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#73 "क्षण स्थिर" - योगेश
#73 “क्षण स्थिर” – योगेश
“उस निमेष का तादात्म्य स्थापित करो, चित्रकार बनो, अनुस्मरण करो, एकाग्रता का पालन इतनी शक्ति एकाग्र करो कि उस क्षण का बल तुमसे पराजित हो जाये, उस क्षण को पहचानना सीखो, वो क्षण जिसके वस्त्र तुम्हारे जैसे ही हैं, वो तुम्हारे साथ साथ चलता है, तुम्हारी तरह बोलता है, उस अवधि में वो क्षण तुम्हारे एकदम निकट खड़ा होगा, तुमको उसे पहचानना होगा, उसको वहीँ रोकना होगा, उसको विवश करना होगा कि वो तुम्हारे लिए है��
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#74 "समय" - योगेश
#74 “समय” – योगेश
“धन तो समय से मिल जाएगा
किन्तु समय धन से नहीँ मिलेगा”
– योगेश
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#72 “शैली” – योगेश "विपत्तियाँ भी नातों सगों की पर्याय हो सकती हैं, तंत्र या प्रणाली पर ना जाएँ, शैली पर जाएँ" -योगेश
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#71 "दोषविलाप" - योगेश
#71 “दोषविलाप” – योगेश
“किसी निकट संबंधी द्वारा किये गए कार्य में,
जो काम तुम्हारे लिए आवश्यक है, यदि त्रुटि भी है तो,
उस पर दोषविलाप करने से उचित है
कि उस त्रुटि को स्वयं दूर करो
क्यूँकि जितना समय तुम उसे समझाने में लगाओगे
उतने में त्रुटि तुम स्वयं उसको दूर कर पाओगे
क्यूँकि तुम्हारा कार्य तो केवल तुम्हें ही करना होगा
इसमें किसी अन्य का कोई दायित्व नहीँ है
अंत में इसका फल भी तुम्हारा है
और इसकी हानि भी तुम्हारी ही है”
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#70 "प्रतिबंध" - योगेश
#70 “प्रतिबंध” – योगेश
“अशुद्धता थी घर में आंगन में तब नहीँ तो अब ही सही अग्नि नहीँ तो झाड़ू ही सही
ज्ञान है तुमको अच्छे भले का समय साहस का आत्मनिर्भर का अधिक नहीँ तनिक ही सही
परिवर्तन है नियम जग का प्रकृति का उस प्रकार नहीँ इस प्रकार ही सही होना ही था तो ऐसे हुआ तो सही
संभव है स्वावलंबी बने रहना माँग कर नहीँ स्वयं करके ही सही भोग विलास नहीँ संघर्ष ही सही
विष है ये जड़ करने वाला टोक नहीँ तो रोक ही सही चीनी नहीँ तो गुड़ ही…
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69 "जड़ता" - योगेश
69 “जड़ता” – योगेश
समा नहीँ सकते संपूर्ण ग्ज्ञान को अपने में तो श्रेष्ठ होने का अहँकार जला डालो प्रकृति का योग है बदलाव की धारा अपने इस सुख के ठहराव को बदल डालो प्रकाश नहीँ देता दीपक जले बिना परिश्रम का ये सूर्य चमका डालो नदी खो देती है दिशा बहाव क��� अपने इन किनारो को रोके डालो होता नहीँ कुछ समय के बिना पूर्व इस उत्सुकता का रथ बदल डालो कुछ संभव नहीँ बिना ऊर्जा बिना भाव के शिथिलता के इस भाव को बदल डालो विद्यार्थी बने…
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#68 छन्नी
“निस्पंदन लगा के हो चुके भावहीन कहीँ घेरे कहीँ रेखाएं हुए दृष्यहीन भुलावा केवल नेत्रों का बिंब का रण है मन का अजय प्रवीण अर्थहीन तर्कहीन हैं ये विकाशन तेज़ प्रताप देते गुण के अनुमोदन अल्पक्षण की सब ये प्रसिद्धि परोक्ष यश है सदैव श्रीन”
– योगेश
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#35 पथभ्रष्ठ हो गए हो तुम
#35 पथभ्रष्ठ हो गए हो तुम
अयोग्यता कायरता कर देगी निर्बल तुम्हें
हीनता दीनता कर देती दुर्बल तुम्हें
चक्षु होकर भी हो गए नेत्रहीन
भोग विलास से नहीं हो रहे विहीन
इच्छाओं कामनाओं की सांकल में
काम और द्वेष की हो चुके अधीन
ज्ञान और तप पा कर भी
पाप और क्रोध में हो चुके विलीन
यश और ख्याति पा ना सकोगे
तुम हो कर भी कुलीन
पश्चाताप है इसका संभव
धर्म का करना होगा पालन तुम्हें
पर करना होगा त्याग तुम्हें
-योगेश
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#67 द्वंद्व और युद्ध "मनुष्य यदि अपने द्वंद्व में विजयी हो जाता है तो जीवन के किसी भी युद्ध में वो कभी पराजित नहीँ हो सकता" - योगेश
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#66 कायरता और देशद्रोही "प्रत्येक कायर देशद्रोही है, किँतु ये आवश्यक नहीँ कि प्रत्येक देशद्रोही कायर हो" - योगेश
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#65 चाव "चाव (passion) एक ऐसा व्यापक गुण है जिसके सक्रीय होने पर सृजनात्मकता (Creativity) का विराट निर्माण, ज्ञान की असीमित रचना और त्रुटियों का सर्वनाश होना निश्चय है" -योगेश
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#64 उत्प्रेरक "उत्प्रेरक (catalyst) एकमात्र ऐसा कारक है जिसके सक्रीय होने पर संसार का कोई भी कार्य असंभव नहीं" -योगेश
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