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#प्रेम पत्र (सिमरन)
likhe-jo-khat-tujhe · 7 months
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[प्रेम पत्र खुद के लिए: दिन #1. १५th नवंबर २०२३.]
कोई बात नहीं ज़िंदगी है, होता है।
खुशियों के पलो को गहने समझ कर उनकी गठड़ी बना कर संभाल कर रखना, जब मन करे उन्हें निकाल कर खुद पर मुस्कुराहटो के तौर पर सजाना।
दुःख और दर्द को मेहंदी के रंग की तरह समझना... जैसे वो शुरुआत में गहरा होता है फिर वक्त के साथ हल्का और फीका होने लगता है और धीरे धीरे वक्त के साथ चला जाता है बिल्कुल वैसे ही ये मुश्किलें भी आज ज्यादा है, धीरे धीरे ये गम कम हो जाएगा और एक दिन चला जायेगा।
बस इतना ही, मुझसे तुम तक एक सर्द सुबह वो नवंबर। ~ सिमरन।
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likhe-jo-khat-tujhe · 7 months
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[प्रेम पत्र खुद के लिए: दिन #2. १6th नवंबर २०२३. गुरूवार.]
सर्द सुबह की ठंड में गरम चाय सुकून की वो प्याली है जिसका खुमार दिन भर रहता है। सर्दियां आ चुकी है, असमंजस बरकरार है।
कहते हैं उम्मीद पर दुनिया कायम है, इसी के साथ मेरे कदम चलते चलते यहां तक आ चुके और सांसे ठहरती नही।
आज कल सुबह कब हुई? दोपहर कहा गई? शाम कब ढली? रात कैसे गुजरी कुछ समझ नही आ रहा... वक्त इतनी तेज रफ्तार पकड़ रहा है जैसे उसे कही पोहचने की जल्दी है। कुछ बातों को अपने अंदर रख तो लिया मगर वो इतनी भारी होती जा रही है मानो रूई में किसी ने पानी डाल दिया हो, ये राज़ तो रोज बढ़ता जा रहा हैं खैर किसी दिन यहां से निकल जाऊंगी।
लोग कहते हैं में खामोश बड़ी रहती हु,
में सोच में डूब कर गुमसुम सी रहती हु,
जब ऊंचे आसमान के परिंदो की उड़ान में बंद कमरे की खुली खिड़की से देखती हु,
तब में ये सोचती हु,
बदलाव मुझे नापसंद है फिर भी उड़ान की चाह है,
फिर याद आता है की में तो बंदिशों में रहती हु,
मगर,
जब चंद लोग मुझे ये कहते हैं की में बड़ा अच्छा में लिखती हु
बस इसीलिए,
मेरे कदम रुकते नही और में चलती रहती हु।
सिमरन। ~
खैर उम्मीद पर दुनिया कायम है और मुझ पर मेरा भविष्य।
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likhe-jo-khat-tujhe · 10 months
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Heyyy, you're reading
Love letters to myself : Journals of Simran
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सिमरन के खुद के लिए प्रेम पत्र
@alhad-si-simran || Simran || 20+ || @alhad-maharani
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I'm that girl who feels suffocation in reality and wants to
drown into books instead.
One thing about me is that I'm a huge art enthusiastic person because art saved me like no living being and that's how I accepted embrace of goddess of art during my teenage years.
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Sometimes, I scribble down my thoughts like a lone wolf under the moonlight and sometimes I recite my heart out through poems of great poets during rainy nights.
This blog is mainly about journaling my life, thoughts, random things I experienced in the past/present, my perspective about different things etc etc.
I'm made of rain, moonlight, stardust, moonless nights, smell of books and sounds of rain and calmness of waves, storms are my mates. Silence is my strength.
My dm/ask is always open for friendly people. Though I can't hold conversation, I will hold my silence till you rant or vent about things which are bothering you. Please be respectful with your words that's how friends are made. Right? -.❥
English isn't my first language so pardon me if I make a mistake; then again our most human trait is imperfection.
Kindness doesn't cost anything so please hold her on your tongue and fingertips whenever you interact with anyone.
To know more about me check out my tags I have tagged under this intro or you can simply just search it on my blog to see mostly what do I post.
I'll be posting my Journals here soon. ~~~
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Weirdos and porn blogs please strictly dni. <3
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likhe-jo-khat-tujhe · 7 months
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[प्रेम पत्र खुद के लिए: दिन #3. १७th नवंबर २०२३. शुक्रवार.]
शुरुआत और अंत।
"जो आज है कल शायद न हो, ये वक्त गुजर जाएगा।"
ये बात दुःख में सुनो तो अच्छी लगती है जैसे जलते घाव पर ठंडा मरहम और खुशी में चुभती है जैसे किसी अपने के लिए मफलर बनाते वक्त सुई चुभ जाती है वैसे, मगर फिर भी हम खुशी खुशी उसे बनाते रहते हैं, बिल्कुल इन दो बातो जैसे ही है वक्त और हालात।
सुख हो या दुःख आज होगा कल शायद न हो, क्यों की जो शुरू होता है उसका अंत निश्चित है।
धैर्य से मुश्किल से मुश्किल काम भी पूर्ण हो जाते है।
धीरज के साथ बढ़ते जा रही, चाहे दुःख हो या सुख वो वक्त का साथी है; वे उसके साथ गुजर जाएगा।
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likhe-jo-khat-tujhe · 7 months
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[प्रेम पत्र खुद के लिए: दिन #4. १८th नवंबर २०२३. शनिवार.]
जैसे सर्दियों में सुबह कोहरा छा जाता है जिंदगी भी ऐसी ही है कुछ पलो के लिए दुखों का घेरा घेर लेता है और समझ नही आता क्या करे क्या नही? बस तब थोड़ी देर रुक कर सोच लेने से, उपाय ढूंढने से अपने आप मिल जाता है। धैर्य जरूरी है।
[प्रेम पत्र खुद के लिए: दिन #5. १९th नवंबर २०२३. रविवार.]
आज के लिए मुस्कुरा लो गमों को कल के लिए रहने दो।
ये आज दुबारा नही आयेगा, जो बीत चुका उसे जाने दो।
गुजरे कल के लिए रो कर खराब करने से क्या होगा?
आ रहा जो है जो कल उसके लिए खुद को अब तो संभल जाने दो।
बस जो बीत चुका है उसे जाने दो।
खुश्बू समझ कर उन यादों को हवाओं में बिखर जाने दो,
बस जो बीत चुका है उसे जाने दो।
बदलाव जरूरी है, छुपना बंद करो,
बस उसे जाने दो, जाने दो।
-♡.सिमरन.♡
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likhe-jo-khat-tujhe · 7 months
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[प्रेम पत्र खुद के लिए: दिन #8. २२th नवंबर २०२३. बुधवार.]
सुबह का सूर्योदय नई उम्मीदों के साथ आता है और शाम का सूर्यास्त ये याद दिला कर जाता है की हौसला रख जो शुरू होता है उसका अंत भी लिखा है।
बस इसी के साथ आज उम्मीदों को हाथ थाम कर कल की प्रतिक्षा कर रही हूं। आज ज्यादा नही लिख रही बस इतना ही की उम्मीद मुझे थामे रखना, में रुकने वाली नही।
बस थोड़ा और चल लेना तू राही,
मंजिल इंतजार में बैठी है कब से भी। -♡.सिमरन.♡
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रुकना मत क्यों की, कुछ तो लोग कहेंगे, लोगो का काम है कहना।
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likhe-jo-khat-tujhe · 7 months
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[प्रेम पत्र खुद के लिए: दिन #7. २१th नवंबर २०२३. मंगलवार.]
इन सर्द हवाओं में, इस सर्द मौसम में कुछ तो ऐसा है जो हकीकत से मिला देते है... मौसम हो, वक्त हो या इंसान बदल जाते है। बदलाव ज़िंदगी की ऐसी परछाई है जो अक्सर अंधेरों में रुला दिया करती है या कभी चाय पर हसा दिया करती है। कभी कभी हम उस बदलाव को अपनाने से इंकार कर देते है, मुकर जाते हैं की नही ये नही हो सकता ये हकीकत नही है मगर कब तक?
दो साल पहले जब हम अपना पुराना मकान छोड़ कर आ रहे थे तब मुझे फर्क नही पड़ा और आज भी नही पड़ता, ना उन लोगों से ना उस जगह से... ऐसी कोई याद बनी ही नही जो मुझे बांध सके। यादों की बंदिशों में रहने से अच्छा है में उन्हें दफना दु। अब जब वो सब याद करती हु तो एक सपना लगता है...
सही कहा,
ab vo galiyāñ vo makāñ yaad nahīñ
kaun rahtā thā kahāñ yaad nahīñ
-Ahmad Mushtaq
जब तक फर्क नही पड़ता तब तक चीजे सही रहती है, जब फर्क पड़ने लग जाए तब समझ लेना जिस चीज़ से फर्क पड़ने लगा है उसके बदलाव से या तो घाव मिलेगा या सबक।
ये मकान अब मुझे घर लगने लगा है, पहले से बेहतर है ये जगह।
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likhe-jo-khat-tujhe · 7 months
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[प्रेम पत्र खुद के लिए: दिन #6. २०th नवंबर २०२३. सोमवार.]
कुछ यादें हमारे अंदर इस तरह घर बना लेती है जैसे स्याही कागज पर, चाहे जितनी कोशिश करो वो कभी नही मिटते; उसके निशान हमेशा रह जाते है। एक आस में मेने पढ़ा की अहमद कहते है...
patā ab tak nahīñ badlā hamārā
vahī ghar hai vahī qissa hamārā
vahī TuuTī huī kashtī hai apnī
vahī Thahrā huā dariyā hamārā
ye maqtal bhī hai aur kunj-e-amāñ bhī
ye dil ye be-nishāñ kamra hamārā
kisī jānib nahīñ khulte darīche
kahīñ jaatā nahīñ rasta hamārā
ham apnī dhuup meñ baiThe haiñ 'mushtāq'
hamāre saath hai saayā hamārā
-Ahmad Mushtaq
बस यही बात है की में आज भी वही उलझी हुई हु कल भी रहूंगी शायद, बदलाव भले मंजूर नही फिलहाल मगर एक दिन जरूर होगा जब में अपना लूंगी इसे... लेकिन तब तक में वही हु और वही रहूंगी।
में एक यादों का ऐसा बसेरा,
वो गुजरा कल गुजरता ही नही, आज भी वही मेरा सवेरा। -♡.सिमरन.♡
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