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कौन सा है मोक्ष मंत्र?
हरे राम हरे कृष्णा मंत्र से मोक्ष संभव नहीं है क्योंकि वेदों में कहीं भी हरे राम हरे कृष्णा मंत्र नहीं है। इसलिए मनमाने मंत्रों से मोक्ष कैसे हो सकता है?
मोक्ष मंत्र जानने के लिए देखिए Sant Rampal Ji Maharaj YouTube Channel
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पूर्ण संत (पूर्ण गुरु) तीन प्रकार के मंत्रों (नाम) को तीन बार में उपदेश करता है, जिसका वर्णन कबीर सागर में बोध सागर खंड के अध्याय अमर मूल में पृष्ठ 265 पर व गीता जी के अध्याय 17 श्लोक 23 व सामवेद संख्या 822 में मिलता है। वह पूर्ण संत व मोक्ष मंत्र दबने के अधिकारी सिर्फ संत रामपाल जी महाराज हैं। उनसे सच्चे मंत्र प्राप्त कर अपना कल्याण कराएं।
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क्या आप जानते हैं कि पांचवें वेद "सूक्ष्मवेद" का ज्ञान वर्तमान में किस संत के पास है?
जानने के लिए देखिए Sant Rampal Ji Maharaj Youtube Channel
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गीता अध्याय 4 श्लोक 32 सच्चिदानंदघन ब्रह्म यानि परम अक्षर ब्रह्म ने (मुखे) अपने मुख कमल से जो वाणी बोली, उस वाणी में बहुत प्रकार के (यज्ञाः) धार्मिक अनुष्ठानों की जानकारी दी है। जो साधना बताई है, वह कर्म करते-करते की जा सकती है, वह सूक्ष्मवेद यानि तत्त्वज्ञान है। उसको जानकर तू कर्म बंधन से सर्वथा मुक्त हो जाएगा यानि पूर्ण मोक्ष प्राप्त करेगा।
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चार वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद को सभी जानते हैं लेकिन पाँचवाँ वेद "सूक्ष्मवेद" कौन सा है?
जानने के लिए पढ़िए पुस्तक "हिन्दू साहेबान नहीं समझे गीता, वेद, पुराण"
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पाँचवें वेद "सूक्ष्मवेद" में अध्यात्म का रहस्य युक्त सम्पूर्ण ज्ञान है। जो गीता, वेद, पुराणों सहित अन्य धर्मग्रंथों में भी नहीं है।
"सूक्ष्मवेद" के ज्ञान को जानने के लिए देखिए Sant Rampal Ji Maharaj Youtube Channel
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पाँचवाँ वेद "सूक्ष्मवेद" आदि सनातन पंथ का ज्ञान कराता है, जिसमें बताया गया है:
गरीब, वही मुहम्मद वही महादेव, वही आदम वही ब्रह्मा। गरीबदास दूसरा कोई नहीं, देख आपने घरमा।।
सूक्ष्मवेद का ज्ञान जानने के लिए पढ़िए पुस्तक "हिन्दू साहेबान नहीं समझ��� गीता, वेद, पुराण"
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पांचवें वेद "सूक्ष्मवेद" में परमात्मा ने बताया है: नाम उठत नाम बैठत, नाम सोवत जाग रे। नाम खाते नाम पीते, नाम सेती लाग रे।। नाम का जाप काम करते-करते कर सकते हैं जो परमात्मा प्राप्ति की वास्तविक विधि है। यही प्रमाण यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 15 व गीता अध्याय 8 मंत्र 7 में है।
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गीता अध्याय 4 श्लोक 9 में कहा है कि हे अर्जुन ! मेरे जन्म और कर्म दिव्य हैं। भावार्थ है कि काल ब्रह्म अन्य के शरीर में प्रवेश करके कार्य करता है। जैसे श्री कृष्ण जी ने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि मैं महाभारत के युद्ध में किसी को मारने के लिए शस्त्र भी नहीं उठाऊँगा।
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जिस समय काल ब्रह्म ने श्री कृष्ण जी के शरीर से बाहर निकलकर अपना विराट रूप दिखाया, वह बहुत प्रकाशमान था। अर्जुन भयभीत हो गया तथा श्री कृष्ण उस विराट रूप के प्रकाश में ओझल हो गया था। इसलिए पूछ रहा था कि आप कौन हो? क्या अपने साले से भी यह पूछा जाता है कि आप कौन हो? इसलिए गीता का ज्ञान काल ब्रह्म ने श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके बोला था।
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गीता अध्याय 18 श्लोक 43 में गीता ज्ञान दाता ने क्षत्री के स्वभाविक कर्मों का उल्लेख करते हुए कहा है कि "युद्ध से न भागना" आदि-2 क्षत्री के स्वभाविक कर्म हैं। इससे सिद्ध हुआ कि गीता जी का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने नहीं बोला। क्योंकि श्री कृष्ण जी स्वयं क्षत्री होते हुए कालयवन के सामने से युद्ध से भाग गए थे।
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काल भगवान ने सूक्ष्म शरीर बना कर प्रेत की तरह श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके पवित्र गीता जी का ज्ञान तो सही (वेदों का सार) कहा, परन्तु युद्ध करवाने के लिए भी अटकल बाजी में कसर नहीं छोड़ी।
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काल भगवान जो इक्कीस ब्रह्मण्ड का प्रभु है, उसने प्रतिज्ञा की है कि मैं स्थूल शरीर में व्यक्त (मानव सदृश अपने वास्तविक) रूप में सबके सामने नहीं आऊँगा।
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पवित्र श्रीमद्भगवत गीता जी का ज्ञान किसने कहा?
जानने के लिए अवश्य पढ़ें पवित्र पुस्तक ज्ञान गंगा।
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इस नवरात्रि पर जानें माता को अष्टंगी क्यों कहते हैं? जानने के लिए अवश्य पढ़ें ज्ञान गंगा।
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