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#रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने के लिए रामबाण चूर्ण
gyanyognet-blog · 5 years
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बच्चों की देखभाल कैसे करें
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बच्चों की देखभाल कैसे करें
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आपके बच्चे एक बार ही बचपन से गुजरते हैं और इसमें आप पहली बार चूक जाते हैं, तो दूसरा मौका नहीं मिलता।
माता-पिता बच्चों को पर्याप्त समय दें, क्योंकि बचपन कभी लौटकर नहीं आता। जब हम बच्चे थे, तब हमारा हमारे स्वास्थ्य पर नियंत्रण नहीं था। बच्चों के लम्बे स्वास्थ्य की नींव माता-पिता के पालन-पोषण पर निर्भर करती है। यदि माता-पिता ठीक से लालन-पालन करते हैं, तो बड़ा होकर बच्चा एक स्वस्थ और हृष्ट-पुष्ट इंसान बनता है। यदि अभिभावकों ने पालन-पोषण में कुछ कमी अथवा गलतियाँ कीं तो इसका हर्जाना बच्चों को जीवनभर भुगतना पड़ता है इसलिए अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चे की स्वास्थ्य की मजबूत नींव रखें। ❉ गर्भावस्था में भरपूर पोषक आहार लें, किसी प्रकार की कोई डाइटिंग नहीं और न ही कोई हानिकारक खाद्य अथवा पेय का सेवन करें और व्यसन का तो प्रश्न ही नहीं उठता। ❉ नवजात शिशुओं की कुछ सामान्य समस्याएँ होती हैं, जिन्हें हम रोग समझ लेते हैं, जबकि ये समस्याएँ स्वत: कुछ दिनों में या महीनों में ठीक हो जाती हैं। इनमें प्रमुख हैं :सर पर नर्म फोन्टेनल या डायमण्ड का होना।मुड़ी हुए टाँगें होना।जन्म के दो या तीन दिन में पीलिया होना।नाभि का हर्निया।बर्थमार्क्स।नवजात के स्तनों में सूजन या दूध का आना।
❉ शिशु के जन्म लेते ही उसे माता या पिता अपनी छाती या सीने से लगा लें (हृदय के नज़दीक)। ऐसा करना शिशु को एक मानसिक संबल देता है तथा जो उससे दुनिया में सबसे पहले मिलता है उससे उसका जीवन भर एक अद्भुत रिश्ता बन जाता है।
❉ शिशु को छ: माह तक केवल माँ का दूध ही पिलाएँ, माँ के दूध का इस धरती पर कोई विकल्प नहीं है और प्रसव के बाद गहरा गाढ़ा दूध जिसे कॉलेस्ट्रम (Colostrum) कहते हैं, अवश्य पिलाएँ।
❉ स्तनपान के समय माता अनावश्यक दवाओं का सेवन न करे, तथा इस समय भी माता भरपूर पोषक आहार ले। यदि किसी कारणवश शिशु को ऊपर का दूध पिलाना ही पड़े, तो वह दूध देशी गाय तथा दूध पिलाने के लिए उपयोग किए जाने वाले बर्तन साफ तथा संक्रमण मुक्त हों।
❉ पशुओं के दूध में कई पोषक तत्वों की कमी होती है, विशेषत: विटामिन ‘सी’ की। विटामिन ‘सी’ की कमी के कारण पशुओं का दूध पीने वाले बच्चे एनीमिया और रोग-प्रतिरोधक क्षमता की कमी की समस्या से जूझते रहते हैं।
❉ यदि चार से छ: माह के बीच माँ महसूस करे कि शिशु दूध पीने के बाद भी भूखा रह रहा है, अर्थात् स्तनपान शिशु के लिए पर्याप्त नहीं है, तो फिर ऊपर का दूध या कोई तरल आहार (दाल का पानी ) देना आरंभ करें।
❉ छ: माह की आयु में शिशु को चावल, दाल का सूप, खिचड़ी आदि देना प्रारंभ करें।
❉ जब शिशु के दाँत निकलने लगें, तो उसे कुछ ठोस या अर्द्धठोस आहार देना प्रारंभ करें।
तेल मालिस नवजात ही नहीं हर उम्र हेतु खासकर बच्चे व बुजुर्गो के लिए स्वस्थ स्वास्थ्य हेतु रामबाण औषधि है लगभग 3 साल तक तीनो वक्त व पूरे शरीर की मालिस करें
❉ शिशु को चीनी की मीठी वस्तुओं का अधिक सेवन न कराएँ, इससे उसके दाँत, हड्डियाँ एवं मस्तिष्क पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा।
❉ मिठाई, चॉकलेट, आइसक्रीम, टॉफी, कोल्ड ड्रिंक एवं अन्य जंक फूड से बच्चों को दूर रखें।
❉ शिशु के खिलौने ऐसे न हों कि उनसे कोई चोट अथवा आघात लगने का डर हो। खिलौने हमेशा ऐसे हों जिन्हें धोया जा सके या साफ रखा जा सके।
❉ खिलौने हमेशा रचनात्मक (Creative) ज्ञान बढ़ाने वाले हों क्योंकि खिलौने बच्चे की मानसिकता को निर्धारित करते हैं। बच्चे हमेशा नकल करते हैं, इसलिए आप हमेशा उनके सामने एक आदर्श मिसाल पेश करें , बच्चे को उस दिशा में जाने का प्रशिक्षण दें जिधर उसे जाना चाहिए और यदा-कदा वहाँ खुद भी जाएँ।”
❉ अभिभावक घर में सकारात्मक माहौल बनाए रखें क्योंकि माहौल का बच्चों के स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
❉ बच्चों के साथ रिश्तों की मजबूत बुनियाद बनाएँ। “अगर हम बच्चों को कुछ सिखाते हैं, लेकिन हमारे बीच संबंध की बुनियाद नहीं होती तो बच्चे विद्रोह कर देंगे, दूसरी तरफ यदि हम संबंधों की बुनियाद मज़बूत बना लेते हैं तो वही बच्चे हमारे लिए जान दे देंगे।”
❉ बच्चों को बात-बात पर दवाएँ न खिलाएँ, इससे उसे दवाइयों के दुष्परिणाम तो होंगे ही, साथ ही उसकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी नष्ट होती जाएगी।
❉ बच्चों का नाश्ता स्कूल के समय के कारण अक्सर छूट जाता है, ऐसे में अभिभावकों का दायित्व है कि वह उनके नाश्ते का पूरा-पूरा ध्यान रखें और उन्हें भूखा न रखें।
❉ बच्चे को तेल की मालिश करें, हो सके तो रोजाना या सप्ताह में कम से कम एक बार अवश्य और विशेषत: रीढ़ के हिस्से की।
कई माँएं अपने बच्चों को मेरे पास लेकर आती हैं तथा बाजारों में मिलने वाले फूड सप्लीमेंट्स या एनर्जी ड्रिंक्स के बारे में पूछती हैं। मेरा उनसे सवाल होता है कि आप यह सप्लीमेंट्स या डिंक क्यों देना चाहती हैं? जिसके उत्तर में वह शिशु के शरीर एवं मस्तिष्क के उत्तम विकास की दुहाई देती हैं। वास्तव में यह छवि उन सप्लीमेंट्स के विज्ञापनों द्वारा बनाई जाती है। मेरा उत्तर होता है कि जिस व्यक्ति से आप अभी सलाह ले रही हैं यानि मैं और मुझे आप ज्ञानी भी समझ रही हैं और मेरे माता-पिता ने मुझे कभी भी इन सप्लीमेंट्स व ड्रिंक्स का सेवन नहीं कराया और मुझे विश्वास है कि सभी पहले और आज के वैज्ञानिक के माता-पिता ने भी उन्हें ऐसे किसी सप्लीमेंट्स का सेवन करवाकर वैज्ञानिक नहीं बनाया होगा। तो आपको भी चाहिए कि आप विज्ञापनों के छद्म आभाओं से स्वयं को व शिशु को दूर ही रखें क्योंकि विज्ञापन की रंगीन दुनिया में ऐसा दिखाया जाता है कि उनके उत्पाद का सेवन करके ही आपका शिशु परम् ज्ञानी और परम् शक्तिशाली बन पाएगा, लेकिन वास्तविकता में आज के बच्चे मानव इतिहास के सबसे कमजोर बच्चे हैं।
टीकाकरण :- भाई राजीव दीक्षित जी के ज्ञानानुसार टीकाकरण जरूरी नहीं है मुझे विश्वास है कि सभी पहले के माता-पिता ने भी किसी प्रकार का टिका न उन्हें लगा था न उनके बच्चो को न मुझे , छद्म आभाओं से स्वयं को व शिशु को दूर ही रखें क्योंकि आज विज्ञापन की रंगीन दुनिया में व स्वास्थ्य के व्यापार हेतु में ऐसा दिखाया जाता है कि उनके उत्पाद का सेवन करके ही आपका शिशु स्वस्थ शक्तिशाली बन पाएगा, लेकिन वास्तविकता में आज के बच्चे मानव इतिहास के सबसे कमजोर बच्चे हैं। हाँ पहले और आज के बच्चो में जो नहीं मिल पा रहा है वो है माँ का दूध नियमित 2 साल, उसके बाद पहले जैसे होने वाले धार्मिक पूजा का प्रसाद (पंचामृत) चावल के चूर्ण गुड़ दूध से बना प्रसाद ,आज प्रसाद के रूप में भी सबसे बड़े जहर चीनी , रिफाइंड व मैदे से बने ही मिल रहे हैं न ही मिल रहा है तुलसी पत्र से भोग लगाया गया भोजन व जल मात्र एक तुलसी पत्र पूरे भंडारे के भोजन को शुद्ध कर देता है
भाई राजीव दीक्षित जी के ज्ञानानुसार उनके सहयोगी निरंजन वर्मा जी द्वारा हजारो नवजात शिशु को जन्म लेते ही पंचगव्य उत्पाद से बने पंचामृत का सेवन करा उसके जीवन का निरीक्षण कर कहते हैं जिस बच्चे ने इस पंचगव्य का सेवन किया है उस पर भगौलिक परिस्थितियों में बदलाव होने पर भी उसके स्वास्थ्य पर कोई दुष्प्रभाव का असर नहीं पड़ा
अपने नवजात का वैदिक पारम्परिक विधि से स्वागत कैसे करें :-
★अष्टांगहृदयकार का कहना है कि बालक के जन्मते ही तुरन्त उसके शरीर पर चिपकी उल्व को कम मात्रा में सेंधा नमक एवं ज्यादा मात्रा में घी लेकर हलके हाथ से साफ करें।
★ जन्म के बाद तुरन्त नाभिनाल का छेदन कभी न करें। 4-5 मिनट में नाभिनाल में रक्तप्रवाह बंद हो जाने पर नाल काटें। नाभिनाल में स्पंदन होता हो उस समय उसे काटने पर बालक के प्राणों में क्षोभ होने से उसके चित्त पर भय के संस्कार गहरे हो जाते हैं। इससे उसका समस्त जीवन भय के साये में बीत सकता है।
★ बच्चे का जन्म होते ही, मूर्च्छावस्था दूर होने के बाद बालक जब ठीक से श्वास-प्रश्वास लेने लगे, तब थोड़ी देर बाद स्वतः ही नाल में रक्त का परिभ्रमण रुक जाता है। नाल अपने-आप सूखने लगती है। तब बालक की नाभि से आठ अंगुल ऊपर रेशम के धागे से बंधन बाँध दें। अब बंधन के ऊपर से नाल काट सकते हैं।
★ फिर घी, नारियल तेल, शतावरी सिद्ध तेल, बलादि सिद्ध तेल में से किसी एक के द्वारा बालक के शरीर पर धीरे-धीरे मसाज करें। इससे बालक की त्वचा की ऊष्मा सँभली रहेगी और स्नान कराने पर बालक को सर्दी नहीं लगेगी। शरीर की चिकनाई दूर करने के लिए तेल में चने का आटा डाल सकते हैं।
★तत्पश्चात् पीपल या बड़ की छाल डालकर ऋतु अनुसार बनाये हुए हलके या ज्यादा गर्म पानी से 2-3 मिनट स्नान करायें। यदि सम्भव हो तो सोने या चाँदी का टुकड़ा डालकर उबाले हुए हलके गुनगुने पानी से भी बच्चे को नहला सकते हैं। इससे बच्चे का रक्त पूरे शरीर में सहजता से घूमकर उसे शक्ति व बल देता है।
★ स्नान कराने के बाद बच्चे को पोंछकर मुलायम व पुराने (नया वस्त्र चुभता है) सूती कपड़े में लपेट के पूर्व दिशा की ओर उसका सिर रखकर मुलायम शय्या पर सुलायें। इसके बाद गाय का घी एवं शहद विषम प्रमाण में लेकर सोने की सलाई या सोने का पानी चढ़ायी हुई सलाई से नवजात शिशु की जीभ पर ‘ॐ’ व ‘ऐं’ बीजमंत्र लिखें।
★ तत्पश्चात् बालक का मुँह पूर्व दिशा की ओर करके घी व शहद के विषम प्रमाण के मिश्रण के साथ अनामिका उँगली (सबसे छोटी उँगली के पास वाली उँगली) से चटायें।
★बालक को जन्मते समय हुए कष्ट के निवारण हेतु हलके हाथ से सिर व शरीर पर तिल का तेल लगायें। फिर बच्चे को पिता की गोद में दें। पिता बच्चे के दायें कान में अत्यंत प्रेमपूर्वक बोलेः
‘ॐॐॐॐॐॐॐ अश्मा भव। तू चट्टान की तरह अडिग रहना !
ॐॐॐॐॐॐॐ परशुः भव। विघ्न बाधाओं को, प्रतिकूलताओं को ज्ञान के कुल्हाड़े से, विवेक के कुल्हाड़े से काटने वाला बन !
ॐॐॐॐॐॐॐ हिरण्यमयस्त्वं भव। तू सुवर्ण के समान चमकने वाला बन !
यशस्वी भव। तेजस्वी भव। सदाचारी भव। तथा संसार, समाज, कुल, घर व स्वयं के लिए भी शुभ फलदायी कार्य करने वाला बन !’
पँचगगव्य एक चम्मच सात दिनों तक सेवन कराये ( गौमुत्र,घी,दूध,गौमय रस,छाछ या दही,एक एक चम्मच मिलाकर धूप में रखे या गर्म कर एक चमच्च बच्चे को शेष माँ को दे दें 5 से 7 दिन) इसके सेवन से बच्चे पर भौगोलिक, प्राकृतिक बदलाव का असर नहीं होता है सम्पूर्ण जीवन पंचगव्य चिकित्सा शास्त्र के अनुसार
गौमय बस्ते लक्ष्मी,गौमुत्र धन्वन्तरि
महाऔषधि रामबाण अचूक है :-
पंचगव्य(पृथ्वी,जल,वायु,अग्नि व आकाश तत्व का मिश्रण)
आवश्यक सामग्री :-1.देशी गाय के गोबर (गोमय)जिसे कहते है (पृथ्वी) या शुद्ध मिट्टी तत्व है इसे जब गोमाता दे तो सीधे दाहिने हाथ पर ले और बाये हाथ पर पलटे अगर कुछ भी न चिपका रहे तो ये अत्तिउत्तम शुद्ध औषधी है।
2.गर्भवती देशी गाय को छोड़कर किसी भी गौ माँ का सुबह की गौमुत्र को ले जो वायु तत्व है।
3.देशी गाय का दूध जो शुद्ध जल है इस ब्रमांड का।
4. देशी गाय का घी (दूध से दही दही से मख्खन से बना घी) इस ब्रमांड की अग्नि तत्व है।
5. देशी गाय का दही छाछ (मिट्टी की हांडी का बना) इस ब्रह्मण्ड का आकाशीय तत्व समान है।
*बनाने की विधि:-सर्वप्रथम काँच या चीनी मिट्टी का बर्तन ले इसमे 1 चम्मच दूध , 1 चम्मच गोमय का रस , 1 चम्मच गोमूत्र , 1 चम्मच घी, व आखरी में 1 चम्मच दही को अच्छी तरह मिश्रित करें और 3 से 4 घंटे सूर्य के प्रकाश में रख दे। आखरी में स्वाद हेतु 1 चम्मच शुद्ध शहद मिला सकते है । इस प्रक्रिया से बनाया गया पंचगव्य अमृततुल्य औषधि तैयार हो गयी। जय गौ माता*
उपयोग विधि:- सुबह शाम 1 1 चम्मच
फायदे:- संसार मे जिस भी बीमारी का इलाज न पता चल रहा हो उसकी अचूक औषधि।
नोट:- क्या आपने गौर किया है हम सम्पूर्ण जीवन दूध दही घी का सेवन करते लेकिन कभी भी हमारे शरीर मे पोषकतत्व “कैलसियम, पोट���शियम, विटामिन……अन्य की अधिकता नहीं होती और कमी होती है तो पूरी हो जाती है । इस मत के साथ आप सब से अनुरोध विनती आग्रह है कि नी:संकोच सेवन करें व इस ज्ञान को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।
गौ माता का दिया हर औषधि आपके शरीर मे अधिकता को कम व कमी को पूर्ति करती है आर्थत संतुलित करती है।
# जब किसी गर्भवती माँ या बहन को समय पूरा होने वाला प्रसव में (बच्चे का उल्टा रहना)(व अन्य परिस्थिति) रहने पर ऑपेरशन करने की नौबत आ जाये तो एक बार इस औषधी का उपयोग 1 1 चम्मच 4 4 घंटे पर 3 बार दे दे 4थी बार देने की जरूरत नही पड़ती है।
साथ ही पिता निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण भी करेः
अंगादंगात्सम्भवसि हृदयादभिजायसे। आत्मा वै पुत्रनामासि सञ्जीव शरदां शतम्।।
शतायुः शतवर्षोऽसि दीर्घमायुरवाप्नुहि। नक्षत्राणि दिशो रात्रिहश्च त्वाऽभिरक्षतु।।
‘हे बालक ! तुम मेरे अंग-अंग से उत्पन्न हुए हो ��र मेरे हृदय से साधिकार उत्पन्न हुए हो, तुम मेरी ही आत्मा हो किंतु तुम पुत्र नाम से पैदा हुए हो। तुम सौ वर्षों तक जियो। तुम शतायु होओ, सौ वर्षों तक जीने वाले होओ, तुम दीर्घायु को प्राप्त करो। सभी नक्षत्र, दसों दिशाएँ दिन-रात तुम्हारी चारों ओर से रक्षा करें।’ (अष्टाँगहृदय, उत्तरस्थानम्- 1.3,4)
बालक के जन्म के समय ऐसी सावधानी रखने से बालक की कुल की, समाज की और देश की सेवा हो जायेगी
आयुर्वेद के श्रेष्ठ ग्रन्थ ‘अष्टाँगहृदय’ तथा ‘कश्यप संहिता’ में 16 संस्कारों के अंतर्गत बालकों के लिए लाभकारी सुवर्णप्राश का उल्लेख आता है। नवजात शिशु को जन्म से एक माह तक रोज नियमित रूप से सुवर्णप्राश देने से वह अतिशय बुद्धिमान बनता और सभी प्रकार के रोगों से उसकी रक्षा होती है। सुवर्णप्राश मेधा, बुद्धि, बल, जठराग्नि तथा आयुष्य बढ़ाने वाला, कल्याणकारक व पुण्यदायी है। यह ग्रहबाधा व ग्रहपीड़ा को भी दूर करता है।
6 मास तक सेवन करने से बालक श्रुतिधर होता है अर्थात् सुनी हुई हर बात को धारण कर लेता है। उसकी स्मरणशक्ति बढ़ती है तथा शरीर का समुचित विकास होता है। वह पुष्ट व चपल बनता है। विशेष लाभ के लिए 5 या 10 वर्ष तक भी दे सकते हैं।
शांत स्वच्छ, पवित्र कमरे में बालक को रखें। वहाँ पूर्व दिशा की ओर दीपक जलायें एवं बालक की रक्षा के लिए गूगल, अगरू, वचा, पीली सरसों, घी तथा नीम के पत्तों को मिलाकर धूप करें। इससे वातावरण शुद्ध होता है और शक्तिशाली प्राणवायु पैदा होती है।
नवजात शिशु को ज्यादा लाइट के प्रकाश में तथा पंखे एवं एयर कंडीशन वातावरण में नहीं रखना चाहिए।
बच्चे के जन्मने के बाद उसके मस्तिष्क में सृष्टि की संवेदनाओं को ग्रहण करने के लिए 24 घंटे के अंदर निश्चित प्रकार की प्रक्रियाएँ चालू हो जाती हैं। इन 24 घंटों में बालक सहजता से जो संस्कार ग्रहण करता है, वे पूरे जीवन में फिर कभी ग्रहण नहीं कर सकता। इसलिए ऐसे प्रारम्भिक काल की मस्तिष्क की क्रियाशीलता व संवेदनशीलता का पूरा लाभ लेकर उसे सुसंस्कारों से भर देना चाहिए।
बच्चे को सम्बोधित करते हुए कहना चाहिए कि ‘तू शुद्ध है, तू बुद्ध है, तू चैतन्य है, तू अजर-अमर-अविनाशी आत्मा है ! तू आनंदस्वरूप है, तू प्रेमस्वरूप है ! तेरा जन्म अपने स्वरूप को जानकर संसार के बंधनों से मुक्त होने के लिए ही हुआ है। इसलिए तू बहादुर बन, हिम्मतवान हो ! अपने में छुपी अपार शक्तियों को जाग्रत कर, तू सब कुछ करने में समर्थ है।’
इस प्रकार के आत्मज्ञान, नीतिबल व शौर्यबल के संस्कार इस समय बालक को दिये जायें और उसके इर्द-गिर्द ‘ॐॐ माधुर्य ॐ…. ॐॐ शुद्धोऽसि… ॐॐ चैतन्य… ॐॐ आनन्द….’ के मधुर उच्चारण या मानसिक जप के साथ मन-ही-मन रक्षा-कवच बनाया जाय तो वे संस्कार हमेशा के लिए उसके जीवन में दृढ़ हो जाते हैं।
बालक के जन्म के 30 या 31वें दिन से उसे सूर्य की कोमल किरणों का स्नान और रात को चन्द्र-दर्शन कराना चाहिए तथा चाँदनी में कुछ समय रखना चाहिए।
विदुषी मदालसा की तरह आत्मज्ञान की लोरियाँ गाकर सुसंस्कारों का सिंचन करें। लोरियों सुनने से बालक के ज्ञानतंतुओं को पुष्टि मिलती है।
उपर्युक्त कार्यो हेतु अपने बड़े बुजुर्ग (दादा दादी नाना नानी माता पिता ) का मार्गदर्शन जरूर लें।
हमारे यँहा एक कहावत है मूल से प्यारा सूद अर्थात बेटे बेटी से ज्यादा प्यारा पोता पोती नाती नतिनी।
अमर शहीद राष्ट्रगुरु, आयुर्वेदज्ञाता, होमियोपैथी ज्ञाता स्वर्गीय भाई राजीव दीक्षित जी के सपनो (स्वस्थ व समृद्ध भारत) को पूरा करने हेतु अपना समय दान दें
मेरी दिल की तम्मना है हर इंसान का स्वस्थ स्वास्थ्य के हेतु समृद्धि का नाश न हो इसलिये इन ज्ञान को अपनाकर अपना व औरो का स्वस्थ व समृद्धि बचाये। ज्यादा से ज्यादा शेयर करें और जो भाई बहन इन सामाजिक मीडिया से दूर हैं उन्हें आप व्यक्तिगत रूप से ज्ञान दें।
आपका अनुज गोविन्द शरण प्रसाद
वन्देमातरम
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sidhayurvedic-blog · 6 years
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सिद्ध आयुर्वेदिक कायाकल्प चूर्ण सभी रोग के लिए सदैव युवा रखने वाला, शरीर का पूरा कायाकल्प करने वाला सदाबहार चूर्ण ★★★ कायाकल्प चुर्ण वात पित्त कफ़ को संतुलित करता है। ★★★ किसी भी नशे को छुड़ाने में कारगर है काया क्ल्प चूर्ण।
थकान एक पल में दूर होगी। क्योंकि एलोवेरा हर नस को पूर्ण क्रिया में ले आता है। ★★★
आज बढ़ते हुए तनाव, मानसिक थकान, चिंता, शारीरिक रोग ये सब असमय ही इंसान को बूढा बना देती हैं। भरी जवानी में इंसान बूढा नज़र आने लगता हैं। अगर आप अपना योवन कायम चाहते हैं तो आपको यथासंभव तनाव, चिंता को त्यागना होगा। कहा भी जाता हैं के चिंता से बड़ा कोई शारीरिक शत्रु नहीं हैं। योग करे, ध्यान करे, दोस्तों से मिले, बच्चो और बुज़ुर्गो के साथ समय बिताये, किसी क्लब का सदस्य बनिए, हफ्ते में एक दिन गौशाला जाइए, किसी गरीब को खाना खिलाये। इस से आपकी तनाव और चिंता भाग जाएगी। इसके साथ हम आज आपको बताने जा रहे हैं आयुर्वेद के एक ऐसे सदाबहार चूर्ण के बारे में जिसको खा कर आप सदा अपने आप को जवान और तंदुरुस्त महसूस करेंगे। बस इसको अपने दैनिक जीवन में शामिल करे। ●●●
क्या है कायाकल्प चूर्ण (What is Kayakalpa churan)
कायाकल्प चुर्ण आयुर्वेद की एक पुरानी तकनीक है जिसका प्रयोग दक्षिण भारत के संतो द्वारा जीवन में शक्तियों को बढ़ाने के लिए किया जाता था।
कायाकल्प चुर्ण के तीन मुख्य लक्ष्य (Three main Objective of Kayakalpa churan) कायाकल्प चुर्ण के वैसे तो कई फायदे हैं
लेकिन इसके तीन मुख्य लक्ष्य हैं-
*नशों की कमजोरी को दूर करता है। • व्यक्ति की सुंदरता एंव स्वास्थ्य के साथ-साथ लंबे समय तक उन्हें जवानी को बरकरार बनाए रखना। • नेचुरल एजिंग प्रोसेस को धीमा करना • आयु बढ़ाना
●● क्या है काया कल्प चूर्ण में आए जाने -:::
*त्रिफला -250 ग्रा *इंद्राण से बनी हुई अजमायन-200 ग्राम *गिलोय चूर्ण-100 ग्राम बेल 200 ग्राम *अर्जुन छाल चूर्ण -100 ग्राम * ब्रह्मा बूटी चूर्ण- 100 ग्राम *शंखपुष्पी चूर्ण-100 ग्राम *कलौंजी -100 ग्राम *आवला चूर्ण-100 ग्राम *नसांदर -100 ग्राम *अपामर्ग -50 ग्राम * जटामांसी -50 ग्राम * सत्यनाशी -50 ग्राम * काला नमक -50 ग्राम *सेंधानमक -50 ग्राम *ऐलोवैरा रस -500 ग्राम
सभी चूर्ण को एलोवेरा रस में मिलाकर सांय मे सुखाय ।
जब सुख जाए तब आप का काया कल्प चूर्ण बनकर तैयार हो गया है ।
सेवन विधि - अगर आप बिमार है तो दिन एक -एक चम्मच 3 बार ले ।
अगर आप सदा स्वास्थ्य रहना चाहते है तो एक चम्मच सुबह खाली पेट ले ।
●● काया कल्प चूर्ण के Multipurpose Benifits है ●पथरी 5 mm तक की 3 दिन में गुर्दे से बाहर निकल जाती है। कैसे ले- 50 मिलीलीटर नीबू रस ले 300 ग्राम पानी मे मिलाकर 5 ग्राम दवा ले। दिन में 4 बार दवा ले। जब दवा लेगे दर्द तत्काल मिट जाएगा।
**** ● नसों की कमजोरी में रामबाण है काया कल्प योग। ●हर प्रकार की एलर्जी में फायदा। जैसे :- नाक में पानी, छीके, पुराना जुकाम, खाँसी, गले की एलर्जी। ● थकान कभी महसूस नही करेंगे। एक उत्साह होगा काया कल्प लेने से। ● त्वचा की सलवटे दूर होती हे, त्वचा के रंग में निखार आता हे ,चर्म रोग दूर होते हे ,त्वचा कांतिमय व् ओजमय बनती हे ● यूरिया बढा हो काया कल्प रामबाण की भांति काम करता है । ●ओवरी में सूजन ',पानी भरना' अंडा न बनना।,मासिक धर्म कम आना ठीक करेगी यह काया कल्प। ● शरीर मे गांठे हो तो काया कल्प रामबाण की भांति काम करता है । ● माइग्रेन में जबरदस्त लाभ होगा। ● बालो की वृद्धि तेजी से होती है, ● अनावश्यक चर्बी घटेगी. ● पुरानी कब्ज से मुक्ति मिलेगी ● खून साफ़ होगा ● रक्त नलिकाए साफ़ होगी. ● शरीर के समस्त दर्द 7 दिन ठीक होगे । ● युरिक एसिड जड़ से खत्म होगा। ● शरीर के कोने कोने में जमी गंदगी इसके नियमित सेवन से पेशाब के द्वारा बाहर निकल जायेगी नया शुद्ध खून बनेगा. ◆ औरतों की पीरियड की समस्या हो तो काया कल्प रामबाण जैसा काम करता है । ◆ शरीर सुडोल ,मजबूत व आकर्षक बनता हे बल -बुद्धि – वीर्य की वृद्धि करता है । ● नपुसंकता दूर होती है। ● माहलाओं में सेक्स की कमी को पूरा करेगा काया क्ल्प चूर्ण ● कब्ज दूर होती हे , जठराग्नि व् पाचन शक्ति बढती है। और बादी /खूनी बवासीर खत्म होगी । ● व्यक्ति का तेज बढ़ता हे , ● बुढ़ापा जल्दी नहीं आता दात मजबूत होते है। ● हड्डीया मजबूत होती है। ● रोग प्रतिरोधक क्षमता बढती है। ● ह्रदय की कार्यक्षमता बढती है। ◆ कोलेस्ट्रोल बढ़ता है तो समान्य हो जाएगा । ●आलोपथिक द्वइयो के साइड इफ़ेक्ट कम करता है। ● यह चूर्ण आयुष्य वर्धक है । ● आयु बढ़ेगी ● घठियावादी हमेशा के लिए दूर होती है। ◆ Diabetes काबू में रहती है। ● कफ से मुक्ति मिलती है। परहेज क्या करें – अंडा, मांस, मछली, नशीले पदार्थो का सेवन एवं तली हुई वस्तु औगर फास्ट फूड वर्जित हैं
. सिद्ध आयुर्वेदिक किसी भी शरीरक  स्मयसा के लिए  contact करे। Whats 94178 62263 [email protected] http://www.ayurvedasidh.blogspot.com/
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gyanyognet-blog · 5 years
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गिलोय के अनुप्रयोग
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गिलोय के अनुप्रयोग
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भिन्न रोगों और मौसम के अनुसार गिलोय के अनुप्रयोग
गिलोय एक रसायन है, यह रक्तशोधक, ओजवर्धक, ह्रुदयरोग नाशक ,शोधनाशक और लीवर टोनिक भी है। यह पीलिया और जीर्ण ज्वर का नाश करती है अग्नि को तीव्र करती है, वातरक्त और आमवात के लिये तो यह महा विनाशक है।
गिलोय के 6″ तने को लेकर कुचल ले उसमे 4 -5 पत्तियां तुलसी की मिला ले इसको एक गिलास पानी में मिला कर उबालकर इसका काढा बनाकर पीजिये। और इसके साथ ही तीन चम्मच एलोवेरा का गुदा पानी में मिला कर नियमित रूप से सेवन करते रहने से जिन्दगी भर कोई भी बीमारी नहीं आती। और इसमें पपीता के 3-4 पत्तो का रस मिला कर लेने दिन में तीन चार लेने से रोगी को प्लेटलेट की मात्रा में तेजी से इजाफा होता है प्लेटलेट बढ़ाने का इस से बढ़िया कोई इलाज नहीं है यह चिकन गुनियां डेंगू स्वायन फ्लू और बर्ड फ्लू में रामबाण होता है।
गैस, जोडों का दर्द ,शरीर का टूटना, असमय बुढापा वात असंतुलित होने का लक्षण हैं। गिलोय का एक चम्मच चूर्ण को घी के साथ लेने से वात संतुलित होता है ।
गिलोय का चूर्ण शहद के साथ खाने से कफ और सोंठ के साथ आमवात से सम्बंधित बीमारीयां (गठिया) रोग ठीक होता है।
गिलोय और अश्वगंधा को दूध में पकाकर नियमित खिलाने से बाँझपन से मुक्ति मिलती हैं।
गिलोय का रस और गेहूं के जवारे का रस लेकर थोड़ा सा पानी मिलाकर इस की एक कप की मात्रा खाली पेट सेवन करने से रक्त कैंसर में फायदा होगा।
गिलोय और गेहूं के ज्वारे का रस तुलसी और नीम के 5 – 7 पत्ते पीस कर सेवन करने से कैंसर में भी लाभ होता है।
क्षय (टी .बी .) रोग में गिलोय सत्व, इलायची तथा वंशलोचन को शहद के साथ लेने से लाभ होता है।
गिलोय और पुनर्नवा का काढ़ा बना कर सेवन करने से कुछ दिनों में मिर्गी रोग में फायदा दिखाई देगा।
एक चम्मच गिलोय का चूर्ण खाण्ड या गुड के साथ खाने से पित्त की बिमारियों में सुधार आता है और कब्ज दूर होती है।
गिलोय रस में खाण्ड डालकर पीने से पित्त का बुखार ठीक होता है। और गिलोय का रस शहद में मिलाकर सेवन करने से पित्त का बढ़ना रुकता है।
प्रतिदिन सुबह-शाम गिलोय का रस घी में मिलाकर या शहद गुड़ या मिश्री के साथ गिलोय का रस मिलकर सेवन करने से शरीर में खून की कमी दूर होती है।
गिलोय ज्वर पीडि़तों के लिए अमृत है, गिलोय का सेवन ज्वर के बाद टॉनिक का काम करता है, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। शरीर में खून की कमी (एनीमिया) को दूर करता है।
फटी त्वचा के लिए गिलोय का तेल दूध में मिलाकर गर्म करके ठंडा करें। इस तेल को फटी त्वचा पर लगाए वातरक्त दोष दूर होकर त्वचा कोमल और साफ होती है।
सुबह शाम गिलोय का दो तीन टेबल स्पून शर्बत पानी में मिलाकर पीने से पसीने से आ रही बदबू का आना बंद हो जाता है।
गिलोय के काढ़े को ब्राह्मी के साथ सेवन से दिल मजबूत होता है, उन्माद या पागलपन दूर हो जाता है, गिलोय याददाश्त को भी बढाती है।
गिलोय का रस को नीम के पत्ते एवं आंवला के साथ मिलाकर काढ़ा बना लें। प्रतिदिन 2 से 3 बार सेवन करे इससे हाथ पैरों और शरीर की जलन दूर हो जाती है।
मुंहासे, फोड़े-फुंसियां और झाइयो पर गिलोय के फलों को पीसकर लगाये मुंहासे, फोड़े-फुंसियां और झाइयां दूर हो जाती है।
गिलोय, धनिया, नीम की छाल, पद्याख और लाल चंदन इन सब को समान मात्रा में मिलाकर काढ़ा बना लें। इस को सुबह शाम सेवन करने से सब प्रकार का ज्वर ठीक होता है।
गिलोय, पीपल की जड़, नीम की छाल, सफेद चंदन, पीपल, बड़ी हरड़, लौंग, सौंफ, कुटकी और चिरायता को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण के एक चम्मच को रोगी को तथा आधा चम्मच छोटे बच्चे को पानी के साथ सेवन करने से ज्वर में लाभ मिलता है।
गिलोय, सोंठ, धनियां, चिरायता और मिश्री को सम अनुपात में मिलाकर पीसकर चूर्ण बना कर रोजाना दिन में तीन बार एक चम्मच भर लेने से बुखार में आराम मिलता है।
गिलोय, कटेरी, सोंठ और अरण्ड की जड़ को समान मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर पीने से वात के ज्वर (बुखार) में लाभ पहुंचाता है।
गिलोय के रस में शहद मिलाकर चाटने से पुराना बुखार ठीक हो जाता है। और गिलोय के काढ़े में शहद मिलाकर सुबह और शाम सेवन करें इससे बारम्बार होने वाला बुखार ठीक होता है।गिलोय के रस में पीपल का चूर्ण और शहद को मिलाकर लेने से जीर्ण-ज्वर तथा खांसी ठीक हो जाती है।
गिलोय, सोंठ, कटेरी, पोहकरमूल और चिरायता को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर सुबह और शाम सेवन करने से वात का ज्वर ठीक हो जाता है।
गिलोय और काली मिर्च का चूर्ण सम मात्रा में मिलाकर गुनगुने पानी से सेवन करने से हृदयशूल में लाभ मिलता है। गिलोय के रस का सेवन करने से दिल की कमजोरी दूर होती है और दिल के रोग ठीक होते हैं।
गिलोय और त्रिफला चूर्ण को सुबह और शाम शहद के साथ चाटने से मोटापा कम होता है और गिलोय, हरड़, बहेड़ा, और आंवला मिला कर काढ़ा बनाइये और इसमें शिलाजीत मिलाकर और पकाइए इस का नियमित सेवन से मोटापा रुक जाता है।
गिलोय और नागरमोथा, हरड को सम मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना कर चूर्ण शहद के साथ दिन में 2 – 3 बार सेवन करने से मोटापा घटने लगता है।
बराबर मात्रा में गिलोय, बड़ा गोखरू और आंवला लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इसका एक चम्मच चूर्ण प्रतिदिन मिश्री और घी के साथ सेवन करने से संभोग शक्ति मजबूत होती है।
अलसी और वशंलोचन समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें, और इसे गिलोय के रस तथा शहद के साथ हफ्ते – दस दिन तक सेवन करे इससे वीर्य गाढ़ा हो जाता है।
लगभग 10 ग्राम गिलोय के रस में शहद और सेंधानमक (एक-एक ग्राम) मिलाकर, इसे खूब उबाले फिर इसे ठण्डा करके आंखो में लगाएं इससे नेत्र विकार ठीक हो जाते हैं।
गिलोय का रस आंवले के रस के साथ लेने से नेत्र रोगों में आराम मिलता है।
गिलोय के रस में त्रिफला को मिलाकर काढ़ा बना लें। इसमें पीपल का चूर्ण और शहद मिलकर सुबह-शाम सेवन करने से आंखों के रोग दूर हो जाते हैं और आँखों की ज्योति बढ़ जाती हैं।
गिलोय के पत्तों को हल्दी के साथ पीसकर खुजली वाले स्थान पर लगाइए और सुबह-शाम गिलोय का रस शहद के साथ मिलाकर पीने से रक्त विकार दूर होकर खुजली से छुटकारा मिलता है।
गिलोय के साथ अरण्डी के तेल का उपयोग करने से पेट की गैस ठीक होती है।
श्वेत प्रदर के लिए गिलोय तथा शतावरी का काढ़ा बनाकर पीने से लाभ होता है।गिलोय के रस में शहद मिलाकर सुबह-शाम चाटने से प्रमेह के रोग में लाभ मिलता है।
गिलोय के रस में मिश्री मिलाकर दिन में दो बार पीने से गर्मी के कारण से आ रही उल्टी रूक जाती है। गिलोय के रस में शहद मिलाकर दिन में दो तीन बार सेवन करने से उल्टी बंद हो जाती है।
गिलोय के तने का काढ़ा बनाकर ठण्डा करके पीने से उल्टी बंद हो जाती है।
6 इंच गिलोय का तना लेकर कुट कर काढ़ा बनाकर इसमे काली मिर्च का चुर्ण डालकर गरम गरम पीने से साधारण जुकाम ठीक होगा।
पित्त ज्वर के लिए गिलोय, धनियां, नीम की छाल, चंदन, कुटकी क्वाथ का सेवन लाभकारी है, यह कफ के लिए भी फायदेमंद है।
नजला, जुकाम खांसी, बुखार के लिए गिलोय के पत्तों का रस शहद मे मिलाकर दो तीन बार सेवन करने से लाभ होगा।
1 लीटर उबलते हुये पानी मे एक कप गिलोय का रस और 2 चम्मच अनन्तमूल का चूर्ण मिलाकर ठंडा होने पर छान लें। इसका एक कप प्रतिदिन दिन में तीन बार सेवन करें इससे खून साफ होता हैं और कोढ़ ठीक होने लगता है।
गिलोय का काढ़ा बनाकर दिन में दो बार प्रसूता स्त्री को पिलाने से स्तनों में दूध की कमी होने की शिकायत दूर होती है और बच्चे को स्वस्थ दूध मिलता है।
एक टेबल स्पून गिलोय का काढ़ा प्रतिदिन पीने से घाव भी ठीक होते है।गिलोय के काढ़े में अरण्डी का तेल मिलाकर पीने से चरम रोगों में लाभ मिलता है खून साफ होता है और गठिया रोग भी ठीक हो जाता है।
गिलोय का चूर्ण, दूध के साथ दिन में 2-3 बार सेवन करने से गठिया ठीक हो जाता है।
गिलोय और सोंठ सामान मात्रा में लेकर इसका काढ़ा बनाकर पीने से पुराने गठिया रोगों में लाभ मिलता है।
गिलोय का रस तथा त्रिफला आधा कप पानी में मिलाकर सुबह-शाम भोजन के बाद पीने से घुटने के दर्द में लाभ होता है। गिलोय का रास शहद के साथ मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से पेट का दर्द ठीक होता है।
मट्ठे के साथ गिलोय का 1 चम्मच चूर्ण सुबह शाम लेने से बवासीर में लाभ होता है।गिलोय के रस को सफेद दाग पर दिन में 2-3 बार लगाइए एक-डेढ़ माह बाद असर दिखाई देने लगेगा ।
गिलोय का एक चम्मच चूर्ण या काली मिर्च अथवा त्रिफला का एक चम्मच चूर्ण शहद में मिलाकर चाटने से पीलिया रोग में लाभ होता है।
गिलोय की बेल गले में लपेटने से भी पीलिया में लाभ होता है। गिलोय के काढ़े में शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार पीने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है। गिलोय के पत्तों को पीसकर एक गिलास मट्ठा में मिलाकर सुबह सुबह पीने से पीलिया ठीक हो जाता है।
गिलोय को पानी में घिसकर और गुनगुना करके दोनों कानो में दिन में 2 बार डालने से कान का मैल निकल जाता है। और गिलोय के पत्तों के रस को गुनगुना करके इस रस को कान में डालने से कान का दर्द ठीक होता है।
गिलोय का रस पीने से या गिलोय का रस शहद में मिलाकर सेवन करने से प्रदर रोग खत्म हो जाता है। या गिलोय और शतावरी को साथ साथ कूट लें फिर एक गिलास पानी में डालकर इसे पकाएं जब काढ़ा आधा रह जाये इसे सुबह-शाम पीयें प्रदर रोग ठीक हो जाता है।
गिलोय के रस में रोगी बच्चे का कमीज रंगकर सुखा लें और यह कुर्त्ता सूखा रोग से पीड़ित बच्चे को पहनाकर रखें। इससे बच्चे का सूखिया रोग जल्द ठीक होगा।
मात्रा : गिलोय को चूर्ण के रूप में 5-6 ग्राम, सत् के रूप में 2 ग्राम तक क्वाथ के रूप में 50 से 100 मि. ली.की मात्रा लाभकारी व संतुलित होती है।
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