एसओएस, ओह् भेस च ऐ
भेस च इक ओह् भेड़िया ऐ
बाह् र औना, बाह् र औना, बाह् र औना
इक पालतू कुड़ी, तुस मेरे शा इ'यै मंगदे ओ
डार्लिंग, एह् कोई चुटकला नेईं ऐ, एह् लाइकेंथ्रोपी ऐ
चन्नै हून जागदा ऐ, अक्खीं खुʼल्लियां रौंह् दियां न
मेरे शरीर दी लालसा ऐ, इस करियै भुक्खें गी खुआओ
में सोमबार कोला सोमबार ते शुक्करबार कोला शुक्करबार तक्कर अपने आप गी तुंʼदे लेई समर्पत करा'रदा आं
मिगी एह् दे च रक्खने आस्तै लोड़चदा बदला जां शैल प्रोत्साहन नेईं थ्होआ
मिगी दफतर च कॉफी मशीन आंह् गर थोह् ड़ा गाली मसूस होन लगी पेई ऐ
इस करियै में अपने लेई इक प्रेमी आह् नने ते तुसें गी एह् दे बारे च सब किश दस्सने आस्तै कुतै आरामदायक थाह् र जा'रना आं
कोठरी च इक भेड़िया ऐ
खोह् ल्लो ते इसगी मुफत सैट्ट करो
तुंʼदी अलमारी च इक ओह् भेड़िया ऐ
इसगी बाह् र निकलन देओ, तां जे एह् साह् लेई सकै
इक बार दे पार बैठे, अपने शकार गी घूरदे होई
हुनै तक्कर चंगा चला दा ऐ, ओह् अपना रस्ता बनाने आह् ली ऐ
रातीं दे जीव इन्ने विवेकपूर्ण नेईं न
चन्न मेरा शिक्षक ऐ, ते में ओह् दा विद्यार्थी आं
इक्कल पुरशें दा पता लाने आस्तै, में अपने उप्पर इक बशेश रडार हासल कीता।
ते अग्ग स्हालने आह् ले मैह् कमे दी हाटलाइन, जेकर में बाद इच मुसीबत च पेई जां
प्यारे लौह् के डिवो दी तपाश नेईं करना
#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart67 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart68
"सर्व श्रेष्ठ तीर्थ"
प्रश्न 47:- सर्वश्रेष्ठ तीर्थ कौन-सा है जिससे सर्व तीर्थों से अधिक लाभ मिलता है?
उत्तर :- सर्व श्रेष्ठ चित्तशुद्धि तीर्थ है।
चित्तशुद्धि तीर्थ अर्थात् तत्त्वदर्शी सन्त का सत्संग सर्व तीर्थों से श्रेष्ठ :- श्री देवी पुराण छठा स्कन्द अध्याय 10 पृष्ठ 417 पर लिखा है व्यास जी ने राजा जनमेजय से कहा राजन्! यह निश्चय है कि तीर्थ देह सम्बन्धी मैल को साफ कर देते हैं, किन्तु मन के मैल को धोने की शक्ति तीर्थों में नहीं है। चित्तशुद्धि तीर्थ गंगा आदि तीर्थों से भी अधिक पवित्र माना जाता है। यदि भाग्यवश चित्तशुद्धि तीर्थ सुलभ हो जाए तो अर्थात् तत्वदर्शी संतों का सत्संग रूपी तीर्थ प्राप्त हो जाए तो मानसिक मैल के धुल जाने में कोई संदेह नहीं। परन्तु राजन् ! इस चित्तशुद्धि तीर्थ को प्राप्त करने के लिए ज्ञानी पुरुषों अर्थात् तत्त्वदर्शी सन्तों के सत्संग की विशेष आवश्यकता है। वेद, शास्त्र, व्रत, तप, यज्ञ और दान से चित्तशुद्धि होना बहुत कठिन है। वशिष्ठ जी ब्रह्मा जी के पुत्र थे। उन्होंने वेद और विद्या का सम्यक प्रकार से अध्ययन किया था। गंगा के तट पर निवास करते थे। तथापि द्वेष के कारण उनका विश्वामित्र के साथ वैमनस्य हो गया और दोनों ने परस्पर श्राप दे दिए तथा उनमें भयंकर युद्ध होने लगा। इससे सिद्ध हुआ कि संतों के सत्संग से चित्तशुद्धि कर लेना अति आवश्यक है अन्यथा वेद ज्ञान, तप, व्रत, तीर्थ, दान तथा धर्म के जितने साधन है वे सबके सब कोई विशेष प्रयोजन सिद्ध नहीं कर सकते (श्री देवी पुराण से लेख समाप्त)
* विशेष विचार :- उपरोक्त श्री देवी पुराण के लेख से स्पष्ट है कि तत्त्वदर्शी
सन्तों के सत्संग से श्रेष्ठ कोई भी तीर्थ नहीं है तथा तत्त्वदृष्टा सन्त के बताए मार्ग से साधना करने से कल्याण सम्भव है। तीर्थ, व्रत, तप, दान आदि व्यर्थ प्रयत्न है। तत्त्वदर्शी सन्त के अभाव के कारण केवल चारों वेदों में वर्णित भक्ति विधि से पूर्ण मोक्ष लाभ नहीं है।
परमेश्वर कबीर जी ने कहा है :-
सतगुरु बिन वेद पढ़ें जो प्राणी, समझे ना सार रहे अज्ञानी ।।
सतगुरु बिन काहू न पाया ज्ञाना, ज्यों थोथा भुष छिट्टै मूढ किसाना ।। अड़सठ तीर्थ भ्रम-भ्रम आवै सर्व फल सतगुरू चरणा पावै।।
कबीर तीर्थ करि-करि जग मुआ, उड़ै पानी नहाय।
सतनाम जपा नहीं, काल घसीटें जाय ।।
सूक्ष्मवेद (तत्त्वज्ञान) में कहा है कि :-
अड़सठ तीर्थ भ्रम-भ्रम आवै। सो फल सतगुरू चरणों पावै ।।
गंगा, यमुना, बद्री समेते। जगन्नाथ धाम है जेते ।।
भ्रमें फल प्राप्त होय न जेतो। गुरू सेवा में फल पावै तेतो ।। कोटिक तीर्थ सब कर आवै। गुरू चरणां फल तुरंत ही पावै ।।
सतगुरू मिलै तो अगम बतावै। जम की आंच ताहि नहीं आवै।।
भक्ति मुक्ति को पंथ बतावै। बुरा होन को पंथ छुड़ावै ।। सतगुरू भक्ति मुक्ति के दानी। सतगुरू बिना ना छूटै खानी ।।
सतगुरू गुरू सुर तरू सुर धेनु समाना। पावै चरणन मुक्ति प्रवाना ।।
सरलार्थ :- पूर्ण परमात्मा द्वारा दिए तत्त्वज्ञान यानि सूक्ष्मवेद में कहा है कि तीर्थों और धामों पर जाने से कोई पुण्य लाभ नहीं। असली तीर्थ सतगुरू (तत्त्वदर्शी संत) का सत्संग सुनने जाना है। जहाँ तत्त्वदर्शी संत का सत्संग होता है, वह सर्व श्रेष्ठ तीर्थ तथा धाम है।
इसी कथन का साक्षी संक्षिप्त श्रीमद्देवीभागवत महापुराण भी है। उसमें छठे स्कंद के अध्याय 10 में लिखा है कि सर्व श्रेष्ठ तीर्थ तो चित शुद्ध तीर्थ है। जहाँ तत्वदर्शी संत का सत्संग चल रहा है। उसके अध्यात्म ज्ञान से चित की शुद्धि होती है। शास्त्रोक्त अध्यात्म ज्ञान तथा शास्त्रोक्त भक्ति विधि का ज्ञान होता है जिससे जीव का कल्याण होता है। अन्य तीर्थ मात्र भ्रम हैं।
इसी पुराण में लिखा है कि सतगुरू रूप तीर्थ मिलना अति दुर्लभ है।
सूक्ष्मवेद में बताया है कि सतगुरू तो कल्पवृक्ष तथा कामधेनू के समान है। जैसे पुराणों में कहा है कि ��्वर्ग में कल्पवृक्ष तथा कामधेनु हैं। उनसे जो भी माँगो, सब सुविधाएँ प्रदान कर देते हैं।
इसी प्रकार सतगुरू जी सत्य साधना बताकर सर्व लाभ साधक को प्रदान करवा देते हैं तथा अपने आशीर्वाद से भी अनेकों लाभ देते हैं। भक्ति करवाकर मुक्ति की राह आसान कर देते हैं। इसलिए कहा है :- कि एकै साधै सब सधै, सब साधैं सब जाय।
माली सींचे मूल को, फलै फूलै अघाय ।।
शब्दार्थ :- एक सतगुरू रूप तीर्थ पर जाने से सब लाभ मिल जाता है। सब तीर्थों-धामों व अन्य अंध श्रद्धा भक्ति से सब लाभ समाप्त हो जाते हैं। जैसे आम के पौधे की एक जड़ की सिंचाई करने से पौधा विकसित होकर पेड़ बनकर बहुत फल देता है।
यदि पौधे को उल्टा करके जमीन में गढ़ढ़े में शाखाओं की ओर से रोपकर शाखाओं की सिंचाई करेंगे तो पौधा नष्ट हो जाता है। कोई लाभ नहीं मिलता। इसलिए एक सतगुरू रूप तीर्थ पर जाने से सर्व लाभ मिल जाता है।
जैसा कि संक्षिप्त श्रीमद्देवीभागवत महापुराण में लिखा है कि सतगुरू रूप तीर्थ मिलना अति दुर्लभ है, परंतु आप जी को सतगुरू रूप तीर्थ अति शुलभ है। यह दास (लेखक रामपाल दास) विश्व में एकमात्र सतगुरू तीर्थ यानि तत्वज्ञानी है। आओ और सत्य भक्ति प्राप्त करके जीवन सफल बनाओ।
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart67 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart68
"सर्व श्रेष्ठ तीर्थ"
प्रश्न 47:- सर्वश्रेष्ठ तीर्थ कौन-सा है जिससे सर्व तीर्थों से अधिक लाभ मिलता है?
उत्तर :- सर्व श्रेष्ठ चित्तशुद्धि तीर्थ है।
चित्तशुद्धि तीर्थ अर्थात् तत्त्वदर्शी सन्त का सत्संग सर्व तीर्थों से श्रेष्ठ :- श्री देवी पुराण छठा स्कन्द अध्याय 10 पृष्ठ 417 पर लिखा है व्यास जी ने राजा जनमेजय से कहा राजन्! यह निश्चय है कि तीर्थ देह सम्बन्धी मैल को साफ कर देते हैं, किन्तु मन के मैल को धोने की शक्ति तीर्थों में नहीं है। चित्तशुद्धि तीर्थ गंगा आदि तीर्थों से भी अधिक पवित्र माना जाता है। यदि भाग्यवश चित्तशुद्धि तीर्थ सुलभ हो जाए तो अर्थात् तत्वदर्शी संतों का सत्संग रूपी तीर्थ प्राप्त हो जाए तो मानसिक मैल के धुल जाने में कोई संदेह नहीं। परन्तु राजन् ! इस चित्तशुद्धि तीर्थ को प्राप्त करने के लिए ज्ञानी पुरुषों अर्थात् तत्त्वदर्शी सन्तों के सत्संग की विशेष आवश्यकता है। वेद, शास्त्र, व्रत, तप, यज्ञ और दान से चित्तशुद्धि होना बहुत कठिन है। वशिष्ठ जी ब्रह्मा जी के पुत्र थे। उन्होंने वेद और विद्या का सम्यक प्रकार से अध्ययन किया था। गंगा के तट पर निवास करते थे। तथापि द्वेष के कारण उनका विश्वामित्र के साथ वैमनस्य हो गया और दोनों ने परस्पर श्राप दे दिए तथा उनमें भयंकर युद्ध होने लगा। इससे सिद्ध हुआ कि संतों के सत्संग से चित्तशुद्धि कर लेना अति आवश्यक है अन्यथा वेद ज्ञान, तप, व्रत, तीर्थ, दान तथा धर्म के जितने साधन है वे सबके सब कोई विशेष प्रयोजन सिद्ध नहीं कर सकते (श्री देवी पुराण से लेख समाप्त)
* विशेष विचार :- उपरोक्त श्री देवी पुराण के लेख से स्पष्ट है कि तत्त्वदर्शी
सन्तों के सत्संग से श्रेष्ठ कोई भी तीर्थ नहीं है तथा तत्त्वदृष्टा सन्त के बताए मार्ग से साधना करने से कल्याण सम्भव है। तीर्थ, व्रत, तप, दान आदि व्यर्थ प्रयत्न है। तत्त्वदर्शी सन्त के अभाव के कारण केवल चारों वेदों में वर्णित भक्ति विधि से पूर्ण मोक्ष लाभ नहीं है।
परमेश्वर कबीर जी ने कहा है :-
सतगुरु बिन वेद पढ़ें जो प्राणी, समझे ना सार रहे अज्ञानी ।।
सतगुरु बिन काहू न पाया ज्ञाना, ज्यों थोथा भुष छिट्टै मूढ किसाना ।। अड़सठ तीर्थ भ्रम-भ्रम आवै सर्व फल सतगुरू चरणा पावै।।
कबीर तीर्थ करि-करि जग मुआ, उड़ै पानी नहाय।
सतनाम जपा नहीं, काल घसीटें जाय ।।
सूक्ष्मवेद (तत्त्वज्ञान) में कहा है कि :-
अड़सठ तीर्थ भ्रम-भ्रम आवै। सो फल सतगुरू चरणों पावै ।।
गंगा, यमुना, बद्री समेते। जगन्नाथ धाम है जेते ।।
भ्रमें फल प्राप्त होय न जेतो। गुरू सेवा में फल पावै तेतो ।। कोटिक तीर्थ सब कर आवै। गुरू चरणां फल तुरंत ही पावै ।।
सतगुरू मिलै तो अगम बतावै। जम की आंच ताहि नहीं आवै।।
भक्ति मुक्ति को पंथ बतावै। बुरा होन को पंथ छुड़ावै ।। सतगुरू भक्ति मुक्ति के दानी। सतगुरू बिना ना छूटै खानी ।।
सतगुरू गुरू सुर तरू सुर धेनु समाना। पावै चरणन मुक्ति प्रवाना ।।
सरलार्थ :- पूर्ण परमात्मा द्वारा दिए तत्त्वज्ञान यानि सूक्ष्मवेद में कहा है कि तीर्थों और धामों पर जाने से कोई पुण्य लाभ नहीं। असली तीर्थ सतगुरू (तत्त्वदर्शी संत) का सत्संग सुनने जाना है। जहाँ तत्त्वदर्शी संत का सत्संग होता है, वह सर्व श्रेष्ठ तीर्थ तथा धाम है।
इसी कथन का साक्षी संक्षिप्त श्रीमद्देवीभागवत महापुराण भी है। उसमें छठे स्कंद के अध्याय 10 में लिखा है कि सर्व श्रेष्ठ तीर्थ तो चित शुद्ध तीर्थ है। जहाँ तत्वदर्शी संत का सत्संग चल रहा है। उसके अध्यात्म ज्ञान से चित की शुद्धि होती है। शास्त्रोक्त अध्यात्म ज्ञान तथा शास्त्रोक्त भक्ति विधि का ज्ञान होता है जिससे जीव का कल्याण होता है। अन्य तीर्थ मात्र भ्रम हैं।
इसी पुराण में लिखा है कि सतगुरू रूप तीर्थ मिलना अति दुर्लभ है।
सूक्ष्मवेद में बताया है कि सतगुरू तो कल्पवृक्ष तथा कामधेनू के समान है। जैसे पुराणों में कहा है कि स्वर्ग में कल्पवृक्ष तथा कामधेनु हैं। उनसे जो भी माँगो, सब सुविधाएँ प्रदान कर देते हैं।
इसी प्रकार सतगुरू जी सत्य साधना बताकर सर्व लाभ साधक को प्रदान करवा देते हैं तथा अपने आशीर्वाद से भी अनेकों लाभ देते हैं। भक्ति करवाकर मुक्ति की राह आसान कर देते हैं। इसलिए कहा है :- कि एकै साधै सब सधै, सब साधैं सब जाय।
माली सींचे मूल को, फलै फूलै अघाय ।।
शब्दार्थ :- एक सतगुरू रूप तीर्थ पर जाने से सब लाभ मिल जाता है। सब तीर्थों-धामों व अन्य अंध श्रद्धा भक्ति से सब लाभ समाप्त हो जाते हैं। जैसे आम के पौधे की एक जड़ की सिंचाई करने से पौधा विकसित होकर पेड़ बनकर बहुत फल देता है।
यदि पौधे को उल्टा करके जमीन में गढ़ढ़े में शाखाओं की ओर से रोपकर शाखाओं की सिंचाई करेंगे तो पौधा नष्ट हो जाता है। कोई लाभ नहीं मिलता। इसलिए एक सतगुरू रूप तीर्थ पर जाने से सर्व लाभ मिल जाता है।
जैसा कि संक्षिप्त श्रीमद्देवीभागवत महापुराण में लिखा है कि सतगुरू रूप तीर्थ मिलना अति दुर्लभ है, परंतु आप जी को सतगुरू रूप तीर्थ अति शुलभ है। यह दास (लेखक रामपाल दास) विश्व में एकमात्र सतगुरू तीर्थ यानि तत्वज्ञानी है। आओ और सत्य भक्ति प्राप्त करके जीवन सफल बनाओ।
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
Rahu Gochar 2024: राहु कर रहा है नक्षत्र गोचर, इन 4 राशियों के जातकों को मिलेगा बंपर लाभRahu Gochar 2024: राहु का नक्षत्र गोचर होने जा रहा है, जिसके चलते 4 राशियों के जातकों को काफी लाभ प्राप्त होन वाला है। तो आइए जानते हैं इस लेख में कौन सी है 4 राशियां।
अगर आप लंबे समय के लिए निवेश करना चाहते हैं तो आपको उन्ही स्टॉक्स में निवेश करना चाहिए जो पहले से ही मार्केट में अपना नाम बना चुकी है और बहुत समय से अच्छा कर रहे है, जैसे कि tcs, Asian Paint, HUL इत्यादि |
long term ke liye best share in hindi को खोजने के लिए आपको नीचे दिए गई बातों का ध्यान रखना है -
ऐसे स्टॉक को खोजे जिनका मार्केट कैप कम से कम 5000 करोड़ से ज्यादा हो | कुल मिलाकर आपको ऐसी कंपनी खोजनी है जो large cap और bluechip कंपनी हो |
ऐसी कंपनी जो बहुत समय से अपना बिजनस कर रही हों और अपने सेक्टर में लीडर हों |
उनका debt/equity 15% या उससे कम होना चाहिए |
जो कंपनी आप लॉंग टर्म के लिए खोजे हैं उसका brand value होन चाहिए, मतलब कि उस कंपनी का नाम बहुत पहले से स्थापित होन चाहिए जैसे - टाटा, बिरला और रिलायंस |
सरकारी कंपनी नहीं होनी चाहिए |
उस कंपनी के प्रोडक्टस या सामान की डिमांड भविष्य में भी होनी चाहिए |
कंपनी का roce > 15% से 20% होन चाहिए |
मैं आपको कुछ ऐसी कंपनी के नाम बात देता हूँ जिससे आपको उन्हे खोजने में परिशानी न हो | उन कंपनी के नाम हैं - ITC, TCS, HUL, Asian Paints, Britannia, Nestle, Hdfc bank, PGHH इत्यादि |
#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart67 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart68
"सर्व श्रेष्ठ तीर्थ"
प्रश्न 47:- सर्वश्रेष्ठ तीर्थ कौन-सा है जिससे सर्व तीर्थों से अधिक लाभ मिलता है?
उत्तर :- सर्व श्रेष्ठ चित्तशुद्धि तीर्थ है।
चित्तशुद्धि तीर्थ अर्थात् तत्त्वदर्शी सन्त का सत्संग सर्व तीर्थों से श्रेष्ठ :- श्री देवी पुराण छठा स्कन्द अध्याय 10 पृष्ठ 417 पर लिखा है व्यास जी ने राजा जनमेजय से कहा राजन्! यह निश्चय है कि तीर्थ देह सम्बन्धी मैल को साफ कर देते हैं, किन्तु मन के मैल को धोने की शक्ति तीर्थों में नहीं है। चित्तशुद्धि तीर्थ गंगा आदि तीर्थों से भी अधिक पवित्र माना जाता है। यदि भाग्यवश चित्तशुद्धि तीर्थ सुलभ हो जाए तो अर्थात् तत्वदर्शी संतों का सत्संग रूपी तीर्थ प्राप्त हो जाए तो मानसिक मैल के धुल जाने में कोई संदेह नहीं। परन्तु राजन् ! इस चित्तशुद्धि तीर्थ को प्राप्त करने के लिए ज्ञानी पुरुषों अर्थात् तत्त्वदर्शी सन्तों के सत्संग की विशेष आवश्यकता है। वेद, शास्त्र, व्रत, तप, यज्ञ और दान से चित्तशुद्धि होना बहुत कठिन है। वशिष्ठ जी ब्रह्मा जी के पुत्र थे। उन्होंने वेद और विद्या का सम्यक प्रकार से अध्ययन किया था। गंगा के तट पर निवास करते थे। तथापि द्वेष के कारण उनका विश्वामित्र के साथ वैमनस्य हो गया और दोनों ने परस्पर श्राप दे दिए तथा उनमें भयंकर युद्ध होने लगा। इससे सिद्ध हुआ कि संतों के सत्संग से चित्तशुद्धि कर लेना अति आवश्यक है अन्यथा वेद ज्ञान, तप, व्रत, तीर्थ, दान तथा धर्म के जितने साधन है वे सबके सब कोई विशेष प्रयोजन सिद्ध नहीं कर सकते (श्री देवी पुराण से लेख समाप्त)
* विशेष विचार :- उपरोक्त श्री देवी पुराण के लेख से स्पष्ट है कि तत्त्वदर्शी
सन्तों के सत्संग से श्रेष्ठ कोई भी तीर्थ नहीं है तथा तत्त्वदृष्टा सन्त के बताए मार्ग से साधना करने से कल्याण सम्भव है। तीर्थ, व्रत, तप, दान आदि व्यर्थ प्रयत्न है। तत्त्वदर्शी सन्त के अभाव के कारण केवल चारों वेदों में वर्णित भक्ति विधि से पूर्ण मोक्ष लाभ नहीं है।
परमेश्वर कबीर जी ने कहा है :-
सतगुरु बिन वेद पढ़ें जो प्राणी, समझे ना सार रहे अज्ञानी ।।
सतगुरु बिन काहू न पाया ज्ञाना, ज्यों थोथा भुष छिट्टै मूढ किसाना ।। अड़सठ तीर्थ भ्रम-भ्रम आवै सर्व फल सतगुरू चरणा पावै।।
कबीर तीर्थ करि-करि जग मुआ, उड़ै पानी नहाय।
सतनाम जपा नहीं, काल घसीटें जाय ।।
सूक्ष्मवेद (तत्त्वज्ञान) में कहा है कि :-
अड़सठ तीर्थ भ्रम-भ्रम आवै। सो फल सतगुरू चरणों पावै ।।
गंगा, यमुना, बद्री समेते। जगन्नाथ धाम है जेते ।।
भ्रमें फल प्राप्त होय न जेतो। गुरू सेवा में फल पावै तेतो ।। कोटिक तीर्थ सब कर आवै। गुरू चरणां फल तुरंत ही पावै ।।
सतगुरू मिलै तो अगम बतावै। जम की आंच ताहि नहीं आवै।।
भक्ति मुक्ति को पंथ बतावै। बुरा होन को पंथ छुड़ावै ।। सतगुरू भक्ति मुक्ति के दानी। सतगुरू बिना ना छूटै खानी ।।
सतगुरू गुरू सुर तरू सुर धेनु समाना। पावै चरणन मुक्ति प्रवाना ।।
सरलार्थ :- पूर्ण परमात्मा द्वारा दिए तत्त्वज्ञान यानि सूक्ष्मवेद में कहा है कि तीर्थों और धामों पर जाने से कोई पुण्य लाभ नहीं। असली तीर्थ सतगुरू (तत्त्वदर्शी संत) का सत्संग सुनने जाना है। जहाँ तत्त्वदर्शी संत का सत्संग होता है, वह सर्व श्रेष्ठ तीर्थ तथा धाम है।
इसी कथन का साक्षी संक्षिप्त श्रीमद्देवीभागवत महापुराण भी है। उसमें छठे स्कंद के अध्याय 10 में लिखा है कि सर्व श्रेष्ठ तीर्थ तो चित शुद्ध तीर्थ है। जहाँ तत्वदर्शी संत का सत्संग चल रहा है। उसके अध्यात्म ज्ञान से चित की शुद्धि होती है। शास्त्रोक्त अध्यात्म ज्ञान तथा शास्त्रोक्त भक्ति विधि का ज्ञान होता है जिससे जीव का कल्याण होता है। अन्य तीर्थ मात्र भ्रम हैं।
इसी पुराण में लिखा है कि सतगुरू रूप तीर्थ मिलना अति दुर्लभ है।
सूक्ष्मवेद में बताया है कि सतगुरू तो कल्पवृक्ष तथा कामधेनू के समान है। जैसे पुराणों में कहा है कि स्वर्ग में कल्पवृक्ष तथा कामधेनु हैं। उनसे जो भी माँगो, सब सुविधाएँ प्रदान कर देते हैं।
इसी प्रकार सतगुरू जी सत्य साधना बताकर सर्व लाभ साधक को प्रदान करवा देते हैं तथा अपने आशीर्वाद से भी अनेकों लाभ देते हैं। भक्ति करवाकर मुक्ति की राह आसान कर देते हैं। इसलिए कहा है :- कि एकै साधै सब सधै, सब साधैं सब जाय।
माली सींचे मूल को, फलै फूलै अघाय ।।
शब्दार्थ :- एक सतगुरू रूप तीर्थ पर जाने से सब लाभ मिल जाता है। सब तीर्थों-धामों व अन्य अंध श्रद्धा भक्ति से सब लाभ समाप्त हो जाते हैं। जैसे आम के पौधे की एक जड़ की सिंचाई करने से पौधा विकसित होकर पेड़ बनकर बहुत फल देता है।
यदि पौधे को उल्टा करके जमीन में गढ़ढ़े में शाखाओं की ओर से रोपकर शाखाओं की सिंचाई करेंगे तो पौधा नष्ट हो जाता है। कोई लाभ नहीं मिलता। इसलिए एक सतगुरू रूप तीर्थ पर जाने से सर्व लाभ मिल जाता है।
जैसा कि संक्षिप्त श्रीमद्देवीभागवत महापुराण में लिखा है कि सतगुरू रूप तीर्थ मिलना अति दुर्लभ है, परंतु आप जी को सतगुरू रूप तीर्थ अति शुलभ है। यह दास (लेखक रामपाल दास) विश्व में एकमात्र सतगुरू तीर्थ यानि तत्वज्ञानी है। आओ और सत्य भक्ति प्राप्त करके जीवन सफल बनाओ।
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
આજરોજ શ્રીપુરૂષોત્તમમાસમાં શ્રીજી કૃપાથી ‘ગઢ તે ગ્વાલીન ઊતરી’ એટલે કે ‘દાણલીલા’નો મનોરથ પરીપૂર્ણ થયો છે. શ્રીપ્રભુએ વ્રજમંડલમાં ગોપીઓ સાથે મહાદાણલીલા કરી તે ભાવનાથી, અધિક શ્રાવણમાસની કમલા એકાદશીના શુભ દિવસે દાણલીલાનો મનોરથ સિધ્ધ કરવામાં આવ્યો છે. દાણલીલાના શ્રીંગારની વિશેષતા એ હોય છે કે શ્રીમસ્તક પર ધારણ કરેલા રત્નજડીત મુગટને લાલ પીતાંબરથી બાંધવામાં આવે છે, જેથી લીલા સમયે ભાગતા ભાગતા મુગટ શ્રીમસ્તક પરથી વડો ના થઈ જાય. વળી, ભાગતા સમયે પાછળથી ગોપીજનો પ્રભુની ચોટીજી પકડી ના લે એ ભાવથી દાણલીલાના શ્રીંગારમાં પ્રભુને ચોટીજી પણ ધરવામાં આવતી નથી.
પ્રસ્તુત પીછવાઈમાં ‘ગઢ તે ગ્વાલીન ઊતરી’ પદમાં વર્ણવેલી દાણલીલાના પ્રત્યક્ષ દર્શન થાય છે.
गढ़तें ग्वालिनि उतरि शीश महि कौ मांट ।
आहो कन्हैया व्है रह्यो रोकी ब्रजवधू बाट,
नागरी दान दें ॥
कहाँ की हो तुम ग्वालिनि कहा तिहारो नाम ।
बरसाने की ग्वालिनि राधा मेरो नाम,
मोहन जान दै ॥
वृंदावन की कुंज में अचरा पकयों दौर।
नाम दान को लेत हौ लाला चाहत हो कछु और॥
तुम अकेले हम अकेली बात नहीं कछु जोग।
तुम तौ चतुर प्रवीण हौ कहा कहेंगे लोग ॥
संग की सखि सब दूर निकसि गईं हम रोकी बन माँझ।
घर तो दारुन सास है अब होन लगी है सांझ॥
तुम ओढ़ी है कामरी हम पहेरय्यो है चीर।
उमड़ि घुमड़ आई बादरी अब कहा बरसावत नीर॥
प्रेम मगन भई ��्वालिनि हरि को दरशन पाय ।
मुखतें बचन न आवहि सो लगी ठगौरी जाय ॥
टुकी आगें धरिपरी श्याम के पायँ ।
मन भावै सो लीजिय बचै सो बेचन जाँय ॥
सुख बाढ्यो आनंद भयौ रही श्याम गुन गाय ।सुंदर शोभा देखिकें सूरदास बलि जाय ॥