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#शराब_करती_है_पूरा_जीवन_खराब
अफीम से शरीर कमजोर हो जाता है। अपनी कार्यशैली छोड़ देता है। अफीम से ही चार्ज होकर चलने लगता है। इसलिए इसका सेवन करना तो दूर सोचना भी नहीं चाहिए।
जगतगुरु संत रामपाल जी महाराज से निःशुल्क नाम दीक्षा प्राप्त करें और नश�� से हमेशा के लिए छुटकारा पाएं।
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#शराब_करती_है_पूरा_जीवन_खराब
हुक्का पीने वालों को देखा है, प्रतिदिन हुक्के की नै में लोहे की गज घुमाते हैं जिनमें से धुएं का जमा मैल निकलता हैं। वह नली रुक जाती है।
मानव जीवन परमात्मा प्राप्ति के लिए ही मिला है। परमात्मा को प्राप्त करने वाला मार्ग को तम्बाकू का धुआं बंद कर देता है।
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#शराब_करती_है_पूरा_जीवन_खराब
नाम शशि प्रभा, चंडीगढ़
लाभ: मेरे पति पहले तम्बाकू खाते व शराब पीते थे। घर में शराब की वजह से बहुत क्लेश होता था।
जब से संत रामपाल जी महाराज जी से नाम लिया तब से घर स्वर्ग बन गया। सब नशा बंद हो गया, अब घर में सुख शांति है।
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#Drinking_Is_A_Sin
संत रामपाल जी महाराज के शिष्य नशे को हाथ तक नहीं लगाते, जो उनकी शिक्षाओं का प्रभाव है। क्योंकि संत रामपाल जी बताते हैं:
गरीब, भांग तम्बाखू पीव हीं, सुरा पान से हेत।
गोश्त मट्टी खाय कर, जंगली बनें प्रेत।।
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#Drinking_Is_A_Sin
कबीर, भांग तमाखू छोतरा, तम्बाखू और शराब।
कबीर कौन करै बंदगी, ये तो घनें खराब।।
संत रामपाल जी महाराज के सत्संगों में ज्ञान और आत्म-जागृति की शक्ति है, जो लोगों को बुरे कर्मों से बचाती है।
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#मनुष्य_जीवन_का_उद्देश्य
अनमोल व निःशुल्क पुस्तक 'जीने की राह' तनाव से मुक्ति तो दिलाएगी ही साथ में जीवन का उद्देश्य भी समझ आएगा।
संत रामपाल जी महाराज
अधिक जानकारी के लिए पवित्र पुस्तक "ज्ञान गंगा" हमारी वेबसाइट jagatgururampalji.org से फ्री में डाउनलोड करें।
#SantRampalJiMaharaj
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#मनुष्य_जीवन_का_उद्देश्य
संत रामपाल जी महाराज के अनुसार
जीवन का अंतिम उद्देश्य केवल और केवल परमात्मा की प्राप्ति है। सतगुरु के मार्गदर्शन में रहते हुए, सच्ची भक्ति और साधना के माध्यम से ही आत्मा को मोक्ष प्राप्त हो सकता है।
#SantRampalJiMaharaj
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#मनुष्य_जीवन_का_उद्देश्य
संत रामपाल जी महाराज के अनुसार
जीवन का अंतिम उद्देश्य केवल और केवल परमात्मा की प्राप्ति है। सतगुरु के मार्गदर्शन में रहते हुए, सच्ची भक्ति और साधना के माध्यम से ही आत्मा को मोक्ष प्राप्त हो सकता है।
#SantRampalJiMaharaj
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जो सत्य भक्ति शास्त्र अनुकूल नहीं करते, वे साधु वेश बनाकर ऐसे माँगते फिरते हैं जैसे कुत्ता टूक-रोटी के लिए सत्तर घरों में जाता है।
जैसे अन्य जाति वाले नट- पेरणे, कांजर व सांशी लोग रोटी के लिए भटकते थे। यदि साधु भी ऐसे ही करता है तो उसकी साधना में त्रुटि है।
#सत_भक्ति_संदेश
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ऋग्वेद मंडल 10 सूक्त 161 मंत्र 2
यदि रोगी की जीवन शक्ति समाप्त हो रही है और उसका रोग सीमा को पार कर गया है तब भी परमात्मा उसे इस कष्टप्रद रोग से मुक्तकर शत (100) वर्ष का जीवन दे सकता है । #सत_भक्ति_संदेश
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उस परमात्मा को प्राप्त करने के लिए अनन्त मुनिजन मनमाने नामों की रटना लगा रहे है (जाप कर रहे है), परंतु अविगत नामों (दिव्य मंत्रों) को तथा उनकी महिमा को बिरला संत ही जानता है।
#सत_भक्ति_संदेश
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उस परमात्मा के आदेश से पाँचों तत्त्व (आकाश, वायु, अग्नि, जल तथा पृथ्वी) कार्य करते हैं। वे तो परमेश्वर कबीर जी की खिदमतदार यानि सेवा करने वाले (सेवक) दास हैं। #सत_भक्ति_संदेश
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परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि जो साधक भूलवश तीनों देवताओं रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु, तमगुण शिव की भक्ति करते हैं, उनकी कभी मुक्ति नहीं हो सकती।
यही प्रमाण श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तथा 20 से 23 में भी है।
#सत_भक्ति_संदेश
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कबीर प्रभु ने कहा है कि जब तक साधक को पूर्ण सन्त नहीं मिलता तब तक लोक वेद अर्थात् कहे सुने ज्ञान के आधार से साधना करता है।
उस आधार से कोई विष्णु जी को पूर्ण प्रभु परमात्मा कहता है, तो कोई क्षर पुरुष अर्थात ब्रह्म को पूर्ण परमात्मा कहता है परंतु तत्वज्ञान से पता चलता है कि पूर्ण परमात्मा तो कबीर जी है।
#सत_भक्ति_संदेश
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कबीर, मान अपमान सम कर जाने, तजे जगत की आश ।
चाह रहित संस्य रहित, हर्ष शोक नहीं तास ।।
भक्त को चाहे कोई अपमानित करे, उस और ध्यान न दे। उसकी बुद्धि पर रहम करे और जो सम्मान करता है, उस पर भी ध्यान न दे यानि किसी के सम्मानवश होकर अपना धर्म खराब न करे। हानि-लाभ को परमात्मा की देन मानकर संतोष करे।
#सत_भक्ति_संदेश
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गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्वज्ञान की प्राप्ति के पश्चात् परमेश्वर के उस परमपद की खोज करनी चाहिए जहाँ जाने के पश्चात् साधक कभी लौटकर फिर से संसार में नहीं आता। अर्थात उसका पूर्ण मोक्ष हो जाता है। उसी परमात्मा ने संसार रूपी वृक्ष की रचना की है, केवल उसकी भक्ति करो।
#सत_भक्ति_संदेश
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गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्वज्ञान की प्राप्ति के पश्चात् परमेश्वर के उस परमपद की खोज करनी चाहिए जहाँ जाने के पश्चात् साधक कभी लौटकर फिर से संसार में नहीं आता। अर्थात उसका पूर्ण मोक्ष हो जाता है। उसी परमात्मा ने संसार रूपी वृक्ष की रचना की है, केवल उसकी भक्ति करो।
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