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🔱 क्या है तीर्थ?
किसी साधक ऋषि ने किसी स्थान या जलाशय पर बैठकर साधना की या अपनी आध्यात्मिक शक्ति का प्रदर्शन किया। वह अपनी भक्ति कमाई करके साथ ले गया तथा अपने ईष्ट लोक को प्राप्त हुआ। उस साधना स्थल का बाद में तीर्थ नाम पड़ा। जहाँ जाने से लोगों को लाभ नहीं होगा बल्कि शास्त्र में वर्णित भक्ति करने से ही मानव को लाभ होगा।
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🔱 सब तीर्थों में श्रेष्ठ तीर्थ चित्तशुद्धि तीर्थ!
श्रीमद्देवी भागवत के छठे स्कन्ध, अध्याय 10 पृष्ठ 417 के अनुसार ‘‘तीर्थों के जल में स्नान करने से शरीर का मैल तो धुल जाता है, परंतु मन का मैल नहीं धुलता। उसके लिए तत्त्वदर्शी संत का सत्संग सुनना चाहिए। सत्संग चित्तशुद्धि करता है। इसे चित्तशुद्धि तीर्थ कहा जाता है। इसी का समर्थन गीता अध्याय 4 श्लोक 32 व 34 भी करता है।
अधिक जानकारी के लिए Sant Rampal Ji Maharaj App पर पढ़िए पवित्र "ज्ञान गंगा" ई-बुक

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🔱 तीर्थों के विषय में सूक्ष्मवेद में कहा गया है:
कबीर, गंगा कांठै घर करें, पीवै निर्मल नीर।
मुक्ति नहीं सत्यनाम बिन, कह सच्च कबीर।।
अर्थात् परमेश्वर कबीर जी ने बताया कि चाहे गंगा नदी के किनारे निवास करो या चाहे मोक्षदायिनी मानकर गंगा का निर्मल पानी पीते रहो, भक्ति के सत्य शास्त्र प्रमाणित नाम बिना मोक्ष संभव नहीं है।
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🔱 तीर्थ क्या है?
तीर्थ यादगारें हैं कि यहाँ पर कोई घटना घटी थी ताकि उनका प्रमाण बना रहे। लेकिन पवित्र गीता में तीर्थों पर जाना कहीं ��हीं लिखा है। इसलिए तीर्थ भ्रमण गलत है। शास्त्र विधि त्यागकर मनमाना आचरण है जो गीता अध्याय 16 श्लोक 23 के अनुसार व्यर्थ है।
अधिक जानकारी के लिए Sant Rampal Ji Maharaj App पर पढ़िए "हिन्दू साहेबान नहीं समझे गीता, वेद, पुराण" ई-बुक

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🔱 तीर्थों से नहीं होता लाभ
सूक्ष्मवेद में कहा गया है:
कबीर, तीर्थ कर-कर जग मुआ, ऊडै़ पानी न्हाय।
सत्यनाम जपा नहीं, काल घसीटें जाय।।
परमेश्वर कबीर जी बताते हैं कि भ्रमित ज्ञान के आधार से संसार के व्यक्ति तीर्थों पर जाते हैं। आजीवन यह साधना करते हैं। जब मृत्यु हो जाती है तो उनको राहत उस साधना से नहीं मिलती। काल के दूत उनको बलपूर्वक (घसीटकर) खींचकर ले जाते हैं, दंडित करते हैं।
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🔱 तत्वज्ञानहीन गुरूओं की मानें कि तीर्थ पर जाने से पुण्य लगता है। फिर पुण्य तो एक लगा और पाप लगे करोड़ों-अरबों-खरबों। क्योंकि तीर्थों में आने जाने में पैरों के नीचे अनेकों जीव मारे जाते हैं जिसका पाप भी लगता है। इस संदर्भ में सूक्ष्मवेद में कहा गया है:
कबीर, तीर्थ कर-कर जग मुआ, ऊडै़ पानी न्हाय।
सत्यनाम जपा नहीं, काल घसीटें जाय।।
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🔱 तीर्थों से लाभ संभव नहीं है। क्योंकि गीता अध्याय 16 श्लोक 23 कहा गया है कि जो व्यक्ति शास्त्र विधि को त्यागकर मनमाना आचरण करते हैं उन्हें न सुख मिलता है, न उनकी गति होती। अर्थात तीर्थ यात्रा शास्त्र में वर्णित न होने से व्यर्थ साधना है।
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🔱 तीर्थ vs चित्तशुद्धि तीर्थ
श्रीमद्देवी भागवत (देवी पुराण) के छठे स्कन्ध, अध्याय 10 पृष्ठ 417 पर लिखा है कि "यह निश्चय है कि तीर्थ देह सम्बन्धी मैल को साफ कर देते हैं, किन्तु मन के मैल को धोने की शक्ति तीर्थों में नहीं है। चित्तशुद्धि तीर्थ गंगा आदि तीर्थों से भी अधिक पवित्र होता है। यदि भाग्यवश चित्तशुद्धि तीर्थ अर्थात् तत्वदर्शी संतों का सत्संग रूपी तीर्थ प्राप्त हो जाए तो मानसिक मैल के धुल जाने में कोई संदेह नहीं।"
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🔱 सर्वश्रेष्ठ तीर्थ, तत्वदर्शी संत का सत्संग
तीर्थ जैसे अमरनाथ, केदारनाथ, वैष्णो देवी आदि तो यादगारें हैं कि यहाँ पर ऐसी घटना घटी थी ताकि उनका प्रमाण बना रहे। जबकि श्रीमद्देवी भागवत (देवी पुराण) के छठे स्कन्ध, अध्याय 10 पृष्ठ 417 पर चित्तशुद्ध तीर्थ यानि तत्वदर्शी संत के सत्संग रूपी तीर्थ को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।
तीर्थों की विस्तृत जानकारी जानने के लिए देखिए Sant Rampal Ji Maharaj YouTube Channel

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🔱 तीर्थ, वे पवित्र स्थान हैं जहाँ पर किसी महापुरूष का जन्म या निर्वाण हुआ था या किसी साधक ने साधना की थी या किसी ऋषि या देवी-देव की कथा से जुड़ी यादगारें हैं तीर्थ। जिससे लाभ नहीं होता। लेकिन सद्ग्रंथों में किस तीर्थ को श्रेष्ठ बताया गया है?
जानने के लिए पढें "हिन्दू साहेबान नहीं समझे गीता, वेद, पुराण"

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📚👉🏻 गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में कहा है कि शास्त्र विधि को त्यागकर जो साधक मनमाना आचरण करते हैं उनको ना तो कोई सुख होता है, ना कोई सिद्धि प्राप्त होती है तथा ना ही उनकी गति अर्थात मोक्ष होता है।
अधिक जानने के लिए हिन्दू साहेबान! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण पुस्तक को Sant Rampal Ji Maharaj App से डाउनलोड करके पढ़ें।
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