिए |  डॉ अतहर अज़ीज़ (योगाचार्य) OUR YOUTUBE CHANNEL LINK https://www.youtube.com/channel/UCQXYQKZwIhrsiDr1DbcoFF BUY YOGA MAT FROM HERE CLICK ONhttps://amzn.to/36pXqdlBUY POWER MAT FROM HERE CLICK ON 1.https://amzn.to/375ng6G 2. https://amzn.to/3627R7e Read the full article
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प्रेगनेंसी क्या है और शुरुआती लक्षण क्या है, प्रेगनेंसी कैसे रोक सकते हैं
महिलाओं को कई बार अपने प्रेग्नेंट होने का पता नहीं चलता है। महिलाएं अपने आने वाले पीरियड के समय पर नहीं होने के कारण कई बार चिंता में पड़ जाती है। हालांकि महिला द्वारा किसी भी तरह का सेक्स नहीं करने पर भी महिलाओं के पीरियड्स में बदलाव हो सकते हैं। यदि किसी महिला या पुरुष पुरा सेक्स करने के बाद महिला को लगता है कि वह प्रेग्नेंट है या हो सकती है तो उसके कुछ शुरुआती लक्षण महिला को दिख जाते हैं। जिससे महिला पता कर सकती है कि वह प्रेग्नेंट है या नहीं। pregnant hai ki nahin
महिला का समय पर पीरियड्स नहीं होना हारमोंस की कमी के कारण भी हो सकता है परंतु यदि महिला के सेक्स करने के बाद पुरुष का स्पर्म महिला की योनि में रह जाता है तो महिला को प्रेग्नेंट होने का डर रहता है इसके लिए हमने नीचे सभी जानकारियां दी है ताकि महिला को पता चल सके कि प्रेग्नेंट किस समय होता है तथा प्रेगनेंसी होने के क्या क्या लक्षण हो सकते हैं।
घरेलू तरीकों से जानें प्रेग्नेंट हैं या नहीं
प्रेगनेंसी क्या है? (Pregnancy Kya Hota Hai)
प्रेगनेंसी एक प्रक्रिया है जिसमें पुरुष और स्त्री के सेक्स के बाद आदमी के द्वारा महिला की योनि में अपने शुक्राणु डालना है शुक्राणु स्त्री के अंडाणु को प्रभावित। यह प्रभावित करने की प्रक्रिया के बाद स्त्री के गर्भ में शुक्राणु जगह बना लेता है और एक निश्चित समय के बाद बच्चे का जन्म होना शुरू हो जाता है आमतौर पर इसे 40 हफ्तों की प्रक्रिया मर जाता है।
प्रेगनेंसी को आमतौर पर तीन भागों में बांटा गया है पहला 12 सप्ताह से दूसरा तेरा सप्ताह से 28 सप्ताह तीसरा 28 सप्ताह से अधिक समय यह समय महिला को बहुत सावधानी से रहना होता है।
प्रेगनेंसी कब होती है? (Pregnancy Kab Hoti Hai in Hindi)
अगर महिला प्रेगनेंसी का प्रयास करते हैं तो उन्हें पता होना चाहिए कि प्रेगनेंसी कब होती है कहीं बाहर महिलाओं पुरुष को पता नहीं होने के कारण सेक्स के दौरान पता ही नहीं चलता कि कब महिला प्रेग्नेंट हुई या नहीं। यदि महिला को प्रेगनेंसी से बचना है तो उसे पता होना चाहिए कि प्रेगनेंसी कब होती है चलिए जानते हैं।
महिला के पीरियड्स चार-पांच दिन तक ही रहता है अगले छे दिन बाद बिल्डिंग होना बंद हो जाती है। परंतु ब्लीडिंग बंद होने का कारण यह नहीं है कि महिला प्रेग्नेंट नहीं हो सकती हैं। महिला के पीरियड्स खत्म होने के बाद 11 दिन तक संभोग यानी कि सेक्स नहीं करना होगा 11 दिन के दौरान महिला का प्रेग्नेंट होना हो सकता है।
नेक्स्ट महीने के पीरियड आने से पहले 14 दिन पहले ओवुलेशन की प्रक्रिया होती है ओवुलेशन के दिन और पीरियड्स के 5 दिन का समय जो होता है वह महिला के प्रजनन क्षमता को तेज कर देता है जो प्रेग्नेंट होने का खतरा हो सकता है तो इन दिनों में सेक्स करने से बच सकता है।
भ्रूण का विकास कैसे होता है।
महिला की प्रेग्नेंट होने पर उसकी भ्रूण में विकास होना शुरू हो जाता है। महिला के भ्रूण में 10 सप्ताह की प्रेगनेंसी के समय यह होता है इसके बाद में गर्भपात का खतरा खत्म हो जाता है इस दौरान भ्रूण की लंबाई 30 मी मी होती है।
इसके लिए अल्ट्रासाउंड से दिल की धड़कन एवं अन्य गतिविधियों को महसूस कर सकते हैं भ्रूण चरण के दौरान संरचना का जल्द ही बदलाव होता है शरीर प्रणाली में विकास होता है। भ्रूण का विकास दोनों वजह में और वजन और लंबाई में गति हो सकते हैं। महिला पर पहले और पांचवें और 36 सप्ताह के बीच दिमाग पर n11 दिमाग की गतिविधियों पर असर पड़ता है।
प्रेगनेंसी के शुरुआती लक्षण क्या है? (Pregnancy ke suruati lakshan kya hote hai)
किसी भी महिला के प्रेग्नेंट होने के बाद उसकी प्रेग्नेंट होने का निश्चित परिणाम कुछ उसके यार में बदलाव से पता चल जाता है। महीना के प्रेग्नेंट होने पर उसमें आमतौर से कुछ लक्षण दिखाई देना संभव है। यह लक्षण महिला के प्रेगनेंसी का पता लगाते हैं। चलिये जानते है की प्रेगनेंसी के शुरुआती लक्षण क्या क्या हो सकते है।
व्यवहार में बदलाव
प्रेगनेंसी के लक्षण में यह होना आम बात है यदि कोई महिला प्रेग्नेंट है तो उसके व्यवहार में बदलाव जरूर आते हैं। प्रेग्नेंसी के समय खून में एस्ट्रोजन और progesterone की मात्रा बढ़ जाती है जिसके कारण शरीर के हारमोंस तेजी से बढ़ने लगते हैं। हारमोंस के तेजी से बढ़ने के कारण महिला के व्यवहार पर भी असर पड़ता है।
प्रेग्नेंसी के समय महिला अच्छे और बुरे दोनों तरह की भावना को महसूस करता है। वह सामान्य तौर पर उदास परेशान दिखाई देती है। प्रेग्नेंट महिला को यदि इस तरह की परेशानी हो या कुछ बुरा भला करने का मन करे तो इसके लिए वह अपने डॉक्टर से बात कर ले ताकि आप कोई गलत कदम ना उठा सके।
थकान महसूस होना
प्रेग्नेंसी के लक्षण में महिला को थकान महसूस होने का आभास होता है। इसके होने का कारण बच्चे को सहारा देने के लिए खुद को पूर्ण रूप से तैयार करने से होता है। इस समय आपको थकान महसूस हो सकती है। प्रेगनेंसी के इस लक्षण में महिला को खासतौर से अधिक बैठना और सोना पसंद आता है। वह बार-बार लेटना और बैठना पसंद करती है।
महिला के शरीर में प्रेगनेंसी के हारमोंस उसके लिए जिम्मेदार होता है यह हार्मोन आपको बार-बार थकान परेशान और भावुक कर सकता है। थकान का होना एक निश्चय लक्षण नहीं हो सकता है या आमतौर पर भी आ सकता है। प्रेगनेंसी में यह लक्षण आम है परंतु पहली और तीसरी तिमाही में सबसे ज्यादा थकान होने से आप बहुत प्रभावित होंगी।
स्तन का सूजन
Pregnancy के समय महिला के स्तन में बदलाव हो सकते हैं यानी कि महिला के स्तन बड़े सूजे हुए और बड़े लग सकते हैं। स्तन की त्वचा पर मेरी नशा देखी जा सकती है यह परेशानी खासतौर से पहले तिमाही में ही सबसे आम है जैसे-जैसे प्रेगनेंसी का समय बढ़ता जाता है यह होना बंद हो जाता है।
इसकी होने का कारण प्रेगनेंसी के दौरान हार्मोन स्तनों में रक्त आपूर्ति तेजी से बढ़ा देता है। इस दौरान आपके निप्पल क��� आसपास सनसनाहट सी महसूस होने लगती है। स्तन में सूजन होना प्रेगनेंसी का पहले लक्षण में से एक हो सकता है यह आपको पहले दिखाई दे जाएगा। कभी-कभी आपको स्तनों में बदलाव 1 सप्ताह के अंदर ही बिक जाता है जिससे आपको प्रेगनेंसी का पता चल जाता है। जैसे-जैसे शरीर में हारमोंस बढ़ता जाता है आपको इसका आभास होना कम हो जाता है। आपको प्रेगनेंसी में पहुंचा पर कुछ बदलाव भी देखने को मिल सकती है।
उल्टी आना और जी मचलना
प्रेगनेंसी के शुरुआती लक्षणों में महिला का जी मचल सकता है यह प्रेगनेंसी का एक आम लक्षण है। यह ज्यादातर प्रेगनेंसी महिला को 6 सप्ताह के अंदर शुरू हो जाता है कभी-कभी 4 सप्ताह से पहले ही शुरू हो सकता है। जी मचलने के साथ-साथ महिला को प्रेगनेंसी के दौरान उल्टी भी हो सकते हैं जिससे पता चलता है कि आप प्रेग्नेंट है। यह आपको सुबह दिन-रात किसी भी वक्त आ सकती है जब आपका जी मचलना शुरू होगा तो आपको उल्टी हो सकती है।
महावारी नहीं आना
प्रेगनेंसी के शुरुआती समय में महावारी नहीं आती है जिससे पता चलता है कि महिला प्रेग्नेंट है। यदि महिला को लगता है वह प्रेग्नेंट है और महावारी का समय निश्चित नहीं हो पा रहा तो महिला प्रेगनेंसी टेस्ट कर सकती है। महावारी का समय चूकना प्रेगनेंसी का संकेत है।
जब महिला को महावरी का समय फिक्स नहीं होता या आने वाली माहवारी का समय पता नहीं होता तो आपको महावारी देर से आने का एहसास नहीं होगा। इस समय महिला को बेचैनी स्तन में बदलाव बार-बार पेशाब आना होने के लक्षण दिखाई देंगे जो महिला के प्रेग्नेंट के शुरुआती लक्षण में से आम है।
महावारी के समय खून में हल्के धब्बे भी आ सकते हैं। महिला को पेशाब करते समय हल्के गुलाबी या भूरे रंग के धब्बे देखने को मिल जाता है इसके अलावा कई बार हल्का सा परेशानी महसूस होती है।
विशेषज्ञ के अनुसार प्रेगनेंसी के शुरुआती में खून में धब्बे आते हैं इसका कारण गर्भाशय में डिंब को प्रभावित होना या महावारी को नियंत्रण करने वाले हार्मोन में हलचल होने के कारण हो सकती है। ऐसा होना अपरा की वजह से हो सकता है। यदि इस परेशानी का सामना महिला करती है तो उसे रक्तस्राव के बाद अपने डॉक्टर से बात कर लेनी चाहिए।
शरीर में उच्च बेसन तापमान का बढ़ना
प्रेगनेंसी के दौरान महिला को अपने शरीर में तापमान में परिवर्तन दिखाई देंगे तो महिला को समझ आ जाएगा कि वह प्रेग्नेंट है। प्रेगनेंसी के 18 दिन तक लगातार शरीर में बेसिल का तापमान बढ़ता रहेगा। यह तापमान प्रेगनेंसी के दौरान पूरे समय तक बड़ा हुए ही रहेगा।
बार-बार पेशाब आना
प्रेगनेंसी की सूरत लक्षणों में आपको बार-बार पेशाब आने का लक्षण दिखाई देगा यह सामान्य तौर से अधिक बार होगा। यह इस कारण होता है क्योंकि शरीर में बहुत से हार्मोन के मिश्रण आपके शरीर में खून को अधिक मात्रा में बढ़ा देते हैं और गुर्दे के ज्यादा मेहनत करने के कारण होता है।
यदि महिला को पेशाब करते हुए जलन या दर्द होता है तो लिंग संक्रमण  यानी कि यूटीआई हो सकता है इसके लिए महिला को तुरंत अपने डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
खाने का मन नहीं करना
प्रेगनेंसी के शुरुआती दिनों में महिला को किसी तरह की चीज खाना अच्छा नहीं लगता जिससे उन्हें किसी भी चीज इस्माइल पसंद नहीं आती। महिला खाने को देखकर या उसकी स्माइल सूंघने से बदबू आने लगती है जिससे उसे उल्टी या जी मचल। कहीं बाहर महिला को सूरत इलेक्शन के दौरान खट्टा खाने का मन ज्यादा करता है।
प्रेगनेंसी कैसे रोक सकते हैं। (Pregnancy Ko Kaise Rok Sakte Hain)
महिला अपनी pregnancy को रोक सकती है यदि सेक्स के दौरान कुछ चीजों का ध्यान रख जाए तो महिला प्रेग्नेंट बता सकती है। साथ साथ कुछ उपाय भी बताए गए हैं जिनका ध्यान रखना होगा ताकि महिला प्रेग्नेंट ना हो।
कंडोम का इस्तेमाल
प्रेगनेंसी रोकने के लिए सबसे अच्छा तरीका है व्यक्ति कंडोम का इस्तेमाल करें। कंडोम का इस्तेमाल सबसे सुरक्षित तरीका है सफल और सुविधाजनक भी है इससे व्यक्ति सेक्स का आनंद भी ले सकता है और प्रेग्नेंसी से भी बच सकता है। यदि व्यक्ति के सेक्स करने की इच्छा हो और महिला मां नहीं बनना चाहती तो उसे कंडोम का इस्तेमाल करते होना चाहिए।
वीर्य पात रोक कर
यदि महिलाओं को सेक्स के दौरान प्रेग्नेंट होने से बचना है तो पुरुष को sperm को महिला की योनि में जाने से रोकना होगा। जिसके लिए पुरुष को सेक्स के दौरान जैसे ही वीर्य के आने का एहसास होता है तो उसे अपने लिंग को योनि से बाहर निकाल लेना चाहिए ताकि योनि में वीर्य ना जा सके और महिला प्रेग्नेंट होने से बच सकें। हालांकि कभी-कभी यह करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि पुरुष इतना जोश में होता है कि वीर्य अंदर ही निकाल देता है जिसे प्रेग्नेंट होने का खतरा बढ़ जाता है।
गर्भनिरोधक उपाय से
गर्भनिरोधक यानी की प्रेग्नेंसी रोकने के लिए डॉक्टर एक माचिस के तीली की तरह छोटी सी रोड आपकी हाथ में डालता है जिससे आप 4 साल तक प्रेग्नेंट होने से बच सकते हैं। यह रोड शरीर में ऐसा आदमी पैदा करती है जिससे महिला प्रेग्नेंट नहीं हो सकती यदि महिला का इन 4 साल में प्रेग्नेंट या बच्चा पैदा करने की इच्छा होती है तो डॉक्टर की मदद से इस रोड को हाथ से निकलवा सकती है।
गर्भनिरोधक गोलियां
महिला अपने प्रेगनेंसी को रोकने के लिए कुछ गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल कर सकती है ताकि प्रेग्नेंट हो सके हालांकि यह दवाइयां हानिकारक हो सकती है परंतु यह एक असरदार उपाय है। महिला को गर्भ निरोधक गोली लेने से पहले एक बार रोग विशेषज्ञ को को दिखा देना चाहिए या उनके सलाह ले लेनी चाहिए।
Url Source: https://www.ghareluayurvedicupay.com/pregnancy-ke-suruati-lakshan/
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docconsult-blog · 7 years
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थायराइड क्या होता है?
Thyroid गले में स्थित एक ग्रंथि (gland) का नाम है। यह ग्लैंड गले के आगे के हिस्से में मौजूद होता है और इसका आकार एक तितली के समान होता है। यह बॉडी के कई तरह के metabolic processes*को control करने के काम आता है।
थायराइड की समस्याएं क्या होती हैं?
Thyroid Gland से produce होने वाले hormones शरीर में होने वाले सभी मेटाबोलिक प्रक्रियाओं को affect करते हैं। थायराइड disorders से घेंघा जैसी छोटी बीमारी से लेकर जानलेवा कैंसर तक हो सकता है। लेकिन जो सबसे common थायराइड प्रॉब्लम होती है वो है थायराइड हॉर्मोन्स का सही मात्रा में प्रोडक्शन ना होना। इसमें दो तरह की समस्या आती है-
Hyperthyroidism (हाइपरथायरायडिज्म / अतिगलग्रंथिता ): ज़रुरत से अधिक hormones का पैदा होना
Hypothyroidism (हाइपोथायरायडिज्म / अवटु-अल्पक्रियता): ज़रूअत से कम हॉर्मोन्स का प्रोडक्शन होना
इन समस्याओं की वजह से कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं, लेकिन अगर सही से diagnose करके इलाज किया जाए तो इन्हें अच्छे से manage किया जा सकता है।
हाइपरथायरायडिज्म होने के कारण
Graves’ disease
ये हाइपरथायरायडिज्म होने का सबसे आम कारण है। ये एक तरह की autoimmune condition होती है जिसमे हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम एक antibody create करता है जिसे कारण थायराइड ग्लैंड अधिक मात्रा में थायराइड hormone release करने लगता है। यदि परिवार में किसी एक व्यक्ति को ये बीमारी है तो और लोगों को भी समस्या हो सकती है। आमतौर पर ये प्रॉब्लम कम उम्र की औरतों को होती है।
थाइरोइडाइटिस
थायराइड की सूजन को थाइरोइडाइटिस कहते हैं। Thyroiditis में किसी वायरस या इम्यून सिस्टम में प्रॉब्लम की वजह से थायराइड ग्लैंड में स्वेलिंग हो जाती है
Thyroiditis कई प्रकार का हो सकता है:
सबऐक्यूट
किसी अनजान कारण से अचानक होने वाला Thyroiditis, जो कुछ महीनो बाद अपने आप ही ठीक हो जाता है।
प्रसवोत्तर
इस तरह की Thyroiditis महिलाओं को प्रेगनेंसी के बाद affect करती है। बच्चा पैदा होने के बाद 10 में से 1-2 महिलाओं को ये समस्या हो जाती है। आमतौर पर ये problem एक-दो महीने तक बनी रहती है और उसके बाद कुछ महीनो तक hypothyroidism की समस्या पैदा हो जाती है। लेकिन अच्छी बात ये है कि कुछ समय के बाद अधिकतर मामलों में थायराइड normal हो जाता है।
थायराइड नोड्यूल
इस समस्या में थायराइड ग्लैंड में एक या उससे ज्यादा नोड्यूल grow हो जाते हैं जिसे ग्लैंड की एक्टिविटी बढ़ जाती है और आपके खून में अधिक मात्रा में थायराइड हॉर्मोन release होने लगता है।
आयोडीन की प्रचुरता
यदि आप अधिक मात्र में आयोडीन का सेवन करते हैं तो भी hyperthyroidism की समस्या पैदा हो सकती है।
थायराइड मेडिकेशन
अधिक मात्र में थायराइड hormone medication लेने से भी hyperthyroidism हो सकता है। यदि आपका hypothyroidism का इलाज चल रहा है तो कभी भी बिना डॉक्टर से पूछे दवा का extra dose न लें, भले ही आप पहले दवा खाना भूल गए हों।
हाइपरथायरायडिज्म के लक्षण
अक्सर hyperthyroidism के लक्षण बहुत साफ़ नहीं होते और अन्य बीमारियों से मिलते जुलते होते हैं।
Hyperthyroidism के ज्यादातर मरीजों में थायराइड Gland बड़ा हो जाता है, जिसे हम घेंघा या goitre भी कहते हैं। ऐसे में आपको गले के अगले भाग में एक लम्प दिखाई या महसूस होता है।
इसके आलावा hyperthyroidism के ये symptoms हो सकते हैं:
चिंता, घबराहट और चिड़चिड़ापन
भूख बढ़ने के बावजूद वजन का कम होना
मल त्यागने की frequency बढ़ना और ढीली टट्टी होना
सोने में दिक्कत होना
दोहरी दृष्टि की समस्या होना
आँखों का बाहर निकलना
बालों की समस्या जैसे की टूटना, पतला होना और झड़ना
Heart beat का irregular होना, खासतौर से वृद्ध लोगों में
Menstrual cycle में बदलाव होना, periods की frequency कम होना शामिल है।
मांसपेशियों में कमजोरी, विशेष रूप से जांघों और ऊपरी बाहों में
हाथों का कांपना
पसीना आना
त्वचा का पतला होना
हाइपरथायरायडिज्म का पता कैसे चलता है?
इसका पता इन टेस्ट्स से चल सकता है:
Thyroid-stimulating hormone (TSH) Blood test
थायराइड अल्ट्रासाउंड
थायराइड स्कैन
हाइपरथायरायडिज्म का इलाज
Hyperthyroidism का इलाज आपकी उम्र, सेहत, symptoms की severity और overactive थायराइड के असल कारण को देखकर किया जाता है।
डॉक्टर आपको इन तरीको से Treatment दे सकता है:
Anti-thyroid drugs
इसमें propylthiouracil (PTU) and methimazole (Tapazole), जैसी दवाएं दी जाती हैं जो थायराइड ग्लैंड को नए हॉर्मोन पैदा करने से रोकता है। हालाँकि, इसके कुछ side effects हो सकते हैं।
सर्जरी द्वारा उपचार
सर्जरी द्वारा पूरा या थायराइड का कुछ हिस्सा निकाला जाना, जिसे thyroidectomy कहते हैं। इस तरीके में भी व्यक्ति को बाकी की ज़िन्दगी underactive thyroid का इलाज करना पड़ता है।
बीटा-ब्लॉकर्स
ह्रदय गति को कम करने के लिए इनका प्रयोग होता है। इसमें थायराइड हॉर्मोन का लेवल नहीं घटता लेकिन हार्ट-रेट सही हो जाती है।
Hyperthyroidism की वजह से होने वाली complications
हाइपरथायरायडिज्म होने पर इसका उचित इलाज करना बेहद ज़रूरी है। ऐसा न करने पर गंभीर और जानलेवा समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
Hyperthyroidism से जुड़ी प्रमुख जटिलताएं हैं:
Irregular heart rhythm (atrial fibrillation) अनियमित हार्ट रेट
ह्रदय का फेल होना
गर्भपात
ऑस्टियोपोरोसिस और हड्डियों का टूटना ( hyperthyroidism की वजह से bones से calcium तेजी से ख़त्म होता है)
Hyperthyroidism के सिम्पटम्स का तेजी से बिगड़ना Thyrotoxic crisis कहलाता है और इसका फ़ौरन इलाज कराना बेहद ज़रूरी है।
इसके निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैं:
मूर्छित होना
उलझन होना
जागरूकता में कमी आना
बुखार होना
बेचैनी होना,
नाड़ी का बहुत तेज चलना
Hypothyroidism
Hypothyroidism को underactive thyroid कह कर भी बुलाया जाता है। इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति का थायराइड ग्लैंड उचित मात्रा में थायराइड hormone नहीं produce करता। अगर शरीर में ये हॉर्मोन कम हो जाता है
ये दो प्रकार का हो सकता है:
यदि directly थायराइड ग्लैंड में समस्या की वजह से Hypothyroidism  होता  है तो उसे Primary Hypothyroidism कहते हैं।
यदि किसी और समस्या की वजह से थायराइड ग्लैंड की थायराइड हॉर्मोन प्रोड्यूस करने की क्षमता बाधित होती है तो उसे Secondary Hypothyroidism कहते हैं।
हाइपोथायरायडिज्म के कारण
Hypothyroidism का सबसे common कारण है Hashimoto’s thyroiditis. ये एक तरह का autoimmune disorder है जिसकी वजह से थायराइड ग्लैंड में सूजन जो जाती है। हैशीमोटोज थ्य्रोदिआइत्स होने पर शरीर कुछ ऐसे antibodies produce करता है जो थायराइड ग्लैंड पर अटैक कर उसे नष्ट कर देती हैं। Thyroiditis viral infection की वजह से भी हो सकता है।
Hypothyroidism के अन्य कारण इस प्रकार हैं:
गले के आस-पास रेडिएशन थेरेपी:जो कि कैंसर का इलाज करने के दौरान दी जा सकत�� है।
Radioactive iodine treatment:अगर overactive thyroid gland के उपचार में RAI का प्रयोग होता है तो radiation की वजह से थायराइड ग्लैंड के सेल्स नष्ट हो जाते हैं और hypothyroidism हो जाता है।
थायराइड सरजरी:यदि किसी इलाज में थायराइड ग्लैंड को हटा दिया जाता है, for example: hyperthyroidism treat करने के लिए तो व्यक्ति को hypothyroidism हो जाता है।
खाने में आयोडीन की कमी: हमारा शरीर खुद iodine नहीं बनाता है, इसलिए हमें इसे खाने में लेना चाहिए. इसके लिए आयोडीन युक्त नमक, अंडे, मछलियाँ और dairy products का सेवन करना चाहिए।
हाइपोथायरायडिज्म का खतरा किसे है?
अधिकतर ये समस्या महिलाओं, खासतौर से अधिक उम्र की महिलाओं को होती है। अगर आपके घर में किसी को autoimmune disease है तो भी आप hypothyroidism से ग्रस्त हो सकते हैं.
कुछ और रिस्क फैक्टर्स हैं:
प्रजाति  (being white or Asian)
उम्र (अधिक उम्र)
असमय बालों का सफ़ेद होना
Autoimmune disorders, जैसे कि: type 1 diabetes, multiple sclerosis, rheumatoid arthritis, celiac disease, Addison’s disease, pernicious anemia, or vitiligo
द्विध्रुवी विकार (Bipolar disorder)
डाउन सिंड्रोम
टर्नर सिंड्रोम
हाइपोथायरायडिज्म के लक्षण /
इसके लक्षण बहुत साफ नहीं होते और अन्य बीमारियों से मैच कर सकते है:
Menstrual cycle में बदलाव
कब्ज
डिप्रेशन
बालों का झड़ना व रुखा होना
ड्राई स्किन
थकावट
Cold के प्रति अधिक sensitive होना
धीमी ह्रदय गति
Thyroid gland में सूजन (घेंघा)
अचानक से वजन बढ़ना या वजन कम करने में दिक्कत होना।
बच्चों में hypothyroidism के सिम्पटम्स जल्दी पता नहीं चलते। कुछ लक्षण निम्न हैं:
(Hypothyroidism symptoms in children)
ठंडे हाथ-पाँव
कब्ज
बहुत अधिक नींद आना
कर्कश रोना
कम या बिलकुल नहीं बढ़ना
लगातार पीलिया होना
सूजा हुआ चेहरा
पेट की सूजन
जीभ में सूजन
Hypothyroidism का पता कैसे चलता है?
इसका पता लगाने के लिए कुछ ब्लड टेस्ट्स होते हैं जिसमे हॉर्मोन का लेवल पता लगाया जाता है। डॉक्टर आपको इन टेस्ट्स के लिए कह सकता है:
Thyroid-stimulating hormone (TSH)
T4 (thyroxine)
Thyroid ultrasound
Thyroid scan
हाइपोथायरायडिज्म का इलाज
Hypothyroidism के इलाज के लिए आपको synthetic (man-made) thyroid hormone T4 prescribe किया जा सकता है। जो आप एक गोली के रूप में ले सकते हैं। ध्यान रहे कि इसे लेने से पहले आप डॉक्टर को बाकी चल रही दवाओं या food-supplements और diet के बारे में ज़रूर बताएं।
इस बीमारी के हो जाने पर आपको समय-समय पर थायराइड हॉर्मोन लेवल जांचने के लिए खून की जांच करानी पड़ती है और मौजूदा हॉर्मोन लेवल के हिसाब से दवाएं लेनी पड़ती है।
Hypothyroidism से होने वाली कॉम्प्लिकेशन
Heart problems दिल की बीमारी
Infertility या बांझपन
जॉइंट पेन
मोटापा
गर्भवती महिलाओं में ये समस्या होने वाली शिशु के विकास को बाधित कर सकती है। प्रेगनेंसी के पहले  महीनो में बच्चे को अपनी माँ से ही थायराइड हॉर्मोन प्राप्त होता है और यदि माँ को ये समस्या है तो बेबी के mental development में दिक्कत आ सकती है।
यदि थायराइड हॉर्मोन का लेवल बहुत ही कम हो जाता है तो व्यक्ति को hypothyroidism का सबसे severe form myxedema हो सकता है। इस कंडीशन में इंसान कोमा में जा सकता है या उसके शरीर का तापमान बहुत नीचे गिर सकता है, जिससे मौत भी हो सकती है।
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gethealthy18-blog · 4 years
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गर्भावस्था में शतावरी खाना सुरक्षित है या नहीं – Is Shatavari Good for Pregnancy in Hindi
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गर्भावस्था में शतावरी खाना सुरक्षित है या नहीं – Is Shatavari Good for Pregnancy in Hindi
गर्भावस्था में शतावरी खाना सुरक्षित है या नहीं – Is Shatavari Good for Pregnancy in Hindi vinita pangeni Hyderabd040-395603080 January 20, 2020
गर्भावस्था के दौरान होने वाली समस्याओं को कम करने के लिए महिलाएं कई तरह के उपाय अपनाती हैं। इसी में शामिल है शतावरी का उपयोग। सदियों से इसे जड़ी-बूटी के तौर पर इस्तेमाल में लाया जा रहा है। यह आयुर्वेदिक औषधि गर्भावस्था में कितनी सुरक्षित है और कितनी नहीं, इसको लेकर कई संशय हैं। यही वजह है कि स्टाइलक्रेज के इस लेख में हम गर्भावस्था में शतावरी सुरक्षित है या नहीं इसके बारे में बताएंगे। इसके बाद प्रेगनेंसी में शतावरी के फायदे हो सकते हैं या नहीं इस पर भी चर्चा करेंगे। इसके अलावा, गर्भावस्था में शतावरी के नुकसान के बारे में भी बताएंगे। शतावरी से जुड़ी ये सभी जानकारियां जानने के लिए आखिरी तक पढ़ते रहें यह लेख। 
चलिए, सबसे पहले यह जानते हैं कि प्रेगनेंसी में शतावरी खाना सुरक्षित है या नहीं।
विषय सूची
क्या गर्भावस्था में शतावरी खाना सुरक्षित है?
प्रेगनेंसी में शतावरी का सेवन सुरक्षित है या नहीं, यह प्रत्येक महिला की गर्भावस्था पर निर्भर करता है। गर्भास्था में फोलेट से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन करने की सलाह दी जाती है, जिसमें शतावरी भी शामिल है। इसे इंग्लिश में एस्पेरेगस रेसिमोसस (Asparagus racemosus) भी कहा जाता है। यही वजह है कि प्रेगनेंसी में शतावरी का सेवन लाभदायक माना जाता है (1)। एनसीबीआई (National Center for Biotechnology Information) की वेबसाइट पर प्रकाशित एक रिसर्च के मुत���बिक, शतावरी का सेवन उन महिलाओं को करने की सलाह दी जाती है, जिन्हें गर्भपात होने का खतरा होता है (2)। दरअसल, इसमें एंटीएबोर्टिफिशिएंट (Anti Abortifacient) गुण होते हैं (3)। 
शतावरी के संबंध में मौजूद विभिन्न शोध के मुताबिक इसका उपयोग गर्भावस्था में किया तो जा सकता है, लेकिन साथ में सावधानी बरतना जरूरी है (4)। इसे खाने से पहले इसकी मात्रा पर खास ध्यान देना चाहिए, क्योंकि अधिक मात्रा में किसी भी चीज का सेवन मां और गर्भस्थ शिशु के लिए नुकसानदायक हो सकता है। इसलिए, गर्भावस्था में अगर किसी भी तरह की जटिलता हो, तो शतावरी को आहार में शामिल करने से पहले डॉक्टर से जरूर पूछना चाहिए। नीचे हम प्रेगनेंसी में शतावरी खाने का सही समय भी बता रहे हैं। ध्यान रहे कि इसे वक्त से पहले और ज्यादा सेवन करने से कई गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। 
चलिए, नीचे जानते गर्भावस्था में शतावरी के फायदे के बारे में। 
प्रेगनेंसी में शतावरी खाने के फायदे – Benefits of Eating Shatavari in Pregnancy In Hindi
1. बर्थ डिफेक्ट से बचाए
प्राचीन काल से शतावरी का इस्तेमाल गर्भावस्था के दौरान किया जा रहा है। खासकर, बर्थ डिफेक्ट से बचाव के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। बर्थ डिफेक्ट यानी जन्म दोष जो शिशु के शरीर के लगभग किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकता है। एनसीबीआई ने भी इस संबंध में एक रिसर्च पेपर पब्लिश किया है। उस शोध में भी साफ तौर पर कहा गया है कि शतावरी यानी एस्पेरेगस में पाए जाने वाला फोलेट गर्भ में पल रहे भ्रूण को जन्म दोष से बचाने में मदद कर सकता है (5)।
2. इम्यूनिटी बढ़ाए
शतावरी का सेवन करने से इम्यूनिटी को बेहतर करने में मदद मिल सकती है। यह मां और भ्रूण दोनों की प्रतिरक्षा प्रणाली को बेहतर करने में लाभदायक माना जाता है। गर्भावस्था के साथ ही प्रसव के बाद भी यह मां की इम्यूनिटी के लिए अच्छा माना जाता है। दरअसल, इसमें इम्युनोमॉड्यूलेटर एजेंट होते हैं, जिसकी वजह से शरीर की जरूरत के हिसाब से प्रतिरक्षा काम करती है और बीमारियों से बचाती है (6)। 
3. दूध के उत्पादन को बढ़ाए
गर्भावस्था के आखिरी समय और प्रसव के बाद शतावारी का सेवन करने से मां के दूध की गुणवत्ता बढ़ सकती है। साथ ही इसका उत्पादन भी बढ़ सकता है (7)। दरअसल, इसमें गैलेक्टगॉग हार्मोन (दूध बढ़ाने वाला) का प्रभाव स्टेरॉइडल सैपोनिन कंपाउंड की वजह से होता है। यह हार्मोन प्रोलैक्टिन के स्तर को बढ़ाता है, जिससे दूध के उत्पादन में वृद्धि होती है। इसी के संबंध में एनसीबीआई में एक रिसर्च मौजूद है। इसमें कहा गया है कि क्लिनिकल ट्रायल के दौरान गर्भवतियों को शतावरी के जड़ से बना पाउडर दिया गया। इसके उपयोग से उनमें प्रोलैक्टिन हार्मोन की मात्रा सामान्य की तुलना में 3 गुना अधिक पाई गई। यह हार्मोन दूध को बढ़ाने का काम करता है (8)। 
प्रेगनेंसी में शतावरी के फायदे जानने के बाद आगे हम बता रहे हैं कि गर्भावस्था में शतावरी को आहार में कैसे शामिल किया जा सकता है।
गर्भावस्था के आहार में शतावरी को कैसे शामिल करें?
कब खाएं : शतावरी की जड़ को प्रेगनेंसी के आखिरी तिमाही में सेवन करने की सलाह दी जाती है। प्रेगनेंसी के साथ ही प्रसव के बाद अगले तीन महीने तक इसका सेवन किया जा सकता है। ध्यान रहे कि गर्भावस्था में शतावरी का सेवन सावधानी के साथ करने पर जोर दिया गया है। साथ ही इसका सेवन पहली तिमाही में बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए (6) (9)। इसकी अनदेखी से प्रेगनेंसी में शतावरी के फायदे की जगह नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। 
कितना खाएं : शतावरी का सेवन एक कप करने की सलाह दी जाती है। माना जाता है कि एक कप शतावरी का सेवन करने से गर्भवतियों को जरूरी पोषक तत्व मिल सकते हैं (11)। यहां एक कप मात्रा सब्जी के रूप में बताई गई है। वहीं, चूर्ण व पाउडर के रूप में इसका सेवन करते समय कितनी मात्रा ली जानी चाहिए यह स्पष्ट नहीं है। इतना जरूर साफ है कि अधिक मात्रा में इसका सेवन करने से गर्भपात जैसे गंभीर परिणाम का सामना करना पड़ सकता है (9)। वैसे करीब 10 g तक शतावरी के पाउडर का सेवन अन्य हर्बल दवाओं के साथ किया जा सकता है (13), लेकिन इसका इस्तेमाल करने से पहले एक बार डॉक्टर से सलाह जरूर लें। 
कैसे खाएं : शतावरी का उपयोग करना बहुत आसान है। इसे सब्जी से लेकर सलाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। आइए, शतावरी के उपयोग के बारे में जानते हैं-
शतावरी का सेवन ताजे जूस के रूप में कर सकते हैं।
शतावरी को उबाल कर उपयोग में लाया जा सकता है।
हरी सलाद के रूप में भी शतावरी का सेवन किया जा सकता है।
शतावरी की जड़ से बने चूर्ण व शतावरी पाउडर को सूप में मिलाकर उपयोग में लाया जा सकता है।
शतावरी की जड़ से बने पाउडर को दूध में मिलाकर भी पी सकते हैं।
अब हम प्रेगनेंसी में शतावरी के नुकसान के बारे में बता रहे हैं।
गर्भावस्था में शतावरी के नुकसान – Side Effects of Shatavari in Pregnancy in Hindi
गर्भावस्था में शतावरी के फायदे के बारे में तो हम बता ही चुके हैं, लेकिन ध्यान रखें कि इसका अधिक मात्रा में सेवन कई समस्याओं का कारण भी बन सकता है। जी हां, गर्भावस्था में शतावरी के नुकसान भी हो सकते हैं। यही वजह है कि गर्भावस्था में इसका सेवन सावधानी के साथ करने की सलाह दी जाती है (14) (2)। 
इसका सेवन करने से होने वाले गर्भस्थ शिशु को क्षति पहुंचा सकती है।
शिशु के विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
बच्चे के वजन और लंबाई पर असर पड़ सकता है।
पैरों में सूजन आ सकती है।
यह तो अब आप जान ही गए हैं कि गर्भावस्था में शतावरी के फायदे के साथ ही कई नुकसान भी हैं। ऐसे में पहले इस लेख में बताए गए प्रेगनेंसी में शतावरी के नुकसान और फायदे दोनों को अच्छे से समझकर ही सूझबूझ के साथ इसे अपने आहार में शामिल करें। जैसा कि आप जान ही गए हैं कि गर्भावस्था में शतावरी के नुकसान से बचने के लिए कम से कम मात्रा में इसका सेवन किया जाना चाहिए। ऐसे में गर्भावस्था में शतावरी का सेवन करके इसका लाभ लेने के लिए एक बार डॉक्टर से भी परा���र्श ले सकते हैं। यह लेख आपको कैसा लगा हमें जरूर बताएं। साथ ही प्रेगनेंसी में शतावरी के सेवन से संबंधित कोई सवाल आपके जहन में हों, तो उसे आप कमेंट बॉक्स के माध्यम से हम तक पहुंचा सकते हैं।
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vinita pangeni
विनिता पंगेनी ने एनएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय से मास कम्यूनिकेशन में बीए ऑनर्स और एमए किया है। टेलीविजन और डिजिटल मीडिया में काम करते हुए इन्हें करीब चार साल हो गए हैं। इन्हें उत्तराखंड के कई पॉलिटिकल लीडर और लोकल कलाकारों के इंटरव्यू लेना और लेखन का अनुभव है। विशेष कर इन्हें आम लोगों से जुड़ी रिपोर्ट्स करना और उस पर लेख लिखना पसंद है। इसके अलावा, इन्हें बाइक चलाना, नई जगह घूमना और नए लोगों से मिलकर उनके जीवन के अनुभव जानना अच्छा लगता है।
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Source: https://www.stylecraze.com/hindi/pregnancy-me-shatavari-khana-chahiye-ya-nahi-in-hindi/
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Miscarriage
गर्भपात का सामान्य अवलोकन
गर्भपात एक ऐसी घटना है जिसके परिणामस्वरूप गर्भावस्था के दौरान भ्रूण की हानि होती है। इसे एक स्वेच्छिक गर्भपात भी कहा जाता है। यह आमतौर पर गर्भावस्था के पहले तिमाही, या पहले तीन महीने के दौरान होता है। तीन महीनों के बाद होने वाली गर्भपात, या 14 से 26 सप्ताह के बीच, आम तौर पर मां में अंतर्निहित स्वास्थ्य स्थिति के कारण होते हैं।
गर्भपात के कारण
कुछ बीमारियां, जैसे गंभीर मधुमेह, गर्भपात होने की संभावनाओं को बढ़ा सकती हैं। बहुत गंभीर संक्रमण या एक बड़ी चोट गर्भपात का कारण हो सकती है। देर से गर्भपात - 3 महीने के बाद - गर्भाशय में असामान्यताओं के कारण हो सकता है। यदि आपके पास लगातार 2 से अधिक गर्भपात हुए हैं, तो आपको गर्भपात होने की अधिक संभावना है | सामान्य गतिविधियां जैसे कि सेक्स, व्यायाम, काम करना, और अधिकांश दवाएं लेने से गर्भपात नहीं होता है।
गर्भपात के लक्षण
गर्भावस्था के आपके चरण के आधार पर गर्भपात के लक्षण अलग-अलग होते हैं। कुछ मामलों में, यह इतनी जल्दी होता है कि आप यह भी नहीं जानते कि आप गर्भपात से पहले गर्भवती थे।
गर्भपात के कुछ लक्षण यहां दिए गए हैं:
हल्के से गंभीर पीठ दर्द
भारी स्पॉटिंग
वैजिनल ब्लीडिंग
वेजिना से क्लॉट्स के साथ टिश्यू का निष्कासन
गंभीर पेट दर्द
क्रैम्प्स।
गर्भपात का परीक्षण
आपका हेल्थ केयर प्रोवाइडर विभिन्न प्रकार के टेस्ट कर सकता है:
पेल्विक जांच। आपका हेल्थ केयर प्रोवाइडर यह देखने के लिए जांच सकता है कि क्या आपका गर्भाशय फैलाना शुरू हो गया है या नहीं।
अल्ट्रासाउंड। अल्ट्रासाउंड के दौरान, आपका हेल्थ केयर प्रोवाइडर भ्रूण के दिल की धड़कन की जांच करेगा और यह निर्धारित करेगा कि भ्रूण सामान्य रूप से विकसित हो रहा है या नहीं।
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jodhpurnews24 · 6 years
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35 की उम्र के बाद प्रेग्नेंसी बढ़ाती जन्मजात बीमारी का खतरा
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देश में 15 साल पहले 20 वर्ष से कम आयु की महिलाओं के मां बनने का आंकड़ा ज्यादा था, वहीं अब 30-35 की उम्र में मां बनने का वाली महिलाएं की संख्या ज्यादा है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की हालिया रिपोर्ट के अनुसार परिवार नियोजन की सही जानकारी नहीं होने से देश में हर साल 2.65 करोड़ जन्म लेने वाले शिशुओं में से 1.3 करोड़ अनचाहे गर्भ के कारण हैं।
20 वें सप्ताह से दिखते लक्षण 35 से ज्यादा उम्र की महिलाओं के मां बनने से उनके बच्चों में जन्मजात बीमारियों के होने की आशंका रहती है। ऐसी महिलाओं को प्रीएक्लेंपसिया होने की आशंका ज्यादा होती है। इसके लक्षण गर्भकाल के 20वें सप्ताह में दिखाई देते हैं। हाइ बीपी के साथ-साथ ऊतकों में पानी भर जाता है। यूरिन में प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है। यह मां व शिशु दोनों के लिए खतरनाक हो सकता है। मधुमेह, हाइ बीपी, गर्भपात, प्लेसेंटा प्रिविया जैसी दिक्कतें हो सकती हैं। शिशुओं का मानसिक विकास भी सही से नहीं हो पाता है।
महिला का हैल्दी होना जरूरी देर से गर्भधारण करने वाली महिलाओं का स्वस्थ होना जरूरी है। इसके लिए पहले चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए। पोषक-तत्वों से भरपूर आहार, मौसमी सब्जियां, फल और सूखे मेवे दिनचर्या में शामिल करें। साथ ही, नियमित व्यायाम और वॉक भी डिलीवरी होने तक करें।
परिवार नियोजन का सुरक्षित और नया मेथड परिवार नियोजन के लिए गर्भनिरोधक इंजेक्शन (इंजेक्टऐबल स्पेसिंग मेथड) मांसपेशियों में हर तीसरे महीने, माहवारी के दौरान 7 दिन के अंदर लगवाना होता है। प्रसव बाद (दूध पिलाने वाली मां) छह सप्ताह में डॉक्टर से परामर्श के बाद लगवा सकती हैं। दो बच्चों के बीच छह इंजेक्शन से उचित अंतराल रखा जा सकता है। इससे महिला को अनियमित मासिकधर्म हो सकता है, जो स्वत: सही हो जाता है।
दूध के साथ शतावरी लें आजकल कामकाजी महिलाएं २५-३० की उम्र में विवाह और 30 से 35 वर्ष की उम्र में गर्भधारण कर रहीं हैं। इस कारण उनका ओवम कमजोर हो रहा है। आयुर्वेद के अनुसार 3 ग्राम मुलेठी, 3 ग्राम शतावरी पाउडर दूध के साथ लें। गर्भधारण से पहले और गर्भावस्था दोनों अवस्थाओं में फायदेमंद है।
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rajatgarg79 · 6 years
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डिलीवरी के बाद डिप्रेशन
पोस्टपार्टम डिप्रेशन [Postpartum depression (PPD)], जिसे प्रसवोत्तर अवसाद (Postnatal depression) भी कहा जाता है, एक प्रकार की मनोदशा है जो बच्चे के जन्म बाद होती है और दोनों लिंग (लड़के और लड़की) को प्रभावित कर सकती है। यह परिस्थिति तब भी उत्पन्न हो सकती है, जब किसी कारणवश महिला का गर्भपात या मिस्कैरेज हो जाए अथवा उसका बच्‍चा मृत पैदा हो।
अत्यधिक उदासी, ऊर्जा में कमी, चिंता, सोने या खाने की दिनचर्या में परिवर्तन, बात बात पर रोना और चिड़चिड़ापन आदि इसके लक्षण हो सकते हैं। इसकी शुरुआत आम तौर पर प्रसव के एक सप्ताह या एक महीने बाद होती है। यह स्थिति बच्चे को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है।
हालांकि पीपीडी का सही कारण अभी तक ज्ञात नहीं है। माना जाता है कि शारीरिक और भावनात्मक कारकों के कारण यह स्थिति उत्पन्न होती है। हार्मोन परिवर्तन और नींद का अभाव इसके प्रमुख कारक हैं। 
(और पढ़ें - हार्मोन्स का महत्व महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए)
इसके जोखिम कारकों में प्रसवोत्तर अवसाद से पूर्व की स्थिति, बाइपोलर डिसआर्डर (यह एक तरह की मानसिक बीमारी है जिसमें रोगी कभी तो बहुत खुश और कभी बिना बात के काफी उदास रहता है), परिवार में किसी का डिप्रेशन से ग्रस्त होना, तनाव, प्रसव की जटिलताएं, पारिवारिक समर्थन की कमी या दवाओं का सेवन करने की लत आदि महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसका निदान महिला के लक्षणों पर निर्भर करता है। दो हफ्तों के बाद या जब इसके लक्षण गंभीर हो जाएं तब प्रसवोत्तर अवसाद का संदेह हो जाना चाहिए।
जिन महिलाओं में इससे ग्रस्त होने का जोखिम होता है उन्हें भरोसा दिलाकर या उनका समर्थन करके डिलीवरी के बाद डिप्रेशन से पीड़ित होने से उनकी सुरक्षा की जा सकती है। बाकी इसका उपचार परामर्श सेवा (Counselling) या दवाओं द्वारा किया जा सकता है।
इस वर्ष विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (10 अक्टूबर) के अवसर पर, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मैन्टल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेस ने भारत में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2015-2016) किया। इसमें बताया गया है कि भारत में 20 में से 1 व्यक्ति अवसाद से पीड़ित है। ये आंकड़े तब अधिक खतरनाक लगते हैं जब यह पता चलता है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं के अवसाद से पीड़ित होने की दर बहुत अधिक है क्योंकि 2011 के आंकड़ों के अनुसार पहले से ही भारत में लड़कियों का अनुपात 940/1000 लड़कों पर है अर्थात लड़कों की तुलना में लड़कियों के जन्म लेने की दर पहले से ही कम है। दिल्ली और गुजरात में तो ये अनुपात और भी झकझोर देने वाले हैं। वहां प्रति 1000 लड़कों पर क्रमश: 871 और 890 लड़कियां जन्म ले रही हैं। विशेष रूप से महिलाओं में नॉर्मल डिलीवरी के बाद अवसाद से ग्रस्त होने के अधिक प्रमाण सामने आये हैं। स्वास्थ्य अधिकारियों के जानने के बावजूद, भारत में प्रजनन स्वास्थ्य कार्यक्रमों (Reproductive health programs) में पीपीडी से बचाव या उपचार के लिए कोई जानकारी नहीं दी जाती है। 
(और पढ़ें - डिप्रेशन के घरेलू उपाय)
from myUpchar.com के स्वास्थ्य संबंधी लेख via http://www.myupchar.com/motherhood/delivery-ke-baad-depression-in-hindi
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dayaramalok · 7 years
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स्त्रियों के योन रोग : कारण लक्षण और उपचार स्त्रियों में योनिदोष - यह रोग स्त्रियों को गलत तरीके से या दूषित भोजन के कारण होता है इस रोग को सूचिकावक्र योनिरोग कहते हैं। कई बार बच्चे पैदा करने के बाद बहुत सी स्त्रियों की योनि फैल जाती है जिसे महतायोनि दोष कहते हैं। कुछ स्त्रियों की योनि से पुरुष-सहवास के समय असाधारण रूप से पानी निकला करता है जिसमें कभी-कभी बदबू भी आती है। प्रसव के बाद दो से तीन महीने के अंदर ही स्त्री यदि पुरुष से सहवास क्रिया करती है तो स्त्रियों के योनि में रोग उत्पन्न हो जाता है जिसे त्रिमुखायोनि दोष कहते हैं। कुछ स्त्रियों को पुरुषों के साथ सहवास क्रिया करने पर तृप्ति ही नहीं होती है। इस रोग को अत्यानन्दायोनि दोष कहते हैं। कुछ स्त्रियां सहवास के समय में पुरुषों से पहले ही रस्खलित हो जाती है इस रोग को आनन्दचरणयोनि दोष कहते हैं। कुछ स्त्रियां सहवास के समय में पुरुष के रस्खलित होने के बहुत देर बाद रस्खलित होती हैं ऐसे रोग को अनिचरणायोनि दोष कहते हैं। अधिकांश महिला व पुरुष ऐसे होते हैं, जो संक्रमण के कारण इन रोगों की चपेट में आते हैं। सर्दियों की शुरुआत से ही ऐसे मरीजों की संख्या अचानक से बढ़ जाती है। सर्दियों में लोग शरीर की सफाई ठीक से नहीं रखते। कपड़े कई दिनों तक नहीं बदले जाते हैं। लोग नहाने से परहेज करते हैं। नहाने से परहेज करने और कपड़ों के लगातार न बदलने के कारण संक्रमण से फैलने वाले गुप्त रोगों की संभावना बढ़ जाती है।सर्दियों में शरीर की सफाई न रखने और नहाने से परहेज करने के कारण लोगों में गुप्त रोग की संभावना बढ़ जाती हैं। स्त्रियों के गुप्त रोगों की चिकित्सा गुप्तांगों के रोग-गुप्तांगों में रोग अधिकतर संक्रमण के कारण होता है: जानिये इसका इलाज परिचय:- गुप्तांगों में रोग अधिकतर संक्रमण के कारण होता है। वैसे देखा जाए तो गुप्तांगों में कई रोग हो सकते हैं जिनमें मुख्य दो रोग होते हैं जो इस प्रकार हैं- आतशक (सिफलस)- इस रोग में स्त्री-पुरुषों के गुप्तांगों (स्त्रियों में योनिद्वार तथा पुरुषों में लिंग) के पास एक छोटी सी फुंसी होकर पक जाती है तथा उसमें मवाद पड़ जाती है। इस रोग की दूसरी अवस्था में योनि अंग सूज जाते हैं। शरीर के दूसरे अंगों पर भी लाल चकते, घाव, सूजन तथा फुंसियां हो जाती हैं। तीसरी अवस्था में यह त्वचा तथा हडि्डयों के जोड़, हृदय तथा स्नायु संस्थान को प्रभावित कर रोगी को अन्धा, बहरा बना देता है। इस रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण संक्रमण होना है जो इस रोग से पीड़ित किसी रोगी के साथ संभोग या चुम्बन करने से फैलता है। इस रोग से पीड़ित रोगी जिन चीजों को इस्तेमाल करता है उस चीजों को यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति इस्तेमाल करता है तो उसे भी यह रोग हो सकता है। सुजाक (गिनोरिया)-इस रोग के हो जाने पर रोगी के मूत्रमार्ग में खुजली होना, पेशाब करते हुए बहुत दर्द तथा जलन होना, पेशाब के साथ पीला पदार्थ या मवाद बाहर आना, अण्डकोष में सूजन होना आदि लक्षण पैदा हो जाते हैं। जब यह रोग स्त्रियों को हो जाता है तो पहले उसकी योनि से पीला स्राव निकलने लगता है तथा जब वह पेशाब करती है तो उस समय बहुत तेज दर्द होता है। उसकी योनि की मांसपेशियां सूज जाती हैं। यह सूजन बढ़ते-बढ़ते गर्भाशय तक पंहुच जाती है। ऐसी अवस्था में यदि स्त्री गर्भवती होती है तो उसका गर्भपात हो सकता है। पहले यह रोग योनि तथा लिंग तक सीमित रहता है और बाद में यह शरीर के अन्य भागों में भी हो जाता है। आतशक में घाव बाहरी होते हैं तथा सुजाक में घाव आंतरिक होते हैं। गुप्तांग रोगों का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-इस रोग से पीड़ित रोगी को कभी भी किसी दूसरे के साथ संभोग से दूर रहना चाहिए। इस रोग से पीड़ित रोगी को कभी-भी अपने वस्त्र तथा अपने द्वारा इस्तेमाल की गई चीजों को किसी दूसरे व्यक्ति को इस्तेमाल न करने देने चाहिए नहीं तो यह रोग दूसरे व्यक्तियों में भी फैल सकता है।इस रोग से पीड़ित रोगी को अपना भोजन दूसरों को नहीं खिलाना चाहिए। इस रोग से पीड़ित रोगी को अपना उपचार करने के लिए सबसे पहले अपने शरीर के खून को शुद्ध करने तथा दूषित विष को शरीर से बाहर करने के लिए उपवास करना बहुत जरूरी है जो आवश्यकतानुसार 7 से 14 दिन तक किया जा सकता है।गुप्तांगों के रोग से पीड़ित रोगी को रसाहार पदार्थों जैसे- पालक, सफेद पेठे का रस, हरी सब्जियों का रस, तरबूज, खीरा, गाजर, चुकन्दर का रस आदि का सेवन अधिक मात्रा में करना चाहिए। इस रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन पानी अधिक मात्रा में पीना चाहिए। नारियल का पानी प्रतिदिन पीने से रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है। इस रोग से पीड़ित रोगी को इस रोग का उपचार कराने के साथ-साथ अधिक मात्रा में फल, सलाद, अंकुरित चीजें खानी चाहिए। इस रोग से पीड़ित रोगी को गेहूं के जवारे का रस पीना चाहिए। इससे रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है। चौलाई के साग के पत्ते 25-25 ग्राम दिन में 2-3 बार खाने से गुप्तांग रोग से पीड़ित रोगी का रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है। आंवले के रस में थोड़ी सी हल्दी तथा शहद मिलाकर सेवन करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है। गुप्तांगों के रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले पेट को साफ करना चाहिए और पेट को साफ करने के लिए रोगी व्यक्ति को एनिमा क्रिया करनी चाहिए। इस रोग से पीड़ित रोगी को नीम की पत्तियों को उबालकर उस पानी से घाव को धोना चाहिए। इस रोग के कारण हुए घाव तथा सूजन और फुंसी वाले स्थान पर प्रतिदिन मिट्टी की पट्टी रखने से गुप्तांगों के रोग जल्दी ठीक हो जाते हैं। प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार इस रोग से पीड़ित रोगी को गर्म कटिस्नान प्रतिदिन करने से अधिक लाभ मत हैसफेद कपड़ा, लाल कपड़ा प्रतिमास दो-चार बार होना, पेट में तकलीफ होना तथा कमर में दर्द बढ़ जाना आदि के उपचार में कच्चा पुदीना एक कट्टा लेकर दो गिलास पानी में उबालकर एक कप जूस में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर सुबह (निराहार) एक बार और रात में सोते समय दूसरी बार पी लेना चाहिए। इस प्रकार 40 दिनों तक करते रहें। पथ्य में अचार, बैंगन, मुर्गी, अंडे तथा मछली आदि का प्रयोग न करें। स्त्रियों के इन रोगों को ठीक करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार- योनिदोष से पीड़ित रोगी स्त्री का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी स्त्री को कम से कम एक महीने तक फलों का रस पीकर उपवास रखना चाहिए तथा उपवास के समय में रोगी स्त्री को प्रतिदिन गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए। जिसके फलस्वरूप कुछ ही दिनों में रोग ठीक हो जाता है। योनिदोष से पीड़ित रोगी स्त्री को उपवास समाप्त करने के बाद सादे तथा पचने वाले भोजन का सेवन करना चाहिए तथा प्रतिदिन घर्षणस्नान, मेहनस्नान, सांस लेने वाले व्यायाम तथा शरीर के अन्य व्यायाम करने चाहिए तथा सुबह के समय में साफ तथा स्वच्छ जगह पर टहलना चाहिए। योनिदोष से पीड़ित रोगी स्त्री को प्रतिदिन गुनगुने पानी में रूई को भिगोकर, इससे अपनी योनि तथा गर्भाशय को साफ करना चाहिए जिसके फलस्वरूप यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है। योनिदोष से सम्बंधित रोग को ठीक करने के लिए धनिये का पानी, जौ का पानी, कच्चे नारियल का पानी कुछ दिनों तक स्त्रियों को पिलाना चाहिए जिसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है और मासिकधर्म सही समय पर होने लगता है। कुछ दिनों तक चुकन्दर का रस कम से कम 100 मिलीलीटर दिन में दो से तीन बार पीने से स्त्रियों के योनिदोष से संबन्धित रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है। योनिदोष से संबन्धित रोग से पीड़ित स्त्रियों को मिर्च-मसाले, दूषित भोजन, अधिक चाय, कॉफी, मैदे के खाद्य पदार्थ, केक, च��नी, तली-भुनी चीज तथा डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों को सेवन नहीं करना चाहिए। योनिदोष से संबन्धित रोग को ठीक करने के लिए स्त्री को सुबह के समय में आंवले का रस शहद में मिलाकर पीना चाहिए। एक चम्मच तुलसी के रस में एक चम्मच शहद मिलाकर फिर उसमें एक चुटकी कालीमिर्च मिलाकर इसको दिन में दो बार प्रतिदिन चाटने से स्त्रियों के योनिदोष से संबन्धित रोग ठीक हो जाते हैं। धनिये के बीज को उबालकर फिर इसको छानकर इसके पानी को प्रतिदिन सुबह तथा शाम पीने से स्त्रियों के योनिदोष से संबन्धित रोग ठीक हो जाते हैं। अदरक को पानी में उबालकर फिर इसको छानकर इसके पानी को प्रतिदिन सुबह तथा शाम पीने से स्त्रियों के योनिदोष से संबन्धित रोग को ठीक हो जाते हैं। बथुए को उबालकर फिर इसको छानकर इसके पानी को पीने से स्त्रियों के योनिदोष से संबन्धित रोग ठीक हो जाते हैं। तुलसी की जड़ को सुखाकर पीसकर चूर्ण बना लें फिर इस चूर्ण को पान के पत्ते में रखकर प्रतिदिन दिन में दो बार सेवन करने से स्त्रियों के योनिदोष से संबन्धित रोग ठीक हो जाते हैं। स्त्रियों के योनिदोष से संबन्धित रोगों को ठीक करने के लिए कई प्रकार के आसन है जिनको करने से ये रोग तुरंत ठीक हो जाते हैं। ये आसन इस प्रकार हैं- अर्धमत्स्येन्द्रासन, शवासन, शलभासन, पश्चिमोत्तानासन, त्रिकानासन,, बज्रासन, भुजंगासन तथा योगनिद्रा आदि। योनिदोष से संबन्धित रोगों को ठीक करने के लिए स्त्रियों के पेड़ू पर मिट्टी की गीली पट्टी का लेप करना चाहिए तथा स्त्रियों को एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए। इसके बाद स्त्री को अपने शरीर पर सूखा घर्षण करना चाहिए तथा कटिस्नान करना चाहिए फिर इसके बाद स्त्री को अपने कमर पर गीली पट्टी लपेटनी चाहिए और स्त्री को खाली पेट रहना चाहिए। इस प्रकार से रोगी का उपचार करने से योनिदोष से संबन्धित रोग ठीक हो जाते हैं। योनिदोष से संबन्धित रोग से पीड़ित स्त्री को जब योनि में जलन तथा दर्द हो रहा हो उस समय उसे कटिस्नान कराना चाहिए तथा उसके पेड़ू पर मिट्टी की पट्टी लगानी चाहिए और कमर पर लाल तेल की मालिश करनी चाहिए। फिर उसकी कमर पर गीले कपड़े की पट्टी लपेटनी चाहिए। लेकिन इस उपचार को करते समय स्त्रियों को योगासन नहीं करना चाहिए। यदि रोगी स्त्री का मासिकस्राव आना बंद ���ो गया हो तो रोगी स्त्री को सुबह के समय में गर्म पानी से कटिस्नान करना चाहिए तथा रात को सोते समय एक बार फिर से कटिस्नान करना चाहिए। फिर रोगी स्त्री को दूसरे दिन गर्म तथा ठंडे पानी में बारी-बारी से सिट्ज बाथ कम से कम दो बार कराना चाहिए। इस प्रकार से प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार कम से कम एक महीने तक करने से योनिदोष से संबन्धित रोग ठीक हो जाते हैं। यदि स्त्री को योनि में तेज दर्द है तो रोगी स्त्री को सुबह के समय में गर्म पानी में कटिस्नान और रात को सोने से पहले एक बार गर्म तथा दूसरी बार ठंडे पानी से कटिस्नान करना चाहिए। जिसके फलस्वरूप योनिदोष से संबन्धित रोग ठीक हो जाते हैं। स्त्री को यदि योनि में तेज दर्द हो रहा हो तो अजवायन का पाउडर बनाकर, एक चम्मच पाउडर गर्म दूध में मिलाकर प्रतिदिन दिन अजवायन का पाउडर बनाकर, एक चम्मच पाउडर गर्म दूध में मिलाकर प्रतिदिन दिन में दो बार रोगी स्त्री को सेवन करने से बहुत अधिक लाभ मिलता है। तुलसी की पत्तियां सभी प्रकार के मासिकधर्म के रोगों को ठीक कर सकती हैं। इसलिए योनिदोष से संबन्धित रोग से पीड़ित रोगी स्त्री को प्रतिदिन दो चम्मच तुलसी की पत्तियों का रस पीना चाहिए। इसमें एक चम्मच शहद मिलाकर सेवन करने से रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है। आधा गिलास अनार का रस प्रतिदिन सुबह के समय में नाश्ते के बाद पीने से योनिदोष से संबन्धित रोग ठीक हो जाते हैं। एक गिलास गाजर के रस में चुकन्दर का रस बराबर मात्रा में मिलाकर दो महीने तक पीने से ठीक हो जाता है ।मासिक धर्म का रुक जाना :तीन-तीन महीने तक मासिक धर्म का न होना तथा पेट में पीड़ा होना आदि के लिए एक कप गर्म पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल और दो चम्मच शहद मिलाकर सुबह निराहार पेट रात में भोजनोपरांत सोते समय पी लेना चाहिए। इस प्रकार सेवन एक महीने तक करते रहें। आलू तथा बैंगन वर्जित हैं। पेशाब में जलन मूत्र नलियों में रक्त संचार सुचारू रूप से न होना और पेशाब से रक्त का जाना आदि में एक कप मौसम्मी का जूस लेकर उसमें आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर उसका सेवन करें। सुबह एक बार और दूसरी बार रात में सोने से पूर्व। दस दिन तक इस इलाज को जारी रखिए। खाने में गर्मी पैदा करने वाली वस्तुएं, मिर्च और खट्टी वस्तुओं का उपयोग कम करना चाहिए। बवासीर का मस्सा *एक चम्मच सिरके में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में दो बार मस्से की जगह पर लगाएं। क्या सावधानी रखें गुप्त रोग होने पर *नहाने से परहेज न करें। *प्रतिदिन अंत: वस्त्र व अन्य कपड़ों को बदलें। *शौच के बाद शरीर के अंदरुनी अंगों को ठीक से साफ करें। *पूर्व में संक्रमण से पीड़ित या एलर्जी वाले लोगों को अधिक सतर्क होने की है जरूरत। जब त्वचा की सतह पर जलन का एहसास होता है और त्वचा को खरोंचने का मन करता है तो उस बोध को खुजली कहते हैं। खुजली के कई कारण होते हैं जैसे कि तनाव और चिंता, शुष्क त्वचा, अधिक समय तक धूप में रहना, औषधि की विपरीत प्रतिक्रिया, मच्छर या किसी और जंतु का दंश, फंफुदीय संक्रमण, अवैध यौन संबंध के कारण, संक्रमित रोग की वजह से, या त्वचा पर फुंसियाँ, सिर या शरीर के अन्य हिस्सों में जुओं की मौजूदगी इत्यादि से। *खुजली वाली जगह पर चन्दन का तेल लगाने से काफी राहत मिलती है। *दशांग लेप, जो आयुर्वेद की 10 जड़ी बूटियों से तैयार किया गया है, खुजली से काफी हद तक आराम दिलाता है। किसी भी प्रकार की समस्या होने पर उसे छुपाने की बजाय चिकित्सक से संपर्क करें।
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sminstituteblog · 4 years
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क्या आप गर्भ और गर्भकालीन विकारों के बारे में जानते है?
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क्या आप गर्भ और गर्भकालीन विकारों के बारे में जानते है?  गर्भ धारण के पश्चात स्त्री में कौन-कौन से लक्षण प्रकट होते हैं | इस संबंध में निम्नाकिंत बातें उसके निर्णय के लिए जानना आवश्यक है |गर्भ स्थिर हो जाने पर तुरंत नारी में एक स्फुरण की अनुभूति होती है | इसे पूर्व प्रसव स्त्रियां सहज ही अनुभव कर लेती हैं |
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ऋषितुरोध- गर्भ स्थापित हो जाने पर मासिक स्नाव बंद हो जाता है | कभी-कभी  इसका अपवाद भी देखा जाता है | जी मिचलाना -गर्भधारण के कुछ महीनों तक की जी मिचलाने का लक्षण भी रहता है | बाद में यह नहीं होता |पेडू पर भारवृद्धि स्वभावत:  बच्चे के आकार ग्रहण करने और उसके बढ़ने पर पेट के निम्नांश (पेडू) में भार मालूम होता है |
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पेट का आकार बढ़ना - बच्चे की वृद्धि  के साथ पेट का आयतन और आकार भी बढ़ जाता है |स्तनों का काला पड़ना - स्तनों की घंटी (निप्पल) क्रमश: स्याह काली पड़ जाती है |स्तनों की वृद्धि - शिशु के जन्म के पूर्व ही माता के स्तन बढ़ने लगते हैं प्रसव के समय तक यह पूर्णरूपेण भर जाते है |
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गर्भस्थ शिशु की हरकत -5-6 माह के गर्भकाल के उपरांत भूर्ण में प्राण आ जाने पर वह पेट में हरकत प्रारंभ कर देता है |गर्भस्थिति काल - गर्भधारण के बाद शिशु के जन्म लेने की पूर्ण और स्वाभाविक अवधि 280 दिन होती है | इससे पहले या बाद में प्रसव होने को 'अकाल प्रसव' कहा जाता है |
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गर्भकालीन व्याधियां -गर्भकाल नारीजीवन का अत्यंत ही महत्वपूर्ण समय है | यदि यह समय निरापद बीत जाए और स्वाभाविक प्रसव हो जाए तो निश्चय ही स्वस्थ शिशु पैदा होगा और माता का स्वास्थ्य भी स्थिर रहेगा | अन्यथा योगी शिशु और प्रसूति कालीन व्याधियां पैदा हो जाएगी |
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प्रसूता की उचित जीवनचर्या - गर्भकाल मैं नारी को बहुत ही सावधान रहना चाहिए | खान-पान, रहन-सहन, धर्मचरण, इंद्रियां निग्रह आदि नियमों का पालन करने पर नि:संदेह स्वस्थ संतान का जन्म होता है | प्रमादवश गर्भकालीन नियमों का पालन न करने पर ग्राभीण को अनेक बीमारियां जकड़ लेती हैं | और उसका जीवन संकटमय हो जाता है | प्राय: निम्नांकित बीमारियां गर्भकाल में प्रकट हो सकती हैं- मिचली या कै, शूल या वेदना, रक्त स्नाव पाशर्ववेदना, अतिसार, कब्ज़ या कोष्टबद्धता, जननेंद्रिया की खुजली, मूत्रकृच्छता अथवा मूत्रवेग का अभाव, अवास्तविक प्रसव वेदना (False Labour Pain) गर्भसनाव या गर्भपात आदि | इसी प्रकार के और भी कितने ही कष्टकर उपसर्ग गर्भकाल में उपस्थित हो जाते हैं | उनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं |
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मिचली या कै, (Nausea and Vomiting)यह एक सामान्य उपसर्ग है और प्राय: गर्भ के प्रारंभिक 4-5 महीनों तक ही रहता है | उसके बाद यह स्वत: शांत हो जाता है |  उपचार - सवेरे उठकर एक गिलास ठंडा जल पीना, कुछ समय का प्रात: भ्रमण, सिट्ज़  बाथ, पेडू पर पानी की पट्टी और आवश्यक होने पर गर्म- ठंडा कंप्रेस इस अवस्था में नींबू का सेवन अवश्य करना चाहिए | यदि भूख न मालूम हो तो केवल ठंडा जल ग्रहण करना चाहिए|
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रक्त स्नाव (Bleeding)कभी-कभी शरीर के विभिन्न अंगों में से रक्त स्राव होने लगता है | यह अवस्था भावी शिशु और माता दोनों के लिए ही घातक है | अस्तु इसकी चिकित्सा शीघ्र होनी चाहिए | उपचार -यह  व्यवस्था प्राय: कब्ज़ या पेट में  विजातीय द्रव्यों के जम जाने पर होती है | अत: एनिमा या जल पट्टी अथवा मिट्टी के प्रयोग द्वारा पेशाब कर लेना चाहिए और भोजन के भूख की प्रतीक्षा करनी चाहिए | थोड़ी भूख होने पर नींबू का पानी का छाछ देना चाहिए |
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जननेंद्रिय की खुजली-यह अवस्था प्राय: गंदगी के कारण उत्पन्न होती है | योनिप्रदेश में गंदगी के कारण कीटाणुओं  की उत्पत्ति हो जाती  है | और भयंकर खुजली प्रारंभ हो जाती है | उपचार- योनिद्वार की सफाई करने  के स्वल्प उष्णजल से करने बाद वह मिटटी  की पुल्टिश  रखनी चाहिए |  मिटटी में विष तथा विजातीय द्रव्यों को सोखने की अद्वितीय श्रमता होती है |
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गर्भकालीन अतिसार (Diarrhoea) खान-पान की गड़बड़ी अथवा यांत्रिक खराबी के कारण कभी-कभी पतले दस्त होने लगते हैं | कभी-कभी आत्ययिक अवस्था  में गर्भपात तक हो जाता हैं | यघपि प्राकृतिक चिकित्सा यह मानते हैं कि पेट में विजातीय द्रव्यों के जमा हो जाने पर प्राकृति अपने ढंग से स्वयं उसे बाहर निकालती है किंतु इससे कमजोरी उत्पन्न हो जाती है, इसलिए इसकी रोकथाम भी आवश्यक है | उपचार - हिम बाथ, सिट्ज़   बाथ ठंडे जल से स्नान आदि प्राकृतिक जलचिकित्सा से इस रोग से छुटकारा मिल सकता है | साथ ही खान-पान भी अनुकूल होना आवश्यक है |
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अवास्तविक प्रसव वेदना (Fals Labour Pain)-कभी-कभी प्रसव के ठीक समय से पूर्व ही गर्भाशय में दर्द उत्पन्न हो जाता है | यह दर्द स्थायी ना होकर कुछ देर के लिए ही होता है फिर शांत हो जाता है | उपचार - ठंडा जल-पान  और पेट पर ठंडी जल पट्टी का प्रयोग |
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गर्भसनाव (Abortion)-गर्भ स्थिर हो जाने के बाद कभी कभी कुछ कारणों से गर्भ गिर जाता  है | इसके कई स्वरूप होते हैं | यदि 4 मास के पहले गर्भ  गिर जाए तो उसे' गर्भ स्नाव' और 6 महीने भीतर हो तो 'गर्भपात' तथा यादी 7 से 9 महीने के भीतर गर्भ गिरे तो उसे आकाल- प्रसव कहते हैं 
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लक्षण तथा पूर्वाभास - गर्भपात के पूर्व सिहरावन, आलस्य कमजोरी, कमर में दर्द तथा जननेंद्रिय में भार का बोध होता है | गर्भस्राव से पूर्व अत्याधिक मात्रा में रक्तस्राव भी होता है गर्भपात होने के प्राय: निम्ननाकिंत कारण होते हैं- मानसिक उत्तेजना, इंद्रियां सेवन, अत्याधिक भोजन तथा अखाघ प्रदार्थो का खाना, उपदंश और अत्याधिक मात्रा में श्वेतप्रदर का स्नाव ऐसी अवस्था उत्पन्न होने पर- पूर्ण विश्राम और पेट पर ठंडी जल पट्टी का प्रयोग बार बार करने से गर्भ रुक सकता है | अन्य सावधानियों का पालन भी आवश्यक है, ताकि रोगिणी का पेट ठीक और साफ रहे और अत्यधिक थकान तथा उत्तेजना उत्पन्न ना हो | 
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प्रसव (Child Birth)-जननी के गर्भ शिशु के उत्पादन होने की प्रक्रिया को प्रसव की संज्ञा दी जाती है | यदि सुचारू रूप से माता का कष्ट बढ़ाएं बिना स्वस्थ शिशु का जन्म हो जाता है तो इसे उत्तव प्रसव कहते हैं | इसके विपरीत यदि इस प्रक्रिया में किसी प्रकार का व्याघात उपस्थित होता है तो वही कष्ट का प्रसव होता है | उत्तम प्रसव के लिए गर्भकाल में पूरी सावधानी बरतनी आवश्यक है | यह सावधानिया निम्नलिखित हैं- १. सहवास का पूर्णत परित्याग |  २.  स्वास्थ्यकर स्थान पर निवास |  ३.  हल्का श्रम |  ४. सवारी आदि का त्याग |  ५. ढीले-ढाले वस्त्रों के धारण कारण, तंग जूते ना पहनना और सिर के बालों को ढीला - ढाला रखना यानि कसकर जुड़ा ना बांधना |  ६.  आंतो और पेट को सदैव साफ़ रखना |  ७. हल्का, सुपाच्य तथा पुष्टिकर और सातिवक भोजन करना |  ८. मन में पवित्र और उत्तम विचार रखना और शांत रहना |  ९. नित्य घर्षणयुक्त सिज़ बाथ |  १०. सुखकारक प्रसव हेतु गीली मिटटी की पुल्टिश का प्रयोग |  उपरोक्त नियमों का पालन करने पर यह बात सुनिचिश्त है कि माता स्वस्थ् और सुंदर संतान को जन्म देकर सभी स्वयं भी स्वस्थ रहेगी | 
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प्रसव वेदना (Labour Pain)-शिशु को जन्म देते समय माता को अनिवार्यत: कुछ-न-कुछ कष्ट होता ही है | स्वस्थ स्त्रियां इस दर्द को आसानी से झेल लेती हैं और कोई कष्ट कर उत्सर्ग पैदा नहीं होता | इसके विपरीत अनियमित और आचरण वाली माताएं इसमें घोर यंत्रणा पाती हैं और प्राय: शिशु तथा माता दोनों का ही जीवन संकटपूर्ण और रोगी हो जाता है | 
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प्रसव के बाद-प्रसवोपरांत 'सौरी ग्रहण' का समय भी माता और शिशु के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण है प्राय: इस काल में माताएं वायु और प्रकाशाहीन कमरे में-चारपाई पर ही पड़ी रहती हैं | उनका भोजन आदि भी गरिष्ट होता है | इस प्रकार के कब्जियत या अन्य रोगों की शिकार हो जाती हैं इस समय आवश्यक है कि उन्हें साफ-सुथरे, हवादार कमरे में साफ-स्वच्छ बिछावन पर रखा जाए | नाल किसी चतुर एवं योग्य नर्स से ही कटवाया जाए, अन्यथा कभी-कभी वह स्थान विषाक्त हो जाता है और अनेक कष्ट पैदा हो जाते हैं | इस समय चलना-फिरना या अधिक अंग संचालन हानिकारक है | प्रसव के बाद प्रसूता को नींद आ जाती है | ऐसी अवस्था में उसे पूर्ण विश्राम करने देना चाहिए | नींद खुलने पर 50०-70फा० हा० ऊष्मा के जल से सिज़ बाथ काफी देर तक देना चाहिए | ऐसा कई दिनों तक करना चाहिए | प्रसव के बाद तलपेट पर पट्टी बांध दी जाती है | इससे पेट और जनन संस्थान के सभी अवयव अपने स्थान पर आ जाते हैं | 
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कुछ प्रसवोत्तर बीमारियां-यतो ऊपर बताए गए नियमों का पालन करने पर प्रसव के बाद कोई कष्ट उत्पन्न ही नहीं होता, किंतु प्रमादवश उनके विरुद्ध आचरण करने पर अनेक कष्ट कर उपसर्ग उपस्थित हो जाते हैं | उनमें से कुछ इस प्रकार हैं, जिनका उपचार पानी और मिट्टी की सहायता से तथा नियमित आहार-विहार द्वारा भली-भांति हो सकता है | इन व्याधियों में निम्नाकिंत बीमारियां मुख्य हैं- १. फूल देर से गिरना |  २. अत्यधिक रक्तस्नाव | ३. प्रसव के बाद ज्वर |  ४. दुग्ध स्नावाभाव |  ५. पेशाब बंद हो जाना |  ६. प्रसवोत्तर कोष्टबद्धता |  ७. दूध का ज्वर |  ८. अत्यधिक दुग्धस्नाव |  ९. स्तन प्रदा और १०. प्रसवोत्तर वेदना |  उपरोक्त व्याधियों की चिकित्सा यथा स्थान पहले बताए गए जल चिकित्सोपचार से कर लेनी चाहिए |  डॉ अतहर अज़ीज़ (योगाचार्य) OUR YOUTUBE CHANNEL LINK https://www.youtube.com/channel/UCQXYQKZwIhrsiDr1DbcoFF BUY YOGA MAT FROM HERE CLICK ONhttps://amzn.to/36pXqdlBUY POWER MAT FROM HERE CLICK ON 1.https://amzn.to/375ng6G 2. https://amzn.to/3627R7e Read the full article
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sminstituteblog · 4 years
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क्या आप गर्भ और गर्भकालीन विकारों के बारे में जानते है?
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क्या आप गर्भ और गर्भकालीन विकारों के बारे में जानते है?  गर्भ धारण के पश्चात स्त्री में कौन-कौन से लक्षण प्रकट होते हैं | इस संबंध में निम्नाकिंत बातें उसके निर्णय के लिए जानना आवश्यक है |गर्भ स्थिर हो जाने पर तुरंत नारी में एक स्फुरण की अनुभूति होती है | इसे पूर्व प्रसव स्त्रियां सहज ही अनुभव कर लेती हैं |
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ऋषितुरोध- गर्भ स्थापित हो जाने पर मासिक स्नाव बंद हो जाता है | कभी-कभी  इसका अपवाद भी देखा जाता है | जी मिचलाना -गर्भधारण के कुछ महीनों तक की जी मिचलाने का लक्षण भी रहता है | बाद में यह नहीं होता |पेडू पर भारवृद्धि स्वभावत:  बच्चे के आकार ग्रहण करने और उसके बढ़ने पर पेट के निम्नांश (पेडू) में भार मालूम होता है |
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पेट का आकार बढ़ना - बच्चे की वृद्धि  के साथ पेट का आयतन और आकार भी बढ़ जाता है |स्तनों का काला पड़ना - स्तनों की घंटी (निप्पल) क्रमश: स्याह काली पड़ जाती है |स्तनों की वृद्धि - शिशु के जन्म के पूर्व ही माता के स्तन बढ़ने लगते हैं प्रसव के समय तक यह पूर्णरूपेण भर जाते है |
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गर्भस्थ शिशु की हरकत -5-6 माह के गर्भकाल के उपरांत भूर्ण में प्राण आ जाने पर वह पेट में हरकत प्रारंभ कर देता है |गर्भस्थिति काल - गर्भधारण के बाद शिशु के जन्म लेने की पूर्ण और स्वाभाविक अवधि 280 दिन होती है | इससे पहले या बाद में प्रसव होने को 'अकाल प्रसव' कहा जाता है |
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गर्भकालीन व्याधियां -गर्भकाल नारीजीवन का अत्यंत ही महत्वपूर्ण समय है | यदि यह समय निरापद बीत जाए और स्वाभाविक प्रसव हो जाए तो निश्चय ही स्वस्थ शिशु पैदा होगा और माता का स्वास्थ्य भी स्थिर रहेगा | अन्यथा योगी शिशु और प्रसूति कालीन व्याधियां पैदा हो जाएगी |
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प्रसूता की उचित जीवनचर्या - गर्भकाल मैं नारी को बहुत ही सावधान रहना चाहिए | खान-पान, रहन-सहन, धर्मचरण, इंद्रियां निग्रह आदि नियमों का पालन करने पर नि:संदेह स्वस्थ संतान का जन्म होता है | प्रमादवश गर्भकालीन नियमों का पालन न करने पर ग्राभीण को अनेक बीमारियां जकड़ लेती हैं | और ��सका जीवन संकटमय हो जाता है | प्राय: निम्नांकित बीमारियां गर्भकाल में प्रकट हो सकती हैं- मिचली या कै, शूल या वेदना, रक्त स्नाव पाशर्ववेदना, अतिसार, कब्ज़ या कोष्टबद्धता, जननेंद्रिया की खुजली, मूत्रकृच्छता अथवा मूत्रवेग का अभाव, अवास्तविक प्रसव वेदना (False Labour Pain) गर्भसनाव या गर्भपात आदि | इसी प्रकार के और भी कितने ही कष्टकर उपसर्ग गर्भकाल में उपस्थित हो जाते हैं | उनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं |
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मिचली या कै, (Nausea and Vomiting)यह एक सामान्य उपसर्ग है और प्राय: गर्भ के प्रारंभिक 4-5 महीनों तक ही रहता है | उसके बाद यह स्वत: शांत हो जाता है |  उपचार - सवेरे उठकर एक गिलास ठंडा जल पीना, कुछ समय का प्रात: भ्रमण, सिट्ज़  बाथ, पेडू पर पानी की पट्टी और आवश्यक होने पर गर्म- ठंडा कंप्रेस इस अवस्था में नींबू का सेवन अवश्य करना चाहिए | यदि भूख न मालूम हो तो केवल ठंडा जल ग्रहण करना चाहिए|
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रक्त स्नाव (Bleeding)कभी-कभी शरीर के विभिन्न अंगों में से रक्त स्राव होने लगता है | यह अवस्था भावी शिशु और माता दोनों के लिए ही घातक है | अस्तु इसकी चिकित्सा शीघ्र होनी चाहिए | उपचार -यह  व्यवस्था प्राय: कब्ज़ या पेट में  विजातीय द्रव्यों के जम जाने पर होती है | अत: एनिमा या जल पट्टी अथवा मिट्टी के प्रयोग द्वारा पेशाब कर लेना चाहिए और भोजन के भूख की प्रतीक्षा करनी चाहिए | थोड़ी भूख होने पर नींबू का पानी का छाछ देना चाहिए |
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जननेंद्रिय की खुजली-यह अवस्था प्राय: गंदगी के कारण उत्पन्न होती है | योनिप्रदेश में गंदगी के कारण कीटाणुओं  की उत्पत्ति हो जाती  है | और भयंकर खुजली प्रारंभ हो जाती है | उपचार- योनिद्वार की सफाई करने  के स्वल्प उष्णजल से करने बाद वह मिटटी  की पुल्टिश  रखनी चाहिए |  मिटटी में विष तथा विजातीय द्रव्यों को सोखने की अद्वितीय श्रमता होती है |
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गर्भकालीन अतिसार (Diarrhoea) खान-पान की गड़बड़ी अथवा यांत्रिक खराबी के कारण कभी-कभी पतले दस्त होने लगते हैं | कभी-कभी आत्ययिक अवस्था  में गर्भपात तक हो जाता हैं | यघपि प्राकृतिक चिकित्सा यह मानते हैं कि पेट में विजातीय द्रव्यों के जमा हो जाने पर प्राकृति अपने ढंग से स्वयं उसे बाहर निकालती है किंतु इससे कमजोरी उत्पन्न हो जाती है, इसलिए इसकी रोकथाम भी आवश्यक है | उपचार - हिम बाथ, सिट्ज़   बाथ ठंडे जल से स्नान आदि प्राकृतिक जलचिकित्सा से इस रोग से छुटकारा मिल सकता है | साथ ही खान-पान भी अनुकूल होना आवश्यक है |
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अवास्तविक प्रसव वेदना (Fals Labour Pain)-कभी-कभी प्रसव के ठीक समय से पूर्व ही गर्भाशय में दर्द उत्पन्न हो जाता है | यह दर्द स्थायी ना होकर कुछ देर के लिए ही होता है फिर शांत हो जाता है | उपचार - ठंडा जल-पान  और पेट पर ठंडी जल पट्टी का प्रयोग |
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गर्भसनाव (Abortion)-गर्भ स्थिर हो जाने के बाद कभी कभी कुछ कारणों से गर्भ गिर जाता  है | इसके कई स्वरूप होते हैं | यदि 4 मास के पहले गर्भ  गिर जाए तो उसे' गर्भ स्नाव' और 6 महीने भीतर हो तो 'गर्भपात' तथा यादी 7 से 9 महीने के भीतर गर्भ गिरे तो उसे आकाल- प्रसव कहते हैं 
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लक्षण तथा पूर्वाभास - गर्भपात के पूर्व सिहरावन, आलस्य कमजोरी, कमर में दर्द तथा जननेंद्रिय में भार का बोध होता है | गर्भस्राव से पूर्व अत्याधिक मात्रा में रक्तस्राव भी होता है गर्भपात होने के प्राय: निम्ननाकिंत कारण होते हैं- मानसिक उत्तेजना, इंद्रियां सेवन, अत्याधिक भोजन तथा अखाघ प्रदार्थो का खाना, उपदंश और अत्याधिक मात्रा में श्वेतप्रदर का स्नाव ऐसी अवस्था उत्पन्न होने पर- पूर्ण विश्राम और पेट पर ठंडी जल पट्टी का प्रयोग बार बार करने से गर्भ रुक सकता है | अन्य सावधानियों का पालन भी आवश्यक है, ताकि रोगिणी का पेट ठीक और साफ रहे और अत्यधिक थकान तथा उत्तेजना उत्पन्न ना हो | 
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प्रसव (Child Birth)-जननी के गर्भ शिशु के उत्पादन होने की प्रक्रिया को प्रसव की संज्ञा दी जाती है | यदि सुचारू रूप से माता का कष्ट बढ़ाएं बिना स्वस्थ शिशु का जन्म हो जाता है तो इसे उत्तव प्रसव कहते हैं | इसके विपरीत यदि इस प्रक्रिया में किसी प्रकार का व्याघात उपस्थित होता है तो वही कष्ट का प्रसव होता है | उत्तम प्रसव के लिए गर्भकाल में पूरी सावधानी बरतनी आवश्यक है | यह सावधानिया निम्नलिखित हैं- १. सहवास का पूर्णत परित्याग |  २.  स्वास्थ्यकर स्थान पर निवास |  ३.  हल्का श्रम |  ४. सवारी आदि का त्याग |  ५. ढीले-ढाले वस्त्रों के धारण कारण, तंग जूते ना पहनना और सिर के बालों को ढीला - ढाला रखना यानि कसकर जुड़ा ना बांधना |  ६.  आंतो और पेट को सदैव साफ़ रखना |  ७. हल्का, सुपाच्य तथा पुष्टिकर और सातिवक भोजन करना |  ८. मन में पवित्र और उत्तम विचार रखना और शांत रहना |  ९. नित्य घर्षणयुक्त सिज़ बाथ |  १०. सुखकारक प्रसव हेतु गीली मिटटी की पुल्टिश का प्रयोग |  उपरोक्त नियमों का पालन करने पर यह बात सुनिचिश्त है कि माता स्वस्थ् और सुंदर संतान को जन्म देकर सभी स्वयं भी स्वस्थ रहेगी | 
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प्रसव वेदना (Labour Pain)-शिशु को जन्म देते समय माता को अनिवार्यत: कुछ-न-कुछ कष्ट होता ही है | स्वस्थ स्त्रियां इस दर्द को आसानी से झेल लेती हैं और कोई कष्ट कर उत्सर्ग पैदा नहीं होता | इसके विपरीत अनियमित और आचरण वाली माताएं इसमें घोर यंत्रणा पाती हैं और प्राय: शिशु तथा माता दोनों का ही जीवन संकटपूर्ण और रोगी हो जाता है | 
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प्रसव के बाद-प्रसवोपरांत 'सौरी ग्रहण' का समय भी माता और शिशु के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण है प्राय: इ�� काल में माताएं वायु और प्रकाशाहीन कमरे में-चारपाई पर ही पड़ी रहती हैं | उनका भोजन आदि भी गरिष्ट होता है | इस प्रकार के कब्जियत या अन्य रोगों की शिकार हो जाती हैं इस समय आवश्यक है कि उन्हें साफ-सुथरे, हवादार कमरे में साफ-स्वच्छ बिछावन पर रखा जाए | नाल किसी चतुर एवं योग्य नर्स से ही कटवाया जाए, अन्यथा कभी-कभी वह स्थान विषाक्त हो जाता है और अनेक कष्ट पैदा हो जाते हैं | इस समय चलना-फिरना या अधिक अंग संचालन हानिकारक है | प्रसव के बाद प्रसूता को नींद आ जाती है | ऐसी अवस्था में उसे पूर्ण विश्राम करने देना चाहिए | नींद खुलने पर 50०-70फा० हा० ऊष्मा के जल से सिज़ बाथ काफी देर तक देना चाहिए | ऐसा कई दिनों तक करना चाहिए | प्रसव के बाद तलपेट पर पट्टी बांध दी जाती है | इससे पेट और जनन संस्थान के सभी अवयव अपने स्थान पर आ जाते हैं | 
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कुछ प्रसवोत्तर बीमारियां-यतो ऊपर बताए गए नियमों का पालन करने पर प्रसव के बाद कोई कष्ट उत्पन्न ही नहीं होता, किंतु प्रमादवश उनके विरुद्ध आचरण करने पर अनेक कष्ट कर उपसर्ग उपस्थित हो जाते हैं | उनमें से कुछ इस प्रकार हैं, जिनका उपचार पानी और मिट्टी की सहायता से तथा नियमित आहार-विहार द्वारा भली-भांति हो सकता है | इन व्याधियों में निम्नाकिंत बीमारियां मुख्य हैं- १. फूल देर से गिरना |  २. अत्यधिक रक्तस्नाव | ३. प्रसव के बाद ज्वर |  ४. दुग्ध स्नावाभाव |  ५. पेशाब बंद हो जाना |  ६. प्रसवोत्तर कोष्टबद्धता |  ७. दूध का ज्वर |  ८. अत्यधिक दुग्धस्नाव |  ९. स्तन प्रदा और १०. प्रसवोत्तर वेदना |  उपरोक्त व्याधियों की चिकित्सा यथा स्थान पहले बताए गए जल चिकित्सोपचार से कर लेनी चाहिए |  डॉ अतहर अज़ीज़ (योगाचार्य) OUR YOUTUBE CHANNEL LINK https://www.youtube.com/channel/UCQXYQKZwIhrsiDr1DbcoFF BUY YOGA MAT FROM HERE CLICK ONhttps://amzn.to/36pXqdlBUY POWER MAT FROM HERE CLICK ON 1.https://amzn.to/375ng6G 2. https://amzn.to/3627R7e Read the full article
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sminstituteblog · 4 years
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क्या आप गर्भ और गर्भकालीन विकारों के बारे में जानते है?
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क्या आप गर्भ और गर्भकालीन विकारों के बारे में जानते है?  गर्भ धारण के पश्चात स्त्री में कौन-कौन से लक्षण प्रकट होते हैं | इस संबंध में निम्नाकिंत बातें उसके निर्णय के लिए जान��ा आवश्यक है |गर्भ स्थिर हो जाने पर तुरंत नारी में एक स्फुरण की अनुभूति होती है | इसे पूर्व प्रसव स्त्रियां सहज ही अनुभव कर लेती हैं |
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ऋषितुरोध- गर्भ स्थापित हो जाने पर मासिक स्नाव बंद हो जाता है | कभी-कभी  इसका अपवाद भी देखा जाता है | जी मिचलाना -गर्भधारण के कुछ महीनों तक की जी मिचलाने का लक्षण भी रहता है | बाद में यह नहीं होता |पेडू पर भारवृद्धि स्वभावत:  बच्चे के आकार ग्रहण करने और उसके बढ़ने पर पेट के निम्नांश (पेडू) में भार मालूम होता है |
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पेट का आकार बढ़ना - बच्चे की वृद्धि  के साथ पेट का आयतन और आकार भी बढ़ जाता है |स्तनों का काला पड़ना - स्तनों की घंटी (निप्पल) क्रमश: स्याह काली पड़ जाती है |स्तनों की वृद्धि - शिशु के जन्म के पूर्व ही माता के स्तन बढ़ने लगते हैं प्रसव के समय तक यह पूर्णरूपेण भर जाते है |
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गर्भस्थ शिशु की हरकत -5-6 माह के गर्भकाल के उपरांत भूर्ण में प्राण आ जाने पर वह पेट में हरकत प्रारंभ कर देता है |गर्भस्थिति काल - गर्भधारण के बाद शिशु के जन्म लेने की पूर्ण और स्वाभाविक अवधि 280 दिन होती है | इससे पहले या बाद में प्रसव होने को 'अकाल प्रसव' कहा जाता है |
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गर्भकालीन व्याधियां -गर्भकाल नारीजीवन का अत्यंत ही महत्वपूर्ण समय है | यदि यह समय निरापद बीत जाए और स्वाभाविक प्रसव हो जाए तो निश्चय ही स्वस्थ शिशु पैदा होगा और माता का स्वास्थ्य भी स्थिर रहेगा | अन्यथा योगी शिशु और प्रसूति कालीन व्याधियां पैदा हो जाएगी |
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प्रसूता की उचित जीवनचर्या - गर्भकाल मैं नारी को बहुत ही सावधान रहना चाहिए | खान-पान, रहन-सहन, धर्मचरण, इंद्रियां निग्रह आदि नियमों का पालन करने पर नि:संदेह स्वस्थ संतान का जन्म होता है | प्रमादवश गर्भकालीन नियमों का पालन न करने पर ग्राभीण को अनेक बीमारियां जकड़ लेती हैं | और उसका जीवन संकटमय हो जाता है | प्राय: निम्नांकित बीमारियां गर्भकाल में प्रकट हो सकती हैं- मिचली या कै, शूल या वेदना, रक्त स्नाव पाशर्ववेदना, अतिसार, कब्ज़ या कोष्टबद्धता, जननेंद्रिया की खुजली, मूत्रकृच्छता अथवा मूत्रवेग का अभाव, अवास्तविक प्रसव वेदना (False Labour Pain) गर्भसनाव या गर्भपात आदि | इसी प्रकार के और भी कितने ही कष्टकर उपसर्ग गर्भकाल में उपस्थित हो जाते हैं | उनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं |
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मिचली या कै, (Nausea and Vomiting)यह एक सामान्य उपसर्ग है और प्राय: गर्भ के प्रारंभिक 4-5 महीनों तक ही रहता है | उसके बाद यह स्वत: शांत हो जाता है |  उपचार - सवेरे उठकर एक गिलास ठंडा जल पीना, कुछ समय का प्रात: भ्रमण, सिट्ज़  बाथ, पेडू पर पानी की पट्टी और आवश्यक होने पर गर्म- ठंडा कंप्रेस इस अवस्था में नींबू का सेवन अवश्य करना चाहिए | यदि भूख न मालूम हो तो केवल ठंडा जल ग्रहण करना चाहिए|
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रक्त स्नाव (Bleeding)कभी-कभी शरीर के विभिन्न अंगों में से रक्त स्राव होने लगता है | यह अवस्था भावी शिशु और माता दोनों के लिए ही घातक है | अस्तु इसकी चिकित्सा शीघ्र होनी चाहिए | उपचार -यह  व्यवस्था प्राय: कब्ज़ या पेट में  विजातीय द्रव्यों के जम जाने पर होती है | अत: एनिमा या जल पट्टी अथवा मिट्टी के प्रयोग द्वारा पेशाब कर लेना चाहिए और भोजन के भूख की प्रतीक्षा करनी चाहिए | थोड़ी भूख होने पर नींबू का पानी का छाछ देना चाहिए |
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जननेंद्रिय की खुजली-यह अवस्था प्राय: गंदगी के कारण उत्पन्न होती है | योनिप्रदेश में गंदगी के कारण कीटाणुओं  की उत्पत्ति हो जाती  है | और भयंकर खुजली प्रारंभ हो जाती है | उपचार- योनिद्वार की सफाई करने  के स्वल्प उष्णजल से करने बाद वह मिटटी  की पुल्टिश  रखनी चाहिए |  मिटटी में विष तथा विजातीय द्रव्यों को सोखने की अद्वितीय श्रमता होती है |
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गर्भकालीन अतिसार (Diarrhoea) खान-पान की गड़बड़ी अथवा यांत्रिक खराबी के कारण कभी-कभी पतले दस्त होने लगते हैं | कभी-कभी आत्ययिक अवस्था  में गर्भपात तक हो जाता हैं | यघपि प्राकृतिक चिकित्सा यह मानते ह���ं कि पेट में विजातीय द्रव्यों के जमा हो जाने पर प्राकृति अपने ढंग से स्वयं उसे बाहर निकालती है किंतु इससे कमजोरी उत्पन्न हो जाती है, इसलिए इसकी रोकथाम भी आवश्यक है | उपचार - हिम बाथ, सिट्ज़   बाथ ठंडे जल से स्नान आदि प्राकृतिक जलचिकित्सा से इस रोग से छुटकारा मिल सकता है | साथ ही खान-पान भी अनुकूल होना आवश्यक है |
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अवास्तविक प्रसव वेदना (Fals Labour Pain)-कभी-कभी प्रसव के ठीक समय से पूर्व ही गर्भाशय में दर्द उत्पन्न हो जाता है | यह दर्द स्थायी ना होकर कुछ देर के लिए ही होता है फिर शांत हो जाता है | उपचार - ठंडा जल-पान  और पेट पर ठंडी जल पट्टी का प्रयोग |
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गर्भसनाव (Abortion)-गर्भ स्थिर हो जाने के बाद कभी कभी कुछ कारणों से गर्भ गिर जाता  है | इसके कई स्वरूप होते हैं | यदि 4 मास के पहले गर्भ  गिर जाए तो उसे' गर्भ स्नाव' और 6 महीने भीतर हो तो 'गर्भपात' तथा यादी 7 से 9 महीने के भीतर गर्भ गिरे तो उसे आकाल- प्रसव कहते हैं 
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लक्षण तथा पूर्वाभास - गर्भपात के पूर्व सिहरावन, आलस्य कमजोरी, कमर में दर्द तथा जननेंद्रिय में भार का बोध होता है | गर्भस्राव से पूर्व अत्याधिक मात्रा में रक्तस्राव भी होता है गर्भपात होने के प्राय: निम्ननाकिंत कारण होते हैं- मानसिक उत्तेजना, इंद्रियां सेवन, अत्याधिक भोजन तथा अखाघ प्रदार्थो का खाना, उपदंश और अत्याधिक मात्रा में श्वेतप्रदर का स्नाव ऐसी अवस्था उत्पन्न होने पर- पूर्ण विश्राम और पेट पर ठंडी जल पट्टी का प्रयोग बार बार करने से गर्भ रुक सकता है | अन्य सावधानियों का पालन भी आवश्यक है, ताकि रोगिणी का पेट ठीक और साफ रहे और अत्यधिक थकान तथा उत्तेजना उत्पन्न ना हो | 
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प्रसव (Child Birth)-जननी के गर्भ शिशु के उत्पादन होने की प्रक्रिया को प्रसव की संज्ञा दी जाती है | यदि सुचारू रूप से माता का कष्ट बढ़ाएं बिना स्वस्थ शिशु का जन्म हो जाता है तो इसे उत्तव प्रसव कहते हैं | इसके विपरीत यदि इस प्रक्रिया में किसी प्रकार का व्याघात उपस्थित होता है तो वही कष्ट का प्रसव होता है | उत्तम प्रसव के लिए गर्भकाल में पूरी सावधानी बरतनी आवश्यक है | यह सावधानिया निम्नलिखित हैं- १. सहवास का पूर्णत परित्याग |  २.  स्वास्थ्यकर स्थान पर निवास |  ३.  हल्का श्रम |  ४. सवारी आदि का त्याग |  ५. ढीले-ढाले वस्त्रों के धारण कारण, तंग जूते ना पहनना और सिर के बालों को ढीला - ढाला रखना यानि कसकर जुड़ा ना बांधना |  ६.  आंतो और पेट को सदैव साफ़ रखना |  ७. हल्का, सुपाच्य तथा पुष्टिकर और सातिवक भोजन करना |  ८. मन में पवित्र और उत्तम विचार रखना और शांत रहना |  ९. नित्य घर्षणयुक्त सिज़ बाथ |  १०. सुखकारक प्रसव हेतु गीली मिटटी की पुल्टिश का प्रयोग |  उपरोक्त नियमों का पालन करने पर यह बात सुनिचिश्त है कि माता स्वस्थ् और सुंदर संतान को जन्म देकर सभी स्वयं भी स्वस्थ रहेगी | 
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प्रसव वेदना (Labour Pain)-शिशु को जन्म देते समय माता को अनिवार्यत: कुछ-न-कुछ कष्ट होता ही है | स्वस्थ स्त्रियां इस दर्द को आसानी से झेल लेती हैं और कोई कष्ट कर उत्सर्ग पैदा नहीं होता | इसके विपरीत अनियमित और आचरण वाली माताएं इसमें घोर यंत्रणा पाती हैं और प्राय: शिशु तथा माता दोनों का ही जीवन संकटपूर्ण और रोगी हो जाता है | 
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प्रसव के बाद-प्रसवोपरांत 'सौरी ग्रहण' का समय भी माता और शिशु के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण है प्राय: इस काल में माताएं वायु और प्रकाशाहीन कमरे में-चारपाई पर ही पड़ी रहती हैं | उनका भोजन आदि भी गरिष्ट होता है | इस प्रकार के कब्जियत या अन्य रोगों की शिकार हो जाती हैं इस समय आवश्यक है कि उन्हें साफ-सुथरे, हवादार कमरे में साफ-स्वच्छ बिछावन पर रखा जाए | नाल किसी चतुर एवं योग्य नर्स से ही कटवाया जाए, अन्यथा कभी-कभी वह स्थान विषाक्त हो जाता है और अनेक कष्ट पैदा हो जाते हैं | इस समय चलना-फिरना या अधिक अंग संचालन हानिकारक है | प्रसव के बाद प्रसूता को नींद आ जाती है | ऐसी अवस्था में उसे पूर्ण विश्राम करने देना चाहिए | नींद खुलने पर 50०-70फा० हा० ऊष्मा के जल से सिज़ बाथ काफी देर तक देना चाहिए | ऐसा कई दिनों तक करना चाहिए | प्रसव के बाद तलपेट पर पट्टी बांध दी जाती है | इससे पेट और जनन संस्थान के सभी अवयव अपने स्थान पर आ जाते हैं | 
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कुछ प्रसवोत्तर बीमारियां-यतो ऊपर बताए गए नियमों का पालन करने पर प्रसव के बाद कोई कष्ट उत्पन्न ही नहीं होता, किंतु प्रमादवश उनके विरुद्ध आचरण करने पर अनेक कष्ट कर उपसर्ग उपस्थित हो जाते हैं | उनमें से कुछ इस प्रकार हैं, जिनका उपचार पानी और मिट्टी की सहायता से तथा नियमित आहार-विहार द्वारा भली-भांति हो सकता है | इन व्याधियों में निम्नाकिंत बीमारियां मुख्य हैं- १. फूल देर से गिरना |  २. अत्यधिक रक्तस्नाव | ३. प्रसव के बाद ज्वर |  ४. दुग्ध स्नावाभाव |  ५. पेशाब बंद हो जाना |  ६. प्रसवोत्तर कोष्टबद्धता |  ७. दूध का ज्वर |  ८. अत्यधिक दुग्धस्नाव |  ९. स्तन प्रदा और १०. प्रसवोत्तर वेदना |  उपरोक्त व्याधियों की चिकित्सा यथा स्थान पहले बताए गए जल चिकित्सोपचार से कर लेनी चाहिए |  डॉ अतहर अज़ीज़ (योगाचार्य) OUR YOUTUBE CHANNEL LINK https://www.youtube.com/channel/UCQXYQKZwIhrsiDr1DbcoFF BUY YOGA MAT FROM HERE CLICK ONhttps://amzn.to/36pXqdlBUY POWER MAT FROM HERE CLICK ON 1.https://amzn.to/375ng6G 2. https://amzn.to/3627R7e Read the full article
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sminstituteblog · 4 years
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क्या आप गर्भ और गर्भकालीन विकारों के बारे में जानते है?
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क्या आप गर्भ और गर्भकालीन विकारों के बारे में जानते है?  गर्भ धारण के पश्चात स्त्री में कौन-कौन से लक्षण प्रकट होते हैं | इस संबंध में निम्नाकिंत बातें उसके निर्णय के लिए जानना आवश्यक है |गर्भ स्थिर हो जाने पर तुरंत नारी में एक स्फुरण की अनुभूति होती है | इसे पूर्व प्रसव स्त्रियां सहज ही अनुभव कर लेती हैं |
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ऋषितुरोध- गर्भ स्थापित हो जाने पर मासिक स्नाव बंद हो जाता है | कभी-कभी  इसका अपवाद भी देखा जाता है | जी मिचलाना -गर्भधारण के कुछ महीनों तक की जी मिचलाने का लक्षण भी रहता है | बाद में यह नहीं होता |पेडू पर भारवृद्धि स्वभावत:  बच्चे के आकार ग्रहण करने और उसके बढ़ने पर पेट के निम्नांश (पेडू) में भार मालूम होता है |
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पेट का आकार बढ़ना - बच्चे की वृद्धि  के साथ पेट का आयतन और आकार भी बढ़ जाता है |स्तनों का काला पड़ना - स्तनों की घंटी (निप्पल) क्रमश: स्याह काली पड़ जाती है |स्तनों की वृद्धि - शिशु के जन्म के पूर्व ही माता के स्तन बढ़ने लगते हैं प्रसव के समय तक यह पूर्णरूपेण भर जाते है |
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गर्भस्थ शिशु की हरकत -5-6 माह के गर्भकाल के उपरांत भूर्ण में प्राण आ जाने पर वह पेट में हरकत प्रारंभ कर देता है |गर्भस्थिति काल - गर्भधारण के बाद शिशु के जन्म लेने की पूर्ण और स्वाभाविक अवधि 280 दिन होती है | इससे पहले या बाद में प्रसव होने को 'अकाल प्रसव' कहा जाता है |
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गर्भकालीन व्याधियां -गर्भकाल नारीजीवन का अत्यंत ही महत्वपूर्ण समय है | यदि यह समय निरापद बीत जाए और स्वाभाविक प्रसव हो जाए तो निश्चय ही स्वस्थ शिशु पैदा होगा और माता का स्वास्थ्य भी स्थिर रहेगा | अन्यथा योगी शिशु और प्रसूति कालीन व्याधियां पैदा हो जाएगी |
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प्रसूता की उचित जीवनचर्या - गर्भकाल मैं नारी को बहुत ही सावधान रहना चाहिए | खान-पान, रहन-सहन, धर्मचरण, इंद्रियां निग्रह आदि नियमों का पालन करने पर नि:संदेह स्वस्थ संतान का जन्म होता है | प्रमादवश गर्भकालीन नियमों का पालन न करने पर ग्राभीण को अनेक बीमारियां जकड़ लेती हैं | और उसका जीवन संकटमय हो जाता है | प्राय: निम्नांकित बीमारियां गर्भकाल में प्रकट हो सकती हैं- मिचली या कै, शूल या वेदना, रक्त स्नाव पाशर्ववेदना, अतिसार, कब्ज़ या कोष्टबद्धता, जननेंद्रिया की खुजली, मूत्रकृच्छता अथवा मूत्रवेग का अभाव, अवास्तविक प्रसव वेदना (False Labour Pain) गर्भसनाव या गर्भपात आदि | इसी प्रकार के और भी कितने ही कष्टकर उपसर्ग गर्भकाल में उपस्थित हो जाते हैं | उनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं |
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मिचली या कै, (Nausea and Vomiting)यह एक सामान्य उपसर्ग है और प्राय: गर्भ के प्रारंभिक 4-5 महीनों तक ही रहता है | उसके बाद यह स्वत: शांत हो जाता है |  उपचार - सवेरे उठकर एक गिलास ठंडा जल पीना, कुछ समय का प्रात: भ्रमण, सिट्ज़  बाथ, पेडू पर पानी की पट्टी और आवश्यक होने पर गर्म- ठंडा कंप्रेस इस अवस्था में नींबू का सेवन अवश्य करना चाहिए | यदि भूख न मालूम हो तो केवल ठंडा जल ग्रहण करना चाहिए|
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रक्त स्नाव (Bleeding)कभी-कभी शरीर के विभिन्न अंगों में से रक्त स्राव होने लगता है | यह अवस्था भावी शिशु और माता दोनों के लिए ही घातक है | अस्तु इसकी चिकित्सा शीघ्र होनी चाहिए | उपचार -यह  व्यवस्था प्राय: कब्ज़ या पेट में  विजातीय द्रव्यों के जम जाने पर होती है | अत: एनिमा या जल पट्टी अथवा मिट्टी के प्रयोग द्वारा पेशाब कर लेना चाहिए और भोजन के भूख की प्रतीक्षा करनी चाहिए | थोड़ी भूख होने पर नींबू का पानी का छाछ देना चाहिए |
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जननेंद्रिय की खुजली-यह अवस्था प्राय: गंदगी के कारण उत्पन्न होती है | योनिप्रदेश में गंदगी के कारण कीटाणुओं  की उत्पत्ति हो जाती  है | और भयंकर खुजली प्रारंभ हो जाती है | उपचार- योनिद्वार की सफाई करने  के स्वल्प उष्णजल से करने बाद वह मिटटी  की पुल्टिश  रखनी चाहिए |  मिटटी में विष तथा विजातीय द्रव्यों को सोखने की अद्वितीय श्रमता होती है |
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गर्भकालीन अतिसार (Diarrhoea) खान-पान की गड़बड़ी अथवा यांत्रिक खराबी के कारण कभी-कभी पतले दस्त होने लगते हैं | कभी-कभी आत्ययिक अवस्था  में गर्भपात तक हो जाता हैं | यघपि प्राकृतिक चिकित्सा यह मानते हैं कि पेट में विजातीय द्रव्यों के जमा हो जाने पर प्राकृति अपने ढंग से स्वयं उसे बाहर निकालती है किंतु इससे कमजोरी उत्पन्न हो जाती है, इसलिए इसकी रोकथाम भी आवश्यक है | उपचार - हिम बाथ, सिट्ज़   बाथ ठंडे जल से स्नान आदि प्राकृतिक जलचिकित्सा से इस रोग से छुटकारा मिल सकता है | साथ ही खान-पान भी अनुकूल होना आवश्यक है |
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अवास्तविक प्रसव वेदना (Fals Labour Pain)-कभी-कभी प्रसव के ठीक समय से पूर्व ही गर्भाशय में दर्द उत्पन्न हो जाता है | यह दर्द स्थायी ना होकर कुछ देर के लिए ही होता है फिर शांत हो जाता है | उपचार - ठंडा जल-पान  और पेट पर ठंडी जल पट्टी का प्रयोग |
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गर्भसनाव (Abortion)-गर्भ स्थिर हो जाने के बाद कभी कभी कुछ कारणों से गर्भ गिर जाता  है | इसके कई स्वरूप होते हैं | यदि 4 मास के पहले गर्भ  गिर जाए तो उसे' गर्भ स्नाव' और 6 महीने भीतर हो तो 'गर्भपात' तथा यादी 7 से 9 महीने के भीतर गर्भ गिरे तो उसे आकाल- प्रसव कहते हैं 
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लक्षण तथा पूर्वाभास - गर्भपात के पूर्व सिहरावन, आलस्य कमजोरी, कमर में दर्द तथा जननेंद्रिय में भार का बोध होता है | गर्भस्राव से पूर्व अत्याधिक मात्रा में रक्तस्राव भी होता है गर्भपात होने के प्राय: निम्ननाकिंत कारण होते हैं- मानसिक उत्तेजना, इंद्रियां सेवन, अत्याधिक भोजन तथा अखाघ प्रदार्थो का खाना, उपदंश और अत्याधिक मात्रा में श्वेतप्रदर का स्नाव ऐसी अवस्था उत्पन्न होने पर- पूर्ण विश्राम और पेट पर ठंडी जल पट्टी का प्रयोग बार बार करने से गर्भ रुक सकता है | अन्य सावधानियों का पालन भी आवश्यक है, ताकि रोगिणी का पेट ठीक और साफ रहे और अत्यधिक थकान तथा उत्तेजना उत्पन्न ना हो | 
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प्रसव (Child Birth)-जननी के गर्भ शिशु के उत्पादन होने की प्रक्रिया को प्रसव की संज्ञा दी जाती है | यदि सुचारू रूप से माता का कष्ट बढ़ाएं बिना स्वस्थ शिशु का जन्म हो जाता है तो इसे उत्तव प्रसव कहते हैं | इसके विपरीत यदि इस प्रक्रिया में किसी प्रकार का व्याघात उपस्थित होता है तो वही कष्ट का प्रसव होता है | उत्तम प्रसव के लिए गर्भकाल में पूरी सावधानी बरतनी आवश्यक है | यह सावधानिया निम्नलिखित हैं- १. सहवास का पूर्णत परित्याग |  २.  स्वास्थ्यकर स्थान पर निवास |  ३.  हल्का श्रम |  ४. सवारी आदि का त्याग |  ५. ढीले-ढाले वस्त्रों के धारण कारण, तंग जूते ना पहनना और सिर के बालों को ढीला - ढाला रखना यानि कसकर जुड़ा ना बांधना |  ६.  आंतो और पेट को सदैव साफ़ रखना |  ७. हल्का, सुपाच्य तथा पुष्टिकर और सातिवक भोजन करना |  ८. मन में पवित्र और उत्तम विचार रखना और शांत रहना |  ९. नित्य घर्षणयुक्त सिज़ बाथ |  १०. सुखकारक प्रसव हेतु गीली मिटटी की पुल्टिश का प्रयोग |  उपरोक्त नियमों का पालन करने पर यह बात सुनिचिश्त है कि माता स्वस्थ् और सुंदर संतान को जन्म देकर सभी स्वयं भी स्वस्थ रहेगी | 
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प्रसव वेदना (Labour Pain)-शिशु को जन्म देते समय माता को अनिवार्यत: कुछ-न-कुछ कष्ट होता ही है | स्वस्थ स्त्रियां इस दर्द को आसानी से झेल लेती हैं और कोई कष्ट कर उत्सर्ग पैदा नहीं होता | इसके विपरीत अनियमित और आचरण वाली माताएं इसमें घोर यंत्रणा पाती हैं और प्राय: शिशु तथा माता दोनों का ही जीवन संकटपूर्ण और रोगी हो जाता है | 
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प्रसव के बाद-प्रसवोपरांत 'सौरी ग्रहण' का समय भी माता और शिशु के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण है प्राय: इस काल में माताएं वायु और प्रकाशाहीन कमरे में-चारपाई पर ही पड़ी रहती हैं | उनका भोजन आदि भी गरिष्ट होता है | इस प्रकार के कब्जियत या अन्य रोगों की शिकार हो जाती हैं इस समय आवश्यक है कि उन्हें साफ-सुथरे, हवादार कमरे में साफ-स्वच्छ बिछावन पर रखा जाए | नाल किसी चतुर एवं योग्य नर्स से ही कटवाया जाए, अन्यथा कभी-कभी वह स्थान विषाक्त हो जाता है और अनेक कष्ट पैदा हो जाते हैं | इस समय चलना-फिरना या अधिक अंग संचालन हानिकारक है | प्रसव के बाद प्रसूता को नींद आ जाती है | ऐसी अवस्था में उसे पूर्ण विश्राम करने देना चाहिए | नींद खुलने पर 50०-70फा० हा० ऊष्मा के जल से सिज़ बाथ काफी देर तक देना चाहिए | ऐसा कई दिनों तक करना चाहिए | प्रसव के बाद तलपेट पर पट्टी बांध दी जाती है | इससे पेट और जनन संस्थान के सभी अवयव अपने स्थान पर आ जाते हैं | 
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कुछ प्रसवोत्तर बीमारियां-यतो ऊपर बताए गए नियमों का पालन करने पर प्रसव के बाद कोई कष्ट उत्पन्न ही नहीं होता, किंतु प्रमादवश उनके विरुद्ध आचरण करने पर अनेक कष्ट कर उपसर्ग उपस्थित हो जाते हैं | उनमें से कुछ इस प्रकार हैं, जिनका उपचार पानी और मिट्टी की सहायता से तथा नियमित आहार-विहार द्वारा भली-भांति हो सकता है | इन व्याधियों में निम्नाकिंत बीमारियां मुख्य हैं- १. फूल देर से गिरना |  २. अत्यधिक रक्तस्नाव | ३. प्रसव के बाद ज्वर |  ४. दुग्ध स्नावाभाव |  ५. पेशाब बंद हो जाना |  ६. प्रसवोत्तर कोष्टबद्धता |  ७. दूध का ज्वर |  ८. अत्यधिक दुग्धस्नाव |  ९. स्तन प्रदा और १०. प्रसवोत्तर वेदना |  उपरोक्त व्याधियों की चिकित्सा यथा स्थान पहले बताए गए जल चिकित्सोपचार से कर लेनी चाहिए |  डॉ अतहर अज़ीज़ (योगाचार्य) OUR YOUTUBE CHANNEL LINK https://www.youtube.com/channel/UCQXYQKZwIhrsiDr1DbcoFF BUY YOGA MAT FROM HERE CLICK ONhttps://amzn.to/36pXqdlBUY POWER MAT FROM HERE CLICK ON 1.https://amzn.to/375ng6G 2. https://amzn.to/3627R7e Read the full article
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sminstituteblog · 3 years
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क्या आप गर्भ और गर्भकालीन विकारों के बारे में जानते है?
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क्या आप गर्भ और गर्भकालीन विकारों के बारे में जानते है?  गर्भ धारण के पश्चात स्त्री में कौन-कौन से लक्षण प्रकट होते हैं | इस संबंध में निम्नाकिंत बातें उसके निर्णय के लिए जानना आवश्यक है |गर्भ स्थिर हो जाने पर तुरंत नारी में एक स्फुरण की अनुभूति होती है | इसे पूर्व प्रसव स्त्रियां सहज ही अनुभव कर लेती हैं |
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ऋषितुरोध- गर्भ स्थापित हो जाने पर मासिक स्नाव बंद हो जाता है | कभी-कभी  इसका अपवाद भी देखा जाता है | जी मिचलाना -गर्भधारण के कुछ महीनों तक की जी मिचलाने का लक्षण भी रहता है | बाद में यह नहीं होता |पेडू पर भारवृद्धि स्वभावत:  बच्चे के आकार ग्रहण करने और उसके बढ़ने पर पेट के निम्नांश (पेडू) में भार मालूम होता है |
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पेट का आकार बढ़ना - बच्चे की वृद्धि  के साथ पेट का आयतन और आकार भी बढ़ जाता है |स्तनों का काला पड़ना - स्तनों की घंटी (निप्पल) क्रमश: स्याह काली पड़ जाती है |स्तनों की वृद्धि - शिशु के जन्म के पूर्व ही माता के स्तन बढ़ने लगते हैं प्रसव के समय तक यह पूर्णरूपेण भर जाते है |
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गर्भस्थ शिशु की हरकत -5-6 माह के गर्भकाल के उपरांत भूर���ण में प्राण आ जाने पर वह पेट में हरकत प्रारंभ कर देता है |गर्भस्थिति काल - गर्भधारण के बाद शिशु के जन्म लेने की पूर्ण और स्वाभाविक अवधि 280 दिन होती है | इससे पहले या बाद में प्रसव होने को 'अकाल प्रसव' कहा जाता है |
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गर्भकालीन व्याधियां -गर्भकाल नारीजीवन का अत्यंत ही महत्वपूर्ण समय है | यदि यह समय निरापद बीत जाए और स्वाभाविक प्रसव हो जाए तो निश्चय ही स्वस्थ शिशु पैदा होगा और माता का स्वास्थ्य भी स्थिर रहेगा | अन्यथा योगी शिशु और प्रसूति कालीन व्याधियां पैदा हो जाएगी |
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प्रसूता की उचित जीवनचर्या - गर्भकाल मैं नारी को बहुत ही सावधान रहना चाहिए | खान-पान, रहन-सहन, धर्मचरण, इंद्रियां निग्रह आदि नियमों का पालन करने पर नि:संदेह स्वस्थ संतान का जन्म होता है | प्रमादवश गर्भकालीन नियमों का पालन न करने पर ग्राभीण को अनेक बीमारियां जकड़ लेती हैं | और उसका जीवन संकटमय हो जाता है | प्राय: निम्नांकित बीमारियां गर्भकाल में प्रकट हो सकती हैं- मिचली या कै, शूल या वेदना, रक्त स्नाव पाशर्ववेदना, अतिसार, कब्ज़ या कोष्टबद्धता, जननेंद्रिया की खुजली, मूत्रकृच्छता अथवा मूत्रवेग का अभाव, अवास्तविक प्रसव वेदना (False Labour Pain) गर्भसनाव या गर्भपात आदि | इसी प्रकार के और भी कितने ही कष्टकर उपसर्ग गर्भकाल में उपस्थित हो जाते हैं | उनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं |
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मिचली या कै, (Nausea and Vomiting)यह एक सामान्य उपसर्ग है और प्राय: गर्भ के प्रारंभिक 4-5 महीनों तक ही रहता है | उसके बाद यह स्वत: शांत हो जाता है |  उपचार - सवेरे उठकर एक गिलास ठंडा जल पीना, कुछ समय का प्रात: भ्रमण, सिट्ज़  बाथ, पेडू पर पानी की पट्टी और आवश्यक होने पर गर्म- ठंडा कंप्रेस इस अवस्था में नींबू का सेवन अवश्य करना चाहिए | यदि भूख न मालूम हो तो केवल ठंडा जल ग्रहण करना चाहिए|
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रक्त स्नाव (Bleeding)कभी-कभी शरीर के विभिन्न अंगों में से रक्त स्राव होने लगता है | यह अवस्था भावी शिशु और माता दोनों के लिए ही घातक है | अस्तु इसकी चिकित्सा शीघ्र होनी चाहिए | उपचार -यह  व्यवस्था प्राय: कब्ज़ या पेट में  विजातीय द्रव्यों के जम जाने पर होती है | अत: एनिमा या जल पट्टी अथवा मिट्टी के प्रयोग द्वारा पेशाब कर लेना चाहिए और भोजन के भूख की प्रतीक्षा करनी चाहिए | थोड़ी भूख होने पर नींबू का पानी का छाछ देना चाहिए |
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जननेंद्रिय की खुजली-यह अवस्था प्राय: गंदगी के कारण उत्पन्न होती है | योनिप्रदेश में गंदगी के कारण कीटाणुओं  की उत्पत्ति हो जाती  है | और भयंकर खुजली प्रारंभ हो जाती है | उपचार- योनिद्वार की सफाई करने  के स्वल्प उष्णजल से करने बाद वह मिटटी  की पुल्टिश  रखनी चाहिए |  मिटटी में विष तथा विजातीय द्रव्यों को सोखने की अद्वितीय श्रमता होती है |
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गर्भकालीन अतिसार (Diarrhoea) खान-पान की गड़बड़ी अथवा यांत्रिक खराबी के कारण कभी-कभी पतले दस्त होने लगते हैं | कभी-कभी आत्ययिक अवस्था  में गर्भपात तक हो जाता हैं | यघपि प्राकृतिक चिकित्सा यह मानते हैं कि पेट में विजातीय द्रव्यों के जमा हो जाने पर प्राकृति अपने ढंग से स्वयं उसे बाहर निकालती है किंतु इससे कमजोरी उत्पन्न हो जाती है, इसलिए इसकी रोकथाम भी आवश्यक है | उपचार - हिम बाथ, सिट्ज़   बाथ ठंडे जल से स्नान आदि प्राकृतिक जलचिकित्सा से इस रोग से छुटकारा मिल सकता है | साथ ही खान-पान भी अनुकूल होना आवश्यक है |
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अवास्तविक प्रसव वेदना (Fals Labour Pain)-कभी-कभी प्रसव के ठीक समय से पूर्व ही गर्भाशय में दर्द उत्पन्न हो जाता है | यह दर्द स्थायी ना होकर कुछ देर के लिए ही होता है फिर शांत हो जाता है | उपचार - ठंडा जल-पान  और पेट पर ठंडी जल पट्टी का प्रयोग |
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गर्भसनाव (Abortion)-गर्भ स्थिर हो जाने के बाद कभी कभी कुछ कारणों से गर्भ गिर जाता  है | इसके कई स्वरूप होते हैं | यदि 4 मास के पहले गर्भ  गिर जाए तो उसे' गर्भ स्नाव' और 6 महीने भीतर हो तो 'गर्भपात' तथा यादी 7 से 9 महीने के भीतर गर्भ गिरे तो उसे आकाल- प्रसव कहते हैं 
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लक्षण तथा पूर्वाभास - गर्भपात के पूर्व सिहरावन, आलस्य कमजोरी, कमर में दर्द तथा जननेंद्रिय में भार का बोध होता है | गर्भस्राव से पूर्व अत्याधिक मात्रा में रक्तस्राव भी होता है गर्भपात होने के प्राय: निम्ननाकिंत कारण होते हैं- मानसिक उत्तेजना, इंद्रियां सेवन, अत्याधिक भोजन तथा अखाघ प्रदार्थो का खाना, उपदंश और अत्याधिक मात्रा में श्वेतप्रदर का स्नाव ऐसी अवस्था उत्पन्न होने पर- पूर्ण विश्राम और पेट पर ठंडी जल पट्टी का प्रयोग बार बार करने से गर्भ रुक सकता है | अन्य सावधानियों का पालन भी आवश्यक है, ताकि रोगिणी का पेट ठीक और साफ रहे और अत्यधिक थकान तथा उत्तेजना उत्पन्न ना हो | 
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प्रसव (Child Birth)-जननी के गर्भ शिशु के उत्पादन होने की प्रक्रिया को प्रसव की संज्ञा दी जाती है | यदि सुचारू रूप से माता का कष्ट बढ़ाएं बिना स्वस्थ शिशु का जन्म हो जाता है तो इसे उत्तव प्रसव कहते हैं | इसके विपरीत यदि इस प्रक्रिया में किसी प्रकार का व्याघात उपस्थित होता है तो वही कष्ट का प्रसव होता है | उत्तम प्रसव के लिए गर्भकाल में पूरी सावधानी बरतनी आवश्यक है | यह सावधानिया निम्नलिखित हैं- १. सहवास का पूर्णत परित्याग |  २.  स्वास्थ्यकर स्थान पर निवास |  ३.  हल्का श्रम |  ४. सवारी आदि का त्याग |  ५. ढीले-ढाले वस्त्रों के धारण कारण, तंग जूते ना पहनना और सिर के बालों को ढीला - ढाला रखना यानि कसकर जुड़ा ना बांधना |  ६.  आंतो और पेट को सदैव साफ़ रखना |  ७. हल्का, सुपाच्य तथा पुष्टिकर और सातिवक भोजन करना |  ८. मन में पवित्र और उत्तम विचार रखना और शांत रहना |  ९. नित्य घर्षणयुक्त सिज़ बाथ |  १०. सुखकारक प्रसव हेतु गीली मिटटी की पुल्टिश का प्रयोग |  उपरोक्त नियमों का पालन करने पर यह बात सुनिचिश्त है कि माता स्वस्थ् और सुंदर संतान को जन्म देकर सभी स्वयं भी स्वस्थ रहेगी | 
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प्रसव वेदना (Labour Pain)-शिशु को जन्म देते समय माता को अनिवार्यत: कुछ-न-कुछ कष्ट होता ही है | स्वस्थ स्त्रियां इस दर्द को आसानी से झेल लेती हैं और कोई कष्ट कर उत्सर्ग पैदा नहीं होता | इसके विपरीत अनियमित और आचरण वाली माताएं इसमें घोर यंत्रणा पाती हैं और प्राय: शिशु तथा माता दोनों का ही जीवन संकटपूर्ण और रोगी हो जाता है | 
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प्रसव के बाद-प्रसवोपरांत 'सौरी ग्रहण' का समय भी माता और शिशु के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण है प्राय: इस काल में माताएं वायु और प्रकाशाहीन कमरे में-चारपाई पर ही पड़ी रहती हैं | उनका भोजन आदि भी गरिष्ट होता है | इस प्रकार के कब्जियत या अन्य रोगों की शिकार हो जाती हैं इस समय आवश्यक है कि उन्हें साफ-सुथरे, हवादार कमरे में साफ-स्वच्छ बिछावन पर रखा जाए | नाल किसी चतुर एवं योग्य नर्स से ही कटवाया जाए, अन्यथा कभी-कभी वह स्थान विषाक्त हो जाता है और अनेक कष्ट पैदा हो जाते हैं | इस समय चलना-फिरना या अधिक अंग संचालन हानिकारक है | प्रसव के बाद प्रसूता को नींद आ जाती है | ऐसी अवस्था में उसे पूर्ण विश्राम करने देना चाहिए | नींद खुलने पर 50०-70फा० हा० ऊष्मा के जल से सिज़ बाथ काफी देर तक देना चाहिए | ऐसा कई दिनों तक करना चाहिए | प्रसव के बाद तलपेट पर पट्टी बांध दी जाती है | इससे पेट और जनन संस्थान के सभी अवयव अपने स्थान पर आ जाते हैं | 
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कुछ प्रसवोत्तर बीमारियां-यतो ऊपर बताए गए नियमों का पालन करने पर प्रसव के बाद कोई कष्ट उत्पन्न ही नहीं होता, किंतु प्रमादवश उनके विरुद्ध आचरण करने पर अनेक कष्ट कर उपसर्ग उपस्थित हो जाते हैं | उनमें से कुछ इस प्रकार हैं, जिनका उपचार पानी और मिट्टी की सहायता से तथा नियमित आहार-विहार द्वारा भली-भांति हो सकता है | इन व्याधियों में निम्नाकिंत बीमारियां मुख्य हैं- १. फूल देर से गिरना |  २. अत्यधिक रक्तस्नाव | ३. प्रसव के बाद ज्वर |  ४. दुग्ध स्नावाभाव |  ५. पेशाब बंद हो जाना |  ६. प्रसवोत्तर कोष्टबद्धता |  ७. दूध का ज्वर |  ८. अत्यधिक दुग्धस्नाव |  ९. स्तन प्रदा और १०. प्रसवोत्तर वेदना |  उपरोक्त व्याधियों की चिकित्सा यथा स्थान पहले बताए गए जल चिकित्सोपचार से कर लेनी चाहिए |  डॉ अतहर अज़ीज़ (योगाचार्य) OUR YOUTUBE CHANNEL LINK https://www.youtube.com/channel/UCQXYQKZwIhrsiDr1DbcoFF BUY YOGA MAT FROM HERE CLICK ONhttps://amzn.to/36pXqdlBUY POWER MAT FROM HERE CLICK ON 1.https://amzn.to/375ng6G 2. https://amzn.to/3627R7e Read the full article
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gethealthy18-blog · 5 years
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गर्भाशय फाइब्रॉएड (रसौली) के कारण, लक्षण, इलाज और घरेलू उपचार – Fibroids Symptoms, Treatment and Remedies in Hindi
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गर्भाशय फाइब्रॉएड (रसौली) के कारण, लक्षण, इलाज और घरेलू उपचार – Fibroids Symptoms, Treatment and Remedies in Hindi
Anuj Joshi January 22, 2019
महिलाओं में गर्भाशय से जुड़ी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। किसी को अनियमित पीरियड्स की शिकायत है, तो किसी को अत्यधिक रक्तस्राव हो रहा है। वहीं, कुछ महिलाएं ऐसी हैं, जो गर्भाशय फाइब्रॉएड (रसौली) से जूझ रही हैं। हालांकि, इसका उपचार आसान है, लेकिन अनदेखी करने पर बांझपन जैसे गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। हैरानी की बात तो यह है कि अधिकतर महिलाओं को फाइब्रॉएड के बारे में पता ही नहीं है। स्टाइक्रेज के इस लेख में हम इसी मुद्दे पर बात करेंगे। हम न सिर्फ फाइब्रॉएड का मतलब समझाएंगे, बल्कि इससे निपटने के लिए कुछ घरेलू उपचार भी आपके साथ शेयर करेंगे।
लेख के शुरुआत में हम यह जानते हैं कि गर्भाशय फाइब्रॉएड होता क्या है।
क्या है गर्भाशय फाइब्रॉएड (रसौली) – What is Fibroids in Hindi
यह गर्भाशय में मांसपेशियों व कोशिकाओं की एक या एक से ज्यादा गांठ होती हैं। आम भाषा में बात करें, तो यह गर्भाशय की दीवारों पर पनपने वाला एक प्रकार का ट्यूमर होता है। चिकित्सीय भाषा में इसे लियम्योमा या फिर म्योमा कहा जाता है। फाइब्रॉएड एक या एक से ज्यादा ट्यूमर के तौर पर विकसित होता है। ये ट्यूमर आकार में सेब के बीज से लेकर अंगूर जितने बड़े हो सकते हैं। असामान्य स्थिति में इनका आकार अंगूर से भी बड़ा हो सकता है। यहां एक बात और ध्यान में रखने वाली है कि ये ट्यूमर कभी कैंसर का कारण नहीं बनते हैं। यह जरूरी नहीं कि जिन महिलाओं को यह समस्या हैं, उन सभी में इसके लक्षण नजर आएं। वहीं, जिनमें यह लक्षण नजर आने लगते हैं, उन्हें तेज दर्द और अधिक रक्तस्राव का सामना करना पड़ता है और इन ट्यूमर के साथ जीना मुश्किल हो जाता है। यूट्रस फाइब्रॉएड (uterus fibroid) का इलाज पूरी तरह से महिला में नजर आ रहे लक्षणों पर निर्भर करता है (1) (2)।
आइए, अब जान लेते हैं कि किन-किन कारणों से महिलाओं को यह बीमारी होती है।
गर्भाशय फाइब्रॉएड (रसौली) के कारण – Causes of Fibroids in Hindi
फाइब्रॉएड होने के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन वैज्ञानिक तौर पर किसी एक कारण की निश्चित तौर पर पुष्टि नहीं की गई है। इनमें से प्रमुख कारणों के बारे में हम यहां बता रहे हैं (3)।
आयु : फाइब्रॉएड प्रजनन काल के दौरान विकसित होते हैं। खासतौर पर 30 की आयु से लेकर 40 की आयु के बीच या फिर रजनोवृत्ति शुरू होने तक इसके होने की आशंका सबसे ज्यादा होती है। माना जाता है कि रजनोवृत्ति शुरू होने के बाद ये कम होने लगते हैं।
आनुवंशिक : अगर परिवार में किसी महिला को यह समस्या रही है, तो आशंका है कि आगे की पीढ़ी में से किसी अन्य को इसका सामना करना पड़ सकता है। अगर आपकी मां को यह समस्या रही है, तो आपको यह होने का खतरा तीन गुना तक बड़ जाता है।
मोटापा : अगर किसी महिला का वजन अधिक है, तो उसमें फाइब्रॉएड होने की आशंका अन्य महिलाओं के मुकाबले तीन गुना तक ज्यादा होती है।
असंतुलित भोजन : अगर आप रेड मीट या फिर जंक फूड ज्यादा खाती हैं और हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन कम करती हैं, तो आप इस बीमारी की चपेट में आ सकती हैं।
हार्मोंस : शरीर में एस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रोन हार्मोंस की मात्रा अधिक होने पर भी गर्भाशय फाइब्रॉएड हो सकता है।
विटामिन-डी : शरीर में विटामिन-डी की कमी होने और आयरन की मात्रा बढ़ने पर भी आप यूट्रस फाइब्रॉएड (uterus fibroid) की चपेट में आ सकती हैं।
लेख के इस भाग में हम फाइब्रॉएड के लक्ष���ों को पहचानने का प्रयास करेंगे।
गर्भाशय फाइब्रॉएड के लक्षण – Symptoms of Fibroids in Hindi
वैसे तो इसके लक्षण नजर नहीं आते हैं, लेकिन फाइब्रॉएड से ग्रस्त कुछ महिलाओं में इस तरह के परिवर्तन दिखाई दे सकते हैं (4):
अत्यधिक रक्तस्राव और पीरियड्स के दौरान अहसनीय दर्द होना।
एनीमिया यानी शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की कमी आना।
पेट के निचले हिस्से यानी पेल्विक एरिया में भारीपन महसूस होना।
पेट के निचले हिस्से का फूलना।
बार-बार पेशाब आने का अहसास होना।
यौन संबंध बनाते समय दर्द होना।
कमर के निचले हिस्से में दर्द होना।
प्रजनन क्षमता में कमी यानी बांझपन, बार-बार गर्भपात होना, गर्भावस्था के दौरान सी-सेक्शन का खतरा छह गुना तक बढ़ना।
आइए, अब बात करते हैं कि फाइब्रॉएड कितने प्रकार का हो सकता है।
गर्भाशय फाइब्रॉएड के प्रकार – Types of Fibroids in Hindi
गर्भाशय में फाइब्रॉएड कहां हैं, उसके आधार पर इनका वर्गीकरण किया जाता है। उनके बारे में हम यहां विस्तार से बता रहे हैं (5)।
सबम्यूकोसल फाइब्रॉएड : यह गर्भाशय में मांसपेशियों की परत के बीच विकसित होते हैं। इसके कारण मासिक धर्म के दौरान दर्द के साथ अत्यधिक मात्रा में रक्तस्राव होता है। साथ ही गर्भधारण करने में भी परेशानी हो सकती है।
इंट्राम्युरल फाइब्रॉएड : यह गर्भाशय की दीवार पर पनपने वाला आम फाइब्रॉएड होता है। इसके कारण गर्भाशय फूल जाता है और बड़ा नजर आने लगता है। साथ ही दर्द व रक्तस्राव होता है और गर्भधारण करना मुश्किल हो जाता है।
सबसेरोसल फाइब्रॉएड : यह गर्भाशय के बाहरी दीवार पर विकसित होता है। यह आंत, रीढ़ की हड्डी और ब्लैडर पर दबाव डालता है। इसके कारण श्रोणी में तेज दर्द होता है।
सर्वाइकल फाइब्रॉएड : यह मुख्य तौर पर गर्भाशय की गर्दन पर पनपता है।
इंट्रालिगमेंटस फाइब्रॉएड : यह गर्भाशय के साथ जुड़े टिश्यू में विकसित होते हैं। इससे मासिक धर्म अनियमित हो जाते हैं।
लेख के इस अहम भाग में हम फाइब्रॉएड के घरेलू उपचारों के बारे में बात करेंगे।
गर्भाशय फाइब्रॉएड (रसौली) के घरेलू उपचार – Home Remedies for Fibroids in Hindi
1. लहसुन
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सामग्री :
लहसुन की तीन से पांच कलियां
एक गिलास दूध
प्रयोग की विधि :
इन कलियों को खाली पेट खाएं।
अगर लहसुन का स्वाद और गंध तेज है, तो उसे खाने के बाद एक गिलास दूध पी सकते हैं।
कब-कब करें सेवन
प्रतिदिन सेवन कर सकते हैं।
कैसे है फायदेमंद :
हम खाने का स्वाद बढ़ाने के लिए लहसुन को अपने भोजन में शामिल करते हैं। साथ ही यह गर्भाशय फाइब्रॉएड का इलाज करने में भी सक्षम है। इसमें प्राकृतिक रूप से एंटीऑक्सीडेंट और एंटीइंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं, जो गर्भाशय में ट्यूमर को विकसित होने से रोकते हैं (6)। इससे यूट्रस फाइब्रॉएड (uterus fibroid) से आराम मिलता है। साथ ही यह पाचन तंत्र को भी बेहतर करता है।
2. सेब का सिरका
सामग्री :
दो चम्मच सेब का सिरका
एक कप पानी
प्रयोग की विधि :
सेब के सिरके को हल्के गुनगुन पानी में अच्छी तरह मिलाएं पिएं।
कब-कब करें सेवन
इस घरेलू उपाय का उपयोग प्रतिदिन किया जा सकता है।
कैसे है फायदेमंद :
गर्भाशय फाइब्रॉएड यानी रसौली के इलाज में सेब के सिरके को घरेलू उपचार के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके ��ेवन से शरीर में जमा हो चुके विषैले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। साथ ही वजन कम करने में मदद मिलती है (7)। हम इस लेख के शुरुआत में बता चुके हैं कि अधिक वजन के कारण भी महिलाओं को फाइब्रॉएड हो सकता है। हालांकि, अभी तक इस तथ्य की वैज्ञानिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन व्यक्तिगत तौर पर लोगों का मानना है कि सेब के सिरके का सेवन करने से फाइब्रॉएड ट्यूमर के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
3. हल्दी
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प्रक्रिया नंबर-1
सामग्री :
एक से तीन ग्राम या फिर ½ इंच हल्दी की जड़
एक गिलास जूस
प्रयोग की विधि :
हल्दी की जड़ को या तो काट लें या फिर पीस लें।
अब इसे एक गिलास जूस में डालकर पी जाएं।
आप 30 एमल हल्दी पाउडर को दिन में तीन बार ऐसे भी सेवन कर सकते हैं।
आप स्वाद के लिए इसमें चुटकी भर काली मिर्च भी मिला सकते हैं।
इसके अलावा, आप इसे अपने खाने में भी मिला सकते हैं। अगर आप अपने खाने में मिलाते हैं, तो दिनभर में एक चम्मच हल्दी पर्याप्त है।
प्रक्रिया नंबर-2
सामग्री :
दो चम्मच हल्दी पाउडर
एक लीटर पानी
प्रयोग की विधि :
पानी में हल्दी को मिलाएं और करीब 15 मिनट तक उबालें।
इसके बाद पानी को ठंडा होने दें और फिर पी लें।
कब-कब करें सेवन
इस मिश्रण को रोज दो बार पिएं।
कैसे है फायदेमंद :
यह साबित हो चुका है कि हल्दी में एंटीऑक्सीडेंट और एंटीइंफ्लेमेटरी गुण होते हैं। साथ ही हल्दी कैंसर व फाइब्रॉएड जैसी बीमारियों को ठीक करने में सक्षम है। हल्दी के सेवन से गर्भाशय के अंदर व बाहर कोमल मांसपेशियों के सेल विकसित होते हैं, जिससे प्रजनन क्षमता बेहतर हो सकती है। इसके अलावा, हल्दी एंटीइंफ्लेमेटरी का प्रमुख स्रोत होने के कारण गर्भाशय में पनपने वाली सूजन व ट्यूमर को जड़ से खत्म कर सकती है (6)।
4. आंवला
सामग्री :
एक चम��मच आंवला पाउडर
एक चम्मच शहद
प्रयोग की विधि :
आंवला पाउडर और शहद को मिलाकर रोज सुबह खाली पेट सेवन करें।
कब-कब करें सेवन
अच्छे परिणाम के लिए करीब एक माह तक नियमित रूप से खाएं।
कैसे है फायदेमंद :
आयुर्वेद में आंवले का प्रयोग औषधि के रूप में वर्षों से किया जा रहा है। वैज्ञानिक शोध में भी इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि आंवले में एंटीऑक्सीडेंट, एंटीइंफ्लेमेटरी और एंटीबैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं। फाइब्रॉएड में खून की कमी हो जाती है, जबकि आंवले के सेवन से लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में वृद्धि होती है (8)। इस लिहाज से रसौली के इलाज के लिए आंवला बेहतरीन घरेलू उपचार है।
5. ग्रीन टी
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सामग्री :
एक ग्रीन टी बैग
एक कप पानी
प्रयोग की विधि :
पानी को गर्म कर लें और फिर उसमें ग्रीन टी बैग को डाल दें।
फिर इसे चाय की तरह पिएं।
कब-कब करें सेवन
आप दिन में करीब दो बार पी सकते हैं।
कैसे है फायदेमंद :
ग्रीन टी में एपिगलोकेटेशिन गलेट नामक पॉलिफेनोल एजेंट पाया जाता है, जो फाइब्रॉएड पर कारगर तरीके से काम करता है। मुख्य रूप से पॉलिफेनोल हरी पत्तेदार सब्जियों और फलों में पाया जाता है। लैब में किए गए परीक्षण से साबित हुआ है कि गर्भाशय फाइब्रॉएड सेल को जड़ से खत्म करने में ग्रीन टी सक्षम है (9)। साथ ही यह एस्ट्रोजन के स्तर को भी कम करने में सक्षम है। इस लिहाज से रसौली के इलाज में इस घरेलू उपचार का प्रयोग किया जा सकता है।
6. दूध
सामग्री :
एक गिलास दूध
एक चम्मच धनिया पाउडर
एक चम्मच हल्दी पाउडर
एक चम्मच त्रिफला पाउडर
प्रयोग की विधि :
सबसे पहले दूध को गर्म कर लें।
अब इसमें अन्य सामग्रियों को डालकर अच्छी तरह मिला लें।
फिर इस दूध का सेवन करें।
कब-कब करें सेवन
दिन में कम से कम दो बार एक गिलास दूध पिएं।
कैसे है फायदेमंद :
अगर आप चाहते हैं कि फाइब्रॉएड की समस्या जल्द दूर हो जाए, तो आज ही अपनी डाइट में योगर्ट व दूध जैसे डेयरी प्रोडक्ट को शामिल करें। डेयरी प्रोडक्ट कैल्शियम, फास्फोरस और मैग्नीशियम से भरपूर होते हैं। ये सभी मिनरल्स फाइब्रॉएड के ट्यूमर को बढ़ने से रोकते हैं। साथ ही इनमें विटामिन-डी भी होता है, फाइब्रॉएड में इसका सेवन करने से फायदा होता है (10)। रसौली उपचार के तौर पर डेयरी उत्पाद अच्छे विकल्प हैं।
7. सिंहपर्णी की जड़ें
प्रक्रिया नंबर-1
सामग्री :
एक गिलास पानी
एक चम्मच सिंहपर्णी की जड़ का पाउडर
प्रयोग की विधि :
पानी में सिंहपर्णी की जड़ का पाउडर मिलाएं और करीब 15 मिनट तक उबालें।
इसके बाद पानी को छान लें और हल्का गुनगुना होने दें।
इसके बाद आप इस पानी को पी जाएं।
कब-कब करें सेवन
यह पानी आप करीब तीन महीने तक रोजाना दो बार पी सकते हैं।
प्रक्रिया नंबर-2
सामग्री :
एक लीटर पानी
थोड़ी-सी सिंहपर्णी की जड़
प्रयोग की विधि :
सिंहपर्णी की जड़ को पानी में डाल दें और बर्तन को करीब 12 घंटे के लिए बंद कर दें।
इससे जड़ में मौजूद सभी पोषक तत्व व मिनरल्स पानी के साथ मिक्स हो जाएंगे।
अब इस पानी को छानकर एक बोतल में भर लें और थोड़ा-थोड़ा करके दिनभर पिएं।
कैसे है फायदेमंद :
जैसा कि आप जानते हैं कि लिवर के ठीक तरह से काम न करने पर एस्ट्रोजन हार्मोन का स्तर अधिक होने पर फाइब्रॉएड की समस्या होती है। ऐसे में सिंहपर्णी की जड़ से बने पाउडर का सेवन करने से लिवर में जमा विषैले जीवाणु बाहर निकल जाते हैं। साथ ही एस्ट्रोजन का स्तर सामान्य होता है। सिंहपर्णी की जड़ में अधिक मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं (11) (12), जो यूट्रस फाइब्रॉएड (uterus fibroid) से लड़ने में मदद करते हैं।
8. साल्मन मछली
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प्रयोग की विधि :
हफ्ते में एक या दो बार साल्मन मछली को अपने भोजन में शामिल किया जा सकता है।
कैसे है फायदेमंद :
साल्मन मछली को ओमेगा-3 फैटी एसिड और विटामिन-डी का अच्छा स्रोत माना गया है। साथ ही साल्मन मछली में फिश ऑयल भी होता है, जिसकी मदद से शरीर में प्रोस्टाग्लैंडीन ई3 (PGE3) का निर्माण होता है। यह यौगिक एंटीइंफ्लेमेटरी की तरह काम करता है, जो फाइब्रॉएड से होने वाले दर्द को कम करने में सक्षम है। साथ ही साल्मन मछली शरीर में एस्ट्रोजन के स्तर को नियंत्रित करती है (13) (14)।
9. सिट्रस फल
सामग्री :
दो चम्मच नींबू का रस
एक चम्मच बेकिंग सोडा
एक गिलास पानी
प्रयोग की विधि :
नींबू के रस और बेकिंग सोडे को पानी में मिक्स कर लें और पिएं।
कब-कब करें सेवन
आप रोज सुबह खाली पेट इसका सेवन कर सकते हैं।
कैसे है फायदेमंद :
सिट्रस फलों में विटामिन-सी और एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है। फाइब्रॉएड के इलाज के लिए विटामिन-सी बेहद जरूरी है। इन फलों में विटामिन-सी होने के कारण यह फाइब्रॉएड के ट्यूमर को बढ़ने से रोकता है। साथ ये फल रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए बे��तर माने जाते हैं। नींबू, संतरे, मौसमी, स्ट्रॉबेरी, किवी व अंगूर में अधिक मात्रा में विटामिन-सी पाया जाता है (15) (16)।
10. बादाम
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सामग्री :
पांच-दस बादाम
प्रयोग की विधि :
बादाम को रातभर पानी में भिगोकर रखें।
अगली सुबह छिलके उताकर बादाम को खाएं।
कब-कब करें सेवन
आप प्रतिदिन इसका सेवन करें।
कैसे है फायदेमंद :
बादाम में ओमेगा 3 फैटी एसिड, मिनरल्स, मोनोसैचुरेटेड फैट और एडिपोनेक्टिन नामक तत्व पाए जाते हैं। इसके सेवन से इंसुलिन व एंड्रोजन हार्मोंस के स्तर में सुधार होता है। जैसा कि आप जानते हैं कि फाइब्रॉएड की समस्या हार्मोंस के असंतुलित होने पर होती है, इसलिए बादाम का सेवन करना अच्छा विकल्प है। इसके अलावा, बादाम गर्भाशय की लाइनिंग को ठीक करता है और फाइब्रॉएड के ट्यूमर ज्यादातर इसी जगह पनपते हैं (17)।
11. बरडॉक रूट
सामग्री :
आधा चम्मच सूखी बरडॉक रूट
एक कप पानी
प्रयोग की विधि :
पानी को अच्छी तरह से उबाल लें।
इसके बाद बरडॉक रूट को उसमें डाल दें।
करीब 15 मिनट बाद पानी को छान लें और पिएं।
कब-कब करें सेवन
बेहतर परिणाम के लिए करीब एक महीने तक हर रोज एक कप बरडॉक रूट की चाय पिएं।
कैसे है फायदेमंद :
बरडॉक रूट एक प्रकार की सब्जी है, जो एशिया और यूरोप में अधिक मात्रा में पाई जाती है। इसके सेवन से लिवर की कार्यक्षमता बेहतर होती है, ताकि एस्ट्रोजन हार्मोन के स्तर को नियंत्रित कर फाइब्रॉएड के प्रभाव को कम किया जा सके। साथ ही इसमें मूत्रवर्धक गुण भी होता है, जिस कारण शरीर से विषैले जीवाणु बाहर निकल जाते हैं और सूजन से राहत मिलती है। इसके अलावा, बरडॉक रूट में एंटइंफ्लेमेटरी गुण भी होता है, जो फाइब्रॉएड ट्यूमर के आकार को कम करता है (18) (19)।
12. अदरक
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सामग्री :
थोड़ा-सा अदरक
एक कप पानी
प्रयोग की विधि :
अदरक के टुकड़े करके पानी में डाल दें और कुछ देर के लिए उबालें।
फिर इसे छान कर पिएं।
कब-कब करें सेवन
कुछ दिन तक लगातार प्रतिदिन एक से दो कप पी सकते हैं।
कैसे है फायदेमंद :
अदरक ऐसी गुणकारी आयुर्वेदिक औषधि है, जिसका उपयोग वर्षों से किया जा रहा है। अदरक के सेवन से शरीर में रक्त का संचार अच्छी तरह होता है, जिससे फाइब्रॉएड का प्रभाव कम होता है। अदरक में एंटीऑक्सीडेंट और एंटीइंफ्लेमेटरी गुण भी होते हैं। यह फाइब्रॉएड ट्यूमर का आकार छोटा करने और सूजन से राहत दिलाने में कारगर घरेलू उपाय है (20) (21)।
13. ब्रोकली
प्रयोग की विधि :
ब्रोकली को सलाद के साथ, फ्राई करके, करी या फिर सूप में डालकर सेवन किया जा सकता है।
कब-कब करें सेवन
प्रतिदिन की डाइट में इसे शामिल कर सकते हैं।
कैसे है फायदेमंद :
यह एक प्रकार की फूलगोभी होती है, जो फाइबर से भरपूर होती है, लेकिन कैलोरी नाममात्र की होती है। इसके सेवन से पाचन तंत्र बेहतर होता है और एस्ट्रोजन हार्मोन के स्तर में सुधार आता है। साथ ही इसमें कुछ खास एंजाइम होते हैं, जो ट्यूमर को बढ़ने से रोकते हैं (22) (23)।
14. अरंडी का तेल
सामग्री :
कोई भी सूती कपड़ा
थोड़ा-सा अरंडी का तेल
एक प्लास्टिक का कवर
हॉट बोतल
प्रयोग की विधि :
कपड़े को अरंडी के तेल में भिगो दें और फिर कपड़े को पेट पर रख दें।
इसके बाद प्लास्टिक का कवर उस पर रख दें।
फिर हॉट बोतल को उस पर रखकर थोड़ी देर के लिए गर्म सेक लें।
कब-कब करें सेवन
इस प्रक्रिया को करीब एक माह तक हफ्ते में तीन-चार बार करें।
कैसे है फायदेमंद :
फाइब्रॉएड के घरेलू उपचार के तौर पर अरंडी के तेल का प्रयोग किया जा सकता है। यह शरीर में रक्त संचार में वृद्धि करने के साथ-साथ बीमारी से जल्द उबरने के लिए लिम्फेटिक सिस्टम को बेहतर करता है। अरंडी के तेल में रिसिनोलिक एसिड पाया जाता है, जो फाइब्रॉएड के ट्यूमर को छोटा कर सुखाने में मदद करता है (24)।
15. कच्ची सब्जियां
प्रयोग की विधि :
प्रतिदिन के खान-पान में हरी व कच्ची सब्जियों को शामिल करें।
आप इन सब्जियों को मिलाकर सलाद बनाकर भी खा सकते हैं।
कैसे है फायदेमंद :
हरी पत्तेदार सब्जियों में अत्यधिक मात्रा में फाइबर और एंटीइंफ्लेमेटरी गुण होता है। साथ ही इन सब्जियों में विटामिन-ई की मात्रा भी पाई जाती है, जो रक्त में घुलकर अत्यधिक रक्तस्राव को रोकता है। सब्जियां का सेवन करने से लिवर में मौजूद विषैले जीवाणु निकल जाते हैं। साथ ही एस्ट्रोजन हार्मोन का स्तर संतुलित होता है। शोध में इस बात की पुष्टि हुई है कि ब्रोकली, गोभी और टमाटर के सेवन से गर्भाशय फाइब्रॉएड से राहत मिलती है (25)।
घरेलू उपचार के बाद अब हम जान लेते हैं कि फाइब्रॉएड के इलाज कितने प्रकार के हैं।
गर्भाशय फाइब्रॉएड (रसौली) का इलाज – Other Treatment Process for Fibroids in Hindi
गर्भाशय फाइब्रॉएड का इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि आपमें इस बीमारी के लक्षण किस प्रकार के नजर आ रहे हैं। अगर आपको फाइब्रॉइड है, लेकिन कोई लक्षण नजर नहीं आ रहे हैं, तो इलाज की जरूरत नहीं होती। फिर भी डॉक्टर से नियमित रूप से जांच करवाते रहें। वहीं, अगर आप रजोनवृत्ति के पास हैं, तो आपके फाइब्रॉएड सिकुड़ने लगते हैं। इसके अलावा, अगर आपमें फाइब्रॉएड के लक्षण नजर आते हैं, तो उनका इलाज बीमारी की स्थिति के अनुसार किया जाता है। इन इलाज के बारे में हम यहां विस्तार से बता रहे हैं (26)।
इलाज से पहले डॉक्टर निम्नलिखित बातों पर गौर करते हैं :
आपकी उम्र
आपका स्वास्थ्य
आपके लक्षण कितने गंभीर हैं
फाइब्रॉएड किस जगह पर हैं
उनका प्रकार और साइज क्या है
क्या आप गर्भवती हैं या फिर होने की योजना बना रही हैं
फाइब्रॉएड के इलाज को तीन वर्गों में बांटा गया है, जिनका वर्णन हम आगे कर रहे हैं।
दवा आधारित इलाज
लक्षणों के अनुसार डॉक्टर आपको कुछ दवाएं दे सकते हैं, जो फाइब्रॉएड के प्रभाव को कम करने का काम करेंगी। ये दवाएं इस प्रकार हैं :
दर्द निवारक दवा : हल्का या कभी-कभी होने वाले दर्द में ओवर-द-काउंटर या फिर कोई अन्य दवा दी जा सकती है।
गर्भनिरोधक गोलियां : इन दवाइयों के सेवन से अत्यधिक रक्तस्राव और दर्दनाक मासिक धर्म से राहत मिलती है, लेकिन कभी-कभी ये दवाइयां लेने से फाइब्रॉएड की समस्या और बढ़ सकती है।
प्रोजेस्टिन-रिलीजिंग इंट्रायूटरिन डिवाइस (IUD) : हालांकि, इस दवा को लेने से अत्यधिक रक्तस्राव और दर्द से राहत मिल सकती है, लेकिन फाइब्रॉएड का इलाज करने में सक्षम नहीं है। जिन महिलाओं के फाइब्रॉएड का आकार बड़ा है, उन्हें यह दवा नहीं दी जाती है।
गोनाडोट्रोपिन-रिलीजिंग हार्मोन एगोनिस्ट (GnRHa) : रसौली उपचार के तौर पर यह दवा लेने से शरीर में वो हार्मोंस बनने बंद हो जाते हैं, जो ओवलेशन और पीरियड्स का कारण बनते हैं। साथ ही यह दवा फाइब्रॉएड के आकार को भी छोटा करने में सक्षम है। हालांकि, यह दवा लाभकारी है, लेकिन इसके कुछ नुकसान भी हैं। इसे लेने से रजोनवृत्ति होने जैसा आभास हो सकता है और हड्डियां कमजोर हो सकती हैं। इसलिए, डॉक्टर सर्जरी से पहले फाइब्रॉएड का आकार छोटा करने के लिए या फिर एनीमिया का इलाज करने के लिए यह दवा देते हैं।
एंटीहार्मोनल एजेंट या हार्मोन मॉड्यूलेटर : इस दवा में यूलिप्रिस्टल एसीटेट, मिफेप्रिस्टोन और लेट्रोजोले शामिल होते हैं, जो फाइब्रॉएड को विकसित होने से रोक सकते हैं या उनकी गति को धीमा कर सकते हैं। साथ ही रक्तस्राव को भी कम कर सकते हैं।
नोट : ध्यान रहे कि ये दवाएं फाइब्रॉएड से अस्थाई तौर पर ही राहत दिला सकती हैं। जैसे ही दवाओं को लेना बंद किया, फाइब्रॉएड फिर से हो सकता है। साथ ही इन दवाओं के साइड इफेक्ट्स भी हो सकते हैं, जो कभी-कभी गंभीर रूप ले सकते हैं।
सर्जरी
जब लक्षण बेहद गंभीर हों, तो डॉक्टर सर्जरी करने का निर्णय लेते हैं। यहां हम कुछ प्रमुख सर्जरी की प्रक्रियाओं के बारे में बता रहे हैं। गौर करने वाली बात यह है कि इनमें से कुछ सर्जरी के बाद महिला के गर्भवती होने की संभावना न के बराबर हो जाती है। इसलिए, सर्जरी कराने से पहले एक बार डॉक्टर से इस विषय में विस्तार से बात कर लें।
एब्डोमिनल हिस्टेरेक्टोमी : डॉक्टर पेट में कट लगाकर गर्भाशय को बाहर निकाल कर फाइब्रॉएड को हटाते हैं। यह प्रक्रिया उसी प्रकार होती है, जैसे सिजेरियन डिलीवरी के दौरान होती है। इस तरह की सर्जरी में मरीज को लंबे समय तक अस्पताल में रखा जाता है और ठीक होने में लंबा समय लगता है। अगर डॉक्टर अंडाशय या फिर फैलोपियन ट्यूब को निकाल देते हैं, तो महिला में कामेच्छा की कमी हो सकती है या फिर समय से पूर्व रजोनिवृत्ति हो सकती है।
वजाइनल हिस्टेरेक्टोमी : डॉक्टर पेट में कट लगाने की जगह योनी के रास्ते गर्भाशय को बाहर निकालते हैं और फाइब्रॉएड को हटाते हैं। यह सर्जरी एब्डोमिनल हिस्टेरेक्टोमी के मुकाबले कम जोखिम भरी है और इसमें मरीज को ठीक होने में समय भी कम लगता है। अगर फाइब्रॉएड का आकार बड़ा है, तो डॉक्टर इस सर्जरी को नहीं करने का निर्णय लेते हैं।
लेप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टोमी : वजाइनल हिस्टेरेक्टोपी की तरह यह सर्जरी भी कम जोखिम भरी है और इसमें मरीज को रिकवर होने में कम समय लगता है। यह सर्जरी सिर्फ कुछ मामलों में ही प्रयोग की जाती है।
रोबोटिक हिस्टेरेक्टोमी : इन दिनों यह सर्जरी तेजी से प्रचलित हो रही है। इसमें डॉक्टर एक रोबोटिक आर्म के जरिए सर्जरी करते हैं। अन्य सर्जरी के मुकाबले इसमें पेट और गर्भाशय में छोटा-सा कट लगाया जाता है। इसलिए, मरीज तीन से चार हफ्ते में ठीक हो जाता है।
मायोमेक्टोमी : इस सर्जरी में गर्भाशय की दीवार से फाइब्रॉएड को हटाया जाता है। अगर आप भविष्य में गर्भवती होने की सोच रही हैं, तो डॉक्टर सर्जरी के लिए इस विकल्प को चुन सकते हैं, लेकिन ध्यान रहे कि यह सर्जरी हर प्रकार के फाइब्रॉएड के लिए उपयुक्त नहीं है। डॉक्टर आपकी स्थिति के अनुसार इसे करने या न करने का निर्णय लेते हैं।
हिस्टेरेक्टोमी रिसेक्शन ऑफ फाइब्रॉएड : इसमें फाइब्रॉएड को हटाने के लिए पतली दूरबीन (हिस्टेरोस्कोपी) और छोटे सर्जिकल उपकरणों का प्रयोग किया जाता है। इसके जरिए गर्भाशय के अंदर पनपन रहे फाइब्रॉएड को निकाला जाता है। जो महिलाएं भविष्य में गर्भवती होना चाहती हैं, उनके लिए यह सर्जरी सबसे उपयुक्त है। इसमें दूरबीन को योनी के जरिए गर्भाशय तक ले जाया जाता है, इसलिए इसमें किसी भी प्रकार का चीरा और टांके नहीं लगते और आप उसी दिन वापस घर जा सकते हैं।
हिस्टेरेक्टोमी मोरसेलेशन ऑफ फाइब्रॉएड : यह आधुनिक तकनीक है, जिसमें हिस्टेरोस्कोपी को ग्रीवा के रास्ते गर्भाशय के अंदर तक ले जाया जाता है और फाइब्रॉएड टिशू को काटकर बाहर निकाला जाता है। यह नई तकनीक है और इसकी उपयोगिता व कार्यक्षमता पर विस्तार से अध्यान होना बाकी है (27)।
अन्य प्रक्रियाएं
गर्भाशय फाइब्रॉएड को दवाओं व सर्जरी के अलावा अन्य प्रक्रियाओं से भी ठीक किया जा सकता है। ये प्रक्रियाएं इस प्रकार हो सकती हैं :
यूटरिन आर्टरी एम्बोलिजेशन (UAE) : हिस्टेरेक्टोमी व मायोमेक्टोमी की जगह विकल्प की तौर पर इसे चुना जा सकता है। जिन महिलाओं का फाइब्रॉएड आकार में बड़ा है, उनके इलाज के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता है। एक छोटी-सी ट्यूब (कैथेटर) को टांगों की रक्त वाहिकाओं के जरिए श��ीर में प्रविष्ट किया जाता है और फिर एक तरल पदार्थ को अंदर डाला जाता है। इस तरल पदार्थ की मदद से फाइब्रॉएड को सिकोड़ा जाता है। इस पूरी प्रक्रिया को एक्स-रे मशीन से नियंत्रित किया जाता है। इस उपचार के बाद गर्भधारण करना संभव है (28)।
एंडोमेट्रियल एब्लेशन : जिस महिला में फाइब्रॉएड का आकार छोटा होता है, उसके लिए यह प्रक्रिया अपनाई जाती है। इसमें गर्भाशय की परतों को हटाया जाता है। इसका प्रयोग अत्यधिक रक्तस्राव को कम करने के लिए भी किया जा सकता है (29)।
एमआरआई : एमआरआई स्कैन करके पता लगाया जाता है कि फाइब्रॉएड कहां है। फिर त्वचा के जरिए सुई को शरीर के अंदर डाला जाता है और इसी सुई के माध्यम से फाइबर-ऑप्टिकल-केबल डाली जाती है। इस केबल के जरिए लेजर कि��ण फाइब्रॉएड तक पहुंचती है ��र उसे सिकोड़ देती है (30)।
गर्भाशय फाइब्रॉएड के लिए कुछ और टिप्स – Other Tips for Fibroids in Hindi
बेशक, फाइब्रॉएड की समस्या गंभीर होने पर अच्छे डॉक्टर से इलाज करवाना बेहतर है, लेकिन इसी के साथ अपनी डाइट और जीवनशैली में बदलाव करना भी जरूरी है। यहां हम बता रहे हैं कि गर्भाशय में रसौली होने पर किन-किन बातों का ध्यान रखें।
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क्या करें
फल व सब्जियां खाएं : कई शोधों में इस बात की पुष्टि की गई है कि सेब, ब्रोकली व टमाटर जैसे ताजे फल व सब्जियां खाने से फाइब्रॉएड के खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है। साथ ही पौष्टिक अनाज के सेवन से इसके लक्षणों में कमी आ सकती है।
रक्तचाप पर रखें नजर : अगर आपका रक्तचाप असंतुलित है, तो गर्भाशय की रसौली आपको तंग कर सकती है। इसलिए, अपने डॉक्टर से परामर्श लें कि रक्तचाप को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है।
तनाव से मुक्ति : कई समस्याओं की जड़ तनाव होता है। इसलिए, जितना हो सके इससे दूर रहें। खुद को शांत रखें। इसके लिए आप योग कर सकते हैं या फिर मसाज करवा सकते हैं।
एक्यूपंक्चर : अगर आपको अधिक दर्द हो रहा है, तो आप एक्यूपंक्चर थेरेपी की मदद ले सकती हैं।
डॉक्टर की सलाह : इस बीमारी में कोई भी दवा लेने से पहले एक बार डॉक्टर से जरूर पूछ लें।
नियमित व्यायाम : प्रतिदिन व्यायाम करना भी जरूरी है। व्यायाम करने से प्राकृतिक रूप से विषैले जीवाणु शरीर से बाहर निकल जाते हैं।
पानी पिएं : फाइब्रॉएड के मरीज को अत्यधिक तरल पदार्थ लेना चाहिए। पानी के साथ आप दिनभर में जूस, सूप या फिर अन्य तरल पदार्थ ले सकते हैं। इससे शरीर में जमा विषैले जीवाणु मूत्र के जरिए बाहर निकल जाते हैं।
क्या न करें
धूम्रपान व शराब से दूरी : धूम्रपान व शराब के सेवन से लिवर पर असर पड़ता है, जिस कारण शरीर में एस्ट्रोजन का स्तर बढ़ने लगता है। यह स्थिति फाइब्रॉएड के लिए ठीक नहीं है।
कैफीन की मात्रा कम : चाय व कॉफी के सेवन से शरीर में हार्मोंस का स्तर असंतुलित हो जाता है। साथ ही शरीर जरूरी पोषक तत्वों को ग्रहण करने में सक्षम नहीं रहता। परिणामस्वरूप फाइब्रॉएड की समस्या बढ़ जाती है।
कैफीन की मात्रा कम : अगर आप नियमित रूप से व्यायाम नहीं करेंगे, तो रसौली के ठीक होने की संभावना कम हो जाएगी। स्वस्थ रहने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करना जरूरी है।
प्रोसेस्ड फूट न खाएं : इस तरह के खाद्य पदार्थों में कई प्रकार के हानिकारक तत्व और केमिकल रंग मिले होते हैं, जो हार्मोंस के स्तर को असंतुलित करते हैं और फाइब्रॉएड की समस्या बढ़ने लगती है।
यह तो स्पष्ट हो चुका है कि फाइब्रॉएड कोई गंभीर समस्या नहीं है, लेकिन अगर समय रहते इसका इलाज न किया जाए, तो कई दिक्कतें हो सकती हैं। अगर आपको या आपकी जानकारी में किसी को गर्भाशय में रसौली है, तो यह लेख आपके काफी काम आ सकता है। ध्यान रहे कि इस लेख में बताए गए घरेलू उपचारों तभी उपयोगी साबित होंगे, जब आप अपने खान-पान और दिनचर्या को संतुलित रखेंगे। अगर इस विषय के संबंध में आप कुछ और पूछना चाहते हैं, तो नीचे दिए कमेंट बॉक्स में अपने प्रश्न हमारे साथ शेयर कर सकते हैं।
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Anuj Joshi
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Source: https://www.stylecraze.com/hindi/garbhashay-fibroid-ke-lakshan-ilaj-gharelu-upchar/
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