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महालट्ठमार- Mahalatthmaar
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mahalatthmaar · 5 years ago
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रामायण से परेशान रवीश
कोरोना ने हर किसी को घर में कैद कर रखा है। ऐसे में डर है कहीं नौ-दस महीने बाद भारत की आबादी कोरोना के पापा चीन को पीछे न छोड दे। यही सोचकर सूचना-प्रसारण मंत्री प्रकाश जावेडकर ने दूरदर्शन पर "रामायण",  "महाभारत", "सर्कस" "मालगुडी डेज" और "चाणक्य" जैसे कई सुपर हिट धारावाहिकों के पुनरप्रसारण को मंजूरी दे दी, ताकि लोग दूरदर्शन से चिपके रहने के चक्कर में अपनी बीवी से Social Distancing बनाए रखें और कम-से-कम कोरोना की वजह से देश की आबादी बढ़ने की आशंका मूर्त रुप न ले पाये.
खैर, "सर्कस" "मालगुडी डेज" या "चाणक्य" जैसे धारावाहिकों की प्रसारण-योजना के बारे में सुनकर किसी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगा, पर दूरदर्शन पर "रामायण" के आते ह��� देश में एक साथ कई रवीश कुमार पैदा हो गए ! अब सरकार को कहाँ  अनुमान था कि जैसे लोग अगर बीवी से चिपकेंगे तो आबादी बढ़ेगी, वैसे ही  लोग अगर "रामायण" देखने के नाम पर दूरदर्शन से चिपकेंगे तो देश में कई रवीश कुमार पैदा हो जाएंगे। हर बात पर सरकार के नाम पर बिलबिलानेवाले रवीश का मानना है कि जब दिल्ली से हजारों मजदूर बिहार-यूपी जाने के लिए सड़कों पर निकल चुके हैं (या निकाले गए हैं), तो ऐसे में "रामायण" के प्रसारण का क्या औचित्य है ? जैसे मोदी जी के आह्वान पर पूरे देश में विगत 22 मार्च को शाम 5 बजे थाली-ताली-शंख आदि बजाकर लोगों ने स्वास्थ्यकर्मियों के प्रति सम्मान प्रकट किया तो कुछ अबुद्धिजीवियों को लगा कि थाली बजाने से भला कोरोना कैसे खत्म हो सकता है, वैसे ही रवीश को भी यही लग रहा है कि दूरदर्शन पर रामायण प्रसारित करने से कोरोना कैसे खत्म हो सकता है ! अब कोई बेचारे को समझाए कि भई, देश की आबादी उतनी ही नहीं है जितनी कि दिल्ली से निकलकर यूपी-बिहार के लिए सड़कों जा रही थी, बल्कि देश में 135 करोड़ लोग रहते हैं जिनमें से अगर 17 करोड़ रवीश कुमारों को छांटकर बात की जाये, तब भी सवा सौ करोड़ के आसपास लोग "रामायण" देखनेवाले हैं।  पर दिल्ली दंगों में मोहम्मद शाहरुख को अनुराग मिश्रा बताकर रातों-रात बिना खर्चा के चर्चा में आए रवीश कुमार को समझाना उतना ही मुश्किल काम है जितना कि ब्रिटनी स्पियर्स से ग़ज़ल गवाना ।
दरअसल रवीश कुमार होना कोरोना होने  से भी ज़्यादा गंभीर मामला है, क्योंकि कोरोना से संक्रमित स्पेन के किसी अस्पताल में डॉक्टर्स को सामूहिक रूप से "ऊं" का उच्चारण करते देखकर आप जितना फ़क्र  महसूस कर सकते हैं, दूरदर्शन पर "रामायण" देखकर रवीश को उतनी ही शर्म आती है। शर्म आना अच्छी बात है, पर अगर सही वजह से आये तो शरमानेवाले की इज्जत बढ़ती है और गलत वजह से  आए तो इज्जत मिट्टी में मिल जाती है...  
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