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#हार्वेस्टर मशीन की कीमत
myfieldking · 6 months
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कंबाइन हार्वेस्टर मशीन की कीमत: फील्डकिंग द्वारा प्रस्तुत एक कृषि उपकरण
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कृषि उत्पादन में नवाचार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा कृषि उपकरणों का उपयोग है। इन उपकरणों में कंबाइन हार्वेस्टर एक उच्च प्रदर्शन और ऊर्जावान उपकरण है जो फसलों को कटाई और अलग करने में मदद करता है। यह उपकरण फील्डकिंग द्वारा प्रस्तुत किया जाता है, जो कृषि क्षेत्र में अपनी उच्च गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध है।
कंबाइन हार्वेस्टर का उपयोग किसानों को फसलों की कटाई के लिए आसान और तेज़ तरीके से करने में मदद करता है। यह उपकरण विभिन्न फसलों की कटाई के लिए उपयुक्त है, जैसे कि धान, गेहूं, मक्का, जौ, दालें और सोयाबीन। इसके साथ, यह हार्वेस्टर फसलों की कटाई को तेजी से करता है, जिससे किसानों का समय और मेहनत बचता है। अगर आप हार्वेस्टर मशीन की कीमत की जानकारी लेना चाहते हैं तो हमारी टीम से कांटेक्ट कर सकते हैं। 
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फील्डकिंग कंबाइन हार्वेस्टर की विशेषताएँ उसके ऊर्जावान डिज़ाइन और प्रदर्शन पर ध्यान केंद्रित करती हैं। इसके एक्सट्रा-लार्ज ग्रेन टैंक की क्षमता 1600 लीटर होती है, जिससे किसानों को अधिक प्रोडक्टिविटी के साथ अधिक समय बचाने में मदद मिलती है। इसके अक्सियल फ्लो थ्रेशर तकनीक की वजह से अनाज का कम नुकसान होता है और हार्वेस्टिंग प्रक्रिया में अनाज अधिक साफ और अधिक समृद्ध होता है।
फील्डकिंग कंबाइन हार्वेस्टर भारत के किसानों के लिए एक वास्तविक उपकरण है.
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merikhetisblog · 3 years
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धान की फसल काटने के उपकरण, छोटे औजार से लेकर बड़ी मशीन तक की जानकारी
हमारे देश के बड़े भूभाग में धान की फसल की जाती है। पूर्वोत्तर और दक्षिण भारत में तो धान की ही मुख्य फसल होती है। धान की फसल की बुआई, रोपाई और कटाई में बहुत से श्रमिकों की आवश्यकता होती है। किसान भाइयों आज का समय पैसे कमाने का समय है। प्रत्येक व्यक्ति अपने परिश्रम का अधिक से अधिक मेहनताना लेना चाहता है। इसके लिए आज के श्रमिकों ने खेती किसानी का काम छोड़ करन परदेश जाकर कारखानों में काम करना शुरू कर दिया है। इस वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में श्रमिकों का अभाव हो गया है। इस वजह से खेती किसानी करना बहुत मुश्किल होता जा रह है। जो श्रमिक गांवों में बचे रह गये हैं वे भी अपने अन्य भाइयों के समान औद्योगिक श्रमिकों की तरह मेहनताना मांगते हैं। इससे खेती की लागत उतनी अधिक बढ़ जाती है जितना उत्पादन नहीं हो पाता है। इसलिये किसान भाई वो काम नहीं कर पाते हैं।
Content
समय पर कटाई से बच जाता है नुकसान
हंसिया (Sickle)
ब्रश कटर (Brush Cutter)
क्या होता है ब्रश कटर
कम्बाइंट हार्वेस्टर (Combined Harvester Machine)
क्या होता है कम्बाइंड हार्वेस्टर कटर
रीपर मशीन (Reaper Machine)
क्या होता है रीपर मशीन
. हाथ से चलने वाली मशीन (हैंड रीपर). छोटे वाहन वाली मशीन (सेल्फ प्रॉपलर मशीन). ट्रैक्टर से चलने वाली मशीन (ट्रैक्टर माउंटेड)समय पर कटाई से बच जाता है नुकसान
खेती किसानी का काम समय से होना चाहिये तभी आपको अधिक उत्पादन मिल सकता है। श्रमिकों के अभाव में किसान भाइयों की खेती प्रभावित होती है। कभी लेट बुआई होती है तो कभी निराई गुड़ाई नहीं हो पाती है। कभी सिंचाई देर से हो पाती है अथवा फसल की आवश्यकतानुसार सिंचाई नहीं हो पाती है। कीट व रोग के प्रकोप से नियंत्रण में भी असर पड़ता है। कुल मिलाकर श्रमिकों के बिना खेती पूरी तरह से प्रभावित होती है। ऐसी स्थिति में किसान भाइयों को खेती के आधुनिक तरीके और आधुनिक उपकरणों और मशीनों का इस्तेमाल करना चाहिये। इन मशीनों व उपकरणों से मानव श्रम से अधिक और बहुत ही साफ सुथरा काम हो जाता है। लागत  व समय भी कम लगता है। आइये हम आज धान की फसल को काटने वाली छोटे उपकरण से लेकर बड़ी मशीनों तक की चर्चा करेंगे। जो इस प्रकार है:-
हंसिया या हंसुआ: (Sickle)
यह किसानों का पारंपरिक कटाई का औजार, उपकरण या हथियार है। इससे किसी प्रकार की फसल की कटाई की जा सकती है। धान की फसल की कटाई इसी हथियार से की जाती है। छोटे किसान आज भी अपने परिवार के साथ इसी हथियार से कटाई करते हैं। इससे फसल की कटाई में काफी समय लगता है। जब धान की फसल पक गयी हो और खेत में पानी भरा हो तब यही हथियार फसल की कटाई के काम आता है।
ब्रश कटर (Brush Cutter)
हाथ से कटाई करने में बहुत श्रमिक और बहुत समय लगता है। इससे किसान भाइयों का समय व पैसा बहुत बर्बाद होता है। धान की फसल की समय पर कटाई होनी बहुत जरूरी होती है। यदि समय पर धान की फसल की कटाई नहीं की गई तो बहुुत नुकसान होता है। आज के समय में खेतों में काम करने वाले मजदूर न मिलने के कारण किसानों के समक्ष बहुत बड़ी समस्या उत्पन्न हो गयी है। ऐसे में समय पर कटाई करना किसान भाइयों के लिए टेढ़ी खीर बन गयी है। इस समस्या को आधुनिक यंत्रों व मशीनों के द्वारा हल किया जा सकता है। पहले तो व्यापारियों ने धान की फसल कटाई के लिए बड़ी बड़ी मशीनें मार्केट में उतारीं, जिन्हें किराये पर लेकर काम कराया जा सकता था। लेकिन इन मशीनों का किराया भी इतना अधिक था कि प्रत्येक किसान उसको वहन नहीं कर सकता था। इसलिये अब बाजार में छोटी मशीनें आ गयी है। इसमें एक ब्रश कटर नाम से एक ऐसी मशीन आ गयी है, जिसको किसान अकेले ही दस मजदूरों के बराबर फसल की कटाई कर सकता है।  पेट्रोल से चलने वाली यह मशीन महीनों का काम घंटों में कर देती है।
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कितना है मैनुअल व मशीन के काम व दाम में अंतर
जानकार लोगों का दावा है कि एक एकड़ की मजदूरों द्वारा खेती की धान की फसल की कटाई पर लगभग 5 हजार रुपये का खर्च आता है। लेकिन इस मशीन से मात्र 500  रुपये में एक ही व्यक्ति कटाई कर सकता है। यदि किसान भाई यह काम करने में सक्षम हो तो ठीक वरना इस मशीन को चलाने वाले बहुत से लोग आ गये हैं। इस मशीन की खास बात यह है कि इसमें फसल के अनुसार ब्लेड लगाकर अलग-अलग तरह की फसलों की कटाई की जा सकती है। यह मंशीन कंधे पर टांग कर फसल की कटाई की जा सकती है। खेत में पानी भी भरा हो तब भी किसान भाई इस मशीन से कटाई कर सकते हैं। यदि किसान भाई इस मशीन की मेंटीनेंस अच्छी तरह से करे तो यह मशीन अपनी कीमत एक साल में ही निकाल देती है। यह मशीन अधिक महंगी भी नहीं है।
क्या होता है ब्रश कटर (Brush Cutter):-
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छोटे किसानों के लिए यह एक ऐसी आधुनिक मशीन है, जिसके माध्यम से किसान भाई केवल धान फसल की कटाइई ही नहीं कर सकते हैं बल्कि इससे अनेक प्रकार की फसलों च चारे की कटाई आसानी से कर सकते हैं। इस मशीन से खेतों में रुका हुआ थोड़ा बहुत पानी भी निकाल सकते हैं। अब यह मशीन पेट्रोल और मोबिल आयल से चलने वाली 4 स्ट्रोक वाली मोटर से लैस मशीन है। इसमें एक हैंडल दिया गया है। हैंडल के आगे कटर लगाने के लिए स्थान दिया गया है। इसमें आप अपनी जरूरत के ब्लेड लगाकर अपनी मनचाही फसल काट सकते हैं। इसका वजन 7 से 10 किलो तक का होता है।
किसी ट्रेनिंग की आवश्यकता नहीं
इस मशीन को चलाने के लिए कोई खास ट्रेनिंग नहीं लेनी होती है। शुरू के 10 से 15 मिनट में नये व्यक्ति को परेशानी होती है। एक बार इसको चलाने का तरीका जानने के बाद इसे आसानी से चलाया जा सकता है। इतनी ट्रेनिंग मशीन बेचने वाली कंपनी के टेक्नीशियन दे देते हैं। इसके अलावा इस मशीन को किसान भाई तो चला सकते हैं और उनकी अनुपस्थिति में घर की महिलाएं भी आसानी से चला सकतीं हैं।
कम्बाइंड हार्वेस्टर मशीन (Combined Harvester Machine)
धान फसल की कटाई के लिए कम्बाइंड हार्वेस्ट मशीन का उपयोग तेजी से होने लगा है। इस मशीन के माध्यम से खेत में खड़ी फसल की बालियों यानी अनाज की कटाई की जाती है और उसकी मढ़ाई और गहाई की जाती है। यह मशीन जमीन से 30 सेंटीमीटर ऊपर से फसल काटती है और खेत में ठूंठ छोड़ देती है इससे पुआल का नुकसान होता है। दूसरा समय पर खेत को खाली करने के लिए किसान भाइयों को जल्दी होती है और उस समय कोई दूसरा उपाय न सूझने के कारण खेत में पराली को जला दिया जाता है। इससे जानवरों के चारे का नुकसान होता है दूसरा पर्यावरण प्रदूषित होता है।
नुकसान के बावजूद है फायदे का सौदा
हालंकि मजदूरों की अपेक्षा आधी कीमत पर बहुत कम समय में अच्छी तरह से कटाई, मढ़ाई और गहाई हो जाती है। इसलिये किसान भाई इस मशीन का इस्तेमाल करते हैं। इस तरह की मशीन का इस्तेमाल बड़े किसान भाई करते हैं जिनके पास लम्बी चौडी खेती है और समय पर मजदूर नहीं मिल रहे हैं तो उनके पास इसी तरह की मशीन का ही एकमात्र विकल्प बचता है। लेकिन इस मशीन की इस कमी को देखते हुए अनेक तरह के आकर्षक रीपर मार्केट में आ गये हें। जिनसे जमीन से 5 सेंटी ऊपर की कटाई की जाती है। इससे किसान भाइयों के समक्ष ठूंठ व पराली वाली समस्या नहीं आती है।  चारे व अन्य काम के लिए बची पुआल भी काम में आ जाती है।
क्या होती है कम्बाइंड हार्वेस्टर मशीन (Combined Harvester Machine)
यह मशीन वास्तव में बड़े किसानों के इस्तेमाल के लिए होती है। यह मशीन महंगी होती है तथा इसको किराये पर चलाने के उद्देश्य से भी लिया जा सकता है। यह मशीन सूखे खेत में ही चलाई जा सकती है। जो किसान भाई कम्बाइंड हार्वेस्टर मशीन का इस्तेमाल करना चाहें तो प्रॉपलर या ट्रैक्टर में लगाकर इस मशीन को इस्तेमाल कर सकते हैं। इस तरह की मशीन बनाने वालों में दशमेशर, हिंद एग्रो, न्यू हिन्द, प्रीत, क्लास आदि ब्रांड के हार्वेस्टर कटर आते हैं। ये चौड़ाई के अनुसार दो फिल्टर्स आते हैं। इनकी चौड़ाई 1 से 10 व 11 से 20 फीट तक होती है। इसके अलावा आप अपनी जरूरत के हिसाब की चौड़ाई वाले फिल्टर्स का इस्तेमाल कर सकते हैं।
रीपर मशीन (Reaper Machine)
यह भी ब्रश कटर से मिलती जुलती मशीन है। इस मशीन में भी कटर का इस्तेमाल होता है। इस मशीन की खास बात यह है कि यह कई साइजों में आती है। इस मशीन को किसान भाई अपनी क्षमता व जरूरत के हिसाब से लेकर इस्तेमाल कर सकते हैं अथवा किराये पर लेकर भी इस्तेमाल कर सकते हैं। यह मशीन हाथ ठेले के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है, इसे मिनी ट्रैक्टर या छोटी गाड़ी में भी लगाकर फसल की कटाई की जा सकती है। इसको बड़े ट्रैक्टर में भी लगाकर फसल की कटाई की जा सकती है। यह मशीन धान की फसल की कटाई के लिए तो उपयुक्त है ही। साथ ही गेहूं  सहित अनेक फसलों को भी इससे काटा जा सकता है।
क्या होती है रीपर मशीन (Reaper Machine)
आधुनिक कृषि उपकरणों में इस मशीन की गिनती होती है। यह मशीन ऐसी है जिसे हर तरह का किसान अपनी क्षमता के अनुसार खरीद कर फसल की कटाई आसानी से कर सकता है। जहां पर फसल की कटाई के लिए कम्बाइंड हावेस्टर और ट्रैक्टर नहीं पहुंच पाता है वहां पर यह मशीन काम आती है। यह मशीन छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी आती है। मुख्यत: तीन प्रकार की ये मशीन होती है।
हाथ से चलने वाली मशीन हैंड रीपर (Hand Reaper Machine)
छोटे वाहन वाली मशीन सेल्फ प्रॉपलर मशीन (Self Propeller Machine)
ट्रैक्टर से चलने वाली मशीन ट्रैक्टर माउंटेड (Tractor Mounted Machine)
हाथ से चलने वाली मशीन हैंड रीपर (Hand Reaper Machine)
यह मशीन मूलत: छोटे किसानों के लिए होती है। यह एक पॉवरफुल मशीन होती है जो हाथों से एक व्यक्ति द्वारा चलाई जाती है। इसमें एक 5 हॉर्सपॉवर का इंजन लगा होता है। पेट्रोल व डीजल से चलने वाले इंजन अलग-अलग आते हैं। इसमें आगे की तरफ रीपर में ब्लेड़स लगे रहते हैं जिससे फसल की कटाई की जाती है। इसमें पीछे एक हैंडल लगा होता है और इसमें दो मजबूत रबर के टायर भी लगे होते हैं। हैंडल में दो गियर भी लगे होते हैं। किसान भाई हैंडल को पकड़ कर इस मशीन को खेतों में धकेलते जाते हैं और गियर के इस्तेमाल से फसल की कटाई होती रहती है। यदि इस मशीन को कहीं दूर ले जाना होता है तो इसको मोटर व मशीन को आसानी से अलग-अलग भी किया जा सकता है और इस्तेमाल के समय जोड़ा भी जा सकता है।
छोटे वाहन वाली मशीन यानी सेल्फ प्रॉपलर मशीन (Self Propeller Machine)
जो किसान मध्यम श्रेणी में आते हैं और जिनकी खेती का रकबा थोड़ा बड़ा होता है, जो थोड़ा ज्यादा पैसा खर्च कर सकते हैं तो वे छोटे वाहन यानी सेल्फ प्रॉपलरवाली मशीनों को खरीद कर फसल की आसान कटाई कर सकते हैं। इसमें एक सीटर वाहन होता है। उसमें रीपर में ब्लेड लगे होते हैं। इस एक सीटर वाहन में किसान भाई आराम से बैठ कर रीपर के माध्यम से फसलों की कटाई आसानी से कर सकते हैं। समय, पैसा दोनों ही बचा सकते हैं।
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रीपर बाइंडर मशीन (Reaper Binding Machine)
रीपर बाइंडिंग मशीन ऐसी मशीन होती है जो खेत में फसल की कटाई के साथ पौधों का बडल यानी पूला बना देती है। इससे किसान भाइयों को काफी सुविधा होती है।
ट्रैक्टर माउंटेड मशीन (Tractor Mounted Machine)
यह मशीन बड़े किसानों के लिए होती है। यह मशीन ट्रैक्टर में लगायी जाती है। यह मशीन उन किसानों के लिए है, जिनकी बड़ी काश्तकारी है और उनके पास काम करने वाले श्रमिकों की संख्या कम होती है। ऐसे किसान अपने खेत के काम निपटा कर दूसरों के खेतों पर कटाई का व्यवसाय कर सकते हैं। इस तरह से किसान इसको किराये पर चला कर अपना व्यवसाय भी कर सकते हैं।
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merikheti · 4 years
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पराली जलाने की समस्या से कैसे निपटा जाए?
हमारे देश में किसान फसलों के बचे भागों यानी अवशेषों को कचरा समझ कर खेत में ही जला देते हैं. इस कचरे को पराली कहा जाता है. इस खेत में जलाने से ना केवल प्रदूषण फैलता है बल्कि खेत को भी काफी नुकसान होता है. ऐसा करने से खेत के लाभदायी सूक्ष्मजीव मर जाते हैं और खेत की मिट्टी इन बचे भागों में पाए जाने वाले महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्वों से वंचित रह जाती है. किसानों का तर्क है कि धान के बाद उन्हें खेत में गेहूं की बुआई करनी होती है और धान की पराली का कोई समाधान नहीं होने के कारण उन्हें इसे जलाना पड़ता है. पराली जलाने पर कानूनी रोक लगाने के बावजूद, सही विकल्प ना होने की वजह से पराली जलाया जाना कम नहीं हुआ है.
खरीफ फसलों (मुख्यतः धान) को हाथों से काटने और फसल अवशेष का पर्यावरणीय दृष्टि से सुरक्षित तरीके से निपटान करने के काम में ना केवल ज्यादा समय लगता है बल्कि श्रम लागत भी अधिक हो जाती है. इससे कृषि का लागत मूल्य काफी बढ़ जाता है और किसान को घाटा होता है. इसलिए इस स्थिति से बचने के लिए और रबी की फसल की सही समय पर बुआई के लिए किसान अपने फसल के अवशेष को जलाना बेहतर समझते हैं.
अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आईएफपीआरआई) के एक अध्ययन के मुताबिक उत्तर भारत में जलने वाली पराली की वजह से देश को हर साल लगभग दो लाख करोड़ रुपए का नुकसान होता है.
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सर्दियों में बढ़ने वाले दम घोंटू प्रदूषण की एक बड़ी वजह पड़ोसी राज्यों पंजाब और हरियाणा में पराली का जलाया जाना है. अकेले पंजाब में ही अनुमानित तौर पर 44 से 51 मिलियन मेट्रिक टन पराली जलायी जाती है. इससे होने वाला प्रदूषण हवाओं के साथ दिल्ली-एनसीआर में पहुंच जाता है. अध्ययन के मुताबिक केवल धान के अवशेष को जलाने से ही 2015 में भारत में 66,200 मौतें हुईं. इतना ही नहीं, अवशेष जलने से मिट्टी की उर्वरता पर भी बुरा असर पड़ा. साथ ही, इससे पैदा होने वाली ग्रीन हाउस गैस की वजह से पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है.
सवाल उठता है कि पराली जलाने पर रोक लगाने के लिए क्या व्यावहारिक उपाय किए जाएं. इसके लिए सरकार ने लोगों को जागरुक करने की कोशिश क��� है. सरकार ने सब्सिडी संबंधी पहल की है लेकिन अब तक नतीजा सिफर रहा है. इसलिए इस दिशा में ठोस प्रयास करने की जरूरत है. इसपर हम क्रमवार तरीके से चर्चा कर सकते हैं.
कृषि क्षेत्र में क्रांति की जरूरत:  पराली को जलाने की बजाए उसका इस्तेमाल कम्पोस्ट खाद बनाने में किया जा सकता है. किसान धान की पुआल जलाने की जगह इस पुआल को मवेशियों के चारा, कंपोस्ट खाद बनाने और बिजली घरों में ईधन के रूप में इस्तेमाल करके लाभ कमा सकते हैं. इससे मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ेगी और खाद वगैरह पर होने वाले खर्च में भी कटौती होगी. पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक पुआल को खेत में बिना जलाए छोड़ दिया जाए तो यह खेत को फायदा पहुंचाएगा. पुआल खेत की नमी को सूखने से रोकता है. यह कीड़े-मकोड़ों से भी खेत को बचाता है और खेत में सड़कर उर्वरक का काम करता है. साथ ही फसल अवशेषों और दूसरे जैविक कचरे का कम्पोस्ट खाद बनाकर उसका उचित प्रबंधन किया जा सकता है. इससे जहां मिट्टी को जरूरी पौषक तत्व मिलेंगे, उसकी उर्वराशक्ति बनी रहेगी, पौषक तत्वों की हानि नहीं होगी और वातावरण शुद्ध रहेगा. कई ऐसी तकनीकें मौजूद हैं, जो पराली को जलाने के बजाय उसके बेहतर प्रबंधन में मददगार हो सकती हैं. हैप्पी सीडर एक ऐसी ही मशीन है जिसे ट्रैक्टर पर लगाकर गेहूं की बुआई की जाती है. गेहूं की बुआई से पहले कम्बाइन हार्वेस्टर से धान की कटाई के बाद बचे पुआल को इसके लिए हटाने की जरूरत नहीं पड़ती. परंपरागत बुवाई के तरीकों की तुलना में हैप्पी सीडर के उपयोग से 20 प्रतिशत अधिक लाभ हो सकता है.
वैकल्पिक इस्तेमाल को बढ़ावा देना:  पराली का इस्तेमाल अलग अलग तरह के जैविक उत्पाद बनाने आदि के लिए किया जा सकता है. कुछ साल पहले आईआईटी दिल्ली के तीन छात्रों ने इस तरह का एक विचार पेश किया था. आईआईटी दिल्ली में 2017 बैच के तीन धात्रों ने धान की पराली से कप-प्लेट और थाली बनाने की तकनीक ईजाद की थी. इसके लिए उन्होंने मिलकर एक स्टार्टअप भी शुरू किया था. आईआईटी हैदराबाद और अन्य संस्थानों के शोधकर्ताओं ने पराली और अन्य कृषि कचरे से जैविक ईंटें (बायो ब्रिक्स) बनाई हैं. इनका भवन निर्माण आदि में इस्तेमाल करके फसलों के अवशेष के उचित प्रबंधन के साथ-साथ पर्यावरण अनुकूल बिल्डिंग मैटेरियल तैयार किया जा सकता है. कुछ शोधकर्ताओं ने एक ऐसी प्रक्रिया विकसित की है जिससे धान के पुआल में सिलिका कणों की मौजूदगी के बावजूद उसे औद्योगिक उपयोग के अनुकूल बनाया जा सकता है. इस तकनीक की मदद से किसी भी कृषि अपशिष्ट या लिग्नोसेल्यूलोसिक द्रव्यमान को होलोसेल्यूलोस फाइबर या लुगदी और लिग्निन में परिवर्तित कर सकते हैं. लिग्निन को सीमेंट और सिरेमिक उद्योगों में बाइंडर के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
सरकार से मिलने वाली मदद को बढ़ाना:  सरकार ने पराली को सुरक्षित रूप से निपटाने के लिए बड़ी संख्या में उच्च प्रौद्योगिकी से लैस मशीनों (यथा-हैपी सीडर, पैडी स्ट्रॉ चॉपर, जीरो टिल ड्रिल आदि) को सब्सिडी देकर बाजार में उपलब्ध कराया है लेकिन किसानों ने कुछ वजहों से इसमें दिलचस्पी नहीं ली. इसका मुख्य कारण मशीनों की कीमत सब्सिडी के बाद भी ज्यादा होना है. इसलिए छोटे और मझोले किसानों के लिए इसे खरीदना संभव नहीं है. हालांकि सरकार ने इसके लिए सहकारी संस्थाओं के माध्यम से मशीनों की खरीद पर लगभग 75 प्रतिशत की सब्सिडी उपलब्ध करायी थी,  ताकि किसान किराये पर इन संस्थाओं से मशीनें ले सकें लेकिन भ्रष्टाचार की वजह से इसमें अपेक्षानुरुप सफलता नहीं मिली. इसलिए सरकार की तरफ से ज्यादा जागरुकता की अपेक्षा है. सरकार को इस दिशा में ठोस पहल करनी होगी, भ्रष्टाचार पर काबू पाना होना ताकि किसानों को लगे कि सरकार समस्या के निपटान में बराबर की भागीदारी दे रही है और उन्हें भी अपनी ओर से योगदान देना चाहिए. किसानों का भ्रम मिटाने के लिए उनके साथ लगातार संवाद को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. सहकारी समिति, स्वयं सहायता समूह और अन्य सामाजिक समूहों की भूमिका को बढ़ाने के साथ-साथ सब्सिडी में और अधिक पारदर्शिता पर बल देने की जरूरत है.
Source By: https://www.merikheti.com/how-to-deal-with-the-problem-of-burning-straw/
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