adnan-siddiqui3
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adnan-siddiqui3 · 3 years ago
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चोर बहुत होशियार होते हैं।जब वो भैंस चुराते हैं तो सबसे पहले भैंस के गले से घंटे खोलते हैं, एक चोर घंटा बजाते हुए पश्चिम की ओर चला जाता है और बाकि भैंस को दुसरी ओर ले जाता है।गांँव के लोग घंटे की आवाज़ सुनकर पश्चिम की ओर भागते हैं, आगे जाकर चोर घंटे फेंक कर भाग जाता है, इसलिए गांँव वाले के हाथ घंटा ही आता है और चोर माल पार कर देते हैं !!हमारी भैंस - शिक्षा, रोज़गार, महिला सुरक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन सुविधा, समाजिक न्याय जैसे अन्य कई मुद्दे हैं।
��ैंस का घंटा....
इलेक्शन आता है तो आतंकवादी भी आ जाता है.. इलेक्शन आता है तो हिन्दू खतरे में आ जाता है.. इलेक्शन खत्म होते ही हिन्दू खतरे से बाहर आ जाता है।आप को पढ़ने लिखने के बाद पकौड़े तलने के लिए कहा जाता है।अपने आप को हिन्दू का रक्षक कहने वाले अमित शाह का बेटा #BCCI का सचिव बन जाता है... जिसको क्रिकेट का ABCD नहीं मालूम,तुम नौकरी मांँगोगे तो पिछवाड़े सुजा दिया जाएगा.. या झूठे केस में फंसाकर आपके नेता को जेल में डाल दिया जाएगा.. आपके जो मार्गदर्शक थे उनको ही जेल में डाल दिया जाता है, आंदोलन अपने आप कमज़ोर हो जाता है, 7 साल से यही तो देखने को मिल रहा है।
हमें भटकाने वाले मुद्दे....श्मशान कब्रिस्तान, हिन्दू_मुसलमान, मन्दिर_मस्जिद, पाकिस्तान,खालिस्तानी, आतंकवादी, उग्रवादी.. आदि
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adnan-siddiqui3 · 3 years ago
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काशी बनारस की एक ऐतिहासिक मस्जिद …
» NonMuslim View About Islam : Historical Mosque In Kaashi Banaaras «
यह एक ऐसा इतिहास है जिसे पन्नो से तो हटा दिया गया है लेकिन निष्पक्ष इन्सान और हक परस्त लोगों के दिलो में से चाहे वो किसी भी कौम का इन्सान हो, मिटाया नहीं जा सकता, और क़यामत तक इंशा अल्लाह ! मिटाया नहीं जा सकेगा.
और मुसलमान बादशाह के हुकूमत में दुसरे मजहब के लिए इंसाफ.
हज़रत औरंगजेब आलमगिर की हुकूमत में काशी बनारस में एक पंडित की लड़की थी जिसका नाम शकुंतला था, उस लड़की को एक मुसलमान जाहिल सेनापति ने अपनी हवस का शिकार बनाना चाहा, और उस के बाप से कहा के तेरी बेटी को डोली में सजा कर मेरे महल पे ८ दीन में भेज देना. पंडित ने यह बात अपनी बेटी से कही. उनके पास कोई रास्ता नहीं था. और पंडित से बेटीने कहा के १ महीने का वक़्त ले लो कोई भी रास्ता निकल जायेगा.
पंडित ने सेनापति से जाकर कहा के, “मेरे पास इतने पैसे नहीं है के मै ८ दीन में सजा कर लड़की को भेज सकू. मुझे महीने का वक़्त दो.”
सेनापति ने कहा “ठीक है ! ठीक महीने के बाद भेज देना”.
पंडित ने अपनी लड़की से जाकर कहा “वक़्त मिल गया है अब ?”
लड़की ने मुग़ल सहजादे का लिबास पहना और अपनी सवारी को लेकर दिल्ली की तरफ निकल गयी. कुछ दीन के बाद दिल्ली पोह्ची, वो दीन जुमा का दीन था. और जुमा के दीन हज़रत औरंगजेब आलमगिर नमाज़ के बाद जब मस्जिद से बहार निकलते तो लोग अपनी फरियाद एक चिट्ठी में लिख कर मस्जिद के सीढियों के दोनों तरफ खड़े रहते. और हज़रत औरंगजेब आलमगिर वो चिट्ठिया उनके हाथ से लेते जाते, और फिर कुछ दिनों में फैसला (इंसाफ) फरमाते.
वो लड़की भी इस क़तार में जाकर खड़ी हो गयी, उस के चहरे पे नकाब था, और लड़के का लिबास (ड्रेस) पहना हुआ था, जब उसके हाथ से चिट्ठी लेने की बारी आई तब हज़रत औरंगजेब आलमगिर ने अपने हाथ पर एक कपडा दाल कर उसके हाथ से चिट्ठी ली.
तब वो बोली महाराज मेरे साथ यह नाइंसाफी क्यों ? सब लोगो से आपने सीधे तरीके से चिट्ठी ली और मेरे पास से हाथो पर कपडा रख कर ???
तब हज़रत औरंगजेब आलमगिर ने फ़रमाया के “इस्लाम में गैर महराम (पराई औरतो) को हाथ लगाना भी हराम है, और मै जानता हु तु लड़का नहीं लड़की है.
और वोह लड़की बादशाह के साथ कुछ दीन तक ठहरी, और अपनी फरियाद सुनाई,
बादशाह हज़रत औरंगजेब आलमगिर ने उस से कहा “बेटी तू लौट जा तेरी डोली सेनापति के महल पोहोचेगी अपने वक़्त पर”.
लड़की सोच में पड गयी के यह क्या ? वो अपने घर लौटी और उस के बाप पंडित ने कहा क्या हुआ बेटी, तो वो बोली एक ही रास्ता था मै हिंदुस्तान के बादशाह के पास गयी थी, लेकिन उन्होंने भी ऐसा ही कहा के डोली उठेगी, लेकिन मेरे दिल में एक उम्मीद की किरण है, वोह ये है के मै जितने दीन वह रुकी बादशाह ने मुझे १५ बार बेटी कह कर पुकारा था. और एक बाप अपनी बेटी की इज्ज़त नीलाम नहीं होने देगा.
और डोली सजधज के सेनापति के महल पोह्ची, सेनापति ने डोली देख के अपनी अय्याशी की ख़ुशी फकीरों को पैसे लुटाना शुरू किया. जब पैसे लुटा रहा था तब एक कम्बल-पोश फ़क़ीर जिसने अपने चेहरे पे कम्बल ओढ रखी थी.
उसने कहा “मै ऐसा-वैसा फकीर नहीं हु, मेरे हाथ में पैसे दे”,
उसने हाथ में पैसे दिए और उन्होंने अपने मुह से कम्बल हटा दी तोह हज़रत औरंगजेब आलमगिर खुद थे.
उन्होंने कहा के तेरा एक पंडित की लड़की की इज्ज़त पे हाथ डालना मुसलमान हुकूमत पे दाग लगा सकता है , और आप हज़रत औरंगजेब आलमगिर ने इंसाफ फ़रमाया.
४ हाथी मंगवा कर सेनापति के दोनों हाथ और पैर बाँध कर अलग अलग दिशा में हाथियों को दौड़ा दिया गया. और सेनापति को चीर दिया गया.
फिर आपने पंडित के घर पर एक चबूतरा था उस चबूतरे के पास दो रकात नमाज़ नफिल शुक्राने की अदा की , और दुआ की के, “ए अल्लाह मै तेरा शुक्रगुजार हु, के तूने मुझे एक हिन्दू लड़की की इज्ज़त बचाने के लिए, इंसाफ करने के लिए चुना.
फिर हज़रत औरंगजेब आलमगिर ने कहा “बेटी १ ग्लास पानी लाना !”
लड़की पानी लेकर आइ, तब आपने फ़रमाया के जिस दीन दिल्ली में मैंने तेरी फरियाद सुनी थी उस दीन से मैंने क़सम खायी थी के जब तक तेरे साथ इंसाफ नहीं होगा पानी नहीं पिऊंगा.
तब शकुंतला के बाप पंडित और काशी बनारस के दुसरे हिन्दू भाइयो ने उस चबूतरे के पास एक मस्जिद तामीर की. जिसका नाम “धनेडा की मस्जिद” रखा गया. और पंडितो ने ऐलान किया के ये बादशाह औरंगजेब आलमगिर के इंसाफ की ख़ुशी में हमारी तरफ से और सेनापति को जो सझा दी गई वो इंसाफ एक सोने की तख़्त (Gold Slate) पर लिखा गया था वो आज भी उस मस्जिद में मौजुद है, लेकिन शकुंतला के इंसाफ में दिल्ली से बनारस तक् का वो तारीखी सफ़र जो हज़रत औरंगजेब आलमगिर ने किया था वो आज इतिहास के पन्नो में छुपा दिया गया.. ना जाने क्यों ????? खुदाया खैर करे नाइंसाफी के फ़ितनो से !!!!
इस्लाम इंसाफ का आईना : जो लोग मुसलमानों को जालिम की नज़र से देखते है वो इस बात पर जरुर गौर करे के, इस्लाम तलवार की जोर पर फैला नहीं है और अगर ऐसा होता तो आज हिंदुस्तान में ��क भी नॉनमुस्लिम नहीं होता, क्यूंकि इस्लामी मुघलो की हुकूमत पुरे हिंदुस्तान में कई बरसो तक कायम रही थी और उनके लिए बिलकुल भी नामुमकिन नहीं था तमाम नोंमुस्लिम के साथ वो हश्र करना जो हिटलर ने यहूदियों के साथ किया.
• याद रखे के हमारे देश हिंदुस्तान में कभी भी धर्म युद्ध था ही नहीं, जो भी हुआ है वो चंद सियासतदारो की साजिशे थि जिसके जर्ये वो अपना मकसद हासिल करना चाहते थे. और हमारी तुम्हारी आपसी दुश्मनी का बेशुमार फायदा उन्होंने उठा भी लिया”.
• यह भी याद रहे के दंगो में ना मुसलमान मरता है और ना ही हिन्दू मरता है .. दंगो में इंसानियत मर जाती है .. घरो की इज्ज़त-ओ-आबरू लुट जाती है ..
हिन्दू मुसलमान के नाम पर दंगे करवाने वाले न कभी इंसानों में थे और न ही कभी उनकी गिनती इंसानों में की जायेगी, उनके हैवानियत का बदला उन्हें दुनिया में भी मिलेगा और आखिरत में भी उनके लिए दर्दनाक अजाब है . सिवाय उन लोगों के जिन्हें अपनी गलतीयों पर शर्मिंदगी महसूस हुई और तौबा कर सच्छे परवरदिगार की फरमाबरदारी में लग गए.
• क्यूंकि इस्लाम हर हाल में अमन चाहता है इसलिए इस्लाम आज दुनिया का सबसे बड़ा मजहब है जो तेजी से फ़ैल रहा है सिर्फ इसलिए क्यूंकि लोग इस धर्म की सच्चाई को जानने की चाहत रखते है.
और यकींन जानो अल्लाह उसे जरुर हिदायत का मौका अता फरमाता है जो नेकी की राह(सीरते मुस्तकीम) पर चलने की नियत(दुआ) भी करता हो.
इसिलिये मेरे भाइयों और बहनों तुम लोग दिल ही दिल में उस सच्चे परवरदिगार से दुआ करे के वो तुम्हे सही राह दिखाए.. शिर्क जैसे हराम कामो से तुम्हारी सलामती अता फरमाए, और तुम्हे हक-परस्त बनाये!!! आमीन …
!! ए अल्लाह पाक हमे हर हाल में इंसाफ के साथ नेकी की राह पर चलने की तौफिक अता फरमा. इंसाफ पर जिंदगी और इंसाफ पर ईमान के साथ शहादत अता फरमा, नबी-ए-पाक की नायाब सुन्नतो पर अमल की तौफिक अता फरमा !! आमीन ….
अल्लाह तआला हमे पढ़ने-सुनने से ज्यादा अमल की तौफिक दे !!! आमीन
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adnan-siddiqui3 · 3 years ago
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1912 से पहले बिहार बंगाल का हिस्सा था, इस कारण बिहार के निवासी न सिर्फ़ अंग्रेज़ से परेशान थे, बल्कि बंगाली भी उन्हें आगे बढ़ने नही देते थे। बिहार के इलाक़े में कोई भी सरकारी मेडिकल कॉलेज और एंजिनीरिंग कॉलेज नही, कोई भी बिहारी कौंसिल का मेम्बर नही था, हाई कोर्ट में जज नही था। तब बिहार के लोगों ने इसके विरुद्ध आवाज़ उठानी शुरू की और और इसमें जिस शख़्स का पहला नाम आता है, वो हैं जस्टिस सैयद मुहम्मद शरफ़ुद्दीन, जो किसी बड़े पद पर पहुँचने वाले पहले बिहारी थे।
https://heritagetimes.in/justice-syed-sharfuddin-1856-1921/
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adnan-siddiqui3 · 3 years ago
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adnan-siddiqui3 · 3 years ago
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बच्चों की परवरिश में जहां माँ बाप का सबसे अहम रोल होता है, वहीं एक बड़ा रोल दादा-दादी और नाना-नानी का होता है।
दादा-दादी और नाना-नानी द्वारा बच्चों की परवरिश के दौरान जो सबसे अहम काम होता है, वो है बच्चों को कहानियाँ सुनाना।
ये कहानियाँ “एक था राजा - एक थी रानी, दोनो मर गए - ख़त्म कहानी” से शुरू हो कर सिंदबाद, हातिम ताई, अलीबाबा चालीस चोर तक जाती थी। कहानियाँ सिर्फ़ कहानियाँ नही हुआ करती थीं, बल्कि ये बच्चों के इस्लाह का एक बेहतरीन ज़रिया हुआ करती थीं। बातों बातों में दादी नानी नबी (अ स), साहाबा, अहले बैतउ और बुज़ुर्गान ए दीन से जुड़ी हुई बात बता दिया करती थीं।
इसके इलावा इस्लाह के लिए किस तरह खाना खाना है, कौन स�� दुआ कब पढ़नी है, बड़ों की इज़्ज़त करनी है, सबको सलाम करना है, खाना बर्बाद नही करना है, और भी बहुत कुछ के क्या क्या नही करना है।
पर अब वक़्त बदल गया है, अब परिवार इधर उधर हो गया है, बच्चे अपने माँ बाप के साथ, दादा दादी से दूर रहने लगे हैं, उपर से टीवी और मोबाइल का दौर… ये कहानी सुनाने का दौर तक़रीबन ख़त्म सा हो गया है। कभी ये मुस्लिम कल्चर का हिस्सा हुआ करता था। बच्चे सुबह से रात होने का इंतज़ार करते थे की रात में कहानी सुनने को मिलेगा।
अदनान सिद्दीकी
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adnan-siddiqui3 · 4 years ago
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ककोरी कांड के बाद अशफ़ाक के सारे साथी पकड़ लिये गए। अशफ़ाक चौकन्ने थे पुलिस गाँव पहुँची उससे पहले निकल गए, अश्फ़ाक डॉल्टॉनगंज आ गए। वहाँ भेस बदल कर एक एंजिनीरिंग फ़र्म में नौकरी करने लगे बाक़ी साथियों से राबता टूट चुका था। लगभग एक साल तक अश्फ़ाक डॉल्टॉन गंज में रहे।
शायरी का शौक़ था इसलिए हज़ारीबाग़ और प्लामु में होने वाले मशायरे में भी जाते रहे, एक साल बाद तंग आकर उन्होंने मुल्क छोड़ कर अफ़ग़ान निकलना चाहा ताकि वहाँ से कुछ हथियार मिल सके।
अश्फ़ाक इसके लिए दिल्ली गए और वहाँ एंजिनीरिंग की पढ़ाई करने के बहाने मुल्क से बाहर निकलने का इंतेज़ाम करने लगे।
अश्फ़ाक वहाँ अपने स्कूल के दोस्त से मिलते हैं, अश्फ़ाक के सर पर दो हज़ार का ईनाम था उस दोस्त ने ग़द्दारी की और अश्फ़ाक पकड़े गए। बाद में ,19 दिस्मबर 1927 को फांसी पर लटका दिये गए।
आप ये जानकार हैरान हो जाएँगे की मुल्क की ख़ातिर ख़ुद को क़ुर्बान कर देने वाले अश्फ़ाक के नाम पर उनके मुल्क में कुछ भी नही है। अगर आप ग़ौर करें तो एक बात आपको सोचने पर मजबूर कर देगी की इस देश में अश्फ़ाक उल्लाह खान के नाम पर कोई शोध संस्थान नही है, शोध संस्थान छोड़ीए कोई सड़क, पार्क, पुल नदी कुछ भी नही है। यहां तक के उस बिहार मे भी कुछ नही है, जहां शहीद अशफ़ाक़उल्लाह ख़ान ने अपने जीवन के आख़री के दस माह गुज़ारे थे।
क्या बिहार की राजधानी पटना मे उनकी कोई निशानी (भवन, सड़क, पार्क) मौजुद है ? नही है।
#LostMuslimHeritageOfBihar #Bihar #Patna #बिहार #पटना #AshfaquUllahKhan #AshfaqueUllahKhan #AshfaqullaKhan
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adnan-siddiqui3 · 4 years ago
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सुल्तान_अलाउद्दीन ख़िलजी की क़ब्र पर एक अजीब सी खामोशी है....ये योद्धा आज अपनी क़ब्र में है लेकिन हमे बहुत कुछ दे गया!
सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी ने मंगोलो से 4 बार हिन्दुस्तान की हिफाज़त की है...कहते है की मंगोलो को कोई नहीं हरा सकता था लेकिन इतिहास में सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी को जाना जाता है मंगोलो को हराने के लिए।
अगर मंगोल हिन्दुस्तान में घुस जाते तो हिन्दुस्तान का भूगोल ही नहीं यहां के लोगो के चेहरों का भूगोल भी बिगाड़ देते क्यूंकि वह दुनिया ��ी संस्कृति और धर्मो को मिटाने में लगे थे...भूक लगने पर इंसान का गोश्त खा जाते थे और प्यास लगने पर घोड़े के पेर की नस काट कर खून पी जाया करते थे ��से मंगोलो से हिन्द की हिफाज़त की वह है सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी !
हमें फख्र है ऐसे हुक्मरानों पर।
अदनान सिद्दीकी
मुगल
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adnan-siddiqui3 · 4 years ago
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सुल्तान_अलाउद्दीन ख़िलजी की क़ब्र पर एक अजीब सी खामोशी है....ये योद्धा आज अपनी क़ब्र में है लेकिन हमे बहुत कुछ दे गया!
सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी ने मंगोलो से 4 बार हिन्दुस्तान की हिफाज़त की है...कहते है की मंगोलो को कोई नहीं हरा सकता था लेकिन इतिहास में सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी को जाना जाता है मंगोलो को हराने के लिए।
अगर मंगोल हिन्दुस्तान में घुस जाते तो हिन्दुस्तान का भूगोल ही नहीं यहां के लोगो के चेहरों का भूगोल भी बिगाड़ देते क्यूंकि वह दुनिया की संस्कृति और धर्मो को मिटाने में लगे थे...भूक लगने पर इंसान का गोश्त खा जाते थे और प्यास लगने पर घोड़े के पेर की नस काट कर खून पी जाया करते थे ऐसे मंगोलो से हिन्द की हिफाज़त की वह है सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी !
हमें फख्र है ऐसे हुक्मरानों पर।
अदनान सिद्दीकी
मुगल
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