दीपावली क्यों मनाया जाता है जाने इतिहास और महत्व
दीपावली क्यों मनाया जाता है जाने इतिहास और महत्व
दीपावली का पर्व हर साल कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। इस दिन केवल दिया जलाने और पटाखे फोड़ने का ही प्रथा नहीं है, बल्कि दीपावली मनाने के पीछे कई सारे पौराणिक कथा और प्रथा है। जिससे आज भी बहुत सारे लोग अनजान हैं। आज हम इस लेख के माध्यम से आपको बताएंगे कि दीपावली क्यों मनाई जाती है।
दीपावली क्यों मनाया जाता है जाने इतिहास और महत्व
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Guru Pushya Nakshatra yog: वर्षो बाद 5 बेहद अद्भुत शुभ योग 25 January को, ये चीजें खरीदने से आएगी सुख-समृद्धि
Guru Pushya Yog 2024: हिंदू पंचांग के अनुसार, जनवरी माह की 25 तारीख काफी खास है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस दिन पौष पूर्णिमा होने के साथ-साथ कई अद्भुत योग बन रहे हैं। माना जा रहा है कि ऐसे योग सालों के बाद एक साथ बन रहे हैं। 25 जनवरी को पौष पूर्णिमा के साथ सर्वार्थ सिद्धि, अमृत सिद्धि, रवि, प्रीति योग के साथ गुरु पुष्य योग बन रहा है। जहां सर्वार्थ सिद्धि योग पूरे दिन रहने वाला है। इसके साथ ही रवि योग सुबह 07 बजकर 13 मिनट से 08 बजकर 16 मिनट तक है। इसके साथ ही गुरु पुष्य और अमृत सिद्धि योग सुबह 8 बजकर 16 मिनट से 26 जनवरी को सुबह 7 बजकर 12 मिनट तक है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी और चंद्र देव की विधिवत पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही इस दिन कुछ चीजें लेकर आने से कभी भी व्यक्ति को पैसों की तंगी का सामना नहीं करना पड़ता है। मित्रों जानते हैं 25 जनवरी 2024 को बनने वाले शुभ योग के विषय में ?
इस दिन सर्वार्थ सिद्धि, अमृत सिद्धि योग के साथ-साथ गुरु पुष्य योग भी बन रहा है। मित्रों कुछ गुरु पुष्य योग के बनने में पुष्य नक्षत्र का योगदान क्या और क्यों है?
पुष्य नक्षत्र - सबसे पवित्र नक्षत्र
हिंदू धर्मग्रंथों में पुष्य नक्षत्र को सबसे शुभ माना गया है। पुष्य का अर्थ है 'पोषण करना' और इसलिए यह नक्षत्र ऊर्जा और शक्ति प्रदान करता है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक लोगों की मदद और सेवा के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। ये जीवन में अपनी मेहनत और काबिलियत से आगे बढ़ने में भी विश्वास रखते हैं। ऐसा कहा जाता है कि धन और समृद्धि की देवी - माँ लक्ष्मी का जन्म इसी शुभ दिन पर हुआ था।
पुष्य नक्षत्र को वैदिक ज्योतिष में सबसे लाभकारी और शक्तिशाली नक्षत्रों में से एक माना जाता है । यह सत्ताईस नक्षत्रों में आठवां नक्षत्र है, और यह कर्क राशि में स्थित है । इस नक्षत्र का प्रतीक गाय का थन है, जो प्रचुरता, पोषण और उर्वरता का प्रतिनिधित्व करता है। पुष्य नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि है और माना जाता है कि यह नक्षत्र में जन्म लेने वालों के लिए अपार धन, समृद्धि और सफलता लाता है।
पुष्य नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक का स्वभाव और जीवन:
पुष्य नक्षत्र के तहत जन्म लेने वाले लोग स्वभाव से बहुत ही पोषण करने वाले, देखभाल करने वाले और सहायक माने जाते हैं। उनमें अपने परिवार और प्रियजनों के प्रति जिम्मेदारी की गहरी भावना होती है और वे हमेशा उन्हें सर्वोत्तम संभव देखभाल और सहायता प्रदान करने का प्रयास करते हैं। ये व्यक्ति अपनी बुद्धिमत्ता, ज्ञान और कठिन परिस्थितियों को आसानी और शालीनता से संभालने की क्षमता के लिए भी जाने जाते हैं।
पुष्य नक्षत्र के देवता बृहस्पति हैं, जिन्हें देवताओं का गुरु माना जाता है। बृहस्पति ज्ञान, बुद्धि और आध्यात्मिकता से जुड़े हैं, और माना जाता है कि इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए लोगों में ये गुण प्रचुर मात्रा में होते हैं। उनमें आध्यात्मिकता के प्रति स्वाभाविक झुकाव होता है और वे अक्सर आत्म-खोज और आत्म-स���क्षात्कार के मार्ग की ओर आकर्षित होते हैं।
यदि आपका जन्म 03°20′ से 16°40′ के बीच कर्क राशि में हुआ है, तो आपकी जन्म कुंडली में पुष्य नक्षत्र है । ऐसा माना जाता है कि इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को जीवन भर सौभाग्य, प्रचुरता और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। यह भी माना जाता है कि उनका अपने परिवार और जड़ों से गहरा संबंध होता है, और उनका अक्सर शिक्षा, वित्त या आध्यात्मिकता से संबंधित क्षेत्रों में एक सफल और संतुष्टिदायक करियर होता है।
जब यह नक्षत्र कुंडली में मौजूद होता है तो यह व्यक्ति के लिए सौभाग्य, समृद्धि और खुशहाली लाता है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग बुद्धिमत्ता, रचनात्मकता और देखभाल करने वाले स्वभाव से संपन्न होते हैं। वे अपने आध्यात्मिक झुकाव और अपनी जड़ों और परिवार के साथ मजबूत संबंध के लिए भी जाने जाते हैं।
जब चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में होता है, तो यह नए उद्यम शुरू करने और आध्यात्मिक गतिविधियां करने के लिए बहुत शुभ समय माना जाता है। पुष्य नक्षत्र में चंद्रमा के साथ जन्म लेने वाले लोग अत्यधिक बुद्धिमान, रचनात्मक और कलात्मक होते हैं। उनमें आध्यात्मिकता के प्रति स्वाभाविक झुकाव होता है और वे अक्सर आत्म-खोज और आत्म-साक्षात्कार के मार्ग की ओर आकर्षित होते हैं।
पुष्य नक्षत्र का स्वामी शनि है, जो जीवन के प्रति अपने अनुशासित और व्यावहारिक दृष्टिकोण के लिए जाना जाता है। शनि के प्रभाव में पैदा हुए लोग अत्यधिक अनुशासित, संगठित और मेहनती होते हैं। उनमें सत्यनिष्ठा और ईमानदारी की प्रबल भावना होती है, जो उन्हें व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में अलग पहचान दिलाती है।
पुष्य नक्षत्र कुंडली में महत्वपूर्ण स्थान रखता है और इसकी उपस्थिति व्यक्ति के जीवन पर गहरा प्रभाव डालती है। जब यह नक्षत्र कुंडली में मौजूद होता है तो यह व्यक्ति के लिए सौभाग्य, समृद्धि और खुशहाली लाता है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग बुद्धिमत्ता, रचनात्मकता और देखभाल करने वाले स्वभाव से संपन्न होते हैं। वे अपने आध्यात्मिक झुकाव और अपनी जड़ों और परिवार के साथ मजबूत संबंध के लिए भी जाने जाते हैं।
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Shri Durga Chalisa Lyrics In Hindi: श्री दुर्गा चालीसा लिरिक्स
दुर्गा चालीसा" एक आद्यात्मिक गीत है जिसमें मां दुर्गा की शक्ति, सौंदर्य और कृपा का वर्णन किया गया है। यह गीत देवी के प्रति श्रद्धा और प्रेम को प्रकट करने का एक माध्यम है। इस चालीसा के पाठ से भक्त आत्मा को पवित्रता और शक्ति का आभास करते हैं और दुर्गा माता की कृपा प्राप्त करते हैं।
Shri Durga Chalisa Lyrics In Hindi
नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
निरंकार ��ै ज्योति तुम्हारी।
तिहूं लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लै कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।
परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै।
जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
तिहुंलोक में डंका बाजत॥
शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ संतन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब॥
अमरपुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावें।
रिपू मुरख मौही डरपावे॥
शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।
जब लगि जिऊं दया फल पाऊं ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥
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बसंत पंचमी ,नया कामकाज शुरू करने के लिए साथ ही अनसूझा विवाह के लिए है बहुत शुभ, बन रहे हैं चार शुभ योग
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बसंत पंचमी ,नया कामकाज शुरू करने के लिए साथ ही अनसूझा विवाह के लिए है बहुत शुभ, बन रहे हैं चार शुभ योग
बसंत पंचमी का महत्व ज्ञान और शिक्षा से जोड़कर माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन विद्या, कला, विज्ञान, ज्ञान और संगीत की देवी, माता सरस्वती का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है।
परमपरा अनुसार हिंदू धर्म में बसंत पंचमी का विशेष महत्व है। बसंत पंचमी का पर्व हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन माता सरस्वती का जन्म हुआ वहीं इस दिन से वसंत के मौसम की शुरुआत भी माना जाता है। इस दिन ज्ञान की देवी माता सरस्वती की पूजा करने की परंपरा है।
मां शारदे की पूजा के साथ-साथ इस दिन को नया कामकाज शुरू करने के लिए साथ ही अनसूझा विवाह के लिए बहुत शुभ माना गया है।
26 जनवरी गणतंत्र दिवस भी है।पंचांग के मुताबिक माघ शुक्ल पंचमी तिथि 25 जनवरी को दोपहर 12 बजकर 33 मिनट से आरंभ हो रही है, जो अगले दिन 26 जनवरी को सुबह 10 बजकर 37 मिनट तक रहेगी। इसलिए उदयातिथि को आधार मानते हुए बसंत पंचमी का त्योहार 26 जनवरी को मनाया जाएगा।
वैदिक पंचांग के अनुसार सरस्वती पूजा के दिन चार शुभ योग- शिव योग, सिद्ध योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग बने रहे हैं। आपको बता दें कि रवि योग 26 जनवरी की शाम 06 बजकर 56 मिनट से आरंभ हो रहा है और यह अगले दिन 27 जनवरी को सुबह 07 बजकर 11 मिनट तक रहेगा। रवि योग को ज्योतिष में बेहद शुभ योग माना गया है। वहीं सर्वार्थ सिद्धि योग 26 जनवरी की शाम 06:58 बजे से आरंभ हो रहा है, जो 27 जनवरी को सुबह 07:11 बजे तक रहेगा। ज्योतिष के अनुसार इस योग में जो भी काम किया जाता है। वह सिद्ध हो जाता है।
हिन्दू धर्म में मां सरस्वती विद्या, संगीत और बुद्धि की देवी मानी गई हैं। देवीपुराण में सरस्वती को सावित्री, गावत्री, सती, लक्ष्मी और अंबिका नाम से संबोधित किया गया है। प्राचीन ग्रंथों में इन्हें वाग्देवी, वाणी, शारदा, भारती, वीणापाणि, विद्याधरी, सर्वमंगला आदि नामों से अलंकृत किया गया है। यह संपूर्ण संशयों का उच्छेद करने वाली तथा बोधस्वरूपिणी हैं। ये संगीतशास्त्र की भी अधिष्ठात्री देवी हैं। ताल, स्वर, लय, राग-रागिनी आदि का प्रादुर्भाव भी इन्हीं से हुआ है सात प्रकार के स्वरों द्वारा इनका स्मरण किया जाता है, इसलिए ये स्वरात्मिका कहलाती हैं। सप्तविध स्वरों का ज्ञान प्रदान करने के कारण ही इनका नाम सरस्वती है। वीणावादिनी सरस्वती संगीतमय आह्लादित जीवन जीने की प्रेरणावस्था है। वीणावादन शरीर यंत्र को एकदम स्थैर्य प्रदान करता है। इसमें शरीर का अंग-अंग परस्पर गुंथकर समाधि अवस्था को प्राप्त हो जाता है । साम-संगीत के सारे विधि-विधान एकमात्र वीणा में सन्निहित हैं।
वाक् (वाणी) सत्त्वगुणी सरस्वती के रूप में प्रस्फुटित हुआ। सरस्वती के सभी अंग श्वेताभ हैं, जिसका तात्पर्य यह है कि सरस्वती सत्त्वगुणी प्रतिभा स्वरूपा हैं। इसी गुण की उपलब्धि जीवन का अभीष्ट है। कमल गतिशीलता का प्रतीक है। यह निरपेक्ष जीवन जीने की प्रेरणा देता है। हाथ में पुस्तक सभी कुछ जान लेने, सभी कुछ समझ लेने की सीख देती है।
देवी भागवत के अनुसार, सरस्वती को ब्रह्मा, विष्णु, महेश द्वारा पूजा जाता है । जो सरस्वती की आराधना करता है, उसमें उनके वाहन हंस के नीर-क्षीर-विवेक गुण अपने आप ही आ जाते हैं। माघ माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसंत पंचमी पर्व मनाया जाता है, तब संपूर्ण विधि-विधान से मां सरस्वती का पूजन करने का विधान है। लेखक, कवि, संगीतकार सभी सरस्वती की प्रथम वंदना करते हैं। उनका विश्वास है कि इससे उनके भीतर रचना की ऊर्जा शक्ति उत्पन्न होती है। इसके अलावा मां सरस्वती देवी की पूजा से रोग, शोक, चिंताएं और मन का संचित विकार भी दूर होता है। इस प्रकार वीणाधारिणी, वीणावादिनी मां सरस्वती की पूजा-आराधना में मानव कल्याण का समग्र जीवनदर्शन निहित है।
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Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है।लोक केसरी किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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स्वामी विवेकानंद जी के १६० वे जन्म दिवस पर ,हर घर तक संस्कृत भाषा को लेकर जाने का महाअभियानसंस्कृत भाषा को जनसाधारण की भाषा बनाने का संकल्प लेते हुए संस्कृत भारती द्वारा सात दिवसीय प्रबोधनवर्ग आयोजन।
स्वामी विवेकानंद जी के १६० वे जन्म दिवस पर ,हर घर तक संस्कृत भाषा को लेकर जाने का महाअभियान
संस्कृत भाषा को जनसाधारण की भाषा बनाने का संकल्प लेते हुए संस्कृत भारती द्वारा सात दिवसीय प्रबोधनवर्ग आयोजन।
मथुरा अभी न्यूज़ ( गुलशन ) संस्कृत भारती ब्रज प्रान्त एवं गुरु गंगेश्वर वेद दर्शन संस्कृत विद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में संस्कृत भाषा को जनसाधारण की भाषा बनाने के उद्देश्य को लेकर मथुरा पुरी महानगर के वृन्दावन स्थित गुरु गंगेश्वर वेद दर्शन संस्कृत विद्यालय श्रोतमुनि आश्रम में 5 जनवरी से 12 जनवरी तक चल रहे सात दिवसीय प्रबोधनवर्ग का समापन समारोह किया गया।
इस अवसर पर समारोह की अध्यक्षता श्रोतमुनि आश्रम के महन्त स्वामी अद्वैत मुनि महाराज ने करते हुए कहा कि वर्तमान में संस्कृत भाषा के प्रति जागरूकता अभियान की अति आवश्यकता है जिसके लिए संस्कृत भारती द्वारा सराहनीय कार्य किया जा रहा है।
समारोह के मुख्य अतिथि अक्रिय धाम पीठाधीश्वर खमलिया पुल पीलीभीत के विधायक स्वामी प्रवक्तानन्द अक्रिय महाराज ने कहा कि संस्कृत भाषा विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है यह भाषा देवनिर्मित भाषा है विश्व की सभी भाषाओं की जननी कहा जाता है संस्कृत भाषा को संस्कृत भाषा संस्कार देने वाली भाषा है।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता, संस्कृत भारती केन्द्रीय कार्यकारिणी सदस्य . संजीव ने अपने उद्बोधन में कहा कि संस्कृत भाषा सभी भाषाओं में सबसे सरल व मधुर भाषा है। इस भाषा को देववाणी कहा जाता है हमारे सभी प्राचीन ग्रंथ संस्कृत भाषा में ही लिखे गए हैं। आज आवश्यकता है संस्कृत भाषा को जनसाधारण भाषा बनाने की जिससे भारतीय संस्कृति और सभ्यता को जीवित रखा जा सके, स्वामी विवेकानंद जी के १६० वे जन्मदिवस पर उनका पावन स्मरण करते हुए पुनः हम प्रबोधन वर्ग के माध्यम से हर घर संस्कृत भाषा को पहुंचाने के लिए, इस संकल्प को लेकर,हर कंठ तक संस्कृत भाषा को पहुंचा कर सिद्ध करेंगें।
इस अवसर पर प्रबोधनवर्ग के वर्गाधिकारी स्वामी अनिलानन्दजी ने सात दिवसीय प्रबोधनवर्ग के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला।
समारोह का शुभारंभ वैदिक विधि विधान से मां सरस्वती और भारत माता के चित्र के सम्मुख अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया उसके पश्चात वैदिक व पौराणिक मंगलाचरण किया गया और ध्येय मंत्र प्रस्तुत किया गया मां सरस्वती की वन्दना की गई।
समारोह के अन्त में संस्कृत भारती ब्रज प्रान्त न्यास अध्यक्ष ओमप्रकाश बंसल द्वारा धन्यवाद ज्ञापन किया गया।
इस अवसर पर संस्कृत भारती ब्रज प्रान्त मथुरा महानगर अध्यक्ष आचार्य ब्रजेन्द्र नागर, प्रचार प्रमुख रामदास चतुर्वेदी पार्षद, शिक्षण प्रमुख हरिश्चंद्र विस्तारक लक्ष्मीनारायण, गंगाधर अरोड़ा, हरस्वरुप यादव, टीकाराम पांडेय, आदि के द्वारा पधारे हुए सभी अतिथियों का स्वागत सम्मान किया गया
समापन समारोह का संचालन ब्रज प्रान्त सहमंत्री गौरव गौतम द्वारा किया गया।
इस अवसर पर बृज प्रांत अध्यक्षा डॉ.तुलसी देवी, प्रो शिवशंकर मिश्रा, केवल वशिष्ठ, रुपेश यादव, अरविंद सिंह तोमर , गंगाधर अरोड़ा, हरस्वरूप यादव, सचिन संदीपश्च, हरिश्चंद्र मिश्रा,राधा ,लक्ष्मी नारायण, चंद्र शेखर,भगत सिंह आर्या आदि ने भी अपने सारगर्भ��त उद्बोधन में संस्कृत भाषा को जन सामान्य की भाषा बनाने के लिए विचार व्यक्त किए।
समारोह का समापन कल्याण मंत्र से किया गया।
स्वामी विवेकानंद जी के १६० वे जन्म दिवस पर ,हर घर तक संस्कृत भाषा को लेकर जाने का महाअभियान
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धनतेरस इस बार दो दिन पड़ रहा है -
धनतेरस इस बार ऐसा सयोग है की दो दिन मनाया जायेगा | 12 नवंबर को शाम से और 13 नवंबर तक मनाया जायेगा |पुराने लोग तो जानते होंगे की ये पर्व क्यों मनाया जाता है और इसकी महत्ता क्या है |लेकिन हो सकता है की नयी पीढ़ी को इसके बारे में ज्यादा मालूम न हो |धनतेरस को 'धन्य तेरस' या 'ध्यान तेरस' भी कहते हैं| भगवान महावीर इस दिन तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिये योग निरोध के लिये चले गये थे। तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुये दीपावली के दिन निर्वाण को प्राप्त हुये। तभी से यह दिन धन्य तेरस के नाम से जाना जाता है |
धनतेरस के दिन चाँदी और बर्तन खरीदने की परम्परा है -
धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है| जिसके सम्भव न हो पाने पर लोग चांदी के बने बर्तन खरीदते हैं। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में सन्तोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ है, सुखी है, और वही सबसे धनवान है। भगवान धन्वन्तरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं।
धनतेरस के बारे और भी कहावते है -
धन्वन्तरि देवताओं के चिकित्सक हैं|धन्वन्तरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरि चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर लोग धनिया के बीज खरीद कर भी घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं|धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है। इस प्रथा के पीछे एक लोककथा है।
कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।
धनतेरस के दिन दीप जलाकर भगवान धन्वन्तरि की पूजा करें। भगवान धन्वन्तरि से स्वास्थ और सेहतमंद बनाये रखने हेतु प्रार्थना करें। चांदी का कोई बर्तन या लक्ष्मी गणेश अंकित चांदी का सिक्का खरीदें। नया बर्तन खरीदें जिसमें दीपावली की रात भगवान श्री गणेश व देवी लक्ष्मी के लिए भोग चढ़ाएं। कहा जाता है कि समुद्र मन्थन के दौरान भगवान धन्वन्तरि और मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था, यही वजह है कि धनतेरस को भगवान धनवंतरी और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है । धनतेरस दिवाली के दो दिन पहले मनाया जाता है|
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Up चुनाव परिणाम 2022: उत्तराखंड में सीएम योगी आदित्यनाथ की जीत का जश्न - कर्मभूमि से जन्म तक जीत का वार्षिक उत्सव:
Up चुनाव परिणाम 2022: उत्तराखंड में सीएम योगी आदित्यनाथ की जीत का जश्न – कर्मभूमि से जन्म तक जीत का वार्षिक उत्सव:
योगी आदित्यनाथ के साथ ही ख़ुफ़िया ख़रीददारी को बधाई। योगी आदित्यनाथ की मां
भ्राप्पतिवर सुबह आउ जुझ मातंगणना राष्ट्रवाद भागने के साथ ही परिजनों और ग्रामीणों की नजर टीवी पर टीकी रानी। उदाहरण के लिए, यह ठीक वैसा ही है जैसा कि यू.पी.एस.
ये भी आगे…उत्तराखंड चुनाव के नतीजे 2022:
दिव्या ने परमेश्वर की माँ सावित्री, चूची शकुंतला देवी, शशिकला देवी, बुआ सरस्वती देवी, भाभी देवी, दीदी लक्ष्मी देवी, भाई…
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कथा श्रुति है कि एक बार जगद्गुरु आदि शंकराचार्य भिक्षा मांगने एक कुटिया के सामने रुके। वहां एक बूढ़ी औरत रहती थी, जो अत्यंत गरीबी और दयनीय स्थिति में थी। शंकराचार्य की आवाज सुनकर वह औरत बाहर आई। उसके हाथ में एक सूखा आंवला था। वह बोली महात्मन मेरे पास इस सूखे आंवले के सिवाय कुछ नहीं है जो आपको भिक्षा में दे सकूं। शंकराचार्य को उसकी स्थिति पर दया आ गई और उन्होंने उसी समय उसकी मदद करने का प्रण लिया। उन्होंने अपनी आंखें बंद की और मंत्र रूपी 22 श्लोक बोले। ये 22 श्लोक कनकधारा स्तोत्र के श्लोक थे। इससे प्रसन्न होकर मां लक्ष्मी ने उन्हें दिव्य दर्शन दिए और कहा कि शंकराचार्य, इस औरत ने अपने पूर्व जन्म में कोई भी वस्तु दान नहीं की। यह अत्यंत कंजूस थी और मजबूरीवश कभी किसी को कुछ देना ही पड़ जाए तो यह बुरे मन से दान करती थी। इसलिए इस जन्म में इसकी यह हालत हुई है। यह अपने कर्मों का फल भोग रही है इसलिए मैं इसकी कोई सहायता नहीं कर सकती। शंकराचार्य ने देवी लक्ष्मी की बात सुनकर कहा- हे म��ालक्ष्मी इसने पूर्व जन्म में अवश्य दान-धर्म नहीं किया है, लेकिन इस जन्म में इसने पूर्ण श्रद्धा से मुझे यह सूखा आंवला भेंट किया है। इसके घर में कुछ नहीं होते हुए भी इसने यह मुझे सौंप दिया। इस समय इसके पास यही सबसे बड़ी पूंजी है, क्या इतनी भेंट पर्याप्त नहीं है। शंकराचार्य की इस बात से देवी लक्ष्मी प्रसन्न हुई और उसी समय उन्होंने गरीब महिला की कुटिया में स्वर्ण के आंवलों की वर्षा कर दी। https://www.instagram.com/p/CWKb7fmPCiO/?utm_medium=tumblr
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माँ धूमावती दस महाविद्याओं में सातवीं महाविद्या हैं। बगलामुखी की अंगविद्या हैं इसीलिए माँ बगलामुखी से साधना की आज्ञा लेनी चाहिए और प्रार्थना करना चाहिए की माँ पूरी कराये . ज्ञान के आभाव में या कौतुहल से किताब , इन्टरनेट से पढ़कर प्रयोग करने से विपत्ति में भी फसते देखे गये हैं . बगलामुखी साधना करने के पश्चात ही धूमावती साधना विशेष करने की योग्यता मिलती है .इसीलिए विशेष परिस्थिति में गुरु से प्रक्रिया जानकार ही शुरू करना चाहिए . गुरु जानते हैं की शिष्य की योग्यता क्या है . धूमावती साधना सबके बस की नहीं . इनके काम करने का ढंग बिलकुल अलग है . बांकी महाविद्या श्री देती हैं और धूमावती श्री विहीनता अपने सूप में लेकर चली जाती है . जीवन से दुर्भाग्य , अज्ञान , दुःख , रोग , कलह , शत्रु विदा होते ही साधक ज्ञान, श्री और रहस्यदर्शी हो जाता है और साधना में उच्चतम शिखर पे पहुच जाता है . इन्हे अलक्ष्मी या ज्येष्ठालक्ष्मी यानि लक्ष्मी की बड़ी बहन भी कहा जाता है।ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष अष्टमी को माँ धूमावती जयंती के रूप में मनाया जाता है। मां धूमावती विधवा स्वरूप में पूजी जाती हैं तथा इनका वाहन कौवा है, ये श्वेत वस्त्र धारण कि हुए, खुले केश रुप में होती हैं। धूमावती महाविद्या ही ऐसी शक्ति हैं जो व्यक्ति की दीनहीन अवस्था का कारण हैं। विधवा के आचरण वाली यह महाशक्ति दुःख दारिद्रय की स्वामिनी होते हुए भी अपने भक्तों पर कृपा करती हैं। इनका ध्यान इस प्रकार बताया है ’- अत्यन्त लम्बी, मलिनवस्त्रा, रूक्षवर्णा, कान्तिहीन, चंचला, दुष्टा, बिखरे बालों वाली, विधवा, रूखी आखों वाली, शत्रु के लिये उद्वे��� कारिणी, लम्बे विरल दांतों वाली, बुभुक्षिता, पसीने से आर्द्र स्तन नीचे लटके हो, सूप युक्ता, हाथ फटकारती हुई, बडी नासिका, कुटिला , भयप्रदा,कृष्णवर्णा, कलहप्रिया, तथा बिना पहिये वाले जिसके रथ पर कौआ बैठा हो ऐसी देवी का मैं ध्यान करता हु . देवी का मुख्य अस्त्र है सूप जिसमे ये समस्त विश्व को समेट कर महाप्रलय कर देती हैं। दस महाविद्यायों में दारुण विद्या कह कर देवी को पूजा जाता है। शाप देने नष्ट करने व संहार करने की जितनी भी क्षमताएं है वो देवी के कारण ही है। क्रोधमय ऋषियों की मूल शक्ति धूमावती हैं जैसे दुर्वासा, अंगीरा, भृगु, परशुराम आदि। सृष्टि कलह के देवी होने के कारण इनको कलहप्रिय भी कहा जाता है , चातुर्मास ही देवी का प्रमुख समय होता है जब इनको प्रसन्न किया जाता है। देश के कई भागों में नर्क चतुर्दशी पर घर से कूड़ा करकट साफ कर उसे घर से बाहर कर अलक्ष्मी से प्रार्थना की जाती है की आप हमारे सारे दारिद्र्य लेकर विदा होइए। ज्योतिष शास्त्रानुसार मां धूमावती का संबंध केतु ग्रह तथा इनका नक्षत्र ज्येष्ठा है। इस कारण इन्हें ज्येष्ठा भी कहा जाता है। ज्योतिष शस्त्र अनुसार अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में केतु ग्रह श्रेष्ठ जगह पर कार्यरत हो अथवा केतु ग्रह से सहयता मिल रही ही तो व्यक्ति के जीवन में दुख दारिद्रय और दुर्भाग्य से छुटकारा मिलता है। केतु ग्रह की प्रबलता से व्यक्ति सभी प्रकार के कर्जों से मुक्ति पाता है और उसके जीवन में धन, सुख और ऐश्वर्य की वृद्धि होती है। देवी का प्राकट्य :- पहली कहानी तो यह है कि जब सती ने पिता के यज्ञ में स्वेच्छा से स्वयं को जला कर भस्म कर दिया तो उनके जलते हुए शरीर से जो धुआँ निकला, उससे धूमावती का जन्म हुआ. इसीलिए वे हमेशा उदास रहती हैं. यानी धूमावती धुएँ के रूप में सती का भौतिक स्वरूप है. सती का जो कुछ बचा रहा- उदास धुआँ। दूसरी कहानी यह है कि एक बार सती शिव के साथ हिमालय में विचरण कर रही थी. तभी उन्हें ज़ोरों की भूख लगी. उन्होने शिव से कहा-” मुझे भूख लगी है. मेरे लिए भोजन का प्रबंध करें.” शिव ने कहा-” अभी कोई प्रबंध नहीं हो सकता.” तब सती ने कहा-” ठीक है, मैं तुम्हें ही खा जाती हूँ। ” और वे शिव को ही निगल गयीं। शिव, जो इस जगत के सर्जक हैं, परिपालक हैं। फिर शिव ने उनसे अनुरोध किया कि’ मुझे बाहर निकालो’, तो उन्होंने उगल कर उन्हें बाहर निकाल दिया. निकालने के बाद शिव ने उन्हें शाप दिया कि ‘ अभी से तुम विधवा रूप में रहोगी.’ तभी से वे विधवा हैं-अभिशप्त और परित्यक्त.भूख लगना और पति को निगल जाना सांकेतिक है. यह इंसान की कामनाओं का प्रतीक है, जो कभी ख़त्म नही होती और इसलिए वह हमेशा असंतुष्ट रहता है. माँ धूमावती उन कामनाओं को खा जाने यानी नष्ट करने की ओर इशारा करती हैं। नोट :-कोई भी साधना इंटेरनेट पर से गुरु के सानिध्य मैं करें जय महाकाल
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आपकी तो ऐश है अगर आपका जन्म शुक्रवार को हुआ है !
आपकी तो ऐश है अगर आपका जन्म शुक्रवार को हुआ है !
Religion Desk | भगवान के द्वारा बनाया गया हर दिन खास होता है, ज्योतिषशास्त्र के अनुसार भी हर दिन का अपना एक अलग महत्व होता है । आज हम बात करेंगे शुक्रवार के दिन जन्मे लोगों के बारे में। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि शुक्रवार स्वामी शुक्र देव हैं और देवी मां लक्ष्मी हैं। इसलिए जिन लोगों का जन्म शुक्रवार के दिन होता है उन पर इन दोनों देवी देवताओं का प्रभाव रहता है। इस दिन जन्में लोगों को भौतिक सुख…
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किन राशियों के लिए ख़ास होगी ये नवरात्री और क्यों?
नवरात्रि का हर दिन माँ दुर्गा को समर्पित है, नवरात्रि के नौ दिनों तक दुर्गा माँ के अलग-अलग नौ रूपों की पूजा की जाती है, एवं kundali matching का अच्छा योग होता है आदि शक्ति की आराधना का पर्व एक वर्ष में चार बार आता है। धर्म ग्रंथों एवं पुराणों के अनुसार, चैत्र नवरात्र भगवती दुर्गाजी की आराधना का श्रेष्ठ समय होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार हिंदुओं के नव वर्ष की शुरुआत चैत्र नवरात्रि से होती है। माना जाता है कि चैत्र नवरात्रि में भगवान राम और माँ दुर्गा का जन्म हुआ था।
नवरात्रि में राशि पर प्रभाव :
पंडित राजीव शास्त्री जी के अनुसार kundli making के लिए हर भक्त सभी देवियों की पूजा अर्चना करता है, जिससे उसे देवी माँ की कृपा भी प्राप्त होती है। पर क्या आप जानते हैं कि देवी माँ की पूजा की स्थिति भी आपकी राशि को काफी प्रभावित करती है। जैसे हर कुंडली में एक खास राशि और उसका स्वामी होता है, ऐसे ही हर राशि की एक खास या यूं कहें मुख्य देवी होती हैं। जिनकी पूजा हमें सर्वाधिक फल प्रदान करती है।
चैत्र नवरात्रि में इन 3 राशियों की किस्मत का तारा चमकेगा और उनके लिए हर तरह से लाभ के योग बनेंगे-
· मकर राशि
चैत्र नवरात्रि आपके लिए अनुकूल अव��ि होगी| आपको पदोन्नति मिलने की संभावना है| एक उच्च संभावना है कि आपकी वित्तीय स्थिति में सुधार होगा |
· कुंभ राशि
kundli matching in hindi अनुसार आपके सीनियर्स आपके काम से प्रभावित होंगे| आने वाले दिनों में आप पर देवी दुर्गा की कृपा होगी| आपकी कुछ संपत्ति में निवेश करने की संभावना बन रही है और ये आपके लिए भविष्य में अच्छे परिणाम लाएगा|
· मीन राशि
चैत्र नवरात्रि आपके लिए एक अद्भुत अवधि होगी. आपको एक बहुत जरूरी ब्रेक मिलेगा| आप अपने दोस्तों के साथ कुछ आकर्षक स्थान की यात्रा कर सकते हैं| जिनकी पूजा हमें सर्वाधिक फल प्रदान करती है।
नवरात्रि के राशि अनुसार उपाय :
ज्योतिष आचार्य राजीव शास्त्री जी अनुसार यदि नवरात्रि में राशि अनुसार विशेष उपाय किए जाएं तो माता की कृपा से भक्त की हर मनोकामना पूरी हो सकती है। इनमें से एक है अपनी मुख्य देवी की पूजा। जानकारों के अनुसार हर राशि की एक मुख्य देवी होती हैं, जिनकी पूजा करने से इस राशि के जातक को जल्दी और खास लाभ मिलते हैं|
मेष- इस राशि के लोगों के लिए मां स्कंदमाता की अराधना काफी फलदायी मानी जाती है। नवरात्र के नौ दिन दुर्गा सप्तशती या दुर्गा चालीसा का पाठ करें|
वृषभ- आपको माँ दुर्गा के महागौरी स्वरूप की उपासना करनी चाहिए। नवरात्र में ललिता सहस्र नाम का पाठ करें।
मिथुन- इस राशि के लोगों को मां ब्रह्मचारिणी की उपासना करनी चाहिए। साथ ही तारा कवच का रोज पाठ करना चाहिए।
कर्क- कर्क राशि के लोगों को मां शैलपुत्री की पूजा करनी चाहिए और नवरात्र में लक्ष्मी सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए|
लेखक का परिचय
ज्योतिष आचार्य राजीव शास्त्री जी जाने-माने kundli maker ज्योतिषियों में से एक हैं। वह ज्योतिष केंद्र,एस्ट्रोलॉजी,ज्योतिष शास्त्र सहित अंक ज्योतिष और जातकों को दोषमुक्त करने में उनकी सहायता की है| ये ज्ञान ज्योतिष द्वारा करते है एवं लोगों की समस्याओं का समाधान करते है|
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हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के भोपाल में जेल पहाड़ी स्थित जेल परिसर में रहने वाली इकबाल फैमिली की। ठीक 14 साल पहले कार्तिक महीने में आने वाली धनतेरस के दिन उनके यहां जुड़वां बेटे जन्मे थे। दीपोत्सव की राेशनी से जगमगा रहे शहर में इस मुस्लिम परिवार के घर भी रौनक छा गईं। यही वह पल था, जब इकबाल फैमिली ने तय कर लिया कि अब से हर बार दिवाली वैसे ही मनाएंगे, जितनी शिद्दत से ईद मनाते हैं।
प्यार से घर में बेटों को हैप्पी और हनी बुलाते हैं। इस साल भी धनतेरस के पहले पूरा कुनबा दिवाली की तैयारियों में जुट गया था। सफाई कर ली गई है क्योंकि श्रीगणेश और लक्ष्मीजी ���ी पूजा भी तो करनी है। दोनों बेटों के साथ इकबाल की दो बेटियां मन्नत और साइना भी दिवाली के रंग में रंगी रहती हैं।
दीपोत्सव में अच्छी पहल:गाय के गोबर से बन रहे इको फ्रेंडली दीये, पर्यावरण के साथ परंपरा का भी ख्याल
हमारे यहां मजहब में कोई भेदभाव नहीं
जुड़वा बेटों की मां रेशू अहमद कहती हैं- हमारे यहां जुड़वां बेटों का जन्म धनतेरस के दिन हुआ था इसलिए भी यह दिन हमारे लिए खास है। हिंदुस्तान में वैसे ही सांप्रदायिक सौहार्द की परंपरा रही है, यही वजह है कि हम तारीख के बजाय तिथि से धनतेरस पर दोनों बेटों का जन्मदिन मनाते आ रहे हैं।
घर में कुरान के साथ गीता और भगवान की प्रतिमाएं भी
परिवार बताते हैं कि हमारे घर में कुरान के साथ गीता भी है। गणेश जी, लक्ष्मी जी, दुर्गा जी, शंकर जी और दुर्गा मां की फोटो और प्रतिमाएं हैं। दिवाली की रात घर में पूजन करने के बाद मुंहबोले भाई रामपाल उनका परिवार और हमारा परिवार मिलकर दिवाली मनाता है। आतिशबाजियां भी करते हैं।
इकबाल खुद बनाते हैं घर के बाहर रंगोली
रेशू कहती हैं- मेरे पति इकबाल दिवाली के लिए रंगोली खुद बनाते हैं। मेरी जिम्मेदारी गुजिया और अन्य मिठाइयों बनाने की होती है। हमारे यहां मजहब में कोई भेदभाव नहीं होता।
घर में ही बनाई पूजा करने की जगह
बहनें मन्नत और साइना ने बताया हमने घर में छोटी सी पूजा की जगह बनाई। जहां सारे देवी-देवताओं के चित्र और प्रतिमाएं हैं। हम जिस तरह नमाज अदा करते हैं, वैसे ही पूजा भी करते हैं। हमारे लिए दोनों मजहब एक जैसे ही हैं।
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भोपाल जेल पहाड़ी स्थित जेल परिसर में रहने वाले इकबाल अपने परिवार के साथ दीपावली पर पूजा करने के बाद जमकर आतिशबाजी भी करते हैं।
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धनतेरस इस बार दो दिन पड़ रहा है -
धनतेरस इस बार ऐसा सयोग है की दो दिन मनाया जायेगा | 12 नवंबर को शाम से और 13 नवंबर तक मनाया जायेगा |पुराने लोग तो जानते होंगे की ये पर्व क्यों मनाया जाता है और इसकी महत्ता क्या है |लेकिन हो सकता है की नयी पीढ़ी को इसके बारे में ज्यादा मालूम न हो |धनतेरस को 'धन्य तेरस' या 'ध्यान तेरस' भी कहते हैं| भगवान महावीर इस दिन तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिये योग निरोध के लिये चले गये थे। तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुये दीपावली के दिन निर्वाण को प्राप्त हुये। तभी से यह दिन धन्य तेरस के नाम से जाना जाता है |
धनतेरस के दिन चाँदी और बर्तन खरीदने की परम्परा है -
धनत��रस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है| जिसके सम्भव न हो पाने पर लोग चांदी के बने बर्तन खरीदते हैं। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में सन्तोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ है, सुखी है, और वही सबसे धनवान है। भगवान धन्वन्तरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं।
धनतेरस के बारे और भी कहावते है -
धन्वन्तरि देवताओं के चिकित्सक हैं|धन्वन्तरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरि चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर लोग धनिया के बीज खरीद कर भी घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं|धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है। इस प्रथा के पीछे एक लोककथा है।
कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।
धनतेरस के दिन दीप जलाकर भगवान धन्वन्तरि की पूजा करें। भगवान धन्वन्तरि से स्वास्थ और सेहतमंद बनाये रखने हेतु प्रार्थना करें। चांदी का कोई बर्तन या लक्ष्मी गणेश अंकित चांदी का सिक्का खरीदें। नया बर्तन खरीदें जिसमें दीपावली की रात भगवान श्री गणेश व देवी लक्ष्मी के लिए भोग चढ़ाएं। कहा जाता है कि समुद्र मन्थन के दौरान भगवान धन्वन्तरि और मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था, यही वजह है कि धनतेरस को भगवान धनवं��री और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है । धनतेरस दिवाली के दो दिन पहले मनाया जाता है|
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शरद पूर्णिमा कल , जानें पूजा विधि,मंत्र, व्रत कथा एवं खीर के लाभ
sharad poornama 2020 : शरद पूर्णिमा का दिन बेहद अहम होता है। शरद पूर्णिमा पर अमृतमयी चांद अपनी किरणों से स्वास्थ्य का वरदान देता है। यह सभी पूर्णिमा की रातों में से सबसे अहम रातों में से एक है। इसी से ही शरद ऋतु का आगमन होता है। हिंदू धर्म के आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा होती है। इसे कौमुदी उत्सव, कुमार उत्सव, शरदोत्सव, रास पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा एवं कमला पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। आइए शरद पूर्णिमा का मुहूर्त, खीर के लाभ, पूजन विधि, मंत्र और व्रत कथा।
शरद पूर्णिमा 2020 का मुहूर्त…………
पूर्णिमा तिथि आरंभ- 30 अक्टूबर 2020 शाम 17:45 से
पूर्णिमा तिथि समाप्त- 31 अक्टूबर 2020 रात 20:18 बजे तक
शरद पूर्णिमा खीर के लाभ……….
इस दिन खीर का विशेष महत्व होता है। खीर को चांद की रोशनी में रखा जाता है। माना जाता है कि चंद्रमा की रोशनी में रखी हुई खीर खाने से उसका प्रभाव सकारात्मक होता है। यह खीर रोगियों को दी जाती है। कहा जाता है कि इस खीर से शरीर में पित्त का प्रकोप और मलेरिया का खतरा कम हो जाता है। अगर यह खीर किसी ऐसे व्यक्ति को खिलाई जाए जिसकी आंखों की रोशनी कम हो गई है तो उसकी आंखों की रोशनी में काफी सुधार ���ता है। हृदय संबंधी बीमारी और अस्थमा रोगियों के लिए भी यह खीर काफी लाभदायक है। इससे चर्म रोग जैसी समस्याओं में भी सुधार आता है।
शरद पूर्णिमा या कोजागरी पूजा की विधि……..
इस दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए। साथ ही किसी पवित्र नदी में जाकर स्नान करें। हालांकि, कोरोना के चलते नदी पर स्नान करना इस समय संभव नहीं है। ऐसे में घर पर ही पानी में गंगाजल डालकर नहाना चाहिए।
फिर एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं। इस पर मां लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें।
मां लक्ष्मी को लाल फूल, नैवेद्य, इत्र जैसी चीजें चुढ़ाएं। फिर मां को वस्त्र, आभूषण, और अन्य श्रंगार पहनाएं।
मां लक्ष्मी का आह्वान करें। फिर फूल, धूप (अगरबत्ती), दीप (दीपक), नैवेद्य, सुपारी, दक्षिणा आदि मां को अर्पित करें।
इसके बाद लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करें और लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें। मां लक्ष्मी की आरती भी गाएं।
फिर पूजा धूप और दीप (दीपक) से मां की आरती करें। फिर मां को खीर चढ़ाएं।
इस दिन अपने सामार्थ्यनुसार किसी ब्राह्मण को दान करें।
खीर को गाय के दूध से ही बनाएं। मध्यरात्रि को मां लक्ष्मी को खीर का भोग लगाएं।
इसे प्रसाद के तौर पर भी वितरित करें। पूजा के दौरान कथा जरूर सुनें।
एक कलश में पानी रखें और एक गिलास में गेहूं भरकर रखें। फिर एक पत्ते का दोना लें। इसमें रोली और चावल रखें।
फिर कलश की पूजा करें और दक्षिणा अर्पित करें। मां लक्ष्मी के साथ भगवान शिव, देवी पार्वती और भगवान कार्तिकेय की भी पूजा करें।
शरद पूर्णिमा व्रत कथा…………
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार एक साहूकार था जिसकी दो बेटियां थीं। साहूकार की दोनों बेटियां पूर्णिमा का व्रत करती थीं। जहां एक तरफ बड़ी बेटी ने विधिवत् व्रत को पूरा किया। वहीं, छोटी बेटी ने व्रत को अधूरा छोड़ दिया। इसका प्रभाव यह हुआ कि छोटी लड़की के बच्चों का जन्म होते ही उनकी मृत्यु हो गई। फिर एक बार बड़ी बेटी ने अपनी बहन के बच्चे को स्पर्श किया वो स्पर्श इतना पुण्य था कि उससे बालक जीवित हो गया। बस उसी दिन से यह व्रत विधिपूर्वक किया जाने लगा।
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मदर्स डे: महान हैं ग्रंथों की ये 5 माताएं मदर्स डे के इस मौके पर हम आपको कुछ ऐसी माताओं के बारे में बता रहे हैं, जिन्होंने अपने पुत्रों को श्रेष्ठ शिक्षा प्रदान की। शिशु की प्रथम गुरु माता ही होती है। माता की महानता से प्रेरित अनेक प्रसंग हमारे ग्रंथों में मिलते हैं। मदर्स के मौके पर हम आपको धर्म ग्रंथों की कुछ ऐसी माताओं के बारे में बता रहे हैं, जिन्होंने अपने पुत्रों को श्रेष्ठ शिक्षा प्रदान की, जिससे कि वे समाज में एक आदर्श के रूप में पहचाने जाते हैं। कौशल्या देवमाता अदिति का अवतार थीं मां कौशल्या और भगवान श्रीराम की माता कौशल्या रामायण की एक प्रमुख पात्र हैं। ग्रंथों के अनुसार वे कौशल प्रदेश (छत्तीसगढ़) की राजकुमारी थीं। ग्रंथों में देवमाता अदिति के कौशल्या के रूप में अवतार लेने का वर्णन भी मिलता है। उन्होंने भगवान श्रीराम को उच्च कोटि की शिक्षा देकर मर्यादा पुरुषोत्तम बनाया। जो आज भी अपनी प्रभुता के कारण विख्यात है। माता सीता माता सीता मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की पत्नी व लव-कुश की माता थीं। ग्रंथों में इन्हें साक्षात देवी लक्ष्मी का अवतार माना गया है। मां सीता ने आश्रम में रहते हुए भी लव-कुश को श्रेष्ठ शिक्षा का बोध कराया और उन्हें वीर, पराक्रमी बनाया। यशोदा भगवान श्रीकृष्ण को जन्म भले ही देवकी ने दिया है, लेकिन उनकी माता के रूप में सबसे पहले यशोदा को ही याद किया जाता है। मां यशोदा ने ही बालपन में श्रीकृष्ण को नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाया। कुंती कुंती का मूल नाम पृथा था। ये महाराज शूरसेन की बेटी और वसुदेव की बहन थीं। कुंती का विवाह चंद्रवंशी राजा पांडु से हुआ था। कौरव पांडवों के साथ भेदभाव करते थे, इसके बाद भी कुंती ने सदैव अपने पुत्रों को सत्य की राह पर चलने के लिए प्रेरित किया। शकुंतला शकुंतला ब्रह्मर्षि विश्वामित्र व अप्सरा मेनका की पुत्री थीं। इनका विवाह चक्रवर्ती राजा दुष्यंत से हुआ था। शकुंतला के पुत्र का नाम भरत था। भरत के ही नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा। भरत के ही नाम पर भरतवंश की नींव पड़ी। इसी वंश में आगे जाकर शांतनु, पांडु, धृतराष्ट्र व युधिष्ठिर आदि राजा हुए। आप सभी को मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. https://www.instagram.com/p/B__hh6cJoEf/?igshid=59omnhqt39e1
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दिवाली के दिन इस शुभ मुहूर्त में करें पूजा, मां लक्ष्मी की बनी रहेगी कृपा-
अक्टूबर के महीने में इस बार दिवाली का त्यौहार 27 अक्टूबर 2019 के दिन मनाया जाने वाला है। हिंदू धर्म में दिवाली का त्यौहार बड़े ही धुमधाम से मनाया जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार यह दिन भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास से लौटने के उपलक्ष में मनाया जाता है।
साथ ही इस दिन घरों में मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की विशेष तौर पर पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है जो भी इस दिन मां लक्ष्मी और गणपति की सच्चे मन से पूजा करता है उसके घर पर आर्थिक समस्याएं नहीं होती हैं।
क्यों मनाया जाता है यह त्यौहार-
पौराणिक कथाओं के मुताबिक रावण द्वारा सीताहरण के बाद जब भगवान राम ने रावण का वध किया था तो वह माता सीता और भाई लक्ष्ण समेत 14 वर्ष के वनवास के बाद अपने घर यानि आयोध्या लौटे जहां पूरे राज्य में खुशियां ही खुशियां छाने लगी।
राम और सीता की खुशी में जलाएं गए दिये-
इसके बाद भगवान राम और माता सीता का भव्य स्वागत किया गया जहां लोगों ने अपने घरों में दीप जलाएं। और उसके बाद से ही दिवाली का त्यौहार हर साल मनाया जाने लगा। कुछ लोगों का ऐसा मानना है की दिवाली (Diwali) के दिन समुद्र मंथन से देवी लक्ष्मी का भी जन्म हुआ था जिसकी वजह से इस दिन को देवी लक्ष्मी के जन्म दिवस के रूप में भी मनाया जाने लगा।
क्या है लक्ष्मी पूजन शुभ मुहूर्त-
लक्ष्मी पूजन शुभ मुहूर्त - लक्ष्मी पूजन का समय शाम 06 बजकर 40 मिनट से शुरू होकर रात 08 बजकर 13 मिनट तक रहेगा।
प्रदोष काल मुहूर्त - प्रदोष काल की शुरूआत शाम 05 बजकर 36 मिनट से शुरू होकर रात 08 बजकर 13 मिनट तक रहेगा।
वृषभ काल मुहूर्त - वृषभ काल की शुरूआत शाम 06 बजकर 40 मिनट से शुरू होकर रात 08 बजकर 35 मिनट तक रहेगा।
अमावस्या तिथि - 27 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट से शुरू होकर 28 अक्टूबर को सुबह 09 बजकर 08 मिनट पर समाप्त हो जाएगा।
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