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जाने नवरात्रि की पूजा विधि (Navratri Puja Vidhi), कलश स्थापना व महत्व
Navratri Puja Vidhi : नवरात्रि मे देवी के नौ स्वरूप की पूजा की जाती है । हिन्दुओ मे नवरात्रि (Navratri) की बहुत मान्यता है नवरात्रि साल मे दो बार मनाया जाते है जिन्हे चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र के नाम से जाना जाता है । उत्तर भारत मे नवरात्र को बहुत ही खुशी और धूम धाम से मनाया जाता है । इस दिन माँ के भक्त नौ दिन के व्रतो का सकल्प लेते है और देवी माँ की चौकी की स्थापना करते है । नवरात्रि मे घर की साफ सफाई का बहुत ध्यान ��खा जाता है ।
ऐसा कहा जाता है की इन नौ दिन देवी माँ धरती पर अपने भक्तो के साथ रहने आती है । इस बार शारदीय नवरात्र 29 सितंबर 2019 से शुरु हो रहे है । (Navratri Puja Vidhi)नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है फिर देवी माँ की मूर्ति स्थापित की जाती है और अंठवे दिन हवन किया जाता है तथा नवे व दसवे दिन कन्या खिलाया जाता है और पूरे विधि विधान (Navratri Puja Vidhi)से देवी माँ की मूर्ति को विसर्जित किया जाता है ।
नवरात्रि पूजा विधि (Navratri Puja Vidhi)
भारत त्योहारो का देश माना जाता है यहाँ साल के शुरू से ही त्योहार शुरू हो जाते है और अंत तक चलते है । इन मे एक नवरात्रि का त्योहार है जिसे पूरे नौ दिनो तक मनाया जाता है । नवरात्रि मे लोग दुर्गा माँ के नो रूप की पूजा करते हैं । वैसे तो देवी माँ के पूजा कभी भी की जा सकती है परंतु नवरात्र मे पूजा (Navratri Puja) का अलग ही मान्यता है । नवरात्र की पूजा, कलश स्थापना से शुरू होती है इसमे कलश पूजा का बहुत महत्व होता है । कलश को सुख समृद्धि ऐश्वर्या देने वाला मंगलकारी माना गया है । कलश के मुख में भगवान विष्णु, गले में रुद्र, मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है। नवरात्रि के समय ब्रह्मांड में उपस्थित शक्तियों का कलश में आह्वान करके उसे कार्यरत किया जाता है। इससे घर की सभी विपदादायक तरंगें नष्ट हो जाती हैं तथा घर में सुख-शांति तथा समृद्धि बनी रहती है। नवरात्र मे शुभ मुहूरत मे कलश स्थापना की जाती है कुछ लोग स्थापना करने के लिए किसी पंडित को बुलवाते है तो कुछ अपने आप ही कर लेते है ।( Navratri Puja Vidhi )
कलश स्थापना से पहले देवी की माँ की चौकी रखे उस पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाये और देवी की मूर्ति रखे माँ को चुनरी उढ़ाये । देवी का माँ का तिलक करे और उन्हे सुहाग का समान चढ़ाये । स्थापना के बाद अज्ञारी करे । अज्ञारी के लिए गोबर का उबला ले उसे जलाए और मिट्टी के पात्र मे रखे फिर अज्ञारी मे घी या कपूर डाले और जलाए हवन सामीग्री चढ़ाये लॉन्ग के दो जोड़े व बताशा चढ़ाये देवी माँ को भोग लगाए घर मे जो भी व्रत वाली सामाग्री हो उससे बनाकर और दुर्गा कवच का पाठ करे दुर्गा चालीसा पढे उसके बाद देवी माँ की आरती करे । भोग का प्रसाद घर मे सबको बाँट दे ।
कलश स्थापना की सामाग्री – मिट्टी का चौड़ा बर्तन,कलश, मिट्टी, जौ, जल, कलावा, इत्र, सुपारी, सिक्के, आम के पत्ते, चावल, नारियल, लाल कपड़ा, फूल, फूल माला, दूर्वा ।
नवरात्रि मे कलश स्थापना विधि (Navratri Kalash Sthapna Vidhi)
सबसे पहले गणेश जी का आवाहन करे और देवी माँ का ध्यान करे फिर कलश स्थापना शुरू करे । सबसे पहले मिट्टी का चौड़ा बर्तन ले उसमे मिट्टी डाले और उसको बर्तन मे चारो तरफ अच्छे से दाल दे, ताकि जब हम जौ डाले तो वो अच्छे से मिल सके फिर मिट्टी मे जौ डाले और मिला दे अगर पानी की जरूरत हो तो थोड़ा डाल दे उसके बाद कलश ले । कलश मिट्टी ताँबे या पीतल किसी का भी हो सकता है । कलश पर स्वस्तिक बनाए फिर कलश मे जल भरे, जल मे कुछ बूंदे गंगा जल की डाल दे और कलश पर कलावा बांधे और एक सिक्का, सुपारी और फूल डाल दे । इसके बाद कलश के ऊपर आम के पत्ते रखे पत्ते ऐसे रखे की आधे वह कलश के भीतर हो व आधे बाहर की ओर हो । उसके बाद कलश को मीठी से बनी कलश के आका�� की प्लेट से ढक दे फिर उसके ऊपर कुछ चावल के दाने रखे और उसके ऊपर नारियल । नारियल को लाल कपड़े से लपेट दे और उस पर कलावा बांध ले । यह सब होने के बाद दिया जलाएँ नौ दिन तक कलश को वैसा ही रखा रहने दे । माँ के सामने ज्योत जलाए जो नौ दिन तक लगातार जलती रहनी चाहिए इसे अखंड ज्योत भी कहते है ज्योत के नीचे थोड़े से अक्षत रख दे ।
नवरात्रि मे कंजक पूजा विधि(Kanjak Puja Vidhi)
(Navratri Puja Vidhi) नवरात्रि के नौवे दिन कन्या खिलाई जाती है जिनहे हम कंजक भी कहते है 3 साल से 9 साल के बीच की कन्याओ को खिलाया जाता है । नौ कन्या और एक लांगुर को न्योता दिया जाता है । नवमी के दिन जब वे आते है तो सबसे पहले उनके पैर धुलाये जाते है उसके बाद उन्हे जमीन मे कुछ बिछाकर एक लाइन मे बैठाया जाता है । फिर इन्हे हलवा, पूरी, चने, खीर, सब्जी परोसा जाता है खाना परोसने की शुरुआत लांगुर से करते है जब सभी कन्याएँ व लांगुर खाना खा लेते है तब, उसके बाद उनका तिलक किया जाता है व उनके हाथ मे कलावा बंधा जाता है उन्हे दक्षणा या फल या कोई गिफ्ट देते है फिर उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया जाता है और उनको विदा किया जाता है ।
नवरात्रि व्रत का महत्व
Navratri Puja Vidhi नवरात्रि का अलग अलग शहरो मे अलग-अलग महत्व है कुछ जगह अष्टमी को कन्या पूजी जाती है तो कुछ जगह नवमी को कन्या पूजने का विधान है । दुर्गा पंडालो मे अष्टमी के दिन हवन होता है और नवरात्र समापन की पूजा भी होती है जिसे महाष्टमी कहते है | कुछ लोग पूरे नवरात्र न रखकर पहला नवरात्र और अष्टमी को व्रत रखते है । बंगाल मे इस दिन विशेष पूजा होती है और देवी माँ को दुर्गा पूजा के समय सिंदूर छड़ते है और एक दूसरे को लगाते भी है । सप्तमी से अष्टमी तक पूरा बंगाल दुर्गा पूजा मे डूबा रहता है नवमी के दिन पुसपंजंजलीकुछ लोग अष्टमी की रात को जागरण कराते है और नवमी की सुबह व्रत खोलने के बाद भंडारे का आयोजन करते है और भर पेट लोगो को खाना खिलते है । कई जगह व मंदिरो मे पूरे नवरात्र मेला लगा रहता है । कई जगह नवमी वाले दिन रामलीला का कार्यक्रम होता है जिसे देखने दूर दूर से लोग आते है । देवी माँ अपने भक्तो पर बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाती है । माँ का अटूट प्यार, दुलार और स्नेह आशीर्वाद के रूप मे मिलता रहता है । जिससे भक्तो को किसी अन्य सहायता की जरुरत नहीं पढ़ती और वह सर्वशक्तिमान हो जाता है । माँ की करुणा अपार है जिसका न कोई मोल है न ही कोई अंत है ।
देवी के 9 रूपों के नाम
शैलपुत्री – नवरात्रि के पहले दिन माता के प्रथम रूप माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। माता शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं और इसी कारण उनका नाम शैलपुत्री पड़ा ।
ब्रह्मचारिणी –  माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए तपस्या-साधना की थी, उसी रूप के कारण उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा ।
चंद्रघंटा – माता के इस रूप में उनके मस्तक पर घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र अंकित है। इसी वजह से माँ दुर्गा का नाम चंद्रघण्टा भी है ।
कूष्माण्डा – माता के इस रूप में उनके मस्तक पर घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र अंकित है। इसी वजह से माँ दुर्गा का नाम चंद्रघण्टा भी है ।
स्कंदमाता – भगवान शिव और पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का एक अन्य नाम स्कन्द भी है। अतः भगवान स्कन्द अर्थात कार्तिकेय की माता होने के कारण मां दुर्गा के इस रूप को स्कन्दमाता के नाम से भी लोग जानते हैं ।
कात्यायनी – माता कात्यायनी ऋषि कात्यायन की पुत्री हैं। माता को अपनी तपस्या से प्रसन्न करने के बाद उनके यहां माता ने पुत्री रूप में जन्म लिया, इसी कारण वे कात्यायनी कहलाईं ।
कालरात्रि – माता काल अर्थात बुरी शक्तियों का नाश करने वाली हैं इसलिए इन्हें कालरात्रि के नाम से जाना जाता है |
महागौरी – माँ दुर्गा का यह आठवां रूप उनके सभी नौ रूपों में सबसे सुंदर है। इनका यह रूप बहुत ही कोमल, करुणा से परिपूर्ण और आशीर्वाद देता हुआ रूप है, जो हर एक इच्छा पूरी करता है
सिद्धिदात्री – माँ दुर्गा का यह नौंवा और आखिरी रूप मनुष्य को समस्त सिद्धियों से परिपूर्ण करता है।
नवरात्रि मे इन खास बातों का रखे ध्यान (Navratri Puja Vidhi)
नवरात्रि में सूर्योदय से पहले उठें और नहा लें। शांत रहने की कोशिश करें। झूठ न बोलें और गुस्सा करने से भी बचें।
नवरात्रि के दौरान तामसिक भोजन नहीं करें। यानि इन 9 दिनों में लहसुन, प्याज, मांसाहार, ठंडा और झूठा भोजन नहीं करना चाहिए।
नवरात्रि के व्रत-उपवास बीमार, बच्चों और बूढ़ों को नहीं करना चाहिए। क्योंकि इनसे नियम पालन नहीं हो पाते हैं।
मन में किसी के लिए गलत भावनाएं न आने दें। अपनी इंद्रियों का काबु रखें और मन में कामवासना जैसे गलत विचारों को न आने दें।
नवरात्रि मे बाल और नाखून न कटवाएं और शेव भी न बनावाएं। नवरात्रि के दौरान दिन में नहीं सोएं।
पूजा के संपूर्ण होने के बाद दुर्गा मां से अपनी गलतियों की माफी मांग कर पूजा संपन्न करें |
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