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#सूर्य ग्रहण भारत में रहते हैं
mwsnewshindi · 2 years
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चंद्र ग्रहण 2022: चंद्र ग्रहण के दौरान भारत में बंद नहीं होते ये मंदिर; पता है क्यों
चंद्र ग्रहण 2022: चंद्र ग्रहण के दौरान भारत में बंद नहीं होते ये मंदिर; पता है क्यों
छवि स्रोत: TWITTER/MP_INDEX प्रतिनिधि छवि चंद्र ग्रहण 2022: साल का आखिरी और दूसरा चंद्र ग्रहण आज कार्तिक पूर्णिमा के दिन पड़ रहा है। यह पूर्ण चंद्र ग्रहण होगा और इसे भारत के कुछ क्षेत्रों में देखा जा सकता है। धार्मिक दृष्टि से ग्रहण को अशुभ माना जाता है। ग्रहण के दौरान पूजा करना प्रतिबंधित है और अधिकांश मंदिर बंद रहते हैं। सूतक काल शुरू होते ही ग्रहण के ये नियम अमल में आ जाते हैं। सूतक काल सूर्य…
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everynewsnow · 4 years
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सूर्य ग्रहण 2020: आप जहां भी हैं, सूर्य ग्रहण को पकड़ें
सूर्य ग्रहण 2020: आप जहां भी हैं, सूर्य ग्रहण को पकड़ें
सूर्यग्रहण 2020: आज साल का आखिरी सूर्यग्रहण है; इसे लाइव देखें आज के सूर्य ग्रहण या सूर्य ग्रह के बारे में सभी अपडेट यह पिछले दो दिनों से आसमान पर नजर रखने वालों के लिए एक इलाज है। कुल सूर्य ग्रहण या सूर्य ग्रह आश्चर्यजनक Geminids उल्का बौछार की ऊँची एड़ी के जूते के करीब। आज का सूर्य ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा लेकिन आप इसे “दुनिया में कहीं भी हो” पर पकड़ सकते हैं। लोग इसे नासा के वर्चुअल…
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drjayashukla-blog · 2 years
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जंबूद्वीप याने अखंड भारत
एक समय पर जंबूद्वीप याने अखंड भारत था. इसे आर्यावृत भी कहते हैं.
जंबूद्वीप में 9 प्रदेश है:- उत्तर कुरु, हिरण्यमय, रम्यक, इलावृत, भद्राश्व, केतुमाल, हरि, किंपुरुष और, भारत.
उत्तर कुरु वर्ष
वाल्मीकि रामायण में इस प्रदेश का सुन्दर वर्णन है। कुछ विद्वानों के मत में उत्तरी ध्रुव के निकटवर्ती प्रदेश को ही प्राचीन साहित्य में विशेषत: रामायण और महाभारत में उत्तर कुरु कहा गया है. यह मत लोकमान्य तिलक ने अपने ओरियन नामक अंग्रेज़ी ग्रन्थ में प्रतिपादित किया था. वाल्मीकि ने जो वर्णन रामायण में उत्तर कुरु प्रदेश का किया है उसके अनुसार उत्तर कुरु में शैलोदा नदी बहती थी और वहाँ मूल्यवान् रत्न और मणि उत्पन्न होते थे.
सुग्रीव अपनी सेना को उत्तरदिशा में भेजते हुए कहता है कि 'वहाँ से आगे जाने पर उत्तम समुद्र मिलेगा जिसके बीच में सुवर्णमय सोमगिरि नामक पर्वत है. वह देश सूर्यहीन है किंतु सूर्य के न रहने पर भी उस पर्वत के प्रकाश से सूर्य के प्रकाश के समान ही वहाँ उजाला रहता है.' सोमगिरि की प्रभा से प्रकाशित इस सूर्यहीन उत्तरदिशा में स्थित प्रदेश के वर्णन में उत्तरी नार्वे तथा अन्य उत्तरध्रुवीय देशों में दृश्यमान मेरुप्रभा या अरोरा बोरियालिस नामक अद्भुत दृश्य का काव्यमय उल्लेख हो सकता है जो वर्ष में छ: मास के लगभग सूर्य के क्षितिज के नीचे रहने के समय दिखाई देता है. इसी सर्ग के 56वें श्लोक में सुग्रीव ने यह भी कहा कि उत्तर कुरु के आगे तुम लोग किसी प्रकार नहीं जा सकते और न अन्य प्राणियों की ही वहाँ गति है.'
महाभारत सभा पर्व में भी उत्तर कुरु को अगम्य देश माना है. अर्जुन उत्तर दिशा की विजय-यात्रा में उत्तर कुरु पहुँच कर उसे भी जीतने का प्रयास करने लगे. इस पर अर्जुन के पास आकर बहुत से विशालकाय द्वारपालों ने कहा कि 'पार्थ; तुम इस स्थान को नहीं जीत सकते. यहाँ कोई जीतने योग्य वस्तु दिखाई नहीं पड़ती. यह उत्तर कुरु देश है. यहाँ युद्ध नहीं होता, कुंतीकुमार, इसके भीतर प्रवेश करके भी तुम यहाँ कुछ नहीं देख सकते क्योंकि मानव शरीर से यहाँ की कोई वस्तु नहीं देखी जा सकती'
इलावृत वर्ष
पुराणों के अनुसार इलावृत चतुरस्र है. वर्तमान भूगोल के अनुसार पामीर प्रदेश का मान 150X150 मील है अतः चतुरस्र होने के कारण यह 'पामीर' ही इलावृत है. इलावृत से ही ऐरल सागर, ईरान आदि क्षेत्र प्रभावित हैं.
आज के किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान, तजाकिस्तान, मंगोलिया, तिब्बत, रशिया और चीन के कुछ हिस्से को मिलाकर इलावृत बनता है. मूलत: यह प्राचीन मंगोलिया और तिब्बत का क्षेत्र है. एक समय किर्गिस्तान और तजाकिस्तान रशिया के ही क्षेत्र हुआ करते थे. सोवियत संघ के विघटन के बाद ये क्षेत्र स्वतंत्र देश बन गए.
आज यह देश मंगोलिया में 'अतलाई' नाम से जाना जाता है. 'अतलाई' शब्द इलावृत का ही अपभ्रंश है. सम्रा�� ययाति के वंशज क्षत्रियों का संघ भारतवर्ष से जाकर उस इलावृत देश में बस गया था. उस इलावृत देश में बसने के कारण क्षत्रिय ऐलावत (अहलावत) कहलाने लगे.
इस देश का नाम महाभारतकाल में ‘इलावृत’ ही था. जैसा कि महाभारत में लिखा है कि श्रीकृष्णजी उत्तर की ओर कई देशों पर विजय प्राप्त करके ‘इलावृत’ देश में पहुंचे. इस स्थान को देवताओं का निवास-स्थान माना जाता है. भगवान श्रीकृष्ण ने देवताओं से ‘इलावृत’ को जीतकर वहां से भेंट ग्रहण की.
हिरन्यमय वर्ष
इस वर्ष की स्थिति श्वेत पर्वत के उत्तर में तथा श्रुंगवान पर्वत के दक्षिण में है. यहीं पर हिरण्यवति नदी प्रवाहित होती है. यहां के लोग भगवान कच्छ की उपासना करते थे
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रम्यक वर्ष
वायुपुराण नीलपर्वत के बाद रम्यकवर्ष का होना बतलाता है. यह प्रदेश यूराल पर्वत की तराई होने के कारण सुन्दर है तथा पहाड़ी प्रदेश यहाँ बहुत कम है. बहुत सम्भव है, इस रम्यक-भूमि के उत्तर यूराल की पर्वतश्रेणी में कोई श्वेतपर्वत भी रहा हो.
इस प्रदेश में मनु को भगवान के मत्स्यावतार के दर्शन हुए थे.
भद्राश्व वर्ष
यह प्रदेश इलावृत के पूर्व में है । बीचमें माल्यवान पर्वत है. यहां के निवासी हयग्रीव की उपासना करते थे.
केतुमाल वर्ष
इलावृत के पश्चिम में केतुमल वर्ष है. दोनो के बीच गन्धमादन पर्वत ( हिन्दुकुश की ख्वाजा महम्मद श्रेणी) है. उत्तर में नील पर्वत ( जरफ्शान-ट्रान्स- अलाई-तियानशान ) है तथा पश्चिम में पश्चिम सागर ( केस्पियन सी ) है.
हरि वर्ष
इस की स्थिति इलावृत के दक्षिण में है, यहां के निवासी भगवान नरसिंह की उपासना करते थे.
किंपुरुष वर्ष
इस प्रदेश की स्थिति उत्तर में हेमकुट (लड्डाख-कैलाश श्रेणी) तथा दक्षिण में हिमालय तक है. यहां के निवासी राम की उपासना करते थे.
भारत वर्ष
इसका वर्णन करने की जरूरत नही है, हम सब इस में तो रहते हैं.
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३६ लाख साल के मानवजात के इतिहास में ६० हजार साल पहले भारत वर्ष में सभ्यता का उदय होना और पूरे एसिया खंड में फैल कर में जंबूद्वीप का अस्तित्व में आना कल की ही बात हो जाती है. लेकिन वो मानव सभ्यता का आरंभ था.
ऐसे ही ६० हजार साल के मानव सभ्यता के इतिहास में १३००० साल पहले राम और कृष्ण का आना भी कल की ही बात हो जाती है.
लेकिन सुनहरे कल को भुलाने के लिए आज की औलाद "कल की न करो बात, बात करो आज की" के सुत्र से आज की सुबह को केवल ६ हजार साल तक ही पिछे ले जाते हैं. इस से पहले की कोइ बात सामने आती है तो वो मिथ हो जाता है.
इन ६ हजार साल के अंदर ही हवा में बातें करता उनका एकमेव इश्वर पैदा हो जाता है, हवा में से ही आदम और हौवा पैदा होते है और ६ हजार साल में ही धरती को आबादी से भर देते है. बीच में तो पूरी धरती पर प्रलय की भी योजना बनाई थी और एक नाव भर के आदम के वारिस नूहने नाव भर के मानव सहित कुछ जीव बचा लिए थे. उन के मतानुसार आज की आबादी का इतिहास ४-५ हजार साल से ज्यादा नही है, सब नाव में बैठे मानवों की संतान हैं.
कहने का मतलब यह है कि भारत के शत्रुपक्ष के इतिहासकारों ने मानव सभ्यता के इतिहास को बहुत छोटा कर दिया है, वैदिक काल को महज इसा के पहले १५०० बर्ष बताकर आज के नजदिक लाकर खडा कर दिया है. उनका इरादा शुध्ध काजल की तरह काला था. भारत के लोगों को उनके पुरखों का इतिहास भुलाना था और अपने खूद देशों के लोगों को पता नही लगने देना था कि उनके पूरखें कौन थे कैसे थे.
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जंबूद्वीप का बनाना आसान नही था. धर्म और अधर्म के युध्ध सतत चलते रहे हैं; - देवासुर संग्राम, भगवान शिवजी का त्रिशुल, भगवान विष्णु के विविध अवतार के संघर्ष, भगवान परशुराम के अनेक बार किए संघर्ष, राजाओं के छोडे अश्वमेघ के धोडे. भगवान कृष्ण का समय आते आते तो दक्षिण एसियाई देश, अरब, उत्तर आफ्रीका और युरोप भी जंबूद्वीप में शामिल हो गये थे.
डॉ जयशंकर शुक्ल
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siddhashram · 6 years
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Dr. Narayan Dutt Shrimali Life Story in Hindi
                                 डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली की जीवनी
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ॐ गुं गुरूभ्यो नमः
ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरूभ्यो नमः
गुरु भगवान की कृपा आप सभी पर सदा बनी रहे ।
जन्म : 21 अप्रैल 1935
नाम : डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली
सन्यासी नाम : श्री स्वामी निखिलेश्वरानंद जी महाराज
जन्म स्थान : खरन्टिया पिता : पंडित मुल्तान चन्द्र श्रीमाली शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी) राजस्थान विश्वविद्यालय 1963. पी.एच.डी. (हिन्दी) जोधपुर विश्वविद्यालय 1965
योग्यता क्षेत्र : आपने प्राच्य विद्याओं दर्शन, मनोविज्ञान, परामनोविज्ञान, आयुर्वेद, योग, ध्यान, सम्मोहन विज्ञानं एवं अन्य रहस्यमयी विद्याओं के क्षेत्र में विशेष रूचि रखते हुए उनके पुनर्स्थापन में विशेष कार्य किया हैं. आपने लगभग सौ से ज्यादा ग्रन्थ – मन्त्र – तंत्र, सम्मोहन, योग, आयुर्वेद, ज्योतिष एवं अन्य विधाओं पर लिखे हैं.
चर्चित कृतियाँ : प्रैक्टिकल हिप्नोटिज्म, मन्त्र रहस्य, तांत्रिक सिद्धियाँ, वृहद हस्तरेखा शास्त्र, श्मशान भैरवी (उपन्यास), हिमालय के योगियों की गुप्त सिद्धियाँ, गोपनीय दुर्लभ मंत्रों के रहस्य, तंत्र साधनायें.
अन्य : कुण्डलिनी नाद ब्रह्म, फिर दूर कहीं पायल खनकी, ध्यान, धरना और समाधी, क्रिया योग, हिमालय का सिद्धयोगी, गुरु रहस्य, सूर्य सिद्धांत, स्वर्ण तन्त्रं आदि.
सम्मान एवं पारितोषिक : भारतीय प्राच्य विद्याओं मन्त्र, तंत्र, यंत्र, योग और आयुर्वेद के क्षेत्र में अनेक उपाधि एवं अलंकारों से आपका सम्मान हुआ हैं. पराविज्ञान परिषद् वाराणसी में सन् 1987 में आपको “तंत्र – शिरोमणि” उपाधि से विभूषित किया हैं. मन्त्र – संसथान उज्जैन में 1988 में आपको मन्त्र – शिरोमणि उपाधि से अलंकृत किया हैं. भूतपूर्व उपराष्ट्रपति डॉ. बी.डी. जत्ती ने सन् 1982 में आपको महा महोपाध्याय की उपाधि से सम्मानित किया हैं.
उपराष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा ने 1989 में समाज शिरोमणि की उपाधि प्रदान कर उपराष्ट्रपति भवन में डॉ. श्रीमाली का सम्मान कर गौरवान्वित किया हैं. नेपाल के भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री भट्टराई ने 1991 में उनके सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में विशेष योगदान के लिए नेपाल में आपको सम्मानित किया हैं.
अध्यक्षता : भारत की राजधानी दिल्ली में आयोजित होने वाली विश्व ज्योतिष सम्मलेन 1971 में आपने कई देशों के प्रतिनिधियों के बीच अध्यक्ष पद सुशोभित किया. सन् 1981 से अब तक अधिकांश अखिल भारतीय ज्योतिष सम्मेलनों के अध्यक्ष रहे.
संस्थापक एवं संरक्षक : अखिल भारतीय सिद्धाश्रम साधक परिवार. संस्थापक एवं संरक्षक – डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली फौंडेशन चेरिटेबल ट्रस्ट सोसायटी.
विशेष योगदान : सम्मलेन, सेमिनार एवं अभिभाषणों के सन्दर्भ में आप विश्व के लगभग सभी देशों की यात्रा कर चुके हैं. आपने तीर्थ स्थानों एवं भारत के विशिष्ट पूजा स्थलों पर आध्यात्मिक एवं धार्मिक द्रष्टिकोण से विशेष कार्य संपन्न किये हैं. उनके एतिहासिक एवं धार्मिक महत्वपूर्ण द्रष्टिकोण को प्रामाणिकता के साथ पुनर्स्थापित किया हैं. सभी 108 उपनिषदों पर आपने कार्य किया हैं, उनके गहन दर्शन एवं ज्ञान को सरल भाषा में प्रस्तुत कर जन सामान्य के लिए विशेष योगदान दिया हैं. अब 23 उपनिषदों का प्रकाशन हो रहा हैं. मन्त्र के क्षेत्र में आप एक स्तम्भ के रूप में जाने जाते हैं, तंत्र जैसी लुप्त हुयी गोपनीय विद्याओं को डॉ. श्रीमाली जी ने सर्वग्राह्य बनाया हैं. आपने अपने जीवन में कई तांत्रिक, मान्त्रिक सम्मेलनों की अध्यक्षता की हैं. भारत की प्रतिष्ठित पत्र -पत्रिकाओं में 40 से भी अधिक शोध लेख मंत्रों के प्रभाव एवं प्रामाणिकता पर प्रकाशित कर चुके हैं.
आप पुरे विश्व में अभी तक कई स्थानों पर यज्ञ करा चुके हैं, जो विश्व बंधुत्व एवं विश्व शांति की दिशा में अद्वितीय कार्य हैं. योग, मन्त्र, तंत्र, यंत्र, आयुर्वेद विद्याओं के नाम से अभी तक सैकडो साधना शिविर आपके दिशा निर्देश में संपन्न हो चुके हैं.
सिद्धाश्रम :
डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली फौंडेशन इंटरनॅशनल चेरिटेबल ट्रस्ट सोसायटी द्वारा निर्मित एक भव्य, जिवंत, जाग्रत, शिक्षा, संस्कृति व अध्यात्म का विशालतम केंद्र सिद्धाश्रम. न केवल भारतवर्ष अपितु विदेशों में उपरोक्त विद्याओं का विस्तार, साधना शिविरों की देशव्यापी श्र्रंखला. प्राकृतिक चिकित्सा व आयुर्वेद अनुसन्धान व उत्थान केंद्र. मानवतावादी अध्यात्मिक चेतना का विस्तार.
मेरे गुरुदेव क्यों छिपाएं रखते हैं अपने आपको?
मुझे यह फक्र हैं की मेरे गुरु पूज्य श्रीमालीजी (डॉ. नायारण दत्त श्रीमालीजी) हैं, मुझे उनके चरण���ं में बैठने का मौका मिला हैं, और यथा संभव उन्हें निकट से देखने का प्रयास किया हैं.
उस दिन वे अपने अंडर ग्राउंड में स्थित साधना स्थल पर बैठे हुए थे, अचानक निचे चला गया और मैंने देखा उनका विरत व्यक्तित्व, साधनामय तेजस्वी शरीर और शरीर से झरता हुआ प्रकाश…. ललाट से निकलता हुआ ज्योति पुंज और साधना की तेजस्विता से ओतप्रोत उस समय का वह साधना कक्ष…. जब की उस साधनात्मक विद्युत् प्रवाह से पूरा कक्ष चार्ज था, ऊष्णता से दाहक रहा था और मात्र एक मिनट खडा रहने पर मेरा शरीर फूंक सा रहा था, कैसे बैठे रहते हैं, गुरुदेव घंटों इस कक्ष में?
बाहर जन सामान्य में गुरुदेव कितने सरल और सामान्य दिखाई देते हैं, कब पहिचानेंगे हम सब लोग उन्हें? उस अथाह समुद्र में से हम क्या ले पाएं हैं अब तक…… क्यों छिपाएं रखते हैं, वे अपने आपको?
-सेवानंद ज्ञानी १९८४ जन. – फर.
परमारथ के कारणे साधू धरियो शरीर.
बात उस समय की हैं, जब पूज्यपाद सदगुरुदेव अपने संन्यास जीवन से संकल्पबद्ध होकर वापस अपने गृहस्थ संसार में लौटे थे. जब वे सन्यास जीवन के लिए ईश्वरीय प्रेरणा से घर से निकले थे, तो उनके पास तन ढकने के लिए एक धोती, एक कुरता और एक गमछा था. साथ में एक छोटे से झोले में एक धोती और कुरता अतिरिक्त रूप से था. इसके अलावा उनके पास और कुछ भी नहीं था. न ही कोई दिशा स्पष्ट थी और न ही कोई मंजिल स्पष्ट थी, केवल उनके हौसले बुलंद थे और ईश्वर में आस्था थी. यही उनकी कुल पूंजी थी, जिसके सहारे संघर्स्मय एवं इतने लम्बे जीवन की यात्रा पूरी करनी थी.
जब वे कुछ समय सन्यास जीवन में बिताकर वापस अपने गाँव लौटे, तो गाँव वाले, परिवार के लोग एवं क्षेत्र के सभी गणमान्य व्यक्ति उपस्थित हुए. सभी ने उनका सहर्ष स्वागत सत्कार किया, लेकिन सभी के मनोमस्तिष्क में यही गूंज रहा था कि इन्हें क्या मिला? हमें भी कुछ दिखाएं.
जब यह प्रश्न सदगुरुदेव जी तक पहुंचा, तो वे बड़े ही प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा कि हमारी भी यही इच्छा हैं कि जो कुछ भी हमारे पास हैं वह मैं सभी को दिखाऊं.
गुरुदेव जी सभी के मध्य में खड़े हुए और अपना एक हाथ फैलाया और बताया कि जब मैं यहाँ से गया था तो मेरे पास यह था और हाथ की बंधी मुट्ठी को खोला तो उसमें कुछ कंकण निकले. उन्होंने बताया कि यही मेरे पास थे, जिन्हें मैं लेकर अपने साथ गया था और जो कुछ मैं लेकर लौटा हूँ, वह मेरी हाथ की दूसरी मुट्ठी में हैं. सभी लोग दूसरी मुट्ठी को देखने के लिए आतुर हो उठे. लेकिन गुरुदेव जी ने जब दूसरी मुट्ठी खोली तो सभी हैरत में पड गए. क्योंकि वह मुट्ठी बिलकुल ही खाली थी. सभी को आशा था कि इसमें कुछ अजूबा होगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
गुरुदेव जी ने बताया कि जो कुछ मेरे पास था वह भी मैं गँवा कर आ रहा हूँ. मैं बिलकुल ही खाली होकर आ रहा हूँ. बिलकुल खाली हूँ, इसलिए अब जीवन में कुछ कर सकता हूँ. मैं अपने सन्यास जीवन में कोई जादू टोने टोटके सीखने नहीं गया था, हाथ सफाई की ये क्रियाएं यहाँ रहकर भी सीख सकता था, लेकिन मैं अपने जीवन में पूर्ण अष्टांग योग, सहित यम, नियम, आहार, प्रत्याहार, ……धारणा, ध्यान, समाधि, के पूर्णत्व स्तर पर पहुँचाने के लिए ही यह सन्यास मार्ग चुना. अब मुझे इन कंकनो पत्थरों के भार को ढोना नहीं पड़ेगा, अगर ढोना नहीं पड़ेगा तो मैं स्वतंत्र होकर बहुत कुछ कर सकता हूँ. क्योंकि ज्ञान को धोने की जरुरत नहीं पड़ेगी, वह स्वयं ही उत्पन्न होता रहता हैं. स्वतः ही उसमें सुगंध आने लगती हैं.
उसमें आनंद के अमृत की वर्ष होने लगती हैं  और वह तब तक नहीं प्राप्त हो सकता, जब तक हम इन कंकनों एवं पत्थरों को ढोते रहेंगे. अपने इस हाड-मांस को ढोने से कुछ नहीं होने वाला हैं, जब तक इसमें चेतना नहीं होगी. चेतना को पाने के लिए एकदम से खाली होना पड़ता हैं, सब कुछ गंवाना पड़ता हैं, सब कुछ दांव पर लगाना पड़ता हैं. तब जाकर चेतना प्रस्फुटित होती हैं और तब उस प्रस्फुटित चेतना को दिखाने की आवश्यकता नहीं पड़ती हैं, बल्कि दुनिया उसे स्वयं देखती हैं, बार-बार देखती हैं, घुर-घूरकर देखती हैं. क्योंकि उसे इस हाड मांस में कुछ और ही दिखाई देता हैं, जिसे चैतन्यता कहते हैं. चेतना कहते हैं, ज्ञान कहते हैं. और उसे उस मुट्ठी में देखने की जरुरत नहीं हैं, क्योंकि वह मुट्ठी में समाने वाली चीज नहीं हैं, वह इस समस्त संसार में समाया हैं, जो सब कुछ सबको दिखाई दे रहा हैं.
Books by Dr. Narayan Dutta Shrimali Ji:- 1. Practical Palmistry 2. Practical Hypnotism 3. The Power of Tantra 4. Mantra Rahasya 5. Meditation 6. Dhyan, Dharana aur Samadhi 7. Kundalini Tantra 8. Alchemy Tantra 9. Activation of Third Eye 10. Guru Gita 11. Fragrance of Devotion 12. Beauty – A Joy forever 13. Kundalini naad Brahma 14. Essence of Shaktipat 15. Wealth and Prosperity 16. The Celestial Nymphs 17. The Ten Mahavidyas 18. Gopniya Durlabh Mantron Ke Rahasya. 19. Rahasmaya Agyaat tatntron ki khoj men. 20. Shmashaan bhairavi. 21. Himalaya ke yogiyon ki gupt siddhiyaan. 22. Rahasyamaya gopniya siddhiyaan. 23. Phir Dur Kahi Payal Khanki 24. Yajna Sar 25. Shishyopanishad 26. Durlabhopanishad 27. Siddhashram 28. Hansa Udahoon Gagan Ki Oar 29. Mein Sugandh Ka Jhonka Hoon 30. Jhar Jhar Amrit Jharei 31. Nikhileshwaranand Chintan 32. Nikhileshwaranand Rahasya 33. Kundalini Yatra- Muladhar Sey Sahastrar Tak 34. Soundarya 35. Mein Baahen Feilaaye Khada Hoon 36. Hastrekha vigyan aur panchanguli sadhana.
ब्रह्मवैवर्त पुराण में व्यास मुनि ने स्पष्ट लिखा है, कि भगवान् के अवतारों स्वरुप में दस गुण अवश्य ही परिलक्षित होंगे और इन्हीं दस गुणों के आधार पर संसार उन्हें पहिचानेगा।
तपोनिष्ठः मुनिश्रेष्ठः मानवानां हितेक्षणः । ऋषिधर्मत्वमापन्नः योगी योगविदां वरः दार्शनिकः कविश्रेष्ठः उपदेष्टा नीतिकृत्तथा । युगकर्तानुमन्ता च निखिलः निखिलेश्वरः ॥ एभिर्दशगुणैः प्रीतः सत्यधर्मपरायणः । अवतारं गृहीत्चैव अभूच्च गुरुणां गुरुः ॥
सदगुरुदेव पूज्यपाद डॉ नारायणदत्त श्रीमाली जी, संन्यासी स्वरुप निखिलेश्वरानंद जी का विवेचन आज यदि महर्षि व्यास द्वारा उध्दृत दस गुणों के आधार पर किया जाए, तो निश्चय ही सदगुरुदेव अवतारी पुरूष हैं, जिन्होनें अपने सांसारिक जीवन का प्रारम्भ एक सुसंस्कृत ब्राह्मण परिवार में किया – सुदूर पिछडा रेगिस्तानी गांव था। जब इनका जन्म हुआ तो माता-पिता को प्रेरणा हुई, कि इस बालक का नाम रखा जाए – ‘नारायण’।
यह नारायण नाम धारण करना और उस नारायण तत्व का निरंतर विस्तार केवल युगपुरुष नारायण दत्त श्रीमाली के लिए ही सम्भव था, जिन्होनें अपने अल्पकालीन भौतिक जेवण में शिक्षा का उच्चतम आयाम ग्रहण कर पी.एच.डी. अर्थात डाक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त की।
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lokkesari · 4 years
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वैकुंठ चतुर्दशी पर चंद्रमा की चौदवीं कला में होगा हरिहर का मिलन, भक्तों को पूजा पाठ से मिलेगा दोहरा लाभ
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वैकुंठ चतुर्दशी पर चंद्रमा की चौदवीं कला में होगा हरिहर का मिलन, भक्तों को पूजा पाठ से मिलेगा दोहरा लाभ
कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी नाम से जाना जाता है। इस वर्ष यह चतुर्दशी रविवार 29 नवंबर को धाता योग और प्रजापति योग में मनाई जाएगी। इस दिन बैकुंठ के अधिपति भगवान विष्णु की पूजा आराधना की जाती है । इसके साथ ही भगवान विष्णु यानी हरी और भगवान शंकर यानी हर महादेव का मिलन भी होता है । बालाजी धाम काली माता मंदिर के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित सतीश सोनी के अनुसार बैकुंठ चतुर्दशी कृतिका नक्षत्र के धाता योग प्रजापति योग में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाई जाएगी। इस दिन भगवान शिव और विष्णु की पूजा एक साथ की जाती है। इस दिन देश के विभिन्न मंदिरों में विष्णु और शिव के मिलन की पूजा होती है ।चतुर्दशी तिथि चंद्रमा की चौदवीं कला है इसका कला में अमृत का पान भगवान शिव करते हैं ।
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार एक बार विष्णु जी ने काशी विश्वनाथ शिव जी को 1000 स्वर्ण कमल के पुष्प चढ़ाने का संकल्प किया। जब अनुष्ठान का समय आया तब भगवान शिव ने विष्णु जी की परीक्षा के लिए एक पुष्प कम कर दिया ।जिसकी पूर्ति भगवान श्री हरि ने अपने कमलनयन यानी कि अपने नेत्र को मिलाकर की। इस बात से भगवान भूतनाथ शंकर बेहद प्रसन्न हुए और तभी से कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी के नाम से जाने जाना लगा और भगवान ने जातकों को को प्रसन्न होकर वचन दिया जो इस दिन व्रत कथा पूजन को करेंगे उसे मेरे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी। इसी दिन भगवान भोलेनाथ ने सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु को प्रदान किया था तथा इसी दिन सूर्य के द्वार भी खुले रहते हैं । इस दिन व्रत कर तारों की छांव में सरोवर में नदी में घाटों पर वृक्षों पर 14 दीपक जलाने की परंपरा भी है। 28 नवंबर चतुर्थी तिथि सुबह 10:26 से प्रारंभ होकर 29 नवंबर दोपहर 12:30 तक रहेगी यह तिथि सूर्योदय व्यापिनी ग्रहण करनी चाहिए । अतः रविवार को बैकुंठी चतुर्थी तिथि का महान पर्व वैष्णव और शैव को पारंपरिक एकता और भावना के साथ मनाना चाहिए। संपूर्ण भारत मे भगवान विष्णु व भगवान शंकर बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान भोलेनाथ व शिव का अभिषेक कर फूलों से श्रृंगार किया जाएगा साथ ही हवन एवं पूजन होगा।
ज्योतिष आचार्य सतीश सोनी
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chaitanyabharatnews · 5 years
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ट्वीटर पर शख्स ने पूछा- आपकी इस तस्वीर पर मीम बनेंगे, पीएम मोदी ने दिया ये जवाब
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चैतन्य भारत न्यूज नई दिल्ली. सोशल मीडिया पर आए दिन किसी नेता या अभिनेता के मीम वायरल होते रहते हैं। कई बार तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भी मीम सोशल मीडिया पर वायरल हुए हैं। लेकिन इस बार पहली दफा ऐसा हुआ है जब पीएम मोदी ने किसी सोशल मीडिया यूजर को जवाब दिया हो। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); यह है पूरा मामला दरअसल, गुरुवार को साल 2019 का आखिरी सूर्य ग्रहण सुबह 8 बजे लगा था जो 3 घंटे तक चला। देश भर में लोग सूर्य ग्रहण देख रहे थे। ऐसे में पीएम मोदी ने भी केरल के कोझिकोड शहर से यह सूर्य ग्रहण देखा और फिर इसकी तस्वीरें अपने ट्वीटर अकाउंट से शेयर की। उन्होंने अपनी तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए कैप्शन लिखा कि, 'दुर्भाग्यवश, घने बादलों की वजह से मैं सूर्य ग्रहण नहीं देख पाया, लेकिन कोझिकोड में मैंने उसकी एक झलक देखी।' Like many Indians, I was enthusiastic about #solareclipse2019. Unfortunately, I could not see the Sun due to cloud cover but I did catch glimpses of the eclipse in Kozhikode and other parts on live stream. Also enriched my knowledge on the subject by interacting with experts. pic.twitter.com/EI1dcIWRIz — Narendra Modi (@narendramodi) December 26, 2019 पीएम मोदी ने दिया जवाब उन्होंने एक और तस्वीर के साथ यह भी कैप्शन लिखा कि, 'सूर्य ग्रहण का बाकी हिस्सा मैंने लाइव स्ट्रीम के जरिए देखा। साथ ही विशेषज्ञों के साथ बातचीत करके इस विषय में जानकारी भी हासिल की।' पीएम मोदी की तस्वीरें वायरल होने के बाद एक ट्वीटर यूजर ने उसे शेयर कर कहा कि, 'अब इस पर मीम बनेंगे।' इस शख्स को जवाब देने में पीएम मोदी भी पीछे नहीं रहे। मोदी ने शख्स के ट्वीट को रीट्वीट करते हुए लिखा कि, 'आपका स्वागत है एंजॉय कीजिए।' Most welcome....enjoy :) https://t.co/uSFlDp0Ogm — Narendra Modi (@narendramodi) December 26, 2019 ��ाल का आखिरी सूर्यग्रहण बता दें कि साल 2019 के इस आखिरी सूर्य ग्रहण की शुरुआत भारत में सुबह 8 बजकर 4 मिनट पर हुई। भारत में यह सूर्य ग्रहण बेंगलुरु, चेन्नई, मुंबई, हैदराबाद, अहमदाबाद, दिल्ली और कोलकाता समेत कई जगहों पर देखा गया। इसके अलावा ये ग्रहण सउदी अरब, कतर, यूएई, ओमान, श्रीलंका, मलेशिया , इंडोनेशिया, सिंगापुर में भी देखने को मिला। ये भी पढ़े... भारत में दिखा सूर्य ग्रहण का अद्भुत नजारा, नासा ने जारी की चेतावनी आज है साल का आखिरी सूर्य ग्रहण, जानिए क्या होता है ग्रहण और इसे देखने के नियम 26 दिसंबर को है साल का आखिरी सूर्यग्रहण, 12 घंटे पहले शुरू हो जाएगा सूतक काल Read the full article
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lok-shakti · 3 years
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सूर्य ग्रहण 2021 लाइव अपडेट: आज ही 'रिंग ऑफ फायर' देखने के लिए तैयार हो जाइए
सूर्य ग्रहण 2021 लाइव अपडेट: आज ही ‘रिंग ऑफ फायर’ देखने के लिए तैयार हो जाइए
सूर्य ग्रहण 2021 लाइव अपडेट: आज ‘रिंग ऑफ फायर’ देखने के लिए तैयार हो जाइएसूर्य ग्रहण 2021 टुडे लाइव अपडेट्स: इस साल का पहला सूर्य ग्रहण आज दिखाई देगा। तो, ‘रिंग ऑफ फायर’ देखने के लिए तैयार हो जाइए क्योंकि यह भारत के कुछ हिस्सों से भी आंशिक रूप से दिखाई देगा। जो लोग लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में रहते हैं वे इस दुर्लभ खगोलीय घटना को देख सकेंगे। नासा द्वारा प्रकाशित नक्शे के अनुसार, वे 12:25 बजे…
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moneycontrolnews · 5 years
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भोपाल.शुक्रवार रात 10:38 बजे मांद्य चंद्र ग्रहण शुरू होगा, इसका मध्य 12:40 बजे और मोक्ष रात में 2:42 बजे होगा। इस ग्रहण का कोई धार्मिक महत्व नहीं है। इस वजह से ग्रहण का सूतक नहीं रहेगा। ग्रहण काल में भी पूजा-पाठ आदि कर्म किए जा सकेंगे। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार साल 2020 में 4 मांद्य चंद्र ग्रहण होंगे। निर्णय सागर पंचांग के मुताबिक शुक्रवार, 10 जनवरी को लगने वाले ग्रहण का किसी भी तरह का धार्मिक असर नहीं रहेगा। इस साल चारों चंद्र ग्रहण मांद्य रहेंगे। आज पौष मास की पूर्णिमा है। इस तिथि पर स्नान और दान कर्म करने की परंपरा है। मांद्य चंद्र ग्रहण का धार्मिक महत्व न होने की वजह से ये सभी पूजन कर्म आज पूरे दिन किए जा सकते हैं। पिछले 10 साल में 6 बार और 2020 में 4 बार ऐसे ग्रहण नासा की ग्रहण से संबंधित वेब साइट के मुताबिक पिछले 10 सालों में मांद्य चंद्र ग्रहण 6 बार हुआ है। इस तरह का ग्रहण 2020 में चार बार हो रहा है। 10 जनवरी के बाद 5 जून, 5 जुलाई और 30 नवंबर को मांद्य चंद्र ग्रहण होगा। 2020 से पहले पिछले 10 सालों में 28 नवंबर 2012, 25 मार्च 2013, 18 अक्टूबर 2013, 23 मार्च 2016, 16 सितंबर 2016 और 11 फरवरी, 2017 को ऐसा चंद्र ग्रहण हो चुका है। 2020 के बाद 5 मई 2023 को फिर से ऐसा ही चंद्र ग्रहण होगा। चंद्र आगे छाएगी धूल जैसी परत ये ग्रहण सामान्य ग्रहण की तरह नहीं है। ये आसानी से दिखाई नहीं देगा। इसमें चंद्रमा घटता-बढ़ता नहीं दिखाई देगा, चंद्र के आगे धूल जैसी एक परत छा जाएगी। इस कारण ज्योतिषीय मत में चंद्र ग्रहण का कोई असर नहीं है। 2020 से प���ले ऐसा चंद्र ग्रहण 11 फरवरी 2017 को दिखा था। कहां-कहां दिखेगा ये चंद्र ग्रहण 10 जनवरी की रात होने वाला चंद्र ग्रहण कनाडा, यूएस, ब्राजील, अर्जेंटीना, अंटार्कटिका में नहीं दिखेगा। इनके अलावा भारत सहित विश्व के कई हिस्सों में दिखेगा। भारत में ये चंद्र ग्रहण दिखेगा। हिंद महासागर (इंडियन ओशिन) में ग्रहण दिखाई देगा। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार ये ग्रहण 10 जनवरी की रात में शुरू होगा। 12 बजे के बाद अगली तारीख यानी 11 जनवरी लग जाएगी। विज्ञान की मान्यता के अनुसार क्यों होता है मांद्य चंद्र ग्रहण जब चंद्र पृथ्वी और सूर्य एक सीधी लाइन में आ जाते हैं। तब पृथ्वी की वजह से चंद्र पर सूर्य की रोशनी सीधे नहीं पहुंच पाती है और पृथ्वी की छाया पूरी तरह से चंद्र पर पड़ती है। इस स्थिति को ही चंद्र ग्रहण कहते हैं। जबकि मांद्य चंद्र ग्रहण में चंद्र पृथ्वी और सूर्य एक ऐसी लाइन में रहते हैं, जहां से पृथ्वी की हल्की सी छाया चंद्र पर पड़ती है। ये तीनों ग्रह एक सीधी लाइन में नहीं होते हैं। इस वजह से मांद्य चंद्र ग्रहण की स्थिति बनती है। चंद्र पर राहु की छाया नहीं पड़ेगी इस ग्रहण में चंद्रमा पर राहु की छाया नहीं पड़ेगी। राहु एक छाया ग्रह है। धार्मिक मान्यता है कि ग्रहण काल में चंद्र पर छाया के रूप में राहु दिखता है, लेकिन इस ग्रहण में छाया नहीं बनेगी। जब छाया ही नहीं पड़ेगी तो राहु के ग्रसने वाली बात भी नहीं होगी। यह ग्रहण केवल उपच्छाया मात्र है। यह केवल उपच्छाया ग्रहण है, जो कि सिर्फ आंख से नहीं दिखेगा। इसलिए इसे ग्रहण कहने के बजाए छाया का समय कहा जाता है। नहीं लगेगा सूतक, ना होगा कोई असर इस चंद्र ग्रहण को लेकर किसी तरह से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। मांद्य चंद्र ग्रहण के कारण इसमें सूतक काल लागू नहीं होगा। न ही सूतक का प्रारंभ और न ही सूतक का अंत। ज्योतिष के प्रसिद्ध निर्णयसागर पंचांग के अनुसार इस ग्रहण में किसी भी प्रकार का यम, नियम, सूतक आदि मान्य नहीं है। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today Chandra Grahan Time 2020 | Chandra Grahan Penumbral Lunar Eclipse Jyotish 10th January 2020: Surya Grahan (Time, Kab Hai, Kab Lagega, Ka Samay, Kaise Hota Hai)
http://poojakamahatva.blogspot.com/2020/01/1038.html
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aapnugujarat1 · 5 years
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26 दिसंबर को सूर्य ग्रहण
नई दिल्ली। 26 दिसम्बर, 2019 को सूर्य का वलयाकार ग्रहण घटित होगा । भारत में वलयाकार प्रावस्था प्रात: सूर्योदय के पश्चात देश के दक्षिणी भाग में कुछ स्थानों (कर्नाटक, केरल एवं तमिलनाडु के हिस्सों) के संकीर्ण गलियारे में दिखाई देगी तथा देश के अन्य हिस्सों में यह आंशिक सूर्य ग्रहण के रूप में दिखाई देगा । ग्रहण की वलयाकार प्रावस्था का संकीर्ण गलियारा देश के दक्षिणी हिस्से में कुछ स्थानों यथा कन्नानोर, कोयम्बटूर, कोझीकोड़, मदुराई, मंगलोर, ऊटी, तिरुचिरापल्ली इत्यादि से होकर गुजरेगा । भारत में वलयाकार ग्रहण की अधिकतम प्रावस्था के समय चंद्रमा सूर्य को लगभग 93% आच्छादित कर देगा । वलयाकार पथ से देश के उत्तर एवं दक्षिण की ओर बढ़ने पर आंशिक सूर्य ग्रहण की अवधि घटती जाएगी । आंशिक ग्रहण की अधिकतम प्रावस्था के समय चंद्रमा द्वारा सूर्य का आच्छादन बंगलोर में लगभग 90%, चेन्नई में 85%, मुम्बई में 79%, कोलकाता में 45%, दिल्ली में 45%, पटना में 42%, गुवाहाटी में 33%, पोर्ट ब्लेयर में 70%, सिलचर में 35% इत्यादि होगा । यदि पृथ्वी को सम्पूर्ण माना जाए तो ग्रहण की आंशिक प्रावस्था भारतीय मानक समय अनुसार प्रात: 8.00 बजे आरम्भ होगी । ग्रहण की वलयाकार अवस्था भा.मा.स. अनुसार प्रात: 9 बजकर 06 मिनट पर शुरू होगी । सूर्य ग्रहण की वलयाकार अवस्था भा.मा.स. अनुसार  12 बजकर 29 मिनट पर समाप्त होगी । ग्रहण की आंशिक प्रावस्था भा.मा.स. अनुसार  13 घं. 36 मि. पर समाप्त होगी । सूर्य का वलयाकार ग्रहण भूमध्य रेखा के निकट उत्तरी गोलार्ध में एक संकीर्ण गलियारे में दिखाई देगा । वलयाकार पथ साउदी अरब, कतर, ओमान, संयुक्त अरब अमीरात, भारत, श्रीलंका के उत्तरी भाग, मलेशिया, सिंगापुर, सुमात्रा एवं बोर्निओ से होकर गुजरेगा । चंद्रमा की उपच्छाया से आंशिक ग्रहण होता है जो कि मध्य पूर्व, उत्तर पूर्वी अफ्रीका, उत्तर एवं पूर्वी रूस को छोड़कर एशिया, उत्तर और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया, सोलोमन द्वीप के क्षेत्रों में दिखाई देगा । अगला सूर्य ग्रहण भारत में 21 जून, 2020 को दिखाई देगा । यह एक वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा । वलयाकार अवस्था का संकीर्ण पथ उत्तरी भारत से होकर गुजरेगा । देश के शेष भाग में यह आंशिक सूर्य ग्रहण के रूप में दिखाई पड़ेगा । सूर्य ग्रहण किसी अमावस्या के दिन घटित होता है जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है तथा उस समय ये तीनों एक ही सीध में रहते हैं । वलयाकार सूर्य ग्रहण तब घटित होता है जब चंद्रमा का कोणीय व्यास सूर्य की अपेक्षा छोटा होता है जिसके फलस्वरूप वह सूर्य को पूर्णतया ढक नहीं पाता है । परिणामत: चंद्रमा के चतुर्दिक सूर्य चक्रिका का छल्ला ही दिखाई देता है । ग्रहणग्रस्त सूर्य को थोड़ी देर के लिए भी नंगी आँखों से नहीं देखा जाना  चाहिए । चंद्रमा सूर्य के अधिकतम हिस्सों को ढक दे तब भी इसे खाली आँखों से न देखें क्योंकि यह आँखों को स्थाई नुकसान पहुँचा सकता है जिससे अंधापन हो सकता है । सूर्य ग्रहण को देखने की सबसे सही तकनीक है ऐलुमिनी माइलर, काले पॉलिमर, 14 नं. शेड के झलाईदार काँच जैसे उपयुक्त फिल्टर का उपयोग करना अथवा टेलेस्कोप के माध्यम से श्वेत पट पर सूर्य की छाया का प्रक्षेपण करना। भारत के कुछ स्थानों की ग्रहण से संबंधित स्थानीय परिस्थितियों की सारिणी सुलभ संदर्भ के लिए अलग से संलग्न की जा रही है । Read the full article
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bisaria · 6 years
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त्र्यम्बकेश्वर मंदिर (अंग्रेज़ी:Trimbakeshwar Temple) महाराष्ट्र प्रान्त के नासिक जनपद में नासिक शहर से तीस किलोमीटर पश्चिम में अवस्थित है। इसे त्रयम्बक ज्योतिर्लिंग, त्र्यम्बकेश्वर शिव मन्दिर भी कहते है। यहाँ समीप में ही ब्रह्मगिरि नामक पर्वत से गोदावरी नदी निकलती है। जिस प्रकार उत्तर भारत में प्रवाहित होने वाली पवित्र नदी गंगा का विशेष आध्यात्मिक महत्त्व है, उसी प्रकार दक्षिण में प्रवाहित होने वाली इस पवित्र नदी गोदावरी का विशेष महत्त्व है। जहाँ उत्तरभारत की गंगा को ‘भागीरथी’ कहा जाता हैं, वहीं इस गोदावरी नदी को ‘गौतमी गंगा’ कहकर पुकारा जाता है। भागीरथी राजा भगीरथ की तपस्या का परिणाम है, तो गोदावरी ऋषि गौतम की तपस्या का साक्षात फल है।
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त्र्यंबकेश्वर मंदिर, नासिक Trimbakeshwar Temple, Nasik
महाकुम्भ का आयोजन
देश में लगने वाले विश्व के प्रसिद्ध चार महाकुम्भ मेलों में से एक महाकुम्भ का मेला यहीं लगता है। यहाँ प्रत्येक बारहवें वर्ष जब सिंह राशि पर बृहस्पति का पदार्पण होता है और सूर्य नारायण भी सिंह राशि पर ही स्थित होते हैं, तब महाकुम्भ पर्व का स्नान, मेला आदि धार्मिक कृत्यों का समारोह होता है। उन दिनों गोदावरी गंगा में स्नान का आध्यात्मिक पुण्य बताया गया है।
श्री त्र्यम्बकेश्वर शिव
गोदावरी के उद्गगम स्थल के समीप ही श्री त्र्यम्बकेश्वर शिव अवस्थित हैं, जिनकी महिमा का बखान पुराणों में किया गया है। ऋषि गौतम और पवित्र नदी गोदावरी की प्रार्थना पर ही भगवान शिव ने इस स्थान पर अपने वास की स्वीकृति दी थी। वही भगवान शिव ‘त्र्यम्बकेश्वर’ नाम से इस जगत् में विख्यात हुए। यहाँ स्थित ज्योतिर्लिंग का प्रत्यक्ष दर्शन स्त्रियों के लिए निषिद्ध है, अत: वे केवल भगवान के मुकुट का दर्शन करती हैं। त्र्यम्बकेश्वर मन्दिर में सर्वसामान्य लोगों का भी प्रवेश न होकर, जो द्विज (ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य) हैं तथा भजन-पूजन करते हैं और पवित्रता रखते हैं, वे ही लोग मन्दिर के अन्दर प्रवेश कर पाते हैं। इनसे अतिरिक्त लोगों को बाहर से ही मन्दिर का दर्शन करना पड़ता है।
श्री त्र्यम्बकेश्वर और गोदावरी
यहाँ मन्दिर के भीतर एक गड्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग हैं, जो ब्रह्मा विष्णु और शिव इन तीनों देवों के प्रतीक माने जाते हैं। ब्रह्मगिरी से निकलने वाली गोदावरी की जलधारा इन त्रिमूर्तियों पर अनवरत रूप से पड़ती रहती है। ब्रह्मगिरि पर्वत के ऊपर जाने के लिए सात सौ सीढ़ियों का निर्माण कराया गया है। ऊपरी पहाड़ी पर ‘रामकुण्ड’ और ‘लक्ष्मणकुण्ड’ नामक दो कुण्ड भी स्थित हैं। पर्वत की चोटी पर पहुँचने पर गोमुखी से निकलती हुई भगवान गौतमी (गोदावरी) का दर्शन प्राप्त होता है। श्री शिव महापुराण के कोटिरुद्र संहिता में ऋषि गौतम- गौतमी-गोदावरी तथा त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के सम्बन्ध में विस्तार से वर्णन किया गया है जो इस प्रकार है-
शिव पुराण के अनुसार
‘पूर्व समय में गौतम नाम के एक प्रसिद्ध ऋषि अपनी धर्मपत्नी अहल्या के साथ रहते थे। उन्होंने दक्षिण भार�� के ब्रह्मगिरि पर्वत पर दस हज़ार वर्षों तक कठोर तपस्या की थी। एक समय वहाँ सौ वर्षों तक वर्षा बिल्कुल नहीं हुई, सब जगह सूखा पड़ने के कारण जीवधारियों में बेचैनी हो गई। जल के अभाव में पेड़-पौधे सूख गये, पृथ्वी पर महान् संकट टूट पड़ा, सर्वत्र चिन्ता ही चिन्ता, आख़िर जीवन को धारण करने वाला जल कहाँ से लाया जाये? उस समय मनुष्य, मुनि, पशु, पक्षी तथा अन्य जीवनधारी भी जल के लिए भटकते हुए विविध दिशाओं में चले गये। उसके बाद ऋषि गौतम ने छ: महीने तक कठोर तपस्या करके वरुण देवता को प्रसन्न किया। ऋषि ने वरुण देवता से जब जल बरसाने की प्रार्थना की, तो उन्होंने कहा कि मैं देवताओं के विधान के विपरीत वृष्टि नहीं कर सकता, किन्तु तुम्हारी इच्छा की पूर्ति हेतु तुम्हें 'अक्षय'[1] जल देता हूँ। तुम उस जल को रखने के लिए एक गड्ढा तैयार करो। वरुण देव के आदेश के अनुसार ऋषि गौतम ने एक हाथ गहरा गड्ढा खोद दिया, जिसे वरुण ने अपने दिव्य जल से भर दिया। उसके बाद उन्होंने परोपकार परायण ऋषि गौतम से कहा– ‘महामुने! यह अक्षुण्ण जल कभी नष्ट नहीं होगा और तीर्थ बनकर इस पृथ्वी पर तुम्हारे ही नाम से प्रसिद्ध होगा। इसके समीप दान-पुण्य, हवन-यज्ञ, तर्पण, देव पूजन और पितरों का श्राद्ध, सब कुछ अक्षय फलदायी होंगे। उसके बाद उस जल से ऋषि गौतम ने बहुतों का कल्याण किया, जिससे उन्हें सुख की अनुभूति हुई।
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त्र्यम्बकेश्वर मंदिर का मुख्य द्वार
इस प्रकार वरुण से अक्षय जल की प्राप्ति के बाद ऋषि गौतम आनन्द के साथ अपने नित्य नैमित्तिक कर्म, यज्ञ आदि सम्पन्न करने लगे। उन्होंने अपने नित्य हवन-यज्ञ के लिए धान, जौं, नीवार (ऋषि धान्य) आदि लगवाया। जल की सुलभता से वहाँ विविध प्रकार की फ़सलें, अनेक प्रकार के वृक्ष तथा फल-फूल लहलहा उठे। इस प्रकार जल की सुविधा और व्यवस्था को सुनकर वहाँ हज़ारों ऋषि-मुनि, पशु-पक्षी और जीवधारी रहने लगे। कर्म करने वाले बहुत से ऋषि-मुनि अपनी धर्मपत्नियों, पुत्रों तथा शिष्यों के साथ रहने लगे। समय का सदुपयोग करने के लिए गौतम ने काफ़ी खेतों में धान लगाया। उनके प्रभाव से उस क्षेत्र में सब ओर आनन्द ही आनन्द था।
एक बार कुछ ब्रह्मणों की स्त्रियाँ जो गौतम के आश्रम में आकर निवास करती थीं, जल के सम्बन्ध में विवाद हो जाने पर अहल्या से नाराज़ हो गयी। उन्होंने गौतम को नुक़सान पहुँचाने हेतु अपने पतियों को उकसाया। उन ब्राह्मणों ने गौतम का अनिष्ट करने हेतु गणेश जी की आराधना की। गणेश जी के प्रसन्न होने पर उन ब्राह्मणों ने उनसे कहा कि आप ऐसा कोई उपाय कीजिए कि यहाँ के सभी ऋषि डाँट-फटकार कर गौतम को आश्रम से बाहर निकाल दें। गणेश जी ने उन सबको समझाया कि तुम लोगों को ऐसा करना उचित नहीं है। यदि तुम लोग बिना अपराध किये ही गौतम पर क्रोध करोगे, तो इससे तुम लोगों की ही हानि होगी। जिसने पहले उपकार किया हो, ऐसे व्यक्ति को कष्ट दिया जाय, तो वह अपने लिए ही दु:खदायी होता है। जब अकाल पड़ा था और उपवास के कारण तुम लोग दु:ख भोग रहे थे, उस समय गौतम ने जल की व्यवस्था करके तुम लोगों को सुख पहुँचाया, किन्तु अब तुम लोग उन्हें ही कष्ट देना चाहते हो। उस विषय पर तुम लोग पुनर्विचार करो। गणेश जी के समझाने पर भी वे दुष्ट ऋषि दूसरा वर लेने के लिए तैयार नहीं हुए और अपने पहले वाले दुराग्रह पर अड़े रहे।
शिवपुत्र गणेश अपने भक्तों के अधीन होने के कारण, उनके द्वारा गौतम के विरुद्ध माँगे गये वर को स्वीकार कर लिया और कहा कि उसे मैं अवश्य ही पूर्ण करूँगा। गौतम ने अपने खेत में धान और जौं लगाया था। गणेश जी उन अत्यन्त दुबली-पतली और कमज़ोर गाय का रूप धारण कर उन खेतों में जाकर फ़सलों को चरने लगे। उसी समय संयोगवश दयालु गौतम जी वहाँ पहुँच गये और मुट्ठी भर खर-पतवार लेकर उस गौ को हाँकने लगे। उन खर-पतवारों का स्पर्श होते ही वह दुर्बल गौ कांपती हुई धरती पर गिर गई और तत्काल ही मर गयी।
वे दुष्ट ब्राह्मण और उनकी स्त्रियाँ छिपकर उक्त सारी घटनाएँ देख रही थीं। गौ के धरती पर गिरते ही सभी ऋषि गौतम के सामने आकर बोल पड़े– ‘अरे , गौतम ने यह क्या कर डाला?’ गौतम भी आश्चर्य में डूब गये। उन्होंने अहल्या से दु:खपूर्वक कहा– ‘देवि! यह सब कैसे हो गया और क्यों हुआ? लगता है, ईश्वर मुझ पर कुपित हैं। अब मैं कहाँ जाऊँ और क्या करूँ? मुझे तो गोहत्या के पाप ने स्पर्श कर लिया है।’ इस प्रकार पश्चाताप करते हुए गौतम की उन ब्राह्मणों तथा उनकी पत्नियों ने घोर निन्दा की, उन्हें अपशब्द कहे और दुर्वचनों द्वारा अहल्या को भी प्रताड़ित किया। उनके शिष्यों तथा पुत्रों ने भी गौतम को पुन:-पुन: धिक्कारा और फटकारा, जिससे बेचारे गौतम भयंकर संकट और सन्ताप के सागर में गोता लगाने लगे। ब्राह्मणों ने उन्हें धिक्कारते हुए कहा– ‘अब तुम यहाँ से चले जाओ, क्योंकि तुम्हें यहाँ मुख दिखाना अब ठीक नहीं है। गोहत्या करने वाले का मुख देखने पर तत्काल सचैल अर्थात् वस्त्र सहित स्नान करना पड़ता है। इस आश्रम में तुम जैसे गो हत्यारे के रहते हुए अग्नि देव और पितृगण (पितर) हमारे हव्य-कव्य (हवन तथा पिण्डदान) आदि को ग्रहण नहीं करेंगे। इसलिए पापी होने के कारण तुम बिना देरी किये शीघ्र ही परिवार सहित कहीं दूसरी जगह चले जाओ।
उसके बाद उन दुष्ट ब्राह्मणों ने गालियाँ देते हुए सपत्नीक ऋषि गौतम को अपमानित किया और उन पर ढेले तथा पत्थरों से भी प्रहार किया। कष्ट और मानसिक सन्ताप से भी पीड़ित गौतम ने उस आश्रम को तत्काल छोड़ दिया। उन्होंने वहाँ से तीन किलोमीटर की दूरी पर जाकर अपना आश्रम बनाया। उन ब्राह्मणों ने गौतम को तंग करने हेतु वहाँ भी उनका पीछा किया। उन्होंने कहा– ‘जब तक तुम्हारे ऊपर गो हत्या का पाप है, तब तक तुम्हें किसी भी वैदिकदेव अथवा पितृयज्ञ के अनुष्ठान करने का अधिकार प्राप्त नहीं है। इसलिए तुम्हें कोई यज्ञ-यागादि कर्म नहीं करना चाहिए।’ मुनि गौतम ने बड़ी कठिनाई और दु:ख के साथ पन्द्रह दिनों को बिताया, किन्तु धर्म-कर्म से वंचित होने के कारण उनका जीवन दूभर हो गया। उन्होंने उन मुनियों, ब्राह्मणों से गोहत्या का प्रायश्चित बताने हेतु बार-बार दु:खी मन से अनुनय-विनय की।
उनकी दीनता पर तरस खाते हुए उन मुनियों ने कहा– ‘गौतम! तुम अपने पाप को प्रकट करते हुए अर्थात् किये गये गोहत्या-सम्बन्धी पाप को बोलते हुए तीन बार पृथ्वी की परिक्रमा करके फिर एक महीने तक व्रत करो। व्रत के बाद जब तुम इस ब्रह्मगिरि की एक सौ एक परिक्रमा करोगे, उसके बाद ही तुम्हारी शुद्धि होगी। ब्राह्मणों ने उक्त प्रायश्चित का विकल्प बतलाते हुए कहा कि यदि तुम गंगा जी को इसी स्थान पर लाकर उनके जल में स्नान करो, तदनन्तर एक करोड़ पार्थिव लिंग बनाकर महादेव जी की उपासना (पार्थिव पूजन) करो, उसके बाद पुन: गंगा स्नान करके इस ब्रह्मगिरि पर्वत की ग्यारह परिक्रमा करने के बाद एक सौ कलशों (घड़ों) में जल भर पार्थिव शिवलिंग का अभिषेक करो, फिर तुम्हारी शुद्धि हो जाएगी और तुम गो हत्या के पाप से मुक्त हो जाओगे।’ गौतम ने उन ऋषियों की बातों को स्वीकार करते हुए कहा कि वे ब्रह्मगिरि की अथवा पार्थिव पूजन करेंगे। तत्पश्चात् उन्होंने अहल्या को साथ लेकर ब्रह्मगिरि की परिक्रमा की और अतीव निष्ठा के साथ पार्थिव लिंगों का निर्माण कर महादेव जी की आराधना की।
मुनि गौतम द्वारा अटूट श्रद्धा भक्ति से पार्थिव पूजन करने पर पार्वती सहित भगवान शिव प्रसन्न हो गये। उन्होंने अपने प्रमथगणों सहित प्रकट होकर कहा- ‘गौतम! मैं तुम्हारी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूँ। गौतम शिव के अद्भुत रूप को देखकर आनन्द विभोर हो उठे। उन्होंने भक्तिभाव पूर्वक शिव को प्रणाम कर उनकी लम्बी स्तुति की। वे हाथ जोड़कर खड़े हुए और भगवान शिव से बोले कि ‘आप मुझे निष्पाप (पापरहित) बनाने की कृपा करें।’ भगवान शिव ने कहा– ‘तुम धन्य हो। तुम में किसी भी प्रकार का कोई पाप नहीं है। संसार के लोग तुम्हारे दर्शन करने से पापरहित हो जाते हैं। तुम सदा ही मेरी भक्ति में लीन रहते हो, फिर पापी कैसे हो सकते हो? उन दुष्टों ने तुम्हारे साथ छल-कपट किया है, तुम पर घोर अत्याचार किया है। इसलिए वे ही पापी, हत्यारे और दुराचारी हैं। उन सब कृतघ्नों का कभी भी उद्धार नहीं होगा, जो लोग उन दुरात्माओं का दर्शन करेगें वे भी पापी बन जाएँगे।’
भगवान शिव की बात सुनकर ऋषि गौतम आश्चर्यचकित हो उठे। उन्होंने शिव को पुन:-पुन: प्रणाम किया और कहा– ‘भगवान्! उन्होंने तो मेरा बड़ा उपकार किया है, वे महर्षि धन्य हैं, क्योंकि उन्होंने मेरे लिए परम कल्याणकारी कार्य किया है। उनके दुराचार से ही मेरा महान् कार्य सिद्ध हुआ है। उनके बर्ताव से ही हमें आपका परम दुर्लभ दर्शन प्राप्त हो सका है।’ गौतम की बात सुनकर भगवान शिव अत्यन्त प्रसन्न होकर उनसे बोले– विप्रवर! तुम सभी ऋषियों में श्रेष्ठ हो, मैं तुम पर अतिशय प्रसन्न हूँ, इसलिए तुम कोई उत्तम वर माँग लो।’ ऋषि गौतम ने महेश को बार-बार प्रणाम करते हुए कहा कि लोक कल्याण करने के लिए आप मुझे गंगा प्रदान कीजिए। इस प्रकार बोलते हुए गौतम ने लोकहित की कामना से भगवान शिव के चरणों को पकड़ लिया। तब भगवान महेश्वर ने पृथ्वी और स्वर्ग के सारभूत उस जल को निकाला, जो ब्रह्मा जी ने उन्हें उनके विवाह के अवसर पर दिया था। वह परम पवित्र जल स्त्री का रूप धारण करके जब वहाँ खड़ा हुआ, तो ऋषि गौतम ने उसकी स्तुति करते हुए नमस्कार किया। गौतम ने गंगा की आराधना करके पाप से मुक्ति प्राप्त की। गौतम तथा मुनियों को गंगा ने पूर्ण पवित्र कर दिया। वह गौतमी कहलायी। गौतमी नदी के किनारे त्र्यंबकम शिवलिंग की स्थापना की गई, क्योंकि इसी शर्त पर वह वहाँ ठहरने के लिए तैयार हुई थीं।
गौतम ने कहा– ‘सम्पूर्ण भुवन को पवित्र करने वाली गंगे! नरक में गिरते हुए मुझ गौतम को पवित्र कर दो।’ भगवान शंकर ने भी कहा– ‘देवि! तुम इस मुनि को पवित्र करो और वैवस्वत मनु के अट्ठाइसवें कलि युग तक यहीं रहो।’ गंगा ने भगवान शिव से कहा कि ‘मैं अकेली यहाँ अपना निवास बनाने में असमर्थ हूँ। यदि भगवान महेश्वर अम्बिका और अपने अन्य गणों के साथ रहें तथा मैं सभी नदियों में श्रेष्ठ स्वीकार की जाऊँ, तभी इस धरातल पर रह सकती हूँ।’ भगवान शिव ने गंगा का अनुरोध स्वीकार करते हुए कहा कि ‘तुम यहाँ स्थित हो जाओ और मैं भी यहाँ रहूँगा।’ उसके बाद विविध देवता, ऋषि, अनेक तीर्थ तथा सम्मानित क्षेत्र भी वहाँ आ पहुँचे। उन सभी ने आदरपूर्वक गौतम, गंगा तथा भूतभावन शिव का पूजन किया और प्रसन्नतापूर्वक उनकी स्तुति करते हुए अपना सिर झुकाया। उनकी आराधना से प्रसन्न गंगा और गिरीश ने कहा – ‘श्रेष्ठ देवताओं! हम तुम लोगों का प्रिय करना चाहते हैं, इसलिए तुम वर माँगो।’
देवताओं ने कहा कि ‘यदि गंगा और भगवान शिव प्रसन्न हैं, तो हमारे और मनुष्यों का प्रिय करने के लिए आप लोग कृपापूर्वक यहीं निवास करें। गंगा ने उत्तर देते हुए कहा कि ‘मैं तो गौतम जी का पाप क्षालित कर वापस चली जाऊँगी, क्योंकि आपके समाज में मेरी विशेषता कैसे समझी जाएगी और उस विशेषता का पता कैसे लगेगा? सबका प्रिय करने हेतु आप सब लोग यहाँ क्यों नहीं रहते हैं? यदि आप लोग यहाँ मेरी विशेषता सिद्ध कर सकें, तो मैं अवश्य ही रहूँगी।’ देवताओं ने बताया कि जब सिंह राशि पर बृहस्पति जी का पदार्पण होगा, उस समय हम सभी आकर यहाँ निवास करेंगे। ग्यारह वर्षों तक लोगों का गो-पातक यहाँ क्षालित होगा, उस पापराशि को धोने के लिए हम लोग सरिताओं में श्रेष्ठ आप गंगा के पास आया करेंगे। महादेवी! समस्त लोगों पर अनुग्रह करते हुए हमारा प्रिय करने हेतु तुम्हें और भगवान शंकर को यहाँ पर नित्य निवास करना चाहिए।’
महापर्व
देवताओं ने आगे बताया कि ‘गुरु (बृहस्पति) जब तक सिंह राशि पर यहाँ विराजमान होंगे, तभी तक हम लोग यहाँ निवास करेंगे। उस समय हम लोग तुम्हारे जल में तीनों समय स्नान करके भगवान शंकर का दर्शन करते हुए शुद्ध होंगे।’ इस प्रकार ऋषि गौतम और देवताओं के द्वारा प्रार्थना करने पर भगवती गंगा और भगवान शिव वहाँ अवस्थित हो गये। तभी से वहाँ गंगा गौतमी (गोदावरी) के नाम से प्रसिद्ध हुईं और भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग भी त्र्यम्बक नाम से विख्यात हुआ। यह त्र्यम्बक ज्योतिर्लिंग समस्त पापों का क्षय करने वाला है। उसी दिन से जब-जब बृहस्पति का सिंह राशि पर पदार्पण होता है, तब-तब सभी तीर्थ, क्षेत्र, देवता, पुष्कर आदि सरोवर, गंगा आदि श्रेष्ठ नदियाँ, भगवान विष्णु आदि देवगण गौतमी के तट पर आते हैं और वहीं निवास करते हैं।
जितने दिनों तक वे गौतमी के तट पर निवास करते हैं, उतने दिनों तक उनके मूलस्थान पर कोई फल नहीं प्राप्त होता है। इस प्रकार गौतमी तट पर स्थित इस त्र्यम्बक ज्योतिर्लिंग का जो मनुष्य भक्तिभावपूर्वक दर्शन पूजन करता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। ऋषि गौतम द्वारा पूजित यह त्र्यम्बक ज्योतिर्लिंग इस लोक में मनुष्य के समस्त अभीष्ट फलों को प्रदान करता है और परलोक में उत्तम मोक्ष पद को देने वाला है–
ज्योतिर्लिंगमिदं प्रोक्तं त्र्यम्बकं नाम विश्रुतम्। स्थितं तटे हि गौतम्या महापातकनाशनम्।। य: पश्येद्भक्तितो ज्योतिर्लिंगं त्र्यम्बकनामकम्। पूजयेत्प्रणमेत्सतुत्वा सर्वपापै: प्रमुच्यते।। ज्योतिर्लिंग त्र्यम्बकं हि पूजितं गौतमेन ह। सर्वकामप्रदं चात्र परत्र परमुक्तिदम्।।
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gyanyognet-blog · 7 years
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सूर्य नमस्कार के फायदे और 3 टिप्स
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सूर्य नमस्कार के फायदे और 3 टिप्स
सूर्य नमस्कार सबसे जाने-माने योग अभ्यासों में से एक है। इसका प्रभाव पूरे शरीर पर महसूस किया जा सकता है। लेकिन क्या आध्यात्मिक साधना करने वालों के लिए भी ये फायदेमंद है? क्या यह मन और विचारों पर भी प्रभाव डाल सकता है?
सद्‌गुरु:
आम तौर पर सूर्य नमस्कार को कसरत माना जाता है जो आपकी पीठ, आपकी मांसपेशियों, वगैरह को मजबूत करता है। हां, वह यह सब और इसके अलावा भी बहुत कुछ करता है। यह शारीरिक तंत्र के लिए एक संपूर्ण अभ्यास है – व्यायाम का एक व्यापक रूप जिसके लिए किसी उपकरण की जरूरत नहीं होती। मगर सबसे बढ़कर यह एक महत्वपूर्ण उपकरण है जो इंसान को अपने जीवन के बाध्यकारी चक्रों और स्वरूपों से आजाद होने में समर्थ बनाता है।
सूर्य नमस्कार : शरीर को एक सोपान बनाना
सूर्य नमस्कार का मतलब है, सुबह में सूर्य के आगे झुकना। सूर्य इस धरती के लिए जीवन का स्रोत है। आप जो कुछ खाते हैं, पीते हैं और सांस से अंदर लेते हैं, उसमें सूर्य का एक तत्व होता है। जब आप यह सीख लेते हैं कि सूर्य को बेहतर रूप में आत्मसात कैसे करना है, उसे ग्रहण करना और अपने शरीर का एक हिस्सा बनाना सीखते हैं, तभी आप इस प्रक्रिया से वाकई लाभ उठा सकते हैं।
भौतिक शरीर उच्चतर संभावनाओं के लिए एक शानदार सोपान है मगर ज्यादातर लोगों के लिए यह एक रोड़े की तरह काम करता है। शरीर की बाध्यताएं उन्हें आध्यात्मिक पथ पर आगे नहीं जाने देतीं। सौर चक्र के साथ तालमेल में होने से संतुलन और ग्रहणशीलता मिलती है। यह शरीर को उस बिंदु तक ले जाने का एक माध्यम है, जहां वह कोई बाधा नहीं रह जाता।
  सूर्य नमस्कार : सौर चक्र के साथ तालमेल
यह शारीरिक तंत्र के लिए एक संपूर्ण अभ्यास है – व्यायाम का एक व्यापक रूप जिसके लिए किसी उपकरण की जरूरत नहीं होती।
सूर्य नमस्कार का मकसद मुख्य रूप से आपके अंदर एक ऐसा आयाम निर्मित करना है जहां आपके भौतिक चक्र सूर्य के चक्रों के तालमेल में होते हैं। यह चक्र लगभग बारह साल और तीन महीने का होता है। यह कोई संयोग नहीं है, बल्कि जानबूझकर इसमें बारह मुद्राएं या बारह आसन बनाए गए हैं। अगर आपके तंत्र में सक्रियता और तैयारी का एक निश्चित स्तर है और वह ग्रहणशीलता की एक बेहतर अवस्था में है तो कुदरती तौर पर आपका चक्र सौर चक्र के तालमेल में होगा।
युवा स्त्रियों को एक लाभ होता है कि वे चंद्र चक्रों के भी तालमेल में होती हैं। यह एक शानदार संभावना है कि आपका शरीर सौर और चंद्र दोनों चक्रों से जुड़ा हुआ है। कुदरत ने एक स्त्री को यह सुविधा दी है क्योंकि उसे मानव जाति को बढ़ाने की अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी गई है। इसलिए, उसे कुछ अतिरिक्त सुविधाएं दी गई हैं। मगर बहुत से लोगों को यह पता नहीं होता कि उस संबंध से उत्पन्न अतिरिक्त ऊर्जा को कैसे संभालें, इसलिए वे इसे एक अभिशाप की तरह, बल्कि एक तरह का पागलपन मानते हैं। ‘लूनर’ (चंद्रमा संबंधी) से ‘लूनी’ (विक्षिप्त) बनना इसका प्रमाण है।
सूर्य नमस्कार का महत्त्व
चंद्र चक्र, जो सबसे छोटा चक्र (28 दिन का चक्र) और सौर चक्र, जो बारह साल से अधिक का होता है, दोनों के बीच तमाम दूसरे तरह के चक्र होते हैं। चक्रीय या साइक्लिकल शब्द का अर्थ है दोहराव। दोहराव का मतलब है कि किसी रूप में वह विवशता पैदा करता है। विवशता का मतलब है कि वह चेतनता के लिए अनुकूल नहीं है। अगर आप बहुत बाध्य होंगे, तो आप देखेंगे कि स्थितियां, अनुभव, विचार और भावनाएं सभी आवर्ती होंगे यानि बार-बार आपके पास लौट कर आएंगे। छह या अठारह महीने, तीन साल या छह साल में वे एक बार आपके पास लौट कर आते हैं। अगर आप सिर्फ मुड़ कर देखें, तो आप इस पर ध्यान दे सकते हैं।
योग के अभ्यास के बाद कम से कम डेढ़ घंटे बाद स्नान करें – तीन घंटे उससे भी बेहतर होंगे। पसीने के साथ दो से तीन घंटे न नहाना गंध के मामले में थोड़ा मुश्किल हो सकता है – इसलिए बस दूसरों से दूर रहें!
अगर वे बारह साल से ज्यादा समय में एक बार लौटते हैं, तो इसका मतलब है कि आपका शरीर ग्रहणशीलता और संतुलन की अच्छी अवस्था में है। सूर्य नमस्कार एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो इसे संभव बनाती है। साधना हमेशा चक्र को तोड़ने के लिए होती है ताकि आपके शरीर में और बाध्यता न हो और आपके पास चेतनता के लिए सही आधार हो।
चक्रीय गति या तंत्रों की आवर्ती प्रकृति, जिसे हम पारंपरिक रूप से संसार के नाम से जानते हैं, जीवन के निर्माण के लिए जरू���ी स्थिरता लाती है। अगर यह सब बेतरतीब होता, तो एक स्थिर जीवन का निर्माण संभव नहीं होता। इसलिए सौर चक्र और व्यक्ति के लिए चक्रीय प्रकृति में जमे रहना जीवन की दृढ़ता और स्थिरता है। मगर एक बार जब जीवन विकास के उस स्तर पर पहुंच जाता है, जहां इंसान पहुंच चुका है, तो सिर्फ स्थिरता नहीं, बल्कि परे जाने की इच्छा स्वाभाविक रूप से पैदा होती है। अब यह इंसान पर निर्भर करता है कि वह या तो चक्रीय प्रकृति में फंसा रहे जो स्थिर भौतिक अस्तित्व का आधार है, या इन चक्रों को भौतिक कल्याण के लिए इस्तेमाल करे और उन पर सवार होकर चक्रीय से परे चला जाए।
सही तरीकों से बढ़ा सकते हैं सूर्य नमस्कार के फायदे
सूर्य नमस्कार के लाभों को बढ़ाना
हठ योग का मकसद एक ऐसे शरीर का निर्माण है जो आपके जीवन में बाधा न हो बल्कि अपनी चरम संभावना में विकसित होने की ओर एक सोपान हो। अपने शरीर को इसके लिए तैयार करने के लिए आप कुछ सरल चीजें कर सकते हैं और अपने अभ्यास से अधिकतम लाभ पा सकते हैं।
सूर्य नमस्कार से पहले ठंडे पानी से स्नान करें
अभ्यास शुरू करने से पहले, सामान्य तापमान से थोड़े ठंडे पानी से स्नान करें। अगर एक खास मात्रा में पानी आपके शरीर के ऊपर से बहता है या आपका शरीर सामान्य तापमान से कुछ ठंडे पानी में डूबा हुआ रहता है, तो एपथिलियल कोशिकाएं संकुचित होती हैं और कोशिकाओं के बीच का अंतर बढ़ता है। अगर आप गुनगुने या गरम पानी का इस्तेमाल करते हैं, तो कोशिकाओं के रोमछिद्र खुल जाते हैं और पानी को सोख लेते हैं, हम ऐसा नहीं चाहते। योग के अभ्यास के लिए यह बहुत जरूरी है कि कोशिकाएं संकुचित हों और कोशिकाओं के बीच का अंतर खुल जाए क्योंकि हम शरीर की कोशिका संरचना को ऊर्जा के एक अलग आयाम से सक्रिय करना चाहते हैं। अगर कोशिकाएं संकुचित होकर बीच में जगह बनाती हैं, तो योग का अभ्यास कोशिका की संरचना को ऊर्जावान बनाता है।
कुछ लोग दूसरे लोगों के मुकाबले ज्यादा जीवंत और सक्रिय इसलिए लगते हैं क्योंकि उनकी कोशिकाओं का ढांचा ज्यादा ऊर्जावान होता है। जब वह ऊर्जा से सक्रिय होता है, तो वह बहुत लंबे समय तक ताजगीभरा रहता है। यह करने का एक तरीका है, हठ योग। दक्षिण भारत में, नल का पानी आम तौर पर सामान्य तापमान से थोड़ा ज्यादा ठंडा होता है। अगर आप एक मध्यम तापमान वाली जलवायु में रहते हैं, तो नल का पानी ज्यादा ठंडा हो सकता है। सामान्य तापमान से तीन से पांच डिग्री सेंटीग्रेड तापमान आदर्श होगा। सामान्य से दस डिग्री सेंटीग्रेड तक कम तापमान चल सकता है – पानी उससे ज्यादा ठंडा नहीं होना चाहिए।
सूर्य नमस्कार के बाद पसीने को त्वचा में मलें
चाहे आप आसन कर रहे हों, सूर्य नमस्कार या सूर्य क्रिया – अगर आपको पसीना आए, तो उस पसीने को तौलिये से न पोंछें – हमेशा उसे वापस मल दें, कम से कम अपने शरीर के खुले हिस्सों में। अगर आप पसीने को पोंछ देते हैं तो आप उस ऊर्जा को बहा देते हैं, जो आपने अभ्यास से पैदा की है। पानी में याददाश्त और ऊर्जा को धारण करने की क्षमता होती है। इसीलिए आपको तौलिये से पसीना नहीं पोंछना चाहिए, पानी नहीं पीना चाहिए या अभ्यास के दौरान शौचालय नहीं जाना चाहिए, जब तक कि उसे अनिवार्य बना देने वाले विशेष हालात न पैदा हों।
और योग के अभ्यास के बाद कम से कम डेढ़ घंटे बाद स्नान करें – तीन घंटे उससे भी बेहतर होंगे। पसीने के साथ दो से तीन घंटे न नहाना गंध के मामले में थोड़ा मुश्किल हो सकता है – इसलिए बस दूसरों से दूर रहें!
सही मात्रा में पानी पिएं
योग के अभ्यास के बाद स्नान से पहले कम से कम डेढ़ घंटे इंतजार करें।
सिर्फ उतना पानी पीना सीखें, जितने की शरीर को जरूरत है। जब तक कि आप रेगिस्तान में न हों या आपकी आदतें ऐसी न हों जिनसे आपके शरीर में पानी की कमी हो जाती है – जैसे कैफीन और निकोटिन का अत्यधिक सेवन – तब तक लगातार पानी के घूंट भरने की जरूरत नहीं है। शरीर का 70 फीसदी हिस्सा पानी है। शरीर जानता है कि उसे खुद को कैसे ठीक रखना है।
अगर आप सिर्फ मांसपेशियां मजबूत करने और शारीरिक मजबूती के लिए इस प्रक्रिया का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो आपको सूर्य शक्ति करना चाहिए। अगर आप शारीरिक तौर पर फिट होना चाहते हैं, मगर उसमें थोड़ा आध्यात्मिक पुट भी चाहते हैं, तो आपको सूर्य नमस्कार करना चाहिए।
अगर आप अपनी प्यास के मुताबिक और 10 फीसदी अतिरिक्त पानी पीते हैं, तो यह काफी होगा। मसलन – अगर दो घूंट पानी के बाद आपकी प्यास बुझ जाती है तो 10 फीसदी पानी और पी लें। इससे आपके शरीर की पानी की जरूरत पूरी हो जाएगी। बस अगर आप धूप में हैं या पहाड़ पर चढ़ाई कर रहे हैं, आपको बहुत पसीना आ रहा है और शरीर से तेजी से पानी निकल रहा है, तो आपको ज्यादा पानी पीने की जरूरत है। तब नहीं, जब आप एक छत के नीचे योग कर रहे हों।
जैसा कि मैंने पहले ही कहा, जितना हो सके, पसीने को वापस शरीर में मल लें मगर आपको हर समय ऐसा करने की जरूरत नहीं है। वह थोड़ा टपक सकता है – बस तौलिये का इस्तेमाल न करें। उसे वापस शरीर में जाने दें क्योंकि हम ऊर्जा को बहाना नहीं चाहते, हम उसे बढ़ाना चाहते हैं।
सूर्य नमस्कार और सूर्य क्रिया
अगर कोई व्यक्ति सूर्य नमस्कार के द्वारा एक तरह की स्थिरता और शरीर पर थोड़ा अधिकार पा लेता है, तो उसे सूर्य क्रिया नामक अधिक शक्तिशाली और आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण प्रक्रिया से परिचित कराया जा सकता है। सूर्य क्रिया मूलभूत प्रक्रिया है। सूर्य नमस्कार, सूर्य क्रिया का अधिक आसान और सरल रूप है, दूसरे शब्दों में वह सूर्य क्रिया का ‘देहाती भाई’ है। सूर्य शक्ति नामक एक और प्रक्रिया है, जो और भी दूर का रिश्तेदार है। अगर आप सिर्फ मांसपेशियां मजबूत करने और शारीरिक मजबूती के लिए इस प्रक्रिया का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो आपको सूर्य शक्ति करना चाहिए। अगर आप शारीरिक तौर पर फिट होना चाहते हैं, मगर उसमें थोड़ा आध्यात्मिक पुट भी चाहते हैं, तो आपको सूर्य नमस्कार करना चाहिए। मगर ��दि आप एक शक्तिशाली आध्यात्मिक प्रक्रिया चाहते हैं, तो आपको सूर्य ��्रिया करना चाहिए।
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chaitanyabharatnews · 5 years
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ट्वीटर पर शख्स ने पूछा- आपकी इस तस्वीर पर मीम बनेंगे, पीएम मोदी ने दिया ये जवाब
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चैतन्य भारत न्यूज नई दिल्ली. सोशल मीडिया पर आए दिन किसी नेता या अभिनेता के मीम वायरल होते रहते हैं। कई बार तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भी मीम सोशल मीडिया पर वायरल हुए हैं। लेकिन इस बार पहली दफा ऐसा हुआ है जब पीएम मोदी ने किसी सोशल मीडिया यूजर को जवाब दिया हो। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); यह है पूरा मामला दरअसल, गुरुवार को साल 2019 का आखिरी सूर्य ग्रहण सुबह 8 बजे लगा था जो 3 घंटे तक चला। देश भर में लोग सूर्य ग्रहण देख रहे थे। ऐसे में पीएम मोदी ने भी केरल के कोझिकोड शहर से यह सूर्य ग्रहण देखा और फिर इसकी तस्वीरें अपने ट्वीटर अकाउंट से शेयर की। उन्होंने अपनी तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए कैप्शन लिखा कि, 'दुर्भाग्यवश, घने बादलों की वजह से मैं सूर्य ग्रहण नहीं देख पाया, लेकिन कोझिकोड में मैंने उसकी एक झलक देखी।' Like many Indians, I was enthusiastic about #solareclipse2019. Unfortunately, I could not see the Sun due to cloud cover but I did catch glimpses of the eclipse in Kozhikode and other parts on live stream. Also enriched my knowledge on the subject by interacting with experts. pic.twitter.com/EI1dcIWRIz — Narendra Modi (@narendramodi) December 26, 2019 पीएम मोदी ने दिया जवाब उन्होंने एक और तस्वीर के साथ यह भी कैप्शन लिखा कि, 'सूर्य ग्रहण का बाकी हिस्सा मैंने लाइव स्ट्रीम के जरिए देखा। साथ ही विशेषज्ञों के साथ बातचीत करके इस विषय में जानकारी भी हासिल की।' पीएम मोदी की तस्वीरें वायरल होने के बाद एक ट्वीटर यूजर ने उसे शेयर कर कहा कि, 'अब इस पर मीम बनेंगे।' इस शख्स को जवाब देने में पीएम मोदी भी पीछे नहीं रहे। मोदी ने शख्स के ट्वीट को रीट्वीट करते हुए लिखा कि, 'आपका स्वागत है एंजॉय कीजिए।' Most welcome....enjoy :) https://t.co/uSFlDp0Ogm — Narendra Modi (@narendramodi) December 26, 2019 साल का आखिरी सूर्यग्रहण बता दें कि साल 2019 के इस आखिरी सूर्य ग्रहण की शुरुआत भारत में सुबह 8 बजकर 4 मिनट पर हुई। भारत में यह सूर्य ग्रहण बेंगलुरु, चेन्नई, मुंबई, हैदराबाद, अहमदाबाद, दिल्ली और कोलकाता समेत कई जगहों पर देखा गया। इसके अलावा ये ग्रहण सउदी अरब, कतर, यूएई, ओमान, श्रीलंका, मलेशिया , इंडोनेशिया, सिंगापुर में भी देखने को मिला। ये भी पढ़े... भारत में दिखा सूर्य ग्रहण का अद्भुत नजारा, नासा ने जारी की चेतावनी आज है साल का आखिरी सूर्य ग्रहण, जानिए क्या होता है ग्रहण और इसे देखने के नियम 26 दिसंबर को है साल का आखिरी सूर्यग्रहण, 12 घंटे पहले शुरू हो जाएगा सूतक काल Read the full article
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moneycontrolnews · 5 years
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जीवन मंत्र डेस्क. नया साल 2020 शुरू हो गया है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार हर चार साल में एक लीप इयर होता है। 2020 भी ऐसा ही एक लीप वर्ष होगा, इसमें फरवरी माह में 28 नहीं, बल्कि 29 दिन का रहेगा। नए साल की शुरुआत बुधवार से होगी और अंत गुरुवार को होगा। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार 2020 में ज्योतिष के नजरिए से कई बड़ी घटनाएं होने वाली हैं। इस साल सूर्य ग्रहण के साथ ही शनि, राहु-केतु का राशि परिवर्तन होगा। इस बार कार्तिक मास की अमावस्या शनिवार को रहेगी, इस वजह से दीपावली शनिवार को मनाई जाएगी। जानिए 2020 से जुड़ी खास बातें... सवाल- इस साल कितने सूर्य ग्रहण होंगे और क्या ये भारत में दिखाई देंगे? जवाब- 2020 में दो सूर्य ग्रहण होंगे, जिसमें से एक ही भारत में दिखाई देगा। भारत में दिखाई देने वाला सूर्य ग्रहण 21 जून 2020 को होगा। भारत में ये ग्रहण खंडग्रास के रूप में दिखेगा। 21 जून की सुबह 10.13 बजे से शुरू होकर दोपहर 1.39 तक रहेगा। इसका सूतक भारत में रहेगा। इसके बाद दूसरा सूर्य ग्रहण 14 दिसंबर को होगा। ये ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा। इस वजह से भारत में इस ग्रहण का सूतक नहीं रहेगा। सवाल- इस साल शनि राशि कब बदलेगा और किन राशियों पर ढय्या-साढ़ेसाती शुरू होगी? जवाब- जनवरी 2020 में 23-24 तारीख की मध्य रात्रि में शनि धनु राशि से निकलकर मकर राशि मे�� प्रवेश करेगा। इस राशि परिवर्तन के संबंध में पंचांग भेद भी हैं। मकर शनि की ही राशि है। अब वृश्चिक राशि से साढ़ेसाती उतर जाएगी और कुंभ राशि पर शुरू हो जाएगी। धनु राशि पर साढ़ेसाती का अंतिम ढय्या रहेगा और मकर राशि पर दूसरा ढय्या रहेगा। वृषभ और कन्या राशि से शनि का ढय्या खत्म होगा। मकर राशि में शनि आने से मिथुन और तुला राशि पर ढय्या शुरू हो जाएगा। 11 मई से 29 सितंबर तक शनि वक्री रहेगा। ये ग्रह मकर राशि में मई 2022 के अंत तक रहेगा। सवाल- 2020 में शिवरात्रि कब मनाई जाएगी? जवाब- इस साल फरवरी में शुक्रवार, 21 तारीख को शिवरात्रि मनाई जाएगी। पं. शर्मा के अनुसार महाशिवरात्रि रात्रि का पर्व है और चतुर्दशी तिथि पर मनाया जाता है। 21 फरवरी की शाम तक त्रयोदशी रहेगी और रात्री में चतुर्दशी तिथि रहेगी। अगले दिन 22 फरवरी को दिनभर चतुर्दशी रहेगी, लेकिन रात में अमावस्या तिथि शुरू हो जाएगी। इस कारण 21 फरवरी को ही शिवरात्रि पर्व मनाया जाएगा। सवाल- गुरु का राशि परिवर्तन कब होगा और ये ग्रह कब से कब तक वक्री रहेगा? जवाब- इस साल गुरु ग्रह 3 बार राशि बदलेगा। ये ग्रह 29 मार्च को धनु से मकर राशि में प्रवेश करेगा। 14 मई को ये वक्री हो जाएगा। 29 जून को वक्री गुरु धनु राशि में जाएगा। 13 सितंबर को गुरु मार्गी होगा। 20 नवंबर को फिर से मकर राशि में प्रवेश करेगा। सवाल- 2020 में होली कब है? जवाब- 2020 में 9 मार्च की रात होलिका दहन होगा और 10 मार्च को होली खेली जाएगी। इस साल रंगपंचमी शनिवार को आएगी। सवाल- हिन्दी नववर्ष कब से शुरू होगा और इस साल कौन सा संवत रहेगा? जवाब- 25 मार्च 2020 बुधवार से नया हिन्दी वर्ष शुरू होगा। इस साल संवत् 2077 रहेगा। बुधवार, 25 मार्च से ही देवी पूजा का महापर्व चैत्र नवरात्रि भी शुरू होगी। संवत् 2077 के स्वामी बुध और मंत्री चंद्रदेव रहेंगे। चंद्र, बुध के पिता हैं, लेकिन बुध चंद्र से शत्रु का भाव रखता है। गुरुवार, 2 अप्रैल को रामनवमी मनाई जाएगी। सवाल- ज्योतिष के नजरिए से नए साल में बारिश कैसी रहेगी? जवाब- इस साल जून में वर्षा का आगमन हो जाएगा। इस साल देश में पुष्कर नामक मेघ वर्षा करेंगे। बुध संवत् 2077 का स्वामी है, इस वजह से अच्छी बारिश होने के योग हैं। इस साल कुल 20 अच्छी बारिश होने के योग हैं और शीतकाल में 4 बार बारीश हो सकती है। सवाल- सावन माह कब से कब तक रहेगा और इस साल कितने सावन सोमवार आएंगे? जवाब- 2020 में सोमवार, 6 जुलाई से सावन माह शुरू होगा और इस माह का अंत सोमवार, 3 अगस्त को श्रावणी पूर्णिमा पर होगा। इस दिन रक्षाबंधन मनाया जाएगा। इस साल सावन माह में 5 सोमवार आएंगे। सवाल- 2020 लीप इयर है तो क्या इस साल हिन्दी पंचांग में भी अधिकमास आएगा? जवाब- संवत् 2077 में अधिकमास रहेगा। 18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक आश्विन मास का अधिकमास होगा। इससे पहले 2016 में अधिकमास आया था। अधिकमास को पूजा-पाठ के बहुत ही पवित्र माना गया है। इस माह में दान-धर्म, कथा श्रवण करना श्रेष्ठ रहता है। सवाल- शारदीय नवरात्र कब शुरू होंगे? जवाब- शनिवार, 17 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि शुरू होगी। 25 को दुर्गानवमी और 26 अक्टूबर को दशहरा मनाया जाएगा। सवाल- राहु-केतु कब राशि बदलेंगे? जवाब- इस राशि राहु-केतु का भी राशि परिवर्तन होगा। ये ग्रह 18 माह में राशि बदलते हैं और हमेशा वक्री रहते हैं। मंगलवार, 22 सितंबर की रात राहु और केतु भी राशि बदलेंगे। राहु राशि बदलकर मिथुन से वृषभ में प्रवेश करेगा और केतु राशि बदलकर धनु से वृश्चिक में जाएगा। वृषभ राहु की मित्र राशि और वृश्चिक केतु की मित्र राशि है। सवाल- इस साल दीपावली कब मनाई जाएगी? जवाब- इस वर्ष दीपावली शनिवार, 14 नवंबर 2020 को मनाई जाएगी। कार्तिक मास की अमावस्या शनिवार को आने से ये शनिश्चरी अमावस्या रहेगी। शनिवार को दीपावली आना व्यापार के नजरिए से चिंताजनक हो सकती है। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today Solar eclipse and Saturn, Rahu-Ketu will change in zodiac sign in 2020
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moneycontrolnews · 5 years
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जीवन मंत्र डेस्क. नया साल 2020 शुरू हो गया है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार हर चार साल में एक लीप इयर होता है। 2020 भी ऐसा ही एक लीप वर्ष होगा, इसमें फरवरी माह में 28 नहीं, बल्कि 29 दिन का रहेगा। नए साल की शुरुआत बुधवार से होगी और अंत गुरुवार को होगा। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार 2020 में ज्योतिष के नजरिए से कई बड़ी घटनाएं होने वाली हैं। इस साल सूर्य ग्रहण के साथ ही शनि, राहु-केतु का राशि परिवर्तन होगा। इस बार कार्तिक मास की अमावस्या शनिवार को रहेगी, इस वजह से दीपावली शनिवार को मनाई जाएगी। जानिए 2020 से जुड़ी खास बातें... सवाल- इस साल कितने सूर्य ग्रहण होंगे और क्या ये भारत में दिखाई देंगे? जवाब- 2020 में दो सूर्य ग्रहण होंगे, जिसमें से एक ही भारत में दिखाई देगा। इस साल एक भी चंद्र ग्रहण नहीं होगा। भारत में दिखाई देने वाला सूर्य ग्रहण 21 जून 2020 को होगा। भारत में ये ग्रहण खंडग्रास के रूप में दिखेगा। 21 जून की सुबह 10.13 बजे से शुरू होकर दोपहर 1.39 तक रहेगा। इसका सूतक भारत में रहेगा। इसके बाद दूसरा सूर्य ग्रहण 14 दिसंबर को होगा। ये ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा। इस वजह से भारत में इस ग्रहण का सूतक नहीं रहेगा। सवाल- इस साल शनि राशि कब बदलेगा और किन राशियों पर ढय्या-साढ़ेसाती शुरू होगी? जवाब- जनवरी 2020 में 23-24 तारीख की मध्य रात्रि में शनि धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेगा। इस राशि परिवर्तन के संबंध में पंचांग भेद भी हैं। मकर शनि की ही राशि है। अब वृश्चिक राशि से साढ़ेसाती उतर जाएगी और कुंभ राशि पर शुरू हो जाएगी। धनु राशि पर साढ़ेसाती का अंतिम ढय्या रहेगा और मकर राशि पर दूसरा ढय्या रहेगा। वृषभ और कन्या राशि से शनि का ढय्या खत्म होगा। मकर राशि में शनि आने से मिथुन और तुला राशि पर ढय्या शुरू हो जाएगा। 11 मई से 29 सितंबर तक शनि वक्री रहेगा। ये ग्रह मकर राशि में मई 2022 के अंत तक रहेगा। सवाल- 2020 में शिवरात्रि कब मनाई जाएगी? जवाब- इस साल फरवरी में शुक्रवार, 21 तारीख को शिवरात्रि मनाई जाएगी। पं. शर्मा के अनुसार महाशिवरात्रि रात्रि का पर्व है और चतुर्दशी तिथि पर मनाया जाता है। 21 फरवरी की शाम तक त्रयोदशी रहेगी और रात्री में चतुर्दशी तिथि रहेगी। अगले दिन 22 फरवरी को दिनभर चतुर्दशी रहेगी, लेकिन रात में अमावस्या तिथि शुरू हो जाएगी। इस कारण 21 फरवरी को ही शिवरात्रि पर्व मनाया जाएगा। सवाल- गुरु का राशि परिवर्तन कब होगा और ये ग्रह कब से कब तक वक्री रहेगा? जवाब- इस साल गुरु ग्रह 3 बार राशि बदलेगा। ये ग्रह 29 मार्च को धनु से मकर राशि में प्रवेश करेगा। 14 मई को ये वक्री हो जाएगा। 29 जून को वक्री गुरु धनु राशि में जाएगा। 13 सितंबर को गुरु मार्गी होगा। 20 नवंबर को फिर से मकर राशि में प्रवेश करेगा। सवाल- 2020 में होली कब है? जवाब- 2020 में 9 मार्च की रात होलिका दहन होगा और 10 मार्च को होली खेली जाएगी। इस साल रंगपंचमी शनिवार को आएगी। सवाल- हिन्दी नववर्ष कब से शुरू होगा और इस साल कौन सा संवत रहेगा? जवाब- 25 मार्च 2020 बुधवार से नया हिन्दी वर्ष शुरू होगा। इस साल संवत् 2077 रहेगा। बुधवार, 25 मार्च से ही देवी पूजा का महापर्व चैत्र नवरात्रि भी शुरू होगी। संवत् 2077 के स्वामी बुध और मंत्री चंद्रदेव रहेंगे। चंद्र, बुध के पिता हैं, लेकिन बुध चंद्र से शत्रु का भाव रखता है। गुरुवार, 2 अप्रैल को रामनवमी मनाई जाएगी। सवाल- ज्योतिष के नजरिए से नए साल में बारिश कैसी रहेगी? जवाब- इस साल जून में वर्षा का आगमन हो जाएगा। इस साल देश में पुष्कर नामक मेघ वर्षा करेंगे। बुध संवत् 2077 का स्वामी है, इस वजह से अच्छी बारिश होने के योग हैं। इस साल कुल 20 अच्छी बारिश होने के योग हैं और शीतकाल में 4 बार बारीश हो सकती है। सवाल- सावन माह कब से कब तक रहेगा और इस साल कितने सावन सोमवार आएंगे? जवाब- 2020 में सोमवार, 6 जुलाई से सावन माह शुरू होगा और इस माह का अंत सोमवार, 3 अगस्त को श्रावणी पूर्णिमा पर होगा। इस दिन रक्षाबंधन मनाया जाएगा। इस साल सावन माह में 5 सोमवार आएंगे। सवाल- 2020 लीप इयर है तो क्या इस साल हिन्दी पंचांग में भी अधिकमास आएगा? जवाब- संवत् 2077 में अधिकमास रहेगा। 18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक आश्विन मास का अधिकमास होगा। इससे पहले 2016 में अधिकमास आया था। अधिकमास को पूजा-पाठ के बहुत ही पवित्र माना गया है। इस माह में दान-धर्म, कथा श्रवण करना श्रेष्ठ रहता है। सवाल- शारदीय नवरात्र कब शुरू होंगे? जवाब- शनिवार, 17 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि शुरू होगी। 25 को दुर्गानवमी और 26 अक्टूबर को दशहरा मनाया जाएगा। सवाल- राहु-केतु कब राशि बदलेंगे? जवाब- इस राशि राहु-केतु का भी राशि परिवर्तन होगा। ये ग्रह 18 माह में राशि बदलते हैं और हमेशा वक्री रहते हैं। मंगलवार, 22 सितंबर की रात राहु और केतु भी राशि बदलेंगे। राहु राशि बदलकर मिथुन से वृषभ में प्रवेश करेगा और केतु राशि बदलकर धनु से वृश्चिक में जाएगा। वृषभ राहु की मित्र राशि और वृश्चिक केतु की मित्र राशि है। सवाल- इस साल दीपावली कब मनाई जाएगी? जवाब- इस वर्ष दीपावली शनिवार, 14 नवंबर 2020 को मनाई जाएगी। कार्तिक मास की अमावस्या शनिवार को आने से ये शनिश्चरी अमावस्या रहेगी। शनिवार को दीपावली आना व्यापार के नजरिए से चिंताजनक हो सकती है। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today Solar eclipse and Saturn, Rahu-Ketu will change in zodiac sign in 2020
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