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asksabhaniblog · 4 years ago
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asksabhaniblog · 4 years ago
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Year – 1959 Language – Hindi Country – India Producer – Subodh Mukherji Production Director – Subodh Mukherji Music Director – Shankar Box-Office Status – Cast – Helen, Mala Sinha, Abhi Bhattacharya, Neeta, Kanchanmala, Pronoti, Dev Anand Miscellaneous Information – Not Available. Song Year Singers […]
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asksabhaniblog · 4 years ago
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Nishan 1949
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asksabhaniblog · 4 years ago
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asksabhaniblog · 4 years ago
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asksabhaniblog · 6 years ago
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asksabhaniblog · 6 years ago
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asksabhaniblog · 7 years ago
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lyric written for Amrapali, music by Shankar Jaikishan
Written by Shailendra for film #Amrapali
no information about this was got recorded or not 
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asksabhaniblog · 7 years ago
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asksabhaniblog · 7 years ago
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asksabhaniblog · 7 years ago
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Lyricist Sameer Anjan Gets The Guinness World Record Certificate Celebra...
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asksabhaniblog · 7 years ago
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asksabhaniblog · 7 years ago
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asksabhaniblog · 7 years ago
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पिया तोसे नैना लागे रे, नैना लागे रे जाने क्या हो अब आगे रे, नैना लागे रे पिया तोसे नैना लागे रे जग ने उतारे, धरती पे तारे, पर मन मेरा मुरझाए, हाय
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asksabhaniblog · 7 years ago
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On the 90th anniversary of Mohammad Rafi's birth, Asif Anwar Alig pays tribute to the man who could not return to the city that gave him his start
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asksabhaniblog · 7 years ago
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‘ दोस्ती ’ फिल्म में संगीत दिया था लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने लेकिन  माउथऑर्गन बजाया था आर.डी. बर्मन ने : ‘ माधुरी ’ के संस्थापक-संपा...
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asksabhaniblog · 7 years ago
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गीतकार वर्मा मलिक(13/04/1925-15/03/2009) शादियों में दो फिल्मी गीत अनिवार्य रूप से बजतेहैं. बिदाई के समय मोहम्मद रफी का गाया गीत 'बाबुल की दुआएं लेती जा' (गीतकार : साहिर लुधियानवी) और बारात के समय मोहम्मद रफी का ही गया गीत 'आज मेरे यार की शादी है'-इतने लोकप्रिय गीत को लिखने वाले गीतकार का नाम है वर्मा मलिक।पंजाबी फिल्मों में गीत लिखकर करियर शुरू करने वाला यह गीतकार एक समय में वक्त की धुंध में खो गया क्योंकि हिंदी फिल्मों में आकाश पाने की जद्दोजहद करते करते वर्मा मलिक हताश हो चुके थे। अकस�� अचानक एक घटना जीवन की धारा बदल देती है और वर्मा मलिक के साथ भी ऐसा ही हुआ।
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बरकत राय मलिक उर्फ वर्मा मलिक फरीदाबाद (अब पाकिस्तान में) के रहने वाले थे। बहुत कम उम्र में ही उन्होंने कविता लिखना शुरू कर दिया था। वो दौर आजादी की लड़ाई का था। स्कूल में पढ़ रहे वर्मा मलिक अंग्रेज़ों के खिलाफ गीत लिखकर कांग्रेस के जलसों और सभाओं में सुनाया करते थे। वो कांग्रेस पार्टी के सक्रिय सदस्य बन गए। इसका अंजाम यह हुआ कि उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया, लेकिन कम उम्र होने की वजह से वो जल्द ही रिहा भी कर दिए गए। अभी वो अपने गीतों की प्रशंसा और सराहना में मग्न ही थे कि देश का विभाजन हो गया। ख़ौफनाक परिस्थितियों में वर्मा ज़ख्मी हालत में फ़रीदाबाद से जान बचाकर भागे।विभाजन के हंगामे में उन्हें पैर में गोली लगी। उन्होंने दिल्ली में शरण ली। दिल्ली आकर उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि पेट पालने के लिए वो क्या करें। संगीत निर्देशक हंसराज बहल के भाई वर्मा मलिक के दोस्त थे उनके कहने पर वर्मा ने मुंबई की राह पकड़ी। हंसराज बहल ने वर्मा को पंजाबी फ़िल्म 'लच्छी' में गीत लिखने का काम दिया और देखते देखते वर्मा पंजाबी फ़िल्मों के हिट गीतकार बन गए। इसी समय उनके मित्रों ने उन्हें नाम बदलने की सलाह दी और बरकत राय मलिक, वर्मा मलिक के नाम से फ़िल्मी दुनिया में पहचाने जाने लगे।हंसराज बहल की निकटता में वर्मा ने संगीत की समझ भी विकसित की और यमला जट सहित तीन पंजाबी फ़िल्मों में संगीत भी दिया। बहुमुखी प्रतिभा के मालिक इस शख़्स ने करीब 40 पंजाबी फ़िल्मों में गीत लिखे, दो तीन फ़िल्मों के संवाद लिखे और तीन फ़िल्मों का निर्देशन भी किया। लेकिन छठा दशक शुरू होते होते मुंबई में पंजाबी फ़िल्मों का बाज़ार ठप्प पड़ गया। नतीजा यह हुआ कि पंजाबी फ़िल्मों के सबसे लोकप्रिय गीतकार वर्मा मलिक बेरोजगार हो गए। हांलाकि 1953 में उन्होंने हिंदी फ़िल्म 'चकोरी' के गीत लिखने का मौक़ा मिला था इसके निर्देशक भी हंसराज बहल थे, लेकिन फिल्म हिट नहीं हो सकी कुछ और फ़िल्मों में भी वर्मा ने हिदी गीत लिखे।फ़िल्म 'दिल और मोहब्बत' के लिए ओपी नैयर के संगीत निर्देशन में लिखा गीत 'आंखों की तलाशी दे दे मेरे दिल की हो गयी चोरी' लोकप्रिय भी हुआ, लेकिन ��र्मा मलिक को हिंदी फ़िल्मों के गीत लिखने के और मौके नहीं मिले। पंजाबी फिल्मों की व्यस्त्तता की वजह से वर्मा ने भी अधिक भागदौड़ नहीं की। मूल रूप से पंजाबी और उर्दू जानने वाले वर्मा मलिक को मुंबई आते ही हिंदी की अहमियत का एहसास हो गया था। पंजाबी गीत लिखने के दौर में उन्होंने बाक़ायदा हिंदी लिखनी पढ़नी सीखी। उन्होंने इस भाषा को कितनी गहराई से पढ़ा इसका सुबूत फ़िल्म 'हम तुम और वो' के इस गाने से मिलता है प्रिये प्राणेश्वरी.. हृदयेश्वरी, यदि आप हमें आदेश करें तो प्रेम का हम श्रीगणेश करें..." । यह इकलौता ऐसा गाना था जिसमें गूढ़ हिंदी शब्दों का प्रयोग किया गया और गाना बेहद हिट हुआ। बेरोज़गारी का दौर लंबा होने लगा तो वर्मा मलिक गुमनाम से हो गए। उन्होंने काफी भागदौड़ की मगर कोई फायदा नहीं हुआ। विभाजन के बाद वर्मा मलिक के जीवन का सबसे कड़ा समय खिंचता ही चला गया। हताश होकर उन्होंने फ़ैसला कर लिया कि वो गीत लिखने की तलाश बंद कर अब कोई दूसरा काम शुरू कर देंगे क्योंकि घर का खर्च चलाना नामुमकिन हो गया था। अब सवाल ये था कि वे क्या काम करें इसी उधेड़ बुन में भटकते हुए के दिन वर्मा फेमस स्टूडियो के सामने से गुज़रे तो उन्हें अपने मित्र मोहन सहगल की याद आयी। उनसे मिलने के दौरान ही कल्याण जी आंनंद जी का ज़िक्र हुआ और गीत लिखने के मौके की तलाश में वर्मा कल्याण जी के घर जा पहुंचे। उस समय मनोज कुमार कल्याण जी के साथ बैठे हुए थे। मनोज कुमार वर्मा मलिक को जानते थे और उनके पंजाबी गीतों के प्रशंसक भी थे। मनोज कुमार ने वर्मा मलिक से पूछा कि क्या नया लिखा है वर्मा ने उन्हें तीन चार गीत सुनाए जिसमें एक गीत यह भी था रात अकेली, साए दो हुस्न भी हो और इश्क भी हो तो फिर उसके बाद इकतारा बोले तुन तुन, मनोज को यह गीत पसंद आ गया और उन्होंने अपनी फ़िल्म 'उपकार' के लिये गीत चुन लिया, लेकिन बदकिस्मती से उपकार में इस गीत की सिचुएशन नही निकल पायी। मनोज कुमार न ये गीत भूले न ही वर्मा मलिक को भूल पाए। उन्होंने अपनी अगली फ़िल्म 'यादगार' के लिये इस गाने को सामाजिक परिप्रेक्ष्य में लिखने को कहा तो वर्मा मलिक ने गीत को इस तरह बदल दिया बातें लंबीं मतलब गोल, खोल न दे कहीं सबकी पोल तो फिर उसके बाद इकतारा बोले तुन तुन, फिल्म 'यादगार' हिट हुई और ये गाना भी। फ़िल्मों में एक हिट से किस्मत बदल जाती है। वर्मा मलिक के साथ भी ऐसा ही हुआ। इसके बाद वर्मा के हाथ में काम ही काम आ गया। सफलता और लोकप्रियता के उजाले ने निराशा और हताशा के अंधेरे को खत्म कर दिया।
रेखा की पहली फ़िल्म 'सावन भादों' में वर्मा के लिखे इस गीत ने कई साल तक धू�� मचाए रखी 'कान में झुमका चाल में ठुमका कमर पे चोटी लटके हो गया दिल का पुर्जा पुर्जा लगे पचासी झटके', हो तेरा रंग है नशीला अंग-अंग है नशीला'
इसके बाद 'पहचान', 'बेईमान', 'अनहोनी', 'धर्मा', 'कसौटी', 'विक्टोरिया न. 203', 'नागिन', 'चोरी मेरा काम', 'रोटी कपड़ा और मकान', 'संतान', 'एक से बढ़कर एक', जैसी फिल्मों में हिट गीत लिखने वाला ये गीतकार जिंदगी को भरपूर अंदाज़ में जीने लगा। गीतकार के लिए सिनेमा के सबसे बड़े सम्मान फ़िल्मफेयर ट्रॉफ़ी ने दो बार वर्मा मलिक के हाथों को चूमा। पहली बार 'पहचान' फ़िल्म के गीत सबसे बड़ा नादान वही है गीत के लिए और फिर फिल्म 'बेइमान' के गीत जय बोलो बेइमान की जय बोलो के लिये। वर्मा मलिक को जब भी मौका मिला अपने गीतों में सामाजिक जागरूकता को शामिल किया। आम आदमी की समस्याएं उनके गीतों में अक्सर मुखर हो उठती थीं। व्यंगात्मक शैली में गीत कहने का उनका अपना अंदाज़ था। उनके साथ करीब 35 फिल्मों में संगीत देने वाली जोड़ी सोनिक-ओमी के ओमी, वर्मा मलिक को याद करते हुए कहते हैं कि डायरेक्टर के सिचुएशन बताते ही गीत का मुखड़ा लिख देने की अद्भुत क्षमता के कारण ही वे वर्मा से बहुत प्रभावित हुए। उस समय ओमी हंसराज बहल की सोहबत में रहा करते थे वहीं उनकी वर्मा से मुलाकात हुई थी। जब ओमी को सोनिक के साथ मिल कर फ़िल्मों में संगीत देने का मौक़ा मिला तो अपनी एक शुरूआती दौर की फ़िल्म 'सज़ा' में उन्होंने वर्मा मलिक से गाने लिखवाए, लेकिन फिल्म फ्लॉप हो गयी। इसके बाद 1970 में फिल्म 'सावन भादो' में ओमी ने वर्मा मलिक से फिर गीत लिखवाए। 'सावन भादों' हिट रही। उसका संगीत भी लोकप्रिय हुआ और वर्मा के गीत भी। कई और फ़िल्में साथ-साथ करने के बाद धर्मा में सोनिक ओमी और वर्मा मलिक की तिकड़ी ने धमाल मचा दिया.खासकर उस फिल्म की कव्वाली इशारों को अगर समझो राज़ को राज़ रहने दो तो सुपरडुपर हिट हुई। ओमी का मानना है कि वर्मा मलिक जनता के लेखक थे। वो आम आदमी के प्यार और परेशानियों को उन्हीं की ज़ुबान में लिखते थे। इतना ही नहीं संगीत की बेहद अच्छी समझ रखने की वजह से वर्मा मलिक गीत की धुन भी तैयार कर देते थे। वर्मा मलिक को हिंदी फिल्मों में प्रवेश दिलाने में अहम भूमिका अदा करने वाले मनोज कुमार भी कहते हैं कि बहुत सहज और सरल वर्मा में बेहद प्रतिभा थी। बेइमान, यादगार, पहचान और सन्यासी फ़िल्मों में उन्होंने न सिर्फ़ गाने लिखे बल्कि इन फ़िल्मों के कई गानों की धुनें वर्मा मलिक ने तैयार की थीं। आठवें दशक में फ़िल्म संगीत में बहुत बदलाव आना शुरू हो गया था। इसी समय वर्मा मलिक की जीवन संगिनी की मौत हो गयी। इस घ��ना ने वर्मा मलिक पर ऐसा ��सर डाला कि उनकी जिंदगी से दिलचस्पी खत्म हो गयी। ऐसे में गीत लिखने का सिलसिला भी रूक गया। धीरे-धीरे वो फिल्मी दुनिया से ही नहीं पूरी दुनिया से कट कर अपने कमरे में सिमट गए। उनके पुत्र राजेश मलिक असिस्टेंट डायरेक्टर हैं लेकिन उनके बहुत कहने पर भी वर्मा मलिक ने कलम नहीं उठायी। 2009 में 15 मार्च को उन्होंने बहुत ख़ामोशी से दुनिया से विदा ले ली। इतनी ख़ामोशी से कि उनके मरने का जि़क्र अगले दिन किसी अख़बार में भी नहीं हुआ।
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