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#इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम
merikheti · 2 years
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Natural Farming: प्राकृतिक खेती में छिपे जल-जंगल-जमीन संग इंसान की सेहत से जुड़े इतने सारे राज
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जीरो बजट खेती की दीवानी क्यों हुई दुनिया? नुकसान के बाद दुनिया लाभ देख हैरान ! नीति आयोग ने किया गुणगान
भूमण्डलीय ऊष्मीकरण या आम भाषा में ग्लोबल वॉर्मिंग (Global Warming) से हासिल नतीजों के कारण पर्यावरण संरक्षण (Environmental protection), संतुलन व संवर्धन के प्रति संवेदनशील हुई दुनिया में नेट ज़ीरो एमिशन (net zero emission) यानी शुद्ध शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए देश नैचुरल फार्मिंग (Natural Farming) यानी प्राकृतिक खेती का रुख कर रहे हैं।
प्राकृतिक खेती क्या है? इसमें क्या करना पड़ता है? क्या प्राकृतिक खेती बहुत महंगी है? जानिये इन सवालों के जवाब।
खेत और किसान की जरूरत
इसके लिए यह समझना होगा कि, किसी खेत या किसान के लिए सबसे अधिक जरूरी चीज क्या है? उत्तर है खुराक और स्वास्थ्य देखभाल।मतलब, यदि किसी खेत के लिए जरूरी खुराक यानी उसके पोषक तत्व और पादप संरक्षण सामग्री का प्रबंध प्राकृतिक तरीके से किया जाए, तो उसे ही प्राकृतिक खेती (Natural Farming) कहते हैं।
प्राकृतिक खेती क्या है?
प्राकृतिक खेती, प्रकृति के द्वारा स्वयं के विस्तार के लिए किए जाने वाले प्रबंधों का मानवीय अध्ययन है। इसमें कृषि विज्ञान ने किसानी में उन तरीकों कोे अपनाना श्रेष्यकर समझा है, जिसे प्रकृति खुद अपने संवर्धन के लिए करती है।
प्राकृतिक खेती में किसी रासायनिक पदार्धों के अमानक प्रयोग के बजाए, प्रकृति आधारित संवर्धन के तरीके अपनाए जाते हैं। इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) या एकीकृत कृषि प्रणाली, प्राकृतिक खेती का वह तरीका है, जिसकी मदद से प्रकृति के साथ, प्राकृतिक तरीके से खेती किसानी कर किसान कृषि आय में उल्लेखनीय वृद्धि कर सकता है।ये भी पढ़ें: केमिस्ट्री करने वाला किसान इंटीग्रेटेड फार्मिंग से खेत में पैदा कर रहा मोती, कमाई में कई गुना वृद्धि!
प्राकृतिक संसाधनों के प्रति देशों की सभ्यता का प्रमाण तय करने वाले नेट ज़ीरो एमिशन (net zero emission) यानी शुद्ध शून्य उत्सर्जन अलार्म, के कारण देशों और उनसे जुड़े किसानों को कृषि के तरीकों में बदलाव करना होगा। COP26 summit, Glasgow, में भारत ने 2070 तक, अपने नेट ज़ीरो एमिशन को शून्य करने का वादा किया है।
इसी प्रयास के तहत भारत में केंद्र एवं राज्य सरकार, इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) को अपनाने के लिए किसानों को प्रेरित कर रही हैं। प्राकृतिक खेती में सिंचाई, सलाह, संसाधन के प्रबंध के लिए किसानों को प्रोत्साहन योजनाओं के जरिए लाभान्वित किया जा रहा है।ये भी पढ़ें: प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए अब यूपी में होगा बोर्ड का गठन
प्राकृतिक खेती के लाभ
प्राकृतिक खेती के लाभों की यदि बात करें, तो इसमें घरेलू संसाधनों से आवश्यक पोषक तत्व और पादप संरक्षण सामग्री तैयार की जा सकती है।
किसान इस प्रकृति के साथ वाली किसानी की विधि से कृषि उत्पादन लागत में भारी कटौती कर कृषि उपज से होने वाली साधारण आय को अच्छी-खासी रिटर्न में तब्दील कर सकते हैं। प्राकृतिक खेती से खेत में उर्वरक और अन्य रसायनों की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।
प्राकृतिक खेती की जरूरत
एफएओ 2017, खाद्य और कृषि का भविष्य – रुझान और चुनौतियां शीर्षक आधारित रिपोर्ट के अनुसार नीति आयोग (NITI Aayog) ने मानवीय जीवन क्रम से जुड़े कुछ अनुमान, पूर्वानुमान प्रस्तुत किए हैं।
नीति आयोग द्वारा प्रस्तुत जानकारी के अनुसार, विश्व की आबादी वर्ष 2050 तक लगभग 10 अरब तक हो जाने का पूर्वानुमान है। मामूली आर्थिक विकास की स्थिति में, इससे कृषि मांग में वर्ष 2013 की मांग की तुलना में 50% तक की वृद्धि होगी।
नीति आयोग ने खाद्य उत्पादन विस्तार और आर्थिक विकास से प्राकृतिक पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव पर चिंता जताई है।
बीते कुछ सालों ��ें वन आच्छादन और जैव विविधता में आई उल्लेखनीय कमी पर भी आयोग चिंतित है।
रिपोर्ट के अनुसार, उच्च इनपुट, संसाधन प्रधान खेती रीति के कारण बड़े पैमाने पर वनों की कटाई, पानी की कमी, मृदा क्षरण और ग्रीनहाउस गैस का उच्च स्तरीय उत्सर्जन होने से पर्यावरण संतुलन प्रभावित हुआ है।
वर्तमान में बेमौसम पड़ रही तेज गर्मी, सूखा, बाढ़, आंधी-तूफान जैसी व्याथियों के समाधान के लिए कृषि-पारिस्थितिकी, कृषि-वानिकी, जलवायु-स्मार्ट कृषि और संरक्षण कृषि जैसे ‘समग्र’ दृष्टिकोणों पर देश, सरकार एवं किसानों को मिलकर काम करना होगा।
खेती किसानी की दिशा में अब एक समन्वित परिवर्तनकारी प्रक्रिया को अपनाने की जरूरत है।
भविष्य की पीढ़ियों का ख्याल
हमें स्वयं के साथ अपनी आने वाली पीढ़ियों का भी यदि ख्याल रखना है, धरती पर यदि भविष्य की पीढ़ी के लिए जीवन की गुंजाइश शेष छोड़ना है तो इसके लिए प्राकृतिक खेती ही सर्वश्रेष्ठ विचार होगा।ये भी पढ़ें: देश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा, 30 फीसदी जमीन पर नेचुरल फार्मिंग की व्यवस्था
यह वह विधि है, जिसमें कृषि-पारिस्थितिकी के उपयोग के परिणामस्वरूप भावी पीढ़ियों की जरूरतों से समझौता किए बगैर, बेहतर पैदावार हासिल होती है। एफएओ और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने भी प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए तमाम सहयोगी योजनाएं जारी की हैं।
प्राकृतिक खेती (Natural Farming) के लाभों को 9 भागों में रखा जा सकता है :
1. उपज में सुधार 2. रासायनिक आदान अनुप्रयोग उन्मूलन 3. उत्पादन की कम लागत से आय में वृद्धि 4. बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चितिकरण 5. पानी की कम खपत 6. पर्यावरण संरक्षण 7. मृदा स्वास्थ्य संरक्षण एवं बहाली 8. पशुधन स्थिरता 9.रोजगार सृजन
नो केमिकल फार्मिंग
प्राकृतिक खेती को रासायनमुक्त खेती भी कहा जाता है। इसमें केवल प्राकृतिक आदानों का उपयोग किया जाता है। कृषि-पारिस्थितिकी तंत्र पर आधारित, यह एक विविध कृषि प्रणाली है। इसमें फसलों, पेड़ों और पशुधन एकीकृत रूप से कृषि कार्य में प्रयुक्त होते हैं। इस समन्वित एकीकरण से कार्यात्मक जैव विविधता के सर्वोत्तम उपयोग में किसान को मदद मिलती है।ये भी पढ़ें: प्राकृतिक खेती ही सबसे श्रेयस्कर : ‘सूरत मॉडल’
प्रकृति आधारित विधि
अपने उद्भव से मौजूद प्रकृति संवर्धन की वह विधि है जिसे मानव ने बाद में पहचान कर अपनी सुविधा के हिसाब से प्राकृतिक खेती का नाम दिया। कृषि की इस प्राचीन पद्धति में भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखा जाता है।
प्राकृतिक खेती में रासायनिक कीटनाशक का उपयोग वर्जित है। जो तत्व प्रकृति में पाए जाते है, उन्हीं को खेती में कीटनाशक के रूप में अपनाया जाता है।
एक तरह से चींटी, चीटे, केंचुए जैसे जीव इस खेती की सफलता का मुख्य आधार होते हैं। जिस तरह प्रकृति बगैर मशीन, फावड़े के अपना संवर्धन करती है ठीक उसी युक्ति का प्रयोग प्राकृतिक खेती में किया जाता है।
ये चार सिद्धांत प्राकृतिक खेती के आधार
प्राकृतिक कृषि के सीधे-साधे चार सिद्धांत हैं, जो किसी को भी आसानी से समझ में आ सकते हैं।
ये चार सिद्धांत हैं:
हल का उपयोग नहीं, खेत पर जुताई-निंदाई नहीं, बिलकुल प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र की तरह की जाने वाली इस खेती में जुताई, निराई की जरूरत नहीं होती।
किसी तरह का कोई रासायनिक उर्वरक या फिर पहले से तैयार की हुई खाद का उपयोग नहीं
हल या शाक को नुकसान पहुंचाने वाले किसी औजार द्वारा कोई निंदाई, गुड़ाई नहीं
रसायनों पर तो किसी तरह की कोई निर्भरता बिलकुल नहीं।
जीरो बजट खेती
अब जिस खेती में निराई गुड़ाई की जरूरत न हो, तो उसे जीरो बजट की खेती ही कहा जा सकता है। प्राकृतिक खेती को ही जीरो बजट खेती भी कहा जाता है।
प्राकृतिक खेती में प्रकृति प्रदत्त संसाधनों को लाभकारी बनाने के तरीके निहित हैं। किसी बाहरी कृत्रिम तरीके से निर्मित रासायनिक उत्पाद का उपयोग प्राकृतिक खेती में वर्जित है। जीरो बजट वाली प्राकृतिक खेती में गाय के गोबर एवं गौमूत्र का उपयोग कर भूमि की उर्वरता बढ़ाई जाती है।
शून्य उत्पादन लागत की प्राकृतिक खेती पद्धति के लिए अलग से कोई इनपुट खरीदना जरूरी नहीं है। जापानियों द्वारा प्रकाश में लाई गई इस विधि की खेती में पारंपरिक तरीकों के विपरीत केवल 10 प्रतिशत पानी की दरकार होती है।
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nationalnewsindia · 2 years
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dmchandresh · 4 years
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इंटीग्रेटेड फार्मिंग: छोटे से खेत में भी कमा सकते हैं लाखों रुपये
इंटीग्रेटेड फार्मिंग: छोटे से खेत में भी कमा सकते हैं लाखों रुपये
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इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम से होगा आय में कई गुना इजाफा एक ही किसान अपने खेत पर कई तरह के कार्य कर ना केवल अपनी आय में इजाफा कर सकता है बल्कि देश की प्रगति में भी सहायक बन सकता है. सरकार का लक्ष्य साल 2022 तक किसान की आय दोगुनी करना है लेकिन एकीकृत खेती से आय कई गुना की जा सकती है.
News18Hindi
Last Updated: October 22, 2020, 4:21 PM IST
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नई दिल्ली.प्रधानमंत्री…
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merikheti · 2 years
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जानिये PMMSY में मछली पालन से कैसे मिले लाभ ही लाभ
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मत्स्य पालन कर PMMSY में ऐसे उठाएं 60 फीसदी सब्सिडी का लाभ
खेती किसानी में इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) या एकीकृत कृषि प्रणाली के चलन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारें किसानों को परंपरागत किसानी के अलावा खेती से जुड़ी आय के अन्य विकल्पों को अपनाने के लिए प्रेरित कर रही हैं। मछली पालन भी इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) का ही एक हिस्सा है।
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना
इस प्रोत्साहन की कड़ी में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (Pradhan Mantri Matsya Sampada Yojana)(PMMSY) भी, किसान की आय में वृद्धि करने वाली योजनाओं में से एक योजना है। इस योजना का लाभ लेकर किसान मछली पालन की शुरुआत कर अपनी कृषि आय में इजाफा कर सकते हैं।
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना क्या है, किस तरह किसान इस योजना का लाभ हासिल कर सकता है, इस बारे में जानिये मेरी खेती के साथ।
केंद्र और राज्य सरकार की प्राथमिकता देश के किसानों की आय में वृद्धि करने की है। खेती, मछली एवं पशु पालन के अलावा जैविक खाद आदि के लिए सरकार की ओर से कृषक मित्रों को उपकरण, सलाह, बैंक ऋण आदि की मदद प्रदान की जाती है।
किसानों की आय को बढ़ाने में मछली पालन (Fish Farming) भी अहम रोल निभा सकता है। ऐसे में आय के इस विकल्प को भी किसान अपनाएं, इसलिए सरकारों ने मछली पालन मेें किसान की मदद के लिए तमाम योजनाएं बनाई हैं।
प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के शुभारम्भ अवसर पर प्रधानमंत्री का सम्बोधन
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कम लागत में तगड़ा मुनाफा पक्का
मछली पालन व्यवसाय में स्थितियां अनुकूल रहने पर कम लागत में तगड़ा मुनाफा पक्का रहता है। किसान अपने खेतों में मिनी तालाब बनाकर मछली पालन के जरिए कमाई का अतिरिक्त जरिया बना सकते हैं।
मछली पालन के इच्छुक किसानों की मदद के लिए पीएम मत्स्य संपदा योजना बनाई गई है। इस योजना का लाभ लेकर किसान मछली पालन के जरिए अपनी निश्चित आय सुनिश्चित कर सकते हैं।
PMMSY के लाभ ही लाभ
पीएमएमएसवाय (PMMSY) यानी प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना में किसानों के लिए फायदे ही फायदे हैं।
सबसे बड़ा फायदा ये है कि, इसमें पात्र किसानों को योजना में सब्सिडी प्रदान की जाती है। सब्सिडी मिलने से योजना से जुड़ने वाले पर धन की उपलब्धता का बोझ कम हो जाता है।
खास तौर पर अनुसूचित जाति से जुड़े हितग्राही को अधिक सब्सिडी प्रदान की जाती है। इस वर्ग के महिला और पुरुष किसान हितग्राही को PMMSY के तहत 60 फीसदी तक की सब्सिडी प्रदान की जाती है।
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से जुड़ने वाले अन्य वर्ग के किसानों के लिए 40 फीसदी सब्सिडी का प्रबंध किया गया है।
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना लोन, वो भी प्रशिक्षण के साथ
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत मछली पालन की शुरुआत करने वाले किसानों को सब्सिडी के लाभ के साथ ही मत्स्य पालन के बारे में प्रशिक्षित भी किया जाता है। अनुभवी प्रशिक्षक योजना के हितग्राहियों को पालन योग्य मुफाकारी मछली की प्रजाति, मत्स्य पालन के तरीकों, बाजार की उपलब्धता आदि के बारे में प्रशिक्षित करते हैं।
कैसे जुड़ें PMMSY योजना से
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत लाभ लेने के इच्छुक किसान मित्र पीएम किसान योजना की अधिकृत वेबसाइट पर आवेदन कर सकते हैं।और अधिक जानकारी के लिए, भारत सरकार की आधिकारिक वेबसाइट को देखें :भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के मात्स्यिकी विभागमत्स्य पालन विभाग (Department of Fisheries) - PMMSY
पीएम मत्स्य संपदा योजना के साथ किसान नाबार्ड से भी मदद जुटा सकता है। मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए लागू पीएम मत्स्य संपदा योजना के अलावा, किसान हितग्राही को मछली पालन का व्यवसाय शुरू करने के लिए सस्ती दरों पर बैंक से लोन दिलाने में भी मदद की जाती है।
आधुनिक तकनीक से बढ़ा मुनाफा
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से जुड़े झारखंड के कई किसानों की आय में उल्लेखनीय रूप से सुधार हुआ है। राज्य के कई किसान इस योजना के तहत बॉयोफ्लॉक (Biofloc) और आरएएस (Recirculating aquaculture systems (RAS)) जैसी आधुनिक तकनीक अपनाकर मछली पालन से भरपूर मुनाफा कमा रहे हैं।राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड (NATIONAL FISHERIES DEVELOPMENT BOARD), भारत सरकार द्वारा जारी लेख "जलकृषि का आधुनिक प्रचलन : बायोफ्लॉक मत्स्य कृषि" की पीडीएफ फाइल डाउनलोड करने के लिये, यहां क्लिक करें - बायोफ्लॉक मत्स्य कृषि 
पीएम मत्स्य संपदा योजना में किसानों को रंगीन मछली पालन के लिए भी अनुदान की मदद प्रदान की जाती है। साथ ही नाबार्ड भी टैंक या तालाब निर्माण के लिए 60 फीसदी अनुदान प्रदान करता है।
ऐसे सुनिश्चित करें मुनाफा
खेत में मछली पालन का जो कारगर तरीका इस समय प्रचलित है वह है तालाब या टैंक में मछली पालन। इन तरीकों की मदद से किसान मुख्य ���सल के साथ ही मत्स्य पालन से भी कृषि आय में इजाफा कर सकते हैं।
मत्स्य पालन विशेषज्ञों के मान से 20 लाख की लागत से तैयार तालाब या टैंक से किसान बेहतरीन कमाई कर सकते हैं।ये भी पढ़ें: केमिस्ट्री करने वाला किसान इंटीग्रेटेड फार्मिंग से खेत में पैदा कर रहा मोती, कमाई में कई गुना वृद्धि!
विशेषज्ञों के अनुसार मछली पालन में अधिक कमाई के लिए किसानों को फीड आधारित मछली पालन की विधि को अपनाना चाहिए। इस तरीके से मछलियों की अच्छी बढ़त के साथ ही वजन भी बढ़िया होता है। यदि मछली की ग्रोथ और वजन बढ़िया हो तो किसान की तगड़ी कमाई भी निश्चित है।
प्रचलित मान से किसान को एक लाख रुपए के मछली के बीज पर पांच से छह गुना ज्यादा लाभ मिल सकता है।
किसान बाजार में अच्छी मांग वाली मछलियों का पालन कर भी अपनी नियमित कमाई में यथेष्ठ वृद्धि कर सकते हैं। किसानों को पंगास या मोनोसेक्स तिलापिया प्रजाति की मछलियों का पालन करने की सलाह मत्स्य पालन के विशेषज्ञों ने दी है।
Source जानिये PMMSY में मछली पालन से कैसे मिले लाभ ही लाभ
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merikheti · 2 years
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ऐसे मिले धान का ज्ञान, समझें गन्ना-बाजरा का माजरा, चखें दमदार मक्का का छक्का
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खरीफ की मुख्य फसलों की सफल खेती के लिये कृषि वैज्ञानिकों व अनुभवी किसानों के सुझाव
पैडी (Paddy) यानी धान, शुगरकैन (sugarcane) अर्धात गन्ना, बाजरा (millet) और मक्का (maize) की अच्छी पैदावार पाने के लिए, भूमि सेवक किसान यदि मात्र कुछ मूल सूत्रों को अमल में ले आएं, तो कृषक को कभी भी नुकसान नहीं रहेगा। यदि होगा भी तो बहुत आंशिक।
धान, गन्ना, जवार, बाजरा, मक्का, उरद, मुंग की अच्छी पैदावार : समझें अनुभवी किसानों से
स्यालू में धान (dhaan/Paddy)
स्यालू यानी कि खरीफ की मुख्य फसल (Major Kharif Crops) की यदि बात की जाए तो वह है धान (dhaan/Paddy/Rice)। इस मुख्य फसल की बीज या फिर रोपा (इसकी सलाह अनुभवी किसान देते हैं) आधारित रोपाई, जूलाई महीने में हर हाल में पूरा कर लेने की मुंहजुबानी सलाह किसानों से मिल जाएगी।
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अच्छी धान के लिए कृषि वैज्ञानिकों के मान से धान (dhaan) के खेत (Paddy Farm) में यूरिया (नाइट्रोजन) की पहली तिहाई मात्रा का उपयोग धान रोपण के 58 दिन बाद करना हितकारी है। क्योंकि इस समय तक पौधे जमीन में अच्छी तरह से जड़ पकड़ चुके होते हैं।
रोपण के सप्ताह उपरांत खेत में रोपण से वंचित एवं सूखकर मरने वाले पौधों वाले स्थान पर, फिर से पौधों का रोपण करने से विरलेपन के बचाव के साथ ही जमीन का पूर्ण सदुपयोग भी हो जाता है।
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धान रोपण युक्ति
तकरीबन 20 से 25 दिन में तैयार धान की रोपाई खेत में की जा सकती है। इस दौरान पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेंटीमीटर तथा पौध से पौध की दूरी 10 सेमी रखने की सलाह कृषि वैज्ञानिक देते हैं। उत्कृष्ट उत्पादन के लिए प्रति हेक्टेयर 100 किग्रा नाइट्रोजन (Urea), 60 किग्रा फास्फोरस, 40 किग्रा पोटाश और 25 किग्रा जिंक सल्फेट डालने की सलाह कृषि सलाहकारों की है।
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गन्ने की खेती (Sugarcane Farming)
गले की तरावट, मद्य, मीठे गुड़ में मददगार शुगरकैन फार्मिंग (Sugarcane Farming), यानी गन्ने की खेती में भी कुछ बातों का ख्याल रखने पर दमदार और रस से भरपूर वजनदार गन्नों की फसल मिल सकती है।
जैसे गन्ने की पछेती बुवाई (रबी फसल कटने के बाद) करने की दशा में, खेत में समय-समय पर सिंचाई, निराई एवं गुड़ाई अति जरूरी है। फसल कीड़ों-मकोड़ों और बीमारियों के प्रकोप से ग्रसित होने पर रासायनिक, जैविक या अन्य विधियों से नियंत्रित किया जा सकता है।
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अत्यधिक वर्षा, तूफान या तेज हवा के दबाव में गन्ने के फसल जमीन पर बिछने/गिरने का खतरा मंडराता है। ऐसे में जुलाई-अगस्त के महीने में ही, दो कतारों मध्य कुंड बनाकर निकाली गई मिट्टी को ऊपर चढ़ाने से ऐहतियातन बचाव किया जा सकता है।
उड़द, मूंग में सावधानी
बारिश शुरू होते ही उड़द एवं मूंग की बुवाई शुरू कर देना चाहिए। अनिवार्य बारिश में देर होने की दशा में पलेवा कर इनकी बुवाई जुलाई के प्रथम पखवाड़े, यानी पहले पंद्रह दिनों में खत्म करने की सलाह दी जाती है।
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उड़द, मूंग की बुवाई सीड ड्रिल या फिर अपने पुश्तैनी देसी हल से कर सकते हैं। इस दौरान ख्याल रहे कि 30-45 सेमी दूरी पर बनी पक्तियों में बुवाई फसल के लिए कारगर होगी। इसके साथ ही निकाई से पौधे से पौधे के बीच की दूरी 7 से 10 सेमी कर लेनी चाहिए।
उड़द, मूंग की उपलब्ध किस्मों के अनुसार उपयुक्त बीज दर 15 से 20 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर मानी गई है। दोनों फसलों में प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किग्रा फास्फोरस तथा 20 किग्रा गंधक का मानक रखने की सलाह कृषि वैज्ञानिक एवं सलाहकार देते हैं।
भरपूर बाजरा (Bajra) उगाने का यह है माजरा
बाजरा के भरपूर उत्पादन के लिए कई प्लस पॉइंट हैं। अव्वल तो बाजरा (Bajra) के लिए अधिक उपजाऊ मिट्टी की जरूरी नहीं, बलुई-दोमट मिट्टी में यह पनपता है। इसकी भरपूर पैदावार के लिए सिंचित क्षेत्र के लिए नाइट्रोजन 80 किलोग्राम, फॉस्फोरस और पोटाश 40-40 किलोग्राम और बारानी क्षेत्रों के लिए नाइट्रोजन-60 किग्रा, फॉस्फोरस व पोटाश 30-30 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करने की सलाह जानकार देते हैं।
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सभी परिस्थितियों में नाइट्रोजन की मात्रा आधी तथा फॉस्फोरस एवं पोटाश पूरी मात्रा में तकरीबन 3 से 4 सेंमी की गहराई में डालना चाहिए। बचे हुए नाइट्रोजन की मात्रा अंकुरण से 4 से 5 हफ्ते बाद मिट्टी में अच्छी तरह मिलाने से फसल को सहायता मिलती है।
ज्वार का ज्वार, मक्का (Maize) का पंच
देशी अंदाज में भुंजा भुट्टा, तो फूटकर पॉपकॉर्न तक कई रोचक सफर से गुजरने वाले मक्के की दमदार पैदावार का पंच यह है, कि मक्का (Maize) व बेबी कॉर्न की बुवाई के लिए मानसून उपयुक्त माना गया है।
उत्तर भारत में इसकी बुवाई की सलाह मध्य जुलाई तक खत्म कर लेने की दी जाती है। मक्के की ताकत की यही बात है कि इसे सभी प्रकार की मिट्टी में लगाया जा सकता है। हालांकि बलुई-दोमट और दोमट मिट्टी अच्छी बढ़त एवं उत्पादकता में सहायक हैं।
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जोरदार, धुआंधार ज्वार की पैदावार का ज्वार लाने के लिए बारानी क्षेत्रों में मॉनसून की पहली बारिश के हफ्ते भर भीतर ज्वार की बुवाई करना फलदायी है। ज्वार के मामले में एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में बुवाई के लिए 12 से 15 किलोग्राम ज्वार के बीज की जरूरत होगी।
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merikheti · 2 years
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केमिस्ट्री करने वाला किसान इंटीग्रेटेड फार्मिंग से खेत में पैदा कर रहा मोती, कमाई में कई गुना वृद्धि!
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एकीकृत कृषि प्रणाली (इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम)
जिस तरह मौजूदा दौर के क्रिकेट मेें ऑलराउंड प्रदर्शन अनिवार्य हो गया है, ठीक उसी तरह खेती-किसानी-बागवानी में भी मौजूद विकल्पों के नियंत्रित एवं समुचित उपयोग एवं दोहन का भी चलन इन दिनों देखा जा रहा है। क्रिकेट के हरफनमौला प्रदर्शन की तरह, खेती किसानी में भी अब इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) का चलन जरूरी हो गया है।
क्या कारण है कि प्रत्येक किसान उतना नहीं कमा पाता, जितना आधुनिक तकनीक एवं जानकारियों के समन्वय से कृषि करने वाले किसान कमा रहे हैं।
सफल किसानों में से किसी ने जैविक कृषि को आधार बनाया है, तो किसी ने पारंपरिक एवं आधुनिक किसानी के सम्मिश्रण के साथ अन्य किसान मित्रों के समक्ष सफलता के आदर्श स्थापित किए हैं। ऐसी ही युक्ति है इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) यानी ‘एकीकृत कृषि प्रणाली’। यह कैसी प्रणाली है और कैसे काम करती है, जानिये।
कुछ हट कर काम किसानी करने वालों की फेहरिस्त में शामिल हैं, बिहार के बेगूसराय में रहने वाले 48 वर्षीय प्रगतिशील किसान जय शंकर कुमार भी।
पहले अपने खेत पर काम कर सामान्य कमाई करने वाले केमिस्ट्री में पोस्ट ग्रेजुएट जय शंकर की सालाना कमाई में अब इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) से किसानी करने के कारण आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि हुई है।
साधारण किसानी करते थे पहले
सफलता की नई इबारत लिखने वाले जय शंकर सफल होने के पहले तक पारंपरिक तरीके से पारंपरिक फसलों की पैदावार करते थे। इन फसलों के तहत वे मक्का, गेहूं, चावल और मोटे अनाज आदि की फसलें ही अपने खेत पर उगाते थे। इन फसलों से हासिल कम मुनाफे ने उन्हें परिवार के भरण-पोषण के लिए बेहतर मुनाफे के विकल्प की तलाश के लिए प्रेरित किया।
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ऐसे मिली सफलता की राह
खेती से मुनाफा बढ़ाने की चाहत में जय शंकर ने कई प्रशिक्षण एवं जागरूकता कार्यक्रमों में सहभागिता की। इस दौरान उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके), बेगूसराय के वैज्ञानिकों से अपनी आजीविका में सुधार करने के लिए सतत संपर्क साधे रखा।
पता चली नई युक्ति
कृषि सलाह आधारित कई सेमिनार अटैंड करने के बाद जय शंकर को इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) के बारे में पता चला।
इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम क्या है ?
इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) यानी एकीकृत कृषि प्रणाली खेती की एक ऐसी पद्वति है, जिसके तहत किसान अपने खेत से सम्बंधित उपलब्ध सभी संसाधनों का इस्तेमाल करके कृषि से अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करता है।
कृषि की इस विधि से छोटे व मझोले किसानों को अपनी घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ कृषि से अत्यधिक लाभ प्राप्त होता है। वहीं दूसरी ओर फसल उत्पादन और अवशेषों की रीसाइकलिंग (recycling) के द्वारा टिकाऊ फसल उत्पादन में मदद मिलती है।
इस विधि के तहत मुख्य फसलों के साथ दूसरे खेती आधारित छोटे उद्योग, पशुपालन, मछली पालन एवं बागवानी जैसे कार्यों को किया जाता है।
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पकड़ ली राह
जय शंकर को किसानी का यह फंडा इतना बढ़िया लगा कि, उन्होंने इसके बाद इस विधि से खेती करने की राह पकड़ ली।
एकीकृत प्रणाली के तहत उन्होंने मुख्य फसल उगाने के साथ, बागवानी, पशु, पक्षी एवं मत्स्य पालन, वर्मीकम्पोस्ट बनाने पर एक साथ काम शुरू कर दिया। उन्हें केवीके ने भी तकनीकी रूप से बहुत सहायता प्रदान की।
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मोती का उत्पादन (Pearl Farming)
खेत पर लगभग 0.5 हेक्टेयर क्षेत्र में मछली पालने के लिये बनाए गए तालाब के ताजे पानी में, वे मोती की भी खेती कर रहे हैं।
वर्मीकम्पोस्ट के लिए मदद
जय शंकर की वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन में रुचि और समर्पण के कारण कृषि विभाग, बिहार सरकार ने उन्हें 25 लाख रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की है। वे अब हर साल 3000 मीट्रिक टन से ज्यादा वर्मीकम्पोस्ट उत्पादित कर रहे हैं।
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बागवानी में भी आजमाए हाथ
बागवानी विभाग ने भी जय शंकर की लगन को देखकर पॉली हाउस और बेमौसमी सब्जियों की खेती के अलावा बाजार में जल्द आपूर्ति हेतु पौधे लगाने के लिए जरूरी मदद प्रदान की।
केवीके, बेगूसराय से भी उनको तकनीकी रूप से जरूरी मदद मिली। केवीके वैज्ञानिकों ने एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल में उन्हें सुधार और अपडेशन के लिए समय-समय पर जरूरी सुझाव देकर सुधार करवाए।
कमाई में हुई वृद्धि
एक समय तक जय शंकर की पारिवारिक आय तकरीबन 27000 रुपये प्रति माह या 3.24 लाख रु प्रति वर्ष थी। अब एकीकृत कृषि प्रणाली से खेती करने के कारण यह अब कई गुना बढ़ गयी है।
मोती की खेती, मत्स्य पालन, वर्मीकम्पोस्ट, बागवानी और पक्षियों के पालन-विक्रय के समन्वय से अब उनकी यही आय प्रति माह 1 लाख रुपये या प्रति वर्ष 12 लाख से अधिक हो गई है।
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खेत में मोती की चमक बिखेरने वाले जय शंकर अब दूसरों की तरक्की की राह में भी उजाला कर रहे हैं। वे अब बेगूसराय जिले के केवीके से जुड़े ग्रामीण युवाओं की मेंटर ट्रेनर के रूप में मदद करते हैं। साधारण नजर आने वाला उनका खेत अब ‘रोल मॉडल’ के रूप में कृषि मित्रों की राह प्रशस्त कर रहा है। उनका मानना है, दूसरे किसान भी उनकी तरह अपनी कृषि कमाई में इजाफा कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए उनको, उनकी तरह समर्पण, लगन, सब्र एवं मेहनत भी करनी होगी।
Source केमिस्ट्री करने वाला किसान इंटीग्रेटेड फार्मिंग से खेत में पैदा कर रहा मोती, कमाई में कई गुना वृद्धि!
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merikheti · 2 years
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सहफसली तकनीक से किसान अपनी कमाई कर सकते हैं दोगुना
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किसानों को परंपरागत खेती में लगातार नुकसान होता आ रहा है, जिसके कारण जहाँ किसानों में आत्महत्या की प्रवृति बढ़ रही है, वहीं किसान खेती से विमुख भी होते जा रहे हैं. इसको लेकर सरकार भी चिंतित है. लगातार खेती में नुकसान के कारण किसानों का खेती से मोहभंग होना स्वभाविक है, इसी के कारण सरकार आर्थिक तौर पर मदद करने के लिए कई योजनाओं पर काम कर रही है.
सरकार की तरफ से किसानों को खेती में सहफसली तकनीक (multiple cropping or multicropping or intercropping) अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. विशेषज्ञों की मानें, तो ऐसा करने से जमीन की उत्पादकता बढ़ती है, साथ ही एकल फसली व्यवस्था या मोनोक्रॉपिंग (Monocropping) तकनीक की खेती के मुकाबले मुनाफा भी दोगुना हो जाता है.ये भी पढ़ें: किसान भाई ध्यान दें, खरीफ की फसलों की बुवाई के लिए नई एडवाइजरी जारी
सहफसली खेती के फायदे
परंपरागत खेती में किसान खरीफ और रवि के मौसम में एक ही फसल लगा पाते हैं. किसानों को एक फसल की ही कीमत मिलती है. जो मुनाफा होता है, उसी में उनकी मेहनत और कृषि लागत भी होता है. जबकि, सहफसली तकनीक में किसान मुख्य फसल के साथ अन्य फसल भी लगाते हैं. स्वाभाविक है, उन्हें जब दो या अधिक फसल एक ही मौसम में ��िलेगा, तो आमदनी भी ज्यादा होगी. किसानों के लिए सहफसली खेती काफी फायदेमंद होता है.
कृषि वैज्ञानिक लंबी अवधि के पौधे के साथ ही छोटी अवधि के पौधों को लगाने का प्रयोग करने की सलाह किसानों को देते हैं. किसानों को सहफसली खेती करनी चाहिए, ऐसा करने से मुख्य फसल के साथ-साथ अन्य फसलों का भी मुनाफा मिलता है, जिससे आमदनी दुगुनी हो सकती है.ये भी पढ़ें: किसानों के कल्‍याण और देश की प्रगति में कृषि वैज्ञानिकों की भूमिका अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण है : श्री नरेन्‍द्र सिंह तोमर ने वैज्ञानिक चयन मंडल के कार्यालय भवन का शिलान्‍यास किया
धान की फसल के साथ लगाएं कौन सा पौधा
सहफसली तकनीक के बारे में कृषि विशेषज्ञ डॉक्टर दयाशंकर श्रीवास्तव सलाह देते हैं, कि धान की खेती करने वाले किसानों को खेत के मेड़ पर नेपियर घास उगाना चाहिए. इसके अलावा उसके बगल में कोलस पौधों को लगाना चाहिए.
नेपियर घास पशुपालकों के लिए पशु आहार के रूप में दिया जाता है, जिससे दुधारू पशुओं का दूध उत्पादन बढ़ता है और उसका लाभ पशुपालकों को मिलता है, वहीं घास की अच्छी कीमत भी प्राप्त की जा सकती है. बाजार में भी इसकी अच्छी कीमत मिलती है.ये भी पढ़ें: अपने दुधारू पशुओं को पिलाएं सरसों का तेल, रहेंगे स्वस्थ व बढ़ेगी दूध देने की मात्रा
गन्ना, मक्की, अरहर और सूरजमुखी के साथ लगाएं ये फसल
पंजाब हरियाणा और उत्तर भारत समेत कई राज्यों में किसानों के बीच आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है और इसका कारण लगातार खेती में नुकसान बताया जाता है. इसका कारण यह भी है की फसल विविधीकरण नहीं अपनाने के कारण जमीन की उत्पादकता भी घटती है और साथ हीं भूजल स्तर भी नीचे गिर जाता है. ऐसे में किसानों के सामने सहफसली खेती एक बढ़िया विकल्प बन सकता है.
इस विषय पर दयाशंकर श्रीवास्तव बताते हैं कि सितंबर से गन्ने की बुवाई की शुरुआत हो जाएगी. गन्ना एक लंबी अवधि वा���ा फसल है. इसके हर पौधों के बीच में खाली जगह होता है. ऐसे में किसान पौधों के बीच में लहसुन, हल्दी, अदरक और मेथी जैसे फसलों को लगा सकते हैं.
इन सबके अलावा मक्का के फसल के साथ दलहन और तिलहन की फसलों को लगाकर मुनाफा कमाया जा सकता है.
सूरजमुखी और अरहर की खेती के साथ भी सहफसली तकनीक को अपनाकर मुनाफा कमाया जा सकता है.
कृषि वैज्ञानिक सह्फसली खेती के साथ-साथ इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) यानी ‘एकीकृत कृषि प्रणाली’ की भी सलाह देते हैं. इसके तहत खेतों के बगल में मुर्गी पालन, मछली पालन आदि का भी उत्पादन और व्यवसाय किया जा सकता है, ऐसा करने से कम जगह में खेती से भी बढ़िया मुनाफा कमाया जा सकता है.
source सहफसली तकनीक से किसान अपनी कमाई कर सकते हैं दोगुना
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merikheti · 2 years
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एकीकृत जैविक खेती से उर्वर होगी धरा : खुशहाल किसान, स्वस्थ होगा इंसान
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एकीकृत जैविक खेती का अर्थ, तरीका और लाभ
जैविक खेती मतलब निर्णय फायदे भरा, ऑर्गेनिक खेती का बढ़ रहा चलन
दिन प्रतिदिन डिजिटल होती लाइफ के बीच कृषि में तकनीक एवं रसायन आधारित उपयोग के नुकसान के बाद, किसानों को जैविक खेती (Jaivik Kheti/Organic Farming) के फायदों के बारे में जागरूक कर, इसके उपयोग के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
यूरिया जैसे रासायनिक विकल्पों के बजाए केंचुआ (Earthworm) एवं सूक्ष्म जीव (microbe) आधारित जैविक खादों के उपयोग के लिए किसान भी प्रेरित हुए हैं।
ऑर्गेनिक फार्मिंग या जैविक खेती (Organic Farming/Jaivik Kheti) क्या है, इसे कैसे करते हैं, कौन सा तरीका जैविक खेती के लिए कारगर है। इससे जुड़े लाभ के बारे में जानते हैं मेरी खेती के साथ।
जैविक खेती क्या है
जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है जैव आधारित कृषि पद्धति को ही ऑर्गेनिक फार्मिंग (Organic Farming) या फिर जैविक खेती (Jaivik Kheti) के नाम से जाना जाता है।ये भी पढ़ें: जैविक खेती को मिलेगा यूपी में सरकार का साथ
सूक्ष्म जीवों पर आधारित इस कृषि व्यवस्था में जैविक माध्यम से की जाने वाली प्राकृतिक व्यवस्था की युक्ति अपनाई जाती है। जिस तरह प्रकृति छोटे-छोटे जीव जंतुओं की मदद से बीजारोपण, पौध संरक्षण, भूमि उर्वरता का काम लेती है उसी महत्व को पहचान कर ऑर्गेनिक खेती (Organic Farming) या फिर जैविक खेती (Jaivik Kheti) का खाका बुना गया है।
सोचिये आधुनिक कृषि तरीकों में जिस मट्ठर भूमि को उर्वर बनाने के लिए कई हॉर्स पॉवर वाले ट्रैक्टरों की दरकार होती है, उस भूमि को लिजलिजा केंचुआ (Earthworm) समूह कैसे रेंगकर बगैर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए शांत तरीके से अंकुरण के लायक बना देता है।
जैविक खेती में इनका प्रयोग वर्जित
कृषि की जैविक खेती आधारित विधि में संश्लेषित उर्वरक (synthetic fertilizers) एवं संश्लेषित कीटनाशक (synthetic insecticide) का प्रयोग वर्जित है। जरूरत होने पर इनका नाममात्र मात्रा में प्रयोग किया जाता है।
भूमि की उर्वरा शक्ति के संतुलन के लिए जैविक खेती में फसल चक्��, हरी खाद, कम्पोस्ट जैसी युक्तियों को अपनाया जाता है।ये भी पढ़ें: सीखें वर्मी कंपोस्ट खाद बनाना
वैश्विक स्तर पर जैविक उत्पादों का बाजार इन दिनों काफी तेजी से अपनी पहचान बना रहा है।
अजैविक खेती के भूमि और जनस्वास्थ्य पर पड़ रहे प्रतिकूल असर के कारण कृषक अब स्वयं भी “जैविक खेती” (Organic farming) के तरीके को अपना रहे हैं।
जैविक खेती के राष्ट्रीय केंद्र, राष्ट्रीय जैविक एवं प्राकृतिक खेती केंद्र (National Centre for Organic and Natural Farming – NCONF) की देखरेख में भारतीय “जैविक खेती” का विकास हो रहा है। इस विधि के विकास में एकीकृत जैविक खेती खासी मददगार है।
एकीकृत जैविक खेती (Integrated organic farming)
अंतर्राष्ट्रीय जैविक नियंत्रण संगठन (The International Organization for Biological and Integrated Control) या आईओबीसी (IOBC), यूएनआई 11233-2009 (UNI 11233: 2009) यूरोपीय मानक ने एकीकृत खेती को एक कृषि प्रणाली माना है।
किसानी की यह वह प्रणाली है जिसमें उच्च गुणवत्ता से पूर्ण जैविक भोजन, चारा, फाइबर आदि का उत्पादन होता है। इसके साथ ही मिट्टी, पानी, वायु आदि प्राकृतिक विकल्पों के उपयोग से इस प्रणाली में नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन भी संभव है।
एकीकृत जैविक खेती प्रणाली
आईओएफएस (IOFS) यानी इंटीग्रेटेड ऑर्गेनिक फार्मिंग सिस्टम (Integrated Organic Farming System/IOFS/आईओएफएस) को हिंदी में एकीकृत जैविक खेती प्रणाली के तौर पर पहचाना जाता है।
कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने एकीकृत जैविक खेती प्रणाली (आईओएफएस/IOFS) भारतीय कृषि परिप्रेक्ष्य में विकसित की है ।
एकीकृत जैविक खेती आज की अनिवार्यता
कृषि के समग्र दृष्टिकोण वाली एकीकृत जैविक खेती (Integrated organic farming) से भूमि की उत्पादकता में स्थायी रूप से वृद्धि होती है। धरती के प्रत्येक जीव के मंगल की कामना करने वाले भारत देश के लिए एकीकृत जैविक खेती (Integrated organic farming) का विकल्प नया नहीं है, हालांकि इंडिया में तब्दील होते फार्मर्स ने कम समय में ज्यादा लाभ कमाने के चक्कर में कुछ समय के लिए इस बेशकीमती पुस्तैनी रीति की किसानी को बिसरा जरूर दिया।ये भी पढ़ें: जानिये PMMSY में मछली पालन से कैसे मिले लाभ ही लाभ
प्रकति प्रदत्त गौधन से अलंकृत भारत में गाय के गोबर एवं गौमूत्र एवं भैंस, बकरी, भेड़ के गोबर, लेंड़ी, लीद आधारित किसानी का यह पुराना तरीका सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अंधाधुंध चलन के कारण स्मृतियों में कैद होकर रह गया।
एकीकृत जैविक खेती क्या है
एकीकृत जैविक खेती का अर्थ खेत में उपलब्ध खेती किसानी के विकल्पों का पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना सर्वोत्तम उपयोग कर उपभोग की वस्तुएं निर्मित करने से है।
इसमें पशुधन जैसे गाय-भैंस, भेड़-बकरी, फसल का आपसी समन्यवय एक दूसरे के लिए खाद, चारा, पानी का प्रबंध करने में मददगार होता हैं।
एक तरह से यह प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का प्रकृति के विस्तार में सहयोगी किसानी का तरीका है। मतलब पशुधन से जहां जैविक खाद आदि का प्रबंध होता है, वहीं खेत से मानव एवं पशुओं के लिए अनिवार्य पोषक खाद्य पदार्थों की प्राप्ति होती है।
पैदावार के साथ बढ़ी मुसीबतें
कृषि भूमि पर रसायनिक पदार्थों के धड़ल्ले से हुए उपयोग के कारण अनाज का उत्पादन ज्यादा जरूर हुआ लेकिन इसके बुरे परिणाम के रूप में मिट्टी और इंसान की सेहत भी प्रभावित हुई।
कृत्रिम खेती के नुकसान
मौसमी चक्र के विपरीत कम समय में फसल की पैदावार से लेकर उसके भंडारण में उपयोग किए जाने वाले रासायनिक पदार्थों के कारण जल, जंगल, जमीन के साथ मानव के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ने के वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध हैं।
रासायनिक खादों के अमानक उपयोग से जहां भूमि की उर्वरता प्रभावित हो रही है, वहीं रासायनिक खाद की उपज से निर्मित खाद्य पदार्थों के सेवन से शारीरिक विन्यास क्रम पर भी बुरा असर देखा गया है।
जैविक खेती का विकल्प
सिंथेटिक खाद के निर्माण एवं उसके उपयोग के कारण पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य पर पड़ रहे कुप्रभावों के मद्देनजर, जैविक खेती को अपनाना सख्त अनिवार्य हो गया है।
बाजार में अच्छी है मांग
इंटरनेशनल मार्केट में जैविक उत्पाद की डिमांड एवं दाम भी इस प्रणाली की खेती के पक्षधर है।
देश के किसान बड़ी संख्या में एकीकृत जैविक खेती का तरीका अपना रहे हैं। खास तौर पर देश के उत्तर पूर्वी राज्यों में इस विधि से किसानी की जा रही है।ये भी पढ़ें: केमिस्ट्री करने वाला किसान इंटीग्रेटेड फार्मिंग से खेत में पैदा कर रहा मोती, कमाई में कई गुना वृद्धि!
एकीकृत जैविक खेती के लाभ
एकीकृत जैविक खेती से मृदा का अच्छा स्वास्थ्य बरकरार रहता है एवं इसकी उर्वरता में वृद्धि होती जाती है। सब्जियों और फलों संबंधी बीमारियों को कम करने में भी इससे मदद मिलती है।
इस प्रणाली की खेती से उच्च गुणवत्ता के जैविक उत्पादों का निर्माण संभव है।
मिट्टी की उर्वरता और खेती के लिए अधिक उपजाऊ भूमि बढ़ाने के अवसर भी इंटीग्रेटेड ऑर्गेनिक फार्मिंग में निहित हैं।
फसल पैदावार के दौरान कीट एवं रोग प्रबंधन में जैविक खेती के जैविक उपचार तरीकों के प्रयोग के कारण कीटनाशकों का चलन कम होगा। अंत में कहा जा सकता है कि, एकीकृत जैविक खेती से उर्वर होगी धरा, खुशहाल होगा किसान, स्वस्थ होगा इंसान।
source एकीकृत जैविक खेती से उर्वर होगी धरा : खुशहाल किसान, स्वस्थ होगा इंसान
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dmchandresh · 4 years
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इंटीग्रेटेड फार्मिंग: छोटे से खेत में भी कमा सकते हैं लाखों रुपये
इंटीग्रेटेड फार्मिंग: छोटे से खेत में भी कमा सकते हैं लाखों रुपये
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इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम से होगा आय में कई गुना इजाफा एक ही किसान अपने खेत पर कई तरह के कार्य कर ना केवल अपनी आय में इजाफा कर सकता है बल्कि देश की प्रगति में भी सहायक बन सकता है. सरकार का लक्ष्य साल 2022 तक किसान की आय दोगुनी करना है लेकिन एकीकृत खेती से आय कई गुना की जा सकती है.
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Last Updated: October 22, 2020, 4:21 PM IST
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नई दिल्ली.प्रधानमंत्री…
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dmchandresh · 4 years
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इंटीग्रेटेड फार्मिंग: छोटे से खेत में भी कमा सकते हैं लाखों रुपये
इंटीग्रेटेड फार्मिंग: छोटे से खेत में भी कमा सकते हैं लाखों रुपये
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इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम से होगा आय में कई गुना इजाफा एक ही किसान अपने खेत पर कई तरह के कार्य कर ना केवल अपनी आय में इजाफा कर सकता है बल्कि देश की प्रगति में भी सहायक बन सकता है. सरकार का लक्ष्य साल 2022 तक किसान की आय दोगुनी करना है लेकिन एकीकृत खेती से आय कई गुना की जा सकती है.
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Last Updated: October 22, 2020, 4:21 PM IST
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