जब यह जीव आत्मा कविर्देव (कबीर साहेब) की शरण में पूरे गुरु के माध्यम से आ जाती है।नाम से जुड़ जाती है,तो फिर उसका जन्म मृत्यु का कष्ट सदा के लिए समाप्त हो जाता है। और सतलोक में वास्तविक परम शांति को प्राप्त होती है।
पवित्र चारों वेदों में ज्ञान पुर्ण परमात्मा का ही है। परन्तु पूजा की विधि केवल बृह्म (ज्योति निरंजन) तकं की ही है। परमेश्वर कबीर (कविर्देव) की पूजा विधि के ज्ञान व तत्वज्ञान के लिए पवित्र वेदों तथा पवित्र गीता जी में कहा है कि उसे तो कोई तत्वदर्शी संत ही बता सकता है। जो स्वयं ही परमेश्वर होता है।या उसका भेजा हुआ प्रतिनिधि होता है। उससे उपदेश लेकर पूर्ण मोक्ष व परम शांति प्राप्त होती है।
संत रामपाल जी महाराज कहते हैं की बुद्धिमान को चाहिए की सोच विचार कर भक्ति मार्ग अपनायें।क्योंकि मनुष्य जन्म अनमोल है यह बार-बार नहीं मिलता। कबीर साहब कहते हैं कि
गीता अध्याय 9 श्लोक 30 में कहा है कि यदि कोई अतिशय दुराचारी भी क्यों ना हो यदि वह परमात्मा में विश्वास रखता है तो साधु मानने योग्य है। सत्संग में आने से सुधार हो जाता है और कल्याण होता है।
द्वापर युग में कबीर परमात्मा करुणामय नाम से आए थे। द्वापरयुग में राजा चंद्र विजय और उनकी रानी इंदुमती दोनों को ही अपनी शरण में लिया।और मोक्ष प्रदान किया।वर्तमान समय में परमात्मा संत रामपाल जी महाराज जी के रूप में आए हुए हैं।उनसे नाम दीक्षा लेकर अपना कल्याण करवाएं
हरि पर हरि को नाम जपीजै,। हरियालो हरिआणा हरूं।हरि नारायण देव नरूं।। आशा सास निराश भईलो,पाईलो मोक्ष द्वार खिणूं।।
संत जंभेश्वर जी की यह वाणी हरियाणा में अवतरित हुए संत रामपाल जी महाराज पर खरी उतरती है क्योंकि वे शास्त्र अनुकूल भक्ति मार्ग बताते हैं। जिससे मोक्ष संभव है।