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#लता मंगेशकर किताबें
parichaytimes · 2 years
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जब आप गाते हैं तो आपको अपने बारे में सोचना चाहिए कि आप अपने गुरु से बेहतर गाएंगे: लता मंगेशकर को अपने पिता से मिली सलाह - टाइम्स ऑफ इंडिया
जब आप गाते हैं तो आपको अपने बारे में सोचना चाहिए कि आप अपने गुरु से बेहतर गाएंगे: लता मंगेशकर को अपने पिता से मिली सलाह – टाइम्स ऑफ इंडिया
92 वर्षीय प्रसिद्ध गायिका लता मंगेशकर का 6 फरवरी, 2022 को निधन हो गया और उनकी मृत्यु संगीत की दुनिया में एक युग के अंत का प्रतीक है। भारत की कोकिला, लता जी ने अपनी जादुई और कालातीत आवाज के माध्यम से दुनिया भर के श्रोताओं की पीढ़ियों को मंत्रमुग्ध कर दिया। लता जी ने अपना पहला गाना 1942 में 13 साल की उम्र में रिकॉर्ड किया था और बाकी, जैसा कि वे कहते हैं, इतिहास है। लगभग सात दशकों के करियर में,…
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shabdsansar-blog · 5 years
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लता मंगेशकर की छोटी बहन मीना मंगेशकर -खडीकर की आत्मकथा "दीदी और मैं" शीर्षक से अब हिंदी में भी आ गई है। इस पुस्तक में मीना ने लता जी के जीवन सफर और मंगेशकर परिवार की कहानी को केंद्र में रखकर अनेक नई जानकारियों से पाठकों को ज्ञात कराने का प्रयास किया है। मूल रूप से यह पुस्तक मराठी में लिखी गई है जिसका हिंदी अनुवाद लेखक-पत्रकार अम्बरीश मिश्र ने किया है। पुस्तक की प्रस्तावना अमिताभ बच्चन ने लिखी है। लता जी पर यूँ तो अनेक किताबें हिंदी, मराठी और अंग्रेजी में आ चुकी है लेकिन उनके परिवार के किसी सदस्य के द्वारा पहली बार उनके बारे में लिखा गया है।
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bhaskarhindinews · 4 years
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Interview: शायद ही कभी संगीत पर चर्चा करते हैं लता दीदी और मैं-आशा भोसले
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लता मंगेशकर और आशा भोसले के बीच संगीत को लेकर चर्चा नहीं होती है। आशा ने इस बात की जानकारी देते हुए कहा कि आमतौर पर दोनों बहनों में शायद ही कभी संगीत को लेकर चर्चा होती होगी। दोनों दिग्गज गायिकाओं पर किताबें लिखी गई हैं, इसलिए क्या आशा चीजों को अगले स्तर पर ले जाते हुए उनके बारे में किसी को कोई बायोपिक बनाने दे सकती हैं?
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abhayjiofficial · 5 years
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अन्ततः #कहानी काग़ज़ पर आ गयी✍️ इसका एक हिस्सा आज🌺 आहिस्ता से पन्ने पलटिये वहाँ से जिसका सिरा ज़िन्दगी में हमने और आपने कहीं न कहीं छोड़ा ज़रूर होगा। मुझे भरोसा है कुछ तो ऐसा मैंने लिखा होगा इसमें जो आपकी यादों का झरोखा बने��ा 🍃
🌸हमारी अपनी दास्ताँ🌸 #दीदार
🔸हर रोज़ की तरह ही वो बिस्तर पे अपनी ही मस्ती भरी यादों में सुहाने सफ़र का आनन्द ले रही रही है। कमरे की गुलाबी मनमोहक दीवारों पर नीले रंग की खिड़की के बाहर भोर की पहली किरण का उल्लास उसके नर्म गालों को स्पर्श करता हुआ सहलाकर वहीं मंत्रमुग्ध हो ठहर गया। परिंदो की मीठी चहक जो अभी अभी आसमान से गुज़री है वो भी उसके ख़्वाबों का सम्मोहन तोड़ ना सकी लेकिन अक्सर ख़्वाबों के अंज़ूमन में बस एक हल्की सी खनक भी निश्छल प्यार से भरी हो तो वो आपको उस आग़ोश से बाहर ले आती है ऐसा ही हुआ जब #अंजलि को माँ ने स्नेह भरी थपकी से जगाया।
🔹उठ जा अंजलि इस सपनो की दुनिया से बाहर आकर हक़ीक़त को देख। सूरज सर पर है। अभी कहाँ— माँ आज तो छुट्टी है। हाँ हाँ तेरा बस चले तो दुनिया में सूरज उगे ही नहीं और हर रोज छुट्टी ही हो। नर्म सी मखमली रज़ाई में उजाले से छिपते हुए अधखुली आँखो से अंजलि अपनी मोहिनी आवाज़ में कहती है मैं ये सब नहीं जानती हूँ माँ— पर इतना ज़रूर चाहती हूँ की कभी मेरी प्रिय Mom को अपने काम से छुट्टी ज़रूर मिले।
🔸घर में इतने सारे लोग है काम करने के लिए पता नहीं क्यू तुमको ही सारे काम करने है। गणपत भैया, नारु अंकल, पिंकी दीदी, लक्ष्मी चाची, बिन्दु आंटी, ये सब इतने अच्छे से काम करते तो है फिर भला तुम्हें सब काम करने की क्या ज़रूरत है। मेरी लाड़ों ये सब काम तो करते है लेकिन इस आलीशान महल जैसे घर के लिए। और तुमसे किस ने कहा की मैं काम करती हूँ, मैं तो बस ख़्याल रखती हूँ अपनी चाँद सी परी को हर पल मुस्कुराता हुआ देखने के लिए ताकि वो हमेशा अपनी माँ को याद कर सके। अरे माँ❗️आपसे बातों में जीतना किसी के बस की बात नहीं लेकिन मैं आपसे बहुत बहुत प्यार ❤️करती हूँ। I Love You❤️
🔹ओह नो आज मुझे फिर कॉलेज जाने में देर हो जाएगी। माँ तुम भी ना— मुझे हमेशा देर से पहुँचाती हो। ठहर जा ठहर जा अंजलि की बच्ची❗️❗️ तब तक वो स्नान के लिए पैरों के चप्पल को इधर उधर फैंक कर भाग जाती है। कितनी शरारती है ये लड़की। मैं सवेरे से दस बार आवाज़ दे चुकी हूँ की कॉलेज जाना है और अब मुझी को ही— भगवान ही मालिक है इसका। जल्दी से सैंड्विच बना देती हूँ नहीं तो महारानी जी नाश्ता किए बिना भाग जाएगी और फिर कहेगी कि सैंड्विच गरम नहीं है।
🔸वैसे कुछ भी कहो जब ये यूँ उछल कूद करती है ऐसा लगता है घर में ख़ुशियों की रौनक़ ही रौनक़ है बस भगवान करे की ये ऐसे ही खिलखिलाती रहे लेकिन माँ को कहाँ ख़बर थी की बाथरूम से निकलने के बाद अंजलि पर क्या क़यामत होने वाली है।
🔹शॉवर के नीचे स्नान करते हुए वहीं हर दिलअज़ीज़ गीत जो दुनिया की परम्परा से बेख़बर हर बेपरवाह लड़की के लबों पर हमेशा होता है -
मेरे ख़्वाबों में जो आए, आ के मुझे छेड़ जाय
उससे कहो कभी सामने तो आय” —
गुनगुनाते हुए उसने कई सारे बॉडी वाश में से अपने पसन्दीदा शिउली की महक को चुना, पल भर में जिसकी ख़ुशबू उसके बदन के साथ आबोहवा में समाहित हो गयी। बस शैम्पू और conditnting के बाद भीगे हुए बालों को पोंछतें हुए अपने कमरे में फुर्ती से भागी, हेअर ड्रायर की मदद से बालों को सुखाया, थोड़ा सा सिरम लगाया। बहुत आहिस्ता से घने काले बालों में कंगी को फेरते हुए गाने लगी
जाती हूँ मैं हूँ जल्दी है क्या, धड़के जिया वो क्यूँ भला
ख़ुद से ही डरने लगी हूँ, मैं प्यार करने लगी हूँ”—
फ़िल्म अभिनेत्री काजोल और भारतीय सिनेमा में बचपन से आसक्ति जो है।
🔸आज जाने क्यों उसने अपनी पसन्दीदा नीले रंग की साड़ी जिस पर गुलाब के फूलो की कढ़ाई की हुई है वो पहनी है जो कुछ दिन पहले ही माँ से जद्दोजहद के बाद पहनना सीखी है। आइने के सामने ख़ुद को निहारते हुए श्रुँघार की नानाविध वस्तुओं का उपयोग करते हुए सज सँवर कर वो कमरे से जल्दी में बाहर आयी और कुछ कहती उससे पहले ही हमेशा की तरह माँ की नज़र उससे हटती ही नही। एकटक वो उसकी ख़ूबसूरती देख रही है लेकिन तब तक वो अपना सैंडविच खाते हुए माँ को गाल पर चूमते हुए Bye कहकर कॉलेज की और जा चुकी है। माँ को मालूम है की वो जा रही है लेकिन हर रोज़ उसे यूँ ही अपनी परी को उन्ही मासूमियत अदाओं से देखने का एक चस्का लगा है।
🔹बस अब फिर से उसके कमरे की सार संभाल से लगाकर उसको मनभावन लगने वाली घर की उन सब चीज़ों को ठीक करते हुए रसोई तक पहुँची जहाँ गणपत भैया और लक्ष्मी चाची भोजन की तैयारी कर रहे है वो उन्हें सहयोग के लिए कहती हुई ख़ुद अंजलि की रुचि का खाना बनाने की तैयारी में जुट गयी। खाने के प्रति बहुत Moody है। मटर पनीर और कोफ्ते की सब्ज़ी बहुत पसन्द है उसे। वैसे ये सिलसिला कुछ महीनो से ही शुरू हुआ है जब से अंजलि की शादी तय हुई है अंकुश के साथ। उसके बचपन का दोस्त है।
🔸बड़े घरों में अपनी हैसियत और लड़की-लड़के भी एक ही घराने के हो, साथ ही दोनो एक दूसरे को पहले से पसंद भी करते हो तो ऐसे परिवारों में सोने पे सुहागा जैसा होता है लेकिन माफ़ कीजिएगा— उस दिव्य एहसास के रंग की तासीर के बारे में— मैं हमेशा पुरज़ोर मानता रहा हूँ की कोई भी प्यार बिना किसी अनहोनी के मुकम्मल हो ही नहीं सकता, अगर हुआ तो वो सामाजिक औपचारिकता का एक हिस्सा भर है। आप में से बहुत से पाठक ज़रूर इससे सहमत नहीं होंगे परन्तु ये वैसा ही है की जब तक पतझड़ में पत्तियों के गिरने का आभास नहीं होगा तब तक सीधे आपको वसन्त के उत्सव की अनुभूति नहीं होगी। मोहब्बत की रवायत भी ऐसी ही है कुछ ख़ास स्यापा तो होगा ही और फिर ज़िन्दगी भर स्मृतियों की अनमोल सौग़ात हाथो की लकीरों में खिलती रहेगी।
🔹अंजलि कॉलेज पहुँची पर आज जाने क्यूँ उसके मन में अजीब ख़्याल उमड़ रहे थे वो किसके बारे में है ये वो भी नहीं जानती। सोचते सोचते सीढ़ियाँ चढ़ते हुए वो staff room में गयी। सभी से हाय हेलो हुआ और अपनी क्लास की तरफ़ बढ़ गयी।
🔸First year के छात्रों को English पढ़ाती है। वैसे रोज़ से ज़्यादा आज वो बेहद उत्साहित लग रही है। क्यूँ न हो शादी होने जा रही है वो भी जिससे प्यार करती है उससे। कुछ दिनो बाद उसे अपने ख़्वाब से इस्तीफ़ा भी देना है। भई पराए घर जाएगी तो नौकरी छोड़नी ही होगी। जितना बड़ा सम्पन्न परिवार उतना उनका ग़ुरूर भी होता है। इतना ऐशो आराम है तो बहु नौकरी क्यूँ करे। ख़ैर घर से आते हुए अपनी class के सभी students के लिए जो Cadbury Chocolates लायी वो सबमे बहुत दिल से बाँटी। कक्षा में थोड़ी मायूसी भी थी। सबकी पसन्दीदा मेडम आज कॉलेज छोड़ कर जा रही है। ये पाँचवा batch था जिसे वो पढ़ा रही है। पिछले पाँच सालों से लगातार वो First year में अंग्रेज़ी पढ़ा रही है। कॉलेज की सर्वोत्तम अध्यापिका है।
🔹अंजलि के English पढ़ाने का अन्दाज़ बेहद अनूठा था। अक्सर वो chapter समझाते समय किसी classical फ़िल्म के ऐसे प्रासंगिक संवाद का ज़िक्र करती जो subject को दिलचस्प बनाता। जैसे एक बार serious study और career पर उन्होंने मोहब्बतें फ़िल्म के बारे में बताया। आपने मैंने हम सभी ने यक़ीनन देखी होगी। कठोरता अपनी जगह प्रेम अपनी जगह लेकिन ज़िन्दगी में ख़्वाहिशें किसी और पर थोपी न जाय। ऐसे ही वो आने वाले कल में होने वाली उनके जीवन की राह को मुश्किलों से आज़ाद कर देती। आप सभी को भविष्य के लिए तहेदिल से मुबारकबाद और आपका सफ़र यूँ ही मुस्कुराता रहेगा कहते हुए अंजलि ने आख़िरी अलविदा अपनी क्लास से ली। खड़े होकर सभी ने तालियों के साथ उनका शुक्रिया अदा किया।
🔸स्टाफ़ रूम में अपनी ज़रूरत की चीज़ें लाल, काली और नीली स्याही के साथ कुछ सजावटी पेन, पेन्सिल, अतिरिक्त lipbalm, hand wash, moisturiser cream, keychains, सामान्य दवाइयाँ- goodluck symbol में राधा कृष्ण की मूर्ति, लता मंगेशकर की आत्मकथा, उपन्यास और कविताओं की किताबें, कॉलेज से उपहार स्वरूप मिले सराहना पत्र जो सालों से उसने यहाँ संभाल कर रखे है भारी मन से उन्हें बक्से में जमा रही है। आय हाय अब तो मेडम राजरानी बनने जा रही है। आगे पीछे नौकर चाकर और जिज़ाजी तो बेक़रार हो रहे होंगे तुम्हारे बिना। कॉलेज में अंजलि की अंतरंग सखी प्रियंका उसे देख ताने मार रही थी जो हिन्दी की अध्यापिका है। सालों तक ये दोनो अपनी सभी बातें साझा किया करते और अब से अंजलि के साथ उनके क़िस्सों की भी विदाई हो रही है। ये अत्यन्त विचित्र एवं दुःखदायी है कि अपने समाज में लड़की की शादी होने पर उसका जीवन पूरी तर से करवट लेता है लेकिन लड़के की ज़िन्दगी में सारा कुछ विध्यमान रहता है उसे कोई रिश्ता, कोई बचपन, कोई सपना, कोई घर, कोई दोस्ती, कोई नौकरी छोड़नी नहीं पड़ती। मानो दुल्हन के मेहंदी रंगे हाथो में रिवाजों की काली स्याही से तबाही लिख दिया हो।
🔹अंजलि भावुक हो गयी। नम आँखो से दोनो ने एक दूसरे को गले लगाया। बस वसन्त के मौसम में खिले हुए पत्तों की तरह इनकी मित्रता का रंग दोनो के दिल में सदा के लिए महकता रहेगा। प्रियंका बोली थोड़े आँसू विदाई के लिए भी बचा के रख और हाँ नए घर की नयी रात कैसी रही बताना ज़रूर। तू नहीं सुधरेगी मुस्कुराते हुए अंजली बोली तभी आख़िरी कालांश की घण्टी बजी।
🔸इसके बाद अंजलि के जाने का कॉलेज में औपचारिक कार्यक्रम होना है लेकिन उसे अमूमन औपचारिकताएँ पसन्द नहीं है इसलिए उसके पढ़ाने की शैली भी लीक से भिन्न है। पहले ही उसने प्रियंका को बता दिया था की वो रुकेगी नहीं चुपचाप चली जाएगी। सबसे मिलना तो सवेरे हो ही गया था इसलिए घण्टी बजते ही बाहर निकलते हुए एक बार परिसर पर निगाह करके चलने लगी तभी पीछे से आवाज़ सुनाई दी मेडम।
👏शेष आगे——- जारी🙏🙏
✍️ #ChanchalAbhay 🌹
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doonitedin · 4 years
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समीक्षा: लता सुर-गाथा
समीक्षा: लता सुर-गाथा लेखक: यतीन्द्र मिश्र  मूल्य: रु. 615 (पेपर बैक)  वाणी प्रकाशन
लता मंगेशकर हमारे देश की ऐसी शख़्सियत हैं, जिनसे यहां का हर बाशिंदा जुड़ा हुआ है. उनके गाए अनगिनत गानों में एक-दो गाने ऐसे ज़रूर होते हैं, जिससे आपके अस्तित्व की पहचान बन जाती है. यूं तो पचास के बाद की पीढ़ी को लता जी के बारे में बहुत कुछ पता है, पर जब आप लता सुर-गाथा पढ़ते हैं, तो महसूस करते हैं कि कितना कुछ…
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manishajain001 · 4 years
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प्रसिद्ध गीतकार, लेखक, एड गुरु और कवि प्रसून जोशी बुधवार को 49 साल के हो गए। उनका जन्म 16 सितंबर 1971 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में हुआ था। उन्हें लेखन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए साल 2015 में पद्मश्री से नवाजा गया था। इस मौके पर उन्होंने दैनिक भास्कर से खास बातचीत करते हुए अपने जीवन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बातों को साझा किया।
प्रसून ने बताया, 'मेरे परिवार में सभी साहित्य को महत्व देते हैं। इसलिए बचपन से ही मेरा झुकाव साहित्य की ओर था। मुझे तो यह लगता है कि मेरे जीवन में स्पिरिचुअलिटी और प्रकृति का गहरा प्रभाव पड़ा है। प्रकृति आपको संघर्ष करना सिखाती है, आपको छल करना नहीं सिखाती। मैं एक माध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखता हूं।'
'पहाड़ों का जीवन बिल्कुल भी सरल नहीं होता। उत्तराखंड में लोग अक्सर आध्यात्मिकता की खोज में आते हैं। बस प्रकृति को देखकर अभिभूत होना और उससे बहुत कुछ सीखना, बचपन में मैंने यही किया और यही मेरी शब्दावली में भी झलकता है। आज भी कभी जब मैं मुंबई की आपाधापी से परेशान हो जाता हूं तो मैं सीधे उत्तराखंड की तरफ भागता हूं। पहाड़ों का रुख करता हूं। कोरोना काल में भी मैं ऋषिकेश ड्राइव करके गया था और गंगा के किनारे कुछ समय बिताया था।'
मां से ली साहित्य जगत की प्रेरणा
उन्होंने कहा, 'दरअसल मेरी मां और मेरी नानी ने मुझे मेरी जिंदगी में बहुत प्रोत्साहित किया है। मैं मेरी नानीजी के बहुत करीब रहा हूं। उन्होंने 19 साल की उम्र में पढ़ने-लिखने की शुरुआत की और स्कूल की प्रिंसिपल बनकर रिटायर हुईं। उन्होंने मुझे लोक संस्कृति के बारे में बहुत सिखाया।'
'साहित्य जगत की बात की जाए तो मेरी मां ने मुझे सुमित्रानंदन पंत की कविताएं सुनाकर बड़ा किया। जिसके चलते साहित्य की ओर मेरा झुकाव शुरू से ही रहा। मैं मानता हूं कि बचपन में जो आप 16 या 17 साल की उम्र तक करते हैं, वो कहीं ना कहीं आपकी नींव होती है और मेरी नींव में साहित्य रच बस गया था।'
जब खुद सरकंडे की लकड़ी तोड़कर पेन बनाया करते थे
'यूं तो मैं फोन पर भी अपनी रचनाएं लिख लेता हूं लेकिन असली फीलिंग पेन और पेपर के साथ ही आती है। मुझे याद है उस वक्त जब मैं उत्तराखंड में था तब हम सरकंडे की लकड़ी तोड़कर उसे छीलकर, उसे तिकोना आकार देकर पेन बनाया करते थे और जब उस पेन को स्याही में डुबोकर मैं लिखता था तब उस पेन से आ रही आवाज का अपना ही एक आनंद था।'
परिवार के साथ प्रसून जोशी।
मृत्यु पर लिखी थी पहली कविता
'यह वो समय था जब मैं 15 साल का था। मैं स्कूल में पढ़ा करता था और उस वक्त मैंने मृत्यु पर कविता लिखी थी, जिसे सुनकर मुझे बहुत प्रशंसा मिली लेकिन एक और चीज भी कही गई कि शायद मैं अपनी उम्र से बहुत जल्दी बड़ा हो गया हूं और गंभीर बातें करता हूं।
'जब शुरू-शुरू में लिखता था तो उसमें अध्यात्म का बहुत प्रभाव था। अपनी पहली कविता में मैंने मृत्यु की खूबसूरती का वर्णन किया था कि कैसे किसी खूबसूरत चीज को हम बिना पलक झपकाए देखते हैं और जब आप मृत्यु को देख लेते हैं तो आपकी पलक कभी नहीं झपकती तो क्या मृत्यु इतनी खूबसूरत है? मेरी पहली किताब 17 साल की उम्र में पब्लिश हो गई थी।'
पुस्तकों से एड एजेंसी तक का सफर
'उस वक्त मेरी एक या दो किताबें छप चुकी थीं लेकिन परिवार चलाने के लिए मुझे कहीं ना कहीं नौकरी तो करनी ही थी क्योंकि कविताओं से तो सबका पेट नहीं भर सकता। इसलिए अपने पैरों पर खड़ा होना बहुत जरूरी था। इसीलिए मैंने एमबीए किया। उसके बाद मैं दिल्ली में ही एक ऐड एजेंसी में काम करने लगा। मेरे काम को वहां बहुत सराहा गया।'
'मुझे इंटरनेशनल अवॉर्ड मिले यहां तक कि कांस फिल्म फेस्टिवल में भी इसी वजह से मुझे प्रशंसा मिली और धीरे-धीरे मेरी कविताएं देखकर लोग मेरे पास आने लगे। मैं उन लोगों की एल्बम के गाने लिखा करता था। उसी समय मैंने मोहित चौहान के बैंड 'सिल्क रूट' के लिए भी गाने लिखे। उसके बाद शुभा मुद्गल जी ने मुझसे संपर्क किया 'अब के सावन ऐसे बरसे' गाने के लिए, तो गैर फिल्मी काम अच्छा चल रहा था।'
फिल्मों के गाने सुनने की मनाही थी
'मुझे बचपन से ही घर में फिल्मी गाने सुनने की परमिशन नहीं थी। रेडियो पर भी अगर कोई फिल्मी गाना सुनता था तो पिताजी कहते थे यह क्या सुन रहे हो। मेरे पिताजी ने भी संगीत में मास्टर्स किया है। वे कहते थे कि कुमार गन्धर्व को सुनो।' 'मेरी लेखन और मेरी शब्दावली शायद इसीलिए इतनी अच्छी है क्योंकि फिल्मों के गानों से मेरा वास्ता नहीं पड़ा, इसीलिए शायद मेरे लेखन में शुद्धता झलकती हो। साथ ही फिल्म जगत के भी जो मेरे दोस्त हैं वे जानते हैं कि जब कभी भी मैं किसी कविता या किसी गीत के बोल सुनाता हूं तो मैं हमेशा गाकर ही सुनाता हूं��'
विवेकानंद की डॉक्यूमेंट्री देखकर दंग रह गया था
'मैं एक दफा हवाई जहाज में सफर कर रहा था और उस समय मैं स्वामी विवेकानंद पर बनी डॉक्यूमेंट्री देख रहा था। जिसमें एक अंश आया जहां वे उसी उत्तराखंड के कसार देवी मंदिर की बात कर रहे थे और उसके सामने वाली चट्टान पर बैठकर उन्हें जो अनुभूति हुई वो बयां कर रहे थे। मैं यह देखकर दंग रह गया क्योंकि मैं भी उसी चट्टान पर अक्सर चार-पांच घंटे बैठा करता था उस घाटी को निहारता था और उस समय जो अनुभूति मुझे हुई, उसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता।'
बेजान वस्तुओं में भी जान दिखती है मुझे
'मुझे लगता है कि दुनिया की सारी वस्तुओं में जान है चाहे वो निर्जीव हो या फिर जीवित। जैसे एक दीपक है, हम कहते हैं कि दीपक बुझ जाता है, जबकि मुझे लगता है कि दीपक सो गया शायद उसकी लौ थक गई और अब वो सो गया। उसी प्रकार जब संजय लीला भंसाली ने फिल्म 'ब्लैक' के लिए मुझे गाना लिखने को कहा, तो मेरे लिए वो एक टफ टास्क था। इसीलिए क्योंकि उस फिल्म में जो किरदार है ना वह सुन सकता है, ना वो बोल सकता है और ना वो देख सकता है इसीलिए मैंने गाना लिखा हां मैंने छू कर देखा है।'
बेटी के साथ प्रसून जोशी।
फिल्म 'लज्जा' से मिला पहला बड़ा ब्रेक
'उस वक्त मैं दिल्ली में था जब राजकुमार संतोषी जी ने मुझे फिल्म 'लज्जा' के लिए गाना लिखने को कहा। मेरे लिए बहुत बड़ी बात है क्योंकि मैं दो दिग्गजों के साथ काम कर रहा था। जहां उस फिल्म के गाने को आईडी अय्यर ने कंपोज किया था। वही उस गाने को गाने वाली थी भारत कोकिला लता मंगेशकर जी।'
अपर्णा के लिए भी लिखी है कई सारी कविताएं
अपनी पत्नी अपर्णा के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, 'अपर्णा से मेरी मुलाकात तब हुई जब हम दोनों ऐड एजेंसी के लिए काम करते थे। धीरे-धीरे हमें पता चला कि हमारे विचार काफी मिलते हैं और फिर हमने शादी कर ली। आज हमारी 15 साल की एक बेटी है और मैंने कुछ कविताएं अपर्णा के लिए भी लिखी हैं जो उनके पास सुरक्षित हैं।
सीबीएफसी में चेयरमैन की पदवी स्वीकारी
'ये वो समय था जब सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन में बहुत कुछ चल रहा था। उस समय मुझे उसका चेयरमैन बनने के लिए बुलाया गया तो मुझे लगा कि वहां मेरी आवश्यकता है और मैं उस पदवी पर संतुलन बना पाऊंगा। इसलिए मैंने 2017 में सीबीएफसी का चेयरमैन बनना स्वीकार किया।'
मेरी पत्नी ने दिया था सबसे बेहतरीन बर्थडे गिफ्ट
'मेरे जन्मदिन पर मुझे किशोरी अमोनकर जी का फोन आया। वे मेरी सबसे प्रिय क्लासिकल म्यूजिशियन रही हैं। मैं उनका बहुत बड़ा प्रशंसक रहा हूं। उन्होंने मुझसे कहा कि उन्होंने मेरी कुछ रचनाएं पढ़ी हैं। उनकी आवाज सुनते ही मैं बहुत भावुक हो गया। कुछ साल पहले मेरी वाइफ ने इस फोन कॉल को अरेंज किया था।'
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Prasoon Joshi says- I can see life even in inanimate objects, I was shocked to see the documentary on Swami Vivekananda
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