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भक्तामर स्तोत्र की दूसरी गाथा का रहस्य, लाभ और साधना विधि

🌟 भक्ति की अमर गाथा — भाग 2
भूमिकाभक्तामर स्तोत्र केवल एक स्तुति नहीं, बल्कि यह 48 दिव्य मंत्रों की ऐसी श्रृंखला है जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का माध्यम बनती है। प्रत्येक गाथा में चमत्कारी ऊर्जा छिपी है — स्वास्थ्य, समृद्धि, और अध्यात्मिक उन्नति के लिए।
इस ब्लॉग श्रृंखला में हम 48 गाथाओं की विस्तृत व्याख्या, साधना विधि, चमत्कारी लाभ, और व्यवहारिक प्रयोग आपके समर्पण में प्रस्तुत करेंगे।
गाथा 2 — बुद्धि, वाणी और श्रद्धा की जागृति
श्लोक
यः संस्तुतः सकल — वाङ्मय — तत्त्व-बोधा-दुद्भूत-बुद्धि — पटुभिः सुर — लोक — नाथैः ।स्तोत्रैर्जगत्- त्रितय — चित्त — हरैरुदारैः,स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम्
सरल अर्थ:
यह गाथा कहती है:
“जिन जिनेन्द्र भगवान की स्तुति स्वयं ब्रह्मा, इंद्र और अन्य देवगण भी अपनी अत्यंत बुद्धिमत्ता और अद्भुत वाणी से करते हैं, मैं भी उसी प्रभु की स्तुति करने का साहस करता हूँ।”
आध्यात्मिक भावार्थ:
यह गाथा श्रद्धा और समर्पण की चरम स्थिति को दर्शाती है।
जब बड़े-बड़े देवता जिनेन्द्र की स्तुति करते हैं, तब एक साधक का भी उनके चरणों में वंदन करना आत्मिक ऊर्जाओं को जागृत करता है।
यह गाथा ego को छोड़कर श्रद्धा से जुड़ने की प्रेरणा देती है।
गाथा 2 के चमत्कारी लाभ
लाभ क्षेत्रप्रभावबुद्धि शक्ति मेमोरी, निर्णय क्षमता, तर्कशक्ति में वृद्धिवाणी शुद्धि बोलने की शक्ति, वाणी में आकर्षणविद्या एवं प्रतियोगिताछात्र, लेखक, वक्ताओं के लिए अत्यंत लाभकारीश्रद्धा जागरण आत्मा में भक्ति व विनम्रता का विकास
साधना विधि (Bhaktamar Gatha 2 Sadhana)
समर्पण भाव से आरंभ करें — मन में श्रद्धा जागृत करें।
प्रभु की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें।
11 या 21 बार पाठ करें — उच्च स्वर या ध्यानपूर्वक।
विशेष ध्यान –पढ़ते समय गले का कंपन, अनाहत चक्र और बुद्धि केंद्र (आज्ञा चक्र) पर ध्यान केंद्रित करें।
संकल्प — “हे प्रभु! मेरी बुद्धि, वाणी और श्रद्धा को शुद्ध करें।”
मंत्रोक्त ऊर्जा विज्ञान
यह गाथा Intellectual Aura को ���गाती है।
गले और माथे से निकलने वाली ऊर्जा शुद्ध होती है।
इसका पाठ communication blocks, आत्म-संशय और negativity को दूर करता है।
Bhaktamar Mantra Healing Insight:
“श्रद्धा से पढ़ा गया मंत्र देवों से भी अधिक प्रभावशाली हो सकता है।” भक्तामर गाथा 2 इस विश्वास को भीतर जाग्रत करती है।
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भक्तामर स्तोत्र की प्रथम गाथा का रहस्य, लाभ और साधना विधि
🌟 भक्ति की अमर गाथा — भाग 1
भूमिकाभक्तामर स्तोत्र केवल एक स्तुति नहीं, बल्कि यह 48 दिव्य मंत्रों की ऐसी श्रृंखला है जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का माध्यम बनती है। प्रत्येक गाथा में चमत्कारी ऊर्जा छिपी है — स्वास्थ्य, समृद्धि, और अध्यात्मिक उन्नति के लिए।
इस ब्लॉग श्रृंखला में हम 48 गाथाओं की विस्तृत व्याख्या, साधना विधि, चमत्कारी लाभ, और व्यवहारिक प्रयोग आपके समर्पण में प्रस्तुत करेंगे।
गाथा 1 — आत्मा को सहारा देने वाली
श्लोक
भक्तामर — प्रणत — मौलि मणिप्रभाणा- मुद्योतकं दलित — पाप — तमो — वितानम्। सम्यक् — प्रणम्य जिन — पाद — युगं युगादा- वालम्बनं भव — जले पततां जनानाम्।।
सरल अर्थ:
यह गाथा कहती है:
“हे जिनेन्द्र! आपके चरणों की रश्मियाँ भक्तों के सिर पर ऐसे शोभायमान हैं जैसे रत्नों से सजी कोई ज्योति। आप वह सूर्य हैं जो पापों के अंधकार को मिटा देते हैं। जो लोग संसार रूपी जल में डूब रहे हैं, उनके लिए आपका चरण ही सहारा है।”
आध्यात्मिक भावार्थ:
“भवजल में डूबे जीव” = मोह, क्रोध, लोभ आदि में फंसे हुए हम
“जिनपद” = निर्विकार सत्य, शुद्ध चेतना
यह गाथा आत्मा के पतन को रोकने और परम सहारे से जोड़ने की चेतना जगाती है।
गाथा 1 के चमत्कारी लाभ
साधना विधि (Bhaktamar Gatha 1 Sadhana)
संकल्प लें — शुद्ध भावना से 21/48 दिन तक पाठ करें।
स्थान चयन — शांत व पवित्र स्थान पर बैठें, दीपक जलाएं।
स्वच्छता — स्नान करके सफेद वस्त्र धारण करें।
पाठ विधि –
11 बार यह गाथा बोलें
एकाग्र होकर जिनेन्द्र के चरणों का ध्यान करें
5. अंत में प्रार्थना करें — “हे जिनेन्द्र! मुझे भवसागर से पार करें।”
मंत्रोक्त ऊर्जा विज्ञान
इस गाथा का स्वर विन्यास और अर्थ आत्मा के संस्कारों की सफाई करता है।
जिनेन्द्र के चरण = Grounding + Protection Energy
इसका उच्चारण Negative Energy को खत्म करता है और Faith Shield तैयार करता है।
Bhaktamar Mantra Healing Insight:
हर दिन एक गाथा, हर गाथा एक क्रांति। जैसे पहला कदम जीवन की दिशा तय करता है, वैसे ही गाथा 1 का पाठ आपके जीवन को आध्यात्मिक दिशा में मोड़ सकता है।
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Unlock Your Destiny with a Numerology Bracelet – The Power of Numbers and Energy
In a world filled with uncertainty, more and more people are turning to ancient sciences to find clarity, purpose, and direction. One such powerful and time-tested science is Numerology — the mystical study of numbers and their influence on our lives. At Jain Anusthan, we bring this sacred knowledge to life through our specially crafted Numerology Bracelet, a spiritual tool designed to align your energies with your life path.
What Is a Numerology Bracelet?
A Numerology Bracelet is a personalized spiritual accessory based on your birthdate and numerological number. Crafted with specific Rudraksha beads, gemstones, and healing materials, it is energized with mantras to balance your aura and attract positive vibrations. Each bracelet is unique, made to resonate with your personal number and support your mental, emotional, and spiritual growth.
How Does It Work?
Numbers carry vibrations. According to numerology, each number from 1 to 9 is linked to specific traits, planets, and energies. By wearing a bracelet that harmonizes with your number, you can:
Align with your life purpose
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At Jain Anusthan, these bracelets are not just accessories — they are spiritually charged tools created under the guidance of Shree Nikunj Bhai, combining sacred mantras and deep-rooted Jain wisdom.
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🌟 Personalized healing based on your numerological chart
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Why Choose Jain Anusthan?
With years of devotion and spiritual service, Jain Anusthan is a trusted name for holistic healing. Whether it’s Bhaktamar Healing, Rudraksha therapy, or numerology-based solutions, we blend ancient science with divine intention. Every Numerology Bracelet is created with care, purity, and purpose — offering not just an ornament, but a path toward transformation.
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आरती की रचना किसने की…
आरती की रचना किसने की…..
मूलचंदजी भोजक एक ऐसे जैन श्रावक थे,जो धुलेवा नगर ( केसरियाजी तीर्थ ) में ��हते थे। नित्य रोज, सुबह शाम तीन-तीन घंटे दादा-दादा करते, दुसरा कुछ भी नहीं, करण की! लोगों के लिए नहीं। आदीनाथ भगवान की भक्ति के लिए गाते थे।
समय के साथ ढलती उम्र गुजरते ६0 साल बित गये, ६0 वर्षो तक निरंतर सुबह शाम अखंड भक्ति करते रहे, एक भी दिन खाली नहीं गया, एक भी दिन फुरसत से कहीं गये नहीं।
एक दिन मूलचंदजी की लडकियाँ वड़नगर गुजरात से लेने आई । पिताजी आप हमारे साथ चलो । मूलचंदजी रोते हुऐ बोले, इस भगवान को छोडकर कहीं नहीं जाऊँगा । लड़कीयो ने पुरा समान बाँध लिया, फिर भी तैयार हो गये।
मूलचंदजी प्रभु के पास गये हुसके हुसके रोने लगे, प्रभु ! मैंने तेरी भक्ति में क्या कमी रखी, जो आज तक, तेरा और मेरा ये नाता तोडने का काम किया, ६०-६० साल की अखंड तेरी भक्ति, एक पल में टुटकर चकना चूर हो जाएगी, ऐसी कल्पना भी, नहीं थी मुझे।
पैर चलते नहीं बुढापे की उम्र थी। देरासर मे से बाहर निकले, पैरो में झन झनाहठ हुई, वापस देरासर में गये स्तवना की बहार आयें, वापस पैरो में झन झनाहठ हुई , वापस देरासर में गये, ऐसा! एक बार–दो बार–तीन बार–चार बार–पाँच बार–छे बार, ऐसे सात बार अंदर गये वापस बहार आये, आठवें बार अंदर गये और इतना रोय की मुख से आवाज भी नहीं निकल रही थी।
हे प्रभु! यातो यहाँ से मेरा शरीर मृत होकर बाहर जायेंगा या फिर, प्रभु तुम्हारे साथ ही बाहर जाऊंगा,अथवा मैं! अकेले नहीं जा सकता। मभ
२० मिनट तक रोते हुए हाथ लम्बा कर भगवान के पास मूलचंदजी विनती करते रहे, प्रभु! साथ दो, मैं नहीं निकल सकता, इतना कहते ही, भगवान का दायां (जमणा) पैर का अंगूठा टूटकर, कुदरती मूलचंदजी के हाथों आया। मूलचंदजी अंगूठे को देखकर हर्षो उल्लास होकर बोले, भगवान आप ! आवाज आई हा ! इस अंगूठे में, मैं ही हूँ , लेजा इसे तेरे साथ।
मूलचंदजी गुजरात में किशनगढ़ के पास वडनगर गये। कहां केसरियाजी और कहां वडनगर का नया देरासर , और देरासर में प्रभु के अंगूठे की स्थापना कर, तीन घण्टे सुबह तीन घण्टे शाम, प्रभु की भक्ति मूलचंदजी ने अखंड रखी।
एक दिन वडनगर संघ के लोगों को आश्चर्य हुआ और पुछा? मूलचंदजी भगवान को छोड़कर, अंगूठे के साथ क्या मिलन होगा। तभी संघ एक बार आग्रपुर्वक पुछते हैं? मूलचंदजी अंगूठे की क्या महत्वता है। तब मूलचंदजी कहते है…
🚩🚩🚩आरती🚩🚩🚩 — — — — → का — — — — — → अर्थ
जय जय आरती आदि जिणंदा , नाभिराया मरुदेवी को नंदा — –> नाभिराजा और मरुदेवी के पुत्र, हे.. आदीनाथ प्रभु! आपकी आरती जयवन्त हो जयवन्त हो ।
पहली आरती पूजा कीजे.., नरभव पामीने लाहो लीजे — –> मानव भव पाकर पहली आरती से पूजा करके लाभ उठावें ।
दुसरी आरती दीन दयाला.., धुळेवा मंडपमां जग अजवाळा — –> जिसने धुलेवा नगर (केसरियाजी) से जगत को प्रकाशित किया है , ऐसे हे.. दीनदयाल ! यह आपकी दुसरी आरती हैं , धुळेवा में प्रथम हमारा नाथ बैठा है
तीसरी आरती त्रिभुवन देवा.., सुरनर इन्द्र करे तोरी सेवा — –> देव मनुष्य और इन्द्र आपकी सेवा करते हैं ! ऐसे तीनों लोको के स्वामी ! आपकी तीसरी आरती हैं।
चोथी आरती चउगति चुरे.., मनवांछित फल शिवसुख पुरे — –> चार गति का नाश करके मनोवांछित फल–मोक्ष सुख को देनेवाली ! आपकी चौथी आरती हैं !
पंचमी आरती पुन्य उपाया..,, मूळचन्दे ऋषभ गुण गाया — –> पाँचवी आरती पुण्य प्राप्ती का उपाय हैं ऐसे मूलचंद जी ने श्री ऋषभदेव के गुण गाये ।
ये मूलचंदजी भोजक भगवान को भी अपने साथ लेकर आये , कैसी अटूट भक्ति ! धन्य है हमारा जिनशासन ।
यदि आप भी ऐसी दिव्य आरतियों, आध्यात्मिक उत्पादों और जिनशासन की भक्ति से जुड़ना चाहते हैं, तो जरूर विजिट करें — https://www.jainanusthan.com/
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राहु की अन्य ग्रहों से युति का फल
🎯 राहु की अन्य ग्रहों से युति का फल:
राहु + सूर्य: यदि राहु और सूर्य की युति कुंडली में है तो जीवन में पिता का सुख नहीं मिलेगा, पुत्र सुख में भी कमी होगी प्रसिद्धि व प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं होगी, व्यक्ति का आत्मविश्वास डांवाडोल रहेगा, तथा भला करने पर भी भलाई नहीं मिलेगी अर्थात यश नहीं मिलेगा ।
राहु + चंद्रमा: राहु और चंद्रमा यदि कुंडली में एक साथ हैं तो व्यक्ति को माता का सुख कम रहेगा ऐसा व्यक्ति मानसिक रूप से सदैव अशांत रहेगा, एकाग्रता की कमी रहेगी।जल्दी अवसाद में आ जाना, चिंता करना आदि। ऐसा व्यक्ति व्याकुलता या घबराहट से भी परेशान रहता है तथा सर्दी की समस्याएं भी उसे सताती है।
राहु + मंगल: राहु और मंगल की युति भी अनिष्टकारी होती है ऐसा व्यक्ति क्रोधी व अहंकारी होता है। इस योग से दुर्घटना, शत्रु बाधा या लड़ाई झगड़े की समस्या भी होती है। स्त्री की कुंडली में यह वैवाहिक जीवन में भी समस्याएं उत्पन्न करता है।
राहु + बुध: राहु और बुध की युति से निर्णय क्षमता में कमी या शीघ्रता में गलत निर्णय लेना, शिक्षा उतार-चढ़ाव व वाणी दोष भी हो सकता है।
राहु + गुरु: राहु व गुरु की युति को गुरु चांडाल दोष भी कहते हैं। ऐसे में विवेक में कमी, शिक्षा में बाचा होती है संतान सुख में बाधायें आती है तथा व्यक्ति में कार्यों को व्यवस्थित करने की प्रतिभा कम होती है तथा उन्नति में भी बाधायें आती है।
राहु + शुक्र: राहु की शुक्र से युति जातक को तामसिक विलासिता की ओर ले जा सकती है। ऐसे में मदिरापान की आदत हो सकती है। पुरुष की कुंडली में यह योग प्रेम-विवाह,अन्तर्जातीय विवाह भी करा सकता है।
राहु + शनि: कुंडली में शनि, राहु की युति जातक को ऐसे कार्य से जोड़ सकती है जिसमें आकस्मिक लाभ की संभावना हो या चातुर्य से लाभ हो परंतु आजीविका में कुछ संघर्ष अवश्य रहता है।
Jain Jyotish & Jain Astrology
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मास्टर बेडरूम

क्यों मास्टर बेड रूम नेरूत्य होना जरूरी है?
अग्नेय दिशा का बेड मे सोने वाले दंपति मे स्नेह या लगाव नही रहेगा, जो भी क्रियाएँ होगी वो यंत्रवत होगी , यहाँ अग्नि तत्व का प्रभाव होने से गर्भ धारणा की संभावना बहुत नहीवत् होगी अगर गर्भ रह गया तो बच्चा गुस्सा से भरा रहेगा, सूर्य नाड़ी के कारण उसका जीवन भी दुखद होगा। वायव्य मे वायु तत्व प्रभावित होगा, यहाँ पति पत्नि के बीच नाग नागिन जैसा स्नेह होगा पर यहाँ बिजन्कुरंन की संभावना कम रहेगी, यहाँ बीज हवा मे सुक जायेगा, अगर गर्भ रह गया तो बेटा बेटी जैसा होगा, बेटी उच्च स्तर की होगी।
ईशान्य का बेड मे सोने वाले पति पत्नी निः संदेह प्रभु भक्त बन जायेंगे, यहाँ बिजन्कुरंन रहने बिल्कुल संभावना नहीं है, बीज जल के साथ बह जायेगा। फिर भी गर्भ रह गया तो बच्चा जल जैसा सरल या डेढ़ शाना होगा।
नेरूत्य मे भूमि तत्व की मौजूदगी बिजन्कुरंन की संभावना को बढ़ा देता है,यह विभाग को रंग शाला कहते है, यहाँ पैदा होने वाला बच्चा 36 लक्षण वाला चतुर, होगा।
जो परिवार की कीर्ति को चारो तरफ लहराता है, कुशल व्यक्तित्व के साथ समृद्ध जीवन जीके मुक्ति तक पहुँच पाता है।
इसी लिए उत्तम बेड रूम नेरूत्य का कहा गया है।
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भक्तामर मंत्र हीलिंग: आध्यात्मिक और चिकित्सा की शक्ति का संयोजन
निकुंज गुरुजी एक विश्वविद्यालय के विद्वान और ध्यान के विशेषज्ञ हैं जो जैन धर्म के अद्वितीय अनुष्ठानों को लेकर प्रसिद्ध हैं। उनकी विशेष शिक्षा और गहन ज्ञान के साथ, वे भक्तिमय और चिकित्सा की शक्ति को अनलॉक करने के लिए भक्तामर मंत्र हीलिंग का महत्व बताते हैं।
भक्तामर मंत्र, जो महावीर स्वामी के आदि काव्य “भक्तामर स्तोत्र” से लिया गया है, आध्यात्मिक उद्दीपना और चिकित्सा में उपयोगी माना जाता है। इस मंत्र का उच्चारण और अनुष्ठान, निकुंज गुरुजी के मार्गदर्शन में, विशेष ध्यान और समर्पण के साथ किया जाता है। जैन अनुष्ठान के अद्वितीय तकनीकों के साथ संयुक्त करके, यह मंत्र चिकित्सा और आध्यात्मिक चेतना में गहराई लाता है।
निकुंज गुरुजी के अनुष्ठान के द्वारा, भक्तामर मंत्र हीलिंग का विशेष महत्व व्यक्त होता है। यह चिकित्सा में रोगों के निवारण में सहायक होता है और आध्यात्मिक उत्थान को बढ़ावा देता है। ध्यान के माध्यम से, इस मंत्र का जाप और अनुष्ठान व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ाने में मदद करता है और उसे स्वस्थ और संतुलित बनाए रखने में सहायक होता है।
भक्तामर मंत्र हीलिंग के माध्यम से, निकुंज गुरुजी द्वारा उपयोग किए जाने वाले अनुष्ठानों के साथ, लोग अपने जीवन को ध्यान, आत्म-समर्पण, और स्वास्थ्य के संतुलन के साथ भरते हैं। इस तरह, भक्तामर मंत्र हीलिंग न केवल रोगों के इलाज में मदद करता है, बल्कि आध्यात्मिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी बढ़ावा देता है।
निकुंज गुरुजी के मार्गदर्शन में, भक्तमर मंत्र की ध्यान प्रक्रिया को अपनाने से, हम अपने जीवन में ऊर्जा, शांति, और स्वास्थ्य को बढ़ा सकते हैं। इस प्रक्रिया में ध्यान और अनुशासन का महत्व होता है, जो हमें आत्मविश्वास और सकारात्मकता की दिशा में ले जाता है। यह न केवल हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारता है, बल्कि हमारे मानसिक और आध्यात्मिक विकास को भी प्रोत्साहित करता है।
इस तरह, जैन अनुस्थान द्वारा भक्तमर मंत्र के उपयोग से चिकित्सा की शक्ति को अनलॉक किया जा सकता है, और निकुंज गुरुजी जैसे गुरुओं के मार्गदर्शन में, हम अपने जीवन को संतुलित और समृद्ध बना सकते हैं। ध्यान के माध्यम से, हम अपने आत्मविश्वास को बढ़ाते हैं और अपने जीवन को सकारात्मकता से भर देते हैं।
भक्तामर मंत्र हीलिंग के विभिन्न अनुष्ठानों की सूची: भक्तामर मंत्र जप: इस अनुष्ठान में, भक्तामर मंत्र का नियमित जप किया जाता है। यह जप मानसिक शांति और चिकित्सा में सहायक होता है।
ध्यान और अनुष्ठान: इस अनुष्ठान में, भक्तामर मंत्र के साथ ध्यान की प्रक्रिया को सहित किया जाता है। ध्यान के माध्यम से, मन को शांति और स्वास्थ्य में सहायता मिलती है।
भक्तामर मंत्र यज्ञ: इस अनुष्ठान में, भक्तामर मंत्र का यज्ञ किया जाता है। यह यज्ञ आत्मा की पवित्रता और चिकित्सा में सहायक होता है।
संगीत और मंत्र: इस अनुष्ठान में, भक्तामर मंत्र को संगीत के साथ गाया जाता है। संगीत के माध्यम से, मन को शांति और चिकित्सा में सहायता मिलती है।
भक्तामर मंत्र अर्चना: इस अनुष्ठान में, भक्तामर मंत्र की अर्चना की जाती है। यह अर्चना मानसिक शांति और चिकित्सा में सहायक होती है।
ये कुछ भक्तामर मंत्र हीलिंग के प्रमुख अनुष्ठान हैं, जो आत्मिक और शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारने में मदद कर सकते हैं।
यहाँ कुछ भक्तामर मंत्र की सूची है:
श्री आदिनाथाय नमः
भक्तामरस्तोत्रम् संस्कृत
कालजयी महाकाव्य श्रीमन्मानतुङ्गाचार्य-विरचितम्
भक्तामर-प्रणत-मौलि-मणि-प्रभाणा- मुद्योतकं दलित-पाप-तमो-वितानम् । सम्यक्-प्रणम्य जिन प-पाद-युगं युगादा- वालम्बनं भव-जले पततां जनानाम् ॥1॥
य: संस्तुत: सकल-वां मय-तत्त्व-बोधा- दुद्भूत-बुद्धि-पटुभि: सुर-लोक-नाथै: । स्तोत्रैर्जगत्-त्रितय-चित्त-हरैरुदारै:, स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् ॥2॥
बुद्ध्या विनापि विबुधार्चित-पाद-पीठ! स्तोतुं समुद्यत-मतिर्विगत-त्रपोऽहम् । बालं विहाय जल-संस्थित-मिन्दु-बिम्ब- मन्य: क इच्छति जन: सहसा ग्रहीतुम् ॥3॥
वक्तुं गुणान्गुण-समुद्र ! शशांक-कान्तान्, कस्ते क्षम: सुर-गुरु-प्रतिमोऽपि बुद्ध्या । कल्पान्त-काल-पवनोद्धत-नक्र-चक्रं , को वा तरीतुमलमम्बुनिधिं भुजाभ्याम् ॥4॥
सोऽहं तथापि तव भक्ति-वशान्मुनीश! कर्तुं स्तवं विगत-शक्ति-रपि प्रवृत्त: । प्रीत्यात्म-वीर्य-मविचार्य मृगी मृगेन्द्रम् नाभ्येति किं निज-शिशो: परिपालनार्थम् ॥5॥
अल्प-श्रुतं श्रुतवतां परिहास-धाम, त्वद्-भक्तिरेव मुखरी-कुरुते बलान्माम् । यत्कोकिल: किल मधौ मधुरं विरौति, तच्चाम्र-चारु-कलिका-निकरैक-हेतु: ॥6॥
त्वत्संस्तवेन भव-सन्तति-सन्निबद्धं, पापं क्षणात्क्षयमुपैति शरीरभाजाम् । आक्रान्त-लोक-मलि-नील-मशेष-माशु, सूर्यांशु-भिन्न-मिव शार्वर-मन्धकारम् ॥7॥
मत्वेति नाथ! तव संस्तवनं मयेद,- मारभ्यते तनु-धियापि तव प्रभावात् । चेतो हरिष्यति सतां नलिनी-दलेषु, मुक्ता-फल-द्युति-मुपैति ननूद-बिन्दु: ॥8॥
आस्तां तव स्तवन-मस्त-समस्त-दोषं, त्वत्संकथाऽपि जगतां दुरितानि हन्ति । दूरे सहस्रकिरण: कुरुते प्रभैव, पद्माकरेषु जलजानि विकासभांजि ॥9॥
नात्यद्-भुतं भुवन-भूषण ! भूूत-नाथ! भूतैर्गुणैर्भुवि भवन्त-मभिष्टुवन्त: । तुल्या भवन्ति भवतो ननु तेन किं वा भूत्याश्रितं य इह नात्मसमं करोति ॥10॥
दृष्ट्वा भवन्त मनिमेष-विलोकनीयं, नान्यत्र-तोष-मुपयाति जनस्य चक्षु: । पीत्वा पय: शशिकर-द्युति-दुग्ध-सिन्धो:, क्षारं जलं जलनिधेरसितुं क इच्छेत्?॥11॥
यै: शान्त-राग-रुचिभि: परमाणुभिस्-त्वं, निर्मापितस्-त्रि-भुवनैक-ललाम-भूत ! तावन्त एव खलु तेऽप्यणव: पृथिव्यां, यत्ते समान-मपरं न हि रूप-मस्ति ॥12॥
वक्त्रं क्व ते सुर-नरोरग-नेत्र-हारि, नि:शेष-निर्जित-जगत्त्रितयोपमानम् । बिम्बं कलंक-मलिनं क्व निशाकरस्य, यद्वासरे भवति पाण्डुपलाश-कल्पम् ॥13॥
सम्पूर्ण-मण्डल-शशांक-कला-कलाप- शुभ्रा गुणास्-त्रि-भुवनं तव लंघयन्ति । ये संश्रितास्-त्रि-जगदीश्वरनाथ-मेकं, कस्तान् निवारयति संचरतो यथेष्टम् ॥14॥
चित्रं-किमत्र यदि ते त्रिदशांग-नाभिर्- नीतं मनागपि मनो न विकार-मार्गम् । कल्पान्त-काल-मरुता चलिताचलेन, किं मन्दराद्रिशिखरं चलितं कदाचित् ॥15॥
निर्धूम-वर्ति-रपवर्जित-तैल-पूर:, कृत्स्नं जगत्त्रय-मिदं प्रकटीकरोषि । गम्यो न जातु मरुतां चलिताचलानां, दीपोऽपरस्त्वमसि नाथ ! जगत्प्रकाश: ॥16॥
नास्तं कदाचिदुपयासि न राहुगम्य:, स्पष्टीकरोषि सहसा युगपज्-जगन्ति । नाम्भोधरोदर-निरुद्ध-महा-प्रभाव:, सूर्यातिशायि-महिमासि मुनीन्द्र! लोके ॥17॥
नित्योदयं दलित-मोह-महान्धकारं, गम्यं न राहु-वदनस्य न वारिदानाम् । विभ्राजते तव मुखाब्ज-मनल्पकान्ति, विद्योतयज्-जगदपूर्व-शशांक-बिम्बम् ॥18॥
किं शर्वरीषु शशिनाह्नि विवस्वता वा, युष्मन्मुखेन्दु-दलितेषु तम:सु नाथ! निष्पन्न-शालि-वन-शालिनी जीव-लोके, कार्यं कियज्जल-धरै-र्जल-भार-नमै्र: ॥19॥
ज्ञानं यथा त्वयि विभाति कृतावकाशं, नैवं तथा हरि-हरादिषु नायकेषु । तेजो महा मणि��ु याति यथा महत्त्वं, नैवं तु काच-शकले किरणाकुलेऽपि ॥20॥
मन्ये वरं हरि-हरादय एव दृष्टा, दृष्टेषु येषु हृदयं त्वयि तोषमेति । किं वीक्षितेन भवता भुवि येन नान्य:, कश्चिन्मनो हरति नाथ ! भवान्तरेऽपि ॥21॥
स्त्रीणां शतानि शतशो जनयन्ति पुत्रान्, नान्या सुतं त्वदुपमं जननी प्रसूता । सर्वा दिशो दधति भानि सहस्र-रश्मिं, प्राच्येव दिग्जनयति स्फुरदंशु-जालम् ॥22॥
त्वामामनन्ति मुनय: परमं पुमांस- मादित्य-वर्ण-ममलं तमस: पुरस्तात् । त्वामेव सम्य-गुपलभ्य जयन्ति मृत्युं, नान्य: शिव: शिवपदस्य मुनीन्द्र! पन्था: ॥23॥
त्वा-मव्ययं विभु-मचिन्त्य-मसंख्य-माद्यं, ब्रह्माणमीश्वर-मनन्त-मनंग-केतुम् । योगीश्वरं विदित-योग-मनेक-मेकं, ज्ञान-स्वरूप-ममलं प्रवदन्ति सन्त: ॥24॥
बुद्धस्त्वमेव विबुधार्चित-बुद्धि-बोधात्, त्वं शंकरोऽसि भुवन-त्रय-शंकरत्वात् । धातासि धीर! शिव-मार्ग विधेर्विधानाद्, व्यक्तं त्वमेव भगवन् पुरुषोत्तमोऽसि ॥25॥
तुभ्यं नमस्-त्रिभुवनार्ति-हराय नाथ! तुभ्यं नम: क्षिति-तलामल-भूषणाय । तुभ्यं नमस्-त्रिजगत: परमेश्वराय, तुभ्यं नमो जिन! भवोदधि-शोषणाय ॥26॥
को विस्मयोऽत्र यदि नाम गुणै-रशेषैस्- त्वं संश्रितो निरवकाशतया मुनीश ! दोषै-रुपात्त-विविधाश्रय-जात-गर्वै:, स्वप्नान्तरेऽपि न कदाचिदपीक्षितोऽसि ॥27॥
उच्चै-रशोक-तरु-संश्रितमुन्मयूख- माभाति रूपममलं भवतो नितान्तम् । स्पष्टोल्लसत्-किरण-मस्त-तमो-वितानं, बिम्बं रवेरिव पयोधर-पाश्र्ववर्ति ॥28॥
सिंहासने मणि-मयूख-शिखा-विचित्रे, विभ्राजते तव वपु: कनकावदातम् । बिम्बं वियद्-विलस-दंशुलता-वितानं तुंगोदयाद्रि-शिरसीव सहस्र-रश्मे: ॥29॥
कुन्दावदात-चल-चामर-चारु-शोभं, विभ्राजते तव वपु: कलधौत-कान्तम् । उद्यच्छशांक-शुचिनिर्झर-वारि-धार- मुच्चैस्तटं सुरगिरेरिव शातकौम्भम् ॥30॥
छत्रत्रयं-तव-विभाति शशांककान्त, मुच्चैः स्थितं स्थगित भानुकर-प्रतापम् । मुक्ताफल-प्रकरजाल-विवृद्धशोभं, प्रख्यापयत्त्रिजगतः परमेश्वरत्वम् ॥31॥
गम्भीर-तार-रव-पूरित-दिग्विभागस्- त्रैलोक्य-लोक-शुभ-संगम-भूति-दक्ष: । सद्धर्म-राज-जय-घोषण-घोषक: सन्, खे दुन्दुभि-ध्र्वनति ते यशस: प्रवादी ॥32॥
मन्दार-सुन्दर-नमेरु-सुपारिजात- सन्तानकादि-कुसुमोत्कर-वृष्टि-रुद्घा । गन्धोद-बिन्दु-शुभ-मन्द-मरुत्प्रपाता, दिव्या दिव: पतति ते वचसां ततिर्वा ॥33॥
शुम्भत्-प्रभा-वलय-भूरि-विभा-विभोस्ते, लोक-त्रये-द्युतिमतां द्युति-माक्षिपन्ती । प्रोद्यद्-दिवाकर-निरन्तर-भूरि-संख्या, दीप्त्या जयत्यपि निशामपि सोमसौम्याम् ॥34॥
स्वर्गापवर्ग-गम-मार्ग-विमार्गणेष्ट:, सद्धर्म-तत्त्व-कथनैक-पटुस्-त्रिलोक्या: । दिव्य-ध्वनि-र्भवति ते विशदार्थ-सर्व- भाषास्वभाव-परिणाम-गुणै: प्रयोज्य: ॥35॥
उन्निद्र-हेम-नव-पंकज-पुंज-कान्ती, पर्युल्-लसन्-नख-मयूख-शिखाभिरामौ। पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र ! धत्त:, पद्मानि तत्र विबुधा: परिकल्पयन्ति ॥36॥
॥ अन्तरंग-बहिरंग लक्ष्मी के स्वामी मंत्र॥ इत्थं यथा तव विभूति-रभूज्-जिनेन्द्र्र ! धर्मोपदेशन-विधौ न तथा परस्य। यादृक्-प्र्रभा दिनकृत: प्रहतान्धकारा, तादृक्-कुतो ग्रहगणस्य विकासिनोऽपि ॥37॥
॥ हस्ती भय निवारण मंत्र ॥ श्च्यो-तन्-मदाविल-विलोल-कपोल-मूल, मत्त-भ्रमद्-भ्रमर-नाद-विवृद्ध-कोपम्। ऐरावताभमिभ-मुद्धत-मापतन्तं दृष्ट्वा भयं भवति नो भवदाश्रितानाम् ॥38॥
॥ सिंह-भय-विदूरण मंत्र ॥ भिन्नेभ-कुम्भ-गल-दुज्ज्वल-शोणिताक्त, मुक्ता-फल-प्रकरभूषित-भूमि-भाग:। बद्ध-क्रम: क्रम-गतं हरिणाधिपोऽपि, नाक्रामति क्रम-युगाचल-संश्रितं ते ॥39॥
॥ अग्नि भय-शमन मंत्र ॥ कल्पान्त-काल-पवनोद्धत-वह्नि-कल्पं, दावानलं ज्वलित-मुज्ज्वल-मुत्स्फुलिंगम्। विश्वं जिघत्सुमिव सम्मुख-मापतन्तं, त्वन्नाम-कीर्तन-जलं शमयत्यशेषम् ॥40॥
॥ सर्प-भय-निवारण मंत्र ॥ रक्तेक्षणं समद-कोकिल-कण्ठ-नीलम्, क्रोधोद्धतं फणिन-मुत्फण-मापतन्तम्। आक्रामति क्रम-युगेण निरस्त-शंकस्- त्वन्नाम-नागदमनी हृदि यस्य पुंस: ॥41॥
॥ रण-रंगे-शत्रु पराजय मंत्र ॥ वल्गत्-तुरंग-गज-गर्जित-भीमनाद- माजौ बलं बलवता-मपि-भूपतीनाम्। उद्यद्-दिवाकर-मयूख-शिखापविद्धं त्वत्कीर्तनात्तम इवाशु भिदामुपैति: ॥42॥
॥ रणरंग विजय मंत्र ॥ कुन्ताग्र-भिन्न-गज-शोणित-वारिवाह, वेगावतार-तरणातुर-योध-भीमे। युद्धे जयं विजित-दुर्जय-जेय-पक्षास्- त्वत्पाद-पंकज-वनाश्रयिणो लभन्ते: ॥43॥
॥ समुद्र उल्लंघन मंत्र ॥ अम्भोनिधौ क्षुभित-भीषण-नक्र-चक्र- पाठीन-पीठ-भय-दोल्वण-वाडवाग्नौ। रंगत्तरंग-शिखर-स्थित-यान-पात्रास्- त्रासं विहाय भवत: स्मरणाद्-व्रजन्ति: ॥44॥
॥ रोग-उन्मूलन मंत्र ॥ उद्भूत-भीषण-जलोदर-भार-भुग्ना:, शोच्यां दशा-मुपगताश्-च्युत-जीविताशा:। त्वत्पाद-पंकज-रजो-मृत-दिग्ध-देहा:, मत्र्या भवन्ति मकर-ध्वज-तुल्यरूपा: ॥45॥
॥ बन्धन मुक्ति मंत्र ॥ आपाद-कण्ठमुरु-शृंखल-वेष्टितांगा, गाढं-बृहन्-निगड-कोटि निघृष्ट-जंघा:। त्वन्-नाम-मन्त्र-मनिशं मनुजा: स्मरन्त:, सद्य: स्वयं विगत-बन्ध-भया भवन्ति: ॥46॥
॥ सकल भय विनाशन मंत्र ॥ मत्त-द्विपेन्द्र-मृग-राज-दवानलाहि- संग्राम-वारिधि-महोदर-बन्ध-नोत्थम्। तस्याशु नाश-मुपयाति भयं भियेव, यस्तावकं स्तव-मिमं मतिमानधीते: ॥47॥
॥ जिन-स्तुति-फल मंत्र ॥ स्तोत्र-स्रजं तव जिनेन्द्र गुणैर्निबद्धाम्, भक्त्या मया विविध-वर्ण-विचित्र-पुष्पाम्। धत्ते जनो य इह कण्ठ-गता-मजस्रं, तं मानतुंग-मवशा-समुपैति लक्ष्मी: ॥48॥
– आचार्य मानतुंग
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ये मंत्र भक्तामर स्तोत्र के भाग हैं और आध्यात्मिक उन्नति और चिकित्सा में सहायक हो सकते हैं।
अहमदाबाद के सर्वश्रेष्ठ ज्योतिषी निकुंज गुरुजी को ज्योतिष पुरस्कार!
हमें यह घोषणा करते हुए बेहद खुशी हो रही है कि इस वर्ष का सर्वश्रेष्ठ ज्योतिषी का पुरस्कार निकुंज गुरुजी को दिया जा रहा है!
आइए, हम सब मिलकर निकुंज गुरुजी को उनके पुरस्कार के लिए बधाई दें।
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Unlocking the Power of Bhaktamar Mantra Healing with Jain Anusthan by Nikunj Guruji
Bhaktamar Mantra Healing is an ancient practice that has been revered for centuries for its profound spiritual and healing properties. At Jain Anusthan, under the guidance of the esteemed Nikunj Guruji, we delve into the depths of this sacred tradition to bring about transformational changes in the lives of individuals seeking solace and healing.
The Essence of Bhaktamar Mantra Healing
The Bhaktamar Stotra, composed by Acharya Mantunga, is a divine ode to the first Tirthankara, Lord Adinath. It consists of 48 powerful verses, each resonating with unique vibrations that align with the cosmic energies. These mantras are not just mere words; they are a symphony of sounds that create a bridge between the physical and the spiritual realms.
Healing Beyond Boundaries
At Jain Anusthan, we believe in the universal applicability of the Bhaktamar Mantras. Whether it’s for *enhancing education, memory, and IQ, fostering harmonious relationships and marriage, or attracting wealth and prosperity, these mantras have shown remarkable results. Our approach is holistic, combining mantra therapy with thought vibrations to offer a drugless therapy that transcends distance and physical barriers.
The Role of Nikunj Guruji
Nikunj Guruji, a spiritual healer and visionary, has dedicated his life to the propagation of Bhaktamar Mantra Healing. His expertise and intuitive understanding of the mantras enable him to tailor the healing process to the individual needs of his followers. Under his tutelage, practitioners experience a profound sense of peace and well-being, as they embark on a journey of self-discovery and spiritual enlightenment.
Joining the Jain Anusthan
Participating in the Jain Anusthan is a commitment to one’s own spiritual growth. It is an invitation to immerse oneself in the purifying waters of Bhaktamar Mantra Healing. With regular sessions, workshops, and personal guidance, Nikunj Guruji leads his disciples through a transformative process that not only heals but also empowers them to lead a life of purpose and fulfillment.
To join Jain Anusthan call or whatsapp us on +91 97231 12999 OR
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Testimonials of Transformation
The testimonials of those who have experienced the power of Bhaktamar Mantra Healing speak volumes. From overcoming chronic ailments to resolving financial crises, the stories of healing and hope are endless. These narratives are a testament to the potency of the mantras and the compassionate guidance of Nikunj Guruji.
Embark on Your Healing Journey
We invite you to explore the miraculous world of Bhaktamar Mantra Healing at Jain Anusthan. Connect with us to learn more about how you can begin your journey towards health, abundance, peace, happiness, and prosperity. Let the sacred verses of the Bhaktamar guide you to a life of harmony and spiritual fulfillment.
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Unveiling the Journey of Jain Astrologer and Jyotish Nikunj Sheth
In the realm of spiritual guidance and cosmic insights, Jain Astrology holds a profound significance. At the forefront of this ancient wisdom stands the revered figure of Jyotish Nikunj Sheth, whose journey epitomizes dedication, knowledge, and service to humanity. Let’s delve into the life and contributions of this esteemed personality, whose endeavors have earned him global acclaim.
Jain Anusthan: A Beacon of Enlightenment Central to Jain Jyotish Nikunj Sheth’s mission is Jain Anusthan, a platform dedicated to propagating the profound philosophy he embraces. Through various noble activities and initiatives, Sheth endeavors to disseminate the teachings of Jainism across the globe, making them accessible to seekers of spiritual enlightenment.
The Story Unfolds: Nikunj Guruji’s Journey Nikunj Sheth, fondly known as Guruji, embarked on his journey of spiritual exploration and learning with fervor and dedication. His quest for knowledge led him to the hallowed precincts of Tapovan Sanskrit Pathshala in 2001, where he immersed himself in the study of Sanskrit and Indian culture for five consecutive years. It was during this period that he was honored with the prestigious “Pandit Ratna Puraskar” for his exemplary dedication.
Subsequently, Guruji’s spiritual odyssey took him to various corners of the world, where he imparted his wisdom and insights to eager learners. From delivering enlightening discourses on Jain rituals and scriptures at the Madras T Nagar Jain Sangh to conducting transformative yoga and meditation sessions in Dubai, his contributions have left an indelible mark on spiritual seekers worldwide.
A Legacy of Service and Enlightenment Throughout his illustrious career, Jyotish Nikunj Sheth has been a beacon of compassion and service. His endeavors span a wide spectrum, from conducting elaborate religious ceremonies such as the Shri Siddhachakra Puja to spearheading Jain religious outreach campaigns across India and abroad. His commitment to the welfare of society is evident in his regular assistance to fifty deserving families every month, ensuring that no one is left behind in their pursuit of spiritual growth.
Moreover, Guruji’s expertise extends beyond spiritual realms into the domain of art and architecture. He has been instrumental in providing meticulous guidance for the sculptural adornment of numerous Jain temples, ensuring their architectural grandeur aligns with ancient traditions.
A Global Footprint: Honors and Recognition The impact of Jyotish Nikunj Sheth’s work transcends geographical boundaries, earning him accolades and recognition on a global scale. From being honored as the Brilliant Speaker of the Year by the Madras T Nagar Jain Sangh to receiving the World Record Award for his rendition of Navkar Mantra in front of the Pyramids in Egypt, his contributions have been celebrated far and wide.
In 2019 alone, Guruji’s endeavors were recognized with prestigious awards such as the Best Motivational Speaker Award by the Tapovan Foundation and the World Record Award for his evocative rendition of Navkar Mantra in Dubai. His presence at international forums such as the Grand Navkar Healing Camp in Singapore further underscore his global influence and standing.
Conclusion: A Journey of Enlightenment In conclusion, the journey of Jain Jyotish & Astrologer Nikunj Sheth is a testament to the transformative power of spirituality and service. Through his unwavering commitment to Jain principles and his tireless efforts to disseminate ancient wisdom, Guruji has touched countless lives and inspired generations to tread the path of enlightenment. As we look towards the future, his legacy continues to illuminate the path for seekers of truth and spiritual fulfillment, guiding them towards a life of purpose and transcendence.
Introduction of world record awarded Panditvarya Shri Nikunj Guruji…
➥ “Pandit Ratna Award” given by him in 2001 for continuously studying Sanskrit and culture for 5 years at Tapovan Sanskrit Pathshala.
➥ Sermon on Shraddha vidhi Mahagranth for 60 days in Madras T Nagar Jain Sangh, many people participated in Mahatyaag dinner, Nav Lakh Navkar Mantra Mahajaap Sankalp Vidhan and Brilliant Speaker of the Year Award by the Sangh.
➥ 2007 International Discourse Shiromani Award during 7 days Yoga, Meditation Camp in Dubai.
➥ 2009 A large number of religious rituals from Shri Siddhachakra Pujan to Anjanashalaka Pratishtha…
➥ For the first time in the world, Shri Manibhadra Veer Mahavan-Pujan has been performed at Ahmedabad Riverfront at Aso Sood 5 with 3600 couples.
➥ 2010 Jain religious propaganda campaign in many associations of the country and abroad….
➥ Worshiping Parvadhiraj Paryushan for more than 18 years…
➥ Assistance to 50 religious families every month…
➥ A precise guide to the sculptures in the Jain temples of Sakhado Sangha.
➥ Editing of many texts on Jain mantra, yoga, meditation, ancient sculpture, Vastu…
➥ Till now, 80 saints and sages have been taught Samyak Gyan.
➥ In 2011, special worship of Namaskar Mahamantra in small villages of Maharashtra for 3 months and successful planning of drug addiction campaign from the lives of many persons.
➥ Intensive study of mantras and idols by Hindu Vedic Institute in 2012.
➥Life changing camps in many countries including Nairobi, Mombasa, Thika, Daressalam in 2015
➥ Grand Navkar Healing Camp in Singapore in 2016
➥ Grand Navkar Katha in Bangkok in 2017
➥ Special speaker presence at the World Religion Conference in Russia in 2018
➥ Singing of Navkar Mantra in front of the Pyramid in Egypt in 2019 and honored with World Record Award.
➥ Honored with the Best Motivational Speaker Award of Tapovan Organization in 2019.
➥ Grand worship of Posh Dasham in Dubai Jain Sandh in 2019
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