पानीपत | सेक्टर-12 स्थित एसडी विद्या मंदिर स्कूल में होली पर्व मनाया गया। नन्हें-नन्हें विद्यार्थी रंग-बिरंगी पोशाकें पहन कर विद्यालय आए। विद्यार्थियों के लिए विशेष रूप से नृत्य गायन व कई प्रकार के रंगारंग कार्यक्रम हुए। बच्चों ने पेंटिंग व थ्रेड पेंटिंग की। रंग-बिरंगे फूलों के साथ होली खेली। इसके साथ साथ शिक्षकों द्वारा होलिका दहन की कहानी सुनाई गई व होली के महत्व के विषय में बच्चों को संपूर्ण…
रंगों का त्योहार होली छातापुर प्रखण्ड मुख्यालय समेत ग्रामीण क्षेत्रों में परंपरागत तरीके से हर्षोल्लास के साथ बुधवार को मनाया गया। छातापुर प्रखंड मुख्यालय से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में होली खेले रघुवीरा अवध में होली खेलें रघुवीरा, रंग बरसै चुनरवाली रंग बरसै, होली के दिन दिल मिल जाते हैं, रंगों में रंग खिल जाते हैं आदि गीतों की धुन पर मुख्यालय बाजार समेत अन्य स्थानों पर टोली में शामिल युवा थिरकते नजर आए।
छातापुर में कई स्थानों पर होलेया टीम द्वारा होली के रंग गुलाल खेलने समेत होली गीत की प्रस्तुति दी गई। छातापुर सदर पंचायत में होलिका दहन के साथ ही होली गीतों की धूम रही। जो कि मंगलवार की रात मनाई गई। जबकि अगले दिन बुधवार को सुबह में ही लोग होलिका दहन स्थलों पर होली गीत गाते हुए पहुंचे और विधि विधान से होलिका की धूल उड़ाई और मौके पर वाद्ययंत्रों के साथ होली गीत के कार्यक्रम हुए। इसके साथ शुरू होली गीतों का कार्यक्रम दोपहर तक चलता रहा।
रंग का दौर थमने के बाद लोगों का एक दूसरे घरों आकर गले मिलने तथा बड़ों को प्रणाम करने का सिलसिला शुरू हुआ। जो देर शाम तक चलता रहा। घरों में होली का मुख्य पकवान पुआ के साथ दही बाड़े, पूड़ी, सब्जी, खीर तथा तरह-तरह के व्यंजन पकाए गए। इन्हीं व्यंजनों से आगंतुकों का स्वागत किया गया। होली को लेकर खासकर बच्चों में व्यापक उत्साह दिख रहा था। गली कूचों में फिल्मी धुन पर होली गीतों में बच्चे तथा युवा थिरकते दिखाई पड़े। होली को लेकर हर तबके में काफी उत्साह था। जबकि विधि व्यवस्था को लेकर पुलिस प्रशासन काफी सजग दिखे। मुख्यालय समेत ग्रामीण क्षेत्रों में समय समय पर निरीक्षण करते दिखे।
क्यों होती है होली पर्व:
‘रंगों के त्यौहार’ के तौर पर मशहूर होली का त्योहार फाल्गुन महीने में पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। तेज संगीत और ढोल के बीच एक दूसरे पर रंग और पानी फेंका जाता है। भारत के अन्य त्यौहारों की तरह होली भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। प्राचीन पौराणिक कथा के अनुसार होली का त्योहार, हिरण्यकश्यप की कहानी जुड़ी है।
बताया जाता है कि …
हिरण्यकश्यप प्राचीन भारत का एक राजा था जो कि राक्षस की तरह था। वह अपने छोटे भाई की मौत का बदला लेना चाहता था जिसे भगवान विष्णु ने मारा था। इसलिए अपने आप को शक्तिशाली बनाने के लिए उसने सालों तक प्रार्थना की। आखिरकार उसे वरदान मिला। लेकिन इससे हिरण्यकश्यप खुद को भगवान समझने लगा और लोगों से खुद की भगवान की तरह पूजा करने को कहने लगा।
इस दुष्ट राजा का एक बेटा था जिसका नाम प्रहलाद था और वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। प्रहलाद ने अपने पिता का कहना कभी नहीं माना और वह भगवान विष्णु की पूजा करता रहा। बेटे द्वारा अपनी पूजा ना करने से नाराज उस राजा ने अपने बेटे को मारने का निर्णय किया।
उसने अपनी बहन होलिका से कहा कि वो प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाए क्योंकि होलिका आग में जल नहीं सकती थी। उनकी योजना प्रहलाद को जलाने की थी, लेकिन उनकी योजना सफल नहीं हो सकी क्योंकि प्रहलाद सारा समय भगवान विष्णु का नाम लेता रहा और बच गया पर होलिका जलकर राख हो गई।
होलिका की ये हार बुराई के नष्ट होने का प्रतीक है। इसके बाद भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया, इसलिए होली का त्योहार, होलिका की मौत की कहानी से जुड़ा हुआ है। इसके चलते भारत के कुछ राज्यों में होली से एक दिन पहले बुराई के अंत के प्रतीक के तौर पर होली जलाई जाती है।
होलिका दहन मुहूर्त - मंगलवार, 07 मार्च 2023, समय 06:29 अपराह्न से 08:54 अपराह्न तक
पूर्णिमा तिथि शुरू - 06 मार्च 2023 अपराह्न 04:17 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त - 07 मार्च 2023 अपराह्न 06:09 बजे*
होली स्पेशल भोग और प्रसाद
होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला रंगों का एक त्योहार है। यह एक प्राचीन हिंदू धार्मिक उत्सव है और कभी-कभी इस त्योहार को प्यार का त्योहार भी कहा जाता है।
यह मुख्यतः भारत, नेपाल और दुनिया के अन्य क्षेत्रों में मुख्य रूप से भारतीय मूल के लोगों के बीच मनाया जाता है। यह त्यौहार यूरोप और उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों में भी मनाया जाता है। यह प्रेम, उल्लास और रंगों का एक वसंत उत्सव है। मथुरा, वृन्दावन, बरसाने और नंदगाँव की लठमार होली तो प्रसिद्ध है ही देश विदेश के अन्य स्थलों पर भी होली की परंपरा है। उत्साह का यह त्योहार फाल्गुन मास (फरवरी व मार्च) के अंतिम पूर्णिमा के अवसर पर उल्लास के साथ मनाया जाता है।
त्योहार का एक धार्मिक उद्देश्य भी है, जो प्रतीकात्मक रूप से होलिका की किंवदंती के द्वारा बताया गया है। होली से एक रात पहले होलिका जलाई जाती है जिसे होलिका दहन (होलिका के जलने) के रूप में जाना जाता है। लोग आग के पास इकट्ठा होते है नृत्य और लोक गीत गाते हैं। अगले दिन, होली का त्योहार मनाया जाता जिसे संस्कृत में धुलेंडी के रूप में जाना जाता हैै। रंगों का उत्सव आनंदोत्सव शुरू करता है, जहां हर कोई खेलता है, सूखा पाउडर रंग और रंगीन पानी के साथ एक दूसरे का पीछा करते है और रंग लगाते है। कुछ लोग पानी के पिचकारी और रंगीन पानी से भरा गुब्बारे लेते हैं और दूसरों पर फेंक देते हैं और उन्हें रंग देते हैं। बच्चे और एक दूसरे पर युवाओं स्प्रे रंग, बड़े एक-दूसरे के चेहरे पर सूखी रंग का पाउडर गुलाल लगाते है। आगंतुकों को पहले रंगों से रंगा जाता है, फिर होली के व्यंजनों, डेसर्ट और पेय जल परोसा जाता है।
यह त्यौहार सर्दियों के अंत के साथ वसंत के आने का भी प्रतीक है। कई लोगों के लिए यह ऐसा समय होता है जिसमें लोग आपसी दुश्मनी और संचित भावनात्मक दोष समाप्त करके अपने संबंधों को सुधारने के लिए लाता है।
होलिका दहन की तरह, कामा दहानाम भारत के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। इन भागों में रंगों का त्योहार रंगपंचमी कहलाता है, और पंचमी (पूर्णिमा) के बाद पांचवें दिन होता है।
*क्यो मनाया जाता है होली त्योहार*
होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की। माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यक्श्यप नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के अभिमान में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। हिरण्यक्श्यप का पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्त था। प्रह्लाद की विष्णु भक्ति से क्रोधित होकर हिरण्यक्श्यप ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने विष्णु की भक्ति नही छोड़ी। हिरण्यक्श्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यक्श्यप ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है। जिसे होलिका दहन कहा जाता है।
प्रह्लाद की कथा के अतिरिक्त यह पर्व राक्षसी ढुंढी, राधा कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से भी जुड़ा हुआ है। कुछ लोगों का मानना है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं।
रंगों का त्यौहार होली भारत के प्रमुख त्यौहारों में से एक है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली जहाँ एक ओर सामाजिक एवं धार्मिक है, वहीं रंगों का भी त्योहार है। रंगों का त्यौहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते हैं। दूसरे दिन को धुलंडी कहते है इस दिन एक दूसरे को गुलाल अबीर लगाते हैं। होली क्यों मनाई जाती है इस संदर्भ में पुराणों में अनेक कथाएं है। जिसमें सबसे प्रमुख विष्णु भक्त प्रह्लाद और उनकी बुआ होलिका से सम्बंधित है। आइए जानते है होली से सम्बंधित कुछ कथाएं।
*होली व्रत कथा*
प्रथम कथा – नारद पुराण के अनुसार आदिकाल में हिरण्यकश्यप नामक एक राक्षस हुआ था। दैत्यराज खुद को ईश्वर से भी बड़ा समझता था। वह चाहता था कि लोग केवल उसकी पूजा करें। लेकिन उसका खुद का पुत्र प्रह्लाद परम विष्णु भक्त था। भक्ति उसे उसकी मां से विरासत के रूप में मिली थी। हिरण्यकश्यप के लिए यह बड़ी चिंता की बात थी कि उसका स्वयं का पुत्र विष्णु भक्त कैसे हो गया? और वह कैसे उसे भक्ति मार्ग से हटाए। होली की कथा के अनुसार जब हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को विष्णु भक्ति छोड़ने के लिए कहा परन्तु अथक प्रयासों के बाद भी वह सफल नहीं हो सका। कई बार समझाने के बाद भी जब प्रह्लाद नहीं माना तो हिरण्यकश्यप ने अपने ही बेटे को जान से मारने का विचार किया। कई कोशिशों के बाद भी वह प्रह्लाद को जान से मारने में नाकाम रहा। बार-बार की कोशिशों से नाकम होकर हिरण्यकश्यप आग बबूला हो उठा। इसके बाद उसने अपनी बहन होलिका से मदद ली जिसे भगवान शंकर से ऐसा चादर मिला था जिसे ओढ़ने पर अग्नि उसे जला नहीं सकती थी। तय हुआ कि प्रह्लाद को होलिका के साथ बैठाकर अग्निन में स्वाहा कर दिया जाएगा। होलिका अपनी चादर को ओढकर प्रह्लाद को गोद में लेकर चिता पर बैठ गयी। लेकिन विष्णु जी के चमत्कार से वह चादर उड़ कर प्रह्लाद पर आ गई जिससे प्रह्लाद की जान बच गयी और होलिका जल गई। इसी के बाद से होली की संध्या को अग्नि जलाकर होलिका दहन का आयोजन किया जाता है।
दूसरी कथा – एक अन्य पौराणिक कथा शिव और पार्वती से संबद्ध है। हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव से हो जाए पर शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे। कामदेव पार्वती की सहायता को आए व उन्होंने अपना पुष्प बाण चलाया। भगवान शिव की तपस्या भंग हो गयी। शिव को बड़ा क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आँख खोल दी। उनके क्रोध की ज्वाला में कामदेव का भस्म हो गए। तदुपरान्तर शिवजी ने पार्वती को देखा और पार्वती की आराधना सफल हुई। शिवजी ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लिया। इस प्रकार इस कथा के आधार पर होली की अग्नि में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकत्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।
तीसरी कथा – एक आकाशवाणी हुई कि कंस को मारने वाला गोकुल में जन्म ले चुका है। अत: कंस ने इस दिन गोकुल में जन्म लेने वाले हर शिशु की हत्या कर देने का आदेश दे दिया। इसी आकाशवाणी से भयभीत कंस ने अपने भांजे कृष्ण को भी मारने की योजना बनाई और इसके लिए पूतना नामक राक्षसी का सहारा लिया। पूतना मनचाहा रूप धारण कर सकती थी। उसने सुंदर रूप धारण कर अनेक शिशुओं को अपना विषाक्त स्तनपान करा मौत के घाट उतार दिया। फिर वह बाल कृष्ण के पास जा पहुंची किंतु कृष्ण उसकी सच्चाई को जानते थे और उन्होंने पूतना का वध कर दिया। यह फाल्गुन पूर्णिमा का दिन था अतः पूतनावध के उपलक्ष में होली मनाई जाने लगी।
मन की बात का 75 वां एपिसोड: पीएम मोदी ने कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए लोगों को धन्यवाद दिया.
मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार। इस बार जब मैं पत्रों, टिप्पणियों से इनकार कर रहा था; मन की बात के लिए अलग-अलग इनपुट्स डालना जारी रखते हैं, कई लोगों ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण बिंदु को याद किया। MyGov पर, आर्यन श्री - बेंगलुरु से अनूप राव, नोएडा से देवेश, ठाणे से सुजीत - इन सभी ने कहा - मोदी जी, इस बार, मन की बात का 75 वां एपिसोड; उसके लिए बधाई। मैं मन की बात को इतनी सूक्ष्मता से मानने के लिए आपका आभार व्यक्त करता हूं; साथ ही जुड़े रहने के लिए। मेरे लिए, यह बहुत गर्व की बात है; यह खुशी की बात है। मेरी तरफ से, यह निश्चित रूप से आपको धन्यवाद; मैं मन की बात के सभी श्रोताओं का भी धन्यवाद व्यक्त करता हूं, क्योंकि यह यात्रा आपके समर्थन के बिना संभव नहीं थी। यह कल की तरह ही लगता है जब हम इस विचार और विचारों की यात्रा पर निकले थे। फिर, 3 अक्टूबर 2014 को, यह विजयदशमी का पवित्र अवसर था; संयोग देखिए - आज यह होलिका दहन है। The एक दीपक एक और प्रकाश, इस प्रकार राष्ट्र को रोशन कर सकता है '- इस भावना के साथ चलना, हमने इस तरह से ट्रैवर्स किया है। हमने देश के हर कोने में लोगों से बात की और उनके असाधारण काम के बारे में सीखा। आपने भी अनुभव किया होगा कि हमारे देश के सबसे दूर के कोने में भी, विशाल, अद्वितीय क्षमता है - असंख्य रत्न पोषित किए जा रहे हैं, जो भारत माता की गोद में हैं। वैसे मेरे लिए, समाज को देखना, समाज के बारे में जानना, उसकी ताकत का एहसास कराना अपने आप में एक अभूतपूर्व अनुभव रहा है। इन 75 प्रकरणों के दौरान, एक व्यक्ति कई विषयों से गुजरा। कई बार, नदियों का संदर्भ था; अन्य समय में हिमालय की चोटियों को छुआ गया था ... कभी-कभी रेगिस्तान से संबंधित मामले; अन्य समय में प्राकृतिक आपदाओं को उठाना ... कभी-कभी मानवता की सेवा पर अनगिनत कहानियों में भिगोना ... कुछ में, प्रौद्योगिकी में आविष्कार; दूसरों में, एक अज्ञात कोने में कुछ उपन्यास करने के अनुभव की कहानी! आप देखें, चाहे वह स्वच्छता के बारे में हो या हमारी विरासत के संरक्षण पर चर्चा हो;और सिर्फ इतना ही नहीं, खिलौने बनाने के संदर्भ में, ऐसा क्या है जो वहां नहीं था? शायद, जिन विषयों पर हमने छुआ है, उनमें से अनगिनत संख्याएँ अनगिनत होंगी! इस सब के दौरान, हमने समय-समय पर उन महान प्रकाशकों को श्रद्धांजलि अर्पित की, जिनका भारत के निर्माण में योगदान अद्वितीय रहा है; हमने उनके बारे में सीखा। हमने कई वैश्विक मामलों पर भी बात की; हमने उनसे प्रेरणा प्राप्त करने का प्रयास किया है। कई बिंदु थे जो आपने मुझे बताए; आपने मुझे कई विचार दिए। एक तरह से, इस har विचार यात्रा ’में, विचार और विचार की यात्रा, आप एक साथ चलते रहे, जुड़ते रहे, कुछ नया जोड़ते रहे। इस 75 वें एपिसोड के दौरान, शुरुआत में, मैं मन की बात के प्रत्येक श्रोता को इसे सफल बनाने, इसे समृद्ध बनाने और जुड़े रहने के लिए दिल से धन्यवाद देता हूं। मेरे प्यारे देशवासियो, आप देखें कि यह कितना बड़ा सुखद संयोग है कि आज मुझे अपने at५ वें मन की बात व्यक्त करने का अवसर मिला! यह वही महीना है जो आजादी के 75 वर्षों के 'अमृत महोत्सव' के आरंभ का प्रतीक है। Day अमृत महोत्सव ’की शुरुआत दांडी यात्रा के दिन से हुई थी और यह 15 अगस्त, 2023 तक जारी रहेगी। अमृत महोत्सव के संबंध में कार्यक्रम पूरे देश में लगातार आयोजित किए जा रहे हैं; लोग कई जगहों से इन कार्यक्रमों की जानकारी और तस्वीर���ं साझा कर रहे हैं। झारखंड के नवीन ने नमोऐप पर मुझे कुछ ऐसी तस्वीरों के साथ एक संदेश भेजा है। उन्होंने लिखा है कि उन्होंने अमृत महोत्सव पर कार्यक्रम देखे और तय किया कि वह कम से कम दस स्थानों पर स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े लोगों से मिलेंगे। उनकी सूची में पहला नाम भगवान बिरसा मुंडा की जन्मभूमि का है। नवीन ने लिखा है कि वह झारखंड के आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों की कहानियों को देश के अन्य हिस्सों में प्रसारित करेंगे। भाई नवीन, मैं आपको अपने विचार पर बधाई देता हूं।
दोस्तों, यह एक स्वतंत्रता सेनानी की संघर्ष गाथा हो; यह देश के किसी स्थान या किसी सांस्कृतिक कहानी का इतिहास हो, आप अमृत महोत्सव के दौरान इसे सामने ला सकते हैं; आप देशवासियों को इससे जोड़ने का साधन बन सकते हैं। आप देखेंगे - अमृत महोत्सव, अमृत की ऐसी ही प्रेरक बूंदों से भरा होगा ... और फिर जो अमृत बहेगा, वह हमें भारत की आजादी के सौ साल बाद तक प्रेरित करेगा ... यह देश को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा, देश के लिए कुछ न कुछ करने की उत्कंठा छोड़ना। स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में, हमारे सेनानियों ने असंख्य कठिनाइयों को झेला क्योंकि वे देश के लिए बलिदान को अपना कर्तव्य मानते थे। उनके बलिदान की अमर गाथा, 'त्याग' और 'बालिदान' हमें लगातार कर्तव्य पथ पर ले जाने के लिए प्रेरित करते हैं। और जैसा कि भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है, “नित्यम् कुरु कर्म त्वा कर्म कर्मो ह्यकर्माणः | इसी भावना के साथ, हम सभी अपने निर्धारित कर्तव्यों को ईमानदारी से निभा सकते हैं। और हमारी स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव का तात्पर्य है कि हम नए संकल्प करते हैं…। और उन संकल्पों को महसूस करने के लिए, हम पूरी लगन के साथ पूरी ईमानदारी से… भारत के लिए उज्ज्वल भविष्य ... संकल्प ऐसा होना चाहिए जिसमें स्वयं एक जिम्मेदारी या दूसरे को ग्रहण करे ... किसी के अपने कर्तव्य के साथ जुड़ा हो। मेरा मानना है कि हमारे पास गीता को जीने का यह सुनहरा अवसर है।
मेरे प्यारे देशवासियो, पिछले साल मार्च का यह महीना था जब देश ने पहली बार men जनता कर्फ्यू ’शब्द सुना। महान प्रजा के पराक्रम के अनुभव पर एक नजर डालिए, इस महान देश के लोग ... जनता कर्फ्यू पूरी दुनिया के लिए आफत बन गया था। यह अनुशासन का एक अभूतपूर्व उदाहरण था; आने वाली पीढ़ियां निश्चित रूप से उस पर गर्व महसूस करेंगी। इसी तरह, हमारे कोरोना योद्धाओं के लिए सम्मान, सम्मान व्यक्त करते हुए, थालियां बजती हैं, तालियाँ बजाती हैं, दीप जलाती हैं! आप कल्पना नहीं कर सकते कि कोरोना वारियर्स के दिलों को कितना छुआ था ... और यही कारण है कि वे बिना थके, बिना रुके, पूरे साल जमकर थिरके। स्पष्ट रूप से, उन्होंने देश के प्रत्येक नागरिक के जीवन को बचाने के लिए सहन किया। पिछले साल, इस समय के आसपास, जो सवाल उभर रहा था ... कोरोना वैक्सीन कब आएगा! दोस्तों, यह सभी के लिए सम्मान की बात है कि आज, भारत दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण कार्यक्रम चला रहा है। भुवनेश्वर की पुष्पा शुक्ला जी ने मुझे टीकाकरण कार्यक्रम की तस्वीरों के बारे में लिखा है। वह आग्रह करती है कि मैं मान के बारे में चर्चा करूं कि टीका के बारे में घर के बुजुर्गों में दिखाई देने वाला उत्साह। दोस्तों, यह सही है, साथ ही… हमें देश के कोने-कोने से ऐसी खबरें सुनने को मिल रही हैं; हम ऐसी तस्वीरें देख रहे हैं, जो हमारे दिल को छू जाती हैं। जौनपुर यूपी से 109 साल की बुजुर्ग माँ, राम दुलैया जी ने लिया टीकाकरण; इसी तरह दिल्ली में 107 साल के केवल कृष्ण जी ने वैक्सीन की खुराक ली है। हैदराबाद के 100 वर्षीय जय चौधरी ने वैक्सीन ले ली है और सभी से यह टीका लेने की अपील की है। मैं ट्विटर-फ़ेसबुक पर देख रहा हूं कि कैसे अपने घरों के बुजुर्गों को टीका लगने के बाद लोग उनकी तस्वीरें अपलोड कर रहे हैं। केरल के एक युवा आनंदन नायर ने वास्तव में इसे this वैक्सीन सेवा ’का एक नया शब्द दिया है। इसी तरह के संदेश शिवानी ने दिल्ली से, हिमांशु ने हिमाचल से और कई अन्य युवाओं ने भेजे हैं। मैं आप सभी श्रोताओं के इन विचारों की सराहना करता हूं। इन सब के बीच, कोरोना से लड़ने का मंत्र याद रखें- दवयै भई कदैभि। ऐसा नहीं है कि मुझे सिर्फ कहना है; हमें भी जीना है, बोलना भी है, बताना भी है और लोगों को i दवई भी कडाई है ’के लिए भी प्रतिबद्ध रखना है।
मेरे प्यारे देशवासियो, आज मुझे सौम्या जी को धन्यवाद देना है जो इंदौर में रहती हैं। उसने एक विषय पर मेरा ध्यान आकर्षित किया है और मुझसे i मन की बात ’में इसका उल्लेख करने का आग्रह किया है। यह विषय है - भारतीय क्रिकेटर मिताली राज का नया रिकॉर्ड। हाल ही में मिताली राज जी दस हजार रन बनाने वाली पहली भारतीय महिला क्रिकेटर बन गई हैं। उनकी इस उपलब्धि पर उन्हें बहुत-बहुत बधाई। वह एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैचों में सात हजार रन बनाने वाली एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय महिला खिलाड़ी हैं। महिला क्रिकेट के क्षेत्र में उनका योगदान शानदार है। मिताली राज जी ने दो दशक से अधिक लंबे करियर के दौरान लाखों लोगों को प्रेरित किया है। उनकी दृढ़ता और सफलता की कहानी न केवल महिला क्रिकेटरों के लिए बल्कि पुरुष क्रिकेटरों के लिए भी एक प्रेरणा है। दोस्तों, यह दिलचस्प है ... मार्च के महीने में, जब हम महिला दिवस मना रहे थे, कई महिला खिलाड़ियों ने अपने नाम पर रिकॉर्ड और पदक हासिल किए। भारत ने दिल्ली में आयोजित आईएसएसएफ विश्व कप शूटिंग के दौरान शीर्ष स्थान हासिल किया। भारत ने स्वर्ण पदक तालिका में भी शीर्ष स्थान हासिल किया। भारतीय महिला और पुरुष निशानेबाजों के शानदार प्रदर्शन के कारण यह संभव हो पाया। इस बीच पी वी सिंधु जी ने बीडब्ल्यूएफ स्विस ओपन सुपर 300 टूर्नामेंट में रजत पदक जीता है। आज शिक्षा से लेकर उद्यमिता, सशस्त्र बल, विज्ञान और प्रौद्योगिकी तक, देश की बेटियाँ हर जगह एक अलग मुकाम बना रही हैं। मैं विशेष रूप से खुश हूं कि बेटियां खेलों में अपने लिए एक नई जगह बना रही हैं। पेशेवर विकल्पों में खेल एक पसंदीदा विकल्प के रूप में आ रहा है।
मेरे प्यारे देशवासियो, क्या आपको कुछ समय पहले आयोजित मैरीटाइम इंडिया समिट याद है? क्या आपको याद है कि मैंने इस शिखर सम्मेलन में क्या कहा था? स्वाभाविक रूप से, बहुत सारे कार्यक्रम होते रहते हैं, इसलिए बहुत सी चीजें मिलती हैं, कैसे सभी को याद करता है और एक या तो ध्यान कैसे देता है ... स्वाभाविक रूप से! लेकिन मुझे अच्छा लगा कि गुरु प्रसाद जी ने मेरे एक अनुरोध को दिलचस्पी के साथ आगे बढ़ाया। इस शिखर सम्मेलन में, मैंने देश में लाइट हाउस परिसरों के आसपास पर्यटन सुविधाओं को विकसित करने की बात की थी। गुरु प्रसाद जी ने 2019 में दो लाइट हाउस- चेन्नई लाइट हाउस और महाबलीपुरम लाइट हाउस में अपनी यात्रा के अनुभव साझा किए हैं। उन्होंने बहुत ही रोचक तथ्य साझा किए हैं जो 'मन की बात' के श्रोताओं को भी चकित कर देंगे। उदाहरण के लिए, चेन्नई लाइट हाउस दुनिया के उन चुनिंदा लाइट हाउसों में से एक है, जिनमें लिफ्ट हैं। यही नहीं, यह भारत का एकमात्र लाइट हाउस भी है जो शहर की सीमा के भीतर है। इसमें बिजली के लिए भी सोलर पैनल लगे हैं। गुरु प्रसाद जी ने लाइट हाउस के विरासत संग्रहालय के बारे में भी बात की, जो समुद्री नेविगेशन के इतिहास को सामने लाता है। पुराने समय में तेल के लैंप, मिट्टी के तेल की रोशनी, पेट्रोलियम वाष्प और पुराने समय में इस्तेमाल किए जाने वाले बिजली के लैंप की विशालकाय छतों को संग्रहालय में प्रदर्शित किया जाता है। गुरु प्रसाद जी ने भारत के सबसे पुराने लाइट हाउस- महाबलीपुरम लाइट हाउस के बारे में भी विस्तार से लिखा है। उनका कहना है कि इस लाइट हाउस के बगल में पल्लव राजा महेंद्रमन फर्स्ट द्वारा सैकड़ों साल पहले बनाया गया ’उलकनेश्वर’ मंदिर है।
दोस्तों, मैंने 'मन की बात' के दौरान कई बार पर्यटन के विभिन्न पहलुओं की बात की है, लेकिन ये लाइट हाउस पर्यटन की दृष्टि से अद्वितीय हैं। उनकी भव्य संरचनाओं के कारण प्रकाश घर हमेशा लोगों के आकर्षण का केंद्र रहे हैं। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए भारत में 71 प्रकाश घरों की पहचान की गई है। इन सभी प्रकाश घरों में, उनकी क्षमता के आधार पर, संग्रहालय, एम्फी-थिएटर, ओपन एयर थिएटर, कैफेटेरिया, बच्चों के पार्क, पर्यावरण के अनुकूल कॉटेज और भूनिर्माण का निर्माण किया जाएगा। वैसे, जैसा कि हम प्रकाश घरों की बात कर रहे हैं, मैं आपको एक अनोखे प्रकाश घर के बारे में भी बताना चाहूंगा। यह लाइट हाउस गुजरात के सुरेंद्र नगर जिले में जिंझुवाड़ा नामक स्थान पर है। क्या आप जानते हैं कि यह लाइट हाउस क्यों खास है? यह विशेष है, क्योंकि अब समुद्र तट सौ किलोमीटर से अधिक दूर है जहां यह लाइट हाउस है। इस गाँव में आपको ऐसे पत्थर भी देखने को मिलेंगे जो हमें बताते हैं कि अतीत में यहाँ एक व्यस्त बंदरगाह रहा होगा। इसका मतलब है, पहले समुद्र तट जिंझुवाड़ा तक था। समुद्र से इतनी दूर जाना, पीछे हटना, आगे बढ़ना, आगे बढ़ना भी इसकी एक विशेषता है। इस महीने जापान में आई भयानक सुनामी से 10 साल पूरे होने जा रहे हैं। इस सूनामी में हजारों लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। 2004 में ऐसी ही एक सुनामी भारत में आई थी। सुनामी के दौरान हमने अपने लाइट हाउस में काम करने वाले हमारे 14 कर्मचारियों को खो दिया था; वे अंडमान निकोबार और तमिलनाडु में प्रकाश घरों में ड्यूटी पर थे। मैं हमारे इन मेहनती प्रकाश रखवालों को सम्मानजनक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं और उनके काम के लिए उच्च सम्मान है। प्रिय देशवासियों, नवीनता, आधुनिकीकरण जीवन के सभी क्षेत्रों में आवश्यक है, अन्यथा यह कई बार बोझ बन जाता है। भारतीय कृषि के क्षेत्र में आधुनिकीकरण समय की आवश्यकता है। पहले ही देर हो चुकी है। हमने पहले ही बहुत समय खो दिया है। कृषि क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर पैदा करने के लिए पारंपरिक खेती के साथ-साथ नए विकल्प, नए नवाचारों को अपनाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है; किसानों की आय बढ़ाने के लिए। श्वेत क्रांति के दौरान देश ने इसका अनुभव किया है। अब मधुमक्खी पालन एक समान विकल्प के रूप में उभर रहा है। मधुमक्खी पालन देश में एक शहद क्रांति या मीठी क्रांति का आधार बन रहा है। किसान, बड़ी संख्या में, किसानों के साथ जुड़ रहे हैं; नवाचार कर रहा है।
पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग के एक गाँव गुरुदाम के रूप में। वहाँ खड़ी पहाड़ियाँ, भौगोलिक समस्याएं हैं, और फिर भी, यहाँ के लोगों ने मधुमक्खी पालन का काम शुरू कर दिया है, और आज, इस स्थान पर शहद की फसल की भारी मांग है। इससे किसानों की आय भी बढ़ रही है। पश्चिम बंगाल के सुंदरबन इलाकों के प्राकृतिक जैविक शहद की हमारे देश और दुनिया में बहुत मांग है। मुझे गुजरात में भी ऐसा ही एक निजी अनुभव रहा है। वर्ष 2016 में बनासकांठा, गुजरात में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। उस कार्यक्रम में, मैंने लोगों से कहा था कि यहाँ बहुत संभावनाएँ हैं ... क्यों नहीं बनासकांठा और यहाँ के किसान मीठी क्रांति का एक नया अध्याय लिख रहे हैं? आपको यह जानकर खुशी होगी कि इतने कम समय में बनासकांठा शहद उत्पादन का एक प्रमुख केंद्र बन गया है। आज बनासकांठा के किसान शहद के जरिए सालाना लाखों रुपये कमा रहे हैं। कुछ ऐसा ही उदाहरण यमुनानगर, हरियाणा का भी है। यमुना नगर में, किसान सालाना कई सौ टन शहद का उत्पादन कर रहे हैं, मधुमक्खी पालन करके अपनी आय बढ़ा रहे हैं। किसानों की इस मेहनत का नतीजा है कि देश में शहद का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है, और सालाना लगभग 1.25 लाख टन का उत्पादन होता है और इसमें से बड़ी मात्रा में शहद का निर्यात विदेशों में भी किया जा रहा है।
दोस्तों, हनी बी फार्मिंग से केवल शहद से ही आय नहीं होती है, बल्कि मधुमक्खी का मोम भी आय का एक बहुत बड़ा स्रोत है। हर चीज में मधुमक्खी के मोम की मांग है ... दवा, खाद्य, कपड़ा और कॉस्मेटिक उद्योग हमारा देश वर्तमान में मधुमक्खी के मोम का आयात करता है, लेकिन, हमारे किसान अब इस स्थिति को तेजी से बदल रहे हैं ... अर्थात, एक तरह से ir आत्मानिभर भारत के अभियान में योगदान दे रहा है। आज पूरी दुनिया आय��र्वेद और प्राकृतिक स्वास्थ��य उत्पादों को देख रही है। ऐसे में शहद की मांग और भी तेजी से बढ़ रही है। मैं हमारे देश के अधिक से अधिक किसानों को उनकी खेती के साथ-साथ मधुमक्खी पालन से जुड़ने की कामना करता हूं। इससे किसानों की आय में भी वृद्धि होगी और उनका जीवन भी मधुर होगा! मेरे प्यारे देशवासियों, विश्व गौरैया दिवस कुछ ही दिन पहले मनाया गया था। गौरैया जिसे गोरैया कहा जाता है, स्थानों पर चकली के नाम से भी जाना जाता है, या इसे चिमनी, या घनचिरिका भी कहा जाता है। इससे पहले, गोराया हमारे घरों की दीवारों या पड़ोसी पेड़ों की सीमाओं पर चहकते हुए पाए जाते थे। लेकिन अब लोग गोरैया को याद करते हुए बताते हैं कि आखिरी बार उन्होंने गोरैया को कई साल पहले देखा था! आज हमें इसे बचाने के लिए प्रयास करने की आवश्यकता है। बनारस से आए मेरे मित्र इंद्रपाल सिंह बत्रा ने इस दिशा में एक उपन्यास प्रयास शुरू किया है मैं मन की बात के श्रोताओं को यह निश्चित रूप से बताना चाहूंगा। बत्रा जी ने गोरैया के लिए अपने घर को अपना घर बना लिया है। उसे अपने घर में लकड़ी के बने ऐसे घोंसले मिलते थे जहाँ गोराई आसानी से रह सकते थे। आज बनारस के कई घर इस अभियान से जुड़ रहे हैं। इससे घरों में एक अद्भुत प्राकृतिक वातावरण पैदा हुआ है। मैं चाहूंगा कि प्रकृति, पर्यावरण, पशु, पक्षी या जिनके लिए हमारे द्वारा छोटे या बड़े प्रयास किए जाएं।
जैसा कि ... एक दोस्त बिजय कुमार काबिजी। ओडिशा के केंद्रपाड़ा से बिजयजी हिल्स। केंद्रपाड़ा समुद्री तट पर है। इसीलिए इस जिले में कई गांव हैं, जो उच्च ज्वार और चक्रवात के खतरों से ग्रस्त हैं। इससे कई बार तबाही भी मचती है। बिजोयजी को लगा कि अगर कुछ भी इस पर्यावरणीय तबाही को रोक सकता है, तो जो चीज इसे रोक सकती है, वह केवल प्रकृति है। यही कारण है कि जब बिजयजी ने बाराकोट गाँव से अपना मिशन शुरू किया और 12 साल तक ... दोस्तों, अगले 12 वर्षों तक मेहनत करके उन्होंने गाँव के बाहरी इलाके में 25 एकड़ का मैंग्रोव वन समुद्र की ओर बढ़ाया। आज यह जंगल इस गाँव की रक्षा कर रहा है। एक इंजीनियर अमरेश सामंत जी ने ओडिशा के पारादीप जिले में इसी तरह का काम किया है। अमरेश जी ने सूक्ष्म वन लगाए हैं, जो आज कई गांवों की रक्षा कर रहे हैं। दोस्तों, एंडेवर के इन प्रकारों में, यदि हम समाज को शामिल करते हैं, तो महान परिणाम प्राप्त होते हैं। उदाहरण के लिए, मारीमुथु योगनाथन हैं, जो कोयम्बटूर, तमिलनाडु में बस कंडक्टर के रूप में काम करते हैं। योगानाथन जी अपने बस के यात्रियों को टिकट जारी करते समय एक मुफ्त में एक जलपान भी देते हैं। इस तरह, योगनाथन जी को असंख्य पेड़ लग गए हैं! योगनाथन जी इस काम के लिए अपने वेतन का एक बड़ा हिस्सा खर्च कर रहे हैं। अब इस कहानी को सुनने के बाद, एक नागरिक के रूप में कौन मारीमुथु योगनाथन के काम की सराहना नहीं करेगा? मैं उनके प्रयासों को, उनके प्रेरणादायक कार्यों के लिए दिल से बधाई देता हूं। मेरे प्यारे देशवासियों, हम सभी ने धन में कचरे को परिवर्तित करने के बारे में दूसरों को देखा, सुना औ��� उल्लेख किया है! उसी तरह, अपशिष्ट को मूल्य में परिवर्तित करने के प्रयासों का भी प्रयास किया जा रहा है। ऐसा ही एक उदाहरण केरल के कोच्चि के सेंट टेरेसा कॉलेज का है। मुझे याद है कि 2017 में, मैंने इस कॉलेज के परिसर में पुस्तक पढ़ने पर केंद्रित एक कार्यक्रम में भाग लिया। इस कॉलेज के छात्र पुन: प्रयोज्य खिलौने बना रहे हैं, वह भी बहुत रचनात्मक तरीके से। ये छात्र पुराने कपड़े, लकड़ी के टुकड़े, बैग और बक्से को खिलौने बनाने में परिवर्तित कर रहे हैं। कुछ छात्र एक पहेली बना रहे हैं जबकि दूसरा एक कार बनाते हैं या एक ट्रेन बनाते हैं। यहां, यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष ध्यान दिया जाता है कि खिलौने सुरक्षित होने के साथ-साथ बच्चे के अनुकूल भी हों। और इस पूरे प्रयास के बारे में एक अच्छी बात यह है कि इन खिलौनों को आंगनवाड़ी बच्चों को उनके साथ खेलने के लिए दिया जाता है। आज, जबकि भारत खिलौनों के निर्माण में बहुत आगे बढ़ रहा है, अपशिष्ट से मूल्य तक के इन अभियानों, इन सरल प्रयोगों का बहुत मतलब है।
आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में प्रोफेसर श्रीनिवास पद्कंडलाजी हैं। वह बहुत दिलचस्प काम कर रहे हैं। उन्होंने ऑटोमोबाइल मेटल स्क्रैप से मूर्तियां बनाई हैं। उनके द्वारा बनाई गई ये विशाल मूर्तियां सार्वजनिक पार्कों में स्थापित की गई हैं और लोग इन्हें बड़े उत्साह के साथ देखते हैं। यह इलेक्ट्रॉनिक और ऑटोमोबाइल अपशिष्ट पुनर्चक्रण के साथ एक अभिनव प्रयोग है। मैं एक बार फिर कोच्चि और विजयवाड़ा के इन प्रयासों की सराहना करता हूं और आशा करता हूं कि इस तरह के प्रयासों में बड़ी संख्या में लोग आगे आएंगे। मेरे प्यारे देशवासियों, जब भारत के लोग दुनिया के किसी भी कोने में जाते हैं, तो वे गर्व से कहते हैं कि वे भारतीय हैं। हमारे पास गर्व करने के लिए बहुत कुछ है ... हमारे योग, आयुर्वेद, दर्शन और क्या नहीं! हम गर्व के साथ बात करते हैं। हमें अपनी स्थानीय भाषा, बोली, पहचान, पहनावे, खान-पान पर गर्व है। हमें नया प्राप्त करना है ... उसके लिए यही जीवन है लेकिन उसी समय हमें अपना अतीत नहीं खोना है! हमें अपने आसपास की अपार सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध करने के लिए वास्तव में कड़ी मेहनत करनी होगी, इसके लिए नई पीढ़ी को पारित करना होगा। आज असम में रहने वाला सिकरी तिसाऊ बहुत लगन से ऐसा कर रहा है। कार्बी आंगलोंग जिले के सिकरी तिसाऊ जी पिछले 20 वर्षों से करबी भाषा का दस्तावेजीकरण कर रहे हैं। एक बार, दूसरे युग में, 'कार्बी', 'कार्बी आदिवासी' भाइयों और बहनों की भाषा ... अब मुख्यधारा से गायब हो रही है। श्रीमन सिकरी तिसाऊ ने फैसला किया कि वह उनकी पहचान की रक्षा करेगा ... और आज उनके प्रयासों के परिणामस्वरूप कार्बी भाषा के बारे में अधिक जानकारी के दस्तावेजीकरण हो गए हैं। उन्हें अपने प्रयासों के लिए कई स्थानों पर प्रशंसा भी मिली, और पुरस्कार भी मिले। मैं निश्चित रूप से 'मन की बात' के माध्यम से श्रीमन सिकरी तिसाऊ जी को बधाई देता हूं, लेकिन देश के कई कोनों में इस तरह की पहल में इस तरह के नारे लगाने वाले कई साधक होंगे और मैं उन सभी को भी बधाई देता हूं।
मेरे प्यारे देशवासियो, कोई भी नई शुरुआत हमेशा बहुत खास होती है। नई शुरुआत का मतलब है नई संभावनाएं - नई कोशिशें। और, नए प्रयासों का मतलब है नई ऊर्जा और नया जोश। यही कारण है कि यह विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में और विविधता से भरी हमारी संस्कृति में उत्सव के रूप में किसी भी नई शुरुआत का पालन करने की परंपरा रही है। और यह समय नई शुरुआत और नए त्योहारों के आगमन का है। होली भी बसंत, वसंत को त्योहार के रूप में मनाने की परंपरा है। जब हम रंगों के साथ होली मना रहे होते हैं, उसी समय, यहाँ तक कि वसंत हमारे चारों ओर नए रंग फैला देता है। इस समय, फूल खिलने लगते हैं और प्रकृति जीवंत हो उठती है। जल्द ही देश के विभिन्न क्षेत्रों में नया साल भी मनाया जाएगा। चाहे वह उगादी हो या पुथंडू, गुड़ी पड़वा या बिहू, नवरेह या पोइला, या बोईशाख या बैसाखी - पूरा देश जोश, उत्साह और नई उम्मीदों के रंग में सराबोर हो जाएगा। इसी समय, केरल भी विशु के सुंदर त्योहार मनाता है। इसके बाद जल्द ही चैत्र नवरात्रि का पावन अवसर भी आएगा। चैत्र महीने के नौवें दिन, हमारे पास रामनवमी का त्योहार होता है। इसे भगवान राम की जयंती और न्याय और पराक्रम के नए युग की शुरुआत के रूप में भी मनाया जाता है। इस दौरान चारों ओर धूमधाम के साथ भक्ति का माहौल होता है, जो लोगों को करीब लाता है, उन्हें परिवार और समाज से जोड़ता है, आपसी संबंधों को मजबूत करता है। इन त्योहारों के अवसर पर, मैं सभी देशवासियों को बधाई देता हूं। दोस्तों, इस बार 4 अप्रैल को देश ईस्टर भी मनाएगा। ईस्टर का त्योहार यीशु मसीह के पुनरुत्थान के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। प्रतीकात्मक रूप से, ईस्टर जीवन की नई शुरुआत से जुड़ा है। ईस्टर उम्मीदों के पुनरुत्थान का प्रतीक है। इस पवित्र और शुभ अवसर पर, मैं न केवल भारत में ईसाई समुदाय, बल्कि विश्व स्तर पर ईसाइयों का अभिवादन करता हूं।
मेरे प्यारे देशवासियो, आज 'मन की बात' में हमने 'अमृत महोत्सव' और देश के प्रति अपने कर्तव्यों के बारे में बात की। हमने अन्य त्योहारों और उत्सवों पर भी चर्चा की। इस बीच, एक और त्योहार आ रहा है जो हमें हमारे संवैधानिक अधिकारों और कर्तव्यों की याद दिलाता है। वह 14 अप्रैल है - डॉ। बाबा साहेब अम्बेडकर जी की जयंती। 'अमृत महोत्सव' में इस बार यह अवसर और भी खास हो गया है। मुझे यकीन है कि हम बाबासाहेब की इस जयंती को अपने कर्तव्यों का संकल्प लेकर यादगार बनाएंगे और इस तरह उन्हें श्रद्धांजलि देंगे। इसी विश्वास के साथ, आप सभी को एक बार फिर से त्योहारों की शुभकामनाएँ। आप सभी खुश रहें, स्वस्थ रहें और आनन्दित रहें। इस इच्छा के साथ, मैं आपको याद दिलाता हूं remind दवई भी, कडाई भी ’! आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
🚩 होलिका दहन कहा हुआ था? और आज उस स्थान की कैसी स्थिति है? -17 मार्च 2022
🚩 होली नज़दीक है तो #होलिका दहन की बात भी होगी। #प्रह्लाद की याद भी लोगों को आएगी, जिन्हें नहीं याद आया उन्हें इस कहानी में छुपे किसी तथाकथित नारीविरोधी म���नसिकता की याद दिला दी जायेगी। कभी-कभी होलिका को उत्तर प्रदेश का घोषित कर के इसमें दलित विरोध और आर्यों के हमले का मिथक भी गढ़ा जाता है। ऐसे में सवाल है कि प्रह्लाद को किस क्षेत्र का माना जाता है? आखिर किस इलाक़े को पौराणिक रूप से हिरण्याक्ष- हिरण्यकश्यप का क्षेत्र समझा जाता था?
🚩 वो इलाक़ा होता था कश्यप-पुर जिसे आज मुल्तान (पाकिस्तान का एक शहर) नाम से जाना जाता है। ये कभी प्रह्लाद की राजधानी थी। यहीं कभी प्रहलादपुरी का मंदिर हुआ करता था जिसे नरसिंह के लिए बनवाया गया था। कथित रूप से ये एक चबूतरे पर बना कई खंभों वाला मंदिर था। अन्य कई मंदिरों की तरह इसे भी इस्लामिक हमलावरों ने तोड़ दिया था। जैसी कि इस्लामिक परंपरा है, इसके अवशेष और इस से जुड़ी यादें मिटाने के लिए इसके पास भी हज़रत बहाउल हक़ ज़कारिया का मकबरा बना दिया गया। डॉ. ए.एन. खान के हिसाब से जब ये इलाक़ा दोबारा सिक्खों के अधिकार में आया तो 1810 के दशक में यहाँ फिर से मंदिर बना।
🚩 मगर जब एलेग्जेंडर बर्निस इस इलाक़े में 1831 में आए तो उन्होंने वर्णन किया कि ये मंदिर फिर से टूटे-फूटे हाल में है और इसकी छत नहीं है। कुछ साल बाद जब 1849 में अंग्रेजों ने मूल राज पर आक्रमण किया तो ब्रिटिश गोला किले के बारूद के भण्डार पर जा गिरा और पूरा किला बुरी तरह नष्ट हो गया था। बहाउद्दीन ज़कारिया और उसके बेटों के मकबरे और मंदिर के अलावा लगभग सब जल गया था। इन दोनों को एक साथ देखने पर आप ये भी समझ सकते हैं कि कैसे पहले एक इलाक़े का सर्वे किया जाता है, फिर बाद में कभी दस साल बाद हमला होता है। डॉक्यूमेंटेशन, यानि लिखित में होना आगे के लिए मदद करता है।
🚩 एलेग्जेंडर कन्निंगहम ने 1853 में इस मंदिर के बारे में लिखा था कि ये एक ईंटों के चबूतरे पर काफी नक्काशीदार लकड़ी के खम्भों वाला मंदिर था। इसके बाद महंत बावलराम दास ने जनता से जुटाए 11,000 रुपए से इसे 1861 में फिर से बनवाया। उसके बाद 1872 में प्रहलादपुरी के महंत ने ठाकुर फ़तेह चंद टकसालिया और मुल्तान के अन्य हिन्दुओं की मदद से फिर से बनवाया। सन 1881 में इसके गुम्बद और बगल के मस्जिद के गुम्बद की ऊँचाई को लेकर दो समुदायों में विवाद हुआ जिसके बाद दंगे भड़क उठे।
दंगे रोकने के लिए ब्रिटिश सरकार ने कुछ नहीं किया। इस तरह इलाके के 22 मंदिर उस दंगे की भेंट चढ़ गए। मगर मुल्तान के हिन्दुओं ने ये मंदिर फिर से बनवा दिया। ऐसा ही 1947 तक चलता रहा जब इस्लाम के नाम पर बँटवारे में पाकिस्तान हथियाए जाने के बाद ज्यादातर हिन्दुओं को वहाँ से भागना पड़ा। बाबा नारायण दास बत्रा वहाँ से आते समय भगवान नरसिंह का विग्रह ले आए। अब वो विग्रह हरिद्वार में है।
🚩 टूटी-फूटी, जीर्णावस्था में मंदिर वहाँ बचा रहा। सन 1992 के दंगे में ये मंदिर पूरी तरह तोड़ दिया गया। अब वहाँ मंदिर का सिर्फ अवशेष बचा है।
🚩 सन् 2006 में बहाउद्दीन ज़कारिया के उर्स के मौके पर सरकारी मंत्रियों ने इस मंदिर के अवशेष में वजू की जगह बनाने की इजाजत दे दी। वजू मतलब जहाँ नमाज पढ़ने से पहले नमाज़ी हाथ-पाँव धो कर कुल्ला कर सकें। इसपर कुछ एन.जी.ओ. ने आपत्ति दर्ज करवाई और कोर्ट से वहाँ वजू की जगह बनाने पर स्टे ले लिया। अदालती मामला होने के कारण यहाँ फ़िलहाल कोई कुल्ला नहीं करता, पाँव नहीं धोता, वजू नहीं कर रहा। वो सब करने के लिए बल्कि उस से ज्यादा करने के लिए तो पूरा हिन्दुओं का धर्म ही है ना! इतनी छोटी जगह क्यों ली जाए उसके लिए भला?
🚩 बाकी, जब गर्व से कहना हो कि हम सदियों में नहीं हारे, हज़ारों साल से नष्ट नहीं हुए तो अब क्या होंगे ? या ऐसा ही कोई और मुंगेरीलाल का सपना आये, तो ये मंदिर जरूर देखिएगा। हो सकता है सेकुलर नींद से जागने का मन कर जाए।
🚩 इस्लामिक आक्रमणकारीयों ने भारत मे आकर हजारों-लाखों मदिरों तोड़े, उसकी जगह मस्जिदें बनवा लिया और आज बड़े-बड़े मन्दिर सरकारी नियंत्रण में है वे अपनी मनमानी से उसमें से धन खर्च करते हैं, ऑफिसर भ्रष्टाचार करते हैं, हिंदुओं के पैसे से हिंदुओं के विकास के लिए उन पैसे का उपयोग नहीं हो रहा है बल्कि अल्पसंख्यक समुदाय के लिए किया जाता है, पहले भी हिंदू समाज सो रहा था आज भी वही हाल है इसलिए हर जगह लुटा जा रहा है अब समय है जगने का नहीं तो देरी हो जाएगी फिर कुछ हाथ नहीं आएगा।
होली 2021: क्यों किया जाता है होलिका दहन, जानिए इससे जुड़ी पौराणिक कथा
चैतन्य भारत न्यूज
होलिका दहन हर साल फाल्गुन पूर्णिमा के दिन किया जाता है। फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा तक होलाष्टक होता है। यह पूरा समय होली के उत्सव का होता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हम इसे क्यों मनाते हैं। होली का क्या महत्व है और इसे मनाए जाने के पीछे क्या वजह है। तो आइए जानते हैं इसके पीछे की रोचक पौराणिक कहानी।
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होली से जुड़ी पौराणिक कहानी
पौराणिक मान्यता के मुताबिक, दैत्यराज हिरण्यकश्यप खुद को भगवान मानता था, लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु के अलावा किसी की पूजा नहीं करता था। यह देख हिरण्यकश्यप काफी क्रोधित हुआ और उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए।
होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे आग से कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद आग से बच गया, जबकि होलिका आग में जलकर भस्म हो गई। उस दिन फाल्गुन मास की पुर्णिमा थी। इसी घटना की याद में होलिका दहन करने का विधान है। बाद में भगवान विष्णु ने लोगों को अत्याचार से निजात दिलाने के लिए नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया।
होलिका दहन का इतिहास
कहते हैं कि प्राचीन विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी में मिले 16वीं शताब्दी के एक चित्र में होली पर्व का उल्लेख मिलता है। इसके अलावा विंध्य पर्वतों के पास रामगढ़ में मिले ईसा से 300 साल पुराने अभिलेख में भी इसका उल्लेख मिलता है। यह भी माना जाता है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने पूतना राक्षसी का वध किया था। इस खुशी में गोपियों ने उनके साथ होली खेली थी।
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आज हम आप को Holi 2020 Festival के बारे में विस्तार से Hindi में बताएँगे, जैसे 2020 में होली कब है? (when is Holi in 2020), होलिका दहन की कहानी (Story of the Holika Dahan), हमें होली कैसे मनानी चाहिए (How should we celebrate Holi?) आदि.
कक्षा 12 में था जब हॉस्टल छोड़ दे मैं इस मकान में आया था मुझे अभी याद है मैं सो नहीं पाया था क्योंकि हॉस्टल से मेरी विदाई नहीं मैं निकाला गया था सच का साथ देना आसान नहीं है हॉस्टल वार्डन की शिकायत की थी मैंने वो अलग बात है 7 दिन बाद बुलावा आया पर एक बार निकल जाओ वापस आने में वह मजा नहीं आता यहां भी मन लग गया बनारस विश्वविद्यालय में हॉस्टल न मिलने के कारण बुंदेलखंड कॉलेज में एडमिशन लिया यहां से कॉलेज पास था तो पैदल जाकर कॉलेज जाते थे रास्ते में मिलने वाली बैंक वाली मैम से ही मिल लिया करते थे मोहल्ले में छोटा सा लड़का किट्टू राघव और दो बहने अंकल आंटी एक पूरा परिवार मिल गया दादा के रूप में एक गुस्सैल व्यक्ति और उनका परिवार हंसते खेलते दिन निकल जाते योग का अभ्यास भी यही किया था और दो-तीन महीने एक युवक किराए के लिए कमरा ढूंढ रहा था और मुझे मिल गए और जो कि मेरे 1 साल तक रूम पार्टनर रहे भैया के साथ भी अच्छा हो रहा रोज शाम को मैं किट्टू राघव और 2 3 मोहल्ले के और बच्चे क्रिकेट खेलते और ऑडियंस के रूप में 3-4 छत पर लड़कियां होती थी... कहानी यह बहुत बड़ी होगी शब्द बयान शायद ना कर पाएं पर यह मकान छोटा नहीं है जहां परिवार हो वहां घर जहां भगवान वह मंदिर मुझे सब इसी में मिल गया था
b.a. सेकंड ईयर आया विक्रम भैया रूम छोड़ कर चले गए और सौरव मिश्रा नामक नया रूम पार्टनर हमें मिला मेरे दर्शनशास्त्र के टीचर का रिश्तेदार था वरना रूम पाटनर से मेरा विश्वास उठ चुका था पर एक नया दोस्त भी मिला पहले 6 महीने मजेदार नहीं थे पर जब पागलपन का दौरा आया तो अगले 6 महीने सबसे अच्छे थे लोगों को जाना उनको समझा रविवार को मौन व्रत भी था बाकी 6 दिन 2 दिन अजय 2 दिन सौरभ व 2 दिन में कमरे की झाड़ू लगाते और खाना बनाते हैं सब सेट था फिर तीसरा साल आया सौरभ कानपुर चला गया मेरा भी बीए पूरा हो चुका था बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में कानून के छात्र के रूप में मैंने भी प्रवेश ले लिया था अजय कानपुर पढ़ने चला गया तब मेरा और इस कमरे का ताल्लुक बड़ा यहां पर मैंने अष्टांग योग प्रारंभ किया इस कमरे का एक और नाम आया पाठक टेंपल न जाने 30 से 40, बार यहां दोस्तों के जन्मदिन मनाए लंगर कई बार अपने कराटे का अभ्यास भी नहीं किए और हां जनवरी मैं जो आंगन की शरीफे का फल आ आता था और पूरा मोहल्ला खाता था ना जाने कितनी यादें जुड़ी हैं मकान से और आज मकान मालिक ने कहा इसे तो तोड़ना है मकान मालिक गोस्वामी जी आज तक के मेले हर व्यक्ति से सबसे सरल व्यक्ति लगे संगीत के प्रेमी व्यक्ति शुरू में वह भी यहीं पर संगीत का अभ्यास किया करते थे बड़ा आनंद सुबह की शुरुआत संगीत के साथ होती थी एलवी के तीसरे वर्ष में प्रवेश करने वाला
24 तारीख को आखरी पेपर द्वितीय वर्ष का घर घर चला जाऊंगा पर इस मकान की याद है कभी नहीं भूल पाऊंगा और शायद यही कारण मैं इस मकान को फिर खरीद लूंगा और वापस उसी रूप में लाऊंगा यह मकान छोटा जरूर है पर इसमें मुझे बहुत कुछ दिया है भगवत गीता के अनुसार हर जमीन का अपना एक आयाम होता है यह पवित्र जमीन है मेरे लिए मेरे ज्ञान की शक्ति जागरण का केंद्र भी है शायद इसलिए भी अच्छा लगा क्योंकि यहां मैं था जो राज्य करता था मतलब मेरे अलावा किसी के यहां नहीं चलती थी कभी कभी लगता है यह भी कारण हो सकता है जो इतना लगाव है इसके आंगन में लगे पेड़ मैंने जीआईसी में लगाएं खैर अब मोहल्ला भी खाली हो चुका पर याद रहेंगे होलिका दहन जो यहां बनाई थी सर्दियों में आग जलाई थी वह खाना बनाना जो यहां सीखा था
अभी तक में एक सन्यासी की तरह जी रहा था और अभ्यास भी वैसा ही कर रहा था पर मैं अपनी कमाई से इसी मकान को खरीदना चाहूंगा दो कमरे एक छोटी सी किचन एक आंगन जिसमें पेड़ हो गिलहरियां खेलती हूं. बड़ा मकान बन के यहां से धन जरूर मिल जाएगा पर छोटे मकान का सुख शायद ना मिल पाएगा....
🎈💚💜💛💝होली की शुभ कामनायें💝💛💜💚🎈 होली का त्योहार वातावरण को रंग और उमंग से भर देने और खुशियां मनाने का त्योहार है। इसका पौराणिक महत्व है। होली का संबंध न सिर्फ होलिका-प्रह्लाद बल्कि भगवान शिव-पार्वती और राधा-कृष्ण से भी है। होली मनाने के पीछे कई प्रकार की मान्यताएं हैं। इन्हीं मान्यताओं के आधार पर पुराणों में होली की कुछ कहानियों का जिक्र मिलता है । 🔵 होली राधा-कृष्ण की:---हमारे देश के ब्रज क्षेत्र, यानी मथुरा, वृंदावन, गोकुल, बरसाना और नंदगांव के आराध्य देवता भगवान श्री कृष्ण जी और श्री राधा जी की प्रेम कहानी को भी होली से जोड़कर देखा जाता है। बसंत ऋतु में रंग खेलना भगवान कृष्ण की लीलाओं में से एक माना गया है। वहीं रंगों के त्योहार से एक दिन पहले रात में होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत और अहं के अंत के रूप में देखा जाता है। 🔴 शिव-पार्वती और कामदेव:---पुराणों में इस बात का वर्णन मिलता है कि जब माँ पार्वती जी का भगवान शिव जी से विवाह करने का समय आया तो उस समय भगवान शिव अपनी तपस्या में लीन थे। ऐसे में कामदेव ने पार्वती जी के विवाह के कारण शिव जी की तपस्या भंग कर दी। तो क्रोध में आकर शिवजी ने कामदेव को भस्म कर दिया। फिर जब शिव जी ने पार्वती जी को देखा तो उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। मगर पति की मौत से दुखी कामदेव की पत्नी रति के भगवान शिव से प्रार्थना करने पर प्रभु ने उन्हें जीवित कर दिया, तब से रंगों का त्योहार मनाया जाने लगा। 🔵 भक्त प्रह्लाद और होलिका:---भक्त प्रह्लाद की भगवान श्री विष्णु जी के प्रति भक्ति को देखकर उनके नास्तिक पिता हिरणकश्यप ने उसे अपनी बहन होलिका के हाथों मरवाना चाहा। लेकिन हुआ इसका उल्टा। बुराई पर अच्छाई की जीत हुई। होलिका जलकर राख हो गई और भक्त प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हो सका। 🔴 कंस और पूतना की कहानी:---माता देवकी की कोख से भगवान कृष्ण के जन्म लेने से पहले ही यह आकाशवाणी हुई थी कि कंस का अंत श्री कृष्ण के हाथों ही होगा। उसके बाद से कंस श्री कृष्ण को मरवाने के लिए हर वक्त कोई न कोई चाल चलता रहता था। इसी क्रम में उसने राक्षसी पूतना से मदद मांगी। पूतना ने जब सुंदर स्त्री का वेश धरकर पालने में लेटे कन्हैया को अपना विषैला स्तनपान कराने का प्रयास किया तो श्री कृष्ण उसकी सच्चाई को समझ गए और उसका वध कर दिया। उस दिन फाल्गुन पूर्णिमा थी। तब से पूतना के वध की खुशी में होली मनाई जाने लगी। 🔵 https://www.instagram.com/p/BvOUuqkACcx/?utm_source=ig_tumblr_share&igshid=149vc6k5phhlu
'फाल्गुन आयो रे...', जानिए कब है होली? फाल्गुन महीने में महाशिवरात्रि भी पड़ती है तो वहीं इस माह में एकादशी और संकष्टी भी आती है और इस माह का समापन होली से होता है।
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फाल्गुन का महीना मस्ती का महीना कहलाता है, कड़कड़ाती सर्दी के बाद धूप की गर्मी ना केवल इंसान को ऊर्जा से भर देती है बल्कि वो मन में चंचलता भी पैदा करती है, जिसकी वजह से ही इंसान का मन इस मौसम में काफी मस्ती भरा होता है। इस महीने का प्रारंभ आज से हो गया है और इसका समापन होली के त्योहार के साथ 7-8 मार्च को होगा, इसी महीने में महाशिवरात्रि भी पड़ती है तो वहीं इस माह में एकादशी और संकष्टी भी आती है। इस महीने की शुरुआत होते ही ब्रजवासियों के चेहरे पर मुस्कान बिखर जाती है क्योंकि फाल्गुन शुरू होते ही फगुआ जो शुरू हो जाता है, इस महीने कभी वो फूलों से , कभी रंग से तो कभी दूध-दही और बांस से होली खेला करते हैं। चलिए आपको विस्तार से बताते हैं इस महीने के त्योहारों और व्रत की लिस्ट जिसे देखकर आप अपने पूरे महीने की रूपरेखा तैयार कर सकते हैं।
फाल्गुन माह के व्रत-त्योहार
9 फरवरी- संकष्टी चतुर्थी व्रत
12 फरवरी- यशोदा जयंती
13 फरवरी- शबरी जयंती
14 फरवरी- जानकी जयंती
16 फरवरी- विजया एकादशी
18 फरवरी- महाशिवरात्रि,
18 फरवरी- प्रदोष व्रत
19 फरवरी- पंचक प्रारंभ
20 फरवरी- सोमवती अमावस्या
22 फरवरी- फुलैरा दूज
23 फरवरी- विनायक चतुर्थी
24 फरवरी- पंचक समाप्त, 24 फरवरी- माता शबरी जयंती
27 फरवरी- होलाष्टक प्रारंभ
3 मार्च- आमलकी एकादशी
3 मार्च- रंगभरी एकादशी
4 मार्च- प्रदोष व्रत 4 मार्च- गोविंद द्वादशी
7 मार्च- होलिका दहन
8 मार्च- होलाष्टक समाप्त, होली, फाल्गुन मास समाप्त
क्यों मनाते हैं होली?
होली प्रेम, हंसी, दुलार और बुराई पर अच्छाई का पर्व है, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाले इस पर्व से जुड़ी तो कई कहानियां है लेकिन सबसे प्रचलित कहानी भक्त प्रहलाद और हिरण्याकश्यप असुर की है। प्रहलाद बहुत बड़ा विष्णु भक्त था लेकिन हिरण्याकश्यप को ये बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था, वो खुद को ही ईश्वर मानता था इसलिए सोचता था कि उसका बेटा प्रहलाद उसकी पूजा करे लेकिन ऐसा हुआ नहीं, वो अपने ही बेटे को काफी प्रताड़ित करता था। उसकी एक बहन थी होलिका, जिसे कि वरदान मिला था कि वो अग्नि से नहीं जलेगी इसलिए हिरण्याकश्यप ने कहा कि वो प्रहलाद को लेकर आग में बैठ जाए लेकिन हुआ ठीक उल्टा, होलिका आग में जल गई और प्रहलाद सकुशल आग से वापस आ गया। इसी वजह से होलिका दहन किया जाता है और इसके दूसरे दिन रंग वाली होली खेली जाती है। माना जाता है होलिका दहन के साथ बुराईयों का नाश होता है और प्रहलाद यानी खुशी का संचार होता है।
Holi Festival इतिहास, महत्व, होली त्यौहार कब और क्यों मनाते है
Holi Festival इतिहास, महत्व, होली त्यौहार कब और क्यों मनाते है
Holi Festival इतिहास, महत्व, होली त्यौहार कब और क्यों मनाते है: आज हम आपको in सभी चीजो की जानकारी देंगे hindi में होली कैसे मनाते है, होली का महत्व, दीपावली क्यों मनाई जाती है, होली मनाने का ढंग , होली निबंध, होलिका कौन थी, होली के बारे में जानकारी, होलिका के पति का नाम. हमारे देश में अलग-अलग धर्मों के लोगों की अपनी-अपनी अलग सभ्यताएं हैं, इसी तरह विभिन्न सभ्याताओं में कई अलग अलग त्योहार भी मनाए…
होलिका दहन की कहानी :- ‘पुराण’ शब्द का उद्गम संस्कृत के ‘पुर नव’ शब्द से हुआ है, जिसका अर्थ है ‘जो नगर में नया है’। पुराण तथ्यों/ बातों को नए ढंग से प्रस्तुत करने का तरीका है। यह रंग-बिरंगे कथा-कहानियों से परिपूर्ण ग्रन्थ है। सतह पर तो ये कहानियाँ काल्पनिक लगती हैं परन्तु वास्तव में इनमें अति सूक्ष्म सत्य है।
एक असुर राजा हिरण्यकश्यप चाहता था कि सभी उसकी पूजा करें। परन्तु उसका अपना ही पुत्र…
होली रंगों का त्योहार है,यह तो सभी को पता होगा कि होली कब है, अगर नहीं पता है तो जान ले इस साल होली 9 मार्च को बनाया जाएगा ; पर क्या आपको पता है कि होली क्यों बनाया जाता है? होली(Holi) का नाम सुनते ही मन में खुशी और उल्लास की भावना उत्पन्न हो जाती है । होली रंगों का त्योहार है जिसमें बच्चे से लेकर बूढ़े व्यक्ति तक शामिल होकर धूमधाम से इस दिन को सबके साथ मिलकर खुशियां से मनाते हैं,इसलिए होली को सब खुशियों का त्यौहार भी कहते हैं । क्या आपको पता है,भारत देश जैसा पूरे विश्व में कोई दूसरा देश नहीं है जहां लोग एक साथ मिलकर बिना किसी भेदभाव के इस त्यौहार को मनाते हैं ।
यह त्यौहार हिंदुओं का प्रमुख और प्रचलित त्यौहार है लेकिन फिर भी होली को हर धर्म के लोग एक साथ मिलकर प्रेम से बनाते हैं जिसकी वजह से यह त्यौहार एक दूसरे के प्रति स्नेह बढ़ाती है।
हमारे देश में जितने भी त्यौहार मनाए जाते हैं उन सब के पीछे एक पौराणिक और सच्ची कथा छुपी हुई होती है ठीक उसी तरह होली के रंग के साथ खेलने के पीछे भी बहुत सी कहानियां है आज इस लेख में हम यह जानेंगे कि होली क्या है और क्यों मनाते हैं ।
होली(Holi) क्या है (what is holi in Hindi)
होली हिंदुओं का प्रमुख त्यौहार में से एक है। होली का दिन बड़ा ही शुभ होता है, यह त्योहार हर साल वसंत ऋतु के समय फागुन यानी कि मार्च के महीने में आता है, जिसे पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है और यह सबसे ज्यादा खुशी देने वाला त्यौहार में से एक है यह बसंत का त्यौहार है । इसके आने पर सर्दी खत्म हो जाती है और गर्मी की शुरुआत होती है ।
इस साल 9 मार्च को देशभर में होली का पर्व खेली जाएगी। होली के त्योहार उत्सव फागुन के अंतिम दिन होलिका दहन की शाम से शुरू होकर और अगले दिन सुबह सभी लोग आपस में मिलते हैं , एक दूसरे से गले लगते हैं और एक दूसरे को रंग और अबीर लगाते हैं। इस दौरान पूरा वातावरण बेहद सुंदर और रंगीन नजर आती है । इस पर्व को एकता प्यार खुशी सुखी और बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में जाना जाता है।
होली(Holi) क्यों मनाई जाती है?अब हम लोग जानेंगे कि आखिर होली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है?
Holi के त्यौहार से अनेक पौराणिक कहानियां जुड़ी हुई है, जिसमें से सबसे प्रचलित कहानी है पहलाद और उनकी भक्ति को माना जाता है। कहानी यह है कि प्राचीन काल में हिरण कश्यप नाम का एक बलशाली अशुर हुआ करता था , जिसे ब्रह्मदेव द्वारा यह वरदान मिला था, कि उसे कोई इंसान या कोई जानवर नहीं मार सकता, ना ही कोई अस्त्र या शस्त्र से ,ना घर के बाहर ना घर के अंदर, ना ही दिन में और ना ही रात में ,ना ही धरती पर और ना ही आसमान में ।
अशूर(हिरण्यकश्यप) को इन अश्मित शक्ति होने की वजह से वह घमंडी हो गया था और खुद को ही भगवान समझता था। अपने राज्य के सभी लोगों के साथ अत्याचार करता था, और सभी को भगवान विष्णु की पूजा करने से मना करता था और अपनी पूजा करने का निर्देश देता था क्योंकि वह अपने छोटे भाई की मौत का बदला लेना चाहता था जिसे भगवान विष्णु ने मारे थे।
हिरण कश्यप का एक पुत्र था जिसका नाम पहला था।एक अशुर का पुत्र होने के बावजूद वह अपने पिता का बात ना सुनकर वह भगवान विष्णु की पूजा करता था।
हिरन कश्यप केक शॉप से सभी लोग उसे भगवान मानने के लिए मजबूर हो गए थे शिवाय उसके इकलौते पुत्र पहलाद के।
हिरण्यकश्यप ने काफी बार प्रयास किया कि उसके फिल्म भगवान विष्णु की भक्ति छोड़ दें, मगर वह हर बार अपने प्रयास में असफल होते रहें। स्क्रीन में उसने अपने ही पुत्र की मृत्यु करने का फैसला लिया।
अपनी इस घिनौने चाल में उसने अपनी बहन होलिका से सहयोग मांगी, होलिका को भी भगवान शिव द्वारा एक वरदान प्राप्त था जिसमें उसे एक वस्त्र मिला था। इस वस्त्र को तन पर लपेटे से आग से कोई भी होलिका को नहीं चला सकता था। हिरण्यकश्यप ने एक षड्यंत्र रचा और होलिका को यह आदेश दिया कि वह पहलाद को अपने गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए। आग में होली का नहीं चल सकती क्योंकि उसे यह वरदान मिला है। उसका पुत्र उस आग में जलकर भस्म हो जाएगा जिससे सब को यह सबक मिलेगा कि अगर उसकी बात किसी ने नहीं मानी तो उसके साथ भी यही होगा।
जब होलिका प्रहलाद को लेकर आग में बैठी तब पहलाद भगवान विष्णु का जाप कर रहे थे। अपने भक्तों की रक्षा करने भगवान का सबसे बड़ा कर्तव्य होता है इसलिए उन्होंने उस समय एक ऐसा तूफान आया जिससे कि होलिका के शरीर से लिपटा वस्त्र उड़ गया। आग से ना जलने वाला वरदान खत्म और होलिका जलकर भस्म हो गई। दूसरी और भक्त पहलाद बच गया। इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में देखते हैं और उसी दिन से होली का उत्सव की शुरुआत की गई और होली को मनाने के लिए लोग रंगों से खेलने लगे।
होली के ठीक 1 दिन पहले होलिका दहन होता है जिसमें लकड़ी, हंस और गाय का गोबर से बने ढेर में इंसान अपनी आपकी बुराई भी इसके चारों और घूम कर आग में जलाते हैं। और अगले दिन से नयी शुरुआत रंग से करते हैं ताकि पूरा साल खुशियों से भरा हुआ रहे।
होली के दिन क्या नहीं करना है।
1. Chemical से बने रंगों या synthetic रंगों का इस्तेमाल बिल्कुल भी ना करें
2.आंखों को किसी भी व्यक्ति के आंख, नाक, मुंह और कान में ना डालें।
3. रंगो को किसी भी व्यक्ति पर भी जबरदस्ती ना डालें।
4. सस्ते Chinese रंगो से दूर रहें क्योंकि वह त्वचा के लिए बहुत हानिकारक है।
5.Eczema से पीड़ित व्यक्ति रंगों से दूर रहने की कोशिश करें
होली के दिन क्या करना है।
1. होली के दिन Organic and naturals रंगों का इस्तेमाल करें।
2. अपने चेहरे,शरीर और बाल पर कोई भी तेल लगा ले ताकि जब आप रंग को नहाते वक्त छुड़ाने की कोशिश करें तो वह आसानी से छूट जाए।
3. इस दिन आप जो कपड़े पहने उससे पूरे शरीर ढका होना चाहिए ताकि जब कोई दूसरा व्यक्ति आपको chemical से बने रंग लगाए तो आपकी त्वचा कपड़ों की वजह से बच जाए।
4. रंगों से खेलने के बाद अगर आपको त्वचा परेशानी हो जाए तो तुरंत अपने नजदीकी अस्पताल में इलाज करवाएं।
5. Asthma पीड़ित व्यक्ति Facemask का उपयोग रंग खेलते वक्त जरूर करें ।