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साहो
साहो फिल्म कशी आहे??
प्रभास हा एका उद्योग पती राँय(जँकी श्राफ) चा मुलगा असतो व तो आपल्या वडिलांच्या खूनीचा बदला घेण्यासाठी सर्वप्रथम चोरी करतो व नंतर एक नकली अधिकारी बनून पोलीसात दाखल होतो, राँय च्या खूनाच्या कटात सहभागी असलेल्या देवराज (चंकी पांडे) ची नजर राँय ग्रुप च्या पैशावर असते व तोच या सिनेमाचा मुख्य विलन आहे, तसेच महेश मांजरेकर ने देवराज चा सहाय्यक चा रोल केला आहे.
निल नितीन मुकेश (अशोक चक्रवर्ती) हा पोलिस अधिकारी च्या भुमिकेत आहे ज्याच्या जागेवर प्रभास पोलीस म्हणून सामिल होतो.
श्रद्धा कपूर (अम्रृता नायर)पण पोलिस अधिकारी आहे व तीला प्रभास वर प्रेम होते पण जेव्हा तिला कळते कि तो खरा पोलिस नाही, तेव्हा ती त्याला पकडायला जाते पण सत्यता जाणून सुद्धा असे काही प्रसंग येतात की त्यांच्या मधलं प्रेम कमी होत नाही .
सिनेमा बघताना बोर होत नाही पण जेवढी अपेक्षा सिनेमाकडून होती तेवढा पण चांगला नाही.
सिनेमाची अँक्शन ही अत्यंत चांगली आहे, तुम्हाला हॉलीवूड च्या दर्जाची अँक्शन आणि स्टंटबाजी बघायला मिळेल.
चंकी पांडे हा मुख्य विलन म्हणून सूट करत नाही, याउलट जर महेश मांजरेकर ला मुख्य विलन ठेवल असत तर छान झाल असतं.
कँमेरावर्क आणि शूटिंग लोकेशन खूपच छान आहेत
म्युझिक आणि गाणी पण खुप सुंदर आहेत, पाहातच राहावित अस वाटतं
श्रद्धा कपूर खूप सुंदर दिसते आणि प्रभास व नील नितिन मुकेश तिघांचा पण लुक तुम्हाला काँपी करायला नक्कीच आवडेल.
सिनेमा चांगला आहे पण बाहुबली सारखा खूप सुंदर पण नाही
तरीपण एकवेळा बघायला काही हरकत नाही, तिकिटाचे पैसे नक्की वसूल होतील। 3.5/5
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विकास भैया कहाँ हो??
विकास कहाँ है??
भारत में 2019 में आम चुनाव होने है, हर जगह अब चुनावी बातें सुनने को मिलती है और कुछ लोग इसे एंजॉय भी कर रहे है। लोकसभा चुनावों से पहले होनेवाले विधानसभा चुनावों भी सभी पार्टीयाँ जोरोंसे एकदुसरे पर कीचड उछालने में लग गई है।
1947 में आजादी मिलने के बाद भारत जैसा देश जात, पात, धर्म और भाषा के नामपर लडता रहा और हम ऐसा भी कह सकते है की सत्ता के लालची लोगों ने हमें आपस में लडाया और सालों बीत गये पर इसमे कोई सुधार नही हुआ।
2014 में ऐसा लग रहा था की सुधार होगा, श्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव में विकास की बात की और सारे देश ने उनका साथ दिया पर अब उनके सत्ता का कार्यकाल खत्म होने को आया पर जमिनी लेवल पर विकास दिख नही रहा, जिन युवाओं को रोजगार देने की बात कही गयी वो अभीतक बेरोजगार है, किसानों की समस्याएं पहले जैसी ही है, मतलब जिन सुधारों की बातें की गयी थी वो कुछ भी नही हुआ और हुआ भी तो एकदम न के बराबर।
इस देश में हिंदू -मुसलमान आपस में लडते रहे, दलित -सवर्ण लडते रहे, वोंट बटते रहे और चुनाव होते रहे लेकीन इस देश का आम आदमी क्या चाहता ये सोचने के लिए किसी के पास टाइम ही नही ।हर इंसान जो किसी भी धर्म का हो वो तो सिर्फ ये चाहता है की उसके बेटे को नौकरी मिले, लडकी की बिना दहेज से शादी हो,कुछ नुकसान होने पर सरकार उसे मदद करें आदि. ऐसी ही कुछ छोटी छोटी अपेक्षाएँ सरकारसे की जाती है।
सरकारें बदलती रहती है पर जो बातें बनाई जाती है वो निभाई नही जाती, जो देश का युवा विकास की बात करनेवालोंसे आकर्षित हुआ था उसके पास अब काम नही है, कुछ सालों सरकारी भर्तीयों में या तो रोक लगाई या कटौती की गयी, क्योंकी सरकार के पास बजट नही था पर दुसरी तरफ विदेशी कर्ज निकालकर ऐसे प्रोजेक्ट लाए गये जिनकी देश को कोई जरूरत नही थी, मतलब देश को लोगों ने जो मांगा वो नही मिला और जो चीज नही माँगी उसको उधार लेकर लाया गया।
देशका किसान कर्ज माफी माँग रहा था तो नही मिली ,पर कुछ उद्योगपती बँको का कर्ज डुबाकर विदेश भाग गये लेकीन सरकार कुछ कर नही पायी। एक बात समझ से परे है की जब सर्जिकल स्टाईक की बात करनेवाली सरकारकी सुरक्षा व्यवस्था इतनी कमजोर कैसे हो गयी की कोई आदमी देश का पैसा लेकर विदेश कैसे भाग सकता है?
प्रजातंत्र में जो गरीबी से जुझ रहे लोग होते है उनकी अपेक्षाएँ सरकारसे जादा होती है और चुनाव मे यही जादा मात्रा में वोट करते है क्योंकी अमीर लोगो को सरकार कोई भी आएँ उससे कोई फर्क नही पडता क्योंकि वो पैसा देकर अ��ना काम कर लेते है।
चुनाव लडने के लिए राजनीतीक पार्टीयाँ व्यापारीयों से पैसा लेती है और जीतने के बाद उनके लिए सुविधा मुहैया 5 सालो तक करती रहती है, इसिलीए महंगाई बढना, पेट्रोल डिझेल बढना ये सब चीजें आएँ दिन होती रहती है। मतलब पूँजीवादी लोग इस देशपर राज कर रहे है और ऐसा ही चलता रहा तो ऐसा सालों तक यही होता रहेगा ।
वक्त बहोत बुरा है पर चाहे जो भी हो समय बडा बलवान है, हम ऐसी अपेक्षा रखते है की कभी न कभी तो हमारे अच्छे दिन आएँगे, और अगर सब एकसाथ मिलके प्यार से रहै तो विकास को भी कान पकड कर लाएँगे।
धन्यवाद।।।
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