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#سكس #نيك #افلام_سكس #معصيتي_راحتي #كافره #متحرره #متمردة #ديوث ،🤣🤣
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जिन्दगी के सात उसूल—-
१….चूत, चूची और चिलम चाहे जितना भी पि��ो कभी जूठी नहीं होती है ।
२….भजन, भोजन और चोदन हमेशा एकान्त में ही करना चहिए ।
३…..फोड़ा, घोड़ा और लौड़ा सहलाने से बढ़ता है ।
४….लन्ड औऱ घमन्ड दोनों को काबू में रखना चाहिए ।
५…..लड़की कितनी भी लम्बी हो लन्ड चूसेगी तो बैठ के और चुदेगी तो लेट के ही ।
६…साँप और चूत जहाँ भी दिखे मार दो
७….तावीज और कन्डोम साथ में रखो, क्या पता भूत और चूत कब और कहाँ मिल जाए
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Amrita arora with malika arora saif ali khan and krishma kapoor
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Hindi Poem Written by ARCHU
Those who know Hindi very well can enjoy fully…👍
उस रात की बात न पूछ सखी
स्नानगृह में जैसे ही, नहाने को मैं निर्वस्त्र हुई,
मेरे कानों को लगा सखी, दरवाज़े पे दस्तक कोई हुई,
धक्-धक् करते दिल से मैंने, दरवाज़ा सखी री खोल दिया,
आते ही साजन ने मुझको, अपनी बाँहों में कैद किया,
होठों को होठों में लेकर, उभारों को हाथों से मसल दिया,
फिर साजन ने सुन री ओ सखी, फव्वारा जल का खोल दिया,
भीगे यौवन के अंग-अंग को, होठों की तुला में तौल दिया,
कंधे, स्तन, कमर, नितम्ब, कई तरह से पकड़े-छोड़े गए,
गीले स्तन सख्त हाथों से, आटे की भांति गूंथे गए,
जल से भीगे नितम्बों को, दांतों से काट-कचोट लिया,
मैं विस्मित सी सुन री ओ सखी, साजन के बाँहों में सिमटी रही
साजन ने न�� से शिख तक ही, होंठों से अति मुझे प्यार किया
चुम्बनों से मैं थी दहक गई, जल-क्रीड़ा से मैं बहक गई,
सखी बरबस झुककर मुँह से मैंने, साजन के अंग को दुलार किया,
चूमत-चूमत, चाटत-चाटत, साजन पंजे पर बैठ गए,
मैं खड़ी रही साजन ने होंठ, नाभि के नीचे पहुँचाय दिए,
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया !!
मेरे गीले से उस अंग से, उसने जी भर के रसपान किया,
मैंने कन्धों पे पाँवों को रख, रस के द्वारों को खोल दिया,
मैं मस्ती में थी डूब गई, क्या करती मैं न होश रहा,
साजन के होठों पर अंग को रख, नितम्बों को चहुँ ओर हिलोर दिया,
साजन बहके-दहके-चहके, मोहे जंघा पर ही बिठाय लिया,
मैंने भी उनकी कमर को, अपनी जंघाओं में फँसाय लिया,
जल से भीगे और रस में तर, अंगों ने मंजिल खुद खोजी,
उसके अंग ने मेरे अंग के, अंतिम पड़ाव तक प्रवेश किया,
ऊपर से जल कण गिरते थे, नीचे दो तन दहक-दहक जाते,
चार नितम्ब एक दंड से जुड़े, एक दूजे में धँस-धँस जाते,
मेरे अंग ने उसके अंग के, एक-एक हिस्से को फांस लिया,
जैसे वृक्ष से लता सखी, मैं साजन से यों लिपटी थी,
साजन ने गहन दबाव देकर, अपने अंग से मुझे चिपकाय लिया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया !!
नितम्बों को वह हाथों से पकड़े, स्पंदन को गति देता था,
मेरे दबाव से मगर सखी, वह खुद ही नहीं हिल पाता था,
मैंने तो हर स्पंदन पर, दुगना था जोर लगाय दिया,
अब तो बस ऐसा लगता था, साजन मुझमें ही समा जाएँ,
होंठों में होंठ, सीने में वक्ष, आवागमन अंगों ने खूब किया,
कहते हैं कि जल से री सखी, सारी गर्मी मिट जाती है,
जितना जल हम पर गिरता था, उतनी ही गर्मी बढ़ाए दिया,
वह कंधे पीछे ले गया सखी, सारा तन बाँहों पर उठा लिया,
मैंने उसकी देखा-देखी, अपना तन पीछे खींच लिया,
इससे साजन को छूट मिली, साजन ने नितम्ब उठाय लिया,
अंग में उलझे मेरे अंग ने, चुम्बक का जैसे काम किया,
हाथों से ऊपर उठे बदन, नितम्बों से जा टकराते थे,
जल में भीगे उत्तेजक क्षण, मृदंग की ध्वनि बजाते थे,
साजन के जोशीले अंग ने, मेरे अंग में मस्ती घोल दिया,
खोदत-खोदत कामांगन को, जल के सोते फूटे री सखी,
उसके अंग के फव्वारे ने, मोहे अन्तःस्थल तक सींच दिया,
फव्वारों से निकले तरलों से, तन-मन दोनों थे तृप्त हुए,
साजन के प्यार के उत्तेजक क्षण, मेरे अंग-अंग में अभिव्��क्त हुए,
मैंने तृप्ति की एक मोहर, साजन के होठों पर लगाय दिया,
उस रात की बात न पूछ 💦💦💦💦💦💦💦💦💦💦💦💦💦💦
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