आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) अधिनियम, 2022 क्या है? यहां जानिए प्रमुख बदलाव और प्रावधान
आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) अधिनियम, 2022 क्या है? यहां जानिए प्रमुख बदलाव और प्रावधान
आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) अधिनियम, 2022: आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) अधिनियम, 2022 4 अगस्त 2022 को लागू हुआ। नया अधिनियमित कानून कैदियों की पहचान अधिनियम, 1920 की जगह लेगा और पुलिस और अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों को कुछ पहचान योग्य जानकारी (उंगलियों के निशान और पैरों के निशान) एकत्र करने का अधिकार देता है।
दोषियों और गिरफ्तार व्यक्तियों सहित व्यक्तियों। इसके अधिनियमित होने के बाद से, कानून गंभीर…
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दिल्ली सरकार तिहाड़ जेल के कैदियों को शैक्षिक सहायता प्रदान करेगी
दिल्ली सरकार तिहाड़ जेल के कैदियों को शैक्षिक सहायता प्रदान करेगी
मनीष सिसोदिया ने शिक्षकों को तिहाड़ जेल के कैदियों के साथ बेहद संवेदनशील तरीके से बातचीत करने का भी निर्देश दिया। (फ़ाइल)
नई दिल्ली:
तिहाड़ जेल के कैदियों को उनकी जेल की अवधि पूरी होने के बाद समाज के साथ बेहतर तरीके से जुड़ने में मदद करने के लिए, केजरीवाल सरकार अब उन्हें कौशल प्रशिक्षण और शैक्षिक सहायता प्रदान करेगी। इससे पहले, दिल्ली सरकार के स्कूल शिक्षक अपनी शैक्षिक पृष्ठभूमि और संभावित कौशल…
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जिला जेल में हुआ संत रामपाल जी महाराज का सत्संग, कैदियों को मिली नई जीने की राह
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#KabirIsGod
मनुष्य शरीर सिर्फ अल्लाह/प्रभु प्राप्ति के लिए ही मिला है। इसे कष्ट देने या कोड़े मारने से अल्लाह नहीं मिलेगा। यदि ये तरीका सही होता तो कैदियों को तो अल्लाह जल्दी मिल जाता जिनके शरीर को यातना दी जाती है।
#SantRampalJiMaharaj
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Watch "अरे ये क्या जेल में सत्संग सन्त रामपाल जी महाराज का | देखिए क्या हुआ कैदियों के साथ 😦 | Jail..." on YouTube
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मनुष्य शरीर सिर्फ अल्लाह/प्रभु प्राप्ति के लिए ही मिला है। इसे कष्ट देने या कोड़े मारने से अल्लाह नहीं मिलेगा। यदि ये तरीका सही होता तो कैदियों को तो अल्लाह जल्दी मिल जाता जिनके शरीर को यातना दी जाती है।
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Baakhabar Sant Rampal Ji
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MessageOfAllahOnMuharramमनुष्य शरीर सिर्फ अल्लाह/प्रभु प्राप्ति के लिए ही मिला है। इसे कष्ट देने या कोड़े मारने से अल्लाह नहीं मिलेगा। यदि ये तरीका सही होता तो कैदियों को तो अल्लाह जल्दी मिल जाता जिनके शरीर को यातना दी जाती है।
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मनुष्य शरीर सिर्फ अल्लाह/प्रभु प्राप्ति के लिए ही मिला है। इसे कष्ट देने या कोड़े मारने से अल्लाह नहीं मिलेगा। यदि ये तरीका सही होता तो कैदियों को तो अल्लाह जल्दी मिल जाता जिनके शरीर को यातना दी जाती है।
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मनुष्य शरीर सिर्फ अल्लाह/प्रभु प्राप्ति के लिए ही मिला है। इसे कष्ट देने या कोड़े मारने से अल्लाह नहीं मिलेगा। यदि ये तरीका सही होता तो कैदियों को तो अल्लाह जल्दी मिल जाता जिनके शरीर को यातना दी जाती है।
Baakhabar Sant Rampal Ji
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#MessageOfAllahOnMuharram
मनुष्य शरीर सिर्फ अल्लाह/प्रभु प्राप्ति के लिए ही मिला है। इसे कष्ट देने या कोड़े मारने से अल्लाह नहीं मिलेगा। यदि ये तरीका सही होता तो कैदियों को तो अल्लाह जल्दी मिल जाता जिनके शरीर को यातना दी जाती है।
Baakhabar Sant Rampal Ji
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Shaheed Diwas 2023: 23 मार्च को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए
Shaheed Diwas : 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को ब्रिटिश सरकार ने लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दी थी
हर साल 23 मार्च को भारत शहादत दिवस मनाया जाता है। भारत के तीन वीर सपूतों ने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे । ये तीनों ही युवाओं के लिए आदर्श और प्रेरणा है। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु भारत की आजादी के लिए अपनी जान देने वाले क्रांतिकारियों में से एक थे। 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु नाम के तीन युवकों को ब्रिटिश सरकार ने फांसी दे दी थी। वह 23 वर्ष के थे। इसलिए ,शहीदों को श्रद्धांजलि के रूप में, भारत सरकार ने 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में घोषित किया। लेकिन क्या आपको पता है कि इन तीनों शहीदों की मौत भी अंग्रेजी हुकूमत की एक साजिश थी? भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव सभी को 24 मार्च को फाँसी देनी तय हुई थी, लेकिन अंग्रेजों ने एक दिन पहले 23 मार्च को भारत के तीनों वीर पुत्रो को फांसी पर लटका दिया। आखिर इसकी वजह क्या थी? आखिर भगत सिंह और उनके साथियों ने ऐसा क्या अपराध किया था कि उन्हें फांसी की सजा दी गई। भगत सिंह की पुण्यतिथि पर जानिए उनके जीवन के बारे में कई दिलचस्प बातें।
देश की आजादी के लिए सेंट्रल असेंबली में बम फेंका गया।
8 अप्रैल, 1929 को दो क्रांतिकारियों, भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम फेंका और ‘साइमन गो बैक’ नारे में भी संदर्भित किया गया था। जहां कुख्यात आयोग के प्रमुख सर जॉन साइमन मौजूद थे। साइमन कमीशन को भारत में व्यापक विरोध का सामना करना पड़ा था। बम फेंकने के बाद दोनों ने भागने की कोशिश नहीं की और सभा में पर्चे फेंक कर आजादी के नारे लगाते रहे और अपनी गिरफ्तारी दी। जो पर्चे गिराए उनमें पहला शब्द “नोटिस” था। उसके बाद उनमें पहला वाक्य फ्रेंच शहीद अगस्त वैलां का था। लेकिन दोनों क्रांतिकारियों द्वारा दिया गया प्रमुख नारा ‘’इंकलाब जिंदाबाद’’ था । इस दौरान उन्हें करीब दो साल की सजा हुई।
करीब दो साल की मिली कैद
भगत सिंह करीब दो साल तक जेल में रहे। उन्होंने बहुत सारे क्रांतिकारी लेख लिखे, जिनमें से कुछ ब्रिटिश लोगों के बारे में थे, और अन्य पूंजीपतियों के बारे में थे। जिन्हें वह अपना और देश का दुश्मन मानते थे। उन्होंने कहा कि श्रमिकों का शोषण करने वाला कोई भी व्यक्ति उनका दुश्मन है, चाहे वह व्यक्ति भारतीय ही क्यों न हो।
जेल में भी जारी रखा विरोध
भगत सिंह बहुत बुद्धिमान थे और कई भाषाएँ जानते थे। वह हिंदी, पंजाबी, उर्दू, बांग्ला और अंग्रेजी आती जानते थे । उन्होंने बटुकेश्वर दत्त से बंगाली भी सीखी थी। भगत सिंह अक्सर अपने लेखों में भारतीय समाज में लिपि, जाति और धर्म के कारण आई लोगों के बीच की दूरी के बारे में चिंता और दुख व्यक्त करते थे।
राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव की फांसी की तारीख तय की गई
दो साल तक कैद में रहने के बाद, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च, 1931 को फाँसी दी जानी थी। हालाँकि, उनकी फाँसी की ख़बर से देश में बहुत हंगामा हुआ और ब्रिटिश सरकार प्रतिक्रिया से डर गई। वह तीनों सपूतों की फांसी के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे। भारतीयों का आक्रोश और विरोध देख अंग्रेज सरकार डर गई थी।
डर गई अंग्रेज सरकार
ब्रिटिश सरकार को इस बात की चिंता थी कि भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु की फाँसी के दिन भारतीयों का गुस्सा उबलने की स्थिति में पहुँच जाएगा, और स्थिति और भी बदतर हो सकती है। इसलिए, उन्होंने उसकी फांसी की तारीख और समय को बदलने का फैसला किया।
तय समय से पहले दी भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरु को फांसी
ब्रिटिश सरकार ने जनता के विरोध को देखते हुए 24 मार्च जो फांसी का दिन था उसे 11 घंटे पहले 23 मार्च का दिन कर दिया। इसका पता भगत सिंह को नहीं था। 22 मार्च की रात सभी कैदी मैदान में बैठे थे। तभी वार्डन चरत सिंह आए और बंदियों को अपनी-अपनी कोठरियों में जाने को कहा। कुछ ही समय बाद नाई बरकत की बात कैदियों के कानों में पड़ी कि उस रात भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी जाने वाली है।
23 मार्च 1931 को शाम 7.30 बजे फांसी दे दी जायगी । कहते है कि जब भगत सिंह से उनकी आखिरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने कहा कि वह लेनिन (Reminiscences of Leni) की जीवनी पढ़ रहे थे और उन्हें वह पूरी करने का समय दिया जाए। लेकिन जेल के अधिकारियों ने चलने को कहा तो उन्होंने किताब को हवा में उछाला और कहा – ’’ठीक है अब चलो।’’
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 7 बजकर 33 मिनट पर 23 मार्च 1931 को शाम में लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई। शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव एक दूसरे से मिले और उन्होंने एक-दूसरे का हाथ थामे आजादी का गीत गाया।
”मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे। मेरा रँग दे बसन्ती चोला। माय रँग इे बसन्ती चोला।।’’
साथ ही ’इंक़लाब ज़िन्दाबाद’ और ’हिंदुस्तान आजाद हो’ का नारा लगये ।
उनके नारे सुनत��� ही जेल के कैदी भी इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाने लगे। कहा जाता है कि फांसी का फंदा पुराना था लेकिन जिसे फांसी दी गई वह काफी तंदुरुस्त था। मसीद जलाद को फाँसी के लिए लाहौर के पास शाहदरा से बुलाया गया था। भगतसिंह बीच में खङे थे और अगल-बगल में राजगुरु और सुखदेव खङे थे। जब मसीद जल्लाद ने पूछा कि, ’सबसे पहले कौन जाएगा?’
तब सुखदेव ने सबसे पहले फांसी पर लटकाने की सहमति दी। मसीद जल्लाद ने सावधानी से एक-एक करके रस्सियों को खींचा और उनके पैरों के नीचे लगे तख्तों को पैर मारकर हटा दिया। लगभग 1 घंटे तक उनके शव तख्तों से लटकते रहे, उसके बाद उन्हें नीचे उतारा गया और लेफ्टिनेंट कर्नल जेजे नेल्सन और लेफ्टिनेंट एनएस सोढ़ी द्वारा उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।
तीन क्रांतिकारियों, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का अंतिम संस्कार
ब्रिटिश सरकार की योजना थी इन सबका अंतिम दाह संस्कार जेल में करने की योजना बनाई थी। हालांकि, अधिकारियों को चिंता हुई कि अगर जेल से दाह संस्कार की प्रक्रिया से निकलने वाले धुएं को देखा तो जनता नाराज हो जाएगी। इसलिए, उन्होंने जेल की दीवार को तोड़ने और कैदियों के शवों को जेल के बाहर ट्रकों पर फेंकने का फैसला किया।
इससे पहले ब्रिटिश सरकार ने तय किया था कि भगत सिंह राजगुरु सुखदेव का अंतिम संस्कार रावी नदी के तट पर किया जाएगा, लेकिन उस समय रावी में पानी नहीं था। इसलिए उनके शव को फिरोजपुर के पास सतलुज नदी के किनारे लाया गया। उनके शवों को आग लगाई गई। इसके बारे में जब आस-पास के गाँव के लोगों को पता चल गया, तब ब्रिटिश सैनिक शवों को वहीं छोङकर भाग गये। कहा जाता है कि सारी रात गाँव के लोगों ने उन शवों के चारों ओर पहरा दिया था।
अगले दिन जब तीनों क्रांतिकारियों की मौत की खबर फैली तो उनके सम्मान में तीन मील लंबा जुलूस निकाला था। इसको लेकर लोगों ने ब्रिटिश सरकार का विरोध किया ।
फांसी से पहले भगत सिंह ने अपने साथियों को एक पत्र लिखा था।
साथियों,
स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए। मैं इसे छिपाना नहीं चाहता, लेकिन एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूँ कि मैं कैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता।
मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊँचा उठा दिया है- इतना ऊँचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊँचा मैं हर्गिज नहीं हो सकता। आज मेरी कमजोरियाँ जनता के सामने नहीं हैं। अगर मैं फाँसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएँगी और क्रांति का प्रतीक चिन्ह मद्धिम पड़ जाएगा या संभवतः मिट ही जाए।
लेकिन दिलेराना ढंग से हँसते-हँसते मेरे फाँसी चढ़ने की सूरत में हिन्दुस्तानी माताएँ अपने बच्चों के भगतसिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी।
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#GodMorningFriday
मनुष्य शरीर सिर्फ अल्लाह प्रभु प्राप्ति के लिए ही मिला है। इसे कष्ट देने या कोड़े मारने से अल्लाह नहीं मिलेगा। यदि ये तरीका सही होता तो कैदियों को तो अल्लाह जल्दी मिल जाता जिनके शरीर को यातना दी जाती है।
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Sheriff faces questions from Arkansas lawmakers over 'Netflix' series filmed at county jail
लिटिल रॉक, आर्क – अर्कांसस के सांसदों ने मंगलवार को काउंटी जेल में नेटफ्लिक्स डॉक्यूमेंट्री श्रृंखला को फिल्माने की अनुमति देने के शेरिफ के फैसले पर सवाल उठाए, एक आलोचक ने कहा कि इस कदम से कैदियों का शोषण हुआ है।
पुलास्की काउंटी शेरिफ एरिक हिगिंस ने श्रृंखला, “अनलॉक्ड: ए जेल एक्सपेरिमेंट” को काउंटी जेल में फिल्माए जाने की अनुमति देने के फैसले का बचाव किया। आठ-एपिसोड की श्रृंखला, जिसका प्रीमियर…
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Mera Aajeevan Karavas || Vinayak Damodar Savarkar || Prabhat Prakashan
Book Link : https://www.amazon.in/dp/9386300109
भारतीय क्रांतिकारी इतिहास में स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर का व्यक्तित्व अप्रतिम गुणों का द्योतक है। ‘सावरकर’ शब्द ही अपने आपमें पराक्रम, शौर्य और उत्कट देशभक्ति का पर्याय है। अपनी आत्मकथा मेरा आजीवन कारावास में उन्होंने जेल-जीवन की भीषण यातनाओं—ब्रिटिश सरकार द्वारा दो-दो आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने के बाद अपनी मानसिक स्थिति, भारत की विभिन्न जेलों में भोगी गई यातनाओं और अपमान, फिर अंडमान भेजे जाने पर जहाज पर कैदियों की यातनामय नारकीय स्थिति, कालापानी पहुँचने पर सेलुलर जेल की विषम स्थितियों, वहाँ के जेलर बारी का क्रूरतम व्यवहार, छोटी-छोटी गलतियों पर दी जानेवाली अन शारीरिक यातनाएँ, यथा—कोड़े लगाना, बेंत से पिटाई करना, दंडी-बेड़ी लगाकर उलटा लटका देना आदि का वर्णन मन को उद्वेलित कर देनेवाला है। विषम परिस्थितियों में भी कैदियों में देशभक्ति और एकता की भावना कैसे भरी, अनपढ़ कैदियों को पढ़ाने का अभियान कैसे चलाया, किस प्रकार दूसरे रचनात्मक कार्यों को जारी रखा तथा अपनी दृढ़ता और दूरदर्शिता से जेल के वातावरण को कैसे बदल डाला, कैसे उन्होंने अपनी खुफिया गतिविधियाँ चलाईं आदि का सच्चा इतिहासवर्णित है। इसके अतिरिक्त ऐसे अनेक प्रसंग, जिनको पढ़कर पाठक उत्तेजित और रोमांचित हुए बिना न रहेंगे। विपरीत-से-विपरीत परिस्थिति में भी कुछअच्छा करने की प्रेरणा प्राप्त करते हुए आप उनके प्रति श्रद्धानत हुए बिना न रहेंगे।.
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मनुष्य शरीर सिर्फ अल्लाह/प्रभु प्राप्ति के लिए ही मिला है। इसे कष्ट देने या कोड़े मारने से अल्लाह नहीं मिलेगा। यदि ये तरीका सही होता तो कैदियों को तो अल्लाह जल्दी मिल जाता जिनके शरीर को यातना दी जाती है।
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जेल से कैसे सरकार चलाएं केजरीवाल? आप के वकीलों ने आखिर ढूंढ लिया कानून का वो नुक्स
निधि शर्मा, नई दिल्ली: ने जेल जाकर भी दिल्ली के मुख्यमंत्री का पद नहीं छोड़ा है। विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (BJP) केजरीवाल को उनके ही पुराने बयानों की याद दिलाकर नैतिकता की दुहाई दे रही है, लेकिन आम आदमी पार्टी (AAP) का कहना है कि दिल्ली की जनता जो चाहती है, वही होगा। आप के मुताबिक, उसकी तरफ से कराए गए सर्वे में जनता के बहुमत ने राय दी थी कि केजरीवाल अगर जेल जाएं तो उन्हें वहीं से दिल्ली की सरकार चलानी चाहिए, इस्तीफा देने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन यह पार्टी को अच्छे से पता है कि इस्तीफे का मुद्दा अगर अदालत में उठा तो फिर यह सर्वे रिजल्ट किसी काम का नहीं होगा। वहां तो वही दलीलें चलेंगी जो कानूनी पैमाने पर खरा उतरे। इसलिए पार्टी के वकील ऐसे ठोस दलील गढ़ने में जुट गए जो अदालत को संतुष्ट कर सके कि केजरीवाल चला सकते हैं।
जानिए अदालत में कौन सी दलील देगी आप
आप के वकील अदालत में यह दलील देने की योजना बना रहे हैं कि तिहाड़ सेंट्रल जेल परिसर के एक हिस्से को 'प्रिजन' घोषित किया जाए ताकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और चलाने के लिए दफ्तर जैसी अन्य आवश्यक सुविधाएं मिल सकें। आप के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, पार्टी की कानूनी टीम अदालत में याचिका दायर करने के लिए जमीनी कार्य कर रही है, जिसमें उन मिसालों का हवाला दिया जाएगा जब विचाराधीन कैदियों को तिहाड़ जेल के अंदर से अपने ऑफिस रन करने की अनुमति दी गई थी।आप के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने हमारे सहयोगी अखबार द इकनॉमिक टाइम्स (ET) को नाम गुप्त रखने की शर्त पर यह जानकारी दी। उन्होंने कहा, 'सबसे हाई-प्रोफाइल मिसाल सहारा समूह के सुब्रत रॉय की है, जिन्हें अदालत से तिहाड़ जेल के अंदर ऑफिस की सुविधाओं का उपयोग करने की अनुमति मिली थी ताकि अपनी जमानत राशि जुटाने के लिए न्यूयॉर्क और लंदन में अपने लग्जरी होटलों की बिक्री को लेकर बातचीत की जा सके। तिहाड़ जेल के महानिदेशक ने 2014 में विशेष अदालत परिसर को कैदखाना (प्रिजन) घोषित किया था।'
आप ने उदाहरण देकर उठाया सवाल
पदाधिकारी ने कहा कि यूनिटेक के प्रमोटर संजय चंद्रा और अजय चंद्रा भी तिहाड़ जेल से अवैध रूप से कार्यालय संचालित करते पाए गए थे। उन्होंने कहा, 'अगर वे लोग जिन्होंने लोगों का पैसा हड़पा है, अपने कार्यालय चला सकते हैं, तो अदालत को एक निर्वाचित मुख्यमंत्री के समान सुविधाओं के अनुरोध को स्वीकार करने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए।' जेल अधिनियम के तहत, महानिदेशक (जेल) या उपराज्यपाल के पास सुरक्षा कारणों या संचालन में आसानी के लिए किसी भी जगह को 'कैदखाना' (प्रिजन) घोषित करने की शक्ति होती है।
जेल में कैदियों को मिलते हैं सिर्फ ये 10 अधिकार
जेल जाकर भी पद छोड़ने से इनकार के कारण इतिहास में पहली बार एक अभूतपूर्व स्थिति पैदा हो गई है, जहां एक सीएम सलाखों के पीछे से सरकार चलाने पर जोर दे रहा है। जेल मैनुअल के नियम 1349 के अनुसार, एक विचाराधीन कैदी को केवल 10 सुविधाएं दी जाती हैं - कानूनी बचाव, वकीलों या परिवार के सदस्यों के साथ मुलाकात (कानूनी उद्देश्यों के लिए), वकालतनामा पर हस्ताक्षर करना, पावर ऑफ अटॉर्नी का देना, वसीयत का काम निपटाना, नियमों के अनुसार आवश्यक धार्मिक आवश्यकताएं, कानून के प्रावधानों के अनुसार सरकारी खर्च पर कानूनी सहायता के लिए अदालतों में आवेदन, अदालतों में अन्य आवेदन, मुफ्त कानूनी सहायता के लिए कानूनी सहायता देने वाली संस्थाओं में आवेदन और ऐसी अन्य सुविधाएं जो सरकार से स्वीकृत हैं। इनमें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाएं या फाइलों पर हस्ताक्षर करने की छूट जैसी सुविधाएं शामिल नहीं हैं। http://dlvr.it/T4xp7f
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