***इटली विश्व का पहिला देश बन गया है जिसनें एक कोविड-19 से मृत शरीर पर अटोप्सी (postmortem) का आयोजन किया है, और एक व्यापक जाँच करने के बाद उन्हें पता चला है कि एक वाईरस के रूप में कोविड-19 मौजूद नहीं है, बल्कि यह सब एक गलोबल घोटाला है। लोग असल में "ऐमप्लीफाईड गलोबल 5G इलैक्ट्रोमैगनेटिक रेडिएशन ज़हर" के कारण मर रहे हैं।
*** इटली के डॉक्टरस ने विश्व सेहत संगठन (WHO) के कानून की अवज्ञा की है, जो कि करोना वाईरस से मरने वाले लोगों के मृत शरीर पर आटोप्सी (postmortem) करने की आज्ञा नहीं देता ताकि किसी तरह की विज्ञानिक खोज व पड़ताल के बाद ये पता ना लगाया जा सके कि यह एक वाईरस नहीं है, बल्कि एक बैक्टीरिया है जो मौत का कारण बनता है, जिस की वजह से नसों में ख़ून की गाँठें बन जाती हैं यानि इस बैक्टीरिया के कारण ख़ून नसों व नाड़ियों में जम जाता है और मरीज़ की मौत का कारण बन जाता है।
***** इटली ने so-called covid-19 को हराया है, जो कि "फैलीआ-इंट्रावासकूलर कोगूलेशन (थ्रोम्बोसिस) के इलावा और कुछ नहीं है और इस का मुक़ाबला करने का तरीका आर्थात इलाज़........
***ऐंटीबायोटिकस (Antibiotics tablets}
***ऐंटी-इंनफ्लेमटरी ( Anti-inflamentry) और
***ऐंटीकोआगूलैटस ( Aspirin) के साथ हो जाता है।
यह संकेत करते हुए कि इस बिमारी का इलाज़ ही नहीं किया गया था, विश्व के लिए यह संनसनीख़ेज़ ख़बर इटालियन डाक्टरों द्वारा so-called covid-19 की वजह से तैयार की गई लाशों पर आटोप्सीज़ (postmortem) करवा कर तैयार की गई है। कुछ और इतालवी रोग विज्ञानियों के अनुसार वेंटीलेटरस और इंसैसिव केयर यूनिट (ICU) की कभी ज़रूरत ही नहीं थी। इस के लिए इटली में प्रोटोकॉल की तबदीली शुरू हुई, इटली में एक बुलाया गलोबल कोविड-19 महामारी एक वाईरस के तौर पर दुबारा प्राकाशित की गई है।
WHO & CHINA पहले से ही जानते थे मगर इसकी रीपोर्ट नहीं करते थे। विश्व अब जानता है और जान गया है कि हमें अपने आप स्थापित बढ़े लोगों द्वारा तसीहे दिये गए हैं, तशद्दुद किए गए हैं और मार कुटाई की गई है।
कृपया इस जानकारी को अपने सारे परिवार, पड़ोसियों, जानकारों, मित्रों, सहकर्मीओं को दो ताकि वो कोविड-19 के डर से बाहर निकल सकें जो के एक वाईरस नहीं है जैसा कि उन्होंने हमें विश्वास दिलाया है, बल्कि एक बैक्टीरिया है जिसको असल में 5G इलैक्ट्रोमैगनेटिक रेडीयेशन
(5G Electromagnetic Radiation) द्वारा बढ़ाया गया, फ़ैलाया गया, जो इंफलामेशन और हाईपौकसीया भी पैदा करता है। जो लोग भी इस की जद में आ जायें उन्हें ये करना चाहिए कि वे Asprin-100mg और ऐप्रोनिकस यां पैरासिटामोल ले सकते हैं। कयों......??? .... कयोंकि यह सामने आया है कि कोविड-19 कया कुछ करता है: वह ख़ून को जमा देता है जिससे व्यक्ति को थ्रोमोबसिस पैदा होता है और जिसके कारण ख़ून नसों में जम जाता है और इस कारण दिमाग, दिल व फेफड़ों को आकसीजन नहीं मिल पाती इस कारण से ही व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत होती है और सांस ना आने के कारण व्यक्ति की तेज़ी से मौत हो जाती है।
इटली के डॉक्टरस ने WHO के प्रोटोकॉल को नहीं माना और कुछ लाशों पर आटोप्सीज़ (postmortem) किया जिनकी मौत कोविड-19 की वजह से हुई थी। डॉक्टरस ने उन लाशों को काट कर देखा, उन की बाजुओं को, टांगों को, शरीर के दूसरे हिस्सों को भी खोल कर तस्सल्ली से देखने व परखने के बाद महसूस किया कि ख़ून की नसें व नाड़ियां फैली हुई हैं और नसें थ्रोम्बी से भरी हुई थी, जो ख़ून को आमतौर पर ग़र्दिश से रोकती है और आकसीजन के शरीर में प्रवाह को भी--मुख्य तौर पर दिमाग, दिल व फेफड़ों में'जिस कारण रोगी की मौत हो जाती है।इस नुकते को जान लेने के बाद इटली के सेहत-मंत्रालय ने तुरंत कोविड-19 के इलाज़ प्रोटोकॉल को बदल दिया और अपने पोज़िटिव मरीज़ो को एस्पिरिन100mg और एंप्रोमैकस देना शुरू कर दिया। *** नतीज़े.....??? मरीज़ ठीक होने लगे और उनकी सेहत में सुधार नज़र आने लगा। इटली सेहत मंत्रालय ने एक ही दिन में14000 से भी ज्यादा मरीज़ों की छुट्टी कर दी और उन्हें अपने आप घरों को भेज दिया।
स्रोत: इटली सेहत मंत्रालय
इटालीआरेवेलाकुरारडेल कोविड-19.
Alert:- यह हमारा फ़र्ज़ बनता है कि पूरी लोकाई की इस महामारी से जान बचाने के लिए इस जानकारी को दुनिया के हर इंसान तक पहुचाया जाये और बताया जाये कि उन्होंने (कुछ ख़ास लोगों ने) सिर्फ इटली ही नहीं बल्कि पूरे संसार के साथ झूठ बोला है और इस so-called covid-19 नाम की महामारी के रूप में हम सब पर थोपा है। दुनिया के लगभग सारे देशों के रास्ट्रीय अध्यक्ष व सर्बराह सिर्फ ये कहने के लिए कभी कभी टी वी कैमरों के सामने आते रहे हैं और आ रहे हैं केवल यह बताने के लिए कि यह कोविड-19 बहुत बड़ी महामारी है, बिना किसी ठोस सबूत या विज्ञानिक आधार के। ये सब अपने अपने तरीक़े से या WHO के आंकड़े बता रहे थे और हैं, मगर अपने अपने नागरिकों को बचाने के लिए कोई जानकारी नहीं दे रहे हैं बल्कि महामारी का ख़ौफ़ दिखा कर ज़बरदस्ती लाकडाउन व कई और तरीक़े इसतेमाल कर रहे हैं। हो सकता है कि इनको ये सब करने के लिए कुछ ख़ास व कुलीन लोगों द्वारा धमकी दी जा रही हो.......??? हम नहीं जानते......???
मगर इटली ने WHO का यह नियम, यह भ्रमजाल तोड़ दिया है, कयोंकि वो पहले से ही बहुत हावी हो चुके हैं मगर अब नहीं सहन करेंगे। पूरी दुनिया में रोज़ाना होनेवाली मौतों व गिरती अर्थव्यवस्था और गंभीर आपाधापी के चलते, निश्चित तौर पर WHO के ख़िलाफ़ दुनिया भर में "क्राइम अंगेस्ट हयूमैनिटिज़" के लिए मुक़दमें किये जाने चाहीये,और दुनिया के बहुत सारे देशों की Economy Collapse के लिये भी। अब समझ में आया है कि यहां आटोमेटिक तौर पर इस बी���ारी का अचानक आना व उसके उसूल तुरंत से तुरंत बनाना व हम पर थोपना और उन्हें ज़बरदस्ती मनवाने के आदेश कयों हैं। सच को बताना व फ़ैलाना हमारे अपने हाथ में है और बहुत सी जाने बचाने की उम्मीद भी है।
So-called महामारी इस लिये हो रही है या फ़ैलाई जा रही है कि (कुछ ख़ास कुलीन लोग) विश्व की आबादी को 60% घटाने के सपने देखते आ रहे हैं और देख रहे हैं। दरअसल इन लोगों की सोच जंगली कानून जैसी है कि अगर ख़ुद जीना है तो दूसरे को मारना या खाना पड़ेगा।
विश्व की आबादी को घटाने के बिलगेटस नैनो-टैक टीके से विश्व-व्यापक हर व्यक्ति को ज़बरदस्ती टीके लगवाना चाहते है, जिससे फंड प्राप्त होता है। बिलगेटस डैपूलेशन फांउडेशन द्वारा..... विश्व व्याप्त सैकंड़े देशों में WHO, CDC, NCDC, PTF को बिल एंड मेलिंडा गेट्स डैपूलेशन द्वारा फंड दिये जाते हैं।
इटली के सेहत मंत्रालय के हेल्थ अपडेट्स और उन के विज्ञानीओं की ख़ोज के बाद इस बारे में सच्ची जानकारी दी गई है कि so-called करोना वाईरस AKA cod-19 सिर्फ न्यूज़ पेपरस , टी.वी. चैनल्स, सोशल मीडिया, सोशल साइट्स और पेजेज पर ही मौजूद है। उन उन देशों के रास्ट्रीय अध्यक्ष व सर्बराहों और ख़ुद सथापित नेताओं को जिन्होंने कोविड-19 कहलाने वाले इस शराबी झूठ पर हस्ताक्षर किए हैं उन्हें इंसानियत के विरुद्ध अपराध करने का जो घोर पाप किया है..... उन्हें दुनिया के सामने नंगा करें, अभी भी कुछ विश्व अमन के हितैषी, इंसानियत के, मानवता के मित्र लोग व नेता अपने ओहदे पद की ग़रिमा को बनाये रखने में क़ामयाब होगें व इन अपराधियों को सज़ा दिलवा कर दुनिया के सामने एक मिसाल, एक नज़ीर पेश करेंगे।
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मित्रों, यह सम्भव है कि आपने पहले ही इस संदेश को पढा हो। परन्तु इसे ध्यान से पुनः पढें और सम्पूर्ण परिवार, बच्चों और मित्रों में गम्भीरता से चर्चा करें। भविष्य में किसी भी इस तरह की साजिश से बचने के लिए, अत्यंत सतर्क रहने की जरूरत है। ऐसे सभी निर्माताओं और कलाकारों का पूर्ण बहिष्कार करना अति आवश्यक है।
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#Serious_Post
*हिंदुओं के खिलाफ ज़हर फैला रहा है बॉलीवुड,....IIM के प्रोफेसर धीरज शर्मा की अहमदाबाद से आयी सनसनीखेज रिपोर्ट*...
*अक्सर कहा जाता है कि बॉलीवुड की फिल्में हिंदू और सिख धर्म के खिलाफ लोगों के दिमाग में धीमा ज़हर भर रही हैं। इस शिकायत की सच्चाई जानने के लिए अहमदाबाद में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आईआईएम) के एक प्रोफेसर ने एक अध्ययन किया है*
*जिसके नतीजे चौंकाने वाले हैं। आईआईएम के प्रोफेसर धीरज शर्मा ने बीते छह दशक की 50 बड़ी फिल्मों की कहानी को अपने अध्ययन में शामिल किया और पाया कि बॉलीवुड एक सोची-समझी रणनीति के तहत बीते करीब 50 साल से लोगों के दिमाग में यह बात भर रहा है कि हिंदू और सिख दकियानूसी होते हैं।*
*उनकी धार्मिक परंपराएं बेतुकी होती हैं। मुसलमान हमेशा नेक और उसूलों पर चलने वाले होते हैं। जबकि ईसाई नाम वाली लड़कियां बदचलन होती हैं। हिंदुओं में कथित ऊंची जातियां ही नहीं, पिछड़ी जातियों के लिए भी रवैया नकारात्मक ही है। यह पहली बार है जब बॉलीवुड फिल्मों की कहानियों और उनके असर पर इतने बड़े पैमाने पर अध्ययन किया गया है।*
*ब्राह्मण नेता भ्रष्ट , वैश्य बेइमान कारोबारी!*
*आईआईएम के इस अध्ययन के अनुसार फिल्मों में 58 फीसदी भ्रष्ट नेताओं को ब्राह्मण दिखाया गया है। 62 फीसदी फिल्मों में बेइमान कारोबारी को वैश्य सरनेम वाला दिखाया गया है। फिल्मों में 74 फीसदी सिख किरदार मज़ाक का पात्र बनाया गया। जब किसी महिला को बदचलन दिखाने की बात आती है तो 78 फीसदी बार उनके नाम ईसाई वाले होते हैं। 84 प्रतिशत फिल्मों में मुस्लिम किरदारों को मजहब में पक्का यकीन रखने वाला, बेहद ईमानदार दिखाया गया है। यहां तक कि अगर कोई मुसलमान खलनायक हो तो वो भी उसूलों का पक्का होता है।*
*हैरानी इस बात की है कि यह लंबे समय से चल रहा हैऔरअलग-अलग समय की फिल्मों में इस मैसेज को बड़ी सफाई से फिल्मी कहानियों के साथ बुना जाता है। अध्ययन के तहत रैंडम तरीके से 1960 से हर दशक की 50-50 फिल्में चुनी गईं। इनमें A से लेकर Z तक हर शब्द की 2 से 3 फिल्में चुनी गईं। ताकि फिल्मों के चुनाव में किसी तरह पूर्वाग्रह न रहे। अध्ययन के नतीजों से साफ झलकता है कि फिल्म इंडस्ट्री किसी एजेंडे पर काम कर रही है।*
*बजंरगी_भाईजान देखने के बाद अध्ययन*
*प्रोफेसर धीरज शर्मा कहते हैं कि “मैं बहुत कम फिल्में देखता हूं। लेकिन कुछ दिन पहले किसी के साथ मैंने बजरंगी भाईजान फिल्म देखी। मैं हैरान था कि भारत में बनी इस फिल्म में ज्यादातर भारतीयों को तंग सोच वाला, दकियानूसी और भेदभाव करने वाला दिखाया गया है। जबकि आम तौर पर ज्यादातर पाकिस्तानी खुले दिमाग के और इंसान के बीच में फर्क नहीं करने वाले दिखाए गए हैं।” यही देखकर उन्होंने एक तथ्यात्मक अध्ययन करने का फैसला किया।*
*वो यह जानना चाहते थे कि फिल्मों के जरिए लोगों के दिमाग में गलत सोच भरने के जो आरोप लगते हैं क्या वाकई वो सही हैं? यह अध्ययन काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि फिल्में नौजवान लोगों के दिमाग, व्यवहार, भावनाओं और उनके सोचने के तरीके को प्रभावित करती हैं। यह देखा गया है कि फिल्मों की कहानी और चरित्रों के बर्ताव की लोग निजी जीवन में नकल करने की कोशिश करते हैं।*
*पाकिस्तान_और_इस्लाम का महिमामंडन*......
*प्रोफेसर धीरज और उनकी टीम ने 20 ऐसी फिल्मों को भी अध्ययन में शामिल किया जो पिछले कुछ साल में पाकिस्तान में भी रिलीज की गईं। उनके अनुसार ‘इनमें से 18 में पाकिस्तानी लोगों को खुले दिल और दिमाग वाला, बहुत सलीके से बात करने वाला और हिम्मतवाला दिखाया गया है। सिर्फ पाकिस्तान की सरकार को इसमें कट्टरपंथी और तंग नजरिए वाला दिखाया जाता है।*
*ऐसे में सवाल आता है कि हर फिल्म भारतीय लोगों को पाकिस्तानियों के मुकाबले कम ओपन-माइंडेड और कट्टरपंथी सोच वाला क्यों दिखा रही है? इतना ही नहीं इन फिल्मों में भारत की सरकार को भी बुरा दिखाया जाता है।*
*पाकिस्तान में रिलीज़ हुई ज्यादातर फिल्मों में भारतीय अधिकारी अड़ंगेबाजी करने वाले और जनता की भावनाओं को नहीं समझने वाले दिखाए जाते हैं।’ फिल्मों के जरिए इमेज बनाने-बिगाड़ने का ये खेल 1970 के दशक के बाद से तेजी से बढ़ा है। जबकि पिछले एक दशक में यह काम सबसे ज्यादा किया गया है। 1970 के दशक के बाद ही फिल्मों में सलीम-जावेद जैसे लेखकों का असर बढ़ा, जबकि मौजूदा दशक में सलमान, आमिर और शाहरुख जैसे खान हीरो सक्रिय रूप से अपनी फिल्मों में पाकिस्तान और इस्लाम के लिए सहानुभूति पैदा करने वाली बातें डलवा रहे हैं।*
*बच्चों के दिमाग पर बहुत बुरा असर अध्ययन के तहत फिल्मों के असर को जानने के लिए इन्हें 150 स्कूली बच्चों के एक सैंपल को दिखाया गया।* *प्रोफेसर धीरज शर्मा के अनुसार 94 प्रतिशत बच्चों ने इन फिल्मों को सच्ची घटना के तौर पर स्वीकार किया।’ यह माना जा सकता है* *कि फिल्म वाले पाकिस्तान, अरब देशों, यूरोप और अमेरिका में फैले भारतीय और पाकिस्तानी समुदाय को खुश करने की नीयत से ऐसी फिल्में बना रहे हों। लेकिन यह कहां तक उचित है कि इसके लिए हिंदुओं, सिखों और ईसाइयों को गलत रौशनी में दिखाया जाए?*
*वैसे भी इस्लाम को हिंदी फिल्मों में जिस सकारात्मक रूप से दिखाया जाता है, वास्तविक दुनिया में उनकी इमेज इससे बिल्कुल अलग है। आतंकवाद की ज्यादातर घटनाओं में मुसलमान शामिल होते हैं, लेकिन फिल्मों में ज्यादातर आतंकवादी के तौर पर हिंदुओं को दिखाया जाता है। जैसे कि शाहरुख खान की ‘मैं हूं ना’ में सुनील शेट्टी एक आतंकी संगठन का मुखिया बना है जो नाम से हिंदू है।*
*सलीम जावेद सबसे बड़े जिहादी सलीम जावेद* *की लिखी फिल्मों में हिंदू धर्म को अपमानित करने की कोशिश सबसे ज्यादा दिखाई देती है।* *इसमें अक्सर अपराधियों का महिमामंडन किया जाता है। पंडित को धूर्त, ठाकुर को जालिम, बनिए को सूदखोर, सरदार को मूर्ख कॉमेडियन आदि ही दिखाया जाता है। ज्यादातर हिंदू किरदारों की जातीय पहचान पर अच्छा खासा जोर दिया जाता था।* *इनमें अक्सर बहुत चालाकी से हिंदू परंपराओं को दकियानूसी बताया जाता था। इस जोड़ी की लिखी तकरीबन हर फिल्म में एक मुसलमान किरदार जरूर होता था जो बेहद नेकदिल इंसान और अल्ला का बंदा होता था। इसी तरह ईसाई धर्म के लोग भी ज्यादातर अच्छे लोग होते थे।*
*सलीम-जावेद की फिल्मों में मंदिर और भगवान का मज़ाक आम बात थी। मंदिर का पुजारी ज्यादातर लालची, ठग और बलात्कारी किस्म का ही होता था। फिल्म “शोले” में धर्मेंद्र भगवान शिव की आड़ लेकर हेमा मालिनी को अपने प्रेमजाल में फँसाना चाहता है, जो यह साबित करता है कि मंदिर में लोग लड़कियाँ छेड़ने जाते हैं। इसी फिल्म में एके हंगल इतना पक्का नमाजी है कि बेटे की लाश को छोड़कर, यह कहकर नमाज पढ़ने चल देता है कि उसने और बेटे क्यों नहीं दिए कुर्बान होने के लिए।*
*दीवार फिल्म का अमिताभ बच्चन नास्तिक है और वो भगवान का प्रसाद तक नहीं खाना चाहता है, लेकिन 786 लिखे हुए बिल्ले को हमेशा अपनी जेब में रखता है और वो बिल्ला ही बार-बार अमिताभ बच्चन की जान बचाता है। फिल्म “जंजीर” में भी अमिताभ बच्चन नास्तिक हैं और जया, भगवान से नाराज होकर गाना गाती है, लेकिन शेरखान एक सच्चा मुसलमान है। फिल्म ‘शान” में अमिताभ बच्चन और शशि कपूर साधु के वेश में जनता को ठगते हैं, लेकिन इसी फिल्म में “अब्दुल”* *ऐसा सच्चा इंसान है जो सच्चाई के लिए जान दे देता है। फिल्म “क्रान्ति”* *में माता का भजन करने वाला राजा (प्रदीप कुमार) गद्दार है और करीम खान (शत्रुघ्न सिन्हा) एक महान देशभक्त, जो देश के लिए अपनी जान दे देता है।*
*अमर-अकबर-एंथोनी में तीनों बच्चों का बाप किशनलाल एक खूनी स्मगलर है लेकिन उनके बच्चों (अकबर और एंथोनी) को पालने वाले मुस्लिम और ईसाई बेहद नेकदिल इंसान है। कुल मिलाकर आपको सलीम-जावेद की फिल्मों में हिंदू नास्तिक मिलेगा या फिर धर्म का उपहास करने वाला। जबकि मुसलमान शेर खान पठान, डीएसपी डिसूजा, अब्दुल, पादरी, माइकल, डेविड जैसे आदर्श चरित्र देखने को मिलेंगे।*
*हो सकता है आपने पहले कभी इस पर ध्यान न दिया हो, लेकिन अबकी बार ज़रा गौर से देखिएगा केवल "सलीम-जावेद" की ही नहीं, बल्कि "कादर खान, कैफ़ी आजमी, महेश भट्ट" जैसे ढेरों कलाकारों की कहानियों का भी यही हाल है। "सलीम-जावेद"* *के दौर में फिल्म इंडस्ट्री पर दाऊद इब्राहिम का नियंत्रण काफी मजबूत हो चुका था। हम आपको बता दें कि सलीम खान सलमान खान के पिता हैं, जबकि जावेद अख्तर आजकल सबसे बड़े सेकुलर का चोला ओढ़े हुए हैं।*
*अब तीनों खान ने संभाली जिम्मेदारी,*
*मौजूदा समय में तीनों खान एक्टर फिल्मों में हिंदू किरदार करते हुए हिंदुओं के खिलाफ माहौल बनाने में जुटे हैं। इनमें सबसे खतरनाक कोई है तो वो है आमिर खान*। *आमिर खान की पिछली कई* *फिल्मों को गौर से देखें तो आप पाएंगे कि सभी का मैसेज यही है कि भगवान की पूजा करने वाले धार्मिक लोग हास्यास्पद होते हैं। इन सभी में एक मुस्लिम कैरेक्टर जरूर होता है जो बहुत ही भला इंसान होता है। “पीके” में उन्होंने सभी हिंदू देवी-देवताओं को रॉन्ग नंबर बता दिया। लेकिन अल्लाह पर वो चुप रहे।*
*पहलवानों की जिंदगी पर बनी “दंगल” में हनुमान की तस्वीर तक नहीं मिलेगी। जबकि इसमें पहलवानों को मांस खाने और एक कसाई का दिया प्रसाद खाने पर ही जीतते दिखाया गया है। सलमान खान भी इसी मिशन पर हैं, उन्होंने “बजरंगी भाईजान” में हिंदुओं को दकियानूसी और पाकिस्तानियों को बड़े दिलवाला बताया। शाहरुख खान तो “माई नेम इज़ खान” जैसी फिल्मों से काफी समय से इस्लामी जिहाद का काम जारी रखे हुए हैं।*
*संस्कृति को नुकसान की कोशिश*
*हॉलीवुड की फिल्में पूरी दुनिया में अमेरिकी संस्कृति*, *हावभाव और* *लाइफस्टाइल को पहुंचा रही हैं। जबकि बॉलीवुड की फिल्में भारतीय संस्कृति से कोसों दूर हैं। इनमें संस्कृति की कुछ बातों जैसे कि त्यौहार वगैरह को लिया तो जाता है लेकिन उनका इस्तेमाल भी गानों में किया जाता है। लगान जैसी कुछ फिल्मों में भजन वगैरह भी डाले जाते हैं लेकिन उनके साथ ही धर्म का एक ऐसा मैसेज भी जोड़ दिया जाता है कि कुल मिलाकर नतीजा नकारात्मक ही होता है।*
*फिल्मों के बहाने हिंदू धर्म और भारतीय परंपराओं को अपमानित करने का खेल बहुत पुराना है। सिनेमा के शुरुआती दौर में ये होता था लेकिन खुलकर नहीं। लेकिन 70 के दशक के दौरान ज्यादातर फिल्में यही बताने के लिए बनाई जाने लगीं कि मुसलमान रहमदिल और नेक इंसान होते हैं, जबकि हिंदुओं के पाखंडी और कट्टरपंथी होने की गुंजाइश अधिक होती है।*
*आईआईएम के प्रोफेसर धीरज शर्मा की इस स्टडी में होने वाले खुलासों ने सारे देश को झकझोर कर रख दिया है और साथ ही बीजेपी के कद्दावर नेता डॉक्टर सुब्रमणियम स्वामी के उस दावे को भी सही साबित कर दिया, जिसमे उन्होंने कहा है कि बॉलीवुड में दाऊद का कालाधन लगता है और दाऊद के इशारों पर ही बॉलीवुड का इस्लामीकरण किया जा रहा है।*
*स्वामी समेत कई हिन्दू संगठन भी इस बात का दावा कर चुके हैं कि एक साजिश के तहत मोटी कमाई का जरिया बन चुके बॉलीवुड में "हिन्दू" कलाकारों को "किनारे" किया जा रहा है और मुस्लिम हीरो, गायक आदि को ज्यादा से ज्यादा काम दिया जा रहा है.पाकिस्तानी कलाकारों को काम देने के लिए भी दाऊद गैंग बॉलीवुड पर दबाव बनाता है।* 😓😓
साभार..
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