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7th में पढ़ रही बेटी को गर्मी की छुट्टियों में स्कूल से इतिहास में असाइनमेंट मिला है। पूरी रिसर्च है जीसस क्राइस्ट पर। मैंने पूछा और भी कुछ है बेटा? जवाब मिला हाँ Rising of Islam भी करना है माँ। मुग़ल सल्तनत भी है। फिर पूछा मैंने हिन्दू धर्म या किसी हिन्दू राजा के बारे में नहीं पढ़ना है क्या? मेरी आजिज सी शक्ल देख कर कुछ समझाने के से अंदाज में बोली Ashoka the Great को भी पढ़ना है माँ जो बाद में Buddhism को मानने लगे थे। तय कर लिया है मैंने कल से ही रामचरितमानस को भगवान् के पास से उठा कर बच्चों के स्टडी टेबल पर रख लूंगी। रोज चार चौपाई ही सही पर पढूंगी जरूर।और खूब मजेदार और रोचक बना कर अर्थ समझाऊँगी। इससे ज्यादा मैं क्या कर पाऊँगी पर ये कम भी नहीं इतना जानती हूँ।
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विरोधी भक्ति-- एगो चरवाहा था। बेचारा छौंड़ा अनाथ था।गांव में भीषण गरीबी थी । खाना मिले हुए कई कई दिन बीत जाता था। दुःख तकलीफ में था सो भगवान् से बहुत सी शिकायतें भी थीं। सब पूजा पाठ करने वालों को कहे कि भगवान् उगवान् कुछ नहीं होता। होता तो हमलोग का पेट भरता, भला करता न कि दुःख तकलीफ देता। गाँव के लोग डाँट डपट के भगाये तो और खिसिया जाये। कहे कि ई भगवान् हमको मिले तो पहले हम इसी का गर्दन चाँप दें। मूड़ी मचोर दें। गाय गोरु चराने भोरे भोरे जंगल जाते हुए एगो भोला बाबा का मंदिर पड़ता था। थोडा सुनसान रहता था। त उ करे क्या कि पहले मंदिरवा में घुस जाये और भोला बाबा को जमा के एक लात दे। कि तुमको लोग पूजता है जल चढ़ाता है ले हम एक लात मारते हैं तुमको। नित दिन का नियमे बना लिया था। रोज जाये । एक लात मारे तब आगे बढे। कई साल गुजर गया लेकिन उ लात मारना नहीं छोड़ा। एक साल बरसात का दिन था । रातों रात भारी बाढ़ आ गया। घर आदमी माल मवेशी सब दहने लगा। जान बचाना मुश्किल। केतना लोग बह गए जो बचे उ कोई सुरक्षित जगह खोज के बैठे। छौंड़वा कैसे कैसे कोई पेड़ पर चढ़ के रात बिताया। भोर हुआ तो तैरते छपलाते मंदिर में पहुँचा। भोला बाबा भी अरघा तक पानी में डूबल थे। जमा के मारा एक लात। आज लात मारते ही भोला बाबा साक्षात प्रकट हो गए। बोल बेटा क्या मांगता है हम प्रसन्न हुए तुमसे। अब तो हो गया हक्का बक्का! बोला कि हम तो आपको रोज गरियाते थे लात मारते थे। आप हमसे खुस कैसे हो गए। लोग आपका इतना पूजा करता है उनको दरसन नहीं दिए। भोला बाबा बोले कि बेटा तुम्ही है मेरा सच्चा भक्त! लोग हमको मानते हैं जपते हैं लेकिन आज बाढ़ में अपना जान बचा रहे हैं किसी को मेरा पूजा करना याद नहीं। और तुम हमको लात मारता है तो तुम अपना नियम तोड़ा नहीं। जान का परवाह छोड़ के हमको लात मारने आ गया। तो बेटा विरोध करते हुए भी तुम मेरा सच्चा भक्ति किया। ये विरोधी भक्ति भी भक्ति का ही एक प्रकार है । ऐसे तो हमको ई कहानी दो बहुत बढ़िया फेसबुक लेखकों के आपस के प्यार को देख के याद आई। पर जिसको जहाँ से समानता मिले वहीँ इस कहानी को फिट कर लें।
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आजकल दो रोटियाँ बचाने लगी हूँ मैं! इस छप्पर ने मेरी इंसानियत को थोड़ा बचा रखा है। इस छप्पर ने ही मुझे प्रकृति से थोड़ा जोड़ रखा है। आ जाती है गौरैया, कबूतर और कभी कभी कौए भी। रोटियों के टुकड़े,चावल के दाने और कभी ज्यादा पका आम! बेटी की थाली का एक दाना भी बेकार नहीं जाता है। थकी जागी आँखों को भी थोड़ा आराम मिल जाता है। आजकल दो रोटियाँ ज्यादा बनाने लगी हूँ मैं!!
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अपनी जिंदगी में आज हम जो भी कर रहे हैं उस सब का हिसाब होता है और ये हिसाब किताब होते हैं बच्चे! और कई बार ये हिसाब किताब करते भी बच्चे ही हैं।
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जिंदगी साल दर साल आगे दौड़ती जा रही है, हाथ खाली ही नजर आता है, एक एक पल कितनी मुश्किल से गुजारता है, साल चुटकियों में गुजर जाता है।
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मुट्ठी खोलिये और बिहार में निवेश कीजिये… लेकिन आपके जान की जिम्मेदारी आपकी। जहां अंडरवर्ल्ड का खतरा है वहां उद्योग नहीं है क्या… अब यहां तो आपको आदते है लुटाने पिटाने और मरा जाने का। मोह माया से ऊपर उठिये काहे कि बिहार में बहार है। जिसपे जनता किया अँधा भरोसा उहे निकल गया गद्दार है। कानून व्यवस्था की कोई समस्या नहीं, बाकी सब मन की बात है।
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जगदम्ब अहीं अवलम्ब हमर हे माई अहां बिन आस ककर। काली दुर्गा कल्याणी छीं अहां उमा रमा ब्रह्माणी छीं छै नाव पड़ल एक बीच भंवर हे माई अहां बिन आस ककर। जगदम्ब अहीं अवलम्ब हमर हे माई अहां बिन आस ककर।
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आतंकियों (भागे हुए हत्यारे आतंकियों ) का सरेंडर करवाया जा सकता था! लो कर लो बात ये तो वही बात हुई कि बलात्कारी अफजल को सिलाई मशीन तो दी ही अब एक कानून ही लागू कर दो कि सारी लड़कियों औरतों को वहीँ कपडे सिलवाने हैं वो भी नाप दे कर। मानवाधिकार की भी कोई हद है या नहीं!!
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हाय हाय मोदीजी आपने ये क्या किया!! केतना मुश्किल से बबुआ के पप्पा से छुपा के पइसा जोड़े थे झुमका बनाने के लिए। अब कहाँ जाएँ हम? काल्हे तो उ पूछ रहे थे कुछ पइसा रखी हो जी? हम तड़ाक से कह दिए हमारे पास जहरो खाने के लिए पइसा छोड़ते हैं क्या आप! अब कौन मुँह से कहें कि हजार आर पांच सौ का नोट बैंक से बदल लाइए!! यही से कहा जाता है छड़ा छांट आदमी का कोई भरोसा नहीं। घर गृहस्थी वाले का दुःख घरे गृहस्थी वाला समझ सकता है!!!! मोदीजी हाय हाय!!
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क्या है यार कुछ भी! जिंदगी एक ही बार मिलती है इसलिए मैं अपने दिल की सुनती हूँ इसलिए भीषण सर्दी में आइसक्रीम खाती हूँ !!!! ^_^ माने दिल कुछ और नहीं बोलता?? माय लाइफ माय चॉइस!!!! टीवी पर एक सीरियल में यही दिखा रहा है।।
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डियर भगवान, कैसे हो? अच्छे ही होगे काहे कि तुमको तो दिन दुनिया के भौतिक दैहिक पचड़ों से कोई फर्क पड़ने नहीं वाला। माया के भूल भुलैया में भटकने के लिए हम लोग तो हैं ही। तुमको न गैस का नम्बर लगाना है न डॉक्टर का! न बच्चा लोग का एडमिशन कराना है ना स्टेशनरी के दूकान दौड़ना है! ना तुमको फ���री का सिम चाहिए ना नेट! तुम्हारा काम तो बिना कैश बिना प्लास्टिक मनी चल जाता है! माने कुल मिला के जितना झँझटिया कार्यक्रम है सब हमही लोग के हिस्सा में डाल दिए हो और अपने चैन का बंसरी बजा रहे हो कहीं नंदन कानन में! नहीं ये बताओ कि कोई तुमसे सवाल ना करे तो क्या करे? पैदा किये हो हिंदुस्तान में और ऊपर से औरत जात! राहत का एक भी सांस लेने का मोहलत नहीं है पूरा जिंदगी में। अरे जब औरते बनाना था तो राबड़ी बना के कहे नहीं भेजे? एगो लालू भी नसीब में लिख देते! गोयठा ठोंकते ठोंकते मुख्यमंत्री बन जाते!बाल बच्चा का जिंदगी सेट रहता। औरत के जिंदगी मिले तो पति टैलेंटेड मिले! नहीं तो जिंदगी व्यर्थ॥ अरे लगे हाथ राबड़ी से याद आया ये बच्चा पैदा करने का दर्द सहने का पूरा कोटा औरते के हिस्सा में कहे डाले हो! औरत साले साल दर्द सहे तो मर्द को पूरा जिंदगी में एक बच्चा पैदा करने का मौका तो देते। उसको भी तो औरत के दर्द का कुछ अहसास होता। और तब देखते तुम कि ये दुनिया का रूप क्या होता! लेकिन नहीं, चलाना तो तुमको अपना मनमानी ही है। कम लिखे हैं ज्यादा समझना और चिट्ठी को तार समझना। करो जो मन करे पर एक बात याद रखना धिरा रहे हैं तुमको, भूले से मेरे सामने मत आना। काहे कि सामने आओगे तो सबसे पहले तुम्हारा मूड़ी मचोरेंगे हम।। बुझे रहना। जो बुझाय करो, रोकने वाले हम कौन!!!!
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तो भाइयों और बहनों, प्रधानमंत्री को भी पता है, उनके बाद सब चोर हैं। फिर भी ऐसे ही नहीं उन्होंने ये आत्मघाती कदम उठाया है। कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी मित्रों यूँ ही कोई बेवफा नहीं होता॥ ☺ इतने से ही मत घबराओ। ये तो अभी जमीन की मापी ही की गई है। नींव भी नहीं पड़ी अभी। मकान बनने तक क्या क्या किया जाना बाकी है ये तो मालूम ही है। एक के बाद एक ऐसे फैसले आते रहेंगे। स्वच्छ्ता अभियान चलता रहेगा। क्योंकि भाइयों और बहनों मोदी के दाँत खान�� के और हैं दिखाने के और!!!
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लूपहोल्स हो सकते हैं, कमियां निकाली जा सकती हैं। पर इसका मतलब ये नहीं कि इस डर से फैसले ही न लियें जाएँ। हम औरतों की मेहनत होती है, संयम होता है। मन को मारते हैं तब जा कर दो पैसे जोड़ते हैं। घर का इमरजेंसी फण्ड होता है हमारे पास। सब सही है। कुछ भी गलत नहीं इसमें। पर क्या किया जाये एक बड़ा फैसला बहुत चीजों पर प्रभाव डालता ही है। और एक बात बताइये चोर क्यों साबित हुए हम? जब जरूरत पर पति की मदद की, घर की इज्जत को सम्हाला तो अच्छे थे हम!! जो चोर बोले आड़े हाथ लीजिये उसको। पति है तो क्या? जो लड़े, ताना दे उसको आप भी यूँ ही नहीं छोड़िये। उसकी कमियाँ हमसे ज्यादा जानता है क्या कोई। तानों की कमी है क्या हमारे पास? बच्चों के कितने शौक पूरे किये हैं पापा से छुपाकर! उनको अपने साथ लाइए। बड़े होते बच्चे तानों, लड़ाइयों का फैसला तो क्या कई बार निर्मम पिता, दादा का उठा हुआ हाथ भी रोक लेंगे। खुद बेचारी बन कर अभी तक जी ही रही हैं, उनको तो आवाज उठाना सीखने दीजिये। ये उनकी जिंदगी के लिए कहीं जरूरी है। मायके का इल्जाम भी लगेगा। तो ये इल्जाम हो ही क्यों? आप अपने माँ बाप को करो तो फर्ज मैं करूँ तो चोरी? नहीं बहनजी! पहले खुद को ऐसी सोचों से उबारिये। वरना दुनिया बदले ना बदले आप भाँड़ में ही रहेंगी। कोशिश करने का मौका मिला है चूकिये नहीं। मौका बार बार नहीं मिलता। अभी साथ भी मिल जायेगा आपको। और इन सब से फुर्सत पाइये तो सबसे पहले एक अकाउंट खुलवाइये। बैंक या पोस्ट ऑफिस में। अपनी कामवाली का भी खुलवा दीजिये। थोड़ी हिम्मत और मिलेगी।।
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बचपन से गैस चूल्हा रहा घर में। 2005- 2006 में मेरे पति की पोस्टिंग अलीगढ में हुई थी। महीना बीतने से पहले वहां दंगा भड़क गया था। एक शार्प शूटर ने रेलवे रोड स्थित किसी प्रतिष्ठान के मालिक को शाम के नीम अँधेरे में शूट कर दिया। ये हत्या सांप्रदायिक रंग में कैसे रंग गई ये मैं अब नहीं बता सकूँगी। फना मूवी रिलीज़ हुई थी और ग्रैंड सुरजीत थिएटर में लगी हुई थी। हमने मूवी देखने का सोचा और चले गए। मूवी खत्म होने में 15 - 20 मिनट ही रहे होंगे कि लोकल लोगों के मोबाइल बजने लगे और लोग धड़ाधड़ थिएटर से निकलने लगे। हम तो अलीगढ में नए ही थे और जाहिर है हमारे कोई रिश्तेदार भी वहां नहीं रहते थे तो हमें किसी का कोई फ़ोन नहीं आया। हमें मामला समझ तो नहीं आया पर लोगों की देखादेखी हम भी निकल लिए। शाम 4-5 का वक़्त होगा। जैसे हमलोग निकल भागे थे ठीक उसी तरह एक नवविवाहित जोड़ा बाइक से उसी थिएटर से निकल कर रेलवे रोड होते हुए अपने घर की तरफ बढ़ा। पर न जाने कैसे हिंसक भीड़ ने लड़के को मार दिया। गोली मारी या कैसे मारा ये अब याद नहीं आ रहा मुझे। हम क्वार्सी, रामघाट रोड पर रहते थे जो अपेक्षाकृत सुरक्षित इलाका था। घर पहुँच कर मकान मालिकों से कुछ जानकारी मिलने लगी कुछ ऑफिस के लोगों के फ़ोन से। दिनचर्या पर कुछ ख़ास फर्क नहीं पड़ा। पर समस्या ये हो गई कि इंडियन ओवरसीज बैंक में सैलरी अकाउंट था। पर इस बैंक और इसका एकमात्र एटीएम दोनों रेलवे रोड में स्थित थे जहाँ कर्फ्यू लगा दिया गया था। पैसे अकाउंट में आये हुए थे पर निकल नहीं सकते थे। तब दूसरे किसी एटीएम से निकलने की सुविधा भी नहीं थी। रेलवे रोड पर कर्फ्यू था पुरे शहर में बिजली की अबाध आपूर्ति थी। ताकि एक सेकंड भी अँधेरा ना हो। मेरी मकान मालकिन आंटी जाट थीं। एक रईस लेकिन मेहनती दबंग टाइप की महिला। तीन भैसें पाले हुई थीं और सानी पानी अकेले दम पर करती थीं। मैं उनसे कहने गई कि ऐसी ऐसी बात है मैं किराया समय पर नहीं दे सकूँगी। पैसे जैसे ही निकलेंगे सबसे पहले उन्हें ही दूँगी। जवाब में उन्होंने जो कहा मैं कभी नहीं भूल सकूँगी। उन्होंने कहा- मुझे पैसे की कोई जरूरत ना है, इन पैसों से मेरा घर ना चले है। तू बिलकुल चिंता ना कर। और घर चलाने के लिए तो तू मुझसे पैसे लेती जा। मेरे पास रहकर तू किसी तरह की तकलीफ ना करना। मैं कहती तो क्या पर मेरे सीने का बोझ थोड़ा हल्का जरूर हुआ। पैसे लेने नहीं थे। जो अपने पास था उसी को चलाना था। और अपना आत्मसम्मान भी मेन्टेन रखना था। खाने पीने तो किसी तरह चला ही लेना था। पर अहसास था कि गैस सिलिंडर खाली हो जाना वाला है। अगले कुछ दिनों में मैंने बहाने बहाने से आंटी को कहा कि आप इन उपलों का अच्छा उपयोग करती हैं पानी वानी गर्म करने में। कुछ और इधर उधर की बातें भी कही हूँगी जो अब मुझे याद नहीं। जाने कैसे उन्होंने कहा दिया कि बुध के फेट से तू भी एक लोहे का चूल्हा मँगवा ले मैं मिटटी चढ़ा दूँगी। तू ऊपर ऊपर के काम कर लिया करना। अँधा क्या चाहे दो आँखें! मैंने झट चूल्हा मँगवा लिया। चुपके से कोयला भी मंगवा के रख लिया। चूल्हा पे मिटटी चढ़ते सूखते गैस सिलिंडर भी टें बोल गया। मैं ऊपर ऊपर का काम बोल कर उपले ले आती और ऊपर छत पर ले जा चूल्हे में ताव दे के कोयले सुलगा लेती और उसके ऊपर ही खाना बनाती। बस सावधान रहती कि मेरी बेटी जिसने चलना बस शुरू ही किया था वो चूल्हे तक ना पहुँच पाये। चूल्हा जब तक जला रहता दिन भर की सारी चीजें तैयार करनी होती थीं। बेटी को भी दिन भर जो भी खिलाना होता तैयार कर लेना होता था। खिचड़ी, दलिया या कुछ घरेलू स्नैक्स। लिमिटेड सामान, पैसों में चलना था। और दिन अनलिमिटेड थे। आगे का कुछ समझ नहीं आ रहा था। मायके ससुराल जहां भी बात होती हम अपनी खैर खबर सुनाते थे पर चूल्हे की बात कहीं नहीं बताया हमने। महीना बीतते बीतते कर्फ्यू हट गया। माहौल सामान्य होने लगा और पैसे निकले तो गैस भी आ गया। समय बीता और संयम से बीता। अगले महीने जब ससुराल लौटी तो दंगों की बात करते बताते ये बात भी निकल गई। मेरे पति ने कहा कि इसने तो एक महीना कोयले के चूल्हे पर खाना बनाया। मेरी सासु माँ ने तो झट से कह दिया कि अब जैसी परिस्थिति बन गई थी उसमें और क्या करती। पर भईया (मेरे जेठ) के मुँह से थोड़ी देर आवाज नहीं निकली। भावविह्वल होकर कुछ मिनट के बाद बोले हम जानते हैं ई बहुत अच्छी लड़की है हर परिस्थिति को सम्हाल लेगी। जब अपनी माँ को बताए तो भौचक हो के पूछने लगी कि तुम चूल्हा में ताव देना कब सीखी? आवश्यक आविष्कार की जननी होती है। जानवर भी अपनी जरूरत पूरी करना और अपनी सुरक्षा करना जन्मते सीख लेता है। हम तो इंसान हैं। बस आदत खराब किये बैठे हैं। और आदतों का क्या है अपने दृढनिश्चय की बात है! और शायद जरूरत की भी । तो लो भैये अभी जरूरत भी सरकार ने मुहैय्या करा दी है।😂 कुछ तो फायदा उठा लो।
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आज मेरी छोटी बेटी मुझसे सवाल कर रही थी मम्मा, ये बताओ सबलोग अभी अपने भले की लिए ही ब्लैक मनी निकाल रहे हैं ना! तो ये बताओ कि पहले ब्लैक मनी बनाये ही क्यों?? भरस�� कोशिश किया मैंने कि इतना जटिल विषय उसे उसके ही शब्दों में समझा सकूँ। पर आप क्या समझे? अपने आस पास घट रहे सारे चीजों से नई पीढ़ी वाकिफ होती है। अपने स्तर पर बच्चे भी चर्चा कर रहे हैं। कितना समझ रहे हैं ये एक अलग विषय हो सकता है। इतना संतोष जरूर हुआ कि अभी का माहौल नई पीढ़ी की जड़ों में बूँद बूँद ही सही पर सकारात्मकता ही डाल रहा है। मैंने वाटर बॉटल और क्लास में उपलब्ध पानी का उदाहरण देकर समझाया उसे। पर जो जवाब मेरे पास नहीं है अगर आपके पास है तो दीजिए, कि पहले ब्लैक मनी बनाये ही क्यों??
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मैं : मैं बिहारी हूँ। लोग : अरे, ऐसे मत बोलिये! मैं : (भौचक) क्यों? लोग : नहीं नहीं ऐसे मत बोलिए। वो देखिये बिहारियों के बच्चे कैसे सड़कों पर पड़े हैं। मैं. : बिहारी माने बिहारी मजदूर (ओह अब समझ आया) मैं. : (चिढ़ के मारे और तन कर) मैं बिहार से हूँ तो बिहारी ही हुई ना! लोग : आप बिहार से हैं? लगती तो नहीं! मैं : क्यों? लोग : अच्छा! अरे वहां तो जंगल है ना! मैं : जंगल! मैं पटना से हूँ! बिहार की राजधानी। लोग : नहीं वो वहाँ तो जंगलराज है ना? (मैं जबान से) हाँ हाँ वहां तो सड़कों पर शेर चीते घूमते हैं। (मैं मन में) पिल्लू पड़े ललुआ को, आग लगे उसके खानदान को ………
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और हाँ पिता नसीब से मिलते हैं जिनके नसीब में ना हों उनको सारे ओले अपने माथे लेने पड़ते हैं कभी कभी तो अपने सर पे साया रखने को खुद ही पिता बन जाना पड़ता है! पर तब भी पिता की कमी पूरी नहीं हो पाती।
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