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लौट आओ पापा
वो स्नेहिल हाथों का स्पर्श
फिर से अपने सिर पर महसूस करना चाहती हूं, मैं।
"अरे, कोई बात नहीं, सब हो जाएगा,
पापा हैं ना" –
ये सुरक्षा का कवच फिर से ओढ़ना चाहती हूं,मैं।
आपकी नसीहतें और प्यार भरी डांट
फिर से सुनना चाहती हूं मैं,
अपनी लिखी हर कविता
सबसे पहले आपको सुनाना चाहती हूं मैं।
बिन कहे मेरी हर बात समझ लेने वाले आप,
सिर्फ मेरी आवाज सुनकर
मेरी मन:स्थिति पहचान लेने वाले ,
वो फोन पर "सब ठीक है, ना?"
कहने वाली मधुर आवाज
फिर से कानों में घोलना चाहती हूं मैं।
"पापा कॉलिंग" अपने मोबाइल के स्क्रीन पर,
फिर से देखना चाहती हूं मैं।
चहकते हुए पूछना,
"आज खाने में क्या बना है,?"
और वो व्यंजन आपको फिर से खिलाना चाहती हूं मैं ।
आप के साथ बैठ कर उस पल
को फिर से जीना चाहती हूं मैं।
"चलो, कहीं घूमने चलते हैं।
अरे, तुम्हारी मां तो ऐसे ही मना करेगी!"
मां के साथ आपकी प्यारी नोंकझोंक
फिर से दोहराना चाहती हूं मैं।
बस, एक बार लौट आओ, पापा।
आपको भरी आंखों से एक बार
फिर से देखना चाहती हूं,मैं
जानती हूं,
अब आप कहीं नहीं हो।
ना मैं आपको देख पाऊंगी,
ना आपकी आवाज सुन पाऊंगी।
फिर भी,
अपने दिल को यही समझाना चाहती हूं मैं।
बस अब आपकी यादें,और तस्वीरें हैं
जिसे ताउम्र संभालना चाहती हूं।
नूतन झा ✍️
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