पूर्ण परमात्मा चारों युगों में पृथ्वी पर सशरीर आते हैं और सशरीर वापस चलें जाते हैं। अपना वास्तविक तत्वज्ञान दोहों, कविताओं तथा चौपाइयों द्वारा बोलकर सुनाते हैं। जिससे लोग उन्हें संत तथा कवि कहकर संबोधित करने लग जाते हैं। बहुत सी अच्छी आत्माओं को मिलते हैं और सत्य ज्ञान से परिचित करावाकर अपना गवाह बनाते हैं।
ऐसे ही कुछ महापुरुषों को कलयुग में कबीर परमेश्वर मिलें थे, जिसके बाद उन्होंने कबीर परमेश्वर की कलमतोड़ महिमा गाई और बताया कि पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी ही हैं।
आदरणीय धर्मदास जी को बांधवगढ़ मध्यप्रदेश वाले को पूर्ण परमात्मा कबीर जी मथुरा में जिंदा महात्मा के रूप में मिले, सत्य ज्ञान से परिचित कराया, सतलोक दिखाकर साक्षी बनाया। तब
धर्मदास जी ने कहा था कि,
आज़ मोहे दर्शन दियो जी कबीर, सतलोक से चलकर आए, काटन जम की जंजीर।।
मलूक दास जी को 42 वर्ष की आयु में कबीर परमेश्वर मिलें। सत्य ज्ञान समझाया, तब मलूक दास जी ने अपनी अमरवाणी में कहा था कि,
जपो रे मन परमेश्वर नाम कबीर।
चार दाग से सतगुरु न्यारा, अजरो अमर शरीर । दास मलूक सलूक कहत हैं, खोजो खसम कबीर।।
वह कबीर परमेश्वर चारों दाग़ से न्यारा है, अर्थात उसकी मृत्यु नहीं होती। उस कबीर परमेश्वर का अजर अमर अविनाशी शरीर है।
ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 93 मंत्र 2 में प्रमाण है कि पूर्ण परमात्मा कविर्देव अर्थात कबीर परमेश्वर सशरीर प्रकट होते हैं और सशरीर वापस चलें जाते हैं।
जब सीता जी का हरण हुआ था तब श्री रामचंद्र जी समुंद्र पर पुल बनवा रहे थे, लेकिन बन नहीं रहा था। तब रामचंद्र जी ने परमात्मा से अर्ज की थी, उस समय मुनिनंद्र ऋषि के नाम से अवतरित थे, उन्होंने रामचन्द्र जी की मदद की। नल नील को कबीर परमेश्वर मिलें थे, सत्य ज्ञान बताया जिसके बाद उन्होंने कबीर परमेश्वर से उपदेश लिया था। कबीर परमेश्वर के आशीर्वाद से उनके द्वारा रखी गई कोई भी पानी में नहीं डूबती थी। जब पुल बनाने के लिए रामचंद्र जी ने नल नील को कहा तो अहंकार में आकर वह अपने गुरु कबीर परमेश्वर को याद नहीं किया। जिसके कारण पत्थर पानी में डूबने लगे। जब उन्हें अपनी ग़लती का अहसास हुआ तो मुनिनंद्र ऋषि के रुप में प्रकट कबीर परमेश्वर को याद किया। तब कबीर परमेश्वर ने पास के ही एक पर्वत के चारों ओर लकड़ी से रेखा खींच दी थी, जिससे सारे पत्थर हल्के हो गए थे। फिर उन्हीं पत्थरों से पुल बनाया गया।
जिसका प्रमाण आदरणीय धर्मदास जी की वाणी में इस प्रकार है,
धन धन सतगुरु सत कबीर, भगत की पीर मिटाने वाले।
"रहे नल नील जतन कर हार, तब सतगुरू से करी पुकार।
जा सत रेखा लिखी अपार, सिन्धु पर शिला तिराने वाले।"
संत गरीब दास जी ने भी कहा है कि,
गरीब, हम सुल्तानी नानक तारे, दादू क्यूं उपदेश दिया। जाति जुलाहा भेद न पाया, काशी माहीं कबीर हुआ।।
गरीब, सेवक हो कर उतरे, इस पृथ्वी के माहीं। जीव उधारन जगतगुरु, बार बार बलि जाहिं।।
संत गरीब दास जी ने अपनी इस अमरवाणी में बताया है कि, पूर्ण परमात्मा कबीर जी (सेवक) दास बनकर सतलोक से नीचे पृथ्वी लोक पर आए। जगतगुरु बनकर जीवों को काल के जाल से मुक्त कराने प्रकट हुए थे। जिन्होंने अब्राहिम अधम सुल्तान, नानक देव जी, दादू जी को उपदेश देकर पार किया था।
आदरणीय नानक देव जी ने अपनी अमरवाणी में पूर्ण परमात्मा के बारे में कहा है कि,
यक अर्ज गुफतम पेश तो दर कून करतार। हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदिगार।।
आदरणीय दादू साहेब जी को कबीर परमात्मा 7 वर्ष की आयु में मिले थे, उस समय दादू साहेब जी हम उम्र बच्चों के साथ खेल रहे थे। सत्य ज्ञान से परिचित कराया और सतलोक लेकर गए। तीन दिन अचेत रहने के बाद जब होश में आए तब उन्होंने कहा था कि,
जिन मोकूं निज नाम दिया, सोई सतगुरु हमार। दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सिरजन हार।।
सर्व बुद्धिजीवी समाज से निवेदन है कि, वर्तमान में सतगुरु रामपाल जी महाराज जी ही एकमात्र ऐसे महान संत है जो कबीर परमेश्वर की वास्तविक जानकारी तथा सतभक्ति और पूर्ण मोक्ष प्राप्ति मंत्र प्रदान कर रहे हैं। भक्ति मार्ग की अपनी शंका का समाधान उनके सत्संग देखकर सुनकर कर सकते हैं। संत रामपाल जी महाराज जी सर्व सदग्रंथो को खोलकर प्रमाण दिखा रहे हैं। आप भी उपदेश लेकर अपना जीवन सफल बनाएं।
जब सीता जी का हरण हुआ था तब श्री रामचंद्र जी समुंद्र पर पुल बनवा रहे थे, लेकिन बन नहीं रहा था। तब रामचंद्र जी ने परमात्मा से अर्ज की थी, उस समय परमात्मा कबीर मुनीन्द्र ऋषि के नाम से अवतरित थे, उन्होंने रामचन्द्र जी की मदद की।
जिसका प्रमाण आदरणीय धर्मदास जी की वाणी में इस प्रकार है - धन धन सतगुरु सत कबीर, भगत की पीर मिटाने वाले। "रहे नल नील जतन कर हार, तब सतगुरू से करी पुकार । जा सत रेखा लिखी अपार, सिन्धु पर शिला तिराने वाले।"
जब सीता जी का हरण हुआ था तब श्री रामचंद्र जी समुद्र पर पुल बनवा रहे थे, लेकिन बन नहीं रहा था। तब रामचंद्र जी ने परमात्मा से अर्ज की थी, उस समय परमात्मा कबीर मुनीन्द्र ऋषि के नाम से अवतरित थे, उन्होंने रामचन्द्र जी की मदद की।
जिसका प्रमाण आदरणीय धर्मदास जी की वाणी में इस प्रकार है-
जब सीता जी का हरण हुआ था तब श्री रामचंद्र जी समुंद्र पर पुल बनवा रहे थे, लेकिन बन नहीं रहा था। तब रामचंद्र जी ने परमात्मा से अर्ज की थी, उस समय परमात्मा कबीर मुनीन्द्र ऋषि के नाम से अवतरित थे, उन्होंने रामचन्द्र जी की मदद की।
जिसका प्रमाण आदरणीय धर्मदास जी की वाणी में इस प्रकार है - धन धन सतगुरु सत कबीर, भगत की पीर मिटाने वाले। "रहे नल नील जतन कर हार, तब सतगुरू से करी पुकार । जा सत रेखा लिखी अपार, सिन्धु पर शिला तिराने वाले।"
अधिक जानने के लिए पवित्र पुस्तक ज्ञान गंगा
निःशुल्क पायें अपना नाम, पूरा पता भेजें +91 7496801825
जब सीता जी का हरण हुआ था तब श्री रामचंद्र जी समुंद्र पर पुल बनवा रहे थे, लेकिन बन नहीं रहा था। तब रामचंद्र जी ने परमात्मा से अर्ज की थी, उस समय परमात्मा कबीर मुनीन्द्र ऋषि के नाम से अवतरित थे, उन्होंने रामचन्द्र जी की मदद की।
जिसका प्रमाण आदरणीय धर्मदास जी की वाणी में इस प्रकार है - धन धन सतगुरु सत कबीर, भगत की पीर मिटाने वाले। "रहे नल नील जतन कर हार, तब सतगुरू से करी पुकार । जा सत रेखा लिखी अपार, सिन्धु पर शिला तिराने वाले।"
जब सीता जी का हरण हुआ था तब श्री रामचंद्र जी समुंद्र पर पुल बनवा रहे थे, लेकिन बन नहीं रहा था। तब रामचंद्र जी ने परमात्मा से अर्ज की थी, उस समय परमात्मा कबीर मुनीन्द्र ऋषि के नाम से अवतरित थे, उन्होंने रामचन्द्र जी की मदद की।
जिसका प्रमाण आदरणीय धर्मदास जी की वाणी में इस प्रकार है - धन धन सतगुरु सत कबीर, भगत की पीर मिटाने वाले। "रहे नल नील जतन कर हार, तब सतगुरू से करी पुकार । जा सत रेखा लिखी अपार, सिन्धु पर शिला तिराने वाले।"
जब सीता जी का हरण हुआ था तब श्री रामचंद्र जी समुंद्र पर पुल बनवा रहे थे, लेकिन बन नहीं रहा था। तब रामचंद्र जी ने परमात्मा से अर्ज की थी, उस समय परमात्मा कबीर मुनीन्द्र ऋषि के नाम से अवतरित थे, उन्होंने रामचन्द्र जी की मदद की।
जिसका प्रमाण आदरणीय धर्मदास जी की वाणी में इस प्रकार है - धन धन सतगुरु सत कबीर, भगत की पीर मिटाने वाले। "रहे नल नील जतन कर हार, तब सतगुरू से करी पुकार । जा सत रेखा लिखी अपार, सिन्धु पर शिला तिराने वाले।"