Tumgik
#खरब
Text
खराब राजनीति का शिकार होकर इस मैच विनर खिलाड़ी को दूसरे टेस्ट मैच से अचानक बाहर कर दिया गया...
खराब राजनीति का शिकार होकर इस मैच विनर खिलाड़ी को दूसरे टेस्ट मैच से अचानक बाहर कर दिया गया…
टीम इंडिया फिलहाल पूरे स्टाफ के साथ बांग्लादेश दौरे पर दो मैचों की टेस्ट सीरीज खेल रही है। जिसका दूसरा मैच आज से शुरू हो गया है। टेस्ट सीरीज के पहले मैच में टीम इंडिया को शानदार जीत मिली। रोहित शर्मा के चोटिल होने के कारण टीम इंडिया की कप्तानी केएल राहुल को सौंपी गई है। केएल राहुल की कप्तानी में टीम इंडिया शानदार प्रदर्शन कर रही है। संक्षेप में दूसरे टेस्ट मैच की बात करें तो पहले बांग्लादेश ने…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
sabkuchgyan · 2 years
Text
खराब कोलेस्ट्रॉल जो हार्ट अटैक-स्ट्रोक का कारण बन सकता है
खराब कोलेस्ट्रॉल जो हार्ट अटैक-स्ट्रोक का कारण बन सकता है
खराब कोलेस्ट्रॉल शरीर में नसों से चिपक जाता है और उन्हें हार्ट अटैक ब्लॉक कर देता है, जिससे धमनियों में रक्त का प्रवाह धीमा हो जाता है इससे दिल का दौरा और स्ट्रोक का खतरा बढ़ सकता है। दालों में घुलनशील फाइबर होते हैं, जो पाचन तंत्र में कोलेस्ट्रॉल को बांधकर शरीर से निकाल देते हैं हार्ट अटैक हृदय रोग दुनिया में मौत का प्रमुख कारण है। जिन लोगों में खराब कोलेस्ट्रॉल का स्तर अधिक होता है, उनमें हृदय…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
kisturdas · 9 months
Text
Tumblr media
SATLOKASHRAMSOJAT . कबीर .इतनी लंम्बी उमर .मरेगा अंत रे
सतगुरू मिले . तो पहुँचेगा सतलोक रे……
============================
।।सर्व प्रभुओं की आयु मानव वर्ष अनुसार।।
इंद्र - 31 करोड़ लगभग
शची
(14 इन्द्रौं
की पत्नी) - 4 अरब लगभग
ब्राह्मा जी - 31 लाख करोड़ लगभग
विष्णु जी - 2 अरब लाख लगभग
शिवजी - 15 लाख अरब लगभग
ब्रह्म-काल- 25 खरब करोड़ लगभग
परब्रह्म - 2 पदम अरब लगभग
पूर्णब्रह्म कबिर्देव- अजर-अमर
एक ब्रह्मा की आयु 100 (सौ) वर्ष है,किस तरह के 100 वर्ष की है। गौर से नीचे देखिये
@@@@@@@@@@@@@@@@@@
ब्रह्मा का एक दिन = 1008 (एक हजार) चतुर्युग तथा इतनी ही 1008 (एक हज़ार)चतुर्युग की रात्री।
दिन+रात = 2016 (दो हजार सोलह) चतुर्युग।
चार युगो ( (चतुर्युग) की आयु
@@@@@@@@@@@@@@@
सतयुग की आयु = 17,28,000 वर्ष
(17 लाख 28 हजार)
द्वापर युग की आयु = 12,96,000 वर्ष
(12 लाख 96 हज़ार)
त्रेता युग की आयु = 8,64,000 वर्ष
(8 लाख 64 हज़ार)
कलयुग की आयु = 4,32,000 वर्ष
(4 लाख 32 हज़ार)
चार युगौं (चतुर्युग)
की आयु = 43,20,000 वर्ष
43 लाख 20 हज़ार
{नोट - ब्रह्मा जी के एक दिन में 14 इन्द्रों का शासन काल समाप्त हो जाता है। एक इन्द्र का शासन काल बहतर चतुर्युग का होता है।
इंद्र की बीबी शची 14 ईन्द्रौं की बीबी बनती है, फ़िर ये सभी 14 ईन्द्र मर कर गधे बनते है और शची भी मर कर गधी का जीवन प्राप्त होता है.)
इस प्रकार इंद्र का जीवनकाल
®®®®®®®®®®®®®®®
72 चतुर्युग × 43,20,000 = 31,10,40,000
मानव बर्ष
(31 करोड़ 10 लाख 40 हजार मानव वर्ष अनुसार )
शची (14 इंद्रौ की पत्नी) का जीवन काल
®®®®®®®®®®®®®®®®®®®®
1008 चतुर्युग× 43,20,000 = 4,35,45,60,000 मानव वर्ष
(4 अरब 33 करोड़ 45 लाख 60 हजार मानव वर्ष अनुसार)
इस प्रकार ब्रह्मा जी का एक दिन और रात 2016 चतुर्युग.
1 महीना = 30 गुणा 2016 = 60480 चतुर्युग।
वर्ष = 12 गुणा 60480 = 725760चतुर्युग ।
ब्रह्मा जी की आयु -
®®®®®®®®®
1 महीना = 30 × 2016 = 60480 चतुर्युग।
वर्ष = 12 × 60480 = 725760चतुर्युग ।
7,25,760 × 100 =7,25,76,000 चतुर्युग × 43,20,000(1चतुर्युग)=31,35,28,32,00,00,000 मानव वर्ष
ब्राह्मा जी की आयु है.
(31 नील 33 खरब 28 अरब 32 लाख मानव वर्ष अनुसार )
ब्रह्मा जी से सात गुणा विष्णु जी की आयु -
®®®®®®®®®®®®®®®®®®®®
7,25,76,000 × 7 = 50,80,32,000 चतुर्युग × 43,20,000(1चतुर्युग) = 2,19,46,98,24,00,00,000 मानव वर्ष
विष्णुजी की आयु है।
(2 पदम 19 मील 46 खरब 98 अरब 24 करोड़ मानव वर्ष अनुसार)
विष्णु से सात गुणा शिव जी की आयु -
®®®®®®®®®®®®®®®®®®
50,80,32,000 × 7 = 3,55,62,24,000 चतुर्युग 15,36,28,87,68,00,00,000 मानव वर्ष .
शिवजी की आयु है
(15 पदम 36 मील 48 खरब 87 अरब 68 करोड़ मानव वर्ष अनुसार )
ऐसे 3,55,62,24,000 चतुर्युग वाले जब सत्तर हजार (70,000) शिवजी मरते है तब ब्राह्मा-विश्नू -शंकर के पिता ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) और इनकी माता दुर्गा -शेरावाली भी मर जाते है.
ब्राह्मा-विश्नू -शंकर के पिता ज्योति निरंजन और दुर्गा -शेरावाली की आयु-
®®®®®®®®®®®®®®®®®®®®
3,55,62,24,000×70000= 24,89,35,68,00,00,000 चतुर्युग × (1चतुर्युग) = 2,24,04,21,12,00,00,00,00,000 मानव वर्ष
( 25 खरब करोड़ लगभग मानव वर्ष अनुसार)
पूर्ण परमात्मा के द्वारा पूर्व निर्धारित किए 24,89,35,68,00,00,000 चतुर्युग अर्थात 2,24,04,21,12,00,00,00,00,000 मानव वर्ष
समय में काल- ब्राह्म और दुर्गा शेरावाली के 21 ब्रह्मांडो मे से जिस 1 ब्रह्मांड में स्रषटि चल रही होती है उस ब्रह्मांड में महाप्रलय होती है।
यह (सत्तर हजार शिव की मृत्यु अर्थात् एक सदाशिव/ज्योति निरंजन की मृत्यु होती है) एक युग होता है परब्रह्म का।
परब्रह्म का 1 दिन एक हजार युग का होता है इतनी ही 1 हज़ार युग की रात्री होती है 30 दिन-रात का 1 महिना तथा 12 महिनों का परब्रह्म का 1 वर्ष हुआ तथा इस प्रकार का 100 वर्ष की परब्रह्म की आयु है। परब्रह्म की भी मृत्यु होती है। ब्रह्म अर्थात् ज्योति निरंजन की मृत्यु परब्रह्म के एक दिन के पश्चात् ही हो जाती है
परब्रह्म की आयु
®®®®®®®®®
इस प्रकार परब्रह्म जी का एक दिन और रात 1,000 +1,000 = 2,000 युग
1 महीना = 30 × 2,000= 6,000 युग
1 वर्ष = 12 × 6,000= 72,000 युग ।
100 वर्ष = 100 × 72,000 = 72,00,000 युग.
72,00,000 युग × 2,24,04,21,12,00,00,00,00,000 काल के जीवन के मानव वर्ष = 2,01,63,79,00,80,00,00,00,00,00,00,000
(2 पदम अरब लगभग मानव वर्ष अनुसार)
नोट-
अर्थात परब्रह्म के जीवन काल में 72,00,000 बार काल- ब्राह्म और दुर्गा शेरावाली का जन्म-मरण हो जाता है!!!.
परब्रह्म के सौ वर्ष पूरे होने के पश्चात परब्रह्म की भी म्रत्यु हो जाती है.ईस तीसरी दिव्य महाप्रलय में एक धुधुंकार शंख बजता है .और परब्रह्म सहित इसके 7 संख ब्रह्मांडो के सभी जीव ,काल-ब्रह्म और दुर्गा सहित सर्व 21 ब्रह्मण्ड,उसके जीव ,ब्रह्मा- विश्नू -शिवजी , देव,ऋषि व अन्य ब्रह्मांड सब कुछ नष्ट हो जाते हैं।
कबीर .इतनी लंम्बी उमर .मरेगा अंत रे
सतगुरू मिले . तो पहुँचेगा सतलोक रे.……………………
केवल सतलोक व ऊपर के तीनों लोक अगम लोक,अलख लोक,अनामी लोक ही शेष रह���े हैं।
सतपूरुष के बनाये विधान द्वारा सतपूरुष के पुत्र अचिन्त द्वारा ये तीसरी दिव्य महाप्रलय और फ़िर स्रषटि रची जाती है. किंतु सतलोक गये जीव फ़िर जन्म -मरण में नही आते है.
इस प्रकार कबिर्देव परमात्मा ने कहा है कि करोड़ों ज्योति निरंजन मर लिए मेरी एक पल भी आयु कम नहीं हुई है अर्थात् मैं वास्तव में अमर पुरुष कबिर्देव हुँ|
www.jagatgururampalji.org पर जाकर ज्ञान गंगा पुस्तक डाउन्लोड कर अवश्य पढीये. या घर पर मुफ़्त पुस्तक प्राप्त करने के लिए अपना पता मेसेज किजिये.
सर्वजन हित में जारी.
शेयर अवश्य किजिये.. कबीर .इतनी लंम्बी उमर .मरेगा अंत रे
सतगुरू मिले . तो पहुँचेगा सतलोक रे……
============================
।।सर्व प्रभुओं की आयु मानव वर्ष अनुसार।।
इंद्र - 31 करोड़ लगभग
शची
(14 इन्द्रौं
की पत्नी) - 4 अरब लगभग
ब्राह्मा जी - 31 लाख करोड़ लगभग
विष्णु जी - 2 अरब लाख लगभग
शिवजी - 15 लाख अरब लगभग
ब्रह्म-काल- 25 खरब करोड़ लगभग
परब्रह्म - 2 पदम अरब लगभग
पूर्णब्रह्म कबिर्देव- अजर-अमर
एक ब्रह्मा की आयु 100 (सौ) वर्ष है,किस तरह के 100 वर्ष की है। गौर से नीचे देखिये
@@@@@@@@@@@@@@@@@@
ब्रह्मा का एक दिन = 1008 (एक हजार) चतुर्युग तथा इतनी ही 1008 (एक हज़ार)चतुर्युग की रात्री।
दिन+रात = 2016 (दो हजार सोलह) चतुर्युग।
चार युगो ( (चतुर्युग) की आयु
@@@@@@@@@@@@@@@
सतयुग की आयु = 17,28,000 वर्ष
(17 लाख 28 हजार)
द्वापर युग की आयु = 12,96,000 वर्ष
(12 लाख 96 हज़ार)
त्रेता युग की आयु = 8,64,000 वर्ष
(8 लाख 64 हज़ार)
कलयुग की आयु = 4,32,000 वर्ष
(4 लाख 32 हज़ार)
चार युगौं (चतुर्युग)
की आयु = 43,20,000 वर्ष
43 लाख 20 हज़ार
{नोट - ब्रह्मा जी के एक दिन में 14 इन्द्रों का शासन काल समाप्त हो जाता है। एक इन्द्र का शासन काल बहतर चतुर्युग का होता है।
इंद्र की बीबी शची 14 ईन्द्रौं की बीबी बनती है, फ़िर ये सभी 14 ईन्द्र मर कर गधे बनते है और शची भी मर कर गधी का जीवन प्राप्त होता है.)
इस प्रकार इंद्र का जीवनकाल
®®®®®®®®®®®®®®®
72 चतुर्युग × 43,20,000 = 31,10,40,000
मानव बर्ष
(31 करोड़ 10 लाख 40 हजार मानव वर्ष अनुसार )
शची (14 इंद्रौ की पत्नी) का जीवन काल
®®®®®®®®®®®®®®®®®®®®
1008 चतुर्युग× 43,20,000 = 4,35,45,60,000 मानव वर्ष
(4 अरब 33 करोड़ 45 लाख 60 हजार मानव वर्ष अनुसार)
इस प्रकार ब्रह्मा जी का एक दिन और रात 2016 चतुर्युग.
1 महीना = 30 गुणा 2016 = 60480 चतुर्युग।
वर्ष = 12 गुणा 60480 = 725760चतुर्युग ।
ब्रह्मा जी की आयु -
®®®®®®®®®
1 महीना = 30 × 2016 = 60480 चतुर्युग।
वर्ष = 12 × 60480 = 725760चतुर्युग ।
7,25,760 × 100 =7,25,76,000 चतुर्युग × 43,20,000(1चतुर्युग)=31,35,28,32,00,00,000 मानव वर्ष
ब्राह्मा जी की आयु है.
(31 नील 33 खरब 28 अरब 32 लाख मानव वर्ष अनुसार )
ब्रह्मा जी से सात गुणा विष्णु जी की आयु -
®®®®®®®®®®®®®®®®®®®®
7,25,76,000 × 7 = 50,80,32,000 चतुर्युग × 43,20,000(1चतुर्युग) = 2,19,46,98,24,00,00,000 मानव वर्ष
विष्णुजी की आयु है।
(2 पदम 19 मील 46 खरब 98 अरब 24 करोड़ मानव वर्ष अनुसार)
विष्णु से सात गुणा शिव जी की आयु -
®®®®®®®®®®®®®®®®®®
50,80,32,000 × 7 = 3,55,62,24,000 चतुर्युग 15,36,28,87,68,00,00,000 मानव वर्ष .
शिवजी की आयु है
(15 पदम 36 मील 48 खरब 87 अरब 68 करोड़ मानव वर्ष अनुसार )
ऐसे 3,55,62,24,000 चतुर्युग वाले जब सत्तर हजार (70,000) शिवजी मरते है तब ब्राह्मा-विश्नू -शंकर के पिता ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) और इनकी माता दुर्गा -शेरावाली भी मर जाते है.
ब्राह्मा-विश्नू -शंकर के पिता ज्योति निरंजन और दुर्गा -शेरावाली की आयु-
®®®®®®®®®®®®®®®®®®®®
3,55,62,24,000×70000= 24,89,35,68,00,00,000 चतुर्युग × (1चतुर्युग) = 2,24,04,21,12,00,00,00,00,000 मानव वर्ष
( 25 खरब करोड़ लगभग मानव वर्ष अनुसार)
पूर्ण परमात्मा के द्वारा पूर्व निर्धारित किए 24,89,35,68,00,00,000 चतुर्युग अर्थात 2,24,04,21,12,00,00,00,00,000 मानव वर्ष
समय में काल- ब्राह्म और दुर्गा शेरावाली के 21 ब्रह्मांडो मे से जिस 1 ब्रह्मांड में स्रषटि चल रही होती है उस ब्रह्मांड में महाप्रलय होती है।
यह (सत्तर हजार शिव की मृत्यु अर्थात् एक सदाशिव/ज्योति निरंजन की मृत्यु होती है) एक युग होता है परब्रह्म का।
परब्रह्म का 1 दिन एक हजार युग का होता है इतनी ही 1 हज़ार युग की रात्री होती है 30 दिन-रात का 1 महिना तथा 12 महिनों का परब्रह्म का 1 वर्ष हुआ तथा इस प्रकार का 100 वर्ष की परब्रह्म की आयु है। परब्रह्म की भी मृत्यु होती है। ब्रह्म अर्थात् ज्योति निरंजन की मृत्यु परब्रह्म के एक दिन के पश्चात् ही हो जाती है
परब्रह्म की आयु
®®®®®®®®®
इस प्रकार परब्रह्म जी का एक दिन और रात 1,000 +1,000 = 2,000 युग
1 महीना = 30 × 2,000= 6,000 युग
1 वर्ष = 12 × 6,000= 72,000 युग ।
100 वर्ष = 100 × 72,000 = 72,00,000 युग.
72,00,000 युग × 2,24,04,21,12,00,00,00,00,000 काल के जीवन के मानव वर्ष = 2,01,63,79,00,80,00,00,00,00,00,00,000
(2 पदम अरब लगभग मानव वर्ष अनुसार)
नोट-
अर्थात परब्रह्म के जीवन काल में 72,00,000 बार काल- ब्राह्म और दुर्गा शेरावाली का जन्म-मरण हो जाता है!!!.
परब्रह्म के सौ वर्ष पूरे होने के पश्चात परब्रह्म की भी म्रत्यु हो जाती है.ईस तीसरी दिव्य महाप्रलय में एक धुधुंकार शंख बजता है .और परब्रह्म सहित इसके 7 संख ब्रह्मांडो के सभी जीव ,काल-ब्रह्म और दुर्गा सहित सर्व 21 ब्रह्मण्ड,उसके जीव ,ब्रह्मा- विश्नू -शिवजी , देव,ऋषि व अन्य ब्रह्मांड सब कुछ नष्ट हो जाते हैं।
कबीर .इतनी लंम्बी उमर .मरेगा अंत रे
सतगुरू मिले . तो पहुँचेगा सतलोक रे.……………………
केवल सतलोक व ऊपर के तीनों लोक अगम लोक,अलख लोक,अनामी लोक ही शेष रहते हैं।
सतपूरुष के बनाये विधान द्वारा सतपूरुष के पुत्र अचिन्त द्वारा ये तीसरी दिव्य महाप्रलय और फ़िर स्रषटि रची जाती है. किंतु सतलोक गये जीव फ़िर जन्म -मरण में नही आते है.
इस प्रकार कबिर्देव परमात्मा ने कहा है कि करोड़ों ज्योति निरंजन मर लिए मेरी एक पल भी आयु कम नहीं हुई है अर्थात् मैं वास्तव में अमर पुरुष कबिर्देव हुँ|
www.jagatgururampalji.org पर जाकर ज्ञान गंगा पुस्तक डाउन्लोड कर अवश्य पढीये. या घर पर मुफ़्त पुस्तक प्राप्त करने के लिए अपना पता मेसेज किजिये.
सर्वजन हित में जारी.
शेयर अवश्य किजिये.
4 notes · View notes
sujit-kumar · 1 year
Text
कबीर बड़ा या कृष्ण Part 110
संक्षिप्त सृष्टि रचना
सृष्टि रचना
(सूक्ष्मवेद से निष्कर्ष रूप सृष्टि रचना का वर्णन)
प्रभु प्रेमी आत्माऐं प्रथम बार निम्न सृष्टि रचना को पढ़ेंगे तो ऐसे लगेगा जैसे दन्त कथा हो, परंतु सर्व पवित्र सद्ग्रन्थों के प्रमाणों को पढ़कर दाँतों तले ऊंगली दबाऐंगे कि यह वास्तविक अमृत ज्ञान कहाँ छुपा था? कृप्या धैर्य के साथ पढ़ें तथा इस अमृत ज्ञान को सुरक्षित रखें। आपकी एक सौ एक पीढ़ी तक काम आएगा। पवित्रात्माऐं कृप्या सत्यनारायण (अविनाशी प्रभु/सतपुरूष) द्वारा रची सृष्टि रचना का वास्तविक ज्ञान पढ़ें।
पूर्ण ब्रह्म:- इस सृष्टि रचना में सतपुरुष-सतलोक का स्वामी (प्रभु), अलख पुरुष-अलख लोक का स्वामी (प्रभु), अगम पुरुष-अगम लोक का स्वामी (प्रभु) तथा अनामी पुरुष-अनामी अकह लोक का स्वामी (प्रभु) तो एक ही पूर्ण ब्रह्म है, जो वास्तव में अविनाशी प्रभु है जो भिन्न-2 रूप धारण करके अपने चारों लोकों में रहता है। जिसके अन्तर्गत असंख्य ब्रह्माण्ड आते हैं।
परब्रह्म:- यह केवल सात संख ब्रह्माण्ड का स्वामी (प्रभु) है। यह अक्षर पुरुष भी कहलाता है। परन्तु यह तथा इसके ब्रह्माण्ड भी वास्तव में अविनाशी नहीं है।
ब्रह्म:- यह केवल इक्कीस ब्रह्माण्ड का स्वामी (प्रभु) है। इसे क्षर पुरुष, ज्योति निरंजन, काल आदि उपमा से जाना जाता है। यह तथा इसके सर्व ब्रह्माण्ड नाशवान हैं। (उपरोक्त तीनों पुरूषों (प्रभुओं) का प्रमाण पवित्र श्री मद्भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक 16-17 में भी है।)
ब्रह्मा:- ब्रह्मा इसी ब्रह्म का ज्येष्ठ पुत्र है, विष्णु मध्य वाला पुत्र है तथा शिव अंतिम तीसरा पुत्र है। ये तीनों ब्रह्म के पुत्र केवल एक ब्रह्माण्ड में एक विभाग (गुण) के स्वामी (प्रभु) हैं तथा नाशवान हैं। विस्तृत विवरण के लिए कृप्या पढ़ें निम्न लिखित सृष्टि रचना:-
{कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने सुक्ष्म वेद अर्थात् कबिर्बाणी में अपने द्वारा रची सृष्टि का ज्ञान स्वयं ही बताया है जो निम्नलिखित है}
सर्व प्रथम केवल एक स्थान ‘अनामी (अनामय) लोक‘ था। जिसे अकह लोक भी कहा जाता है, पूर्ण परमात्मा उस अनामी लोक में अकेला रहता था। उस परमात्मा का वास्तविक नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है। सभी आत्माऐं उस पूर्ण धनी के शरीर में समाई हुई थी। इसी कविर्देव का उपमात्मक (पदवी का) नाम अनामी पुरुष है। (पुरुष का अर्थ प्रभु होता है। प्रभु ने मनुष्य को अपने ही स्वरूप में बनाया है, इसलिए मानव का नाम भी पुरुष ही पड़ा है।) अनामी पुरूष के एक रोम (शरीर के बाल) का प्रकाश संख सूर्यों की रोशनी से भी अधिक है।
विशेष:- जैसे किसी देश के आदरणीय प्रधान मंत्री जी का शरीर का नाम तो अन्य होता है तथा पद का उपमात्मक (पदवी का) नाम प्रधानमंत्री होता है। कई बार प्रधानमंत्री जी अपने पास कई विभाग भी रख लेते हैं। तब जिस भी विभाग के दस्त्तावेजों पर हस्त्ताक्षर करते हैं तो उस समय उसी पद को लिखते हैं। जैसे गृह मंत्रालय के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करेगें तो अपने को गृह मंत्री लिखेगें। वहाँ उसी व्यक्ति के हस्त्ताक्षर की शक्ति कम होती है। इसी प्रकार कबीर परमेश्वर (कविर्देव) की रोशनी में अंतर भिन्न-2 लोकों में होता जाता है।
ठीक इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने नीचे के तीन और लोकों (अगमलोक, अलख लोक, सतलोक) की रचना शब्द(वचन) से की। यही पूर्णब्रह्म परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ही अगम लोक में प्रकट हुआ तथा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) अगम लोक का भी स्वामी है तथा वहाँ इनका उपमात्मक (पदवी का) नाम अगम पुरुष अर्थात् अगम प्रभु है। इसी अगम प्रभु का मानव सदृश शरीर बहुत तेजोमय है जिसके एक रोम (शरीर के बाल) की रोशनी खरब सूर्य की रोशनी से भी अधिक है।
यह पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबिर देव=कबीर परमेश्वर) अलख लोक में प्रकट हुआ तथा स्वयं ही अलख लोक का भी स्वामी है तथा उपमात्मक (पदवी का) नाम अलख पुरुष भी इसी परमेश्वर का है तथा इस पूर्ण प्रभु का मानव सदृश शरीर तेजोमय (स्वज्र्योति) स्वयं प्रकाशित है। एक रोम (शरीर के बाल) की रोशनी अरब सूर्यों के प्रकाश से भी ज्यादा है।
यही पूर्ण प्रभु सतलोक में प्रकट हुआ तथा सतलोक का भी अधिपति यही है। इसलिए इसी का उपमात्मक (पदवी का) नाम सतपुरुष (अविनाशी प्रभु)है। इसी का नाम अकालमूर्ति - शब्द स्वरूपी राम - पूर्ण ब्रह्म - परम अक्षर ब्रह्म आदि हैं। इसी सतपुरुष कविर्देव (कबीर प्रभु) का मानव सदृश शरीर तेजोमय है। जिसके एक रोम (शरीर के बाल) का प्रकाश करोड़ सूर्यों तथा इतने ही चन्द्रमाओं के प्रकाश से भी अधिक है।
इस कविर्देव (कबीर प्रभु) ने सतपुरुष रूप में प्रकट होकर सतलोक में विराजमान होकर प्रथम सतलोक में अन्य रचना की।
एक शब्द (वचन) से सोलह द्वीपों की रचना की। फिर सोलह शब्दों से सोलह पुत्रों की उत्पत्ति की। एक मानसरोवर की रचना की जिसमें अमृत भरा। सोलह पुत्रों के नाम हैं:-(1) ‘‘कूर्म’’, (2)‘‘ज्ञानी’’, (3) ‘‘विवेक’’, (4) ‘‘तेज’’, (5) ‘‘सहज’’, (6) ‘‘सन्तोष’’, (7)‘‘सुरति’’, (8) ‘‘आनन्द’’, (9) ‘‘क्षमा’’, (10) ‘‘निष्काम’’, (11) ‘जलरंगी‘ (12)‘‘अचिन्त’’, (13) ‘‘पे्रम’’, (14) ‘‘दयाल’’, (15) ‘‘धैर्य’’ (16) ‘‘योग संतायन’’ अर्थात् ‘‘योगजीत‘‘।
सतपुरुष कविर्देव ने अपने पुत्र अचिन्त को सत्यलोक की अन्य रचना का भार सौंपा तथा शक्ति प्रदान की। अचिन्त ने अक्षर पुरुष (परब्रह्म) की शब्द से उत्पत्ति की तथा कहा कि मेरी मदद करना। अक्षर पुरुष स्नान करने मानसरोवर पर गया, वहाँ आनन्द आया तथा सो गया। लम्बे समय तक बाहर नहीं आया। तब अचिन्त की प्रार्थना पर अक्षर पुरुष को नींद से जगाने के लिए कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने उसी मानसरोवर से कुछ अमृत जल लेकर एक अण्डा बनाया तथा उस अण्डे में एक आत्मा प्रवेश की तथा अण्डे को मानसरोवर के अमृत जल में छोड़ा। अण्डे की गड़गड़ाहट से अक्षर पुरुष की निंद्रा भंग हुई। उसने अण्डे को क्रोध से देखा जिस कारण से अण्डे के दो भाग हो गए। उसमें से ज्योति निंरजन (क्षर पुरुष) निकला जो आगे चलकर ‘काल‘ कहलाया। इसका वास्तविक नाम ‘‘कैल‘‘ है। तब सतपुरुष (कविर्देव) ने आकाशवाणी की कि आप दोनों बाहर आओ तथा अचिंत के द्वीप में रहो। आज्ञा पाकर अक्षर पुरुष तथा क्षर पुरुष (कैल) दोनों अचिंत के द्वीप में रहने लगे (बच्चों की नालायकी उन्हीं को दिखाई कि कहीं फिर प्रभुता की तड़फ न बन जाए, क्योंकि समर्थ बिन कार्य सफल नहीं होता) फिर पूर्ण धनी कविर्देव ने सर्व रचना स्वयं की। अपनी शब्द शक्ति से एक राजेश्वरी (राष्ट्री) शक्ति उत्पन्न की, जिससे सर्व ब्रह्माण्डों को स्थापित किया। इसी को पराशक्ति परानन्दनी भी कहते हैं। पूर्ण ब्रह्म ने सर्व आत्माओं को अपने ही अन्दर से अपनी वचन शक्ति से अपने मानव शरीर सदृश उत्पन्न किया। प्रत्येक हंस आत्मा का परमात्मा जैसा ही शरीर रचा जिसका तेज 16 (सोलह) सूर्यों जैसा मानव सदृश ही है। परन्तु परमेश्वर के शरीर के एक रोम (शरीर के बाल) का प्रकाश करोड़ों सूर्यों से भी ज्यादा है। बहुत समय उपरान्त क्षर पुरुष (ज्योति निरंजन) ने सोचा कि हम तीनों (अचिन्त अक्षर पुरुष - क्षर पुरुष) एक द्वीप में रह रहे हैं तथा अन्य एक-एक द्वीप में रह रहे हैं। मैं भी साधना करके अलग द्वीप प्राप्त करूँगा। उसने ऐसा विचार करके एक पैर पर खड़ा होकर सत्तर (70) युग तक तप किया।
फिर सतपुरुष जी ने पूछा कि अब क्या चाहता है? क्षर पुरुष ने कहा कि सृष्टि रचना की सामग्री देने की कृपा करें। सतपुरुष जी ने उसको पाँच तत्व (जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु तथा आकाश) तथा तीन गुण (रजगुण, सतगुण तथा तमगुण) दे दिये तथा कहा कि इनसे अपनी रचना कर।
क्षर पुरूष ने तीसरी बार फिर तप प्रारम्भ किया। जब 64 (चैंसठ) युग तप करते हो गए तो सत्य पुरूष जी ने पूछा कि आप और क्या चाहते हैं? क्षर पुरूष (ज्योति निरंजन) ने कहा कि मुझे कुछ आत्मा दे दो। मेरा अकेले का दिल नहीं लग रहा। क्षर पुरूष को आत्मा ऐसे मिली, आगे पढ़ेंः-
‘‘हम काल के लोक में कैसे आए ?’’
जिस समय क्षर पुरुष (ज्योति निरंजन) एक पैर पर खड़ा होकर तप कर रहा था। तब हम सभी आत्माऐं इस क्षर पुरुष पर आकर्षित हो गए। जैसे जवान बच्चे अभिनेता व अभिनेत्री पर आसक्त हो जाते हैं। लेना एक न देने दो। व्यर्थ में चाहने लग जाते हैं। वे अपनी कमाई करने के लिए नाचते-कूदते हैं। युवा-बच्चे उन्हें देखकर अपना धन नष्ट करते हैं। ठीक इसी प्रकार हम अपने परमपिता सतपुरुष को छोड़कर काल पुरुष (क्षर पुरुष) को हृदय से चाहने लग गए थे। जो परमेश्वर हमें सर्व सुख सुविधा दे रहा था। उससे मुँह मोड़कर इस नकली ड्रामा करने वाले काल ब्रह्म को चाहने लगे। सत पुरुष जी ने बीच-बीच में बहुत बार आकाशवाणी की कि बच्चो तुम इस काल की क्रिया को मत देखो, मस्त रहो। हम ऊपर से तो सावधान हो गए, परन्तु अन्दर से चाहते रहे। परमेश्वर तो अन्तर्यामी है। इन्होंने जान लिया कि ये यहाँ रखने के योग्य नहीं रहे। काल पुरुष (क्षर पुरुष = ज्योति निरंजन) ने जब दो बार तप करके फल प्राप्त कर लिया तब उसने सोचा कि अब कुछ जीवात्मा भी मेरे साथ रहनी चाहिए। मेरा अकेले का दिल नहीं लगेगा। इसलिए जीवात्मा प्राप्ति के लिए तप करना शुरु किया। 64 युग तक तप करने के पश्चात् परमेश्वर जी ने पूछा कि ज्योति निरंजन अब किसलिए तप कर रहा है? क्षर पुरुष ने कहा कि कुछ आत्माएं प्रदान करो, मेरा अकेले का दिल नहीं लगता। सतपुरुष ने कहा कि तेरे तप के बदले में और ब्रह्माण्ड दे सकता हूं, परन्तु अपनी आत्माएं नहीं दूँगा। ये मेरे शरीर से उत्पन्न हुई हैं। हाँ, यदि वे स्वयं जाना चाहते हैं तो वह जा सकते हैं। युवा कविर् (समर्थ कबीर) के वचन सुनकर ज्योति निरंजन हमारे पास आया। हम सभी हंस आत्मा पहले से ही उस पर आसक्त थे। हम उसे चारों तरफ से घेरकर खड़े हो गए। ज्योति निरंजन ने कहा कि मैंने पिता जी से अलग 21 ब्रह्माण्ड प्राप्त किए हैं। वहाँ नाना प्रकार के रमणीय स्थल बनाए हैं। क्या आप मेरे साथ चलोगे? हम सभी हंसों ने जो आज 21 ब्रह्माण्डों में परेशान हैं, कहा कि हम तैयार हैं। यदि पिता जी आज्ञा दें, तब क्षर पुरूष(काल), पूर्ण ब्रह्म महान् कविर् (समर्थ कबीर प्रभु) के पास गया तथा सर्व वार्ता कही। तब कविरग्नि (कबीर परमेश्वर) ने कहा कि मेरे सामने स्वीकृति देने वाले को आज्ञा दूँगा। क्षर पुरूष तथा परम अक्षर पुरूष (कविर्िमतौजा) दोनों हम सभी हंसात्माओं के पास आए। सत् कविर्देव ने कहा कि जो हंसात्मा ब्रह्म के साथ जाना चाहता हैं, हाथ ऊपर करके स्वीकृति दें। अपने पिता के सामने किसी की हिम्मत नहीं हुई। किसी ने स्वीकृति नहीं दी। बहुत समय तक सन्नाटा छाया रहा। तत्पश्चात् एक हंस आत्मा ने साहस किया तथा कहा कि पिता जी मैं जाना चाहता हूँ। फिर तो उसकी देखा-देखी (जो आज काल(ब्रह्म) के इक्कीस ब्रह्माण्डों में फँसी हैं) हम सभी आत्माओं ने स्वीकृति दे दी। परमेश्वर कबीर जी ने ज्योति निरंजन से कहा कि आप अपने स्थान पर जाओ। जिन्होंने तेरे साथ जाने की स्वीकृति दी है, मैं उन सर्व हंस आत्माओं को आपके पास भेज दूँगा। ज्योति निरंजन अपने 21 ब्रह्माण्डों में चला गया। उस समय तक यह इक्कीस ब्रह्माण्ड सतलोक में ही थे।
तत्पश्चात् पूर्ण ब्रह्म ने सर्व प्रथम स्वीकृति देने वाले हंस को लड़की का रूप दिया परन्तु स्त्राी इन्द्री नहीं रची तथा सर्व आत्माओं को (जिन्होंने ज्योति निरंजन (ब्रह्म) के साथ जाने की सहमति दी थी) उस लड़की के शरीर में प्रवेश कर दिया तथा उसका नाम आष्ट्रा (आदि माया/प्रकृति देवी/दुर्गा) पड़ा तथा सत्यपुरूष ने कहा कि पुत्री मैंने तेरे को शब्द शक्ति प्रदान कर दी है। जितने जीव ब्रह्म कहे आप उत्पन्न कर देना। पूर्ण ब्रह्म कर्विदेव (कबीर साहेब) ने अपने पुत्र सहज दास के द्वारा प्रकृति को क्षर पुरूष के पास भिजवा दिया। सहज दास जी ने ज्योति निरंजन को बताया कि पिता जी ने इस बहन के शरीर में उन सब आत्माओं को प्रवेश कर दिया है, जिन्होंने आपके साथ जाने की सहमति व्यक्त की थी। इसक��� वचन शक्ति प्रदान की है, आप जितने जीव चाहोगे प्रकृति अपने शब्द से उत्पन्न कर देगी। यह कहकर सहजदास वापिस अपने द्वीप में आ गया। युवा होने के कारण लड़की का रंग-रूप निखरा हुआ था। ब्रह्म के अन्दर विषय-वासना उत्पन्न हो गई तथा प्रकृति देवी के साथ अभद्र गतिविधि प्रारम्भ की। तब दुर्गा ने कहा कि ज्योति निरंजन मेरे पास पिता जी की प्रदान की हुई शब्द शक्ति है। आप जितने प्राणी कहोगे मैं वचन से उत्पन्न कर दूँगी। आप मैथुन परम्परा शुरू मत करो। आप भी उसी पिता के शब्द से अण्डे से उत्पन्न हुए हो तथा मैं भी उसी परमपिता के वचन से ही बाद में उत्पन्न हुई हूँ। आप मेरे बड़े भाई हो, बहन-भाई का यह योग महापाप का कारण बनेगा। परन्तु ज्योति निरंजन ने प्रकृति देवी की एक भी प्रार्थना नहीं सुनी तथा अपनी शब्द शक्ति द्वारा नाखुनों से स्त्राी इन्द्री (भग) प्रकृति को ल���ा दी तथा बलात्कार करने की ठानी। उसी समय दुर्गा ने अपनी इज्जत रक्षा के लिए कोई और चारा न देखकर सूक्ष्म रूप बनाया तथा ज्योति निरंजन के खुले मुख के द्वारा पेट में प्रवेश करके पूर्ण ब्रह्म कविर् देव से अपनी रक्षा के लिए याचना की। उसी समय कर्विदेव(कविर् देव) अपने पुत्र योग संतायन अर्थात् जोगजीत का रूप बनाकर वहाँ प्रकट हुए तथा कन्या को ब्रह्म के उदर से बाहर निकाला तथा कहा ज्योति निरंजन आज से तेरा नाम ‘काल‘ होगा। तेरे जन्म-मृत्यु होते रहेंगे। इसीलिए तेरा नाम क्षर पुरूष होगा तथा एक लाख मानव शरीर धारी प्रणियों को प्रतिदिन खाया करेगा व सवा लाख उत्पन्न किया करेगा। आप दोनों को इक्कीस ब्रह्माण्ड सहित निष्कासित किया जाता है। इतना कहते ही इक्कीस ब्रह्माण्ड विमान की तरह चल पड़े। सहज दास के द्वीप के पास से होते हुए सतलोक से सोलह शंख कोस (एक कोस लगभग 3 कि.मी. का होता है) की दूरी पर आकर रूक गए। विशेष विवरण:- अब तक तीन शक्तियों का विवरण आया है।
पूर्णब्रह्म जिसे अन्य उपमात्मक नामों से भी जाना जाता है, जैसे सतपुरूष, अकालपुरूष, शब्द स्वरूपी राम, परम अक्षर ब्रह्म/पुरूष आदि। यह पूर्णब्रह्म असंख्य ब्रह्माण्डों का स्वामी है तथा वास्तव में अविनाशी है।
परब्रह्म जिसे अक��षर पुरूष भी कहा जाता है। यह वास्तव में अविनाशी नहीं है। यह सात शंख ब्रह्माण्डों का स्वामी है।
ब्रह्म जिसे ज्योति निरंजन, काल, कैल, क्षर पुरूष तथा धर्मराय आदि नामों से जाना जाता है जो केवल इक्कीस ब्रह्माण्ड का स्वामी है। अब आगे इसी ब्रह्म (काल) की सृष्टि के एक ब्रह्माण्ड का परिचय दिया जाएगा जिसमें तीन और नाम आपके पढ़ने में आयेंगेः- ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव। ब्रह्म तथा ब्रह्मा में भेद - एक ब्रह्माण्ड में बने सर्वोपरि स्थान पर ब्रह्म (क्षर पुरूष) स्वयं तीन गुप्त स्थानों की रचना करके ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव रूप में रहता है तथा अपनी पत्नी प्रकृति (दुर्गा) के सहयोग से तीन पुत्रों की उत्पत्ति करता है। उनके नाम भी ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव ही रखता है। जो ब्रह्म का पुत्र ब्रह्मा है, वह एक ब्रह्माण्ड में केवल तीन लोकों (पृथ्वी लोक, स्वर्ग लोक तथा पाताल लोक) में एक रजोगुण विभाग का मंत्री (स्वामी) है। इसे त्रिलोकिय ब्रह्मा कहा है तथा ब्रह्म जो ब्रह्मलोक में ब्रह्मा रूप में रहता है, उसे महाब्रह्मा व ब्रह्मलोकिय ब्रह्मा कहा है। इसी ब्रह्म (काल) को सदाशिव, महाशिव, महाविष्णु भी कहा है।
श्री विष्णु पुराण में प्रमाण:- चतुर्थ अंश अध्याय 1 पृष्ठ 230-231 पर श्री ब्रह्मा जी ने कहाः- जिस अजन्मा सर्वमय विधाता परमेश्वर का आदि, मध्य, अन्त, स्वरूप, स्वभाव और सार हम नहीं जान पाते। (श्लोक 83)
जो मेरा रूप धारण कर संसार की रचना करता है, स्थिति के समय जो पुरूष रूप है तथा जो रूद्र रूप से विश्व का ग्रास कर जाता है, अनन्त रूप से सम्पूर्ण जगत् को धारण करता है।(श्लोक 86)
•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
Tumblr media
2 notes · View notes
sanu969069 · 10 days
Text
#दहेज_लालची_के_मत_ब्याहो_बेटी
कबीर,अरब - खरब धन जोड़ियां, करिया लाख फरेब।
इसे रखोगे तुम कहां, नहीं कफन मैं जेब।।
Sant RampalJi Dowry Free Mission
Tumblr media
1 note · View note
jeevanjali · 4 months
Text
Bhagwad Gita Part 147: भगवान ब्रह्मा का एक दिन पृथ्वी के कितने खरब वर्ष के बराबर है? जानिए यह रहस्यBhagwad Gita Part 147: भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, कृष्ण का धाम सबसे उत्तम धाम है। जो जीवात्मा उस धाम को प्राप्त करती है फिर उसका जन्म नहीं होता है।
0 notes
todaybreakingnews24 · 7 months
Text
India won the Badminton: एशिया टीम चैंपियनशिप करुम चार फुर्सत के समय थे
Asia Team Badminton Championships crown for the first time India crowned Badminton Asia Team champions for 1st time as PV Sindhu, Anmol Kharb shine vs Thailand in final बैडमिंटन एशिया टीम चैंपियनशिप 2024: भारत ने पीवी सिंधु और 16 वर्षीय अनमोल खरब की प्रतिभा के दम पर मलेशिया में रविवार को एक कड़े फाइनल में थाईलैंड को 3-2 से हराया। यह पहली बार था जब भारत ने महाद्वीपीय टूर्नामेंट में खिताब…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
airnews-arngbad · 7 months
Text
Regional Marathi Text Bulletin, Chhatrapati Sambhajinagar
Date: 18 February 2024
Time: 01.00 to 01.05 PM
Language Marathi
आकाशवाणी छत्रपती संभाजीनगर
प्रादेशिक बातम्या
दिनांक: १८ फेब्रुवारी २०२४ दुपारी १.०० वा.
****
माजी राष्ट्रपीत रामनाथ कोविंद यांच्या अध्यतेखालील एक देश एक निवडणूक समितीनं काल नवी दिल्लीत राजनैतिक पक्ष आणि अन्य संबंधित घटकासोबत चर्चा केली. या बैठकीत जनता दल संयुक्तच्या वतीनं राजीव रंजन सिंह आणि पक्षाचे महासचिव संजय कुमार झा यांनी देशात एक निवडणूक घेण्यासाठी समर्थन दर्शवलं. अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषदेच्या शिष्टमंडळातल्या श्रीहरी बोरीकर, डॉक्टर सीमा सिंह आदींनी देखील यासाठी सहमती दर्शवली.
****
राज्याचा सर्वोच्च नागरी सन्मान महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार यासह अन्य पुरस्कार येत्या २२ फेब्रुवारीला मुंबईत वरळी इथं होणाऱ्या कार्यक्रमात मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे यांच्या हस्ते प्रदान करण्यात येणार आहेत. ज्येष्ठ अभिनेते अशोक सराफ यांना महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार, गानसम्राज्ञी लता मंगेशकर पुरस्कार ज्येष्ठ पार्श्वगायक सुरेश वाडकर यांना प्रदान करण्यात येईल. यासोबतचं राजकपूर जीवनगौरव आणि विशेष योगदान पुरस्कार, चित्रपती व्ही. शांताराम जीवनगौरव आणि विशेष योगदान पुरस्कारही यावेळी प्रदान करण्यात येणार असल्याची माहिती सांस्कृतिक कार्य मंत्री सुधीर मुनगंटीवार यांनी दिली.
****
विशाखापट्टणम इथं उद्यापासून पन्नास हून अधिक देशांच्या नौदलांचा सांघिक अभ्यास - `मिलन`  सुरु होणार आहे. २७ फेब्रुवारी पर्यंत हा अभ्यास सुरु असेल. मजबूत नौदल, सुरक्षित सागरी वाहतूक हा यावर्षीचा विषय असून या अंतर्गत पानबुडी सुरक्षा, हवाई सुरक्षा, युद्ध कौशल्य आदींचा अभ्यास केला जाणार आहे. यामध्ये भारतीय नौदलाच्या २० युद्धनौका आणि ५० विमानं सहभागी होतील, असं नौदलानं ���्हटलं आहे. 
****
आशिया चषक सांघिक बॅडमिंटन स्पर्धेमध्ये भारतीय महिला संघानं आज प्रथमच विजेतेपद मिळवलं आहे. मलेशियामधे या स्पर्धेच्या विजेतेपदासाठी झालेल्या सामन्यात भारतीय संघानं थायलंडचा तीन- दोन असा पराभव केला. आघाडीची खेळाडू पी. व्ही. सिंधू हिनं पहिल्या एकेरीच्या सामन्यामध्ये प्रतिस्पर्धी खेळाडूवर सहज विजय नोंदवत संघाला एक-शून्य अशी आघाडी मिळवून दिली होती. ट्रेसा जॉली आणि गायत्री पुलेला यांनी नंतर दुहेरीची लढत जिंकून संघाला दोन-शून्य अशी आघाडी मिळवून दिली होती. भारतीय संघाला त्या नंतरच्या दोन सामन्यांत मात्र पराभव स्वीकारावा लागला होता. अनमोल खरब हिनं पाचव्या निर्णायक सामन्यात प्रतिस्पर्धी खे‍ळाडूवर मात करत भारतीय महिला संघाचा विजय निश्चित केला.
****
भारतानं इंग्लंडविरुद्धच्या तिसऱ्या कसोटी क्रिकेट सामन्यात आज चौथ्या दिवशी राजकोट इथं चार बाद ३७४ धावा केल्या असून भारताकडे सध्या ५०० धावांची आघाडी आहे. यशस्वी जैस्वाल १९३ धावांवर खेळत आहे. तत्पूर्वी, उपाहाराला खेळ थांबला तेंव्हा भारताच्या चार बाद ३१४ धावा झाल्या होत्या. दरम्यान, घरगुती कारणामुळं या सामन्यातून बाहेर पडलेला फिरकीपटू आर. अश्विन आता पुन्हा खेळण्यासाठी सज्ज असल्याचं क्रिकेट मंडळानं म्हटलं आहे. 
****
दक्षिण काशी अशी ओळख असलेल्या नाशिक इथल्या गोदावरी नदीची ‘गोदा आरती’ आता कायमस्वरूपी होणार आहे. या उपक्रमाच्या पायाभूत सुविधांसाठी ११ कोटी ७७ लाख रुपयांचा निधी सांस्कृतिक खात्यामार्फत जिल्हा प्रशासनाला देण्यात आला आहे. याबद्दलची कार्यवाही जलद होण्यासाठी स्थानिक पातळीवर समिती स्थापन करण्यात आली आहे. या गोदा आरतीसाठी अकरा ठिकाणं तयार करण्यात येणार आहेत. भाविकांना बसण्याची व्यवस्था,  तसंच दिवे आणि विद्युतीकरणाची अन्य कामं इथं वेगानं करण्यात येतील, असं जिल्हा प्रशासनानं म्हटलं आहे.
****
शिवजयंतीनिमित्त महासंस्कृती महोत्सवात नांदेड इथं नंदगिरी किल्ल्यावर कालपासून सुरू छायाचित्र प्रदर्शनाला नागरिक मोठ्या संख्येनं भेट देत आहेत. या प्रदर्शनात नांदेड जिल्ह्यातली प्रेक्षणीय स्थळं, जीवनशैली, निसर्ग, स्थापत्यकला, पर्यटन विषयांवरची छायाचित्र ठेवण्यात आली आहेत. या उपक्रमांतर्गत उद्या  आयटीआय इथं रांगोळी स्पर्धा आणि प्रदर्शन होणार आहे.
****
गृहनिर्माण सहकारी संस्थांच्या विविध प्रश्नांच्या पार्श्वभूमीवर सहकार भारतीतर्फे उद्या मुंबईतल्या चेंबूर इथं एक दिवसीय राष्ट्रीय महाअधिवेशन होत आहे. देशाचे गृहनिर्माण मंत्री हरिदीपसिंग पुरी, केंद्रीय सहकार राज्यमंत्री बी. एल. वर्मा, मुंबईचे पालकमंत्री मंगल प्रभात लोढा हे या अधिवेशनासाठी उपस्थित राहणार आहेत. या अधिवेशनात देशभरातील प्रतिनीधी सहभागी होतील तसंच सहकार भारतीचे राष्ट्रीय स्तरावरील आणि राज्य स्तरावरील प्रमुख पदाधिकारी सहभागी होणार असून त्यांचं मार्गदर्शन देखील आयोजित करण्यात आलं आहे. 
****
नंदुरबार जिल्ह्यात नवापूर तालुक्यातील कोंडाईबारी घाटात ट्रक अनियंत्रित होऊन दुभाजकाला धडकल्यानं आज अपघात झाला. या अपघातात ट्रक चालकाचा मृत्यु झाला आहे.
****
0 notes
education-posts-313 · 8 months
Text
100+ तीन अक्षर वाले शब्द
Three Letter Words: मित्रों, आज हम आपके लिऐ तीन अक्षर वाले शब्द पर एक लेख लिखा है। सभी छोटी कक्षाओं में पडह ने वाले बच्चों को यह शब्द सिखाया जाता है। सभी बच्चों को इन शब्दों को सिखना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इन शब्दों की सहायता से ही बच्चे वाक्य बनाना सिख सकते हैं।
हमने इस लेख में 100 से अधिक Teen Akshar Wale Shabd Hindi Mein लिखे हैं, इन शब्दों को ध्यान से सीख सकें।
अन्य मात्रा वाले शब्द
तीन मात्रा वाले शब्द
कहर
गठन
खनन
पतन
लहर
शपत
तरक
लखन
रहम
पकड़
कहर
गदर
नगर
नकद
दशक
पहल
महक
समर
चरण
महल
गरज
छलक
जहर
बटन
कटक
गरम
मखन
कमर
वजन
परक
तखत
पकड़
भरत
नमन
ठहर
दमक
गमन
इधर
शहर
कमल
शहद
उधर
यमन
गगन
समय
बदन
बहन
दीपक
चलन
तलब
सबक
लखन
अलग
तमक
नजर
भगत
परम
भरण
सड़क
वचन
नयन
रमन
हवन
कलर
अरब
खरब
झलक
भवन
लचक
करण
पवन
सफर
भजन
कड़क
रमक
चमक
सनम
ऋषभ
मटर
कसम
लपक
कमल
नमक
भगत
कटक
शरद
इधर
शहर
कमल
शहद
बहस
दमन
मगर
बटन
चरण
कहर
कलश
जगह
अजय
असर
अगर
पठन
कदर
अक्षर
अकड़
हरम
पलट
उलट
0 notes
nigranidainik · 9 months
Text
एनसेल महाघोटाला राज्य विरुद्धको अपराध भन्दै शान्ति समाजको विरोध प्रदर्शन १७ जना गिरफ्तार
एनसेल महाघोटाला राज्य विरुद्धको अपराध भन्दै शान्ति समाजको विरोध प्रदर्शन १७ जना मानवअधिकारकर्मी  गिरफ्तार भएका छन् । एनसेल महाघोटाला प्रकरणमा राज्यलाई झण्डै तीन खरब रुपैँया हानी/नोक्सानी पुर्याउने नियतले भएको चलखेललाई राज्य विरुद्धको अपराध भन्दै मानव अधिकार तथा शान्ति समाजले विरोध प्रदर्शन गरेको छ । २०८० पुस ५ गते काठमाण्डौँको माइतिघर मण्डलामा विरोध प्रदर्शन भएको हो । प्रचलित कानून अनुसार नेपाल…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
Text
खराब राजनीति का शिकार होकर इस मैच विनर खिलाड़ी को दूसरे टेस्ट मैच से अचानक कर दिया गया बाहर...
खराब राजनीति का शिकार होकर इस मैच विनर खिलाड़ी को दूसरे टेस्ट मैच से अचानक कर दिया गया बाहर…
टीम इंडिया इस समय पूरे स्टाफ के साथ बांग्लादेश दौरे पर दो मैचों की टेस्ट सीरीज खेल रही है। जिसका दूसरा मैच आज से शुरू हो गया है। टेस्ट सीरीज के पहले मैच में टीम इंडिया को शानदार जीत मिली। रोहित शर्मा के चोटिल होने के कारण टीम इंडिया की कप्तानी केएल राहुल को सौंपी गई है। केएल राहुल की कप्तानी में टीम इंडिया कमाल का प्रदर्शन दिखा रही है। संक्षेप में दूसरे टेस्ट मैच की बात करें तो पहले बांग्लादेश ने…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
sabkuchgyan · 2 years
Text
Blackheads : ब्लैकहेड्स खराब करते हैं रंग, इस होममेड स्क्रब से पाएं छुटकारा
Blackheads : ब्लैकहेड्स खराब करते हैं रंग, इस होममेड स्क्रब से पाएं छुटकारा
Blackheads : रंग गोरा हो या सांवला, चेहरा साफ और साफ न हो तो आत्मविश्वास नहीं आएगा। मुंहासे, ब्लैकहेड्स, पिंपल्स त्वचा की ऐसी समस्याएं हैं जो रंग को खराब कर देती हैं। हमारे चेहरे पर हेयर फॉलिकल्स होते हैं। जब इसमें डेड स्किन और तेल जमा हो जाता है तो पिंपल्स बन जाते हैं। जब यह हवा के संपर्क में आता है तो कालापन आ जाता है जिसे ब्लैकहैड कहते हैं। ये पिंपल्स की तरह उभरे नहीं होते बल्कि जहां होते हैं…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
kisturdas · 8 months
Text
Tumblr media
सृष्टी की रचना
#SANTRAMPALJIMAHARAJ
प्रभु प्रेमी आत्माए प्रथम बार निम्न सृष्टी की रचना को पढेगे तो ऐसे लगेगा जैसे दन्त कथा हो, परन्तु सर्व पवित्र सद्ग्रन्थों के प्रमाणों को पढ़कर दाँतों तले ऊँगली दबाएँगे कि यह वास्तविक अमृत ज्ञान कहाँ छुपा था? कृप्या धैर्य के साथ पढ़ते रहिए तथा इस अमृत ज्ञान को सुरक्षित रखिए। आप की एक सौ एक पीढ़ी तक काम आएगा।
पवित्रात्माएँ कृप्या सत्यनारायण(अविनाशी प्रभु/सतपुरुष) द्वारा रची सृष्टी रचना का वास्तविक ज्ञान पढ़े।
1. पूर्ण ब्रह्म :- इस सृष्टी रचना में सतपुरुष-सतलोक का स्वामी (प्रभु), अलख पुरुष अलख लोक का स्वामी (प्रभु), अगम पुरुष-अगम लोक का स्वामी (प्रभु) तथा अनामी पुरुष- अनामी अकह लोक का स्वामी (प्रभु) तो एक ही पूर्ण ब्रह्म है, जो वास्तव में अविनाशी प्रभु है जो भिन्न-२ रूप धारणकरके अपने चारों लोकों में रहता
है। जिसके अन्तर्गत असंख्य ब्रह्माण्ड आते हैं।
2. परब्रह्म :- यह केवल सात संख ब्रह्माण्ड का स्वामी (प्रभु) है। यह अक्षर पुरुष भी कहलाता है। परन्तु यह तथा इसके ब्रह्माण्ड भी वास्तव में अविनाशी नहीं है।
3. ब्रह्म :- यह केवल इक्कीस ब्रह्माण्ड का स्वामी (प्रभु) है। इसे क्षर पुरुष,ज्योति निरंजन, काल आदि उपमा से जाना जाता है। यह तथा इसके सर्व ब्रह्माण्ड नाशवान हैं।
(उपरोक्त तीनों पुरूषों (प्रभुओं) का प्रमाण पवित्र श्री मद्भगवत गीता अध्याय
15 श्लोक 16-17 में भी है।)
4. ब्रह्मा:- ब्रह्म का ज्येष्ठ पुत्र है, विष्णु मध्य वाला पुत्र है तथा शिव ब्रह्म का अंतिम तीसरा पुत्र है। ये तीनों ब्रह्म के पुत्र केवल एक ब्रह्माण्ड में एक विभाग (गुण) के स्वामी (प्रभु) हैं तथा नाशवान हैं। विस्तृत विवरण के लिए कृप्या पढ़े निम्न लिखित सृष्टी रचना-
{कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने सुक्ष्म वेद अर्थात कबीर वाणी में अपने द्वारा रची सृष्टी का ज्ञान स्वयं ही बताया है जो निम्नलिखित है}
सर्व प्रथम केवल एक स्थान अनामी (अनामय) लोक' था। जिसे अकह लोक भी कहा जाता है, पूर्ण परमात्मा उस अनामी लोक में अकेला रहता था। उस परमात्मा का वास्तविक नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है। सभी आत्माएँ उस पूर्ण धनी के शरीर में समाई हुई थी। इसी कविर्देव का उपमात्मक (पदवी का) नाम अनामी पुरुष है (पुरुष का अर्थ प्रभु होता है। प्रभु ने मनुष्य को अपने ही स्वरूप में बनाया है, इसलिए मानव का नाम भी पुरुष ही पड़ा है।) अनामी पुरूष के एक रोम कूप का प्रकाश संख सूर्यों की रोशनी से भी अधिक है।
विशेष :- जैसे किसी देश के आदरणीय प्रधान मंत्री जी का शरीर का नाम तोअन्य होता है तथा पद का उपमात्मक (पदवी का) नाम प्रधानमंत्री होता है। कई बार प्रधानमंत्री जी अपने पास कई विभाग भी ��ख लेते हैं। तब जिस भी विभाग के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करते हैं तो उस समय उसी पद को लिखते हैं। जैसे गृह मंत्रालय के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करेगेंतो अपने को गृह मंत्री लिखेगें। वहाँ उसी व्यक्ति के हस्ताक्षर की शक्ति कम होती है। इसी प्रकार कबीर परमेश्वर (कविर्देव) की रोशनी में अंतर भिन्न-२ लोकों में होता जाता है।
ठीक इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने नीचे के तीन और लोकों (अगमलोक, अलख लोक, सतलोक) की रचना शब्द(वचन) से की।
यही पूर्णब्रह्म परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ही अगम लोक में प्रकट हुआ तथा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) अगम लोक का भी स्वामी है तथा वहाँ इनका उपमात्मक
(पदवी का) नाम अगम पुरुष अर्थात् अगम प्रभु है। इसी अगम प्रभु का मानव सदृश शरीर बहुत तेजोमय है जिसके एक रोम कूप की रोशनी खरब सूर्य की रोशनी से
भी अधिक है।
यह पूर्ण कविर्देव (कबिर देव=कबीर परमेश्वर) अलख लोक में प्रकट परमात्मा हुआ तथा स्वयं ही अलख लोक का भी स्वामी है तथा उपमात्मक (पदवी का) नाम अलख पुरुष भी इसी परमेश्वर का है तथा इस पूर्ण प्रभु का मानव सदृश शरीर तेजोमय (स्वज्योंति) स्वयं प्रकाशित है। एक रोम कूप की रोशनी अरब सूर्यों के प्रकाश से भी ज्यादा है। यही पूर्ण प्रभु सतलोक में प्रकट हुआ तथा सतलोक का भी अधिपति यही है। इसलिए इसी का उपमात्मक (पदवी का) नाम सतपुरुष (अविनाशी प्रभु)है। इसी
का नाम अकालमूर्ति - शब्द स्वरूपी राम - पूर्ण ब्रहम - परम अक्षर ब्रहम आदि हैं।
इसी सतपुरुष कविर्देव (कबीर प्रभु) का मानव सदृश शरीर तेजोमय है। जिसके एक रोमकूप का प्रकाश करोड़ सूयों तथा इतने ही चन्द्रमाओं के प्रकाश से भी अधिक है।
इस कविर्देव (कबीर प्रभु) ने सतपुरुष रूप में प्रकट होकर सतलोक में विराजमान होकर प्रथम सतलोक में अन्य रचना की।
एक शब्द (वचन) से सोलह द्वीपों की रचना की। फिर सोलह शब्दों से सोलह पुत्रों की उत्पत्ति की। एक मानसरोवर की रचना की जिसमें अमृत भरा।
सोलह पुत्रों
के नाम हैं :-
(1) “कूर्म',
(2)'ज्ञानी',
(3) 'विवेक',
(4) 'तेज',
(5) “सहज
(6) “सन्तोष',
(7)'सुरति”,
(8) “आनन्द',
(9) 'क्षमा',
(10) “निष्काम
(11) ‘जलरंगी'
(12)“अचिन्त',
(13) 'प्रेम',
(14) “दयाल',
(15) 'धैर्य'
(16) योग संतायन' अथति ''योगजीत
सतपुरुष कविर्देव ने अपने पुत्र अचिन्त को सतलोक की अन्य रचना का भार सौंपा तथा शक्ति प्रदान की। अचिन्त ने अक्षर पुरुष (परब्रह्म) की शब्द से उत्पत्ति की तथा कहा कि मेरी मदद करना। अक्षर पुरुष स्नान करने मानसरोवर पर गया वहाँ आनन्द आया तथा सो गया।
लम्बे समय तक बाहर नहीं आया। तब अचिन्त की प्रार्थना पर अक्षर पुरुष को नींद से जगाने के लिए कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने उसी मानसरोवर से कुछ अमृत जल लेकर एक अण्डा बनाया तथा उस अण्डे में एक आत्मा प्रवेश की तथा अण्डे को मानसरोवर के अमृत जल में छोड़ा। अण्डे
की गड़गड़ाहट से अक्षर पुरुष की निंद्रा भंग हुई। उसने अण्डे को क्रोध से देखा
जिस कारण से अण्डे के दो भाग हो गए। उसमें से ज्योति निंरजन (क्षर पुरुष)
निकला जो आगे चलकर ‘काल’ कहलाया। इसका वास्तविक नाम 'कैल' है।
तब सतपुरुष (कविर्देव) ने आकाशवाणी की कि आप दोनों बाहर आओ तथा अचिंत के द्वीप में रहो। आज्ञा पाकर अक्षर पुरुष तथा क्षर पुरुष (कैल) दोनों अचिंत के द्वीप
में रहने लगे (बच्चों की नालायकी उन्हीं को दिखाई कि कहीं फिर प्रभुता की तड़प न बन जाए, क्योंकि समर्थ बिन कार्य सफल नहीं होता) फिर पूर्ण धनी कविर्देव नेसर्व रचना स्वयं की। अपनी शब्द शक्ति से एक राजेश्वरी (राष्ट्री) शक्ति उत्पन्न की, जिससे सर्व ब्रह्माण्डों को स्थापित किया। इसी को पराशक्ति परानन्दनी भी कहते हैं। पूर्ण ब्रह्म ने सर्व आत्माओं को अपने ही अन्दर से अपनी वचन शक्ति से अपने मानव शरीर सदृश उत्पन्न किया। प्रत्येक हंस आत्मा का परमात्मा जैसा ही शरीर रचा जिसका तेज 16 (सोलह) सूर्या जैसा मानव सदृश ही है। परन्तु परमेश्वर के शरीर के एक रोम कूप का प्रकाश करोड़ों सूयों से भी ज्यादा है। बहुत समयउपरान्त क्षर पुरुष (ज्योति निरंजन) ने सोचा कि हम तीनों (अचिन्त - अक्षर पुरुष और क्षर पुरुष) एक द्वीप में रह रहे हैं तथा अन्य एक-एक द्वीप में रह रहे हैं। मैं भी साधना करके अलग द्वीप प्राप्त करूंगा। उसने ऐसा विचार करके एक पैर पर खड़ाहोकर सत्तर (70) युग तक तप किया।
आत्माएँ काल के जाल में कैसे फंसी
==========================
विशेष :- जब ब्रह्म (ज्योति निरंजन) तप कर रहा था हम सभी आत्माएँ, जो आज ज्योति निरंजन के इक्कीस ब्रह्माण्डों में रहते हैं इसकी साधना पर आसक्त होगए तथा अन्तरात्मा से इसे चाहने लगे। अपने सुखदाई प्रभु सत्य पुरूष से विमुख हो गए। जिस कारण से पतिव्रता पद से गिर गए।
पूर्ण प्रभु के बार-बार सावधान करने पर भी हमारी आसक्ति क्षर पुरुष से नहीं हटी।{यही प्रभाव आज भी इस काल की स्रष्टी में विद्यमान है। जैसे नौजवान बच्चे फिल्म स्टारों(अभिनेताओं तथा अभिनेत्रियों) की बनावटी अदाओं तथा अपने रोजगार उद्देश्य से कर रहे भूमिका पर अति आसक्त
हो जाते हैं, रोकने से नहीं रूकते। यदि कोई अभिनेता या अभिनेत्री निकटवर्ती शहर
में आ जाए तो देखें उन नादान बच्चों की भीड़ केवल दर्शन करने के लिए बहु संख्या
में एकत��रित हो जाती हैं। 'लेना एक न देने दो' रोजी रोटी अभिनेता कमा रहे हैं, नौजवान
बच्चे लुट रहे हैं। माता-पिता कितना ही समझाएँ किन्तु बच्चे नहीं मानते। कहीं न कहीं कभी न कभी, लुक-छिप कर जाते ही रहते हैं।}
पूर्ण ब्रह्मा कविर्देव (कबीर प्रभु) ने क्षर पुरुष से पूछा कि बोलो क्या चाहते हो? उसने कहा कि पिता जी यह स्थान मेरे लिए कम है, मुझे अलग से द्वीप प्रदानकरने की कृपा करें। हक्का कबीर (सत्तू कबीर) ने उसे 21 (इक्कीस) ब्रह्मण्ड प्रदानकर दिए।
कुछ समय उपरान्त ज्योति निरंजन ने सोचा इस में कुछ रचना करनी चाहिए। खाली ब्रह्मण्ड(प्लाट) किस काम के। यह विचार कर 70 युग तप करके पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर प्रभु) से रचना सामग्री की याचना की। सतपुरुष ने उसे तीन गुण तथा पाँच तत्व प्रदान कर दिए, जिससे ब्रह्म (ज्योति निरंजन) ने अपने ब्रह्माण्डों में कुछ रचना की। फिर सोचा कि इसमें जीव भी होने चाहिए, अकेले का दिल नहीं लगता। यह विचार करके 64 (चौसठ) युग तक फिर तप किया। पूर्ण परमात्मा कविरदेव के पूछने पर बताया कि मुझे कुछ आत्मा दे दो, मेरा अकेले का दिल नहीं लग रहा। तब सतपुरुष कविरग्नि (कबीर परमेश्वर) ने कहा कि ब्रहम तेरे तप के प्रतिफल में मैं तुझे और ब्रह्मण्ड दे सकता हूँ, परन्तु मेरी आत्माओं को किसी भी जप-तप साधना के फल रूप में नहीं दे सकता। हाँ, यदि कोई स्वेच्छा से तेरे साथ जाना चाहे तो वह जा सकता है।
युवा कवि (समर्थ कबीर) के वचनसुन कर ज्योति निरंजन हमारे पास आया। हम सभी हंस आत्मा पहले से ही उसपर आसक्त थे। हम उसे चारों तरफ से घेर कर खड़े हो गए। ज्योति निंरजन ने कहा कि मैंने पिता जी से अलग 21 ब्रह्मण्ड प्राप्त किए हैं। वहाँ नाना प्रकार के रमणीय स्थल बनाए हैं। क्या आप मेरे साथ चलोगे? हम सभी हंसों ने जो आज21 ब्रह्यण्डों में परेशान हैं, कहा कि हम तैयार हैं। यदि पिता जी आज्ञा दें तब क्षरपुरुष पूर्ण ब्रह्म महान् कविर (समर्थ कबीर प्रभु) के पास गया तथा सर्व वात कही।
तब कविरग्नि (कबीर परमेश्वर) ने कहा कि मेरे सामने स्वीकृति देने वाले को आज्ञा
दूंगा। क्षर पुरुष तथा परम अक्षर पुरुष (कविरमितौजा) दोनों हम सभी हंसात्माओं
के पास आए। सत् कविर्देव ने कहा कि जो हंस आत्मा ब्रह्म के साथ जाना चाहता
है हाथ ऊपर करके स्वीकृति दे। अपने पिता के सामने किसी की हिम्मत नहीं हुई।किसी ने स्वीकृति नहीं दTI बहुत समय तक सन्नाटा छाया रहा। तत्पश्चात् एक हंस आत्मा ने साहस किया तथा कहा कि पिता जी मैं जाना चाहता हूँ। फिर तो उसकी देखा-देखी (जो आज काल (ब्रह्म) के इक्कीस ब्रह्मण्डों में फंसी हैं) हम सभी आत्माओं ने स्वीकति दे दी।
परमेश्वर कबीर जी ने ज्योति निरंजन से कहा कि आप अपने स्थान पर जाओ। जिन्होंने तेरे साथ जाने की स्वीकृति दी है। मैं उन सर्वहंस आत्माओं को आपके पास भेज दूंगा। ज्योति निरंजन अपने 21 ब्रह्मण्डों में चला गया। उस समय तक यह इक्कीस ब्रह्माण्ड सतलोक में ही थे। पूर्ण ब्रह्म ने सर्व प्रथम स्वीकृति देने वाले हंस को लड़की का रूपदिया परन्तु स्त्री इन्द्री नहीं रची तथा सर्व आत्माओं को (जिन्होंने ज्योति निरंजन (ब्रह्म) के साथ जाने की सहमति दी थी) उस लड़की के शरीर में प्रवेश कर दियातथा उसका नाम आष्ट्रा (आदि माया/ प्रकृति देवी/ दुर्गा) पड़ा तथा सत्य पुरूष ने कहा कि पुत्री मैंने तेरे को शब्द शक्ति प्रदान कर दी है जितने जीव ब्रह्म कहे आप उत्पन्न कर देना। पूर्ण ब्रह्म कविर्देव (कबीर साहेब) अपने पुत्र सहज दास के द्वारा प्रकृति को क्षर पुरुष के पास भिजवा दिया। सहज दास जी ने ज्योति निरंजन को बताया कि पिता जी ने इस बहन के शरीर में उन सर्व आत्माओं को प्रवेश कर दिया है जिन्होंने आपके साथ जाने की सहमति व्यक्त की थी तथा इसको पिता जी ने वचन शक्ति प्रदान की है, आप जितने जीव चाहोगे प्रकति अपने शब्द से उत्पन्न कर देगी। यह कह कर सहजदास वापिस अपने द्वीप में आ गया।
युवा होने के कारण लड़की का रंग-रूप निखरा हुआ था। ब्रह्म के अन्दर विषय-वासना उत्पन्न हो गई तथा प्रक्रति ( कालान्तर में दुर्गा देवी इसी का नाम पडा) देवी के साथ अभद्र गति विधि प्रारम्भ की। तब दुर्गा ने कहा कि ज्योति निरंजन मेरे पास पिता जी की प्रदान की हुई शब्द शक्ति है। आप जितने प्राणी कहोगे मैं वचन से उत्पन्न कर दूंगी। आप मैथुन परम्परा शुरु मत करो। आप भी उसी पिता के शब्द से अण्डे से उत्पन्न हुए हो तथा मैं भी उसी परमपिता के वचन से ही बाद में उत्पन्न हुई हूँ। आप मेरे बड़े भाई हो, बहन-भाई का यह योग महापाप का कारण बनेगा। परन्तु ज्योति निरंजन ने प्रकृति देवी की एक भी प्रार्थना नहीं सुनी तथा अपनी शब्द शक्ति द्वारा नाखुनों से स्त्री इन्द्री (भग) प्रकृति को लगा दी तथा बलात्कार करने की ठानी।
उसी समय दुर्गा ने अपनी इज्जत रक्षा के लिए कोई और चारा न देख सुक्ष्म रूप बनाया तथा ज्योति निरंजन के खुले मुख के द्वारा पेट में प्रवेश करके पूर्णब्रह्म कविरदेव से अपनी रक्षा के लिए याचना की। उसी समय कविर्देव (कवि देव) अपने पुत्र योग
संतायन अर्थात् जोगजीत का रूप बनाकर वहाँ प्रकट हुए तथा कन्या को ब्रह्म के उदर से बाहर निकाला तथा कहा कि ज्योति निरंजन आज से तेरा नाम 'काल' होगा। तेरे जन्म-मृत्यु होते रहेंगे। इसीलिए तेरा नाम क्षर पुरुष होगा तथा एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों को प्रतिदिन खाया करेगा व सवा लाख उत्पन्न किया करेगा। आप दोनों को इक्कीस ब्रह्माण्ड सहित निष्कासित किया जाता है।
इतना कहते ही इक्कीस ब्रह्माण्ड विमान की तरह चल पड़े। सहज दास के द्वीप के पास से होते हुए सतलोक से सोलह संख कोस (एक कोस लगभग 3 कि. मी. का होता है) की दूरी पर आकर रूक गए।
विशेष विवरण - अब तक तीन शक्तियों का विवरण आया है।
1. पूर्णब्रह्म - जिससे अन्य उपमात्मक नामों से भी जाना जाता है, जैसे सतपुरुष अकालपुरुष, शब्द स्वरूपी राम, परम अक्षर ब्रह्म/पुरुष आदि। यह पूर्णब्रह्म असंख्यब्रह्मण्डों का स्वामी है तथा वास्तव में अविनाशी है।
2. परब्रह्म - जिसे अक्षर पुरुष भी कहा जाता है। यह वास्तव में अविनाशी नहीं है। यह सात शंख ब्रह्माण्डों का स्वामी है।
3. ब्रह्म - जिसे ज्योति निरंजन, काल, कैल, क्षर पुरुष तथा धर्मराय आदि नामों
से जाना जाता है, जो केवल इक्कीस ब्रह्माण्ड का स्वामी है। अब आगे इसी ब्रह्मा
(काल) की सृष्टी के एक ब्रह्माण्ड का परिचय दिया जाएगा, जिसमें तीन और नाम आपके पढ़ने में आयेंगे - ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव।
ब्रह्म तथा ब्रह्मा में भेद - एक ब्रह्माण्ड में बने सर्वोपरि स्थान पर ब्रहम (क्षर पुरुष) स्वयं तीन गुप्त स्थानों की रचना करके ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव रूप में रहता है तथा अपनी पत्नी प्रकृति (दुर्गा) के सहयोग से तीन पुत्रों की उत्पत्ति करता है। उनके नाम भी ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव ही रखता है।
जो ब्रह्म का पुत्र ब्रह्मा है वह एक ब्रह्माण्ड में केवल तीन लोकों (पृथ्वी लोक, स्वर्ग लोक तथा पाताल लोक) में एक रजोगुण विभाग का मंत्री (स्वामी) है। इसे त्रिलोकीय ब्रह्मा कहा है तथा ब्रह्म जो ब्रह्मलोक में ब्रह्म रूप में रहता है उसे महाब्रह्मा व ब्रह्मलोकीय ब्रह्मा कहा है।
इसी ब्रह्म (काल) को सदाशिव, महाशिव, महाविष्णु भी कहा है.
श्री विष्णु पुराण में प्रमाण :- चतुर्थ अंश अध्याय 1 पृष्ठ 230-231 ���र श्री ब्रह्माजी ने कहा :- जिस अजन्मा, सर्वमय विधाता परमेश्वर का आदि, मध्य, अन्त,स्वरूप, स्वभाव और सार हम नहीं जान पाते (श्लोक 83)
जो मेरा रूप धारण कर संसार की रचना करता है, स्थिति के समय जो पुरूष रूप है तथा जो रूद्र रूप से विश्व का ग्रास कर जाता है, अनन्त रूप से सम्पूर्ण जगत् को धारण करता है। (श्लोक 86 )
"श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी व श्री शिव जी की उत्पत्ति ”
==============================
काल (ब्रह्म) ने प्रकृति (दुर्गा) से कहा कि अब मेरा कौन क्या बिगाडेगा? मनमानी करूंगा प्रक्रति ने फिर प्रार्थना की कि आप कुछ तो शर्म करो । प्रथम तो आप मेरे बड़े भाई हो, क्योंकि उसी पूर्ण परमात्मा (कविर्देव) की वचन शक्ति से आप की (ब्रह्म की) अण्डे से उत्पत्ति हुई तथा बाद में मेरी उत्पत्ति उसी परमेश्वर के वचन से हुई है। दूसरे मैं आपके पेट से बाहर निकली हूँ, मैं आपकी बेटी हुई तथा आप मेरे पिता हुए। इन पवित्र नातों में बिगाड़ करना महापाप होगा। मेरे पास पिता की प्रदान की हुई शब्द शक्ति है, जितने प्राणी आप कहोगे मैं वचन से उत्पन्न कर दूंगी।
ज्योति निरंजन ने दुर्गा की एक भी विनय नहीं सुनी तथा कहा कि मुझे जो सजा मिलनी थी मिल गई, मुझे सतलोक से निष्कासित कर दिया। अब मनमानी करूंगा। यह कह कर काल पुरूष (क्षर पुरूष) ने प्रकृति के साथ जबरदस्ती शादी
की तथा तीन पुत्रों (रजगुण युक्त - ब्रह्मा जी, सतगुण युक्त - विष्णु जी तथा तमगुण युक्त - शिव शंकर जी) की उत्पत्ति की.
जवान होने तक तीनों पुत्रों को दुर्गा के द्वारा अचेत करवा देता है, फिर युवा होने पर श्री ब्रह्मा जी को कमल के फूल पर, श्री विष्णु जी को शेष नाग की शैय्या पर तथा श्री शिव जी को कैलाश पर्वत पर सचेत करके इक्ट्ठे कर देता है। तत्पश्चात् प्रकृति (दुर्गा) द्वारा इन तीनों का विवाह कर दिया जाता है तथा एक ब्रह्माण्ड में तीन लोकों (स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक तथा पाताल लोक) में एक-एक विभाग के मंत्री (प्रभु) नियुक्त कर देता है।
जैसे श्री ब्रह्मा जी को रजोगुण विभाग का तथा विष्णु जी को सत्तोगुण विभाग का
तथा श्री शिव शंकर जी को तमोगुण विभाग का तथा स्वयं गुप्त (महाब्रह्मा
महाविष्णु - महाशिव) रूप से मुख्य मंत्री पद को संभालता है।
एक ब्रह्माण्ड में एक ब्रह्मलोक की रचना की है। उसी में तीन गुप्त स्थान बनाए हैं। एक रजोगुण प्रधान स्थान है जहाँ पर यह ब्रह्म (काल) स्वयं महाब्रह्मा (मुख्यमंत्री) रूप में रहता है तथा अपनी पत्नी दुर्गा को महासावित्री रूप में रखता है। इन दोनों के संयोग से जो पुत्र इस स्थान पर उत्पन्न होता है वह स्वत: ही रजोगुणी बन जाता है। दूसरा स्थान सतोगुण प्रधान स्थान बनाया है। वहाँ पर यह क्षर पुरुष स्वयं महाविष्णु रूप बना कर रहता है तथा अपनी पत्नी दुर्गा को महालक्ष्मी रूप में रख कर जो पुत्र उत्पन्न करता है उसका नाम विष्णु रखता है, वह बालक सतोगुण युक्त होता है तथा
तीसरा इसी काल ने वहीं पर एक तमोगुण प्रधान क्षेत्र बनाया है। उसमें यह स्वयं
सदाशिव रूप बनाकर रहता है तथा अपनी पत्नी दुर्गा को महापार्वती रूप में रखता
है। इन दोनों के पति-पत्नी व्यवहार से जो पुत्र उत्पन्न होता है उसका नाम शिव रख देते हैं तथा तमोगुण युक्त कर देते हैं।
(प्रमाण के लिए देखें पवित्र श्री शिव
महापुराण, विद्यवेश्वर संहिता पृष्ठ 24-26 जिस में ब्रहमा, विष्णु, रूद्र तथा महेश्वर
से अन्य सदाशिव है तथा रूद्र संहिता अध्याय 6 तथा 7, 9 पृष्ठ नं. 100 से, 105
तथा 110 पर अनुवाद कर्ता श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार, गीता प्रैस गोरख पुर से
प्रकाशित तथा पवित्र श्रीमद्देवीमहापुराण तीसरा स्कद पृष्ठ नं. 14 से 123 तक,गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित, जिसके अनुवाद कर्ता हैं श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार
चिमन लाल गोस्वामी)
फिर इन्हीं को धोखे में रख कर अपने खाने के लिए जीवों की उत्पत्ति श्री ब्रहमा जी द्वारा तथा स्थिति (एक-दूसरे को मोह-ममता में रख कर काल जाल में रखना) श्री विष्णु जी से तथा संहार (क्योंकि काल पुरुष को शापवश एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों के सूक्ष्म शरीर से मैल निकाल कर खानाहोता है उसके लिए इक्कीसवें ब्रह्माण्ड में एक तप्तशिला है जो स्वत: गर्मी रहती है, उस पर गर्म करके मैल पिंघला कर खाता है, जीव मरते नहीं परन्तु कष्ट असहनीय होता है, फिर प्राणियों को कर्म आधार पर अन्य शरीर प्रदान करता है) श्री शिवजी द्वारा करवाता है। जैसे किसी मकान में तीन कमरे बने हों। एक कमरे में अश्लील चित्र लगे हों। उस कमरे में जाते ही मन में वैसे ही मलिन विचार उत्पन्न हो जाते हैं। दूसरे कमरे में साधु-सन्तों, भक्तों के चित्र लगे हों तो मन में अच्छे विचार, प्रभु का चिन्तन ही बना रहता है। तीसरे कमरे में देश भक्तों व शहीदों के चित्र लगे हों तो मन में वैरसे ही जोशीले विचार उत्पन्न हो जाते हैं। ठीक इसी प्रकार ब्रह्म (काल) ने अपनी सूझ-बूझ से उपरोक्त तीनों गुण प्रधान स्थानों की रचना की हुई है।
आपने इसको पूरा पढा...
धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻
अब अपने दोस्तो को भी शेयर किजिये.
प्रतिदिन देखे साधना tv में हर रोज शाम 7:30 से 8:30 तक
🙏🏻सत साहेब 🙏🏻
3 notes · View notes
veeresh99 · 10 months
Text
श्री पूर्ण ब्रह्म जी श्री रामपाल जी भगवान जी ने बताया है
*इंद्र* - 31 करोड़ लगभग
👉evidence : श्रीविष्णुपुराणे प्रथमेंऽशे अष्टमोऽध्यायः
नवाँ अध्याय
(दुर्वासाजीके शापसे इन्द्रका पराजय)
*शची*(14 इन्द्रौं
की पत्नी) - 4 अरब लगभग
👉Evidence : मुक्ति बोध पुस्तक -अध्याय "पारख का अंग", वाणी सं 200-202, पृष्ठ 244
*ब्राह्मा जी* - 31 लाख करोड़ लगभग
*विष्णु जी* - 2 अरब लाख लगभग
*शिवजी* - 15 लाख अरब लगभग
👉Evidence: श्रीमद् देवीभागवत । स्कंध 3 अध्याय 4 श्लोक 42
विष्णु जी बोले - हे माता ! ब्रह्मा, मैं तथा शिव तुम्हारे ही प्रभाव से जन्मवान हैं, हम नित्य नहीं हैं, फिर अन्य इंद्रादि दूसर�� देवता किस प्रकार नित्य हो सकते हैं ? समस्त चराचर जगत् की जननी तथा सनातन प्रकृति रूपा आप ही नित्य हैं ।।
*श्रीमद् देवीभागवत। स्कंध 4 अध्याय 20 श्लोक 19-25
हे राजन् ! ग्रन्थकारों ने देवताओं को अमर तथा निर्जर (बुढ़ापारहित) कहा है, किंतु वे निश्चय ही केवल नाम से अमर हैं, अर्थ से कभी वैसे नहीं। जिन पर सदा उत्पत्ति, स्थिति और विनाश की अवस्थाएँ रहती हैं, वे अमर और निर्जर कैसे हो सकते हैं ? जब वे भी व्यसन तथा क्रीडा में आसक्त रहते हैं, तब उन्हें देव भी क्यों कहा जाय ? इसमें संदेह नहीं कि सामान्य जीवों के भाँति इनका भी क्षण में उत्पत्ति - नाश होता है, इनकी उपमा जल के कीटों और मच्छरों से क्यों न दी जाय ? आयु समाप्त होने पर वे भी मर जाते हैं, तब उन्हें अमर न कहकर 'मर' क्यों न कहें? सामान्य मनुष्य सौ वर्ष की आयु वाले होते हैं, उनसे अधिक आयु वाले देवता हैं और उनसे अधिक आयु वाले ब्रह्मा कहे हैं। उनसे भी अधिक आयु वाले शिव हैं और उनसे भी अधिक आयुवाले विष्णु हैं। अन्त में वे भी नष्ट होते हैं और फिर से क्रमशः उत्पन्न होते हैं ।।
शिव महापुराण। रुद्र संहिता, खंड 1, अध्याय 10, श्लोक 16 - 19
सदाशिव बोले- अब त्रिदेव की आयु सुनो, चार हजार युग का ब्रह्मा का एक दिन होता है और इसी क्रम से रात भी जानो। तीस दिन का एक महीना और बारह महिने का एक वर्ष होता है। इस प्रकार से ब्रह्मा की सौ वर्ष की आयु होती है और ब्रह्मा का एक वर्ष विष्णु का एक दिन होता है। वह भी इसी प्रकार सौ वर्ष जीवेंगे तथा विष्णु का एक वर्ष रुद्र के एक दिन के समान होता है, वह भी इसी क्रम से सौ वर्ष तक स्थित रहेंगे ।।
*ब्रह्म काल* - 25 खरब करोड़ लगभग
👉Evidence : कबीरसागर 274
गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5, अध्याय 10 श्लोक 2
*परब्रह्म* - 2 पदम अरब लगभग
👉Evidence : (प्रमाण श्री विष्णु पुराण भाग 1 अध्याय 9 श्लोक 53 पृष्ठ 32 पर)
गीता अध्याय 8 का श्लोक 17
सहस्त्रायुगपर्यन्तम्, अहः,यत्,ब्रह्मणः, विदुः,रात्रिम्,
युगसहस्त्रान्ताम्, ते, अहोरात्राविदः, जनाः।।17।।
अनुवाद: (ब्रह्मणः) परब्रह्म का (यत्) जो (अहः) एक दिन है उसको (सहस्त्रायुगपर्यन्तम्) एक हजार युग की अवधि वाला और (रात्रिम्) रात्रि को भी (युगसहस्त्रान्ताम्) एक हजार युग तक की अवधि वाली (विदुः) तत्वसे जानते हैं (ते) वे (जनाः) तत्वदर्शी संत (अहोरात्राविदः) दिन-रात्रि के तत्वको जाननेवाले हैं।
केवल हिन्दी अनुवाद: परब्रह्म का जो एक दिन है उसको एक हजार युग की अवधि वाला और रात्रि को भी एक हजार युग तक की अवधि वाली तत्वसे जानते हैं वे तत्वदर्शी संत दिन-रात्रि के तत्वको जाननेवाले हैं।
नोट:- गीता अध्याय 8 श्लोक 17 के अनुवाद में गीता जी के अन्य अनुवाद कर्ताओं ने ब्रह्मा का एक दिन एक हजार चतुर्युग का लिखा है जो उचित नहीं है। क्योंकि मूल संस्कृत में सहंसर युग लिखा है न की चतुर्युग। तथा ब्रह्मणः लिखा है न कि ब्रह्मा। इस श्लोक 17 में परब्रह्म के विषय में कहा है न कि ब्रह्मा के विषय में तत्वज्ञान के अभाव
*पूर्णब्रह्म कबिर्देव*- अजर-अमर अविनाशी
👉Evidence : हाड़ चाम लहु ना मेरे कोई जाने सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभय पद दाता, मैं हूँ कबीर अविनाशी।।
एक ब्रह्मा की आयु 100 (सौ) वर्ष है,किस तरह के 100 वर्ष की है। गौर से नीचे देखिये
@@@
ब्रह्मा का एक दिन = 1008 (एक हजार) चतुर्युग तथा इतनी ही 1008 (एक हज़ार)चतुर्युग की रात्री।
दिन+रात = 2016 (दो हजार सोलह) चतुर्युग।
चार युगो ( (चतुर्युग) की आयु
@@@
सतयुग की आयु = 17,28,000 वर्ष
(17 लाख 28 हजार)
द्वापर युग की आयु = 12,96,000 वर्ष
(12 लाख 96 हज़ार)
त्रेता युग की आयु = 8,64,000 वर्ष
(8 लाख 64 हज़ार)
कलयुग की आयु = 4,32,000 वर्ष
(4 लाख 32 हज़ार)
चार युगौं (चतुर्युग)
की आयु = 43,20,000 वर्ष
43 लाख 20 हज़ार वर्ष
{नोट - ब्रह्मा जी के एक दिन में 14 इन्द्रों का शासन काल समाप्त हो जाता है। एक इन्द्र का शासन काल बहतर चतुर्युग का होता है।
इंद्र की पत्नी शची 14 ईन्द्रो की पत्नी बनती है, फ़िर ये सभी 14 ईन्द्र मर कर गधे बनते है और शची भी मर कर गधी का जीवन प्राप्त करती है।)
इस प्रकार इंद्र का जीवनकाल
====================
72 चतुर्युग × 43,20,000 = 31,10,40,000
मानव बर्ष
(31 करोड़ 10 लाख 40 हजार मानव वर्ष अनुसार )
शची (14 इंद्रौ की पत्नी) का जीवन काल
=========================
1008 चतुर्युग× 43,20,000 = 4,35,45,60,000 मानव वर्ष
(4 अरब 33 करोड़ 45 लाख 60 हजार मानव वर्ष अनुसार)
इस प्रकार ब्रह्मा जी का एक दिन और रात 2016 चतुर्युग.
1 महीना = 30 गुणा 2016 = 60480 चतुर्युग।
वर्ष = 12 गुणा 60480 = 725760चतुर्युग ।
ब्रह्मा जी की आयु
===========
1 महीना = 30 × 2016 = 60480 चतुर्युग।
वर्ष = 12 × 60480 = 725760चतुर्युग ।
7,25,760 × 100 =7,25,76,000 चतुर्युग × 43,20,000(1चतुर्युग)=31,35,28,32,00,00,000 मानव वर्ष
#SantRampalJiMaharaj
0 notes
nationalnewsindia · 1 year
Text
0 notes
mukeshkumars-stuff · 1 year
Text
Tumblr media
#ज्ञानगंगा_Part9
सृष्टि रचना Part -A
सृष्टि रचना
(सूक्ष्मवेद से निष्कर्ष रूप सृष्टि रचना का वर्णन)
प्रभु प्रेमी आत्माऐं प्रथम बार निम्न सृष्टि रचना को पढ़ेंगे तो ऐसे लगेगा जैसे दन्त कथा हो, परंतु सर्व पवित्र सद्ग्रन्थों के प्रमाणों को पढ़कर दाँतों तले ऊंगली दबाऐंगे कि यह वास्तविक अमृत ज्ञान कहाँ छुपा था? कृप्या धैर्य के साथ पढ़ें तथा इस अमृत ज्ञान को सुरक्षित रखें। आपकी एक सौ एक पीढ़ी तक काम आएगा। पवित्रात्माऐं कृप्या सत्यनारायण (अविनाशी प्रभु/सतपुरूष) द्वारा रची सृष्टि रचना का वास्तविक ज्ञान पढ़ें।
पूर्ण ब्रह्म:- इस सृष्टि रचना में सतपुरुष-सतलोक का स्वामी (प्रभु), अलख पुरुष-अलख लोक का स्वामी (प्रभु), अगम पुरुष-अगम लोक का स्वामी (प्रभु) तथा अनामी पुरुष-अनामी अकह लोक का स्वामी (प्रभु) तो एक ही पूर्ण ब्रह्म है, जो वास्तव में अविनाशी प्रभु है जो भिन्न-2 रूप धारण करके अपने चारों लोकों में रहता है। जिसके अन्तर्गत असंख्य ब्रह्माण्ड आते हैं।
परब्रह्म:- यह केवल सात संख ब्रह्माण्ड का स्वामी (प्रभु) है। यह अक्षर पुरुष भी कहलाता है। परन्तु यह तथा इसके ब्रह्माण्ड भी वास्तव में अविनाशी नहीं है।
ब्रह्म:- यह केवल इक्कीस ब्रह्माण्ड का स्वामी (प्रभु) है। इसे क्षर पुरुष, ज्योति निरंजन, काल आदि उपमा से जाना जाता है। यह तथा इसके सर्व ब्रह्माण्ड नाशवान हैं। (उपरोक्त तीनों पुरूषों (प्रभुओं) का प्रमाण पवित्र श्री मद्भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक 16-17 में भी है।)
ब्रह्मा:- ब्रह्मा इसी ब्रह्म का ज्येष्ठ पुत्र है, विष्णु मध्य वाला पुत्र है तथा शिव अंतिम तीसरा पुत्र है। ये तीनों ब्रह्म के पुत्र केवल एक ब्रह्माण्ड में एक विभाग (गुण) के स्वामी (प्रभु) हैं तथा नाशवान हैं। विस्तृत विवरण के लिए कृप्या पढ़ें निम्न लिखित सृष्टि रचना:-
{कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने सुक्ष्म वेद अर्थात् कबिर्बाणी में अपने द्वारा रची सृष्टि का ज्ञान स्वयं ही बताया है जो निम्नलिखित है}
सर्व प्रथम केवल एक स्थान ‘अनामी (अनामय) लोक‘ था। जिसे अकह लोक भी कहा जाता है, पूर्ण परमात्मा उस अनामी लोक में अकेला रहता था। उस परमात्मा का वास्तविक नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है। सभी आत्माऐं उस पूर्ण धनी के शरीर में समाई हुई थी। इसी कविर्देव का उपमात्मक (पदवी का) नाम अनामी पुरुष है। (पुरुष का अर्थ प्रभु होता है। प्रभु ने मनुष्य को अपने ही स्वरूप में बनाया है, इसलिए मानव का नाम भी पुरुष ही पड़ा है।) अनामी पुरूष के एक रोम (शरीर के बाल) का प्रकाश संख सूर्यों की रोशनी से भी अधिक है।
विशेष:- जैसे किसी देश के आदरणीय प्रधान मंत्री जी का शरीर का नाम तो अन्य होता है तथा पद का उपमात्मक (पदवी का) नाम प्रधानमंत्री होता है। कई बार प्रधानमंत्री जी अपने पास कई विभाग भी रख लेते हैं। तब जिस भी विभाग के दस्त्तावेजों पर हस्त्ताक्षर करते हैं तो उस समय उसी पद को लिखते हैं। जैसे गृह मंत्रालय के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करेगें तो अपने को गृह मंत्री लिखेगें। वहाँ उसी व्यक्ति के हस्त्ताक्षर की शक्ति कम होती है। इसी प्रकार कबीर परमेश्वर (कविर्देव) की रोशनी में अंतर भिन्न-2 लोकों में होता जाता है।
ठीक इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने नीचे के तीन और लोकों (अगमलोक, अलख लोक, सतलोक) की रचना शब्द(वचन) से की। यही पूर्णब्रह्म परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ही अगम लोक में प्रकट हुआ तथा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) अगम लोक का भी स्वामी है तथा वहाँ इनका उपमात्मक (पदवी का) नाम अगम पुरुष अर्थात् अगम प्रभु है। इसी अगम प्रभु का मानव सदृश शरीर बहुत तेजोमय है जिसके एक रोम (शरीर के बाल) की रोशनी खरब सूर्य की रोशनी से भी अधिक है।
यह पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबिर देव=कबीर परमेश्वर) अलख लोक में प्रकट हुआ तथा स्वयं ही अलख लोक का भी स्वामी है तथा उपमात्मक (पदवी का) नाम अलख पुरुष भी इसी परमेश्वर का है तथा इस पूर्ण प्रभु का मानव सदृश शरीर तेजोमय (स्वज्र्योति) स्वयं प्रकाशित है। एक रोम (शरीर के बाल) की रोशनी अरब सूर्यों के प्रकाश से भी ज्यादा है।
यही पूर्ण प्रभु सतलोक में प्रकट हुआ तथा सतलोक का भी अधिपति यही है। इसलिए इसी का उपमात्मक (पदवी का) नाम सतपुरुष (अविनाशी प्रभु)है। इसी का नाम अकालमूर्ति - शब्द स्वरूपी राम - पूर्ण ब्रह्म - परम अक्षर ब्रह्म आदि हैं। इसी सतपुरुष कविर्देव (कबीर प्रभु) का मानव सदृश शरीर तेजोमय है। जिसके एक रोम (शरीर के बाल) का प्रकाश करोड़ सूर्यों तथा इतने ही चन्द्रमाओं के प्रकाश से भी अधिक है।
इस कविर्देव (कबीर प्रभु) ने सतपुरुष रूप में प्रकट होकर सतलोक में विराजमान होकर प्रथम सतलोक में अन्य रचना की।
एक शब्द (वचन) से सोलह द्वीपों की रचना की। फिर सोलह शब्दों से सोलह पुत्रों की उत्पत्ति की। एक मानसरोवर की रचना की जिसमें अमृत भरा। सोलह पुत्रों के नाम हैं:-(1) ‘‘कूर्म’’, (2)‘‘ज्ञानी’’, (3) ‘‘विवेक’’, (4) ‘‘तेज’’, (5) ‘‘सहज’’, (6) ‘‘सन्तोष’’, (7)‘‘सुरति’’, (8) ‘‘आनन्द’’, (9) ‘‘क्षमा’’, (10) ‘‘निष्काम’’, (11) ‘जलरंगी‘ (12)‘‘अचिन्त’’, (13) ‘‘पे्रम’’, (14) ‘‘दयाल’’, (15) ‘‘धैर्य’’ (16) ‘‘योग संतायन’’ अर्थात् ‘‘योगजीत‘‘।
सतपुरुष कविर्देव ने अपने पुत्र अचिन्त को सत्यलोक की अन्य रचना का भार सौंपा तथा शक्ति प्रदान की। अचिन्त ने अक्षर पुरुष (परब्रह्म) की शब्द से उत्पत्ति की तथा कहा कि मेरी मदद करना। अक्षर पुरुष स्नान करने मानसरोवर पर गया, वहाँ आनन्द आया तथा सो गया। लम्बे समय तक बाहर नहीं आया। तब अचिन्त की प्रार्थना पर अक्षर पुरुष को नींद से जगाने के लिए कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने उसी मानसरोवर से कुछ अमृत जल लेकर एक अण्डा बनाया तथा उस अण्डे में एक आत्मा प्रवेश की तथा अण्डे को मानसरोवर के अमृत जल में छोड़ा। अण्डे की गड़गड़ाहट से अक्षर पुरुष की निंद्रा भंग हुई। उसने अण्डे को क्रोध से देखा जिस कारण से अण्डे के दो भाग हो गए। उसमें से ज्योति निंरजन (क्षर पुरुष) निकला जो आगे चलकर ‘काल‘ कहलाया। इसका वास्तविक नाम ‘‘कैल‘‘ है। तब सतपुरुष (कविर्देव) ने आकाशवाणी की कि आप दोनों बाहर आओ तथा अचिंत के द्वीप में रहो। आज्ञा पाकर अक्षर पुरुष तथा क्षर पुरुष (कैल) दोनों अचिंत के द्वीप में रहने लगे (बच्चों की नालायकी उन्हीं को दिखाई कि कहीं फिर प्रभुता की तड़फ न बन जाए, क्योंकि समर्थ बिन कार्य सफल नहीं होता) फिर पूर्ण धनी कविर्देव ने सर्व रचना स्वयं की। अपनी शब्द शक्ति से एक राजेश्वरी (राष्ट्री) शक्ति उत्पन्न की, जिससे सर्व ब्रह्माण्डों को स्थापित किया। इसी को पराशक्ति परानन्दनी भी कहते हैं। पूर्ण ब्रह्म ने सर्व आत्माओं को अपने ही अन्दर से अपनी वचन शक्ति से अपने मानव शरीर सदृश उत्पन्न किया। प्रत्येक हंस आत्मा का परमात्मा जैसा ही शरीर रचा जिसका तेज 16 (सोलह) सूर्यों जैसा मानव सदृश ही है। परन्तु परमेश्वर के शरीर के एक रोम (शरीर के बाल) का प्रकाश करोड़ों सूर्यों से भी ज्यादा है। बहुत समय उपरान्त क्षर पुरुष (ज्योति निरंजन) ने सोचा कि हम तीनों (अचिन्त
अक्षर पुरुष - क्षर पुरुष) एक द्वीप में रह रहे हैं तथा अन्य एक-एक द्वीप में रह रहे हैं। मैं भी साधना करके अलग द्वीप प्राप्त करूँगा। उसने ऐसा विचार करके एक पैर पर खड़ा होकर सत्तर (70) युग तक तप किया।
•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे।
संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
0 notes