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#इनकम टैक्स बचाने के उपाय
gstitreturn · 2 years
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newdelhimart · 2 years
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vsplusonline · 5 years
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आखिर कितने लोग देते हैं टैक्स? इनकम टैक्स विभाग ने पीएम मोदी के दावे पर कही ये बात
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आखिर कितने लोग देते हैं टैक्स? इनकम टैक्स विभाग ने पीएम मोदी के दावे पर कही ये बात
नई दिल्ली. इनकम टैक्स डिपार्टमेंट (Income Tax Department) ने गुरुवार को जानकारी दी कि देश में 1.46 करोड़ लोग इनकम टैक्स (Income Tax) जमा करते हैं. टैक्स विभाग की तरफ से यह जानकारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के दावे के एक दिन बाद आया है. पीएम मोदी ने बुधवार को एक सम्मेलन में कहा था कि 130 करोड़ की आबादी वाले भारत में डेढ़ करोड़ लोग टैक्स देते हैं. इसके बाद टैक्स विभाग ने कई ट्वीट्स में यह जानकारी दी.
CBDT ने क्यों दी ये जानकारी बुधवार को लगातार कई ट्वीट्स में सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज (CBDT) ने कहा कि भारत में केवल 1.46 करोड़ लोग ही इनकम टैक्स के दायरे में आते हैं. CBDT ने ट्वीट में यह भी बताया कि इन 1.46 करोड़ लोगों में से 1 करोड़ लोगों ने जानकारी दी है कि उनकी सालाना इनकम 5 से 10 लाख रुपये के बीच है. वहीं, केवल 46 लाख लोग ही ऐसे हैं जिन्होंने कहा है कि उनकी सालाना इनकम 10 लाख रुपये से अधिक है. CBDT ने ट्वीट में साफ तौर पर कहा कि ये जानकारी सोशल मीडिया पर फैल रही गलती जानकारी को लेकर दिया गया है.
Certain misinformation is being circulated in Social Media pertaining to individual return filers. CBDT clarifies: During the current financial year, 5.78 crore individuals filed returns disclosing income of financial year 2018-19..1/6
— Income Tax India (@IncomeTaxIndia) February 13, 2020
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5.78 करोड़ में से 4.32 करोड़ की सालाना कमाई 5 लाख से कम
इन ट्वीट से पता चलता है कि चालू​ वित्त वर्ष में 5.78 करोड़ लोगों ने इनकम टैक्स रिटर्न दा��िल करके वित्त वर्ष 2018-19 में अपनी इनकम के बारे जानकारी दी है. इनमें से 1.03 करोड़ लोगों ने बताया है कि उनकी सालाना इनकम 2.5 लाख रुपये से कम है, जबकि 3.29 करोड़ लोगों ने कहा अपनी सालाना इनकम 2.5 लाख से 5 लाख रुपये के बीच होने की जानकारी दी है. कुल 5.78 करोड़ लोगों में से केवल 4.32 करोड़ लोग ने अपनी सालाना इनकम 5 लाख रुपये या इससे कम होने की जानकारी दी है.
8,600 लोगों की सालाना कमाई 5 करोड़ रुपये से अधिक चूंकि, पिछले साल के बजट में सालाना 5 लाख रुपये तक की कमाई वाले लोगों टैक्स छूट दी गई थी, ऐसे में 4.32 करोड़ लोगों पर वित्त वर्ष 2020 के लिए कोई टैक्स देयता नहीं बनती है. केवल, 3.16 लाख लोगों ने ही कहा है कि उनकी सालाना इनकम 50 लाख रुपये से अधिक है. CBDT द्वारा दी गई जानकारी से पता चलता है कि ​वित्त वर्ष 2020 के लिए सालाना 5 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई करने वाले लोगों की कुल संख्या 8,600 है.
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2200 लोगों की सालाना कमाई 1 करोड़ रुपये CBDT ने बताया कि सालाना 1 करोड़ रुपये से अधिक कमाई करने वाले डॉक्टर्स, चार्टर्ड अकाउंटेंट, वकील समेत अन्य प्रोफेनल्स वाले लोगों की संख्या 2,200 है. इनमें उनके रेंट, ब्याज और कैपिटल गेन्स समेत होने वाली अन्य कमाई शामिल नहीं है.
क्या है इस साल टैक्स कलेक्शन का अनुमान बता दें कि बजट 2020 में सरकार ने टैक्स से होने वाली सालाना कमाई का अनुमान 24 लाख 23 हजार करोड़ 20 करोड़ रुपये का अनुमान लगाया है. पिछले बजट के मुकाबले यह कम है. ​वित्त वर्ष 2019-20 के लिए बजट में यह अनुमान 24,61,194.93 करोड़ रुपये रहा था.
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prerananews24 · 3 years
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जान लें Income Tax में फॉर्म 15G/15H का फायदा, बस पूरी करनी होती हैं कुछ शर्ते
जान लें Income Tax में फॉर्म 15G/15H का फायदा, बस पूरी करनी होती हैं कुछ शर्ते
income tax भारी इनकम टैक्स की कटौती से लोग काफी परेशान रहते हैं और इसे बचाने के लिए किसी न किसी तरह का उपाय सोचते रहते हैं. अगर आपने भी बैंक FD कराया है, तो यह पहले ही सुनिश्चित कर लें कि बैंक इस जमा पर मिलने वाले ब्याज पर TDS (टैक्स डिडक्शन ऐट सोर्स) न काटे.
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24gnewshindi · 3 years
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जान लें इनकम टैक्स में फॉर्म 15 जी / 15 एच का फायदा, बस पूरी तरह से होना चाहिए
जान लें इनकम टैक्स में फॉर्म 15 जी / 15 एच का फायदा, बस पूरी तरह से होना चाहिए
आयकर भारी इनकम टैक्स की कटौती से लोग काफी परेशान रहते हैं और इसे बचाने के लिए किसी न किसी तरह का उपाय सोचते रहते हैं। अगर आपने भी बैंक FD बनाई है, तो यह पहले ही सुनिश्चित कर लें कि बैंक इस जमा पर मिलने वाले ब्याज पर TDS (टैक्स डिडक्शन ऐट सोर्स) न काटे। । Source link
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vsplusonline · 5 years
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Budget 2020: इकोनॉमी को बचाने के लिए थीं बड़ी उम्मीदें, क्या मोदी सरकार का बजट खरा उतर पाया?
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Budget 2020: इकोनॉमी को बचाने के लिए थीं बड़ी उम्मीदें, क्या मोदी सरकार का बजट खरा उतर पाया?
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पिछले एक साल से इकोनॉमी की हालत बेहद खराब है
उम्मीद थी कि वित्त मंत्री बजट में कोई बूस्टर डोज देंगी
हालांकि, बजट में कोई बड़ा सुधार या पैकेज नहीं दिखा
वर्ष 2020-21 के बजट को मोदी सरकार के लिए अब तक के सबसे कठिन बजट माना जा रहा था. खासकर पिछले एक साल में इकोनॉमी की हालत बेहद खस्ता थी, ऐसे में बड़ी उम्मीद थी कि वित्त मंत्री ऐसे कुछ साहसिक उपायों की घोषणा करेंगी, जिससे मांग- निवेश को प्रोत्साहन मिले और जीडीपी ग्रोथ रफ्तार पकड़े. आइए जानते हैं कि यह बजट इस मामले में कितना खरा उतर पाया है.
क्या था देश का माहौल
पिछले एक साल से अर्थव्यवस्था की हालत काफी खराब है. इस वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में बढ़त महज 5 फीसदी रहने का अनुमान है. सितंबर में खत्म तिमाही में तो इकोनॉमी की बढ़त दर महज 4.8 फीसदी रह गई थी. पिछले एक साल में जीडीपी की रफ्तार तेजी से घटने से नौकरियां तो जा रही हैं और नई नौकरियां पर्याप्त संख्या में पैदा नहीं हो रही हैं. पिछले साल लीक हुए एनएसओ के आंकड़ों के मुताबिक हाल के वर्षों में बेरोजगारी दर 45 साल के ऊंचे स्तर पर पहुंच गई थी. सरकार ने हर साल 2 करोड़ नौकरियों का वादा किया था, लेकिन नई नौकरियां कुछ लाख में मिल रही हैं. हाल के महीनों में महंगाई भी काफी ऊंचाई पर पहुंच गई है.
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क्या है समस्या की वजह
इकोनॉमी की सुस्ती की प्रमुख वजह यह है कि अर्थव्यवस्था के सभी इंजन सुस्त पड़ गए हैं. असल में किसी इकोनॉमी को आगे बढ़ाने के लिए मुख्यत: चार इंजन होते हैं- निजी उपभोग, सरकारी खर्च, कारोबारियों का निवेश और आयात-निर्यात. पिछले एक साल में इन सभी में हालात ठीक नहीं रहे हैं.
क्या कर सकती थीं वित्त मंत्री
ग्रोथ को बढ़ाने के लिए 50 फीसदी से ज्यादा योगदान पहले इंजन यानी निजी उपभोग का होता है और इसके बाद कारोबारी निवेश का स्थान होता है. सरकारी खर्च का योगदान सबसे कम होता है. इसलिए सबसे बड़ी उम्मीद तो यही थी कि वित्त मंत्री निजी उपभोग को बढ़ाने के लिए खास उपाय करेंगी. राजस्व संग्रह लक्ष्य से कम होने की वजह से सरकारी खर्च बढ़ाने की ज्यादा गुंजाइश नहीं थी.
सरकार पहले ही कॉरपोरेट टैक्स घटाकर इनको राहत दे चुकी है और कंपनियों ने इस तरह मिले फायदे के बावजूद निवेश नहीं किया. मंदी के दौर में जब मांग ही नहीं है तो कंपनियां भला निवेश क्यों करेंगी, वे इसीलिए कारोबारी नकदी दबाकर बैठे हैं या शेयर बाजार में पैसा लगा रहे हैं.
वित्त मंत्री के पास एक विकल्प यह था कि व्यक्तिगत आयकर में कटौती करके लोगों की जेब में पैसा डालें और निजी उपभोग को बढ़ावा दिया जाए. वित्त मंत्री ने टैक्स स्लैब में बदलाव कर ऐसा करने की कोशिश भी की है. 6 तरह का नया टैक्स स्लैब बनाते हुए लोगों को यह विकल्प भी दिया गया कि वे नया स्लैब चुनें या पुराना. लेकिन इसका बहुत फायदा मिलता इसलिए नहीं दिख रहा है क्योंकि लोगों की टैक्स बचत कुछ खास नहीं हो रही और ज्यादातर ��ैक्सपेयर्स पुराने स्लैब में ही बने रहना चाहेंगे.
बजट से पता चलता है कि सरकार जो कर्ज ले रही है उससे  पूंजीगत व्यय (कैपिटल एक्सपेंडीचर) बढ़ाने की कोश‍िश नहीं हो रही है, बल्कि उसे राजस्व व्यय बढ़ाया जा रहा है. पूंजीगत व्यय का मतलब है सड़क जैसे बुनियादी ढांचे पर खर्च, जब इस तरह का खर्च बढ़ता है तो इकोनॉमी को ज्यादा रफ्तार मिलती है. राजस्व व्यय से इसका करीब एक-तिहाई फायदा ही होता है.
पीएचडी चैम्बर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री यूपी के को-चेयरमैन मनीष खेमका कहते हैं, ‘निर्यात को रफ्तार देने के लिए कुछ बड़े कदम उठाए जाने चाहिए थे. निर्यात को बढ़ाए बिना अर्थव्यवस्था की गति तेज करना मुमकिन नहीं है.’  
क्या कहा वित्त मंत्री ने
इकोनॉमी को रफ्तार देने के लिए बजट में कुछ खास क्यों नहीं किया गया, इस सवाल पर तमाम मीडिया इंटरव्यू में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा, ‘ निजी निवेश नहीं बढ़ रहा तो अब दारोमदार सरकार के ऊपर ही था. हम निजी निवेश का इंतजार नहीं कर रहे हैं और हमने साफ कहा कि निवेश करेंगे, खासकर बुनियादी ढांचे में. बुनियादी ढांचे में 100 लाख करोड़ से ज्यादा का निवेश होने जा रहा है. सॉवरेन फंड को काफी रियायतें दी गई हैं ताकि वे भारत आएं, लेकिन शर्त यह है कि उन्हें बुनियादी ढांचे में निवेश करना होगा.’
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इकोनॉमी की सच्चाई से बेखबर हैं वित्त मंत्री!
कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत कहती हैं, ‘अब तक का सबसे लंबा बजट भाषण भारतीय अर्थव्यवस्था के किसी भी घटक को प्रेरित करने में विफल रहा है. तीव्र आर्थिक मंदी और मांग एवं निवेश दोनों में मंदी के दौरान प्रस्तुत बजट से अर्थव्यवस्था को गति देने की उम्मीद की गई थी, लेकिन यह बुरी तरह विफल रहा. भारतीय अर्थव्यवस्था के हितधारकों के लिए एक भयावह चिंता यह है कि सरकार आर्थिक संकट की व्यापकता को स्वीकारने में अभी भी इनकार कर रही है. तभी तो बजट में कोई बड़े कदम और उपचार का जि‍क्र नहीं है.’
उन्होंने कहा, ‘निजी निवेश के लिए कुछ भी नहीं है, खपत को प्रोत्साहित करने या निर्यात को पुनर्जीवित करने के लिए कोई बड़ा कदम नहीं है. नौकरियों को बनाने के लिए कोई रणनीतिक सोच नहीं है. दो सेक्टर जो जल्दी से रोजगार पैदा कर सकते थे – ऑटोमोबाइल और रियल एस्टेट उनके के बारे में कोई बड़ी योजना नहीं है-  किफायती आवास को छोड़कर कोई भी उल्लेख नहीं मिलता है जो कि खुद बहुत छोटा हिस्सा है. ‘
रोजगार को तवज्जो नहीं
एनएसओ के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2017-18 में बेरोजगारी दर 45 साल के ऊंचे स्तर पर पहुंच गई थी. सरकार ने हर साल 2 करोड़ नौकरियों का वादा किया था, लेकिन ईपीएफओ और ईएसआईसी के आंकड़ों के बावजूद संख्या लाखों तक ही सीमित रह गई है. बजट में रोजगार बढ़ाने के लिए किसी बड़े या ठोस उपाय की घोषणा नहीं की गई है.
इकोनॉमी को बूस्ट के लिए कोई भी बड़ा ऐलान या राहत पैकेज नहीं
बजट में ऐसा कोई साहसिक कदम, बड़ा ऐलान या राहत पैकेज नहीं देखा गया, जैसा कि आमतौर पर संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था में देखा जाता है. इसी तरह बजट में कोई बड़ा नीतिगत सुधार भी नहीं दिखा. अर्थव्यवस्था में मंदी की एक वजह यह भी है कि ग्रामीण क्षेत्रों में संकट है, मांग नहीं है. मांग में कमी का मतलब यह है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था मुश्किल के दौर में है.
लेकिन इस मांग को बढ़ाने के लिए खास उपाय नहीं दिख रहे. पीएम किसान निध‍ि या मनरेगा का बजट बढ़ाकर ग्रामीण क्षेत्र का संकट दूर करने की उम्मीद की जा रही है. सच तो यह है कि पीएम किसान निध‍ि भी पिछले साल बजट में तय लक्ष्य का करीब 30 फीसदी कम खर्च हुआ है. इसी तरह मनरेगा योजना अब बहुत प्रभावी नहीं रही है.
यही नहीं, समूचे फूड सब्सिडी का बजट घटाया गया है. पिछले साल के तय बजट 1.84 लाख करोड़ के फूड सब्सिडी के मुकाबले खर्च महज 1.08 लाख करोड़ रुपये का हुआ. इस तरह से न तो शहरी मांग को बढ़ाने का कोई पुख्ता इंतजार किया गया और न ही ग्रामीण मांग को, जबकि मांग को बढ़ाए बिना अर्थव्यवस्था की चाल तेज करना मुश्किल है. इसके अलावा संकट में चल रहे ऑटो और रियल एस्टेट सेक्टर के लिए भी कोई ठोस उपाय नहीं किए गए हैं.
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