हिंदी / उर्दू के मशहूर शायरों के चुनिंदा अश'आर / गज़ल का विशाल संग्रह
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चल निकलती हैं ग़म ए यार से बातें क्या क्या
चल निकलती हैं ग़म ए यार से बातें क्या क्या हम ने भी की�� दर ओ दीवार से बातें क्या क्या, बात बन आई है फिर से कि मेरे बारे में उस ने पूछीं मेरे ग़मख़्वार से बातें क्या क्या, लोग लब बस्ता अगर हों तो निकल आती हैं चुप के पैराया ए इज़हार से बातें क्या क्या, किसी सौदाई का क़िस्सा किसी हरजाई की बात लोग ले आते हैं बाज़ार से बातें क्या क्या, हम ने भी दस्त शनासी के बहाने की हैं हाथ में हाथ लिए प्यार से बातें…
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ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते
ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते जो आज तो होते हैं मगर कल नहीं होते, अंदर की फ़ज़ाओं के करिश्मे भी अजब हैं मेंह टूट के बरसे भी तो बादल नहीं होते, कुछ मुश्किलें ऐसी हैं कि आसाँ नहीं होतीं कुछ ऐसे मुअम्मे हैं कभी हल नहीं होते, शाइस्तगी ए ग़म के सबब आँखों के सहरा नमनाक तो हो जाते हैं जल थल नहीं होते, कैसे ही तलातुम हों मगर क़ुल्ज़ुम ए जाँ में कुछ याद जज़ीरे हैं कि ओझल नहीं होते, उश्शाक़ के…
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अब तक यही सुना था कि बाज़ार बिक गए
अब तक यही सुना था कि बाज़ार बिक गए उनकी गली गए तो ख़रीदार बिक गए, लगने लगी हैं मुझ से भी नाक़स की बोलियाँ यानि जहाँ के सारे ही शहकार बिक गए, जिसने हमें ख़रीदा मुनाफ़ा कमा लिया अपना है ये कमाल कि हर बार बिक गए, अंजाम ये नहीं था कहानी का असल में क्या कीजिए कि बीच में किरदार बिक गए, जंगल की धूप में भी न साया हमें मिला क़ीमत लगी तो देखिये अश्जार बिक गए, इतना तो फ़र्क है चलो अपनों में गैर में अपने थे…
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असर उस को ज़रा नहीं होता
असर उस को ज़रा नहीं होता रंज राहत फ़ज़ा नहीं होता, बेवफ़ा कहने की शिकायत है तो भी वादा वफ़ा नहीं होता, ज़िक्र ए अग़्यार से हुआ मालूम हर्फ़ ए नासेह बुरा नहीं होता, किस को है ज़ौक़ ए तल्ख़कामी लेक जंग बिन कुछ मज़ा नहीं होता, तुम हमारे किसी तरह न हुए वर्ना दुनिया में क्या नहीं होता, उस ने क्या जाने क्या किया ले कर दिल किसी काम का नहीं होता, इम्तिहाँ कीजिए मेरा जब तक शौक़ ज़ोर आज़मा नहीं होता, एक…
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किस को रौशन बना रहे हो तुम
किस को रौशन बना रहे हो तुम इतना जो बुझते जा रहे हो तुम लोग पागल बनाए जा चुके हैं अब नया क्या बना रहे हो तुम गाँव की झाड़ियाँ बता रही हैं शहर में गुल खिला रहे हो तुम एक तो हम उदास हैं उस पर शाइरों को बुला रहे हो तुम और किस ने तुम्हें नहीं देखा और किस के ख़ुदा रहे हो तुम फूल किस ने क़ुबूल करने हैं जब तलक मुस्कुरा रहे हो तुम..!! ~मुज़दम ख़ान
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बैर दुनिया से क़बीले से लड़ाई लेते
बैर दुनिया से क़बीले से लड़ाई लेते एक सच के लिए कि�� किस से बुराई लेते, आबले अपने ही अँगारों के ताज़ा हैं अभी लोग क्यूँ आग हथेली पे पराई लेते, बर्फ़ की तरह दिसम्बर का सफ़र होता है हम उसे साथ न लेते तो रज़ाई लेते, कितना मानूस सा हमदर्दों का ये दर्द रहा इश्क़ कुछ रोग नहीं था जो दवाई लेते, चाँद रातों में हमें डसता है दिन में सूरज शर्म आती है अँधेरों से कमाई लेते, तुम ने जो तोड़ दिए ख़्वाब हम उनके…
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मेरे लबों पे उसी आदमी की प्यास न हो
मेरे लबों पे उसी आदमी की प्यास न हो जो चाहता है मेरे सामने गिलास न हो, ये तिश्नगी तो मिली है हमें विरासत में हमारे वास्ते दरिया कोई उदास न हो, तमाम दिन के दुखों का हिसाब करना है मैं चाहता हूँ कोई मेरे आस पास न हो, मुझे भी दुख है ख़ता हो गया निशाना तेरा कमान खींच मैं हाज़िर हूँ तू उदास न हो, ग़ज़ल ही रह गई ताहिर फ़राज़ अपने लिए जहाँ में कोई ऐसा भी बे असास न हो..!! ~ताहिर फ़राज़
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जब मेरे होंठों पे मेरी तिश्नगी रह जाएगी
जब मेरे होंठों पे मेरी तिश्नगी रह जाएगी तेरी आँखों में भी थोड़ी सी नमी रह जाएगी, सरफिरा झोंका हवा का तोड़ देगा शाख़ को फूल बनने की तमन्ना में कली रह जाएगी, ख़त्म हो जाएगा जिस दिन भी तुम्हारा इंतिज़ार घर के दरवाज़े पे दस्तक चीख़ती रह जाएगी, क्या ख़बर थी आएगा एक रोज़ ऐसा वक़्त भी मेरी गोयाई तेरा मुँह देखती रह जाएगी, वक़्त ए रुख़्सत आएगा और ख़त्म होगा ये सफ़र मेरे दिल की बात मेरे दिल में ही रह…
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हमारी वजह ए ज़वाल क्या है ? सवाल ये है
हमारी वजह ए ज़वाल क्या है ? सवाल ये है हराम क्या है, हलाल क्या है ? सवाल ये है, तुम्हारे ताज़ों के हीरे मोती तुम्हें हो मुबारक़ मगर रियाया का हाल क्या है ? सवाल ये है, इधर उधर की मिसाल देने से क्या हासिल अपनी करतूत पे मलाल क्या है ? सवाल ये है, बहुत से मिसरा नवीस, गज़लें बना रहे हैं मगर सुख़न में कमाल क्या है ? सवाल ये है, जवाब ये है सफ़ेदपोश जो उच्चक्के हैं यहाँ वही कह रहे हैं, और निकाल माल क्या है ?
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बुग्ज़ ए इस्लाम में पड़े पड़े ही
बुग्ज़ ए इस्लाम में पड़े पड़े ही यहाँ कितनो के क़िरदार गिरे है, सभी मुन्सफ़ गिरे, मनसब गिरे और ना जाने कितने सालार गिरे है, सियासत ए दरबाँ के इशारों पर अदलिया के ऊँचें मीनार गिरे है, जिन्हें न था वास्ता दैर ओ हरम से ऐसे भी मज़हब के ठेकेदार गिरे है.!! फितना ओ ज़ुल्म ए बातिल से अब कौम ए मुजाहिद नहीं डरने वाले, हिफ्ज़ ए मरातिब पर है जाँ निसार मगर हम ईमान नहीं बदलने वाले, नार ए जहन्नुम में खाक़ हो…
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कितनी मोहब्बतों से पहला सबक़ पढ़ाया
कितनी मोहब्बतों से पहला सबक़ पढ़ाया मैं कुछ न जानता था सब कुछ मुझे सिखाया, अनपढ़ था और जाहिल क़ाबिल मुझे बनाया दुनिया ए इल्म ओ दानिश का रास्ता दिखाया, ऐ दोस्तो मिलें तो बस एक पयाम कहना उस्ताद ए मोहतरम को मेरा सलाम कहना, मुझ को ख़बर नहीं थी आया हूँ मैं कहाँ से ? माँ बाप इस ज़मीं पर लाए थे आसमाँ से, पहुँचा दिया फ़लक तक उस्ताद ने यहाँ से वाक़िफ़ न था ज़रा भी इतने बड़े जहाँ से, मुझ को दिलाया कितना…
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दिल के लूट जाने का इज़हार ज़रूरी तो नहीं
दिल के लूट जाने का इज़हार ज़रूरी तो नहीं ये तमाशा सर ए बाज़ार ज़रूरी तो नहीं, मुझे था इश्क़ तेरी रूह से और अब भी है जिस्म से हो कोई सरोकार ये ज़रूरी तो नहीं, मैं तुझे टूट के चाहूं ये तो मेरी फ़ितरत है तू भी हो मेरा तलबगार ये ज़रूरी तो नहीं, ऐ सितमगर कभी तो ��ाँक मेरी आँखों में जुबां से ही हो प्यार का इज़हार ज़रूरी तो नहीं..!!
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हमारे सब्र के दामन को तार तार न कर
हमारे सब्र के दामन को तार तार न कर निगाह ए जोक तलब इतना बे क़रार न कर, बड़े ख़ुलूस से आये हैं तेरी महफ़िल में हमारा खून ए तमन्ना ऐ पर्दादार न कर, ये एतमाद ए मुहब्बत ये ऐतबार ए वफ़ा कज़ा को देख मगर उनका इंतज़ार न कर, कफ़स में ताने बहारों के दे न ऐ सय्याद सितमज़दा पे सितम ऐ सितम सितम शि’आर न कर, चमन को तर्क किए मुद्दतें हुई आदिल हमारे सामने अब क़िस्सा ए बहार न कर..!!
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फ़लक का हर सितारा रात की आँखों का मोती है
फ़लक का हर सितारा रात की आँखों का मोती है जिसे शबनम सहर की शोख़ किरनों में पिरोती है, वही मस्ती मेरी धड़कन है मेरे दिल की जोती है जो तेरी नीलगूँ आँखों में गहरी नींद सोती है, ज़मीन ए दर्द में चाहत वफ़ा के बीज बोती है तो क्या क्या जावेदाँ लम्हात की तख़्लीक़ होती है, तड़पती है मेरे सीने में ऐसे आरज़ू तेरी कोई जोगन घने जंगल में जैसे छुप के रोती है, ये मेरी सोच हर ज़र्रे में सूरज की तमन्नाई ये दिल की…
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सब जल गया जलते हुए ख़्वाबों के असर से
सब जल गया जलते हुए ख़्वाबों के असर से उठता है धुआँ दिल से निगाहों से जिगर से, आज उस के जनाज़े में है एक शहर सफ़ आरा कल मर गया जो आदमी तन्हाई के डर से, कब तक गए रिश्तों से निभाता मैं तअ’ल्लुक़ इस बोझ को ऐ दोस्त उतार आया हूँ सर से, जो आइना ख़ाना मेरी हैरत का सबब है मुमकिन है मेरे बाद मेरी दीद को तरसे, इस अहद ए ख़िज़ाँ में किसी उम्मीद के मानिंद पत्थर से निकल आऊँ मगर अब्र तो बरसे, रूठे हुए सूरज को…
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बेख़बर दुनिया को रहने दो ख़बर करते हो क्यूँ
बेख़बर दुनिया को रहने दो ख़बर करते हो क्यूँ दोस्तो मेरे दुखों को मुश्तहर करते हो क्यूँ ? कोई दरवाज़ा न खोलेगा सदा ए दर्द पर बस्तियों में शोरأओ ग़ुल शाम ओ सहर करते हो क्यूँ ? मुझ से ग़ुर्बत मोल ले कर कौन घर ले जाएगा तुम मुझे रुस्वा सर ए बाज़ार ए ज़र करते हो क्यूँ ? आँख के अँधों को क्यूँ दिखलाते हो परवाज़ ए हर्फ़ काग़ज़ों पे अब तमाशा ए हुनर करते हो क्यूँ ? तज़्किरा लिखते हो क्या मेरी शिकस्त ओ रेख़्त…
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किताब सादा रहेगी कब तक ?
किताब सादा रहेगी कब तक ? कभी तो आगाज़ ए बाब होगा, जिन्होंने बस्तियाँ उजाड़ी है कभी तो उनका हिसाब होगा, वो दिन गए जब कि हर सितम को अदा ए महबूब कह के चुप थे, उठी जो अब हम पे ईंट कोई तो इस का पत्थर जवाब होगा, सहर की खुशियाँ मनाने वालो सहर के तेवर बता रहे है, अभी तो इतनी घुटन बढ़ेगी कि साँस लेना आज़ाब होगा, सकूत ए सहरा में बसने वालो ज़रा रुतों का मिज़ाज समझो ! जो आज का दिन सुकूं से गुज़रा तो कल का मौसम ख़राब…
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