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अदाकारी
# विश्व रंगमंच दिवस लाइट कैमरा एक्शन जाल बुनकर परिस्थितियों का ज़िंदगी लाइट सब पर डालती हैं, फिर कैमरा बनकर लोगों की नजर हर दिन, हर पल उसको छानती है! साथ उसका देने को तब कोई तैयार नहीं होता , कैसे कह दूँ अपना रोल निभाता हर आदमी अदाकार नहीं होता ! ऐसे में बिखरे टुकड़े सहेजकर आस पास माहौल देखकर उसे एक्शन में आना होता है ! अश्क आँखों में दबाकर उसे तब मुस्कुराना होता है ! उस सीन को वो…
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शिव -पार्वती
अग्नि सी जल रही थी जिह्वा पर , पीड़ा थी ,जलन थी , आर्तनाद था ! गरल से भरा था कंठ उनका , पर मन ठहरा हुआ था , शांत था ! सृष्टि को बचाने की पहल में, शिव का त्याग बोलो किससे भला अब छुपा था? जाने जगरक्षक का नाम विनाशक क्यों पड़ा था? देह विलीन हो रही थी ज्वाला में , दहक थी,लपट थी , अपमान था ! क्षोभ से भरे हुए थे नयन उनके ! पर मन ठहरा हुआ था ,शांत था ! पति की अवमानना पर , जान दे देना भी…

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गरल की ये छोटी अदृश्य शीशियाँ !जन्म के साथ ही ईश्वर ने जैसे हर हाथ में थमा डाली हों ,गरल की कुछ छोटी अदृश्य शीशियाँ ,हर को सम्भालनी होती है ,अपनी यह थाती ,अपनी गरल की ये छोटी अदृश्य शीशियाँ ! पीना पड़ता है घूंट घूंट अपने हिस्से का ज़हर ,हर रोज़ ,हर बार !बिना किसी आवाज़ के ,चुपचाप !फिर अपने रुतबे पर यह शीशियाँ हैं इतराती ,हर को सम्भालनी होती है ,अपनी यह थाती ,गरल की ये छोटी अदृश्य शीशियाँ !दिनोदिन…

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एक बून्द स्याही सी ज़िंदगी!
एक बून्द स्याही सी ज़िंदगी!

एक बून्द स्याही सी ज़िंदगी , शब्दों के आगोश में मचलती सी ज़िंदगी ! थोड़ी कही ,थोड़ी अनकही सी ज़िंदगी !
दौड़ते भागते थम गयी हो जैसे , थोड़ी रुकी ,थोड़ी चली सी ज़िंदगी ! एक बून्द स्याही सी ज़िंदगी ! शब्दों के आगोश में मचलती सी ज़िंदगी !
चाहते आकर सुलगा गयी हो जैसे , कुछ जली कुछ बुझी सी ज़िंदगी एक बून्द स्याही सी ज़िंदगी ! शब्दों के आगोश में मचलती सी ज़िंदगी !
रिश्ते से जुड़ा कोई धागा हो जैसे ! कुछ उलझी कुछ…
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इंतज़ार
तुझमे देखा है ,एक दरिया भी और किनारा भी, रिश्ता ही कुछ ऐसा है ,तुम्हारा भी ,हमारा भी !
बहती हुई हवाओं ने दरख्तों को चुपके गवाही दी है , रिश्तो पर पड़ी रेत को हमने ,उड़ाया भी ,बहाया भी !
निश्चिन्त सफर करना इन कश्तियों के मुकद्दर में कहाँ ? किनारों ने अक्सर इनको डुबाया भी ,बचाया भी !
इंतज़ार में तेरी मुहब्बत ,”यकीं “सुबकता रहा रात भर याद ने उसकी आ -आकर हंसाया भी रुलाया भी ! -अमृता श्री

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कब्ज़ा

वो जो तुम , नींद में भी , खिसककर जब पास मेरे , आ जाती हो , मेरी बाँहों को तकिया , हक़ से जब अपना बना जाती हो , यार तुम मुझपर , हसीं कब्ज़ा जमा जाती हो !
वो जो तुम , जाते जाते कहीं , भागकर वापस मेरे पास आ जाती हो , अपनी बाँहों में बांधकर गले मुझको , लगा जाती हो , शर्ट के बटन पर मेरे , अपने कुछ बाल उलझा जाती हो ! यार तुम मुझपर , हसीं कब्ज़ा जमा जाती हो !
वो जो तुम , हड़बड़ी में कभी, तौलिये से मेरी , अपनी
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परेशां हूँ , लत तेरी, जो लगी है , छूटती क्यों नहीं मुझसे ? हैरान हूँ , बातें जो तेरी हैं ,भूलती क्यों नहीं मुझसे ? परेशां हूँ ! अकेले में जब , हवा का झोंका , छू मुझे जाता है , ख्यालों से निकलकर तू , फिर मेरे सामने आ जाता है ! यादें तेरी ,जो आती-जाती हैं , ऊबती क्यों नहीं मुझसे ? लत तेरी, जो लगी है ,छूटती क्यों नहीं मुझसे ? बातें जो तेरी हैं ,भूलती क्यों नहीं मुझसे ? परेशां हूँ…
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बड़ी खूबसूरत लगती हो तुम !
बड़ी खूबसूरत लगती हो तुम !

सिलवटें जो है , पेशानियों पर, करवटें हैं वो जिंदगी की ! थकी आँखों से जब शाम को , दरवाजे पर मिलती हो तुम , बड़ी खूबसूरत लगती हो तुम !
ज़ुल्फ़ों के बीच जो , कुछ सफेद सी लटें , किसी शैतान बच्चे सी जब , मानती नहीं है तुम्हारी बातें , जुल्फों के बीच से जब , नटखटपन से वो झांकती हैं , जुड़े में कसकर फिर उन्हें तुम उन्हें बांधती हो, बड़ी खूबसूरत लगती हो तुम !
कोई कोशिश जो , दबाना चाहती हो तुमको , कोई कोशिश जो,
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जुस्तजू
तेरी जुस्तजू में खुद को संवारा करेंगे हम , यादों के जुगनुओं से तब तक गुजारा करेंगे हम !
प्यार के इस दरिया को हम पैमाने में क्यों मापे? तेरी आँखों में सनम खुद को उतारा करेंगे हम !
जब मैं और तू हो और दरमियान हो बस खल्वत, किसी और का जिक्र भी तब क्यों गवारा करेंगे हम ? कठिन शब्द : खल्वत :एकांत
-अमृता श्री

Photo by Noelle Otto on Pexels.com
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दिल का रिश्ता

अपने हिस्से के जज्बातों को ,तू दबाता क्यों है ? प्यार गर दिल में नहीं है ,तो फिर जताता क्यों है ?
तुझसे जोड़ कर रखा है ,मैंने दिल का रिश्ता, तू किसी मुब्हम में है तो, मुझसे छिपाता क्यों है ?
पाश-पाश जो हुआ दिल तो समेट लेना होगा ,
वक़्त तू मुझे हर बार आईना दिखाता क्यों है ?
शाम के ढलने से जमीन आज फिर उदास हुई , हर बार हाथों से यूँ सूरज फिसल जाता क्यों है ?
गैरों के हाथों कब हुआ है कोई तार -तार…
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बेमुरव्वत
हाँ ,एक बेमुरव्वत ख़्वाब हूँ मैं , कांच सा हूँ ,चुभता ही जाऊंगा !
मुझमे खुद को ना तलाशना कभी , आईना हूँ तुमसे सच बोल जाऊंगा !
धागों की जद में न ठहरा हूँ कभी , पैरहन हूँ मैं शिकस्ता, टिक ना पाउँगा !
तेरी ज़ुल्फ़ों की कैद में रहूं , मैं क्यूँकर ? वक़्त सा हूँ ,मुट्ठियों से फिसल जाऊंगा ! -अमृता श्री
* कठिन शब्द
पैरहन -कपड़ा
शिकस्ता-फटा हुआ

Photo by Heiner on Pexels.com
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मुहब्बत!
मुहब्बत का ऐसा असर हो गया है , कि हर ओर बस तू ही तू रह गया है|
ज़िंदगी है बस एक सराब की मानिंद , और तू मेरा अब्र-ए-करम बन गया है !
इस काली रात के सन्नाटे है हर सू, तू रोशनी में लिपटा सहर बन गया है |
बज़ाहिर ,तू है तो हासिल है सब कुछ , तू खुदा का मुझपे करम बन गया है|
-अमृता श्री

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बेफिक्र
उसकी यादों को हमने ज़हन में समेटे रखा , वो खुशबू की तरह मुझमे बिखरता चला गया !
उसके लबों पर नाम किसी रकीब का था “श्री ” , जानकर मैं भी फिर खुद में सिमटता चला गया !
उसकी हर बात ने हर बार किये टुकड़े मेरे हज़ार , और बेफिक्र वो ,अपने किस्से सुनाता चला गया !
हर रिश्ते को बावफ़ा निभाया हमने , और वक़्त था कि मुझे ही आजमाता चला गया ! -अमृता श्री

Photo by Radu Florin on Pexels.com
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रस्मे उल्फ़त
रस्मे उल्फ़त कुछ यूँ निभा गया कोई, हँसते लबों से अपने आंसू छुपा गया कोई !
तुमने हक में उससे कुछ ख़ास लम्हें मांगे , और हंस कर अपनी ज़िंदगी लुटा गया कोई !
तुमने कसौटी पर हर बार उसे जांचा -परखा , और हर बार यह रस्म निभा गया कोई !
उसकी आँखों से जो एक बेबसी सी झलकी , दर्द अपना भूलकर उसे गले लगा गया कोई !
चला गया वो बिखरे ज़ज्बातों के टुकड़े समेटकर , आज फिर से मेरी आँखों को रुला गया कोई ! -अमृता श्री

Phot…
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ख़ामोश अकेले जलते क्यों हो ?
ख़ामोश अकेले जलते क्यों हो ?

ख़ामोश अकेले जलते क्यों हो ? ए दीपक खुद को छलते क्यों हो ?
छाया है घनघोर अँधेरा ,
लोग कर रहें तेरा -मेरा ,
ला पाओगे क्या नया सवेरा ?
तिल -तिल कर फिर तुम मरते क्यों हो ?
ए दीपक खुद को छलते क्यों हो ?
जीवन की इस भागदौड़ से
जब थक गया आज मन मेरा ,
याद आ गया निर्भय जलना तेरा ,
आज समझ में आया मुझको ,
रोशनी सब…
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ख़ामोश अकेले जलते क्यों हो ? ए दीपक खुद को छलते क्यों हो ?
छाया है घनघोर अँधेरा ,
लोग कर रहें तेरा -मेरा ,
ला पाओगे क्या नया सवेरा ?
तिल -तिल कर फिर तुम मरते क्यों हो ?
ए दीपक खुद को छलते क्यों हो ?
जीवन की इस भागदौड़ से
जब थक गया आज मन मेरा ,
याद आ गया निर्भय जलना तेरा ,
आज समझ में आया मुझको ,
रोशनी सब…
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चाँद और दुल्हन : करवा चौथ स्पेशल
चाँद और दुल्हन : करवा चौथ स्पेशल

सुनो न , वो जो नज़रें तेरी , जिसे ढूंढ रही है , वो बादलों के पीछे , छिपा है , जान लो न तुम !
सुनो न , लाख शिकायते कर रही हो , मनुहार कर उससे लड़ रही हो , वो बादलों के पीछे , अड़ा है , मान लो तुम !
और वो हो भी क्यों ना , बादलों के पीछे ? सोचो न क्यों तेरी हर फरियाद से , है वो आंखे मींचे ! कुछ तो कहो ना ?
मौन हो तुम , छोड़ दो आज मैं ही बताता हूँ , हमसफ़र हूँ तुम्हारा राज़ की बात खुद तक , मैं भी कहाँ रख भी…
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