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#अरुगुला
merafarmhouse · 2 years
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📅 सितंबर महीने में अपने प्रति पड़े खेत में करें इन फली या सब्जियों की बुवाई
🔶 मटर की खेती 🥦 पालक की खेती 🥦 पत्ता गोभी की खेती 🍆 बैंगन की खेती 🤎 मूली की खेती 🧄 लहसुन की खेती
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merikheti · 2 years
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परती खेत में करें इन सब्जियों की बुवाई, होगी अच्छी कमाई
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सितंबर महीने में अपने परती पड़े खेत में करें इन फली या सब्जियों की बुवाई
भारत के खेतों में मानसून की शुरुआत में बोयी गयी खरीफ की फसलों को अक्टूबर महीने की शुरुआत में काटना शुरू कर दिया जाता है, पर यदि किसी कारणवश आपने खरीफ की फसल की बुवाई नहीं की है और जुलाई या अगस्त महीने के बीत जाने के बाद सितंबर में किसी फसल के उत्पादन के बारे में सोच रहे हैं, तो आप कुछ फसलों का उत्पादन कर सकते है, जिन्हें मुख्यतः सब्जी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
मानसून में बदलाव :
सितंबर महीने के पहले या दूसरे सप्ताह में भारत के लगभग सभी हिस्सों से मानसून लौटना शुरू हो जाता है और इसके बाद मौसम ज्यादा गर्म भी नहीं रहता और ना ही ज्यादा ठंडा रहता है। इस मौसम में किसी भी सीमित पानी की आवश्यकता वाली फसल की पौध को वृद्धि करने के लिए एक बहुत ही अच्छी जलवायु मिल सकती है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में इस्तेमाल आने वाली सब्जियों की बुवाई मुख्यतः अगस्त महीने के अंतिम सप्ताह या फिर सितंबर में की जाती है।ये भी पढ़ें: भारत मौसम विज्ञान विभाग ने दी किसानों को सलाह, कैसे करें मानसून में फसलों और जानवरों की देखभाल
कृषि क्षेत्र से जुड़ी इसी संस्थान की एडवाइजरी के अनुसार, भारत के किसान नीचे बताइए गई किसी भी फली या सब्जियों का उत्पादन कर सितंबर महीने में भी अपने परती पड़े खेत से अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
मटर की खेती
 15 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में के साथ 400 मिलीमीटर की बारिश में तैयार होने वाली यह सब्जी दोमट और बलुई दोमट मिट्टी में उगाई जा सकती है।
मानसून के समय अच्छी तरीके से पानी मिली हुई मिट्टी इसके उत्पादन को काफी बढ़ा सकती है।अपने खेत में दो से तीन बार जुताई करने के बाद इसके बीज को जमीन से 2 से 3 सेंटीमीटर के अंदर दबाकर उगाया जा सकता है।मटर की खेती से संबंधित पूरी जानकारी और बीमारियों से इलाज के लिए यह भी देखें : जानिए मटर की बुआई और देखभाल कैसे करें
पालक की खेती
वर्तमान में उत्तरी भारत में पालक के लगभग सभी किसानों के द्वारा हाइब्रिड यानी कि संकर बीज का इस्तेमाल किया जाता है।
40 से 50 दिन में पूरी तरह से तैयार होने वाली यह सब्जी किसी भी प्रकार की मिट्टी में आसानी से उगाई जा सकती है, हालांकि इसकी पौध लगाने से पहले किसानों को मिट्टी की अम्लता की जांच जरूर कर लेनी चाहिए।
25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड के मध्य बेहतर उत्पादन देने वाली यह सब्जी पतझड़ के मौसम में सर्वाधिक वृद्धि दिखाती है।
प्रति हेक्टेयर 20 से 30 किलोग्राम बीज की मात्रा से बुवाई करने के तुरंत बाद खेत की सिंचाई कर देनी चाहिए।पालक की खेती के दौरान खेत को तैयार करने की विधि और इस फसल में लगने वाले रोगों से निदान के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए, यह भी देखें :पालक की खेती की सम्पूर्ण जानकारी
पत्ता गोभी की खेती
सितंबर महीने के पहले या दूसरे सप्ताह में शुरुआत में नर्सरी में पौध उगाकर 20 से 40 दिन में खेत में पौध को स्थानांतरित कर उगायी जा सकने वाली यह सब्जी भारत में लगभग पूरे वर्ष भर इस्तेमाल की जाती है। 70 से 80 दिनों के अंतर्गत पूरी तरह तैयार होने वाली यह फसल पोषक तत्वों से भरपूर और अच्छी सिंचाई वाली मिट्टी में आसानी से बेहतरीन उत्पादकता प्रदान कर सकती है।
ड्रिप सिंचाई विधि तथा उर्वरकों के सीमित इस्तेमाल से इस फसल की पत्तियों की ग्रोथ काफी तेजी से बढ़ती है।
15 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में तैयार होने वाली यह सब्जी की फसल जब तक कुछ पत्तियां नहीं निकालती है, अच्छी मात्रा में पानी की मांग करती है।
इस फसल की खास बात यह है कि इससे बहुत ही कम जगह में अधिक पैदावार की जा सकती है, क्योंकि इसके दो पौध के मध्य की दूरी 30 सेंटीमीटर तक रखनी होती है, इस वजह से एक हेक्टेयर में लगभग 20 हज़ार से 40 हज़ार छोटी पौध लगायी जा सकती है।पत्ता गोभी फसल तैयार करने की संपूर्ण जानकारी और इसकी वृद्धि के दौरान होने वाले रोगों के निदान के लिए, यह भी देखें : पत्ता गोभी की खेती की सम्पूर्ण जानकारी
बैंगन की खेती
भारत में अलग-अलग नामों से उगाई जाने वाली यह सब्जी 15 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान के मध्य अच्छी उत्पादकता प्रदान करती है। हालांकि, इस सब्जी की खेती खरीफ और रबी की फसल के अलावा पतझड़ के समय भी की जाती है। अलग-अलग प्रकार की मिट्टी में उगने वाली यह फसल अम्लीय मिट्टी में सर्वाधिक प्रभावी साबित होती है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार एक हेक्टेयर क्षेत्र में बैंगन उत्पादित करने के लिए लगभग 400 से 500 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। इन बीजों को पहले नर्सरी में तैयार किया जाता है और उसके बाद खेत को अच्छी तरीके से तैयार कर 50 सेंटीमीटर की दूरी रखते हुए बुवाई जाती है।
ऑर्गेनिक खाद और रासायनिक उर्वरकों के सीमित इस्तेमाल से 8 से 10 दिन के अंतराल पर बेहतरीन सिंचाई की मदद से भारत के किसान काफी मुनाफा कमा रहे है।बैंगन की फसल से जुड़ी हुई अलग-अलग किस्म और वैज्ञानिकों के द्वारा जारी की गई नई विधियों की संपूर्ण जानकारी के लिए, यह भी देखें : बैंगन की खेती साल भर दे पैसा
मूली की खेती
सितंबर से लेकर अक्टूबर के महीनों में उगाई जाने वाली यह सब्जी बहुत ही जल्दी तैयार हो सकती है। पिछले कुछ समय में बाजार में बढ़ती मांग की वजह से इस फसल का उत्पादन करने वाले किसान काफी अच्छा मुनाफा कमा रहे है।
15 से 20 सेंटीग्रेड के तापमान में अच्छी उत्पादकता देने वाली यह फसल उपजाऊ बलुई दोमट मिट्टी में अपनी अलग-अलग किस्मों के अनुसार प्रभावी साबित होती है। किसान भाई कृषि विज्ञान केंद्र से अपनी खेत की मिट्टी की अम्लीयत या क्षारीयता की जांच अवश्य कराएं, क्योंकि इस फसल के उत्पादन के लिए खेत की पीएच लगभग 6.5 से 7.5 के मध्य होनी चाहिए।
सितंबर के महीने में अच्छी तरीके से खेत को तैयार करने के बाद गोबर की खाद का इस्तेमाल कर, 10 से 12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीज की बुवाई करते हुए उचित सिंचाई प्रबंधन के साथ अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है।मूली की फसल में लगने वाले कई प्रकार के रोग और इसकी अलग-अलग किस्मों की जलवायु के साथ उत्पादकता का पता लगाने के लिए, यह भी देखें :मूली की खेती (Radish cultivation in hindi)
लहसुन की खेती
ऊटी 1 और सिंगापुर रेड तथा मद्रासी नाम की अलग-अलग किस्म के साथ उगाई जाने वाली लहसुन की फसल लगभग 12 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में बोयी जाती है। पोषक तत्वों से भरपूर और अच्छी तरह से सिंचाई की हुई मिट्टी इस फसल की उत्पादकता के लिए सर्वश्रेष्ठ साबित होती है।
प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में 500 से 600 किलोग्राम बीज के साथ उगाई जाने वाली यह खेती कई प्रकार के रोगों के खिलाफ स्वतः ही कीटाणुनाशक की तरह बर्ताव कर सकती है।
बलुई और दोमट मिट्टी में प्रभावी साबित होने वाली यह फसल भारत में आंध्र प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के अलावा गुजरात राज्य में उगाई जाती है।
वर्तमान में भारतीय किसानों के द्वारा लहसुन की गोदावरी और श्वेता किस्मों को काफी पसंद किया जा रहा है। इस फसल का उत्पादन जुताई और बिना जुताई वाले खेतों में किया जा सकता है।
पहाड़ी क्षेत्र वाले इलाकों में सितंबर के महीने को लहसुन की बुवाई के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, जबकि समतल मैदानों में इसकी बुवाई अक्टूबर और नवंबर महीने में की जाती है।लहसुन की फसल से जुड़ी हुई अलग-अलग किस्म और जलवायु के साथ उनकी प्रभावी उत्पादकता को जानने के अलावा, इस फसल में लगने वाले रोगों के निदान के लिए यह भी देखें : लहसुन को कीट रोगों से बचाएं
अरुगुला सब्जी की खेती
भारत के किसान भाई इस फसल के बारे में कम ही जानकारी रखते है, परंतु अरुगुला (Arugula) सब्जी से होने वाली उत्पादकता से कम समय में काफी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। इसे भारत में गारगीर (Gargeer) के नाम से जाना जाता है।यह एक तरीके से पालक के जैसे ही दिखने वाली सब्जी की फसल होती है जो कि कई प्रकार के विटामिन की कमी को दूर कर सकती है। पिछले कुछ समय से उत्तरी भारत के कुछ राज्यों में इस सब्जी की डिमांड बढ़ने की वजह से कई युवा किसान इसका उत्पादन कर रहे है।
सितंबर महीने के दूसरे सप्ताह में बोई जाने वाली यह सब्जी वैसे तो किसी भी प्रकार की मिट्टी में अच्छा उत्पादन दे सकती है, परंतु यदि मिट्टी की ph 7 से अधिक हो तो यह अधिक प्रभावी साबित होती है।
पानी के सीमित इस्तेमाल और जैविक खाद की मदद से इस फसल की वृद्धि दर को काफी तेजी से बढ़ाया जा सकता है।
इस सब्जी की फसल की छोटी पौध 7 से 10 दिन में अंकुरित होना शुरू हो जाती है।
बहुत ही कम खर्चे पर तैयार होने वाली यह फसल 30 दिन में पूरी तरीके से तैयार हो सकती है।
दक्षिण भारत के राज्यों में इसकी बुवाई सितंबर महीने के दूसरे सप्ताह में शुरू हो जाती है, जबकि उत्तरी भारत में यह अक्टूबर महीने के पहले सप्ताह में बोयी जाती है।
इस फसल के उत्पादन में बहुत ही कम सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है परंतु फिर भी नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के सीमित इस्तेमाल से उत्पादकता को 50% तक बढ़ाया जा सकता है।ये भी पढ़ें: अगस्त में ऐसे लगाएं गोभी-पालक-शलजम, जाड़े में होगी बंपर कमाई, नहीं होगा कोई गम
आशा करते हैं कि Merikheti.com के द्वारा किसान भाइयों को सितंबर महीने में बुवाई कर उत्पादित की जा सकने वाली फसलों के बारे में दी गई यह जानकारी पसंद आई होगी और यदि आप भी किसी कारणवश खरीफ की फसल का उत्पादन नहीं कर पाए है तो खाली पड़ी हुई जमीन में इन सब्जी की फसलों का उत्पादन कर कम समय में अच्छा मुनाफा कमा सकेंगे।
Source परती खेत में करें इन सब्जियों की बुवाई, होगी अच्छी कमाई
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thanksayurveda · 3 years
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duniyakelog · 4 years
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जेनना जेमसन ने 2020 में वजन कम करने के लिए अपने केटो आहार पर विचार किया: 'यह 30 पाउंड से दूर होने का समय है!'
जेना जेमसन नए साल में अपनी वजन घटाने की यात्रा जारी रखने के लिए तैयार है।
45 वर्षीय पूर्व वयस्क फिल्म स्टार ने शुक्रवार को इंस्टाग्राम पर साझा किया कि उन्हें 30 एलबीएस खोने की उम्मीद है। और उसके केटो आहार पर ध्यान केंद्रित करके ऐसा करने की उम्मीद करता है।
जेम्सन ने एक दर्पण सेल्फी के साथ कैप्शन में लिखा, '' यहां मेरा कूदने का स्थान #keto में है। उसने बताया कि वर्तमान में उसका वजन 153 पाउंड है।
"मैं आज सुबह ट्रेडर जो (मैं कुछ दिनों के लिए एलए में हूं) खरीदारी करने गया था। मुझे अपने भरोसेमंद अरुगुला सलाद, लहसुन फैला हुआ, कटा हुआ पास्तामी, फारसी खीरे और तोरी नूडल्स और कुछ घास खिलाया मक्खन मिला," उसने कहा। "यह 30 पाउंड लेने का समय है!"
जेम्सन ने पिछले महीने कीटो आहार से एक संक्षिप्त विराम लिया, लेकिन खुद को इसके लिए फिर से समर्पित करने की कसम खाई है और "धीरे-धीरे #intermittentfasting में वापस किनारा कर रहा है।"
इस पोस्ट को इंस्टाग्राम पर देखें
यहाँ पर मेरा जम्प ऑफ़ पॉइंट है # लौटो में मैं 153 पाउंड का हूँ
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मैं आज सुबह व्यापारी जो (मैं कुछ दिनों के लिए एलए में हूं) पर खरीदारी करने गया था। मुझे अपने भरोसेमंद अरुगुला सलाद, लहसुन फैला हुआ, कटा हुआ पास्ता, फारसी खीरे और तोरी नूडल्स और कुछ घास खिलाया मक्खन मिला। यह 30 पाउंड लेने का समय है! मैं धीरे-धीरे #intermittentfasting में वापस आ रहा हूं, लेकिन मैं उग्र हूं क्योंकि मैं वास्तव में सब कुछ और कुछ भी खा रहा हूं
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मैं हर किसी को प्रगति तस्वीरें दिखाने के लिए सुपर उत्साहित हूँ! हर कोई अपने 2020 के लक्ष्यों पर कैसे काम कर रहा है? वैसे, मैं जो जींस पहन रहा हूं, वह मेरी नई 2020 की क्लाउड जींस है और वे हमारे लिए सुडौल महिलाओं के लिए बनाई गई हैं, वे सिर्फ मेरी साइट पर लाइव हुईं ... बस मेरे बायो में लिंक पर जाएं! #weightlossjourney #weightloss #ketojourney #weightlossmotivation
जेना जेम्सन (@jennacantlose) द्वारा 3 जनवरी, 2020 को दोपहर 1:02 बजे पीएसटी पर साझा की गई एक पोस्ट
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संबंधित: जेना जेमसन कहती है कि वह 20 पाउंड पाने के बाद केटो डाइट पर 'बैक ऑन ट्रैक' है।
"लेकिन मैं तबाह है क्योंकि मैं वास्तव में सब कुछ और कुछ भी खा रहा हूँ
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उसने कहा, "उसने कहा कि वह सुपर फोटोज शेयर कर रही है, क्योंकि वह वजन कम करती है।
जेमसन ने अपने इंस्टाग्राम स्टोरी पर केटो को खाने के दौरान अपने पसंदीदा भोजन में से एक को साझा किया, यह बताते हुए कि वह आम तौर पर एक आसान दोपहर के भोजन के लिए लहसुन के प्रसार के साथ आर्गुला में डालने के लिए कुछ पास्ट्रमी को चॉप करती है।
"मैंने केटो की शुरुआत करते समय इसे सरल रखने की कोशिश की क्योंकि मुझे इस वजन घटाने को किकस्टार्ट करने की आवश्यकता है," उसने कहा।
दिसंबर में, जेम्सन ने इंस्टाग्राम पर अपने अनुयायियों को स्वीकार किया कि उसने 20 एलबीएस प्राप्त किए हैं। केटो आहार से छुट्टी के बाद।
"इकबालिया बयान। मैंने 20 पाउंड प्राप्त किए हैं। ओह। जेम्सन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखा , मैंने # शिफ्टो से ब्रेक लेने और अपनी सबसे अच्छी जिंदगी जीने का फैसला किया। "वजन तेजी से और उग्र वापस आया।"
इस पोस्ट को इंस्टाग्राम पर देखें
इकबालिया बयान। मैंने 20 पाउंड प्राप्त किए हैं। ओह। मैंने # शिफ्टो से ब्रेक लेने और अपनी सर्वश्रेष्ठ कैरी लाइफ जीने का फैसला किया। वजन तेजी से वापस आया और उग्र हो गया। मुझे पता है कि बहुत से लोग कीटो को छोड़ रहे हैं क्योंकि इसे बनाए रखना मुश्किल है और एक-डेढ़ साल बाद मैं कंसर्ट करता हूं। यकीन नहीं होता कि मैं पूरी ताकत या सिर्फ कैलोरी काउंट वापस लेने जा रहा हूं। आपके क्या विचार हैं? मैं आप लोगों को प्यार करता हूँ!
Jenna Jameson (@jennacantlose) द्वारा साझा की गई एक पोस्ट 5 दिसंबर, 2019 को शाम 5:53 बजे PST
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संबंधित: जेनना जेम्सन 205 एलबीएस पर खुद की तस्वीरें साझा करती हैं। और 125 एलबीएस।: 'इनमें से केवल एक स्वस्थ है!'
"मुझे पता है कि बहुत से लोग केतो को छोड़ रहे हैं क्योंकि इसे बनाए रखना मुश्किल है और एक-डेढ़ साल बाद मैं कंसर्ट करता हूं।" यकीन नहीं होता कि मैं पूरी ताकत या सिर्फ कैलोरी काउंट वापस लेने जा रहा हूं।
"आपके विचार क्या हैं?"
जेम्सन पहले 80 पाउंड के आसपास खो गए थे। मार्च 2018 में अपनी बेटी बैटल लू को जन्म देने के बाद केटो आहार की शुरुआत।
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agrojayyworld · 4 years
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नवीन शेती तंत्रज्ञान सेंद्रियपेक्षा चांगले अन्न वाढवू शकेल काय?
नवीन शेती तंत्रज्ञान सेंद्रियपेक्षा चांगले अन्न वाढवू शकेल काय?
नवीन तंत्रज्ञान अमेरिकेत अन्नाचे लँडस्केप बदलत आहेत. आता, अन्न वाढवण्याची क्षमता सेंद्रियपेक्षा चांगली असू शकते. हे कसे शक्य आहे?
हे समजून घेण्यात मदत करते की सेंद्रिय खाद्य विषयी काही गैरसमज आहेत. प्रारंभीच्या विश्वास असूनही सेंद्रिय शेतात कीटकनाशके वापरली जाऊ शकतात. फरक हा आहे की ते पारंपारिक शेतात वापरल्या जाणार्‍या सिंथेटिक कीटकनाशकाऐवजी केवळ नैसर्गिकरित्या व्युत्पन्न कीटकनाशके वापरतात. नैसर्गिक कीटकनाशके कमी विषारी असल्याचे मानले जाते, तथापि, काहींना आरोग्यास महत्त्वपूर्ण धोका असल्याचे आढळले आहे
काही अभ्यासांनी असे सूचित केले आहे की कीटकनाशकांचा वापर अगदी कमी डोसमध्ये देखील ल्युकेमिया, लिम्फोमा, ब्रेन ट्यूमर, स्तनाचा कर्करोग आणि पुर: स्थ कर्करोग यासारख्या विशिष्ट कर्करोगाचा धोका वाढू शकतो.
मुले आणि गर्भ किटकनाशकांच्या प्रदर्शनास सर्वाधिक असुरक्षित असतात कारण त्यांच्या रोगप्रतिकारक शक्ती, शरीरे आणि मेंदूत अद्याप विकास होत आहे. कमी वयात होणाऱ्या प्रदर्शनामुळे विकासात्मक विलंब, वर्तणुकीशी संबंधित विकार, ऑटिझम, रोगप्रतिकारक शक्तीची हानी आणि मोटर बिघडलेले कार्य होऊ शकते.
आधीच कर आकारलेल्या अवयवांना जोडलेल्या ताण कीटकनाशकांमुळे गर्भवती महिला अधिक असुरक्षित असतात. तसेच, कीटकनाशके गर्भाशयात आईपासून मुलापर्यंत तसेच आईच्या दुधाद्वारे देखील दिली जाऊ शकतात.
कीटकनाशकांच्या व्यापक वापरामुळे "सुपरवेड्स" आणि "सुपरबग्स" देखील उदयास आले ज्या केवळ २,4-डायक्लोरोफेनोक्सासिटीक ऍसिड (एजंट ऑरेंजमधील एक प्रमुख घटक) सारख्या अत्यंत विषारी विषाने मारल्या जाऊ शकतात.
रिन्सिंग कमी होते परंतु कीटकनाशके नष्ट करत नाहीत. आपली फळे आणि भाज्या धुणे महत्वाचे आहे, परंतु बर्‍याच प्रकरणांमध्ये हे कीटकनाशकांचे सर्व ट्रेस काढून टाकणार नाही. सेंद्रिय पदार्थदेखील काही कीटकनाशके वापरू शकतात आणि बाहेरील-पेरलेले सेंद्रिय अन्न नजीकच्या शेतातून कीटकनाशकांचे अवशेष उचलू शकतात.
अमेरिकेत सरकारी कीटकनाशक चाचणीच्या निकालांचे विश्लेषण करणारी एक ना-नफा संस्था एनवार्यन्मेंटल वर्किंग ग्रुपच्या मते, खालील फळ आणि भाज्यांमध्ये कीटकनाशकांचे प्रमाण सर्वाधिक आहे:
सफरचंद
गोड बेल मिरी
काकडी
भाजी किंवा कोशिंबीर बनवण्यासाठी उपयुक्त अशी एक वनस्पती
बटाटे
द्राक्षे
चेरी टोमॅटो
काळे / कोलार्ड ग्रीन
ग्रीष्मकालीन स्क्वॅश
नेक्टेरिन (आयात केलेले)
पीच
पालक
स्ट्रॉबेरी
गरम मिरी
सेंद्रिय अन्न लेबल्सबद्दल देखील गोंधळ आहे:
सेंद्रिय पदार्थांचे वर्णन उत्पादनांच्या लेबलांवर निरनिराळ्या मार्गांनी केले जाते, परंतु याचा अर्थ भिन्न गोष्टी आहेतः
100 टक्के सेंद्रीय. हे वर्णन प्रमाणित सेंद्रिय फळे, भाज्या, अंडी, मांस किंवा इतर एकल घटक पदार्थांवर वापरले जाते. मीठ आणि पाणी वगळता सर्व घटक प्रमाणित सेंद्रिय असल्यास ते बहु-घटक पदार्थांवर देखील वापरले जाऊ शकते. यात कदाचित यूएसडीए सील असू शकेल.
सेंद्रिय. जर बहु-घटक अन्नावर सेंद्रिय लेबल असेल तर मीठ आणि पाणी वगळता किमान 95 टक्के घटक प्रमाणित सेंद्रिय असतात. नॉनऑर्गनिक आयटम मंजूर केलेल्या अतिरिक्त घटकांच्या यूएसडीए यादीमधून असणे आवश्यक आहे. यामध्ये यूएसडीएचा शिक्का देखील असू शकतो.
सेंद्रिय बनलेलेः एका बहु-घटक उत्पादनामध्ये कमीतकमी 70 टक्के प्रमाणित सेंद्रिय घटक असल्यास, त्यास "सेंद्रिय" अंगभूत पदार्थांचे लेबल असू शकते. उदाहरणार्थ, नाश्त्यात अन्नधान्य "सेंद्रिय ओट्ससह बनविलेले" असे लेबल दिले जाऊ शकते. घटक सूचीमध्ये कोणते घटक सेंद्रिय आहेत हे ओळखणे आवश्यक आहे. या उत्पादनांमध्ये यूएसडीए सील असू शकत नाही.
सेंद्रिय घटक: जर बहु-घटक उत्पादनांपैकी 70 टक्के पेक्षा कमी प्रमाणित सेंद्रिय असेल तर ते सेंद्रिय म्हणून लेबल केले जाऊ शकत नाही किंवा यूएसडीए सील ठेवू शकत नाही. घटक सूची सेंद्रीय आहेत हे सूचित करू शकते.
सेंद्रियपेक्षा काही चांगले आहे का?
होय अ‍ॅग टेकमधील अलीकडील घडामोडी कोणत्याही कीटकनाशके किंवा हानिकारक घटकांशिवाय अन्न वाढवण्याची क्षमता प्रदान करतात. नियंत्रित पर्यावरण सूक्ष्म-शेती उत्पादकांना सीलबंद वातावरणात फळे, औषधी वनस्पती आणि भाज्या पिकविण्यास अनुमती देतात ज्यामुळे कीटकनाशके आणि हानिकारक रसायनांची गरज अक्षरशः कमी होते.
या घट्ट व्यवस्थापित परिसंस्थांमध्ये पारंपारिक शेतांपेक्षा कमी पाणी आणि खताचा वापर केला जातो आणि हंगाम किंवा हवामान विचार न करता उत्पादकांना वर्षभर शेती करण्यास अनुमती देते.
40 फूट नियंत्रित पर्यावरण फार्म दर दहा दिवसात सुमारे 3500-5000 कोशिंबिरीसाठी वापरण्यात येणारा एक पाला व त्याचे झाड उत्पादन देऊ शकते. पारंपारिक उत्पादनांच्या तुलनेत हिरव्या भाज्यांची किंमत प्रतिस्पर्धी असते, परंतु ही प्रक्रिया पारंपारिक शेतीपेक्षा 97 टक्के कमी पाण्याचा वापर करते आणि कीटकनाशके किंवा तणनाशक नसल्यामुळे बग्स आणि तण मिळण्याची शक्यता फारच कमी असते. खरं तर काहीजण म्हणतात की नियंत्रित वातावरणात पिकविलेले उत्पादन शेती प्रत्यक्षात “सेंद्रीयपेक्षा चांगली” आहे, हे लक्षात घेता की सेंद्रिय उत्पादक अजूनही काही कीटकनाशके वापरू शकतात.
वापर:
नियंत्रित पर्यावरण फार्म उच्च गुणवत्तेचे अन्न प्रदान करते जे त्याचे सेवन केले जाते त्या जवळपास, म्हणजे कमी खर्च आणि पर्यावरणीय परिणामासह अन्न योग्य पिकलेले आणि खाण्यास तयार आहे. सीईएफ हे संसाधन-अनुकूल देखील आहेत आणि शेतीच्या इतर पद्धतींपेक्षा कमी पाणी, ऊर्जा, जागा, श्रम आणि भांडवल वापरतात.
शिपिंग कंटेनर नियंत्रित पर्यावरण फार्ममध्ये पुन्हा उत्पन्न करण्यासाठी योग्य आहेत. जगात शेकडो शिपिंग कंटेनर आहेत, परंतु त्यापैकी फक्त काही भाग सेवांमध्ये आहे आणि सक्रियपणे वापरला जातो. उर्वरित बरेच कंटेनर जगभरातील बंदरे आणि स्टोरेज यार्डमध्ये वाया घालवित आहेत.
या कोमल राक्षसांना मजबूत शेतात पुनरुत्पादित करणे केवळ स्वच्छ, निरोगी अन्न तयार करण्यासाठी चांगले नाही तर पर्यावरणाला देखील चांगले आहे.
वास्तविक-जागतिक उपयोगः
जेव्हा मायकल बिसान्ती यांनी मॅसेच्युसेट्सच्या केंब्रिजमध्ये फोर बर्गर उघडले तेव्हा त्याला ठाऊक होते की आपल्याला स्थिरतेच्या प्रखर भावनेने एक रेस्टॉरंट तयार करायचे आहे. सुरुवातीला, याचा अर्थ असा की केवळ नैसर्गिक मानले जाणारे साहित्य खरेदी करणे, तसेच सेंद्रिय आणि स्थानिक शेतातून प्राप्त करणे. पण बिस्नतीला त्वरीत लक्षात आले की “नैसर्गिक” लेबल हे शाश्वत अन्न प्रणालीसाठी रामबाण उपाय नाही - आणि म्हणूनच तो स्वयंपाकघरात अगदी शाश्वत आणि स्थानिक घटक आणण्याचा मार्ग शोधत होता.
आज, ते घटक महत्प्रयासाने जवळ येऊ शकतात - बिस्न्तीला फक्त त्याला आवश्यक असलेल्या सर्व ताज्या कोशिंबिरीसाठी वापरण्यात येणारा कोशिंबिरीसाठी वापरण्यात येणारा एक कोशिंबिरीसाठी वापरण्यात येणारा एक कोशिंबिरीसाठी वापरण्यात येणारा एक कोशिंबिरीसाठी वापरण्यात येणारा एक कोशिंबिरीसाठी वापरण्यात येणारा एक पाला व त्याचे झाड, अरुगुला, मोहरी हिरव्या भाज्या आणि औषधी निवडण्यासाठी फक्त रेस्टॉरंटच्या मागील दरवाजावरुन चालणे आवश्यक आहे. हार्वर्ड आणि एमआयटीच्या मध्यभागी असलेल्या रेस्टॉरंटमध्ये मध्यभागी वसलेले रेस्टॉरंट्स असूनही, थंड बोस्टन हिवाळ्यातील, बिसन्टी ताजे उत्पादनापासून अवघ्या फूट अंतरावर आहे.
त्याचे कारण असे की बिस्पांटी हे पुनर्प्राप्त शिपिंग कंटेनरमध्ये बनविलेल्या नियंत्रित पर्यावरण शेतात उत्पादित देशभरातील शेकडो शेतकर्‍यांपैकी एक आहे.
जीपी सोल्यूशन्स आणि फ्रेट फार्म या शेतात उत्पादन देणार्‍या कंपन्या म्हणतात की पारंपारिक ग्रीनहाऊस आणि रूफटॉप गार्डनमध्येदेखील अभियंता, प्लंबर, इलेक्ट्रीशियन आणि बागायती तज्ञांची कौशल्य आवश्यक असते. आणि रूफटॉप ग्रीनहाऊस देखील महाग आहेत, ज्यास प्रारंभ करण्यासाठी 1 दशलक्ष ते 2 दशलक्ष डॉलर्सची किंमत आहे. तुलनेत जीपी सोल्यूशन्स किंवा फ्रेट फार्म युनिटमधील “ग्रोपॉड” ची किंमत फक्त $ 48,000- $ 100,000 आहे.
या नियंत्रित पर्यावरण फार्ममधील एक महत्त्वाचा फरक म्हणजे सर्वकाही समाविष्ट आहे. युनिटमधील पाण्यापासून ते एलईडी दिवे पर्यंत सर्व काही डिजिटल नियंत्रित केले जाते आणि प्रत्येक युनिट इंटरनेटशीही जोडलेले असते जेणेकरून जगातील कोठूनही त्याचे परीक्षण व व्यवस्थापन करता येईल.
जीपी सोल्यूशन्सचे अध्यक्ष जॉर्ज नॅटझिक म्हणाले, “ग्रोपॉडमध्ये सर्व काही पूर्णपणे समाविष्ट आहे जेणेकरून ते टर्नकी उत्पादन म्हणून वाढेल, तयार होईल.”
हे कंटेनर उत्पादकांना कोणत्याही ठिकाणी स्थानिक खाद्य उत्पादनास अनुमती देतात. आणि उत्पादक इतर घरातील वाढत्या ऑपरेशन्सच्या विपरीत शिपिंग कंटेनर शेतात स्केलेबल असल्याचे दर्शवित आहेत. आपण सिस्टम पार्किंगमध्ये किंवा कोठारात शोधू शकता आणि वाढत्या प्रमाणात वाढवू शकता.
बदलत्या जगाच्या गरजा भागवणे
जगातील 54 टक्के लोकसंख्या शहरी भागात रहात असून ते 2050 पर्यंत वाढून अंदाजे 66 टक्के होण्याची शक्यता आहे, नियंत्रित पर्यावरण शेती उत्पादकांना पर्यावरणावरील आपला शेतीचा ठसा कमी करू देतात आणि शहरी लोकसंख्येच्या अन्नसुरक्षेकडे लक्ष देतात.
किंबल मस्क (एलोनचा भाऊ) म्हणतात की ही उच्च-टेक शिपिंग कंटेनर फार्म "वास्तविक खाद्य क्रांती" तयार करीत आहेत.
शेवटच्या ग्राहकांपर्यंत हायपर-लोकल वाढवून आपल्याला काय मिळेल? उत्तर असे आहे की आपण आत्ता रेस्टॉरंटमध्ये जेवण घेत आहात ते अगदी बाहेर उगवले आणि काही मिनिटांपूर्वी उचलले होते. हे पारंपारिक शेतीच्या अगदी विपरित आहे. जे नेहमीच कठीण असते तेव्हा उचलले जाणारे उत्पादन आठवडे गोदामात बसू शकते आणि स्टोअर आणि रेस्टॉरंट्समध्ये वितरण होण्यापूर्वी पिकण्याकरिता रसायने वापरतात.
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merikheti · 2 years
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अरुगुला की खेती की जानकारी
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पिछले कुछ वर्षों से भारतीय कृषि क्षेत्र में भी विविध प्रकार से कृषि पालन किया जा रहा है। इस विविधता के पीछे सरकार की कुछ बेहतरीन नीतियां और युवा किसानों का कृषि क्षेत्र में निरंतर विश्वास, आने वाले समय में भारतीय कृषि को तकनीक और उत्पादन के स्तर पर विश्व में सर्वश्रेष्ठ बनाने में सहायक हो सकता है।
क्या है अरुगुला ?
अरुगुला या आर्गुला (Arugula) एक प्रकार की सलाद होती है, जिसे भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। हालांकि कुछ युवा और संपन्न किसानों को छोड़कर इस सलाद की फसल का उत्पादन बहुत ही कम क्षेत्रों और कम किसानों के द्वारा किया जाता है।
इसे रॉकेट सलाद (Rocket (Eruca vesicaria)), भूमध्य���ागरीय सलाद (Mediterranean Salad) और गारघिर (Gargeer) के नाम से भी जाना जाता है। वर्तमान में जिम के माध्यम से बॉडीबिल्डिंग करने वाले युवाओं में इस सलाद का सेवन काफी लोकप्रिय हो रहा है।
अरुगुला सलाद की मदद से शरीर में कई सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी की पूर्ति तो होती ही है, साथ ही इसमें पाए जाने वाले प्रोटीन तथा आयरन के गुण स्वास्थ्य प्रेमियों की शारीरिक आवश्यकताओं की मांग को पूरी करने के लिए पर्याप्त होते है।
भारत के उत्तरी पूर्वी राज्यों में इसका उत्पादन अक्टूबर महीने के अंतिम सप्ताह में शुरू किया जाता है, क्योंकि इस फसल के लिए 10 डिग्री से 25 डिग्री सेंटीग्रेड के मध्य तापमान की आवश्यकता होती है, इसीलिए दक्षिणी और ���टीय राज्यों में अरुगुला की उत्पादकता काफी कम देखने को मिलती है।
पिछले कुछ समय से राजस्थान, पंजाब तथा हरियाणा इस सलाद के उत्पादन में सबसे बड़े उत्पादक के रूप में उभर कर सामने आए है। पंजाब में उत्पादित होने वाली अरुगुला सलाद की मांग अमेरिका तथा कनाडा की कई मल्टिनैशनल कम्पनियों में लगातार बढ़ती जा रही है।
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अरुगुला उत्पादन के लिए सर्वश्रेष्ठ मृदा :
वैसे तो इस सलाद का उत्पादन अलग-अलग प्रकार की मृदा में किया जा सकता है, लेकिन दोमट और बलुई दोमट मिट्टी में इसकी उत्पादकता सर्वश्रेष्ठ प्राप्त होती है।
साथ ही किसान भाई ध्यान रखें कि बेहतरीन सिंचाई के साथ तैयार की हुई मिट्टी, इस फसल में लगने वाले रोगों की प्रभाविकता को काफी कम कर सकती है।
अरुगुला की बुवाई करने से पहले किसान सेवा केंद्र के वैज्ञानिकों की मदद से अपने खेत की मिट्टी की अम्लीयता की जांच जरूर करवाएं, क्योंकि सलाद के उत्पादन के लिए मिट्टी की पीएच का मान 6 से लेकर 7 के बीच में होना चाहिए ,अधिक क्षारीयता वाली मिट्टी इसके उत्पादकता को बहुत ही कम कर सकती है।
इस फसल की एक और खास बात यह है कि यह पाले जैसी स्थिति को आसानी से झेल सकती है, लेकिन अधिक धूप पड़ने पर इसके पत्ते सूख जाते है। कई किसान भाई इस सलाद के उत्पादन के दौरान, उसे ढकने के लिए इस्तेमाल में होने वाले कवर और अधिक गर्मी से बचाने के लिए बेहतरीन सिंचाई की व्यवस्था पर पूरा ध्यान देते है।
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अरुगुला सलाद की अलग-अलग किस्म :
वर्तमान में कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा तैयार की गई अरुगुला सलाद की हाइब्रिड किस्में भारतीय किसानों के बीच काफी लोकप्रिय हो रही है। इन्हीं कुछ किस्मों में से एस्ट्रो (Astro), रेड ड्रैगन (Red Dragon), रॉकेट तथा स्लो बोल्ट(Slow Bolt) और वसाबी जैसी किस्में शंकर विधि से तैयार की गई है।
इसी वजह से ऊपर बताई गई सभी किस्में जलवायु में होने वाले सामान्य परिवर्तन को आसानी से झेल सकती है और मौसम में आने वाले उतार-चढ़ाव के दौरान भी बेहतर उत्पादन कर सकती है।
हरियाणा और पंजाब के क्षेत्रों में रेड ड्रैगन तथा वसाबी किस्म की सलाद का उत्पादन सर्वाधिक किया जाता है।
अंतरराष्ट्रीय मार्केट में स्लो बोल्ट किस्म की बढ़ती मांग की वजह से जम्मू कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के कुछ सम्पन्न किसानों के द्वारा इसका उत्पादन भी बड़े स्तर पर शुरू कर दिया गया है।
अरुगुला सलाद की एक खास बात यह भी है कि इसकी लगभग सभी प्रकार की किस्में 40 से 50 दिन में पूरी तरीके से तैयार की जा सकती है।
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कैसे करें बीज उपचार और बुवाई :
अरुगुला सलाद के बीजों में कीटनाशी काफी जल्दी प्रभाव पैदा कर सकते है, इसीलिए इसे इन्हें बोने से पहले बीज उपचार करना आवश्यक हो जाता है।
अपने खेत में इन बीजों को बोने से पहले पूरी तरीके से जर्मिनेट (Germinate) कर लें।
वर्तमान में कई बड़े किसानों के द्वारा इन बीजों को एक मशीन में डालकर इन्हें मोटे दानों के रूप में बदल दिया जाता है, इस विधि को पेलेटाइज़िंग (Pelletizing) कहते है, इसके बाद इन बीजों की बुवाई करने पर इनमें कीटनाशी और कवक जैसी बीमारी फैलने का खतरा बहुत ही कम हो जाता है।
अरुगुला की खेती के लिए मुख्यतया, अंतराल कृषि विधि को अपनाया जाता है, इसे स्टैगर्ड प्लांटिंग (Staggered Planting) भी कहते है।
इस विधि में पौधे के बीजों की एक साथ बुवाई करने के स्थान पर, एक से दो सप्ताह के अंतराल पर लगातार बोया जाता है और इन बीजों को बोते समय दो पंक्तियों के मध्य की दूरी 12 से 15 इंच रखनी होती है, साथ ही दो छोटी पौध के बीच की दूरी कम से कम 6 इंच होनी चाहिए।
पौध के बीच में सीमित दूरी रखने से मृदा कुपोषण और एक पौधे से दूसरे पौधे में फैलने वाली बीमारियों की दर को कम किया जा सकता है।
कौनसे उर्वरकों का करें इस्तेमाल :
किसान भाई यह बात तो जानते ही है कि जैविक उर्वरक किन्हीं भी प्रकार के रासायनिक उर्वरकों से सर्वश्रेष्ठ होते है। यदि आप भी कृषि कार्यों की अतिरिक्त पशुपालन करते है,तो वहां से प्राप्त जैविक खाद का इस्तेमाल उर्वरक के तौर पर कर सकते है।
इसके अलावा कुछ सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए फसल के उगते समय ही नाइट्रोजन का 50 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना उपयुक्त रहता है। साथ ही फास्फोरस और पोटेशियम जैसे रासायनिक उर्वरकों की मदद से इस फसल की जड़ों में होने वाली बीमारियों को कम करने के साथ ही वृद्धि दर को काफी तेज किया जा सकता है।
अरुगुला की पौध लगने से पहले ही खेत की मिट्टी में वैज्ञानिकों के द्वारा सुझाई गई सल्फर की सीमित मात्रा का छिड़काव मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने में सहायक होता है।
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कैसे करें उपयुक्त सिंचाई :
अरुगुला जैसी सलाद वाली फसल को पानी की नियमित स्तर पर आवश्यकता होती है, क्योंकि इस फसल की जड़े बहुत ही जल्दी पानी को सोख लेती है। अलग अलग मौसम के अनुसार लगभग 8 से 10 इंच पानी की आवश्यकता पौधे के अंकुरित होने से लेकर लगभग 50 दिन तक जरूरी होती है।
हल्की और बलुई मिट्टी और अधिक पानी की मांग भी कर सकती है, इसीलिए आप अपने खेत की मिट्टी की वैरायटी के अनुसार पानी की मात्रा निर्धारित कर सकते है।
अरुगुला सलाद में लगने वाली बीमारियां और उनका उपचार :
वैसे तो एक सलाद की फसल होने की वजह से इस फसल की रोगाणुनासक क्षमता सर्वश्रेष्ठ होती है, परंतु फिर भी भारत की मिट्टियों में कई प्रकार के पोषक तत्वों की कमी की वजह से अरुगुला जैसे सलाद में भी कई रोग लग सकते है जैसे कि :
बेक्टेरिया ब्लाइट ( Bacterial Blight ) :
बैक्टीरिया की वजह से होने वाले इस रोग में पौधे की पत्तियां भूरे रंग की हो जाती है और थोड़े दिन बाद इनका रंग पीला पड़ने लगता है। मुख्यतः यह समस्या तब होती है जब रात और दिन के तापमान में अंतराल काफी अधिक हो जाता है।
इस रोग से बचने के लिए अरुगुला के बीजों का सही तरह से उपचार करके ही बुवाई करनी चाहिए। बीजों को बोने से पहले उन्हें एक दिन तक गर्म पानी में डालकर रखना चाहिए, साथ ही आप अपने खेत में रूपांतरित कृषि विधि का प्रयोग भी कर सकते हैं, इस विधि में एक बार एक जगह पर एक फसल उगाने के बाद अगले सीजन में उस जगह प�� दूसरी फसल का उत्पादन किया जाता है।
साथियों बाजार में बिकने वाले कई एंटीबैक्टीरियल रसायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल भी किया जा सकता है।
कोमल फफूंद रोग :
इस रोग में पौधे की पत्तियां फंगस का शिकार हो जाती है और पती के ऊपरी हिस्से तथा उनके तलवे में सफेद रंग का फफूंद लगना शुरू हो जाता है। धीरे-धीरे यह फफूंद पौधे की पतियों को बीच में से काट कर खोखला बना देता है, जिससे फसल की उत्पादकता काफी कम हो जाती है।
इस रोग से बचने के लिए दो पौधों के बीच की जगह पर्याप्त होनी चाहिए, साथ ही निराई गुड़ाई कर पौधे के आसपास उगने वाले खरपतवार को निरंतर समय पर हटाते रहना होगा।
मृदा और मौसम में ज्यादा नमी की वजह से भी यह रोग आसानी से फैलता है, इसलिए नमी को कम करने के लिए खेत को हवादार बनाने के लिए उचित प्रबंधन किया जाना चाहिए।
आशा करते है कि Merikheti.com के द्वारा दी गई इस जानकारी के माध्यम से, किसान भाइयों को एक नई और अच्छा उत्पादन देने वाली फसल के बारे में पता लगा होगा और भविष्य में आप भी अपने खेत में बेहतरीन वैज्ञानिक विधि की मदद से अरुगुला की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा पाएंगे।
Source अरुगुला की खेती की जानकारी
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