ramrang-blog
ramrang-blog
Ramrang English Versons
57 posts
Ramrang Sympbonic Versions of Shri Ramacharitamanasa, Hanuman Chalisa, Durga Chalisa, Kajli etc.
Don't wanna be here? Send us removal request.
ramrang-blog · 10 years ago
Video
youtube
Bajrang Baan
 श्री बजरंग बाण का पाठ समस्त प्रकार की शत्रुता का सम्पूर्ण विनाश करता है। शत्रुता के विनाश के साथ ही शत्रु का विनाश स्वत: ही हो जाता है। अपनी मातृभूमि के शत्रु, समाज के शत्रु, परिवार और संतान के शत्रु, रोग, दुर्भाग्य आदि का विनाश करने के लिये प्रतिदिन श्रवण कीजिए। श्री बजरंग बाण। The recitation of Shri Bajrang Baan, abolishes all the enmity among living beings. The enemies of Nation, Society, family, the misfortune and epidemics get abolished by daily listening of The Bajrang Baan.
0 notes
ramrang-blog · 10 years ago
Video
youtube
Rudrashtak Ramacharitamanasa पूर्व कल्प के कलिकाल का प्रसंग उज्जैन के एक श्रेष्ठ विप्र ने अयोध्या के एक शूद्र को अपने यहाँ शरण दी। शिव नाम जप का मंत्र दिया। उसी शिष्य शूद्र ने जब अज्ञानता वश उस विप्र गुरु का अपमान कर दिया तब भगवान शिव ने उसे एक हजार जन्मों तक नीच योनियों में दुख भोगने का श्राप दे दिया। तब उन ब्राह्मण ने भगवान शिव से शूद्र के श्राप-पाप विमोचन के लिये जो प्रार्थना की वही रूद्राष्टक के रूप में श्रीरामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में 107-108 दोहा संख्या के बीच वर्णित है। यह धुन श्रीरामचरितमानस का पाठ करते हुये मुझे शिवजी की कृपा से अनायास ही प्राप्त हो गयी जिसे रूद्राष्टक का विशेष प्रसाद समझता हूँ। रूद्राष्टक सामाजिक सम��्वय का एक अत्यन्त मार्मिक उदाहरण है। सिद्ध प्रार्थना है जो जन्म-जन्म के पापों से मुक्त कर देती है।
0 notes
ramrang-blog · 10 years ago
Photo
Tumblr media
000_1303 on Flickr.
Jhanki Shri Ram Darbar, Chaube Tola, Panchmi Bharat Milap, 2005
0 notes
ramrang-blog · 10 years ago
Photo
Tumblr media
12x18_1_Copy_sn036 on Flickr.
Old Photo Coloured and edited at Ramrang Studio by Sameer
0 notes
ramrang-blog · 10 years ago
Photo
Tumblr media
Ram Chandra Kesarwani_sn056 on Flickr.
Old Photo Coloured and edited at Ramrang Studio by Sameer
0 notes
ramrang-blog · 10 years ago
Photo
Tumblr media Tumblr media Tumblr media Tumblr media Tumblr media
ramrang108's photostream on Flickr.
Collection of Exclusive Shots & Events By Ramrang Studios, Chiniahva Inara, Dankinganj, Mirzapur
0 notes
ramrang-blog · 10 years ago
Video
youtube
Akhand Ramayana 28 Masparayan 1 to 62 Doha Uttar Kand रामरंग रामराज्य प्रत्येक जीव के लिये कल्याणकारी है। पाप, दोष, रोग, अज्ञान, अंधकार, परपीड़ा और द्वेष, दुर्भाग्य आदि समस्त दुष्प्राकृतिक शक्तियों के निवारण हेतु परम विनाशक औषधि है। दैहिक दैविक भौतिक तापा। रामराज नहिं काहुहि ब्यापा।। भूमि सप्त सागर मेखला। एक भूप रघुपति कोसला।। रामराज्य की पुनस्र्थापना के उद्देश्य को पूर्ण करने के लिये श्रीरामचरितमानस के एकल अखण्ड पाठ का संकल्प भक्त रामरंग द्वारा हाथों में त्रिवेणी का जल उठाकर त्रिवेणी को साक्षी मान कर, सन् 2002 के माघ मेले में लिया गया। उस समय एक बार आसन ग्रहण करने के पश्चात आठ घंटे के समय में अखण्ड रामायण पाठ रामरंग द्वारा पूर्ण कर लिया जाता था। ब्रह्मलीन श्री देवरहा बाबा के अनन्य शिष्य एवं श्री देवरहा आश्रम प्रयाग पीठाधीश्वर स्वामी प्रपन्नाचार्यजी के संरक्षण में अनेकों संत इसके साक्षी बने और 20 फरवरी 2002 को गीताप्रेस के माघमेला स्थित शिविर में श्री राधेश्याम खेमका जी के संरक्षण में यह अखण्ड पाठ मात्र 6 घण्टे 15 मिनट में पूर्ण हो गया। जनहितकारी ऐसे ही राज्य की स्थापना के लिये जिन-जिन स्थानों पर सम्भव हो सका, भक्त रामरंग द्वारा व्यक्तिगत प्रयास से श्रीरामचरितमानस अखण्ड पाठ बारम्बार किया जा चुका है। (नाशिक कुम्भ-मेला 2004, माघ मेला प्रयाग में, नई दिल्ली में और नगर मीरजापुर में) भूमि सप्त सागर मेखला। एक भूप रघुपति कोसला।। सम्पुट रूप में इस चौपाई के साथ अखण्ड श्रीरामचरितमानस पाठ का यह क्रम निरंतर चलता आ रहा है, इस अटल विश्वास के साथ कि विश्व में सदा सदा के लिये जनहितकारी पूर्ण रामराज्य की स्थापना हो जायेगी।
0 notes
ramrang-blog · 10 years ago
Video
youtube
Akhand Ramayan 12 Masparayan 326 to 361 Doha Ramayana Bal Kand बार बार कौसिक चरन सीस नाइ कह राउ। यह सब सुख मुनिराज तव कृपा कटाच्छ पसाउ।। श्रीराम के विवाह के बाद महाराज दशरथ विश्वामित्र जी का बारम्बार नमन करते ��ुये यह उद्गार प्रगट करते हैं - हे मुनिवर आपने जो कृपा की तो राम को मुझसे माँगने आये। मेरे संदेह का निवारण आपने अपने कटाक्ष वाक्यों से कर के किया और राम को अपने साथ लाये। अब निशिचर वध, अहल्या की मुक्ति, धनुष भंग का अपार सुयश, साथ में चारो भाइयों का विवाह आदि का आनन्दमय प्रसाद आपकी अपार कृपा के फलस्वरूप ही प्राप्त हुआ है। संतों और ईश्वर की कृपा, उनके कटाक्ष दोनों ही भक्तों के लिये सुख का मार्ग बना देते हैं।
0 notes
ramrang-blog · 11 years ago
Link
प्रीति प्रनय ��िनु मद ते गुनी । नासहिं बेगि नीति असि सुनी ।। प्रियतम/प्रियतमा के बीच प्रेम तो है पर विनय नही है तो वह प्रेम/प्यार शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। किसी से भी किया हुआ प्रेम उसके प्रति विनय के अभाव में नष्ट हो जाता है। गुणी व्यक्ति में यदि उसका मद/अभिमान उत्पन्न हो जाय तो उस गुणी व्यक्ति का शीघ्र विनाश हो जाता है।
0 notes
ramrang-blog · 11 years ago
Link
संग तें जती कुमंत्र ते राजा । मान ते ग्यान पान तें लाजा ।। कुसंगति के कारण से श्रेष्ठ मार्ग पर चलने वाला योगी पथभ्रष्ट हो जाता है। मंत्रियों द्वारा दी गई सलाह/परामर्श को अपने विवेक से न समझ कर उसके सही-गलत का निर्णय किये बिना पालन करने वाला राजा शीघ्र नष्ट हो जाता है। अपने ज्ञान का अभिमान करने वाले का ज्ञान केवल उसी के पास सीमित रह कर नष्ट हो जाता है। ज्ञान बाँटने से बढ़ता है। विनम्रता से उसमें वृद्धि होती है। अभिमान ज्ञान का विनाश कर देता है। नशीली वस्तु का उपयोग करने से/शराब पीने से मनुष्य की शिष्टाचार रूपी लज्जा समाप्त हो जाती है। वह धृष्ट हो जाता है।
0 notes
ramrang-blog · 11 years ago
Link
बिद्या बिनु बिबेक उपजाएँ । श्रम फल पढ़ें किएँ अरु पाएँ ।। शूर्पणखा ने कहा हे! रावण, अध्ययन, शिक्षा, ज्ञान प्राप्त करने से यदि विवेक न उत्पन्न हो तो वह विद्या अकारथ और निरर्थक हो जाती है। परिणाम स्वरूप ऐसी विद्या को पढ़ने का फल केवल निरर्थक श्रम के रूप में प्राप्त होता है। और वह विद्या भी उस व्यक्ति के पास नहीं रह पाती है। अर्थात वह विद्या जो प्राप्त करने के बाद भी सही-गलत को जानने की क्षमता न उत्पन्न कर सके वह विद्या और उसको प्राप्त करने का श्रम दोनों ही निरर्थक हो जाते हैं।
0 notes
ramrang-blog · 11 years ago
Link
राज नीति बिनु धन बिनु धर्मा । हरिहि समर्पे बिनु सतकर्मा ।। ��ज के सन्दर्भ में एक यह अर्थ भी स्पष्ट और प्रगट है कि राजनीति बिना धन के और धर्म का सहारा लिये बिना कहीं भी नहीं चल पा रही है। विश्व में राजनीतिज्ञ लोग धन का गलत और सही रास्ते से एकत्र कर के उसका प्रयोग अपना प्रभाव जनता पर दिखलाने के लिए प्रयोग कर रहे हैं। दूसरी ओर कोई धर्म के विरोध की राजनीति कर रहा है तो कोई धर्म के पालन की राजनीति कर रहा है और कोई धर्म से तटस्थ रहने का दिखावा कर के राजनीति कर रहा है। जिसके पास धन नहीं है न तो वह व्यक्ति राजनीति कर सकता है और जो धर्म का किसी भी प्रकार से किसी धर्म का विरोध या समर्थन नही कर रहा है वह भी राजनीति करने के योग्य नहीं रह गया है।
0 notes
ramrang-blog · 11 years ago
Link
राज नीति बिनु धन बिनु धर्मा । हरिहि समर्पे बिनु सतकर्मा ।। हे! रावण, राजा का राज्य नीति के आभाव में और धनी का धन, सद्धर्म के पालन के आभाव में शीघ्र ही विनष्ट हो जाता है। यदि कोई अपने को सत्कर्म का पालन करने वाला कहता है परन्तु उन सत्कर्मों को श्रीहरि के चरणों में समर्पित नहीं करता तो वे सत्कर्म भी शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। ऐसा शूर्पणखा ने लंका की राज्यसभा में रावण के सन्मुख विलाप करते हुये कहा ।
0 notes
ramrang-blog · 11 years ago
Link
रिपु रुज पावक पाप प्रभु अहि गनिअ न छोट करि। अस कहि बिबिध बिलाप करि लागी रोदन करन।। कोई भी शत्रु जो आप से बहुत कमजोर हो, किसी भी प्रकार का रोग जिसे आप बहुत ज़रा सी बात समझते हों, कहीं भी जलती हुई आग चाहे वह चिंगारी जितनी छोटी और कम क्यों न हो, किसी भी तरह से किया हुआ पाप जो आप समझते हों कि वह कोई मायने नहीं रखता, कोई भी व्यक्ति जो आपका मालिक(रोजगार देने वाला) हो पर बच्चा ही क्यों न हो और किसी भी प्रकार का साँप चाहे कितना भी छोटा क्यों न हो। इन सभी से सदैव सावधान रहना चाहिये। कभी भी इन्हे कम करके नहीं आँकना चाहिये। क्योंकि इनमें से कोई भी, कभी भी, किसी भी प्रकार से मौका पा गये और प्रबल हो गये तो आपकी हानि और मृत्यु का कारण बन जायेंगे। बार बार अनेक प���रकार से रोते हुये, ऐसा बोल कर शूर्पणखा (सूपनखा) रावण की भरी सभा में जोर-जोर से रोने लगी।
0 notes
ramrang-blog · 11 years ago
Link
अजर अमर गुननिधि सुत होहू । करहुँ बहुत रघुनायक छोहू ।। ‘पुत्र, तुम अजर अर्थात जरावस्था (बुंढ़ापा) से मुक्त रहकर सदैव युवा रहोगे, मृत्यु के कालपाश भी तुम्हे बाँध न सकेंगे तुम अमर रहोगे, साथ ही साथ रघुकुल के श्रेष्ठ नायक श्रीराम की तुमपर अपार कृपा बनी रहेगी।’ माता सीता ने श्री हनुमानजी को यह आशीर्वाद लंका की अशाोक वाटिका में तब प्रदान किया जब हनुमान जी ने श्रीरामचन्द्र जी का संदेश, मुद्रिका और विश्वास का बल माता के सामने प्रस्तुत किया। पुन: वानरों की वीरता का प्रमाण अपने शरीर के पर्वताकार रूप को माता के सामने प्रगट कर के दिखाया। यह चौपाई अत्यन्त ही प्रभावकारी ��ै और अपने पुत्रों को श्रेष्ठ मार्ग पर सदैव चलने देने, स्वस्थ्य जीवन, सम्पूर्ण जीवनकाल जीने और सर्वगुणसम्पन्न बने रहने के लिए माता-पिता द्वारा दिया जाने वाला आशीर्वाद है अत: इसका सम्पुट लगा कर श्रीरामचरितमानस का पाठ करना संतति को शक्ति, बुद्धि और सामथ्‍​र्य से पूर्ण करता है।
0 notes
ramrang-blog · 11 years ago
Link
सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस । राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ।। राजा का मंत्री, बीमार का वैद्य, और छात्र का शिक्षक या मनुष्य का गुरु, इन तीन प्रकार के लोगों से यदि किसी प्रकार का भय दिखलाकर के अपने अनुकूल निर्णय प्राप्त किया जाता है। अर्थात किसी विषय पर यदि कोई राजा अपने मंत्री से अपने अनुकूल सलाह चाहता है या कोई मंत्री किसी प्रकार से भयभीत होकर ऐसी ही सलाह देता है जो राजा को अच्छी लगती हो जब कि मंत्री यह जानता हो कि यह समाज के ल���ये हानिकर है तो उस राज्य और राजा का विनाश हो जाता है। इसी प्रकार से यदि कोइ वैद्य किसी भय के वश होकर ऐसा पथ्य या औषधि या रोग का प्रकार अपने मरीज को देता और बतलाता है जो मरीज को अच्छी लगती है पर उचित नहीं है तो रोगी के शरीर का विनाश हो जाता है। और यदि आपका मार्गदर्शक, गुरु या शिक्षक आपसे भयभीत होकर आपको कोई अच्छी लगने वाला ही मार्ग बतलाता है तो यह आपके धर्म अर्थात सन्मार्ग पर चलने के लक्ष्य को प्राप्त करने के प्रयास का विनाश कर देता है। भय के द्वारा कोई भी अपने अनुकूल परामर्श प्राप्त करना या देना दोनों ही समाज को विनाश के गर्त में ढकेल देते है। ऐसा जानकर अपने सहयोगी, मार्गदर्शक और चिकित्सक आदि के दिये गये परामर्श को पूरी तरह से जाँच-पड़ताल के बाद ही पालन करना चाहिये।
0 notes
ramrang-blog · 11 years ago
Link
सस्त्री मर्मी प्रभु सठ धनी । बैद बंदि कबि भानस गुनी ।। उभय भाँति देखा निज मरना । तब ताकेसि रघुनायक सरना ।। जिसके पास शस्त्र हो, जो ज्ञान के मर्म को समझता हो, जो मक्कार और दुष्ट हो, जिसके पास धन और उसका घमण्ड हो, जो वैद्य हो, जो आपका निजी नौकर हो, जो काव्य की रचना करता हो, रसोइया हो और जो गुणों से सम्पन्न हो। इन सभी प्रकार के व्यक्तियों से आमने-सामने या सन्मुख उनके मुँह पर विरोध जताना घातक होता है। ऐसा जानते-समझते हुये मारीच ने रावण के सन्मुख अपना विरोध नहीं जताया क्योंकि उपरोक्त प्रकार के व्यक्ति अपने अभिमान और क्रोध के वश में होकर बिना सोचे समझे आघात कर देते हैं और नाहक में ही आपके जान-माल का नुक्सान हो जाता है। इस प्रकार मारीच ने देखा कि रावण का विरोध करने पर रावण उसका वध कर देगा। जबकि राम का विरोध करने पर भी मृत्यु तो निश्चित ही है। ऐसे में राम के हाथों मृत्यु होने से मोक्ष की प्राप्ति हो जायेगी अत: परम गति प्राप्त हो जाने की आकांक्षा से ही उसने श्रीराम की शरण में जाकर ही मरने का निश्चय किया। मनुष्य को अपना अंतकाल निकट समझ आ जाने पर प्रभु की शरण में जीना-मरना है यह निश्चय कर प्रभु के चरणों में ही स्वयं को समर्पित कर देना चाहिये।
0 notes