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aartividhi · 4 months
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रामायण मनका 108 नामवली: | Ramayan Manka 108
रामायण मनका 108 नामवली
रघुपति राघव राजाराम । पतितपावन सीताराम ॥ जय रघुनन्दन जय घनश्याम । पतितपावन सीताराम ॥ भीड़ पड़ी जब भक्त पुकारे । दूर करो प्रभु दु:ख हमारे ॥ दशरथ के घर जन्मे राम । पतितपावन सीताराम ॥ 1 ॥ विश्वामित्र मुनीश्वर आये । दशरथ भूप से वचन सुनाये ॥ संग में भेजे लक्ष्मण राम । पतितपावन सीताराम ॥ 2 ॥ वन में जाए ताड़का मारी । चरण छुआए अहिल्या तारी ॥ ऋषियों के दु:ख हरते राम । पतितपावन सीताराम ॥ 3 ॥ जनक पुरी रघुनन्दन आए । नगर निवासी दर्शन पाए ॥ सीता के मन भाए राम । पतितपावन सीताराम ॥ 4॥ रघुनन्दन ने धनुष चढ़ाया । सब राजो का मान घटाया ॥ सीता ने वर पाए राम । पतितपावन सीताराम ॥5॥ परशुराम क्रोधित हो आये । दुष्ट भूप मन में हरषाये ॥ जनक राय ने किया प्रणाम । पतितपावन सीताराम ॥6॥ बोले लखन सुनो मुनि ग्यानी । संत नहीं होते अभिमानी ॥ मीठी वाणी बोले राम । पतितपावन सीताराम ॥7॥ लक्ष्मण वचन ध्यान मत दीजो । जो कुछ दण्ड दास को दीजो ॥ धनुष तोडय्या हूँ मै राम । पतितपावन सीताराम ॥8॥ लेकर के यह धनुष चढ़ाओ । अपनी शक्ति मुझे दिखलाओ ॥ छूवत चाप चढ़ाये राम । पतितपावन सीताराम ॥9॥ हुई उर्मिला लखन की नारी । श्रुतिकीर्ति रिपुसूदन प्यारी ॥ हुई माण्डव भरत के बाम । पतितपावन सीताराम ॥10॥ अवधपुरी रघुनन्दन आये । घर-घर नारी मंगल गाये ॥ बारह वर्ष बिताये राम । पतितपावन सीताराम ॥11॥ गुरु वशिष्ठ से आज्ञा लीनी । राज तिलक तैयारी कीनी ॥ कल को होंगे राजा राम । पतितपावन सीताराम ॥12॥ कुटिल मंथरा ने बहकाई । कैकई ने यह बात सुनाई ॥ दे दो मेरे दो वरदान । पतितपावन सीताराम ॥13॥ मेरी विनती तुम सुन लीजो । भरत पुत्र को गद्दी दीजो ॥ होत प्रात वन भेजो राम । पतितपावन सीताराम ॥14॥ धरनी गिरे भूप ततकाला । लागा दिल में सूल विशाला ॥ तब सुमन्त बुलवाये राम । पतितपावन सीताराम ॥15॥ राम पिता को शीश नवाये । मुख से वचन कहा नहीं जाये ॥ कैकई वचन सुनयो राम । पतितपावन सीताराम ॥16॥ राजा के तुम प्राण प्यारे । इनके दु:ख हरोगे सारे ॥ अब तुम वन में जाओ राम । पतितपावन सीताराम ॥17॥ वन में चौदह वर्ष बिताओ । रघुकुल रीति-नीति अपनाओ ॥ तपसी वेष बनाओ राम । पतितपावन सीताराम ॥18॥ सुनत वचन राघव हरषाये । माता जी के मंदिर आये ॥ चरण कमल मे किया प्रणाम । पतितपावन सीताराम ॥19॥ माता जी मैं तो वन जाऊं । चौदह वर्ष बाद फिर आऊं ॥ चरण कमल देखूं सुख धाम । पतितपावन सीताराम ॥20॥ सुनी शूल सम जब यह बानी । भू पर गिरी कौशल्या रानी ॥ धीरज बंधा रहे श्रीराम । पतितपावन सीताराम ॥21॥ सीताजी जब यह सुन पाई । रंग महल से नीचे आई ॥ कौशल्या को किया प्रणाम । पतितपावन सीताराम ॥22॥ मेरी चूक क्षमा कर दीजो । वन जाने की आज्ञा दीजो ॥ सीता को समझाते राम । पतितपावन सीताराम ॥23॥ मेरी सीख सिया सुन लीजो । सास ससुर की सेवा कीजो ॥ मुझको भी होगा विश्राम । पतितपावन सीताराम ॥24॥ मेरा दोष बता प्रभु दीजो । संग मुझे सेवा में लीजो ॥ अर्द्धांगिनी तुम्हारी राम । पतितपावन सीताराम ॥25॥ समाचार सुनि लक्ष्मण आये । धनुष बाण संग परम सुहाये ॥ बोले संग चलूंगा राम । पतितपावन सीताराम ॥26॥ राम लखन मिथिलेश कुमारी । वन जाने की करी तैयारी ॥ रथ में बैठ गये सुख धाम । पतितपावन सीताराम ॥27॥ अवधपुरी के सब नर नारी । समाचार सुन व्याकुल भारी ॥ मचा अवध में कोहराम । पतितपावन सीताराम ॥28॥ श्रृंगवेरपुर रघुवर आये । रथ को अवधपुरी लौटाये ॥ गंगा तट पर आये राम । पतितपावन सीताराम ॥29॥ केवट कहे चरण धुलवाओ । पीछे नौका में चढ़ जाओ ॥ पत्थर कर दी, नारी राम । पतितपावन सीताराम ॥30॥ लाया एक कठौता पानी । चरण कमल धोये सुख मानी ॥ नाव चढ़ाये लक्ष्मण राम । पतितपावन सीताराम ॥31॥ उतराई में मुदरी दीनी । केवट ने यह विनती कीनी ॥ उतराई नहीं लूंगा राम । पतितपावन सीताराम ॥32॥ तुम आये, हम घाट उतारे । हम आयेंगे घाट तुम्हारे ॥ तब तुम पार लगायो राम । पतितपावन सीताराम ॥33॥ भरद्वाज आश्रम पर आये । राम लखन ने शीष नवाए ॥ एक रात कीन्हा विश्राम । पतितपावन सीताराम ॥34॥ भाई भरत अयोध्या आये । कैकई को कटु वचन सुनाये ॥ क्यों तुमने वन भेजे राम । पतितपावन सीताराम ॥35॥ चित्रकूट रघुनंदन आये । वन को देख सिया सुख पाये ॥ मिले भरत से भाई राम । पतितपावन सीताराम ॥36॥ अवधपुरी को चलिए भाई । यह सब कैकई की कुटिलाई ॥ तनिक दोष नहीं मेरा राम । पतितपावन सीताराम ॥37॥ चरण पादुका तुम ले जाओ । पूजा कर दर्शन फल पावो ॥ भरत को कंठ लगाये राम । पतितपावन सीताराम ॥38॥ आगे चले राम रघुराया । निशाचरों का वंश मिटाया ॥ ऋषियों के हुए पूरन काम । पतितपावन सीताराम ॥39॥ अनसूया की कुटीया आये । दिव्य वस्त्र सिय मां ने पाय ॥ था मुनि अत्री का वह धाम । पतितपावन सीताराम ॥40॥ मुनि-स्थान आए रघुराई । शूर्पनखा की नाक कटाई ॥ खरदूषन को मारे राम । पतितपावन सीताराम ॥41॥ पंचवटी रघुनंदन आए । कनक मृग मारीच संग धाये ॥ लक्ष्मण तुम्हें बुलाते राम । पतितपावन सीताराम ॥42॥ रावण साधु वेष में आया । भूख ने मुझको बहुत सताया ॥ भिक्षा दो यह धर्म का काम । पतितपावन सीताराम ॥43॥ भिक्षा लेकर सीता आई । हाथ पकड़ रथ में बैठाई ॥ सूनी कुटिया देखी भाई । पतितपावन सीताराम ॥44॥ धरनी गिरे राम रघुराई । सीता के बिन व्याकुलताई ॥ हे प्रिय सी��े, चीखे राम । पतितपावन सीताराम ॥45॥ लक्ष्मण, सीता छोड़ नहीं तुम आते । जनक दुलारी नहीं गंवाते ॥ बने बनाये बिगड़े काम । पतितपावन सीताराम ॥46 ॥ कोमल बदन सुहासिनि सीते । तुम बिन व्यर्थ रहेंगे जीते ॥ लगे चाँदनी-जैसे घाम । पतितपावन सीताराम ॥47॥ सुन री मैना, सुन रे तोता । मैं भी पंखो वाला होता ॥ वन वन लेता ढूंढ तमाम । पतितपावन सीताराम ॥48 ॥ श्यामा हिरनी, तू ही बता दे । जनक नन्दनी मुझे मिला दे ॥ तेरे जैसी आँखे श्याम । पतितपावन सीताराम ॥49॥ वन वन ढूंढ रहे रघुराई । जनक दुलारी कहीं न पाई ॥ गृद्धराज ने किया प्रणाम । पतितपावन सीताराम ॥50॥ चख चख कर फल शबरी लाई । प्रेम सहित खाये रघुराई ॥ ऎसे मीठे नहीं हैं आम । पतितपावन सीताराम ॥51॥ विप्र रुप धरि हनुमत आए । चरण कमल में शीश नवाये ॥ कन्धे पर बैठाये राम । पतितपावन सीताराम ॥52॥ सुग्रीव से करी मिताई । अपनी सारी कथा सुनाई ॥ बाली पहुंचाया निज धाम । पतितपावन सीताराम ॥53॥ सिंहासन सुग्रीव बिठाया । मन में वह अति हर्षाया ॥ वर्षा ऋतु आई हे राम । पतितपावन सीताराम ॥54॥ हे भाई लक्ष्मण तुम जाओ । वानरपति को यूं समझाओ ॥ सीता बिन व्याकुल हैं राम । पतितपावन सीताराम ॥55॥ देश देश वानर भिजवाए । सागर के सब तट पर आए ॥ सहते भूख प्यास और घाम । पतितपावन सीताराम ॥56॥ सम्पाती ने पता बताया । सीता को रावण ले आया ॥ सागर कूद गए हनुमान । पतितपावन सीताराम ॥57॥ कोने कोने पता लगाया । भगत विभीषण का घर पाया ॥ हनुमान को किया प्रणाम । पतितपावन सीताराम ॥58॥ अशोक वाटिका हनुमत आए । वृक्ष तले सीता को पाये ॥ आँसू बरसे आठो याम । पतितपावन सीताराम ॥59॥ रावण संग निशिचरी लाके । सीता को बोला समझा के ॥ मेरी ओर तुम देखो बाम । पतितपावन सीताराम ॥60॥ मन्दोदरी बना दूँ दासी । सब सेवा में लंका वासी ॥ करो भवन में चलकर विश्राम । पतितपावन सीताराम ॥61॥ चाहे मस्तक कटे हमारा । मैं नहीं देखूं बदन तुम्हारा ॥ मेरे तन मन धन है राम । पतितपावन सीताराम ॥62॥ ऊपर से मुद्रिका गिराई । सीता जी ने कंठ लगाई ॥ हनुमान ने किया प्रणाम । पतितपावन सीताराम ॥63॥ मुझको भेजा है रघुराया । सागर लांघ यहां मैं आया ॥ मैं हूं राम दास हनुमान । पतितपावन सीताराम ॥64॥ भूख लगी फल खाना चाहूँ । जो माता की आज्ञा पाऊँ ॥ सब के स्वामी हैं श्री राम । पतितपावन सीताराम ॥65॥ सावधान हो कर फल खाना । रखवालों को भूल ना जाना ॥ निशाचरों का है यह धाम । पतितपावन सीताराम ॥66॥ हनुमान ने वृक्ष उखाड़े । देख देख माली ललकारे ॥ मार-मार पहुंचाये धाम । पतितपावन सीताराम ॥67॥ अक्षय कुमार को स्वर्ग पहुंचाया । इन्द्रजीत को फांसी ले आया ॥ ब्रह्मफांस से बंधे हनुमान । पतितपावन सीताराम ॥68॥ सीता को तुम लौटा दीजो । उन से क्षमा याचना कीजो ॥ तीन लोक के स्वामी राम । पतितपावन सीताराम ॥69॥ भगत बिभीषण ने समझाया । रावण ने उसको धमकाया ॥ सनमुख देख रहे रघुराई । पतितपावन सीताराम ॥70॥ रूई, तेल घृत वसन मंगाई । पूंछ बांध कर आग लगाई ॥ पूंछ घुमाई है हनुमान ॥ पतितपावन सीताराम ॥71॥ सब लंका में आग लगाई । सागर में जा पूंछ बुझाई ॥ ह्रदय कमल में राखे राम । पतितपावन सीताराम ॥72॥ सागर कूद लौट कर आये । समाचार रघुवर ने पाये ॥ दिव्य भक्ति का दिया इनाम । पतितपावन सीताराम ॥73॥ वानर रीछ संग में लाए । लक्ष्मण सहित सिंधु तट आए ॥ लगे सुखाने सागर राम । पतितपावन सीताराम ॥74॥ सेतू कपि नल नील बनावें । राम-राम लिख सिला तिरावें ॥ लंका पहुँचे राजा राम । पतितपावन सीताराम ॥75॥ अंगद चल लंका में आया । सभा बीच में पांव जमाया ॥ बाली पुत्र महा बलधाम । पतितपावन सीताराम ॥76॥ रावण पाँव हटाने आया । अंगद ने फिर पांव उठाया ॥ क्षमा करें तुझको श्री राम । पतितपावन सीताराम ॥77॥ निशाचरों की सेना आई । गरज तरज कर हुई लड़ाई ॥ वानर बोले जय सिया राम । पतितपावन सीताराम ॥78॥ इन्द्रजीत ने शक्ति चलाई । धरनी गिरे लखन मुरझाई ॥ चिन्ता करके रोये राम । पतितपावन सीताराम ॥79॥ जब मैं अवधपुरी से आया । हाय पिता ने प्राण गंवाया ॥ वन में गई चुराई बाम । पतितपावन सीताराम ॥80॥ भाई तुमने भी छिटकाया । जीवन में कुछ सुख नहीं पाया ॥ सेना में भारी कोहराम । पतितपावन सीताराम ॥81। जो संजीवनी बूटी को लाए । तो भाई जीवित हो जाये ॥ बूटी लायेगा हनुमान । पतितपावन सीताराम ॥82॥ जब बूटी का पता न पाया । पर्वत ही लेकर के आया ॥ काल नेम पहुंचाया धाम । पतितपावन सीताराम ॥83॥ भक्त भरत ने बाण चलाया । चोट लगी हनुमत लंगड़ाया ॥ मुख से बोले जय सिया राम । पतितपावन सीताराम ॥84॥ बोले भरत बहुत पछताकर । पर्वत सहित बाण बैठाकर ॥ तुम्हें मिला दूं राजा राम । पतितपावन सीताराम ॥85॥ बूटी लेकर हनुमत आया । लखन लाल उठ शीष नवाया ॥ हनुमत कंठ लगाये राम । पतितपावन सीताराम ॥86॥ कुंभकरन उठकर तब आया । एक बाण से उसे गिराया ॥ इन्द्रजीत पहुँचाया धाम । पतितपावन सीताराम ॥87॥ दुर्गापूजन रावण कीनो । नौ दिन तक आहार न लीनो ॥ आसन बैठ किया है ध्यान । पतितपावन सीताराम ॥88॥ रावण का व्रत खंडित कीना । परम धाम पहुँचा ही दीना ॥ वानर बोले जय श्री राम । पतितपावन सीताराम ॥89॥ सीता ने हरि दर्शन कीना । चिन्ता शोक सभी तज दीना ॥ हँस कर बोले राजा राम । पतितपावन सीताराम ॥90॥ पहले अग्नि परीक्षा पाओ । पीछे निकट हमारे आओ ॥ तुम हो पतिव्रता हे बाम । पतितपावन सीताराम ॥91॥ करी परीक्षा कंठ लगाई । सब वानर सेना हरषाई ॥ राज्य बिभीषन दीन्हा राम । पतितपावन सीताराम ॥92॥ फिर पुष्पक विमान मंगाया । सीता सहित बैठे रघुराया ॥ दण्डकवन में उतरे राम । पतितपावन सीताराम ॥93॥ ऋषिवर सुन दर्शन को आये । स्तुति कर मन में हर्षाये ॥ तब गंगा तट आये राम । पतितपावन सीताराम ॥94॥ नन्दी ग्राम पवनसुत आये । भाई भरत को वचन सुनाए ॥ लंका से आए हैं राम । पतितपावन सीताराम ॥95॥ कहो विप्र तुम कहां से आए । ऎसे मीठे वचन सुनाए ॥ मुझे मिला दो भैया राम । पतितपावन सीताराम ॥96॥ अवधपुरी रघुनन्दन आये । मंदिर-मंदिर मंगल छाये ॥ माताओं ने किया प्रणाम । पतितपावन सीताराम ॥97॥ भाई भरत को गले लगाया । सिंहासन बैठे रघुराया ॥ जग ने कहा, हैं राजा राम । पतितपावन सीताराम ॥98॥ सब भूमि विप्रो को दीनी । विप्रों ने वापस दे दीनी ॥ हम तो भजन करेंगे राम । पतितपावन सीताराम ॥99॥ धोबी ने धोबन धमकाई । रामचन्द्र ने यह सुन पाई ॥ वन में सीता भेजी राम । पतितपावन सीताराम ॥100॥ बाल्मीकि आश्रम में आई । लव व कुश हुए दो भाई ॥ धीर वीर ज्ञानी बलवान । पतितपावन सीताराम ॥101॥ अश्वमेघ यज्ञ किन्हा राम । सीता बिन सब सूने काम ॥ लव कुश वहां दीयो पहचान । पतितपावन सीताराम ॥102॥ सीता, राम बिना अकुलाई । भूमि से यह विनय सुनाई ॥ मुझको अब दीजो विश्राम । पतितपावन सीताराम ॥103॥ सीता भूमि में समाई । देखकर चिन्ता की रघुराई ॥ बार बार पछताये राम । पतितपावन सीताराम ॥104॥ राम राज्य में सब सुख पावें । प्रेम मग्न हो हरि गुन गावें ॥ दुख कलेश का रहा न नाम । पतितपावन सीताराम ॥105॥ ग्यारह हजार वर्ष परयन्ता । राज कीन्ह श्री लक्ष्मी कंता ॥ फिर बैकुण्ठ पधारे धाम । पतितपावन सीताराम ॥106॥ अवधपुरी बैकुण्ठ सिधाई । नर नारी सबने गति पाई ॥ शरनागत प्रतिपालक राम । पतितपावन सीताराम ॥107॥ श्याम सुंदर ने लीला गाई । मेरी विनय सुनो रघुराई ॥ भूलूँ नहीं तुम्हारा नाम । पतितपावन सीताराम ॥108॥ Read the full article
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aartividhi · 4 months
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108 Names Of Ganesha | श्री गणेश के 108 नाम मंत्र सहित
108 Names Of Ganesha | श्री गणेश के 108 नाम
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aartividhi · 4 months
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108 Names of Lakshmi । मां लक्ष्मी के 108 नाम
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aartividhi · 4 months
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श्री हनुमान बाहुक पाठ | Sri Hanuman Bahuk
श्री हनुमान बाहुक पाठ | Sri Hanuman Bahuk
श्रीगणेशाय नमः श्रीजानकीवल्लभो विजयते श्रीमद्-गोस्वामी-तुलसीदास-कृत छप्पय सिंधु-तरन, सिय-सोच-हरन, रबि-बाल-बरन तनु । भुज बिसाल, मूरति कराल कालहुको काल जनु ।। गहन-दहन-निरदहन लंक निःसंक, बंक-भुव । जातुधान-बलवान-मान-मद-दवन पवनसुव ।। कह तुलसिदास सेवत सुलभ सेवक हित सन्तत निकट । गुन-गनत, नमत, सुमिरत, जपत समन सकल-संकट-विकट ।।१।। स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रबि-तरुन-तेज-घन । उर बिसाल भुज-दंड चंड नख-बज्र बज्र-तन ।। पिंग नयन, भृकुटी कराल रसना दसनानन । कपिस केस, करकस लँगूर, खल-दल बल भानन ।। कह तुलसिदास बस जासु उर मारुतसुत मूरति बिकट । संताप पाप तेहि पुरुष पहिं सपनेहुँ नहिं आवत निकट ।।२।। झूलना पंचमुख-छमुख-भृगु मुख्य भट असुर सुर, सर्व-सरि-समर समरत्थ सूरो । बाँकुरो बीर बिरुदैत बिरुदावली, बेद बंदी बदत पैजपूरो ।। जासु गुनगाथ रघुनाथ कह, जासुबल, बिपुल-जल-भरित जग-जलधि झूरो । दुवन-दल-दमनको कौन तुलसीस है, पवन को पूत रजपूत रुरो ।।३।। घनाक्षरी भानुसों पढ़न हनुमान गये भानु मन-अनुमानि सिसु-केलि कियो फेरफार सो । पाछिले पगनि गम गगन मगन-मन, क्रम को न भ्रम, कपि बालक बिहार सो ।। कौतुक बिलोकि लोकपाल हरि हर बिधि, लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खभार सो। बल कैंधौं बीर-रस धीरज कै, साहस कै, तुलसी सरीर धरे सबनि को सार सो ।।४।। भारत में पारथ के रथ केथू कपिराज, गाज्यो सुनि कुरुराज दल हल बल भो । कह्यो द्रोन भीषम समीर सुत महाबीर, बीर-रस-बारि-निधि जाको बल जल भो ।। बानर सुभाय बाल केलि भूमि भानु लागि, फलँग फलाँग हूँतें घाटि नभतल भो । नाई-नाई माथ जोरि-जोरि हाथ जोधा जोहैं, हनुमान देखे जगजीवन को फल भो ।।५ गो-पद पयोधि करि होलिका ज्यों लाई लंक, निपट निसंक परपुर गलबल भो । द्रोन-सो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर, कंदुक-ज्यों कपि खेल बेल कैसो फल भो ।। संकट समाज असमंजस भो रामराज, काज जुग पूगनि को करतल पल भो । साहसी समत्थ तुलसी को नाह जाकी बाँह, लोकपाल पालन को फिर थिर थल भो ।।६ कमठ की पीठि जाके गोडनि की गाड़ैं मानो, नाप के भाजन भरि जल निधि जल भो । जातुधान-दावन परावन को दुर्ग भयो, महामीन बास तिमि तोमनि को थल भो ।। कुम्भकरन-रावन पयोद-नाद-ईंधन को, तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो । भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान, सारिखो त्रिकाल न त्रिलोक महाबल भो ।।७ दूत रामराय को, सपूत पूत पौनको, तू अंजनी को नन्दन प्रताप भूरि भानु सो । सीय-सोच-समन, दुरित दोष दमन, सरन आये अवन, लखन प्रिय प्रान सो ।। दसमुख दुसह दरिद्र दरिबे को भयो, प्रकट तिलोक ओक तुलसी निधान सो । ज्ञान गुनवान बलवान सेवा सावधान, साहेब सुजान उर आनु हनुमान सो ।।८ दवन-दुवन-दल भुवन-बिदित बल, बेद जस गावत बिबुध बंदीछोर को । पाप-ताप-तिमिर तुहिन-विघटन-पटु, सेवक-सरोरुह सुखद भानु भोर को ।। लोक-परलोक तें बिसोक सपने न सोक, तुलसी के हिये है भरोसो एक ओर को । राम को दुलारो दास बामदेव को निवास, नाम कलि-कामतरु केसरी-किसोर को ।।९।। महाबल-सीम महाभीम महाबान इत, महाबीर बिदित बरायो रघुबीर को । कुलिस-कठोर तनु जोरपरै रोर रन, करुना-कलित मन धारमिक धीर को ।। दुर्जन को कालसो कराल पाल सज्जन को, सुमिरे हरनहार तुलसी की पीर को । सीय-सुख-दायक दुलारो रघुनायक को, सेवक सहायक है साहसी समीर को ।।१०।। रचिबे को बिधि जैसे, पालिबे को हरि, ह�� मीच मारिबे को, ज्याईबे को सुधापान भो । धरिबे को धरनि, तरनि तम दलिबे को, सोखिबे कृसानु, पोषिबे को हिम-भानु भो ।। खल-दुःख दोषिबे को, जन-परितोषिबे को, माँगिबो मलीनता को मोदक सुदान भो । आरत की आरति निवारिबे को तिहुँ पुर, तुलसी को साहेब हठीलो हनुमान भो ।।११।। सेवक स्योकाई जानि जानकीस मानै कानि, सानुकूल सूलपानि नवै नाथ नाँक को । देवी देव दानव दयावने ह्वै जोरैं हाथ, बापुरे बराक कहा और राजा राँक को ।। जागत सोवत बैठे बागत बिनोद मोद, ताके जो अनर्थ सो समर्थ एक आँक को । सब दिन रुरो परै पूरो जहाँ-तहाँ ताहि, जाके है भरोसो हिये हनुमान हाँक को ।।१२।। सानुग सगौरि सानुकूल सूलपानि ताहि, लोकपाल सकल लखन राम जानकी । लोक परलोक को बिसोक सो तिलोक ताहि, तुलसी तमाइ कहा काहू बीर आनकी ।। केसरी किसोर बन्दीछोर के नेवाजे सब, कीरति बिमल कपि करुनानिधान की । बालक-ज्यों पालिहैं कृपालु मुनि सिद्ध ताको, जाके हिये हुलसति हाँक हनुमान की ।।१३।। करुनानिधान, बलबुद्धि के निधान मोद-महिमा निधान, गुन-ज्ञान के निधान हौ । बामदेव-रुप भूप राम के सनेही, नाम लेत-देत अर्थ धर्म काम निरबान हौ ।। आपने प्रभाव सीताराम के सुभाव सील, लोक-बेद-बिधि के बिदूष हनुमान हौ । मन की बचन की करम की तिहूँ प्रकार, तुलसी तिहारो तुम साहेब सुजान हौ ।।१४।। मन को अगम, तन सुगम किये कपीस, काज महाराज के समाज साज साजे हैं । देव-बंदी छोर रनरोर केसरी किसोर, जुग जुग जग तेरे बिरद बिराजे हैं । बीर बरजोर, घटि जोर तुलसी की ओर, सुनि सकुचाने साधु खल गन गाजे हैं । बिगरी सँवार अंजनी कुमार कीजे मोहिं, जैसे होत आये हनुमान के निवाजे हैं ।।१५।। सवैया जान सिरोमनि हौ हनुमान सदा जन के मन बास तिहारो । ढ़ारो बिगारो मैं काको कहा केहि कारन खीझत हौं तो तिहारो ।। साहेब सेवक नाते तो हातो कियो सो तहाँ तुलसी को न चारो । दोष सुनाये तें आगेहुँ को होशियार ह्वैं हों मन तौ हिय हारो ।।१६।। तेरे थपे उथपै न महेस, थपै थिरको कपि जे घर घाले । तेरे निवाजे गरीब निवाज बिराजत बैरिन के उर साले ।। संकट सोच सबै तुलसी लिये नाम फटै मकरी के से जाले । बूढ़ भये, बलि, मेरिहि बार, कि हारि परे बहुतै नत पाले ।।१७।। सिंधु तरे, बड़े बीर दले खल, जारे हैं लंक से बंक मवा से । तैं रनि-केहरि केहरि के बिदले अरि-कुंजर छैल छवा से ।। तोसों समत्थ सुसाहेब सेई सहै तुलसी दुख दोष दवा से । बानर बाज ! बढ़े खल-खेचर, लीजत क्यों न लपेटि लवा-से ।।१८।। अच्छ-विमर्दन कानन-भानि दसानन आनन भा न निहारो । बारिदनाद अकंपन कुंभकरन्न-से कुंजर केहरि-बारो ।। राम-प्रताप-हुतासन, कच्छ, बिपच्छ, समीर समीर-दुलारो । पाप-तें साप-तें ताप तिहूँ-तें सदा तुलसी कहँ सो रखवारो ।।१९।। घनाक्षरी जानत जहान हनुमान को निवाज्यौ जन, मन अनुमानि बलि, बोल न बिसारिये । सेवा-जोग तुलसी कबहुँ कहा चूक परी, साहेब सुभाव कपि साहिबी सँभारिये ।। अपराधी जानि कीजै सासति सहस भाँति, मोदक मरै जो ताहि माहुर न मारिये । साहसी समीर के दुलारे रघुबीर जू के, बाँह पीर महाबीर बेगि ही निवारिये ।।२०।। बालक बिलोकि, बलि बारेतें आपनो कियो, दीनबन्धु दया कीन्हीं निरुपाधि न्यारिये । रावरो भरोसो तुलसी के, रावरोई बल, आस रावरीयै दास रावरो बिचारिये ।। बड़ो बिकराल कलि, काको न बिहाल कियो, माथे पगु बलि को, निहारि सो निवारिये । केसरी किसोर, रनरोर, बरजोर बीर, बाँहुपीर राहुमातु ज्यौं पछारि मारिये ।।२१।। उथपे थपनथिर थपे उथपनहार, केसरी कुमार बल आपनो सँभारिये । राम के गुलामनि को कामतरु रामदूत, मोसे दीन दूबरे को तकिया तिहारिये ।। साहेब समर्थ तोसों तुलसी के माथे पर, सोऊ अपराध बिनु बीर, बाँधि मारिये । पोखरी बिसाल बाँहु, बलि, बारिचर पीर, मकरी ज्यौं पकरि कै बदन बिदारिये ।।२२।। राम को सनेह, राम साहस लखन सिय, राम की भगति, सोच संकट निवारिये । मुद-मरकट रोग-बारिनिधि हेरि हारे, जीव-जामवंत को भरोसो तेरो भारिये ।। कूदिये कृपाल तुलसी सुप्रेम-पब्बयतें, सुथल सुबेल भालू बैठि कै बिचारिये । महाबीर बाँकुरे बराकी बाँह-पीर क्यों न, लंकिनी ज्यों लात-घात ही मरोरि मारिये ।।२३।। लोक-परलोकहुँ तिलोक न बिलोकियत, तोसे समरथ चष चारिहूँ निहारिये । कर्म, काल, लोकपाल, अग-जग जीवजाल, नाथ हाथ सब निज महिमा बिचारिये ।। खास दास रावरो, निवास तेरो तासु उर, तुलसी सो देव दुखी देखियत भारिये । बात तरुमूल बाँहुसूल कपिकच्छु-बेलि, उपजी सकेलि कपिकेलि ही उखारिये ।।२४।। करम-कराल-कंस भूमिपाल के भरोसे, बकी बकभगिनी काहू तें कहा डरैगी । बड़ी बिकराल बाल घातिनी न जात कहि, बाँहूबल बालक छबीले छोटे छरैगी ।। आई है बनाइ बेष आप ही बिचारि देख, पाप जाय सबको गुनी के पाले परैगी । पूतना पिसाचिनी ज्यौं कपिकान्ह तुलसी की, बाँहपीर महाबीर तेरे मारे मरैगी ।।२५।। भालकी कि कालकी कि रोष की त्रिदोष की है, बेदन बिषम पाप ताप छल छाँह की । करमन कूट की कि जन्त्र मन्त्र बूट की, पराहि जाहि पापिनी मलीन मन माँह की ।। पैहहि सजाय, नत कहत बजाय तोहि, बाबरी न होहि बानि जानि कपि नाँह की । आन हनुमान की दुहाई बलवान की, सपथ महाबीर की जो रहै पीर बाँह की ।।२६।। सिंहिका सँहारि बल, सुरसा सुधारि छल, लंकिनी पछारि मारि बाटिका उजारी है । लंक परजारि मकरी बिदारि बारबार, जातुधान धारि धूरिधानी करि डारी है ।। तोरि जमकातरि मंदोदरी कढ़ोरि आनी, रावन की रानी मेघनाद महँतारी है । भीर बाँह पीर की निपट राखी महाबीर, कौन के सकोच तुलसी के सोच भारी है ।।२७।। तेरो बालि केलि बीर सुनि सहमत धीर, भूलत सरीर सुधि सक्र-रबि-राहु की । तेरी बाँह बसत बिसोक लोकपाल सब, तेरो नाम लेत रहै आरति न काहु की ।। साम दान भेद बिधि बेदहू लबेद सिधि, हाथ कपिनाथ ही के चोटी चोर साहु की । आलस अनख परिहास कै सिखावन है, एते दिन रही पीर तुलसी के बाहु की ।।२८।। टूकनि को घर-घर डोलत कँगाल बोलि, बाल ज्यों कृपाल नतपाल पालि पोसो है । कीन्ही है सँभार सार अँजनी कुमार बीर, आपनो बिसारि हैं न मेरेहू भरोसो है ।। इतनो परेखो सब भाँति समरथ आजु, कपिराज साँची कहौं को तिलोक तोसो है । सासति सहत दास कीजे पेखि परिहास, चीरी को मरन खेल बालकनि को सो है ।।२९।। आपने ही पाप तें त्रिपात तें कि साप तें, बढ़ी है बाँह बेदन कही न सहि जाति है । औषध अनेक जन्त्र मन्त्र टोटकादि किये, बादि भये देवता मनाये अधिकाति है ।। करतार, भरतार, हरतार, कर्म काल, को है जगजाल जो न मानत इताति है । चेरो तेरो तुलसी तू मेरो कह्यो राम दूत, ढील तेरी बीर मोहि पीर तें पिराति है ।।३०।। दूत राम राय को, सपूत पूत बाय को, समत्व हाथ पाय को सहाय असहाय को । बाँकी बिरदावली बिदित बेद गाइयत, रावन सो भट भयो मुठिका के घाय को ।। एते बड़े साहेब समर्थ को निवाजो आज, सीदत सुसेवक बचन मन काय को । थोरी बाँह पीर की बड़ी गलानि तुलसी को, कौन पाप कोप, लोप प्रकट प्रभाय को ।।३१।। देवी देव दनुज मनुज मुनि सिद्ध नाग, छोटे बड़े जीव जेते चेतन अचेत हैं । पूतना पिसाची जातुधानी जातुधान बाम, राम दूत की रजाइ माथे मानि लेत हैं ।। घोर जन्त्र मन्त्र कूट कपट कुरोग जोग, हनुमान आन सुनि छाड़त निकेत हैं । क्रोध कीजे कर्म को प्रबोध कीजे तुलसी को, सोध कीजे तिनको जो दोष दुख देत हैं ।।३२।। तेरे बल बानर जिताये रन रावन सों, तेरे घाले जातुधान भये घर-घर के । तेरे बल रामराज किये सब सुरकाज, सकल समाज साज साजे रघुबर के ।। तेरो गुनगान सुनि गीरबान पुलकत, सजल बिलोचन बिरंचि हरि हर के । तुलसी के माथे पर हाथ फेरो कीसनाथ, देखिये न दास दुखी तोसो कनिगर के ।।३३।। पालो तेरे टूक को परेहू चूक मूकिये न, कूर कौड़ी दूको हौं आपनी ओर हेरिये । भोरानाथ भोरे ही सरोष होत थोरे दोष, पोषि तोषि थापि आपनी न अवडेरिये ।। अँबु तू हौं अँबुचर, अँबु तू हौं डिंभ सो न, बूझिये बिलंब अवलंब मेरे तेरिये । बालक बिकल जानि पाहि प्रेम पहिचानि, तुलसी की बाँह पर लामी लूम फेरिये ।।३४।। घेरि लियो रोगनि, कुजोगनि, कुलोगनि ज्यौं, बासर जलद घन घटा धुकि धाई है । बरसत बारि पीर जारिये जवासे जस, रोष बिनु दोष धूम-मूल मलिनाई है ।। करुनानिधान हनुमान महा बलवान, हेरि हँसि हाँकि फूँकि फौजैं ते उड़ाई है । खाये हुतो तुलसी कुरोग राढ़ राकसनि, केसरी किसोर राखे बीर बरिआई है ।।३५।। सवैया राम गुलाम तु ही हनुमान गोसाँई सुसाँई सदा अनुकूलो । पाल्यो हौं बाल ज्यों आखर दू पितु मातु सों मंगल मोद समूलो ।। बाँह की बेदन बाँह पगार पुकारत आरत आनँद भूलो । श्री रघुबीर निवारिये पीर रहौं दरबार परो लटि लूलो ।।३६।। घनाक्षरी काल की करालता करम कठिनाई कीधौं, पाप के प्रभाव की सुभाय बाय बावरे । बेदन कुभाँति सो सही न जाति राति दिन, सोई बाँह गही जो गही समीर डाबरे ।। लायो तरु तुलसी तिहारो सो निहारि बारि, सींचिये मलीन भो तयो है तिहुँ तावरे । भूतनि की आपनी पराये की कृपा निधान, जानियत सबही की रीति राम रावरे ।।३७।। पाँय पीर पेट पीर बाँह पीर मुँह पीर, जरजर सकल पीर मई है । देव भूत पितर करम खल काल ग्रह, मोहि पर दवरि दमानक सी दई है ।। हौं तो बिनु मोल के बिकानो बलि बारेही तें, ओट राम नाम की ललाट लिखि लई है । कुँभज के किंकर बिकल बूढ़े गोखुरनि, हाय राम राय ऐसी हाल कहूँ भई है ।।३८।। बाहुक-सुबाहु नीच लीचर-मरीच मिलि, मुँहपीर केतुजा कुरोग जातुधान हैं । राम नाम जगजाप कियो चहों सानुराग, काल कैसे दूत भूत कहा मेरे मान हैं ।। सुमिरे सहाय राम लखन आखर दोऊ, जिनके समूह साके जागत जहान हैं । तुलसी सँभारि ताड़का सँहारि भारि भट, बेधे बरगद से बनाइ बानवान हैं ।।३९।। बालपने सूधे मन राम सनमुख भयो, राम नाम लेत माँगि खात टूकटाक हौं । परयो लोक-रीति में पुनीत प्रीति राम राय, मोह बस बैठो तोरि तरकि तराक हौं ।। खोटे-खोटे आचरन आचरत अपनायो, अंजनी कुमार सोध्यो रामपानि पाक हौं । तुलसी गुसाँई भयो भोंडे दिन भूल गयो, ताको फल पावत निदान परिपाक हौं ।।४०।। असन-बसन-हीन बिषम-बिषाद-लीन, देखि दीन दूबरो करै न हाय हाय को । तुलसी अनाथ सो सनाथ रघुनाथ कियो, दियो फल सील सिंधु आपने सुभाय को ।। नीच यहि बीच पति पाइ भरु हाईगो, बिहाइ प्रभु भजन बचन मन काय को । ता तें तनु पेषियत घोर बरतोर मिस, फूटि फूटि निकसत लोन राम राय को ।।४१।। जीओं जग जानकी जीवन को कहाइ जन, मरिबे को बारानसी बारि सुरसरि को । तुलसी के दुहूँ हाथ मोदक हैं ऐसे ठाँउ, जाके जिये मुये सोच करिहैं न लरि को ।। मोको झूटो साँचो लोग राम को कहत सब, मेरे मन मान है न हर को न हरि को । भारी पीर दुसह सरीर तें बिहाल होत, सोऊ रघुबीर बिनु सकै दूर करि को ।।४२।। सीतापति साहेब सहाय हनुमान नित, हित उपदेश को महेस मानो गुरु कै । मानस बचन काय सरन तिहारे पाँय, तुम्हरे भरोसे सुर मैं न जाने सुर कै ।। ब्याधि भूत जनित उपाधि काहु खल की, समाधि कीजे तुलसी को जानि जन फुर कै । कपिनाथ रघुनाथ भोलानाथ भूतनाथ, रोग सिंधु क्यों न डारियत गाय खुर कै ।।४३।। कहों हनुमान सों सुजान राम राय सों, कृपानिधान संकर सों सावधान सुनिये । हरष विषाद राग रोष गुन दोष मई, बिरची बिरञ्ची सब देखियत दुनिये ।। माया ��ीव काल के करम के सुभाय के, करैया राम बेद कहैं साँची मन गुनिये । तुम्ह तें कहा न होय हा हा सो बुझैये मोहि, हौं हूँ रहों मौनही बयो सो जानि लुनिये ।।४४।। Read the full article
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aartividhi · 4 months
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Hanuman Baan | श्री बजरंग बाण का पाठ
Hanuman Baan | श्री बजरंग बाण का पाठ
॥ दोहा ॥ निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान। तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥ ॥ चौपाई ॥ जय हनुमंत संत हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ॥०१॥ जन के काज विलम्ब न कीजै । आतुर दौरि महा सुख दीजै ॥०२॥ जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा । सुरसा बद पैठि विस्तारा ॥०३॥ आगे जाई लंकिनी रोका । मारेहु लात गई सुर लोका ॥०४॥ जाय विभीषण को सुख दीन्हा । सीता निरखि परम पद लीन्हा ॥०५॥ बाग उजारी सिंधु महं बोरा । अति आतुर यम कातर तोरा ॥०६॥ अक्षय कुमार मारि संहारा । लूम लपेट लंक को जारा ॥०७॥ लाह समान लंक जरि गई । जय जय धुनि सुर पुर महं भई ॥०८॥ अब विलम्ब केहि कारण स्वामी । कृपा करहु उर अन्तर्यामी ॥०९॥ जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता । आतुर होय दुख हरहु निपाता ॥१०॥ जै गिरिधर जै जै सुखसागर । सुर समूह समरथ भटनागर ॥११॥ ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमन्त हठीले। बैरिहिं मारू बज्र की कीले ॥१२॥ गदा बज्र लै बैरिहिं मारो । महाराज प्रभु दास उबारो ॥१३॥ ॐ कार हुंकार महाप्रभु धावो । बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो ॥१४॥ ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा । ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा ॥१५॥ सत्य होहु हरि शपथ पाय के । रामदूत धरु मारु धाय के ॥१६॥ जय जय जय हनुमंत अगाधा । दु:ख पावत जन केहि अपराधा ॥१७॥ पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा ॥१८॥ वन उपवन, मग गिरि गृह माहीं । तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं ॥१९॥ पांय परों कर जोरि मनावौं । यहि अवसर अब केहि गोहरावौं ॥२०॥ जय अंजनि कुमार बलवन्ता । शंकर सुवन वीर हनुमंता ॥२१॥ बदन कराल काल कुल घालक । राम सहाय सदा प्रति पालक ॥२२॥ भूत प्रेत पिशाच निशाचर । अग्नि बेताल काल मारी मर ॥२३॥ इन्हें मारु तोहिं शपथ राम की । राखु नाथ मरजाद नाम की ॥२४॥ जनकसुता हरि दास कहावौ । ताकी शपथ विलम्ब न लावो ॥२५॥ जय जय जय धुनि होत अकाशा । सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा ॥२६॥ चरण शरण कर जोरि मनावौ । यहि अवसर अब केहि गौहरावौं ॥२७॥ उठु उठु चलु तोहिं राम दुहाई । पांय परौं कर जोरि मनाई ॥२८॥ ॐ चं चं चं चं चपल चलंता । ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता ॥२९॥ ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल । ॐ सं सं सहमि पराने खल दल ॥३०॥ अपने जन को तुरत उबारो । सुमिरत होय आनन्द हमारो ॥३१॥ यह बजरंग बाण जेहि मारै । ताहि कहो फिर कौन उबारै ॥३२॥ पाठ करै बजरंग बाण की । हनुमत रक्षा करैं प्राण की ॥३३॥ यह बजरंग बाण जो जापै । तेहि ते भूत प्रेत सब कांपे ॥३४॥ धूप देय अरु जपै हमेशा । ताके तन नहिं रहै कलेशा ॥३५॥ ॥ दोहा ॥ प्रेम प्रतीतह�� कपि भजै, सदा धरैं उर ध्यान । तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान ॥ Read the full article
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aartividhi · 4 months
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लड्डू गोपाल के 108 नाम | श्री कृष्ण के 108 नाम
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लड्डू गोपाल के 108 नाम | श्री कृष्ण के 108 नाम
- अचला (Immutable) – Unchanging; not subject to change. - अच्युत (Infallible) – Incapable of failure or error. - अद्भुतह (Marvelous) – Extraordinary; filled with wonder. - आदिदेव (The Primordial God) – The original or first divine entity. - अदित्या (Son of Aditi) – Offspring of the cosmic mother, Aditi. - अजन्मा (Unborn) – Without birth; eternal. - अजया (Unconquerable) – Invincible; cannot be defeated. - अक्षरा (Imperishable) – Not subject to destruction or decay. - अमृत (Nectar) – Divine elixir; symbolizing immortality. - अनादिह (Beginningless) – Without a start; eternal. - आनंद सागर (Ocean of Bliss) – Infinite source of joy and happiness. - अनंता (Infinite) – Limitless; without end. - अनंतजीत (Ever Victorious) – Always triumphant; forever winning. - अनया (Without a Master) – Not controlled by anyone; independent. - अनिरुद्धा (Unrestrained) – Not restricted; free from limitations. - अपराजित (Unconquerable) – Impossible to defeat or overcome. - अव्युक्ता (Unmanifested) – Not visible or apparent; hidden. - बाल गोपाल (The Child Gopal) – Young Krishna, often depicted as a child. - बलि (Powerful) – Possessing great strength or might. - चतुर्भुज (Four-Armed) – Having four arms; a common depiction of Vishnu. - दानवेंद्रो (Lord of Demons) – Supreme ruler over evil forces. - दयालु (Compassionate) – Full of compassion and kindness. - दयानिधि (Ocean of Compassion) – A vast source of mercy and empathy. - देवाधिदेव (God of Gods) – The supreme deity among all deities. - देवकीनंदन (Son of Devaki) – Krishna, the son of Devaki. - देवेश (Lord of the Gods) – Supreme ruler of all divine beings. - धर्माध्यक्ष (Overseer of Righteousness) – Guardian of moral law and order. - द्वारकाधीश (Lord of Dwarka) – Ruler of the city of Dwarka. - गोपाल (Protector of Cows) – Guardian and caretaker of cows. - गोपालप्रिया (Beloved of Gopis) – Loved dearly by the Gopis (cowherd girls). - गोविंदा (Lord of the Cows) – Another name for Krishna, the protector of cows. - ज्ञानेश्वर (Lord of Knowledge) – Master of wisdom and enlightenment. - हरि (The Remover of Sins) – One who eradicates sin and purifies. - हिरण्यगर्भा (One Emerging from the Golden Egg) – Symbolizing creation emerging from the primordial state. - ऋषिकेश (Lord of the Sages) – Master of all ascetics and wise beings. - जगद्गुरु (Preceptor of the Universe) – Teacher and guide of all creation. - जगदीशा (Lord of the Universe) – Ruler and controller of the cosmos. - जगन्नाथ (Lord of the World) – Sovereign over all realms and dimensions. - जनार्धना (Prosperity of the People) – Source of welfare and prosperity for all. - जयंतह (Conqueror of All) – One who triumphs over everything. - ज्योतिरादित्या (Radiant Like the Sun) – Shining with the brilliance of the sun. - कमलनाथ (Lord of Lakshmi) – Husband of the goddess Lakshmi, the bestower of wealth. - कमलनयन (Lotus-Eyed) – Having eyes as beautiful and serene as lotus petals. - कामसांतक (Slayer of Desire) – Conqueror of worldly desires and attachments. - कंजलोचन (Lotus-Eyed) – Another name for Krishna, whose eyes resemble lotus flowers. - केशव (Slayer of Keshi Demon) – One who defeated the demon named Keshi. - कृष्ण (The Dark One) – Dark-skinned; the name of the eighth incarnation of Vishnu. - लक्ष्मीकांत (Consort of Lakshmi) – Husband of the goddess of wealth and prosperity. - लोकाध्यक्ष (Lord of the Universe) – Supreme ruler and overseer of all realms. - मदन (Lord of Love) – God of Love; another name for Kamadeva. - माधव (Consort of Ma) – Spouse of the goddess Ma, another name for Lakshmi. - मधुसूदन (Slayer of the Demon Madhu) – One who vanquished the demon named Madhu. - महेन्द्र (Indra Among Men) – Like Indra, the king of the gods, among humans. - मनमोहन (Enchanter of Minds) – Captivator of hearts and minds. - मनोहर (Beautiful) – Charming and captivating. - मयूर (Peacock Feathered) – Adorned with peacock feathers. - मोहन (Bewitching) – Enchanting; captivating. - मुरली (One Who Plays the Flute) – The divine musician who plays the flute. - मुरलीधर (Holder of the Flute) – One who carries the flute. - मुरली मनोहर (Enchanting Flute Player) – Captivating musician who plays the flute. - नंदगोपाल (Son of Nanda) – Krishna, the beloved son of Nanda Maharaj. - नारायन (The Supreme Being) – The ultimate reality; the source of creation. - निरंजन (Spotless) – Pure and immaculate; without blemish. - निर्गुण (Without Attributes) – Transcendent; beyond all qualities. - पद्महस्ता (Lotus-Handed) – One with hands resembling lotus flowers. - पद्मनाभ (Lotus-Navelled) – Having a navel shaped like a lotus. - परब्रह्मन (Supreme Brahman) – The ultimate reality beyond all forms. - परमात्मा (Supreme Soul) – The divine essence pervading all existence. - परम पुरुष (Supreme Person) – The ultimate being beyond all limitations. - पार्थसारथी (Charioteer of Arjuna) – Krishna, the charioteer of Arjuna in the Mahabharata. - प्रजापति (Lord of All Creatures) – Creator and protector of all beings. - पुण्य (Holy) – Pure and virtuous; full of merit. - पुरुषोत्तम (Supreme Person) – The highest and most excellent being. - रविलोचन (Sun-Eyed) – Having eyes as radiant as the sun. - सहस्राकाश (Thousand-Rayed) – Radiating light in all directions. - सहस्रजीत (Thousand-Victorious) – Always triumphant in a thousand ways. - सहस्रपात (Thousand-Footed) – Possessing a thousand feet. - साक्षी (Witness) – Observer; one who perceives all. - सनातन (Eternal) – Everlasting; without beginning or end. - सर्वजन (All-Knowing) – Omniscient; aware of all things. - सर्वपालक (Protector of All) – Guardian and caretaker of everything. - सर्वेश्वर (Lord of All) – Supreme ruler over all entities. - सत्य वचन (Speaker of Truth) – One who always speaks the truth. - सत्यव्त (Truthful) – Honest and sincere; adhering to truth. - शंतह (Peaceful) – Tranquil; free from disturbance. - श्रेष्ठ (Best) – Superior; of the highest quality. - श्रीकांत (The Beautiful One) – The most beautiful and charming. - श्याम (Dark-Skinned) – Having a dark complexion. - श्यामसुंदर (Beautiful Dark Lord) – Lord Krishna, the charming dark-skinned deity. - सुदर्शन (Good-Looking) – Having an attractive appearance. - सुमेध (Wise) – Intelligent and insightful. - सुरेशम (Lord of the Gods) – Supreme ruler over all celestial beings. - स्वर्गपति (Lord of Heaven) – Ruler and master of the celestial realm. - त्रिविक्रमा (Conqueror of Three Worlds) – One who has dominion over heaven, earth, and the underworld. - उपेन्द्र (Younger Brother of Indra) – Krishna, the younger sibling of Indra, the king of gods. - वैकुंठनाथ (Lord of Vaikuntha) – Ruler of the heavenly abode of Vishnu. - वर्धमानह (Ever Growing) – Always expanding and evolving. - वासुदेव (Son of Vasudeva) – Krishna, the son of Vasudeva. - विष्णु (The All-Pervading One) – The omnipresent deity; the preserver in the Hindu trinity. - विश्वदक्शिनह (Supporter of the Universe) – Sustainer and upholder of the cosmos. - विश्वकर्मा (Creator of the Universe) – The divine architect; the maker of all creation. - विश्वमूर्ति (Embodiment of the Universe) – Personification of the entire cosmos. - विश्वरूपा (Universal Form) – Manifestation of the universal aspect of God. - विश्वात्मा (Soul of the Universe) – Essence and spirit pervading all existence. - वृषपर्व (One with a Bull Flag) – Symbolizing the flag with a bull emblem, associated with Krishna. - यदवेंद्रा (King of the Yadavas) – Leader of the Yadava clan, to which Krishna belonged. - योगि (Yogi) – One who practices yoga; a practitioner of spiritual disciplines. - योगिनाम्पति (Lord of Yogis) – Supreme ruler over all practitioners of yoga. 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aartividhi · 4 months
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108 Names Of Lord Rama । भगवान श्रीराम के 108 नाम
108 Names of Lord Rama । भगवान श्रीराम के 108 नाम
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aartividhi · 4 months
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108 Names Of Tulasi । तुलसी जी के 108 नाम
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aartividhi · 4 months
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108 Names of Goddess Sita । माँ सीता के 108 नाम
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aartividhi · 4 months
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108 Names of Saraswati । माँ सरस्वती के 108 नाम
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aartividhi · 4 months
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108 Names Of Lord Narasimha । भगवान नरसिंह के 108 नाम
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aartividhi · 4 months
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108 Names Of Kuber । भगवान कुबेर के 108 नाम
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aartividhi · 4 months
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108 Names Of Kartikeya | भगवान कार्तिकेय के 108 नाम
108 Names Of Kartikeya | भगवान कार्तिकेय के 108 नाम
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aartividhi · 4 months
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108 Names of Kamdev | कामदेव अष्टोत्तर शत नामावलि
108 Names of Kamdev | कामदेव अष्टोत्तर शत नामावलि
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aartividhi · 4 months
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108 Names Of Hanuman । हनुमान जी के 108 नाम
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108 Names Of Hanuman । हनुमानजी के 108 नाम
108 Names Of Hanuman (श्री हनुमान अष्टोत्तर शतनामनामावली)   Read the full article
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aartividhi · 4 months
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108 Names of Kaal Bhairav । काल भैरव के 108 नाम
108 Names of Kaal Bhairav । काल भैरव के 108 नाम
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aartividhi · 4 months
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Kaal Bhairav Ashtakam Lyrics | काल भैरव अष्टक
Kaal Bhairav Ashtakam Lyrics  | काल भैरव अष्टक
देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपङ्कजं व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम्। नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं| काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥1॥ भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम्। कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥2॥ शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम्। भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥3॥ भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम्। विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥4॥ धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम्। स्वर्णवर्णशेषपाशशोभिताङ्गमण्डलं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥5॥ रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरंजनम्। मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥6॥ अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम्। अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥7॥ भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम्। नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥8॥ Read the full article
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