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Nostalgic Jaisalmer Fort
पीले बलुआ पत्थरों से बना ८६८ साल पुराना, सिल्क रुट पर स्थित राव जैसलदेव ( भगवान् श्रीकृष्ण के ११६ वे वंशज ) द्वारा मेरु (त्रिकुटा) पहाड़ी पर बनवाया गया "जैसलमेर" का किला , दुनिया के बहुत कम "जीवित किलों" में से एक , राजस्थान की "भाटी" राजपूताना आन बान शान की ध्वज पताका लहरा रहा है। किले की दीवारों का दिन में गहरे भूरे रंग से शाम होते होते सुनहरे रंग में बदलना , इसके "सोनार किले" को परिभाषित करता है । किले में एक बहुत लम्बी (शायद ३ मीटर लम्बी) नाल वाली बन्दूक भी है जिसे एक सैनिक दूसरे सैनिक के कंधे पर रखकर शत्रु के ऊपर गोली दाग पाता था , शायद " दूसरे के कंधे पर रखकर बन्दूक चलाने" वाले मुहावरे की उत्पत्ति भी जैसलमेर के किले से हुई थी । किले के एक द्वार पर खिलजी के आक्रमण के दौरान "पवित्र जोहर" के लिए आहुति देने वाली वीरांगनाओ के हाथों की छाप आज भी है। चार विशाल प्रवेश द्वारों से गुजरकर ही आप निन्यानवे बुर्जों वाले इस किले में प्रवेश पा सकते है। किले की आंतरिक संरचना भूल-भुलैया की तरह है जिसमे शत्रु का राजा तक पहुंचना नामुमकिन था। चैत्र शुक्ल चतुर्थी को "गणगौर" (शिव पार्वती) की पूजा और शाही सवारी निकालती है और पवित्र गवर माता की लगभग सात सौ साल पुरानी मूर्ति , आज भी किले में है । जैसलमेर - बीकानेर रियासतों की लड़ाई में बीकानेर वाले ईश्वर (शिव) की मूर्ति ले जाने में सफल रहे पर गवर माता की मूर्ति की रक्षा जैसलमेर की सेना ने कर ली | माता की मूर्ति आज भी किले में बिना अपने ईश्वर की मूर्ति के है और बिना पलक झपकाए अपने ईश्वर का इंतज़ार करते हुए, हर स्त्री को अच्छे , दीर्घायु वाले जीवन साथी का आशीर्वाद दे रही है | व्यापारियों की सुन्दर सुन्दर हवेलियां है - और रोमांटिक कहानी "ढोल मारु"में भी जैसलमेर का कनेक्शन है। जैसलमेर के हर मकान की बाह्य दीवार पर अंकित शुभ अवसर निमंत्रन पत्रों से उस घर के के शुभ अवसरों की गणना आप तुरंत कर सकते है | जैसलमेर का किला देखकर एक टीस जरूर है कि हमारी इतिहास की पाठ्य पुस्तकों ने जितना स्थान और सम्मान लाल किलों को दिया , उतना सम्मान और स्थान - राजस्थान के इतने वैभवशाली, गौरवशाली राजपूत किलों को क्यों नहीं दिया ?
पीयूष शंकर गर्ग (स्वरचित) , अपनी यात्रा अनुभव के आधार पर )

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