भगवान विष्णु का द्वितीय अवतार कूर्म अवतार/ कच्छप अवतार/ कछुआ अवतार के नाम से जाना जाता है। यह अवतार उन्होंने देवताओं-दानवों के द्वारा समुंद्र मंथन के समय मंदार पर्वत का भार अपनी पीठ पर उठाने के उद्देश्य से लिया था। इसी समुंद्र मंथन से चौदह बहुमूल्य रत्नों की प्राप्ति हुई थी जिससे विश्व का कल्याण हुआ था। आज हम भगवान विष्णु के द्वारा कूर्म अवतार लेने के पीछे के रहस्य तथा उद्देश्य को समझेंगे।
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भगवान विष्णु के हर अवतार लेने के पीछे एक उद्देश्य था। मोहिनी अवतार भी भगवान ने धर्म की रक्षा करने तथा अधर्म का नाश करने के उद्देश्य से लिया था। आज हम जानेंगे की आखिर भगवान विष्णु के द्वारा मोहिनी अवतार लेने के पीछे क्या रहस्य था तथा इसके द्वारा उन्होंने किस उद्देश्य की पूर्ति की थी।
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यह कथा बहुत ही रोचक हैं जो देवता तथा दैत्यों के द्वारा समुंद्र मंथन से जुड़ी हुई है। इसी घटना के बाद भगवान शिव का एक और नाम नीलकंठ पड़ गया था। आज हम भगवान शिव का समुंद्र मंथन में योगदान तथा उनके द्वारा विष पीने की कथा के बारे में विस्तार से जानेंगे।
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बच्चों को होली के बारे में अपने स्कूल से निबंध लिखने या कुछ पक्तियां लिखने को कहा जाता हैं। आपको होली के बारे में मुख्य बातें तो पता ही होगी लेकिन आज हम आपके ज्ञान को बढ़ाने जा रहे हैं क्योंकि इस लेख के द्वारा आपको होली के बारे में कुछ अनसुनी बातें भी जानने को मिल सकती हैं। आइए जानते हैं।
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जिस दिन पूरे देशभर में होली का त्यौहार मनाया जाता हैं उस दिन पंजाब में सिखों के द्वारा होला मोहल्ला का त्यौहार बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जाता हैं। इसकी शुरुआत सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह जी ने की थी। होला मोहल्ला में भी सभी लोगों का आपस में रंगों व पानी से खेलना होता हैं। जो एक चीज़ ज्यादा होती हैं वह हैं निहंग व अन्य सिखों के द्वारा नकली युद्ध करना और अस्त्र-शस्त्रों का प्रदर्शन करना इत्यादि। आज हम आपको होला मोहल्ला पर्व के बारे में संपूर्ण जानकारी देंगे।
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आप सभी ने होली से जुड़ी धार्मिक कथाएं तो सुनी ही होगी जिससे आपको इसका धार्मिक व आध्यात्मिक महत्व पता चल गया होगा किंतु यदि आज हम आपको बताए कि होली को खेलने का वैज्ञानिक महत्व भी हैं तो आपको कैसा लगेगा? जी हां, हमारे ऋषि-मुनियों व महापुरुषों ने सनातन धर्म की हरेक चीज़ को वैज्ञानिक आधार पर परख कर ही शुरू किया था जिसमे से होली भी इसका एक प्रमुख उदाहरण हैं। आज हम आपसे होली के वैज्ञानिक, शारीरिक व मानसिक महत्व के बारे में ही बात करेंगे।
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आज हम बात करेंगे भगवान शिव की नगरी काशी में खेली जाने वाली चिता की भस्म होली की। एक ओर पूरे भारतवर्ष में प्रेम के रंगों की होली खेली जाती हैं तो वही भगवान शिव की नगरी में जली हुई चिताओं की राख से होली खेलने का विधान हैं लेकिन ऐसा क्यों? आइए काशी की चिता भस्म होली के बारे में जाने सबकुछ।
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होली को रंगों का त्यौहार कहा जाता हैं जिसका मुख्य रंग गुलाल माना जाता हैं। पहले के समय में केवल प्राकृतिक रंगों से ही होली खेलने का विधान था जिससे शरीर को कोई भी नुकसान नही होता था। अपितु इन रंगों से तो शरीर को लाभ मिलता था और नहाते समय मैल भी निकल जाता था। किंतु आजकल बाजार में नाना प्रकार के रंग आ चुके हैं जिनका दुष्प्रभाव हमारे स्वाथ्य पर पड़ता हैं। इसलिये आज हम आपको घर पर ही होली के प्राकृतिक रंग बनाने की विधि बताएँगे।
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बरसाने की लठमार होली देश ही नही अपितु विदेशों में भी बहुत प्रसिद्ध हैं। दूर-दूर से लाखों की संख्या में भक्तगण होली पर बरसाने गाँव की लठमार होली देखने आते हैं। किंतु सोचने वाली बात यह हैं कि आखिर इसकी शुरुआत कहाँ से हुई और यह क्यों मनाई जाती हैं। इसी के साथ इसे खेलने की क्या परंपरा हैं और कौन-कौन इसे खेल सकता हैं। आज हम आपको बरसाने की लठमार होली के बारे में संपूर्ण जानकारी देंगे।
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रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव की नगरी काशी में धूम रहती हैं क्योंकि इसी दिन भगवान शिव माता पार्वती से विवाह करने के पश्चात पहली बार उन्हें उनके ससुराल काशी नगरी लेकर आये थे। साथ ही इसका संबंध भगवान विष्णु से भी हैं तभी इसे आमलकी एकादशी के रूप में जाना जाता हैं। आज हम आपको इसके बारे में संपूर्ण जानकारी देंगे।
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क्या आप जानते हैं कि पहले होली को रंगों से खेलने की परंपरा नही थी। तो आखिर रंगों से होली खेलने की शुरुआत कब और कैसे हुई? साथ ही इसका संबंध भगवान श्रीकृष्ण से कैसे हैं क्योंकि होली की कथाएं तो होलिका दहन व प्रह्लाद की रक्षा तथा भगवान शिव के द्वारा कामदेव को भस्म करके पुनः जीवनदान देने से जुड़ी हुई हैं। आज हम आपको इन्हीं सब बातों के बारे में विस्तार से बताएँगे।
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चूँकि पहले के समय में केवल प्राकृतिक रंगों से ही खेलने की परंपरा थी जिन्हें ज्यादात�� सभी लोग अपने घरों में ही बनाते थे। ये रंग शरीर के लिए भी लाभदायक होते थे किंतु आजकर बाजार में तरह-तरह के रंग आ गए हैं। बाजार में जो प्राकृतिक रंगों के नाम से भी बिक रहे हैं वे भी पूरी तरह से प्राकृतिक हो, यह निश्चित नही। इसके लिए आपको पहले से ही कुछ आवश्यक बातों को ध्यान में रखकर होली का पर्व खेलना चाहिए ताकि बाद में किसी गंभीर समस्या का सामना ना करने पड़े।
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आपको चाहे होली का त्यौहार पसंद हो या नही, या फिर रंगों से डर लगता हो या नही लेकिन जीवन में एक बार ब्रज की होली को देखने अवश्य जाए। वहां की होली को देखकर जो आनंद की अनुभूति होगी वह शायद ही आपको किसी और चीज़ में हो। आज हम आपको ब्रज की होली के बारे में संपूर्ण जानकारी देंगे।
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आप हर वर्ष रंगों व पानी से होली खेलते होंगे लेकिन क्या आप जानते हैं कि होली को केवल रंगों और पानी से ही नही अपितु कई और चीज़ों से भी खेला जाता हैं। यह देश के विभिन्न भागों और वहां की परंपराओं के अनुसार मनाई जाती हैं। कहीं लोग इसे लट्ठमार होली के रूप में खेलते हैं तो कहीं फूलों से तो कहीं लड्डुओं की होली खेली जाती हैं। आज हम आपको होली के विभिन्न प्रकारों के बारे में बताएँगे।
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होली का त्यौहार मनाने की प्रक्रिया सभी जगह एक जैसी होती हैं लेकिन फिर भी इसे अलग-अलग राज्यों और जातियों की मान्यतों के अनुसार मनाने की परंपरा में कुछ अंतर देखने को मिलता हैं। इसी के साथ इसे भाषा और मान्यता के आधार पर भिन्न-भिन्न नाम भी दिए गए हैं। आज हम आपको इसी के बारे में बताएँगे।
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होली का त्यौहार मुख्यतया दो दिनों का त्यौहार होता हैं जिसे हम होलिका दहन व धुलंडी के नाम से जानते हैं। होलिका दहन वाले दिन हिरण्यकश्यप की बहन होलिका का दहन किया जाता हैं जिसमें से भगवान विष्णु का परम भक्त प्रह्लाद सकुशल बाहर आ जाता हैं। दूसरे दिन धुलंडी का त्यौहार मनाया जाता हैं जिसे हम रंगों का त्यौहार भी कहते हैं। आज हम होली का त्यौहार किस तरीके से मनाया जाता हैं, इसके बारे में आपको संपूर्ण जानकारी देंगे।
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क्या कभी आपने सोचा है कि होली त्यौहार को मनाने के पीछे क्या इतिहास जुड़ा हुआ हैं। ज्यादातर लोगों को होलिका दहन की कथा के बारे में पता होगा लेकिन इस दिन से जुड़ी कुछ और कथाएं भी प्रचलित हैं। आज हम आपको होली मनाने का कारण व इस पर्व से जुड़ा संपूर्ण इतिहास बताएँगे।
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