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#यथार्थ_भक्ति_बोध_Part6 के आगे पढ़ें
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#यथार्थ_भक्ति_बोध_Part7
"लोक लाज मर्याद जगत की, तृण ज्यूं तोड़ बगावै।
तब कोई राम भक्त गति पावै।।"
इस प्रकार विचार करके दण्डवत् प्रणाम करें। मन में किसी प्रकार का संकोच न रखें, संसार की बातों पर ध्यान न दें। सतगुरु ज्ञान को आधार बनाकर भक्ति करें और अपने जीवन का कल्याण करायें।
5- ज्ञान यज्ञ:-
सद्ग्रन्थों का अध्ययन तथा तत्वदर्शी संत का सत्संग ‘ज्ञान यज्ञ‘ कहलाता है। गीता अध्याय 4 श्लोक 33 में कहा है कि हे परंतप अर्जुन! द्रव्यमय यज्ञ की अपेक्षा ‘‘ज्ञान यज्ञ’’ श्रेष्ठ है। सारे के सारे कर्म अर्थात् सर्व सम्पूर्ण कर्म ज्ञान में समाप्त हो जाते हैं। (गीता अध्याय 4 श्लोक 33)
गीता अध्याय 4 श्लोक 32 से 41 तक यही बताया है कि:-
🌿भावार्थ है कि:- मनमाना आचरण करके जो द्रव्यमय यज्ञ करते हैं। जैस कहीं पर मंदिर बनवा दिया। कहीं कम्बल बाँट दिए, कहीं भोजन-भण्डारा कर दिया। इस तरह से किए जाने वाले धन से धार्मिक कर्म द्रव्यमय यज्ञ अर्थात् धर्मयज्ञ कहलाते हैं। इस प्रकार परंपरागत किए जाने वाले धर्मखर्च से पहले तत्वज्ञान को जानना चाहिए। गीता अध्याय 4 श्लोक 32 से 41 तक यही बताया है कि सम्पूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान तत्वज्ञान (सूक्ष्मवेद) स्वयं परम अक्षर ब्रह्म ही अपनी वाणी से बोल कर बताता है। उस को तत्वदर्शी सन्त जानते हैं। उन से जानों। उस ज्ञान को जानकर साधक फिर कर्मों में नहीं बँधता। सर्व पाप नष्ट हो जाते हैं। उस तत्वज्ञान के आधार से भक्ति कार्य करने से साधक को परम गति (पूर्ण मोक्ष) प्राप्त होता है। अधिक प्रमाण इसी यज्ञ प्रकरण में ‘धर्म यज्ञ’ में पृष्ठ पर पढ़ें जो पहले लिख दिया है। यह स्पष्ट किया गया है कि देखा-देखी लोकवेद के आधार से धर्म के नाम पर खर्च करने की अपेक्षा ज्ञान यज्ञ अर्थात् तत्वदर्शी सन्त से सत्संग सुनना श्रेष्ठ है। फिर गुरुदीक्षा लेकर उनके मार्गदर्शन अनुसार धर्म के नाम पर दान करना शास्त्रानुकूल साधना होने से श्रेयकर है। ज्ञान यज्ञ समझने के लिए पढ़ें पुस्तक ‘आध्यात्मिक ज्ञान गंगा’ ज्ञान यज्ञ का कुछ अंश आप जी को इस ‘भक्ति बोध’ के अनुवाद में भी पढ़ने को मिलेगा।
(ग) ‘‘तप’’
भक्ति के लिए की जाने वाली साधना में ‘‘तप’’ की भी भूमिका है, परंतु यह तप वह नहीं है जो एक स्थान पर बैठकर हठपूर्वक किया जाता है जो शास्त्र विरुद्ध होने से हानिकारक है। यह वह तप नहीं है जो गीता अध्याय 17 श्लोक 5-6 में कहा है कि जो शास्त्रविधि रहित मनमाना घोर तप को तपते हैं, वे शरीर के कमलों में बैठे देवताओं और मुझे क्रश (दुःखी) करने वाले हैं, उनको राक्षस स्वभाव के जान। यह तप वह तप है जो गीता अध्याय 17 श्लोक 14, 15 व 16 में कहा गया है, उस ‘‘तप’’ को करने का विधान है। जैसे गीता अध्याय 17 श्लोक 14 में कहा है कि (देवद्विज) देवताओं जैसे अच्छे स्वभाव से विद्वानों और तत्वज्ञानी गुरु जी के सत्कार सम्बन्धी जो पवित्रता अर्थात् आत्मा शुद्ध निष्कपट रखना, नम्रता, शुद्धाचरण और अहिंसा यह शरीर से किया जाने वाला तप है। (गीता अध्याय 17 श्लोक 14) भावार्थ है कि सत्संग में आने वाले भक्तों की सेवा करना शरीर सम्बन्धी तप है। (गीता अध्याय 17 श्लोक 14) उद्वेग न करने वाला अर्थात् जोश पैदा न करने वाला सरल, प्रिय, हितकारक यथार्थ सत्संग वचन और जो प्रतिदिन किया जाने वाला स्वाध्याय का अभ्यास यह वाणी सम्बन्धी तप कहा जाता है। (गीता अध्याय 17 श्लोक 15) 🌿भावार्थ:- सरलतापूर्वक यथार्थ ज्ञान कहना जो सर्व के हित के लिए है तथा प्रिय भी है। इसके कहने में यदि कोई उत्पीड़न भी करता है, वह भी भक्त का तप है और जो प्रतिदिन नित्य पाठ तीनों समय (सुबह, दिन तथा शाम) किया जाने वाला है, उसमें बैठकर या चलते-चलते करना यह वाणी सम्बन्धी तप कहा जाता है। (गीता अध्याय 17 श्लोक 15) गीता अध्याय 17 श्लोक 16 में कहा है मानसिक साधना करना, अपने भाव को शुद्ध करने के लिए ज्ञान का मनन-चिन्तन यह मान सम्बन्धी तप कहा जाता है। (गीता अध्याय 17 श्लोक 16)
🌿 भावार्थ: भक्��ि साधना में मन का बहुत योगदान है। इसमें उत्पन्न विकार भगवत चिन्तन में बाधा करते हैं। ज्ञान का मनन करके मन को शुद्ध करना यह मन सम्बन्धी तप है। (गीता अध्याय 17 श्लोक 16)
उपरोक्त गीता अध्याय 17 श्लोक 14 से 16 का निष्कर्ष है कि सत्संग में आने वाले प्रभु के प्यारे बच्चों का सत्कार व सेवा करना शरीर का तप है। सत्य ज्ञान कहने में जो भी कठिनाई आवे, वह वाणी द्वारा किया गया तप है। मन में सांसारिक इच्छायें उत्पन्न होती हैं। उनको तत्वज्ञान के चिन्तन से मन से दूर करना। जैसे मन कार-कोठियों, विषय-विकारों की ओर आकर्षित हो तो तत्वज्ञान से विचार करके शुद्ध करना मन से किया गया तप है। शराब, तम्बाखु-माँस सेवन का त्याग करने में जो मन के साथ ज्ञान से संघर्ष करना पड़ता है, वह मन से किया गया तप है। यह तप करना शास्त्रानुकूल तप कहा जाता है। यह तप करना है।
(घ) जप
जप का अर्थ है मन्त्र का जाप करना। जो दीक्षा मन्त्र (नाम की दीक्षा) तत्वदर्शी सन्त देता है, उस का जाप करना ‘जप’ कहा जाता है। यह दो प्रकार से किया जाता है:- जाप तथा अजपा।
जाप = जो जिव्हा से उच्चारण किया जाता है, वह जाप कहा जाता है। जाप करने का ‘नाम’ शास्त्रानुकूल अर्थात् शास्त्र प्रमाणित होना ही लाभप्रद है। शास्त्रों में कौन-से नाम जाप के कहे हैं, वे जानना अनिवार्य है। भक्ति के लिए प्रमाणित शास्त्र तीन ही हैं:-
1- चारों वेद (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) 2- इन्हीं चारों वेदों का सारांश श्री मद्भगवत गीता 3- सूक्ष्मवेद
1+2 = वेद (चार) और गीता में कौन से मन्त्र जाप करने का निर्देश है पहले चार वेद: यजुर्वेद अध्याय 40 मन्त्र 15 में कहा है कि ‘ओम्’ नाम का जाप कार्य करते-करते स्मरण कर, विशेष कसक के साथ स्मरण कर तथा मनुष्य जन्म का मूल कर्तव्य जानकर स्मरण कर।
श्री मद्भगवत गीता अध्याय 8 श्लोक 13 में गीता ज्ञान दाता प्रभु ने बताया है कि:-
ओम् इति एकाक्षरम् ब्रह्म व्यवहारन् माम अनुस्मरण,
यः प्रयाति तजन देहम् सः याति परमाम् गतिम्।।
🌿अनुवाद: मुझ ब्रह्म का ओम् (ऊँ) यह एक अक्षर है, उच्चारण करके स्मरण करता हुआ जो शरीर त्यागकर जाता है, वह ऊँ के जप से मिलने वाली परमगति को प्राप्त होता है।
भावार्थ: गीता के अन्दर जाप करने का केवल एक नाम ओम् (ऊँ) है। यह ब्रह्म का जाप है। ऊँ के जप से ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। यह ऊँ से होने वाली परम गति है। यही प्रमाण श्री देवी पुराण (गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित सचित्र मोटा टाईप केवल हिन्दी) से सातवें स्कंद के पृष्ठ 562-563 पर श्री देवीजी (दुर्गा जी) ने राजा हिमालय से कहा था कि मेरी पूजा सहित अन्य सब पूजाओं को त्यागकर केवल एक ओम् (ऊँ) नाम का जप कर, ब्रह्म प्राप्ति का उद्देश्य रखकर ऊँ का जप कर जिससे उस ब्रह्म को प्राप्त हो जाएगा। वह ब्रह्म दिव्याकाश में ब्रह्म लोक में रहता है। तू ब्रह्म लोक में चला जाएगा।
क्रमश:.....
🌴अधिक जानकारी के लिए जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा लिखित पुस्तकें जरूर पढ़ें:- ज्ञान गंगा, जीने की राह ,गीता तेरा ज्ञान अमृत, गरिमा गीता की, अंध श्रद्धा भक्ति खतरा-ए-जान ।
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#सत_भक्ति_सदेंश
कबीर परमेश्वर स्वयंभू परमात्मा है जो कभी माता से जन्म नहीं लेता वह स्वयं ही प्रकट होता है।
वह तत्व ज्ञान देने के लिए विद्वानों की तृप्ति के लिए स्वयं ही ज्ञान देने के लिए अपने धाम #सतलोक से आकर कमल के फूल पर प्रकट होता है।
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#सत_भक्ति_संदेश
अधिक जानकारी के लिए सुनिए साधना टीवी पर प्रतिदिन शाम 7:30 बजे जगत्गुरु संत रामपाल जी महाराज के मंगल प्रवचन।

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#सतभक्ति_करना_ज़रूरी_है
सतभक्ति अति आवश्यक है क्योंकि स्तभक्ति बिना मोक्ष असम्भव है।
मानव जीवन में सतभक्ति नहीं की तो परमात्मा के विधान अनुसार चौरासी में महाकष्ट उठाना पड़ता है। सतभक्ति पूर्ण सन्त ही बताते हैं।
🔉सुनिए सन्त रामपाल जी महाराज के मंगल प्रवचन:
👉श्रद्धा टीवी चैनल पर दोपहर 2 बजे से 3 बजे तक ।
#TrueGuru
#TatvdarshiSant

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