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দ্বাপরযুগে পরমাত্মা কবীর জি করুণাময় নামে প্রকট হন। ঐ সময়ে রাজা চন্দ্রবিজয় এবং তাঁর স্ত্রী রানী ইন্দ্রমতীকে পূর্ণ পরমাত্মা কবীর সাহেব সাতলোক থেকে এসে দর্শন দেন।
द्वापरयुग में परमेश्वर कबीर जी करुणामय नाम से प्रकट हुए थे। उस समय राजा चंद्रविजय और उनकी पत्नी रानी इन्द्रमती को पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी सतलोक से आकर मिले थे।
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त्रेतायुग में नल तथा नील दोनों ही कबीर परमेश्वर के शिष्य थे। कबीर परमेश्वर ने नल नील को आशीर्वाद दिया था कि उनके हाथों से कोई भी वस्तु चाहें वह किसी भी धातू से बनी हो,जल में डूबेगी नहीं। परंतु अभिमान होने के कारण नल नील के आशीर्वाद को कबीर परमेश्वर ने वापस ले लिया था। तब कबीर परमेश्वर ने एक पहाड़ी के चारों और रेखा खींचकर उसके पत्थरों को हल्का कर दिया था। वही पत्थर समुद्र पर तैरे थे।

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দ্বাপরযুগে চন্দ্রবিজয় নামে এক রাজা ছিলেন। তার স্ত্রী ইন্দ্রমতি ধার্মি

द्वापरयुग में एक राजा चन्द्रविजय था। उसकी पत्नी इन्द्रमति धार्मिक प्रवृत्ति की थी।
द्वापर युग में परमेश्वर कबीर करूणामय नाम से आये थे।करूणामय साहेब ने रानी से कहा कि जो साधना तेरे गुरुदेव ने दी है तेरे को जन्म-मृत्यु के कष्ट से नहीं बचा सकती। आज से तीसरे दिन तेरी मृत्यु हो जाएगी। न तेरा गुरु, न नकली साधना बचा सकेगी। अगर तू मेरे से उपदेश लेगी, पिछली पूजाएँ त्यागेगी, तब तेरी जान बचेगी। सर्प बनकर काल ने रानी को डस लिया। करूणामय (कबीर) साहेब वहाँ प्रकट हुए। दिखाने के लिए मंत्र बोला और (वे तो बिना मंत्र भी जीवित कर सकते हैं) इन्द्रमती को जीवित कर दिया।
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জ্ঞানী গরুড় হৈ দাস তুম্হারা।
তুম বিন নহীঁ জীব নিস্তারা।।
ইতনা কহ গরুড় চরণ লিপটায়া।
শরণ লেবোঁ অবিগত রায়া।।
সত্যযুগে, কবীর সাহেব জী বিষ্ণুর বাহন পক্ষীরাজ গরুড় জী-কে উপদেশ দিয়েছিলেন, ওনাকে সৃষ্টি রচনা শুনিয়েছিলেন এবং গরুড় জী মুক্তির অধিকারী হন।
ज्ञानी गरूड़ है दास तुम्हारा।
तुम बिन नहीं जीव निस्तारा।।
इतना कह गरूड़ चरण लिपटाया।
शरण लेवों अविगत राया।।
सतयुग में विष्णु जी के वाहन पक्षीराज गरूड़ जी को कबीर साहेब जी ने उपदेश दिया, उनको सृष्टि रचना सुनाई और गरूड़ जी मुक्ति के अधिकारी हुए।


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যে কবির্দেব/কবীর সাহেব/হক্কা কবীর/কবীরন/খবিরা/কবিম্ এর প্রমাণ পবিত্র শাস্ত্র গ্রন্থে (বেদ, গীতা, কুরআন, বাইবেল, গুরু গ্রন্থ সাহেব), পাওয়া যায় তিনি আর অন্য কেউ নন, যিনি 600 বছর আগে কাশী-তে এসেছিলেন, সেই পূর্ণ পরমাত্মা কবীর সাহেব। যিনি সত ভক্তি মার্গ এবং সমাজ সংস্কারের কথা বলেছিলেন।
जिस कविर्देव/कबीर साहेब/हक्का कबीर/कबीरन/खबीरा/कविं के प्रमाण शास्त्रों (वेद, गीता, क़ुरान, बाइबल, गुरुग्रंथ साहिब) में मिलते है वह कोई और नहीं बल्कि पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब ही है जो 600 वर्ष पहले काशी में आये थे। जिन्होंने सद्भक्ति व समाज सुधार का मार्ग बताया।

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গরীব,সৌ ছল ছিদ্র মৈঁ করু, আপনে জন কে কাজ।
হিরণাকুশ জ্যূঁ মার হুঁ, নরসিংঘ ধরহুঁ সাজ।।
সন্ত গরীবদাস জী বলেছেন যে, পরমেশ্বর কবীর জী বলেন, যে আমার শরণে কোন এক জন্মে এসেছে, আর মুক্ত হতে পারেনি, তার মুক্তির জন্য আমি যা কিছু লীলা করি। যেমন সত্যযুগে, প্রহ্লাদ ভক্তকে রক্ষা করার জন্য আমি নরসিংহের রূপ ধারণ করে হ���রণ্যকশিপুকে মেরেছিলাম।
गरीब, सौ छल छिद्र मैं करूं, अपने जन के काज।
हिरणाकुश ज्यूं मार हूँ, नरसिंघ धरहूँ साज।।
संत गरीबदास जी ने बताया है कि परमेश्वर कबीर जी कहते हैं कि जो मेरी शरण में किसी जन्म में आया है, मुक्त नहीं हो पाया, मैं उसको मुक्त करने के लिए कुछ भी लीला कर देता हूँ। जैसे सतयुग में प्रहलाद भक्त की रक्षा के लिए नरसिंह रूप धारण करके हिरण्यकशिपु को मारा था।

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জ্ঞানী গরুড় হৈ দাস তুম্হারা।
তুম বিন নহীঁ জীব নিস্তারা।।
ইতনা কহ গরুড় চরণ লিপটায়া।
শরণ লেবোঁ অবিগত রায়া।।
সত্যযুগে, কবীর সাহেব জী বিষ্ণুর বাহন পক্ষীরাজ গরুড় জী-কে উপদেশ দিয়েছিলেন, ওনাকে সৃষ্টি রচনা শুনিয়েছিলেন এবং গরুড় জী মুক্তির অধিকারী হন।
ज्ञानी गरूड़ है दास तुम्हारा।
तुम बिन नहीं जीव निस्तारा।।
इतना कह गरूड़ चरण लिपटाया।
शरण लेवों अविगत राया।।
सतयुग में विष्णु जी के वाहन पक्षीराज गरूड़ जी को कबीर साहेब जी ने उपदेश दिया, उनको सृष्टि रचना सुनाई और गरूड़ जी मुक्ति के अधिकारी हुए।

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কবীর পরমেশ্বরের কলিযুগে প্রকট হওয়
পরমেশ্বর কবীর সাহেব জগতের দৃষ্টিতে রামানন্দ জী-কে গুরু ধারণ করেছেন, কিন্তু বাস্তবে পরমেশ্বর কবীর ওনার গুরু ছিলেন | শ্রদ্ধেয় গরিব দাস জী মহারাজ বলেছেন -
জাতি মেরি জগতগুরু, পরমেশ্বর হৈ পন্থ |
গরীবদাস লিখিত পঢ়ে, নাম নিরঞ্জন কন্ত ||
হে স্বামী সৃষ্টা মৈ, সৃষ্টি মেরে তীর |
দাস গরীব অধব বসু, অবিগত সত কবীর ||
कबीर परमेश्वर का कलयुग में प्रगट होना
परमेश्वर कबीर साहेब ने जगत की दृष्टि में रामानंद जी को गुरु धारण किया किन्तु वास्तव में परमेश्वर कबीर उनके गुरुदेव थे। आदरणीय गरीबदास जी महाराज ने कहा है-
जाति मेरी जगतगुरु, परमेश्वर है पंथ |
गरीबदास लिखित पढ़े, नाम निरंजन कन्त ||
हे स्वामी सृष्टा मैं, सृष्टि मेरे तीर |
दास गर���ब अधर बसूं, अविगत सत कबीर ||

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৬০০ বছর পূর্বে, বিক্রমী সংবত ১৪৫৫ (১৩৯৮ খ্রি) জ্যেষ্ঠ মাসের পূর্ণিমার দিন, কাশী শহরের লহরতারা সরোবরে কবীর পরমাত্মা অবতরণ করেন। এবং কাশীতে নিরু-নিমা নামক নি:সন্তান দম্পতিকে প্রপ্ত হন।
600 साल पहले कबीर परमात्मा विक्रमी संवत् 1455 (1398 ई.) ज्येष्ठ मास की पूर्णमासी के दिन काशी शहर में लहरतारा तालाब में अवतरित हुये। और काशी के नीरू नीमा नामक नि:सन्तान दंपती को मिले।

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দ্বাপরযুগে পরমাত্মা কবীর জি করুণাময় নামে প্রকট হন। ঐ সময়ে রাজা চন্দ্রবিজয় এবং তাঁর স্ত্রী রানী ইন্দ্রমতীকে পূর্ণ পরমাত্মা কবীর সাহেব সাতলোক থেকে এসে দর্শন দেন।
द्वापरयुग में परमेश्वर कबीर जी करुणामय नाम से प्रकट हुए थे। उस समय राजा चंद्रविजय और उनकी पत्नी रानी इन्द्रमती को पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी सतलोक से आकर मिले थे।

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#AudioBook_JeeneKiRah
https://youtu.be/9zL0fFimUC0?si=9RkSy4FjFeDyPI1z
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#AudioBook_JeeneKiRah
https://youtu.be/9zL0fFimUC0?si=9RkSy4FjFeDyPI1z
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https://youtu.be/9zL0fFimUC0?si=9RkSy4FjFeDyPI1z
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#AudioBook_JeeneKiRah
https://youtu.be/k6L_eBhwFfo?si=vVm6FWeqwHn-ybjJ
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#AudioBook_JeeneKiRah
https://youtu.be/bbWlmWPGY4g?si=9VIhtRovr6lHdUxK
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